आचार्य गोपाल जी

हिंदी हमारी आन है 


 


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


हिंदी से हिंदुस्तान है ,


ये भाषा बड़ी महान है ,


यही बढ़ाती मान है।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


संस्कृत में है संस्कृति हमारी,


हिंदी संस्कृत की संतान है ।


यही हमारी है एक धरोहर,


ये करती सब का सम्मान है ।


अरबी फारसी अंग्रेजी सहित,


यह सबको देती मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


प्रेम सौहार्द की भाषा हिंदी,


प्रेम की मजबूत धागे समान है ।


हिंदू की गौरव गाथा है,


सनातन की पहचान है ।


सूर तुलसी कबीर रहीम ,


कहीं जायसी तो रसखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


हिंदी भारत की बिंदी है,


सुलभ सुगम रस खान है ।


‌गर्व हमें है निज भाषा पर,


यही हमारा स्वाभिमान है ।


जीवन की है यही परिभाषा,


यह कालजई महान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


बिहारी,भूषण,कवि चंद है इसमें,


दिनकर,निराला,पंत,भारतेंदु महान है ।


बड़ी निराली देवनागरी लिपि,


विश्व में इसकी अलग पहचान है ।


हर भारतवासी के दिल में ,


हिंदी के लिए सम्मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


पर आज यही बनी है दासी ,


हम सब से ही यह परेशान है ।


अंग्रेजी है राज कर रही ,


यह बनी हुई गुमनाम है ।


दिवस पर करते गुणगान सब ,


दिल से करते अंग्रेजी का बखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


 


नेताओं की है बात निराली,


अंग्रेजी की करते रखवाली ।


हिंदी का करते अपमान है,


हर वर्ष बना के नए नियम वो,


जिसमे वोट कमीशन नाम है,


यही चलन आज आम है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


आचार्य गोपाल जी


           उर्फ


 आजाद अकेला बरबीघा वाले


सुनीता असीम

ग़म नहीं मुझको सुनाना दिल का।


सुन लिया तो है रुलाना दिल का।


****


खूब आंखों को भिगोते वो हैं।


भा गया जिनको तराना दिल का।


****


शब सुबह चैन नहीं है उनको‌।


गा रहे जो हैं फ़साना दिल का।


****


जिस्म दो एक अगर हो जाएं।


है वही अच्छा लगाना दिल का।


****


चार आँखें जो हुईं आँखों से।


दिल बना फिर तो निशाना दिल का।


****


सुनीता असीम


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

नव हिन्दी नव सर्जना


 


सुन्दर सुखद प्रभात है , राम राम सुखधाम। 


हिन्दीमय सारे जहां , भारत है अभिराम।।१


 


प्रमुदित है संस्कृत सुता , पुण्य दिवस पर आज।


हिन्दी हिन्दूस्तान का , प्रीति भक्ति आगाज।।२।।


  


नव हिन्दी नव सर्जना , कालजयी साहित्य।


अलंकार नवरस ध्वनि , रीति गुणी लालित्य।।३।।


  


रचना हो नित चारुतम , मर्यादित अनुकूल। 


हिन्दी नित प्रेरक बने , नव समाजशुभ फूल।।४।।


  


इन्द्रधनुष सतरंग सम , विविध विधा हो काव्य। 


स्वस्ति लोक निर्माण मन , नवसर्जन मन भाव्य।।५।।


 


 हिन्दी भारत अस्मिता , एक राष्ट्र नित सूत्र। 


 बोले लिखें शान से , हिन्दी हिन्द सपुत्र।।६।।


 


हिन्दी है गौरव वतन , सहज सरल मृदुभाष। 


 वैज्ञानिक मानक सरस, नव भारत अभिलाष।।७।।


 


 सारस्वत लेखन सदा , हिन्दी मन सम्मान।


 निज भाषा हिन्दी लहै , देश लोक उत्थान।।८।।


 


प्रगति राष्ट्र जग वे बने , निज भाषा अभिमान।


 विरत राष्ट्र भाषा जगत , हो वजूद अवसान।।९।।


 


राष्ट्र शक्ति हिन्दी मधुर , कण्ठहार जनतंत्र।


रोज़गार शिक्षा सुलभ , समझो जीवन मंत्र।।१०।।


 


हिन्दी कुमकुम भारती , लाल भाल बिंदास। 


तजो आंग्ल उर्दू प्रणय , वरना जग उपहास।।११।। 


 


सविता हिन्दी अरुणिमा , लाओ पुनः विहान।


खिल निकुंज सुरभित कली,हिन्दी हिन्द महान।१२।।


 


बने लोक भाषा जगत , हिन्दी भाष विलास।


अनुपम रचना सर्जना , गौरव हो इतिहास।।१३।।


 


शक्ति भक्ति रस पूर्ण नित , हिन्दी हो नवनीत।


तरुणाई नव चेतना , दिग्दर्शक नवप्रीत।।१४।।


 


आज पुनः संकल्प लें , मन हिन्दी स्वीकार।


सीखें सब भाषा विविध , पर हिन्दी सत्कार।।१५।। 


 


कवि निकुंज कवि कामिनी,लिख हिन्दी अविराम।


हिन्दी मय माँ भारती , भारत जग शुभ नाम।।१६।।


 


देवनागिरी लिपिका , वैज्ञानिक अभिराम।


पठन श्रवण लेखन समा , हिन्दी हो सत्काम।।१७।। 


 


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


अमित अग्रवाल मीत

मैं हिन्दी हूँ, हिन्द की भाषा, मुझ पे निशाने मत साधो !


