मनीष मिश्रा हिंदी दिवस 

विचारक


 


हिन्दी दिवस पर विचारक मनीष मिश्र ने हिंदी पर प्रकाश डालते हुए कहा ,कि हिंदी जो कि भारत अधिकतम भू भाग में अपने को मजबूत कर चुकी है विदेशी लोग भी हिन्दी को अपनाने में उत्सुकता व्यक्त करते है ,क्योंकि यह एक ऐसी भाषा है जो आधे अक्षर में आधा मिलाकर पूर्ण कर देती है, हिंदी सहज सरल मृदुभाषी तो है ही साथ ही हिंदी शक्ति है रूप में ,ममत्व के रूप में, करुण के रूप, प्रेम के रूप बखूबी भाव संजोए हुए है, 1850 भारतेंदु युग से हिंदी खड़ी बोली का स्वर्णकाल प्रारम्भ हुआ,इसके पहले हिन्दी चूँकि संस्कृत से निकली है इसलिए यह क्लिष्ट थी, आज भारत ही नही अपितु देश के बाहर भी हिंदी बोलने वालो का अपना अलग ही व्यक्तित्व व स्थान है , सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ में देश के तत्कालीन विदेशमंत्री व बाद में देश के प्रधानमंत्री भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपाई जी ने हिंदी में अभिभाषण दिया, हिंदी के अक्षर आपकी मुख शैली को से पता चल जाते है कि आप किस अक्षर का उच्चारण कर रहे, होष्ठ ,दन्त्य,तालु, कंठ आदि से अलग अलग अक्षरों का उत्सर्जन होता है , हिन्दी सामान्य तरीके से समझी जा सकती है यू तो हिन्दी के क्षेत्रीय कई रूप है पर खड़ी बोली की बात ही अलग है , यदि भारत को ठीक से समझना है तो हिंदी को जानना ही होगा ,अनेको आंदोलनों संघर्षो के बाद,हिंदी ने सहज स्वकृति प्राप्त की और राजा भाषा के रूप में स्थापित हुई, पर देश एक बड़ी विडंबना है देश की सर्वोच्च परीक्षा upssc में हिंदी विद्यार्थियों को पर्याप्त महत्व नही मिलती ही , पिछले कुछ दशकों के परिणाम जो आये है उसमें हिंदी विद्यार्थी को वो परिणाम नही प्राप्त हुए अपेक्षाकृत अंग्रेजी में, उत्तर प्रदेश में हिंदी में सबसे अधिक अंक लाने वाले को सरकार की तरफ से 25000 से 35000 हजार तक का नगद पुरुष्कार दिया जाता है, फिर भी इतनी महत्वपूर्ण व्यवस्था को संचालित करने के लिए यूपी एस सी में हिन्दी विद्यार्थियों की उपेक्षा क्यो की जाती है ,सरकार को इसपर भी विचार करना चाहिए , तभी हम सही मायने में हिन्दी दिवस को मना पाएंगे,


सुमन शर्मा भाव नगर गुजरात             

हिन्दी अभिमान हमारा है।


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हिन्दी अभिमान हमारा है,


‘हिन्दी हैं हम’हिन्दुस्तान का नारा है।


गंगा और तिरंगा वाले देश की


 


भाषा हिन्दी,बनी शान हमारा है।


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


जन मन की यह मीठी बोली


दिल में इसने मिसरी घोली,


शब्दों में ब्रह्माण्ड समाया,


वर्ण वर्ण जुड़ सजी रंगोली।


इससे ही दिवाली होली,


एकता का यह नारा है, 


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


संस्कृत,प्राकृत,अपभ्रंश से निकल,


खड़ीबोली के सरल रूप में ढल, 


शिरो रेखाओं से जुड़कर,


जोड़ा सबको एकत्रित किया बल,


देश की अखंडता का बन प्रतीक,


इसने सबको ललकारा हैं।


अनेक भाषाओं को अपने में समा,


‘अनेकता में एकता’का बनी यह नारा है,


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


इसमें हमारी सभ्यता,संस्कृति,


समायी इसी में भक्ति और शक्ति,


हमारी गतिऔर प्रगति की भाषा,


साधु संतों की यह बानी।


भारतमाता के मस्तक की बिन्दी,


सहजता,संकल्पना की पहचान है हिन्दी 


भारतीयता का अब यही नारा है,


हिन्दी अभिमान हमारा है।


                                हिन्दी दिवस १४ सितंबर


अंजुमन आरज़ू

माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥


 


ये हिंदी गंगा यमुना, सी इक नदी है पावन ।


स्वर और व्यंजनों की, लहरें है जिसमें बावन ॥


संस्कृति के स्वच्छ जल में,


भीगो तनिक नहा लो,


नव पीढ़ी आओ आगे, निज शक्तियाँ सँभालो ॥


संस्कृत सी प्यारी माँ की, संतान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥1॥


 


हिंदी किरीट अपना, हिंदी है माथ बिंदी ।


हिंदी की लोरियाँ सुन, बचपन में पाई निंदी ॥


हिंदी बिछा के सोऊँ, हिंदी ही ओढ़ती हूँ ।


इस हिंदी के सहारे, मैं हिंद जोड़ती हूँ ॥


एका के वास्ते इक, अभियान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥2॥


 