बरसों बाद स्वतंत्र हुयी हूँ, मुझे बेड़ियां मत बांधो !!


 


आदिकाल से लुटी जा रही, पल पल मेरी आन ही क्यूँ ?


धूमिल हो रही हर दूजे दिन, मेरी ये पहचान ही क्यूँ ??


 


बचपन में आँचल में अपने, पाला पोसा था तुमको !


अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था, मुझपे भरोसा था तुमको !!


 


आज मगर अंग्रेजी के बिन, मुश्किल लगता है जीना !


राष्ट्रभाषा का नाम दिया था, ओहदा मेरा क्यूँ छीना ??


 


मुझे शिकायत निज पुत्रों से, गैरों से मलाल नहीं !


क्यूँ मेरे अस्तित्व की चिंता, करते मेरे लाल नहीं ??


 


मैं लगती बूढ़ी माँ जैसी, आँखों को न भाती है !


अंग्रेजी बन चली प्रेयसी, हर पल तुम्हें लुभाती है !!


 


मेरी हालत उस अबला सी, जिसकी साड़ी फटी हुयी !


अंग्रेजी उर्दू अरबी के, पैबंदों से सजी हुयी !!


 


आज मुझे ही अपनाने में, शर्म तुम्हें क्यूँ आती है ?


क्यूँ अंग्रेजी सेहरा बनकर, सिर पर चढ़ती जाती है ??


 


सुनो आज तुम सबको मैं, इक सच्चाई बतलाती हूँ !


दुनिया की सब भाषाओं की, मैं ही जीवनदाती हूँ !!


 


इस धरती पर नयी सुबह का, मेरे बिन आगाज नहीं !


मैं हिन्दी स्वच्छंद सुधा हूँ, एक दिन की मोहताज नहीं !!


 


अमित अग्रवाल 'मीत'


संजय जैन

हिंदी ने बदल दी,


प्यार की परिभाषा।


सब कहने लगे


मुझे प्यार हो गया।


कहना भूल गए,


आई लव यू।


अब कहते है


मुझसे प्यार करोगी।


कितना कुछ बदल दिया,


हिंदी की शब्दावली ने।


और कितना बदलोगें,


अपने आप को तुम।


हिंदी से सोहरत मिली,


मिला हिंदी से ज्ञान।


तभी बन पाया,


एक लेखक महान।


अब कैसे छोड़ दू,


इस प्यारी भाषा को।


ह्रदय स्पर्श कर लेती,


जब कहते है आप शब्द।


हर शब्द अगल अलग,


अर्थ निकलता है।


इसलिए साहित्यकारों को,


हिंदी भाषा बहुत भाती है।


हर तरह के गीत छंद,


और लेख लिखे जाते है।


जो लोगो के दिल को छूकर,


हृदय में बस जाते है।


और हिंदी गीतों को,


मन ही मन गुन गुनते है।


और हिंदी को अपनी,


मातृभाषा कहते है।


इसलिए हिंदी को


राष्ट्रभाषा भी कहते है।।


 


संजय जैन (मुंबई )


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

लेखनी के यशस्वी पुजारी


कालिदास की उपमा उत्तम,बाणभट्ट की भाषा,


तुलसी-सूर-कबीर ने गढ़ दी,भक्ति-भाव-परिभाषा।


मीर व ग़ालिब की गज़लों सँग,मीरा के पद सारे-


"प्रेम सार है जीवन का",कह,ऐसी दिए दिलासा।।


                      बाणभट्ट की.........।।


सूत्र व्याकरण के सब साधे,अपने ऋषिवर पाणिनि,


वाल्मीकि,कवि माघ सकल गुण, पद-लालित्य में दण्डिनि।


कण्व-कणाद-व्यास ऋषि साधक,दे संदेश अनूठा-


ज्ञान-प्रकाश-पुंज कर विगसित,हर ली सकल निराशा।।


                   बाणभट्ट की.............।।


गुरु बशिष्ठ,ऋषि गौतम-कौशिक,मानव-मूल्य सँवारे,


औषधि-ज्ञानी श्रेष्ठ पतंजलि,रोग-ग्रसित जन तारे।


ऋषि द्वैपायन-पैल-पराशर,कश्यप-धौम्य व वाम-


सबने मिलकर धर्म-कर्म से,जीवन-मूल्य तराशा।।


                बाणभट्ट की.............।।


श्रीराम-कृष्ण,महावीर-बुद्ध थे,पुरुष अलौकिक भारी,


महि-अघ-भार दूर करने को,आए जग तन धारी।


करके दलन सभी दानव का,ये महामानव मित्रों-


कर गए ज्योतिर्मय यह जीवन,जला के दीपक आशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


किए विवेकानंद विखंडित,सकल खेल-पाखंड,


जा विदेश में कर दिए क़ायम, भारत-मान अखंड।


श्रीअरविंदो ने भी करके,दर्शन का उद्घोष-


भ्रमित ज्ञान-पोषित-मन-जन की,दूर भगाया हताशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


भारतेंदु हरिचंद्र हैं,हिंदी-कवि-कुल के गौरव,


उपन्यास-सम्राट,प्रेम ने दिया,कहानी को इक रव।


आचार्य शुक्ल,आचार्य हजारी,भाषा-मान बढ़ाए-


पंत-प्रसाद-निराला भी हैं,हिंदी-बाग-सुवासा।।


               बाणभट्ट की.............।।


यात्रा के साहित्य-पितामह,बहुभाषाविद राहुल,


बौद्ध-धर्म के अध्येता वे,पंडित महा थे काबिल।


सांकृत्यायन राहुल जी भी,ज्ञान-ध्वज फहराए-


ज्ञान-ज्योति-नव दीप जलाकर,दीप्त किए जिज्ञासा।।


            बाणभट्ट की............ ।।


गुप्त मैथिली-दिनकर-देवी,महावीर जी ज्ञानी,


सदानंद अज्ञेय प्रणेता-मुक्त छंद-विज्ञानी।


नीरज-बच्चन गीत-विधाता,सब जन को हैं प्यारे-


प्रखर लेखनी श्री मयंक की,अद्भुत वाग-विलासा।।


           बाणभट्ट की...............।।


नग़मा निग़ार चलचित्र-जगत के,सबने नाम किया है,


राही-हसरत-कैफ़ी-मजरुह ने,रौशन पटल किया है।


बख़्शी-अख़्तर-कवि प्रसून-अंजान सहित इंदीवर-


साहिर-शकील-गुलज़ार सभी ने,नूतन गीत तलाशा।।


         बाणभट्ट की................।।


धन्य धरा यह भारत है,जो जन्म दिया इन लोंगो को,


अध्यात्म-ध्यान,कर्तव्य-ज्ञान का,धर्म सिखाया लोंगो को।


ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी,सबने मान बढ़ाया माटी का-


"जीवन है अनमोल"तथ्य का,सबने किया खुलासा।।


            बाणभट्ट की............।।


                  


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


विनय साग़र जायसवाल

हिंदी गाँधी के सपनों का अभियान है 


इसके विस्तार में सबका सम्मान है


 


सूर तुलसी ने सींचा इसे प्यार से


जायसी और रसखान की जान है


 


राम सीता हैं इसमें हैं राधा किशन 


मीरा के प्रेम का भी मधुर गान है 


 


चाहे कविता लिखो या कहानी लिखो


इसकी शैली में सब कुछ ही आसान है


 


हिंदी भाषी हैं अब तो हर प्राँत में


इसकी परदेस में भी बढ़ी शान है


 


सत्ताधीशों इसे राष्ट्र भाषा लिखो 


हिंदी भारत के पुत्रों का अभिमान है 


 


कोष हिंदी का बढ़ने लगा दिन ब दिन 


समझो साग़र ये हम सब को वरदान है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


 


ग्वाल-बाल अरु सभ ब्रजबासी।


पहिरि क भूषन-बसन उलासी।।


     निज कर लिए भेंट-उपहारा।


     आए सबजन नंद-दुवारा।।


भईं मगन गोपी सभ ब्रज कै।


सुनि के जनम पुत्र जसुमति कै।।


    सुरुचि बसन-भूषन ते धारी।


     अंजन लोचन डारि सवाँरी।।


कमल-मुखी-सुमुखी सभ नारी।


पंकज केसन कुमकुम धारी।।


     भेंट-समग्री लइ-लइ आई।


     ललन संग जहँ जसुमति माई।।


सुघर-गठित नितम्भ गोपिन्ह कै।


हिलत पयोधर उनहिं सभें कै।।


     धावत रहँ जब मोहहिं लोंगा।


      महि पै अस बिरलै संजोगा।।


झिलमिलाय मनि- कुंडल काना।


कंचन-हार-हुमेलहिं नाना ।।


     बसन पहिरि बहु रंग-बिरंगी।


     पुष्प-गुच्छ चोटिन्ह महँ ढंगी।।


कंगन पहिनि जड़ाऊ दमकैं।


कानन्ह कुंडल झलकैं-चमकैं।।


     देहिं असिष बालक नवजाता।


     कहि-कहि रच्छा करहु बिधाता।।


करहु प्रभू चिरजीवी यहिं का।


रहहि सुखी-स्वस्थ ई लइका।।


दोहा-मगन होइ सभ गोपिहीं,गावैं मंगल-गान।


        हरदी-तेलइ छिड़िकि के,चाहहिं तहँ कल्यान।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                             9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8


 