केशव कबीर मीरा, रसलीन ने सँवारा ।


नव कवि हैं हम तो अब ये, दायित्व है हमारा ॥


हिंदी के शब्द मोती, लिपि सीपियों सी नागर ।


हम बूंद बूंद करके, भर देंगे हिंदी गागर ॥


गोते ज़रा लगा लो, रसखान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥3॥


 


हिंदी है मातृ भाषा, भाषा न मात्र करना ।


है जग में श्रेष्ठ हिंदी, हमको इसे है वरना ॥


शोभा विहीन वरना, ये देश होगा अपना ।


उत्थान औ उन्नति का, तब सत्य होगा सपना ॥


अपना के इसको देखो, उत्थान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥4॥


 


माँ भारती को उसका, सम्मान तो दिलाओ ।


भारत के नाम को अब, अनुवाद से बचाओ ॥


क्यों इंडिया कहें अब, भारत कहे ज़माना ।


सार्थक तभी तो होगा, हिंदी दिवस मनाना ॥


भारत के लाड़लों का, अभिमान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥5॥


 


माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥


 


 


    - अंजुमन 'आरज़ू' ©✍


अनीता मिश्रा सिद्धि

हिन्दी भाषा के लिये , करें सभी कुछ काम ।


बहुत रचे मिलकर सभी , कविताएँ अविराम ।


कविताएँ अविराम , सभी को पढ़े -पढ़ाए ।


माँ हमको दो ज्ञान , पंथ नव गढ़ते जाए। 


निज-भाषा का मान, हमारी संस्कृति अभिनन्दी।


भाषा मातृ महान, देश की प्यारी हिन्दी।


 


अनीता मिश्रा सिद्धि । 


पटना ।


अविनाश सिंह

हिंदी दिवस


दो हिंदी को सम्मान


है मातृभाषा।


 


पढ़ेगा बच्चा


अंग्रेजो के स्कूल में


हुआ विनाश।


 


है मातृभाषा


पर हस्ताक्षर है


अंग्रेजी भाषा।


 


प्यारी सी हिंदी


कोई न शॉर्टकट


लिखो या पढ़ो।


 


बने महान 


बोल कर अंग्रेजी


हिंदी है देशी।


 


मिला न दर्जा


राष्टभाषा का पद


कैसी है भाषा।


 


अंग्रेजों ने लाया


अंग्रेजी अपनाया


हिंदी भुलाया।


 


बच्चों की चाह


कोचिंग की डिमांड


अंग्रेजी भाषा।


 


बोले जो हिंदी


करे वो शर्मिंदगी


इतनी बुरी ?


 


हिंदी के गुरु


पाते न वो सम्मान


हो अपमान।


 


सरल भाषा


सहज होते रूप


न अपवाद।


 


प्रत्येक कार्य


हो अंग्रेजी भाषा में


कहाँ है हिंदी।


 


हिंदी की बिंदी


सुशोभित हो देश


गए अंग्रेज।


 


नही है पढ़ा


कोई सी आरती को


ये अंग्रेजी में।


 


है अपवाद


आधे से अधिक के


ये अंग्रेजी में।


 


बिन सीखे ही


सिख लेता बालक


हिंदी के बोल।


 


कभी ने रटे


हिंदी के व्याकरण


सिर्फ समझे।


 


अविनाश सिंह


8010017450


शिवांगी मिश्रा

हिंदी से ही तो हम तुम बनें हैं ।


हिंदी से ही तो ये सारा जहाँ है ।।


हिंदी ना होती जीवन में तो ।


हिंदी बिना पहचान कहाँ है ।।


हिंदी हमारी माता है और ।


हिंदी से ही अस्तित्व बना है ।।


हिंदी है हिन्द है तो हम सभी हैं ।


हिंदी बिना पूर्ण ज्ञान कहाँ है ।।


 


                  होती श्रृंगार में जैसे जरूरी ।


                  माथे पे बिंदी से होती है पूरी ।।


                  बिंदी बिना श्रृंगार अधूरा ।


                  सोलह श्रृंगार भी होता ना पूरा ।।


                  बिंदी से चेहरे की आभा दमकती ।


                मस्तक लगी बिंदी जब है चमकती ।।


                  हिंदी भी भाषा की बिंदी बनीं है ।


                  दुल्हन सरीखी ये हिंदी सजी है ।।


 


जैसे खुशी में जरूरी मिठाई ।


वैसे ही चाट में होती खटाई ।।


हिंदी का ज्ञान अगर ना हुआ तो ।


मानो हो जीवन अरण्य बिताई ।।


हिंदी मर्यादा का भान भी रखती ।


द्वेष को हरती है बनके अच्छाई ।।


हिंदी का मान करोगे यदि तुम ।


होगी सदा ही तुम्हारी बड़ाई ।।


 


शिवांगी मिश्रा


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भारत-गौरव हिंदी


करें सभी सम्मान जगत में,


हिंदी-भाषा रानी का।


बोधगम्यता और सरलता-


सहज प्रवाह-रवानी का।।


 


भारतेंदु ने सबसे पहले,


इसका है गुणगान किया।


हिंदी अपना गौरव कहकर,


इसका है सम्मान किया।


यही देश की प्राणवायु है-


उन्नति-स्रोत कहानी का।।


 


बनकर स्नेह सूत्र ही हिंदी,


रखे सभी दिल को जोड़े।


प्रेम-दीप की ज्योति जलाकर,


इर्ष्या-तम का रुख मोड़े।


ज्ञान-कोष अक्षुण्ण है हिंदी-


भाषा हिंदुस्तानी का।।


 