कहत-सुनत बिराग-गुन-ग्याना।


बीते कछु दिन ताहि ठिकाना।।


     रावन-भगिनी नाम सुपुनखा।


     बिकल मना भइ आ तिन्ह निरखा।।


आइ क धाइ तुरत करि माया।


रुचिर रूप धरि सुंदर काया।।


     निकट जाइ प्रभु रामहिं पाहीं।


    कही राम हम तुमहीं चाहीं।।


होंहि बिकल चित जग सभ नारी।


सुंदर पुरुष निहारि-निहारी ।।


     जस रबि-तापहिं पिघलै रबि-मनि।


     सुघर देखि नर हँकरै त्रिय-मन ।।


कहहि राम तें रावन-बहिनी।


तुम्ह सम पुरुष न अब तक पवनी।।


     तोर-मोर अस जोड़ बिधाता।


     जोड़े भल संजोगहिं नाता ।।


तब प्रभु राम चितइ सिय ओरा।


कहहिं कुवाँर भ्रात ऊ मोरा।।


    सुनत बचन प्रभु रावन-बहिनी।


     लहरत लखन निकट गइ अहिनी।।


सुमुखी,सुनहु मोर इक बाता।


मों सँग तोर बियाह न भाता।।


     लखन कहे कोमल मृदु बानी।


     सुंदरि सुनु,इक बात बतानी।।


हम त अहहिं दास प्रभु स्वामी।


जस बिहीन मैं, प्रभु बड़ नामी।।


     मम-तव जोड़ी जग नहिं भावै।


     स्वामी रहत दास कस पावै।।


सुख सेवक चाहहि निज हेतू।


ब्यसनी चाह कुबेर-निकेतू।।


     चाहे भिच्छु मान-सम्माना।


     लोभी चाहे जस जग पाना।।


धर्मइ-अर्थ-मोच्छ अरु कामा।


पुरुष गुमानी कै सतधामा।।


     सुभ गति नित चाहे ब्यभिचारी।


      चाहे सिकता तेल निकारी।।


सुनि मुख लखन गूढ़ अस बचना।


कीन्ह सुपुनखा प्रभु पहँ गमना।।


    पुनि प्रभु ताहि लखन पहँ पठऊ।


     मरम बचन तब लछिमन कहऊ।।


होइ निर्लज्ज तोरि जे तृनुहीं।


तुम्ह सम नारि जगत ते बियहीं।।


     तब भइ कुपित तुरत सूपुनखा।


     धरि निज रूप डेरवनहिं निरखा।।


लागहि कोउ खिसियान बिलारी।


खुरुचे खंभा बिनू बिचारी।।


    भइ आतुर सीतहिं लखि रामा


     सैनन कह लछिमन कुरु कामा।।


दोहा-समुझि सनेसहिं लखन तहँ,काटे नाकहिं-कान।


         नाकइ-कान बिहीन तब,भागी करि बिष-पान।।


         नाक-कान तिसु काटि के,राम-लखन अस कीन्ह।


         मौन निमंत्रन रावनहिं,समर करन कै दीन्ह ।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


शुभा शुक्ला मिश्रा अधर

वर्णमाला प्रदीप छंद


********* **********


अखिल अवनि पर हिंदीभाषी,


साधक अमित अपार हैं।


आओ आज करा दूँ परिचय,


कैसे वर्ण-विचार हैं।।


 


*अ* -अद्भुत अनुपम है यह दुनिया,


*आ* -आते मन में भाव हैं।


*इ* -इसीलिए इस भव-सागर में,


*ई* -ईश्वर सुख की नाव हैं।।


 


*उ* -उड़ा दंभ में जो सब भूला,


*ऊ* -ऊपर सबसे जानता।


*ऋ* -ऋद्धि-सिद्धि सुख से वंचित पर,


*ए* -एक नहीं वह मानता।।


 


*ऐ* -ऐसा व्याकुल मन लेकर वो,


*ओ* -ओझल है प्रभु बोलता।


*औ* -और कहे मैं जग का स्वामी,


*अं* -अंकुर मुझसे डोलता।।


 


*अः* -अः हतभागी कब समझेगा,


*क* -कण-कण में भगवान हैं।


*ख* -खनक रहीं जो खुशियाँ जग में,


*ग* -गति यति सँग लयमान हैं।।


 


*घ* -घटता-बढ़ता सूर्य चन्द्र भी,


*च* -चहके उज्ज्वल कांति से।


         -चलता है संसार सर्वदा,


*छ* -छमछम करता शांति से।।


 


*ज* -जड़ता जब तक मन के अंदर,


*झ* -झरना बहे न प्रीति का।


*ट* -टकरायें सुविचार परस्पर,


*ठ* -ठहरे सागर नीति का।।


 


*ड* -डरें किसी से कभी नहीं हम,


*ढ* -ढलें प्रेम-विश्वास में।


*त* -तनिक समझ लें हिय की भाषा,


*थ* -थकें न,आयें पास में।।


 


*द* -दया-त्याग जैसे गुण पनपें,


*ध* -धन-धीरज अनमोल हो।


*न* -नतमस्तक हो सच को मानें,


*प* -परम सत्य हर बोल हो।।


 


*फ* -फलीभूत हो तब अभिलाषा,


*ब* -बनें तभी सब काम भी।


*भ* -भय कैसा जब वरदहस्त हो,


*म* -महादेव का नाम भी।।


 


*य* -यही बताते धर्म सभी को,


*र* -रहना मिलकर साथ में।


*ल* -लड़ने से क्या मिल जायेगी?


*व* -वसुधा तुमको हाथ में।।


 


*श* -शहद सरस हो जाये जीवन,


*ष* -षड़यंत्रों से दूर हो।


*स* -समझो-सीखो सहज सरलता,


*ह* -हठ से मत भरपूर हो।।


 


*क्ष* -क्षमा करो देखो मत अवगुण,


*त्र* -त्रस्त समस्त विकार हों।


*ज्ञ* -ज्ञान-दीप हों दिव्य 'अधर' पर,


*श्र* -श्रद्धा सदृश विचार हों।।


 


👉 *ङं,ञ,ण,ड़,ढ़*


आगे आने से कतराते,


बैठे हैं मुख मोड़ के।


अधिक हठीले ङं ञ् ण ड़ ढ़ ये,


रहते पर मन जोड़ के।।


 


   शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️


ऋचा मिश्रा रोली

हिंदी में ही पली बढ़ी हूं हिंदी है आधार


माँ हिंदी से विनती मेरी हो सपना साकार


नित नित इनकी करू मैं सेवा इनके ही गुण गावू


हिंदी में ही जियू हमेशा हिंदी में मर जावू


सकल विश्व मे बसती हिंदी यही हमारी शान है


हिंदी मेरी मात्र की भाषा और हम सबकी जान है


हिंदी में ही संस्कार है हिंदी ही संसार है


भूले गर तुम माँ हिंदी को तो दुनिया बेकार है


सदाचार व सर्वश्रेष्ठता हिंदी ही सिखलाती है


नैतिकता भी रखना अंदर माँ हिंदी बतलाती है


आओ मिल कर नमन करे हम माँ हिंदी की जान को 


हमे बचाये रखना होगा माँ हिंदी की शान को 


 


ऋचा मिश्रा रोली


 श्रावस्ती बलरामपुर 


 उत्तर प्रदेश


एस के कपूर श्री हंस

हिन्दी में भरा रस माधुर्य


कवित्व और मल्हार है।


हिन्दी में भाव और संवेदना


अभिव्यक्ति भी अपार है।।


हिन्दी में ज्ञान और विज्ञान


दर्शन का अद्धभुत समावेश।


हिन्दी भारत का विश्व को


एक अनमोल उपहार है।।


*2।।।।।।।।।।*


बस एक हिन्दी दिवस नहीं


हर दिन हो हिन्दी का दिन।


विज्ञान की भाषा भी हिन्दी


ज्ञान तो है नहीं हिन्दी बिन।।


मातृ भाषा , राज भाषा हिन्दी


है उच्च सम्मान की अधिकारी।


तभी राष्ट्र करेगा सच्ची उन्नति


कार्यभाषा हिंदी हो हर पलछिन।।


*3।।।।।।।।*


मातृ भाषा का दमन नहीं


हमें करना होगा नमन।


पुरातन मूल्य संस्कारों की


ओर करना होगा गमन।।


बनेगी तभी भारत वाटिका


अनुपम अतुल्य अद्धभुत।


जब देश में हर ओर बिखरा   


होगा हिन्दी का चमन।।


*4।।।।।।।*


हिन्दी का सम्मान ही तो


देश का गौरव गान बनेगा।


मातृ भाषा के उच्च पद से


ही राष्ट्र का मान बढेगा।।


हिन्दी तभी बन पायेगी


भारत मस्तक की बिन्दी।


जब राष्ट्र भाषा का ये रंग


हर किसी मन पर चढ़ेगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


डॉ0 रामबली मिश्र

हिंदी को ही दिल में रखना।


हिंदी को सम्मानित करना।।


 


सारा काम करो हिंदी में।


हिंदी में ही लिखते रहना।।


 


लिखो कहानी या कविताएँ।


हिंदी में ही रचते रहना।।


 


हिंदी है साहित्य मनोरम।


इसमें ही नित रमते रहना।।


 


हिंदी भाषा सीख बोलना।


हिंदी को ही पढ़ते रहना।।


 


हिंदी संस्कृत की बेटी है।


पालन-पोषण करते रहना।।


 


बहुत सरल प्रिय सहज मधुर है।


जी हिंदी में अति खुश रहना।।


 


वैश्विक भाव प्रधान सरस यह ।


हिंदी रस को पीते रहना।।


 


हिंदी में मानवता रहती।


मानव बनकर जीते रहना।।


 


बहुत लचीली लोचदार यह।


हिंदी सीख प्रेम से रहना।।


 


राष्ट्रवादिनी हिंदी अनुपम।


राष्ट्रगान हिंदी में कहना।।


 


हिंदी से ही राष्ट्र भलाई।


हिंदी की ही सेवा करना।।


 


हिंदी से ही भारत माता।


भारत माँ की रक्षा करना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कबीर ऋषि सिद्धार्थी

मैं सिर्फ एक विचार हूँ


 


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


हाँ! मुझे नफ़रत है ऐसे लोगों से,


जो इंसान को इंसान से दूर करते हैं!


मुझे शिकायत है उन सत्ताधारियों से


जो भूल जाते हैं कि वो कौन हैं?


मैं नेता या सरकार नहीं हूँ!


और न ही कोई ओहदेदार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई मीडिया या पत्रकार नहीं हूँ!


न ही किसी के हाथों की कठपुतली का तार हूँ!


और न ही कोई अख़बार हूँ!


मैं एक वफ़ादार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं उनका आज विरोधी भी हूँ!


जो लोगों को जाति-धर्म का पाठ पढ़ाकर


समाज को तोड़ना जानते हैं!


सच में वो अपना स्वार्थसिद्धि चाहते हैं।


मैं न ही किसी राजा का दरबार हूँ!


और न ही कोई चाटूकार हूँ!


मैं इंसानी धर्म का प्रचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


 


―कबीर ऋषि सिद्धार्थी


सम्पर्क सूत्र- 9415911010, 9455911010


पता- पण्डितपुरम प्रतापनगर बांसी, सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश


पिन कोड- 272153


ईमेल- krs09415911010@gmail.com


नूतन लाल साहू

हिंदी दिवस


अश्विन माह, पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


याद कर लें,साहित्य जगत के


सूरज चांद सितारों को


एक दिन तुम भी मुस्कुराओगे


असफलता एक चुनौती है


इसे तुम स्वीकार कर लो


जब तक सफल न हो तुम


नींद और चैन को त्याग दो


संघर्ष के मैदान को छोड़कर


तुम कहीं मत भागो


क्योंकि कुछ किये,बिना


जय जयकार, नहीं होती


और कोशिश करने वालों की


कभी हार नहीं होती है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


लाख दलदल हो


अपना पैर, जमाये रखिये


अगर हाथ खाली हो तो


हाथ ऊपर उठाये रखिये


कौन कहता है कि,चलनी में पानी नहीं रुकता


सिर्फ और सिर्फ


बर्फ जमने तक,हौसला बनाये रखिये


सीख लो,छोटी सी चिड़िया से


तिनका तिनका उठाकर


मजबूत घोसला,बना लेती हैं


तुम तो,ज्ञान का भंडार हो


सफलता एक दिन,कदम चूमेगी


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


भारतवासियों की पहचान है,हिंदी


भारत माता की शान है,हिंदी


हिंदी से हिंदुस्तान बना है


सूरदास तुलसीदास केशवदास और


मीरा निराला,कबीरदास प्रेमचंद को


हिंदी ने ही,महान बना दिया है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