आन-बान यह शान देश की,


मर्यादा है भारत की।


यह विकास-सोपान प्रथम है,


वाणी ज्ञान-विशारद की।


हर जिह्वा पर चढ़कर बोले-


मंत्र-सूत्र इव ज्ञानी का।।


 


सीखें और सिखाएँ सबको,


हिंदी-भाषा-बोली को।


अभी विदेश- देश में जा कर,


अपने सब हमजोली को।


कर विकसित नव शब्द-कोष को-


जो सहाय विज्ञानी का।।


 


'क' से कहना कमल व कबूतर,


'ख' से कहना है खरगोश।


'ग' से बनते गणेश देवता,


'घ' से घड़ी समय-उद्घोष।


'अ'-'आ' से अमरूद व आम हों-


कोमल बोल सुहानी का।।


      बोधगम्यता और सरलता,


      सहज प्रवाह-रवानी का।।


      करें सभी सम्मान जगत में-


      हिंदी-भाषा रानी का।


                    © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


सुनील कुमार गुप्ता

हिन्दी का नित दिन करे प्रयोग,


हिन्दी का बढ़े-


पग-पग सम्मान।


मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,


कही पर भी साथी-


हो न इसका अपमान।


हर दिन हो हिन्दी दिवस,


क्यों-मनाये अलग से-


बना रहने दो इसका सम्मान।


एक दिन मना कर हिन्दी दिवस,


भूल न जाना इसको-


होगा अपना और हिन्दी का अपमान।


हिन्दी सम्पर्क भाषा बन,


हर हृदय में बसी-


तभी कहते हिन्दी-हिन्दी हिन्दुस्तान।


भाषाएं और भी अच्छी है,


सीखे बढाएं-


अपना ज्ञान बने महान।


मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,


कही पर भी साथी-


हो न इसका अपमान।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


निशा अतुल्य

हिन्दी मेरी प्यारी भाषा


जीवन का सम्मान है 


माँ शब्द निकले मुख से


जीवन दाता प्राण है ।


 


वर्ण और व्यंजन की 


अद्भुत देखो खान है 


सजी हुई अलंकारों से 


मुहावरे जिसकी जान हैं ।


 


दोहे हो या हो चौपाई


मधुर मधुर गुंजार है 


नव रस में डूबी ये भाषा


भारत की ये शान है ।


 


आन बान ये गौरव सबका


चाहे कोई क्षेत्र कोई प्रान्त है 


हिन्दी है भारत की बिंदी


मातृभाषा अब राष्ट्रभाषा अभियान है।


 


हिन्दी दिवस में ना बाँधो इसको


मातृभाषा ये बोल चाल स्वाभिमान है।


मीठी मधुर स्वरा भाषा ये


जन जन का कल्याण है ।


 


चलो चलें मिल कर हम तुम


प्रचलित करें हर क्षेत्र हर प्रांत है ।


नही दोयम है ये भाषा 


जागृत करना बच्चों में ये भाव हैं ।


 


निशा अतुल्य


आचार्य गोपाल जी

हिंदी हमारी आन है 


 


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


हिंदी से हिंदुस्तान है ,


ये भाषा बड़ी महान है ,


यही बढ़ाती मान है।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


संस्कृत में है संस्कृति हमारी,


हिंदी संस्कृत की संतान है ।


यही हमारी है एक धरोहर,


ये करती सब का सम्मान है ।


अरबी फारसी अंग्रेजी सहित,


यह सबको देती मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


प्रेम सौहार्द की भाषा हिंदी,


प्रेम की मजबूत धागे समान है ।


हिंदू की गौरव गाथा है,


सनातन की पहचान है ।


सूर तुलसी कबीर रहीम ,


कहीं जायसी तो रसखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


हिंदी भारत की बिंदी है,


सुलभ सुगम रस खान है ।


‌गर्व हमें है निज भाषा पर,


यही हमारा स्वाभिमान है ।


जीवन की है यही परिभाषा,


यह कालजई महान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


बिहारी,भूषण,कवि चंद है इसमें,


दिनकर,निराला,पंत,भारतेंदु महान है ।


बड़ी निराली देवनागरी लिपि,


विश्व में इसकी अलग पहचान है ।


हर भारतवासी के दिल में ,


हिंदी के लिए सम्मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


पर आज यही बनी है दासी ,


हम सब से ही यह परेशान है ।


अंग्रेजी है राज कर रही ,


यह बनी हुई गुमनाम है ।


दिवस पर करते गुणगान सब ,


दिल से करते अंग्रेजी का बखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


 


नेताओं की है बात निराली,


अंग्रेजी की करते रखवाली ।


हिंदी का करते अपमान है,


हर वर्ष बना के नए नियम वो,


जिसमे वोट कमीशन नाम है,


यही चलन आज आम है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


आचार्य गोपाल जी


           उर्फ


 आजाद अकेला बरबीघा वाले


सुनीता असीम

ग़म नहीं मुझको सुनाना दिल का।


सुन लिया तो है रुलाना दिल का।


****


खूब आंखों को भिगोते वो हैं।


भा गया जिनको तराना दिल का।


****


शब सुबह चैन नहीं है उनको‌।


गा रहे जो हैं फ़साना दिल का।


****


जिस्म दो एक अगर हो जाएं।


है वही अच्छा लगाना दिल का।


****


चार आँखें जो हुईं आँखों से।


दिल बना फिर तो निशाना दिल का।


****


सुनीता असीम


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

नव हिन्दी नव सर्जना


 