हिंदी में बिंदी का भैया,


                        रखना हरदम ध्यान। 


वरना हिंदी का होगा, 


                       सच मानो अपमान।


 


"कद" पर बिंदी डाल दिया तो,


                       हो जाएगा "कंद"।


फिर तो सारे लोग कहेंगे,


                    है बिल्कुल मतिमंद।


 


यही हाल है "रग" का भैया,


                       हो जाएगा "रंग"। 


अगर पड़ी बिंदी "जग" पर तो,


                      होनी ही है "जंग"।


 


ऐसे शब्द बहुत हैं भाई,


                       जिनके बदलें अर्थ।


गलत जगह बिंदी मत डालो,


                        होगा बहुत अनर्थ।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

जीवन में


 


अनचाह दर्द जब-जब साथी,


यहाँ समा जाता जीवन में।


घुटन बन रह जाती साथी,


फिर हर चाहत इस तन-मन में।।


सपने तो सपने है-साथी,


कब-सच होते जीवन में?


चल सके सत्य-पथ पर साथी,


चाहत रहती पल-पल मन में।।


बाँट सके यहाँ दर्द मन का,


कोई तो साथी हो जग में।


मिले ख़ुशी अपनों को पल-पल,


ऐसा संग मिले जीवन में।


         सुनील कुमार गुप्ता


डॉ बीके शर्मा 

वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो


**************************


 


हाथों की मिटती लकीर तो देखो 


वक्त के हाथों में तकदीर तो देखो 


 


भूलकर मंजर जब हम चलने लगे 


पैरों को जकड़ती जंजीर तो देखो


 


जख्म ताजा मेरे और भरे भी नहीं 


कि सीने में उतरता तीर तो देखो 


 


भुला दी हमने याद जिनकी जिगर से 


उस बेरहमी को फिर करीब तो देखो 


 


मौत कि हमने उनसे की थी गुजारिश 


ना मिली रहमत में कोई फकीर तो देखो 


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


9828863402


सुनील कुमार गुप्ता

धन्य मैं माँ तेरी कोख से जन्म लिया,


तेरी शिक्षा और संस्कारो से ही-


माँ तुमने ही यह मान दिलाया।


रूठो न मुझसे माँ अब तुम,


क्षमा करो मेरे अपराधों को-


माँ बस एक बार आ जाओ।


तुम बिन जीवन नहीं मेरा,


लौट कर आ जाओ माँ तुम-


माँ तुमसे कुछ कहना है।


रूठो न बताओ तुम मुझको,


माँ तुम हो कहाँ-


तुम बिन अब नही रहना है।


भूला नहीं हूँ बचपन की बाते,


प्यार भरी वो राते-


माँ तुम्हें याद आती है मेरी।


 


सुनील कुमार गुप्ता


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अर्चना शुक्ला कानपुर ,मुंबई   


दूरभाष : 9924522633


शिक्षा : परास्नातक(अर्थशास्त्र), परास्नातक (शिक्षाशास्त्र)


व्यवसाय : शिक्षक 


विद्यालय: संत मेरी (इटावा) दो वर्ष 


         संत थॉमस (कानपुर) सोलह वर्ष 


         एसजीवीपी इंटरनेशनल स्कूल(अहमदाबाद) पांच वर्ष 


         दूरदर्शन अवम रंगमंच: तीन वर्ष 


मैं एक शिक्षक, परामर्शदाता,प्रेरक वक्ता, कवयित्री लेखक, दूरदर्शन और रंगमंच कलाकार 


Name : Archana Shukla 


Home town : Kanpur ( UP )


Current place : BKC,Mumbai 


Ph no: 9924522633


Education : MA,M.ed


Profession : Educator


I am an educator, counsellor, motivational speaker, poetess, writer, actor and a Theatre artist.


 


 


        राम जन्मभूमि                


सुनो सुनो भाई सुनो सुनो, सुनो सुनो भाई सुनो सुनो 


आज का दिन है बड़ा महान,राम का घर है पावन धाम||


 


पांच अगस्त की शुभ घड़ी आई अयोध्या में गूंजे शहनाई 


ढोल, नगाड़े,शंख बजे जय-जय सीता राम उद्घोष करे || 


 


 


अयोध्या में छाई बहार ,घर- घर सजे हैं......... बन्दंबार


दीपों की लड़ियों को सजाकर हर्षित मन हैं सब नर नार ||


 


सरयू नदी के भाग्य जगे जगमग जगमग दीप जले 


मने दीवाली आई बहार राम तेरी लीला अपरम्पार ||


 


भूमि पूजन का महूर्त आया,अयोध्या में मंगल छाया


संत समागम से आई बहार घर घर होवे जय जय कार||


 


पावन नदियों से कलश भराए,महासागर से जल मंगवाया  


तीर्थों की मिट्टी को लेकर, पहुंचे सेवक लिए... उदगार ||


 


 


धन्य धन्य हे राम लला अद्भुद ये दरबार सजा 


धूप दीप नैवैध्य सजाकर लड्डून का भोग लगा ||


 


हर्षित नाचें सब नर नार विश्व में छाई ख़ुशी अपार 


सब पर रखना कृपा महान राम लला की जय जयकार ||


 


अभिननदन अभिनभिनदन राम लला का अभिननदन


सवपन हुअ हे अब साकार , हर्षित नाचें सब नर नार ||  


 


 