सुन्दर सुखद प्रभात है , राम राम सुखधाम। 


हिन्दीमय सारे जहां , भारत है अभिराम।।१


 


प्रमुदित है संस्कृत सुता , पुण्य दिवस पर आज।


हिन्दी हिन्दूस्तान का , प्रीति भक्ति आगाज।।२।।


  


नव हिन्दी नव सर्जना , कालजयी साहित्य।


अलंकार नवरस ध्वनि , रीति गुणी लालित्य।।३।।


  


रचना हो नित चारुतम , मर्यादित अनुकूल। 


हिन्दी नित प्रेरक बने , नव समाजशुभ फूल।।४।।


  


इन्द्रधनुष सतरंग सम , विविध विधा हो काव्य। 


स्वस्ति लोक निर्माण मन , नवसर्जन मन भाव्य।।५।।


 


 हिन्दी भारत अस्मिता , एक राष्ट्र नित सूत्र। 


 बोले लिखें शान से , हिन्दी हिन्द सपुत्र।।६।।


 


हिन्दी है गौरव वतन , सहज सरल मृदुभाष। 


 वैज्ञानिक मानक सरस, नव भारत अभिलाष।।७।।


 


 सारस्वत लेखन सदा , हिन्दी मन सम्मान।


 निज भाषा हिन्दी लहै , देश लोक उत्थान।।८।।


 


प्रगति राष्ट्र जग वे बने , निज भाषा अभिमान।


 विरत राष्ट्र भाषा जगत , हो वजूद अवसान।।९।।


 


राष्ट्र शक्ति हिन्दी मधुर , कण्ठहार जनतंत्र।


रोज़गार शिक्षा सुलभ , समझो जीवन मंत्र।।१०।।


 


हिन्दी कुमकुम भारती , लाल भाल बिंदास। 


तजो आंग्ल उर्दू प्रणय , वरना जग उपहास।।११।। 


 


सविता हिन्दी अरुणिमा , लाओ पुनः विहान।


खिल निकुंज सुरभित कली,हिन्दी हिन्द महान।१२।।


 


बने लोक भाषा जगत , हिन्दी भाष विलास।


अनुपम रचना सर्जना , गौरव हो इतिहास।।१३।।


 


शक्ति भक्ति रस पूर्ण नित , हिन्दी हो नवनीत।


तरुणाई नव चेतना , दिग्दर्शक नवप्रीत।।१४।।


 


आज पुनः संकल्प लें , मन हिन्दी स्वीकार।


सीखें सब भाषा विविध , पर हिन्दी सत्कार।।१५।। 


 


कवि निकुंज कवि कामिनी,लिख हिन्दी अविराम।


हिन्दी मय माँ भारती , भारत जग शुभ नाम।।१६।।


 


देवनागिरी लिपिका , वैज्ञानिक अभिराम।


पठन श्रवण लेखन समा , हिन्दी हो सत्काम।।१७।। 


 


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


अमित अग्रवाल मीत

मैं हिन्दी हूँ, हिन्द की भाषा, मुझ पे निशाने मत साधो !


बरसों बाद स्वतंत्र हुयी हूँ, मुझे बेड़ियां मत बांधो !!


 


आदिकाल से लुटी जा रही, पल पल मेरी आन ही क्यूँ ?


धूमिल हो रही हर दूजे दिन, मेरी ये पहचान ही क्यूँ ??


 


बचपन में आँचल में अपने, पाला पोसा था तुमको !


अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था, मुझपे भरोसा था तुमको !!


 


आज मगर अंग्रेजी के बिन, मुश्किल लगता है जीना !


राष्ट्रभाषा का नाम दिया था, ओहदा मेरा क्यूँ छीना ??


 


मुझे शिकायत निज पुत्रों से, गैरों से मलाल नहीं !


क्यूँ मेरे अस्तित्व की चिंता, करते मेरे लाल नहीं ??


 


मैं लगती बूढ़ी माँ जैसी, आँखों को न भाती है !


अंग्रेजी बन चली प्रेयसी, हर पल तुम्हें लुभाती है !!


 


मेरी हालत उस अबला सी, जिसकी साड़ी फटी हुयी !


अंग्रेजी उर्दू अरबी के, पैबंदों से सजी हुयी !!


 


आज मुझे ही अपनाने में, शर्म तुम्हें क्यूँ आती है ?


क्यूँ अंग्रेजी सेहरा बनकर, सिर पर चढ़ती जाती है ??


 


सुनो आज तुम सबको मैं, इक सच्चाई बतलाती हूँ !


दुनिया की सब भाषाओं की, मैं ही जीवनदाती हूँ !!


 


इस धरती पर नयी सुबह का, मेरे बिन आगाज नहीं !


मैं हिन्दी स्वच्छंद सुधा हूँ, एक दिन की मोहताज नहीं !!