 सुनो सुनो भाई सुनो सुनो, सुनो सुनो भाई सुनो सुनो 


आज का दिन है बड़ा महान,अयोध्या में छाई बहार ||


 


 


   


 


 


               “ बूँद”


              एक बूँद 


         समेटे है अनगिनत भाव   


        बूँद बूँद से ही भरती गागर 


      बूँद बूँद से ही ..........बनता सागर 


   तप्त मरुस्थल में एक बूँद पानी की चाहत 


प्यार की चाहत में एक बूँद...... प्यार का एहसास 


नवजात को एक बूँद महत्वपूर्ण है जिन्दगी के लिए 


चातक को इन्तजार है बारिश की अप्रितिम बूंदों का 


पलकें खामोश हैं समेटे भावों की बूंदों को आगोश में 


सीप को इन्तजार है उस ओस की....... एक बूँद का जो


       बदलने को बेताब है उसके अस्तित्व को 


सच ही है, हर एक बूँद समेटे है अपने में अलग रंग ,भाव 


        महत्व एवम् अपनी अलग पहचान ||


 


 


 


 


***** आँखों में ****


कितने रंग छुपा रखे हैं माँ 


तुम्हारी आँखों में |


गज़ब का भोलापन और चंचलता है


तुम्हारी आँखों में ||


सूरज जैसा तेज ,चाँद सी शीतलता


तुम्हारी आँखों में |


माँ की ममता का सागर भी छुपा 


तुम्हारी आँखों में ||


प्रियतमा का प्यार और मनुहार 


तुम्हारी आँखों में |


सागर जैसी गहराई और कई राज़ 


तुम्हारी आँखों में ||


मनमोहक ,मनमादक पर ठहराव 


तुम्हारी आँखों मैं|


प्यार से संहार तक कई रंग 


तुम्हारी आँखों में ||


 


 


 


 


 


 


*** शक्ति ****


क्यों मनवा बैचैन रे 


चिंता करिके काया जल गयी 


मिला न मन को चैन रे ||


जो ढूंढें तू बाहर अंदर 


छुपी वो तेरे खुद के अंदर 


खुद को तो पहचान रे ||


झूठी माया झूठे हमदम 


तोड़ के आ जा सारे बंधन 


अपनी शक्ति को पहचान रे ||


तीन खिड़कियाँ सात दरवाजे 


उसके अंदर शक्ति विराजे 


उसको तू पहचान रे ||


 


अर्थ: तीन खिड़कियाँ - तीनों नाड़ियां 


     सात दरवाजे - सातों चक्र 


     शक्ति - कुण्डलिनी


 


 


 


 


 


    **** नारी ****


नारी का आत्ममंथन लिखूँ या 


निःस्वार्थ प्रेम की कथा लिखूँ 


झूठ फरेब की व्यथा लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


बचपन का अहसास लिखूँ या 


नव यौवन का संसार लिखूँ 


परिवर्तन का इतिहास लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


समर्पण ,त्याग की मूर्ति लिखूँ या 


नारी का गौरव पूर्ण अतीत लिखूँ 


कलयुग में उसकी व्यथा लिखूँ 


क्या लिखूँ और क्या छोडूँ मैं ||


डॉ0 रामबली मिश्र

हिंदी का विकास


 


हिंदी में ही बात हो,हिंदी में दिन रात।


हिंदी में सूरज उगें ,हिंदी में हो प्रात।।


 


हिंदी से ही प्रेम कर,हिंदी पर कर गर्व।


हिंदी की प्रिय भीड़ में,हिंदी की बारात।।


 


हिंदी ही त्योहार हो,हिन्दी ही हो पर्व।


बन परंपरा यह करे,मानव की शुरुआत।।


 


हिंदी बनकर मेघ प्रिय,घूमे चारोंओर।


सकल भूमि पर नित करे,अमृत की बरसात।।


 


हिंदी में चिन्तन चले,हिंदी में ही लेख।


हिंदी में कविता खिले,रख हिंदी से नात।।


 


हिंदी मुंशी प्रेम की,जयशंकर की देन।


महादेवियों की यही,हिंदी है शिवरात।।


 


हिंदी को प्रोन्नीत कर,स्पर्श करे आकाश।


 जागो उठ धारण करो ,हिंदी का जेवरात।।


 


फैला दो इस विश्व में,अब हिंदी का जाल।


आये सबकी समझ में,हिंदी की औकात।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-7


 