 


अमित अग्रवाल 'मीत'


संजय जैन

हिंदी ने बदल दी,


प्यार की परिभाषा।


सब कहने लगे


मुझे प्यार हो गया।


कहना भूल गए,


आई लव यू।


अब कहते है


मुझसे प्यार करोगी।


कितना कुछ बदल दिया,


हिंदी की शब्दावली ने।


और कितना बदलोगें,


अपने आप को तुम।


हिंदी से सोहरत मिली,


मिला हिंदी से ज्ञान।


तभी बन पाया,


एक लेखक महान।


अब कैसे छोड़ दू,


इस प्यारी भाषा को।


ह्रदय स्पर्श कर लेती,


जब कहते है आप शब्द।


हर शब्द अगल अलग,


अर्थ निकलता है।


इसलिए साहित्यकारों को,


हिंदी भाषा बहुत भाती है।


हर तरह के गीत छंद,


और लेख लिखे जाते है।


जो लोगो के दिल को छूकर,


हृदय में बस जाते है।


और हिंदी गीतों को,


मन ही मन गुन गुनते है।


और हिंदी को अपनी,


मातृभाषा कहते है।


इसलिए हिंदी को


राष्ट्रभाषा भी कहते है।।


 


संजय जैन (मुंबई )


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

लेखनी के यशस्वी पुजारी


कालिदास की उपमा उत्तम,बाणभट्ट की भाषा,


तुलसी-सूर-कबीर ने गढ़ दी,भक्ति-भाव-परिभाषा।


मीर व ग़ालिब की गज़लों सँग,मीरा के पद सारे-


"प्रेम सार है जीवन का",कह,ऐसी दिए दिलासा।।


                      बाणभट्ट की.........।।


सूत्र व्याकरण के सब साधे,अपने ऋषिवर पाणिनि,


वाल्मीकि,कवि माघ सकल गुण, पद-लालित्य में दण्डिनि।


कण्व-कणाद-व्यास ऋषि साधक,दे संदेश अनूठा-


ज्ञान-प्रकाश-पुंज कर विगसित,हर ली सकल निराशा।।


                   बाणभट्ट की.............।।


गुरु बशिष्ठ,ऋषि गौतम-कौशिक,मानव-मूल्य सँवारे,


औषधि-ज्ञानी श्रेष्ठ पतंजलि,रोग-ग्रसित जन तारे।


ऋषि द्वैपायन-पैल-पराशर,कश्यप-धौम्य व वाम-


सबने मिलकर धर्म-कर्म से,जीवन-मूल्य तराशा।।


                बाणभट्ट की.............।।


श्रीराम-कृष्ण,महावीर-बुद्ध थे,पुरुष अलौकिक भारी,


महि-अघ-भार दूर करने को,आए जग तन धारी।


करके दलन सभी दानव का,ये महामानव मित्रों-


कर गए ज्योतिर्मय यह जीवन,जला के दीपक आशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


किए विवेकानंद विखंडित,सकल खेल-पाखंड,


जा विदेश में कर दिए क़ायम, भारत-मान अखंड।


श्रीअरविंदो ने भी करके,दर्शन का उद्घोष-


भ्रमित ज्ञान-पोषित-मन-जन की,दूर भगाया हताशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


भारतेंदु हरिचंद्र हैं,हिंदी-कवि-कुल के गौरव,


उपन्यास-सम्राट,प्रेम ने दिया,कहानी को इक रव।


आचार्य शुक्ल,आचार्य हजारी,भाषा-मान बढ़ाए-


पंत-प्रसाद-निराला भी हैं,हिंदी-बाग-सुवासा।।


               बाणभट्ट की.............।।


यात्रा के साहित्य-पितामह,बहुभाषाविद राहुल,


बौद्ध-धर्म के अध्येता वे,पंडित महा थे काबिल।


सांकृत्यायन राहुल जी भी,ज्ञान-ध्वज फहराए-


ज्ञान-ज्योति-नव दीप जलाकर,दीप्त किए जिज्ञासा।।


            बाणभट्ट की............ ।।


गुप्त मैथिली-दिनकर-देवी,महावीर जी ज्ञानी,


सदानंद अज्ञेय प्रणेता-मुक्त छंद-विज्ञानी।


नीरज-बच्चन गीत-विधाता,सब जन को हैं प्यारे-


प्रखर लेखनी श्री मयंक की,अद्भुत वाग-विलासा।।


           बाणभट्ट की...............।।


नग़मा निग़ार चलचित्र-जगत के,सबने नाम किया है,


राही-हसरत-कैफ़ी-मजरुह ने,रौशन पटल किया है।


बख़्शी-अख़्तर-कवि प्रसून-अंजान सहित इंदीवर-


साहिर-शकील-गुलज़ार सभी ने,नूतन गीत तलाशा।।


         बाणभट्ट की................।।


धन्य धरा यह भारत है,जो जन्म दिया इन लोंगो को,


अध्यात्म-ध्यान,कर्तव्य-ज्ञान का,धर्म सिखाया लोंगो को।


ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी,सबने मान बढ़ाया माटी का-


"जीवन है अनमोल"तथ्य का,सबने किया खुलासा।।


            बाणभट्ट की............।।


                  


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


विनय साग़र जायसवाल

हिंदी गाँधी के सपनों का अभियान है 


इसके विस्तार में सबका सम्मान है


 


सूर तुलसी ने सींचा इसे प्यार से


जायसी और रसखान की जान है


 


राम सीता हैं इसमें हैं राधा किशन 


मीरा के प्रेम का भी मधुर गान है 


 


चाहे कविता लिखो या कहानी लिखो


इसकी शैली में सब कुछ ही आसान है


 


हिंदी भाषी हैं अब तो हर प्राँत में


इसकी परदेस में भी बढ़ी शान है


 


सत्ताधीशों इसे राष्ट्र भाषा लिखो 


हिंदी भारत के पुत्रों का अभिमान है 


 


कोष हिंदी का बढ़ने लगा दिन ब दिन 


समझो साग़र ये हम सब को वरदान है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


 


ग्वाल-बाल अरु सभ ब्रजबासी।


पहिरि क भूषन-बसन उलासी।।


     निज कर लिए भेंट-उपहारा।


     आए सबजन नंद-दुवारा।।


भईं मगन गोपी सभ ब्रज कै।


सुनि के जनम पुत्र जसुमति कै।।


    सुरुचि बसन-भूषन ते धारी।


     अंजन लोचन डारि सवाँरी।।


कमल-मुखी-सुमुखी सभ नारी।


पंकज केसन कुमकुम धारी।।


     भेंट-समग्री लइ-लइ आई।


     ललन संग जहँ जसुमति माई।।


सुघर-गठित नितम्भ गोपिन्ह कै।


हिलत पयोधर उनहिं सभें कै।।


     धावत रहँ जब मोहहिं लोंगा।


      महि पै अस बिरलै संजोगा।।


झिलमिलाय मनि- कुंडल काना।


कंचन-हार-हुमेलहिं नाना ।।


     बसन पहिरि बहु रंग-बिरंगी।


     पुष्प-गुच्छ चोटिन्ह महँ ढंगी।।


कंगन पहिनि जड़ाऊ दमकैं।


कानन्ह कुंडल झलकैं-चमकैं।।


     देहिं असिष बालक नवजाता।


     कहि-कहि रच्छा करहु बिधाता।।


करहु प्रभू चिरजीवी यहिं का।


रहहि सुखी-स्वस्थ ई लइका।।


दोहा-मगन होइ सभ गोपिहीं,गावैं मंगल-गान।


        हरदी-तेलइ छिड़िकि के,चाहहिं तहँ कल्यान।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                             9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8


 


कहत-सुनत बिराग-गुन-ग्याना।


बीते कछु दिन ताहि ठिकाना।।


     रावन-भगिनी नाम सुपुनखा।


     बिकल मना भइ आ तिन्ह निरखा।।


आइ क धाइ तुरत करि माया।


रुचिर रूप धरि सुंदर काया।।


     निकट जाइ प्रभु रामहिं पाहीं।


    कही राम हम तुमहीं चाहीं।।


होंहि बिकल चित जग सभ नारी।


सुंदर पुरुष निहारि-निहारी ।।


     जस रबि-तापहिं पिघलै रबि-मनि।


     सुघर देखि नर हँकरै त्रिय-मन ।।


कहहि राम तें रावन-बहिनी।


तुम्ह सम पुरुष न अब तक पवनी।।


     तोर-मोर अस जोड़ बिधाता।


     जोड़े भल संजोगहिं नाता ।।


तब प्रभु राम चितइ सिय ओरा।


कहहिं कुवाँर भ्रात ऊ मोरा।।


    सुनत बचन प्रभु रावन-बहिनी।


     लहरत लखन निकट गइ अहिनी।।


सुमुखी,सुनहु मोर इक बाता।


मों सँग तोर बियाह न भाता।।


     लखन कहे कोमल मृदु बानी।


     सुंदरि सुनु,इक बात बतानी।।


हम त अहहिं दास प्रभु स्वामी।


जस बिहीन मैं, प्रभु बड़ नामी।।


     मम-तव जोड़ी जग नहिं भावै।


     स्वामी रहत दास कस पावै।।


सुख सेवक चाहहि निज हेतू।


ब्यसनी चाह कुबेर-निकेतू।।


     चाहे भिच्छु मान-सम्माना।


     लोभी चाहे जस जग पाना।।


धर्मइ-अर्थ-मोच्छ अरु कामा।


पुरुष गुमानी कै सतधामा।।


     सुभ गति नित चाहे ब्यभिचारी।


      चाहे सिकता तेल निकारी।।


सुनि मुख लखन गूढ़ अस बचना।


कीन्ह सुपुनखा प्रभु पहँ गमना।।


    पुनि प्रभु ताहि लखन पहँ पठऊ।


     मरम बचन तब लछिमन कहऊ।।


होइ निर्लज्ज तोरि जे तृनुहीं।


तुम्ह सम नारि जगत ते बियहीं।।


     तब भइ कुपित तुरत सूपुनखा।


     धरि निज रूप डेरवनहिं निरखा।।


लागहि कोउ खिसियान बिलारी।


खुरुचे खंभा बिनू बिचारी।।


    भइ आतुर सीतहिं लखि रामा


     सैनन कह लछिमन कुरु कामा।।


दोहा-समुझि सनेसहिं लखन तहँ,काटे नाकहिं-कान।


         नाकइ-कान बिहीन तब,भागी करि बिष-पान।।


         नाक-कान तिसु काटि के,राम-लखन अस कीन्ह।


         मौन निमंत्रन रावनहिं,समर करन कै दीन्ह ।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


शुभा शुक्ला मिश्रा अधर

वर्णमाला प्रदीप छंद


********* **********


अखिल अवनि पर हिंदीभाषी,


साधक अमित अपार हैं।


आओ आज करा दूँ परिचय,


कैसे वर्ण-विचार हैं।।


 