लछिमन लखि रामहिं इक बारा।


बैठे प्रमुदित मुक्त बिचारा।।


     कहे बिनीत सुनहु जग-स्वामी।


     छमहु मोंहि जदि हो मनमानी।।


मोंहि बतावउ ग्यान-बिरागा।


मया-मोह,आसक्तिहिं-रागा।।


     ताहि समुझि मैं सेवा करऊँ।


     बनि तव चरन-दास मैं रहऊँ।।


थोरे मा प्रभु लखन तें कहहीं।


'तोर-मोर' बस माया अहहीं।।


     माया बसहि सभें जग-जीवहिं।


     इंद्री-सुख-रस मन जे पीवहिं।।


एक रूप जग जानै बिद्या।


दूजा जगत कहाय अबिद्या।।


    बिद्या प्रभु-प्रेरित जग रहही।


    ब्रह्म-ग्यान अतिसय सुख लहही।।


दुष्ट अबिद्या बहु जग-घातक।


पाइ ताहि जीव होय पातक।।


     ग्यानइ रहहि जगत बिनु माना।


    ब्रह्म-रूप सभ महँ पहिचाना।।


रिद्धि-सिद्धि-नवनिधि नहिं भावै।


बैरागी जग उहहि कहावै ।।


     निजइ स्वरूप जीव नहिं जानै।


     नहिं माया ईस्वर पहिचानै।।


धर्महिं बिरति मिलै संसारा।


जोगहिं ग्यान मिलै जग सारा।।


   सुनु मम भ्रात भगति जड़ सुख को।


   बिनु सत्संगहिं मिलै न कहु को ।।


मारग भगति बहुत अनुकूला।


मिलहिं प्रभू बरु जग प्रतिकूला।।


   उपजै नर महँ बिषय-बिरागा।


   प्रानी-प्रभु बिच तब अनुरागा।।


प्रभु प्रति प्रेम भगति नव रूपा।


लीला प्रभु कै रुचिर अनूपा।।


     लहहि जगत सभ संत-प्रेम तें।


     मन-क्रम-बचन-भजन-नेम तें।।


जे प्रभु-गुन गावै सुति-उठि नित।


अश्रु नयन भरि तन-मन पुलकित।।


      तासु हृदय प्रभु बसहिं निरंतर।


      डसै न तेहिं भव-नाग भयंकर।।


काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।


सरल-सुलभ सनेह प्रभु ताको।।


    मन-क्रम-बचन भजन जे करहीं।


    प्रभु-पद-पंकज-प्रेमहिं लहहीं।।


दोहा-गूढ़ ग्यान-गुन सुनि लखन,प्रभु निज मुखहिं बखान।


        नवा सीष छुइ प्रभु-चरन, भे रत जग-कल्यान ।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


कहहिं कथा सुकदेव मुनी जी।


सुनहिं परिच्छित मुदितय चित जी।।


     बाबा नंद उदार-मनस्वी।


     मनसा-वाचा लगहिं तपस्वी।।


पुत्र-जनम सुनि हृदय-हुलासा।


भए अनंदित भरे उलासा।।


     बस्त्राभूषन बाबा नंदहिं।


     धारन कीन्हा अति आनंदहिं।।


ब्रह्मन-पंडित-बेद क ग्यानी।


स्वस्तिक बचन कीन्ह निज बानी।।


     सुरहिं-पितर बिधिवत पुजवावा।


      जात-करम निज तनय करावा।।


दुइ लख गऊ-बसन-आभूषन।


कीन्हा नंद दान द्विज-ब्रह्मन।।


      कंचन बसन-रतन-आच्छादित।


      सात तिलहिं गिरि दानहिं समुचित।।


सुद्धीकरन-गरभ-संस्कारा।


देइ क कीन्हा उपक्रम सारा।।


      सुद्धि आतमा होवै तबहीं।


       होय आत्म-ग्यान मन जबहीं।।


मागध-सूत-बंदिजन-ब्रह्मन।


करहिं स्तुती हरषित चित-मन।।


     बजै दुंदुभी ब्रज चहुँ-ओरा।


      भेरी बाजै गायन-सोरा ।।


घर-आँगन औरउ चौबारा।


बाहर-भीतर औरु दुवारा।।


     साफ-सफाई, जल छिड़कावा।


      करि सभ जन निज गृह महँकावा।।


पल्लव-माला,बंदनवारा।


धुजा-पताका गृहहिं सवाँरा।।


     बच्छ-गऊ-बृषभहिं सभ सोभित।


     हल्दी-तेल-लेप मन मोहित ।।


मोर-पंख-गेरू अरु माला।


कनक-जँजीरहिं बसन निराला।।


दोहा-गऊ-बच्छ अरु बृषभ सभ,सजि-सजि रह रम्भाय।


        घुघुरू-घंटी गर बजे,उछरत-कूदत जाँय ।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


राजेंद्र रायपुरी

लक्ष्मी बाई फिर आई है, 


                  ले करके अपनी तलवार।


सबक सिखाने उनको जिनकी,


                 जीभ बनी कैंची की धार।


 


नहीं डरी वो नहीं डरेगी,


               गीदड़ भभकी मिले हजार।


है क्षमता उसमें सहने की,


                  चाहे लाख करो तुम वार। 


 


दिखा दिया है दमखम अपना,


                 पहुॅ॑च गई शेरों के द्वार।


आओ जिसमें दम है मारो,


               दिया सभी को है ललकार।


 


झाॅ॑क रहे हैं बॅ॑गले सारे।


               जिनने भरी थी कल हुॅ॑कार।


झेंप मिटाने लेकिन अपनी, 


                  करें घरौंदे पर वे वार।


 


भले ज़ुल्म ढा लो तुम लाखों,


                डालेगी ना वो हथियार।


फौलादी हैं सदा रहेंगे,


                उसके अपने सोच-विचार।


 


दुहराना इतिहास उसे है।


              सदी बीस में अबकी बार।


जैसे सत्तावन में उसने,


                 लहराई अपनी तलवार।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 निर्मला शर्मा

पूर्वजों को नमन


 


श्रद्धावनत होकर करें,


पितृ पक्ष में श्राद्ध।


कुल के जनक हमारे,


करो कृपा अगाध।


 


शीश झुका वन्दन करूँ,


नमन मैं बारम्बार।


पितृ देव आराधन करूँ,


दीजै आशीष अपार।


 


जीवन सुखमय हो मेरा,


आये न कोई बाधा ।


वंश दीप जलता रहे,


यश वृद्धि हो सदा।


 


कुलदीपक जिनके संसार में,


पूर्वजों का नाम बढ़ाते हैं।


सुख समृद्धि बरसे उस घर में,


वे आशीष सभी का पाते हैं।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...