*अ* -अद्भुत अनुपम है यह दुनिया,


*आ* -आते मन में भाव हैं।


*इ* -इसीलिए इस भव-सागर में,


*ई* -ईश्वर सुख की नाव हैं।।


 


*उ* -उड़ा दंभ में जो सब भूला,


*ऊ* -ऊपर सबसे जानता।


*ऋ* -ऋद्धि-सिद्धि सुख से वंचित पर,


*ए* -एक नहीं वह मानता।।


 


*ऐ* -ऐसा व्याकुल मन लेकर वो,


*ओ* -ओझल है प्रभु बोलता।


*औ* -और कहे मैं जग का स्वामी,


*अं* -अंकुर मुझसे डोलता।।


 


*अः* -अः हतभागी कब समझेगा,


*क* -कण-कण में भगवान हैं।


*ख* -खनक रहीं जो खुशियाँ जग में,


*ग* -गति यति सँग लयमान हैं।।


 


*घ* -घटता-बढ़ता सूर्य चन्द्र भी,


*च* -चहके उज्ज्वल कांति से।


         -चलता है संसार सर्वदा,


*छ* -छमछम करता शांति से।।


 


*ज* -जड़ता जब तक मन के अंदर,


*झ* -झरना बहे न प्रीति का।


*ट* -टकरायें सुविचार परस्पर,


*ठ* -ठहरे सागर नीति का।।


 


*ड* -डरें किसी से कभी नहीं हम,


*ढ* -ढलें प्रेम-विश्वास में।


*त* -तनिक समझ लें हिय की भाषा,


*थ* -थकें न,आयें पास में।।


 


*द* -दया-त्याग जैसे गुण पनपें,


*ध* -धन-धीरज अनमोल हो।


*न* -नतमस्तक हो सच को मानें,


*प* -परम सत्य हर बोल हो।।


 


*फ* -फलीभूत हो तब अभिलाषा,


*ब* -बनें तभी सब काम भी।


*भ* -भय कैसा जब वरदहस्त हो,


*म* -महादेव का नाम भी।।


 


*य* -यही बताते धर्म सभी को,


*र* -रहना मिलकर साथ में।


*ल* -लड़ने से क्या मिल जायेगी?


*व* -वसुधा तुमको हाथ में।।


 


*श* -शहद सरस हो जाये जीवन,


*ष* -षड़यंत्रों से दूर हो।


*स* -समझो-सीखो सहज सरलता,


*ह* -हठ से मत भरपूर हो।।


 


*क्ष* -क्षमा करो देखो मत अवगुण,


*त्र* -त्रस्त समस्त विकार हों।


*ज्ञ* -ज्ञान-दीप हों दिव्य 'अधर' पर,


*श्र* -श्रद्धा सदृश विचार हों।।


 


👉 *ङं,ञ,ण,ड़,ढ़*


आगे आने से कतराते,


बैठे हैं मुख मोड़ के।


अधिक हठीले ङं ञ् ण ड़ ढ़ ये,


रहते पर मन जोड़ के।।


 


   शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️


ऋचा मिश्रा रोली

हिंदी में ही पली बढ़ी हूं हिंदी है आधार


माँ हिंदी से विनती मेरी हो सपना साकार


नित नित इनकी करू मैं सेवा इनके ही गुण गावू


हिंदी में ही जियू हमेशा हिंदी में मर जावू


सकल विश्व मे बसती हिंदी यही हमारी शान है


हिंदी मेरी मात्र की भाषा और हम सबकी जान है


हिंदी में ही संस्कार है हिंदी ही संसार है


भूले गर तुम माँ हिंदी को तो दुनिया बेकार है


सदाचार व सर्वश्रेष्ठता हिंदी ही सिखलाती है


नैतिकता भी रखना अंदर माँ हिंदी बतलाती है


आओ मिल कर नमन करे हम माँ हिंदी की जान को 


हमे बचाये रखना होगा माँ हिंदी की शान को 


 


ऋचा मिश्रा रोली


 श्रावस्ती बलरामपुर 


 उत्तर प्रदेश


एस के कपूर श्री हंस

हिन्दी में भरा रस माधुर्य


कवित्व और मल्हार है।


हिन्दी में भाव और संवेदना


अभिव्यक्ति भी अपार है।।


हिन्दी में ज्ञान और विज्ञान


दर्शन का अद्धभुत समावेश।


हिन्दी भारत का विश्व को


एक अनमोल उपहार है।।


*2।।।।।।।।।।*


बस एक हिन्दी दिवस नहीं


हर दिन हो हिन्दी का दिन।


विज्ञान की भाषा भी हिन्दी


ज्ञान तो है नहीं हिन्दी बिन।।


मातृ भाषा , राज भाषा हिन्दी


है उच्च सम्मान की अधिकारी।


तभी राष्ट्र करेगा सच्ची उन्नति


कार्यभाषा हिंदी हो हर पलछिन।।


*3।।।।।।।।*


मातृ भाषा का दमन नहीं


हमें करना होगा नमन।


पुरातन मूल्य संस्कारों की


ओर करना होगा गमन।।


बनेगी तभी भारत वाटिका


अनुपम अतुल्य अद्धभुत।


जब देश में हर ओर बिखरा   


होगा हिन्दी का चमन।।


*4।।।।।।।*


हिन्दी का सम्मान ही तो


देश का गौरव गान बनेगा।


मातृ भाषा के उच्च पद से


ही राष्ट्र का मान बढेगा।।


हिन्दी तभी बन पायेगी


भारत मस्तक की बिन्दी।


जब राष्ट्र भाषा का ये रंग


हर किसी मन पर चढ़ेगा।।


 


एस के कपूर श्री हंस


डॉ0 रामबली मिश्र

हिंदी को ही दिल में रखना।


हिंदी को सम्मानित करना।।


 


सारा काम करो हिंदी में।


हिंदी में ही लिखते रहना।।


 


लिखो कहानी या कविताएँ।


हिंदी में ही रचते रहना।।


 


हिंदी है साहित्य मनोरम।


इसमें ही नित रमते रहना।।


 


हिंदी भाषा सीख बोलना।


हिंदी को ही पढ़ते रहना।।


 


हिंदी संस्कृत की बेटी है।


पालन-पोषण करते रहना।।


 


बहुत सरल प्रिय सहज मधुर है।


जी हिंदी में अति खुश रहना।।


 


वैश्विक भाव प्रधान सरस यह ।


हिंदी रस को पीते रहना।।


 


हिंदी में मानवता रहती।


मानव बनकर जीते रहना।।


 


बहुत लचीली लोचदार यह।


हिंदी सीख प्रेम से रहना।।


 


राष्ट्रवादिनी हिंदी अनुपम।


राष्ट्रगान हिंदी में कहना।।


 


हिंदी से ही राष्ट्र भलाई।


हिंदी की ही सेवा करना।।


 


हिंदी से ही भारत माता।


भारत माँ की रक्षा करना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


9838453801


कबीर ऋषि सिद्धार्थी

मैं सिर्फ एक विचार हूँ


 


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


हाँ! मुझे नफ़रत है ऐसे लोगों से,


जो इंसान को इंसान से दूर करते हैं!


मुझे शिकायत है उन सत्ताधारियों से


जो भूल जाते हैं कि वो कौन हैं?


मैं नेता या सरकार नहीं हूँ!


और न ही कोई ओहदेदार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ।


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई मीडिया या पत्रकार नहीं हूँ!


न ही किसी के हाथों की कठपुतली का तार हूँ!


और न ही कोई अख़बार हूँ!


मैं एक वफ़ादार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं उनका आज विरोधी भी हूँ!


जो लोगों को जाति-धर्म का पाठ पढ़ाकर


समाज को तोड़ना जानते हैं!


सच में वो अपना स्वार्थसिद्धि चाहते हैं।


मैं न ही किसी राजा का दरबार हूँ!


और न ही कोई चाटूकार हूँ!


मैं इंसानी धर्म का प्रचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ।


जो देखता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ,


उसे अपनी कलम से उतार देता हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं कोई हिन्दी का जानकार नहीं हूँ!


न ही कोई लेखक और कवि


और न ही मैं, कोई साहित्यकार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


मैं सिर्फ एक विचार हूँ!


 


―कबीर ऋषि सिद्धार्थी


सम्पर्क सूत्र- 9415911010, 9455911010


पता- पण्डितपुरम प्रतापनगर बांसी, सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश


पिन कोड- 272153


ईमेल- krs09415911010@gmail.com


नूतन लाल साहू

हिंदी दिवस


अश्विन माह, पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


याद कर लें,साहित्य जगत के


सूरज चांद सितारों को


एक दिन तुम भी मुस्कुराओगे


असफलता एक चुनौती है


इसे तुम स्वीकार कर लो


जब तक सफल न हो तुम


नींद और चैन को त्याग दो


संघर्ष के मैदान को छोड़कर


तुम कहीं मत भागो


क्योंकि कुछ किये,बिना


जय जयकार, नहीं होती


और कोशिश करने वालों की


कभी हार नहीं होती है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


लाख दलदल हो


अपना पैर, जमाये रखिये


अगर हाथ खाली हो तो


हाथ ऊपर उठाये रखिये


कौन कहता है कि,चलनी में पानी नहीं रुकता


सिर्फ और सिर्फ


बर्फ जमने तक,हौसला बनाये रखिये


सीख लो,छोटी सी चिड़िया से


तिनका तिनका उठाकर


मजबूत घोसला,बना लेती हैं


तुम तो,ज्ञान का भंडार हो


सफलता एक दिन,कदम चूमेगी


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


भारतवासियों की पहचान है,हिंदी


भारत माता की शान है,हिंदी


हिंदी से हिंदुस्तान बना है


सूरदास तुलसीदास केशवदास और


मीरा निराला,कबीरदास प्रेमचंद को


हिंदी ने ही,महान बना दिया है


अश्विन माह,पितृ पक्ष


आज हिंदी दिवस है


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

हिंदी में बिंदी का भैया,


                        रखना हरदम ध्यान। 


वरना हिंदी का होगा, 


                       सच मानो अपमान।


 


"कद" पर बिंदी डाल दिया तो,


                       हो जाएगा "कंद"।


फिर तो सारे लोग कहेंगे,


                    है बिल्कुल मतिमंद।


 


यही हाल है "रग" का भैया,


                       हो जाएगा "रंग"। 


अगर पड़ी बिंदी "जग" पर तो,


                      होनी ही है "जंग"।


 


ऐसे शब्द बहुत हैं भाई,


                       जिनके बदलें अर्थ।


गलत जगह बिंदी मत डालो,


                        होगा बहुत अनर्थ।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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