डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8


 


तिसु श्रुति-नाक लहू अस बहही।


जनु गिरि रुधिर प्रपातइ श्रवही।।


    कहहि सुनहु तुम्ह हे मम भाई।


    बिलपत मग निज भ्रातहिं जाई।।


खर-दूषन तें ब्यथा बतावा।


धिक बल तोर जे काम न आवा।।


     लखि दुर्गति निज भगिनी कै तब।


     भए क्रुद्ध खर-दूषन सँग सब ।।


जोरि-जुहा-बुलाय निज सेना।


कह बिनास कुमार करि देना।।


   चलहिं भट्ट लइ आयुध नाना।


    आगे बहिन नाक बिनु काना।।


चलहिं भट्ट चढ़ि निज-निज बाहन।


झुंड-झुंड जनु बादर सावन ।।


     उछरत-कूदत धूरि अकासा।


     भरि ते चलहिं न होइ उदासा।।


गरजत-तरजत,भाँजत आयुध।


करहिं गुमानइ जीतब हम जुध।।


     बहु-बहु मुहँ अरु बहु-बहु बाता।


      कह मारब कोउ दुइनिउ भ्राता।।


लेइ चुरा हम तिरिया तिन्हकी।


अस कोउ कहहि देइ क धमकी।।


     आवत मग लखि असुरन्ह धावत।


      कहहिं राम लछिमन समुझावत।।


सियहिं कंदरा कहुँ लइ जाऊ।


असुर-लराई सिय नहिं भाऊ।।


     लछिमन लइ तब सीता माता।


     चले धारि आयसु निज भ्राता।।


बिहँसि राम कोदंड चढ़ाए।


देखि सत्रु-दल बिनु घबराए।।


दोहा-लागहिं राम चढ़ाइ धनु,बान्हि जटा सिर तंग।


         बाजत दुइ अहि पन्न-गिरि,कोटिक तड़ितहिं संग।।


        निज भुज धारि क चापु सिर,कटि तरकस रघुराज।


        चितवत मग जनु सिंह कोउ,अवत जूथ गजराज।।


       धरहु-धरहु कहि सत्रु-दल,बेगहिं पहुँचा धाइ।


        लगहिं राम जनु बाल रबि,घिरि मदेह बरिआइ।।


                                डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                                  9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


एकमात्र स्वामी जग कृष्ना।


बैभव तासु बिपुल मधु रसना।।


     किसुन-जनम-उत्सव बड़ रोचक।


    दूध-दही लइ गोपिहिं मोहक।


इक-दूजहिं मुख लेपहिं सारी।


छिरकहिं मक्खन-घृत अरु बारी।।


   भूषन-बसन-गऊ बहु दीन्हा।


    नर्तक-मागध-सूतहिं चीन्हा।।


बंदी-गुनी सभें जन पाए।


बाबा नंद दीन्ह मन भाए।।


    भवहिं प्रसन्न बिष्नु भगवाना।


    होतै कर्म पुन्य अरु दाना ।।


अस बिचार करि बाबा नंदा।


दान-पुन्य बहु करहिं अनंदा।।


    करिहैं मंगल बिष्नु-बिधाता।


     अबहिं इ लइका जे नवजाता।।


भूषन-बसन धारि रोहिनी।


सूरत-सीरति जासु मोहिनी।


     स्वागत मगन सबहिं नारिन्ह कै।


     करैं रोहिनी हुलसि-हुलसि कै।।


भवा ब्रजहिं प्रभु-तेज-निवासा।


रिधि-सिधि औरु सकल गुन-बासा।।


दोहा-ब्रज मा मंगल-गान सभ,करहीं भरे उलास।


        पसु-पंछी अपि मनुज सँग,सभ हिय रहा उछाह।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


नूतन लाल साहू

सुग्घर दिन गवागे


आशा मा बइठे, जोहत हावव


अबक तबक आवत हो ही


एक नज़र देख लेतेव


सुग्घर दिन कइसन होथय


आशा मा बइठे, जोहत हावव


जब लेे मेहा जनम धरेव


मेहा कांटा सन पिरीत बदे हो


बरसा बन के आजा, तैहर


मै तो आंखी ल घोरत बइठे हावव


आशा मा बइठे, जोहत हावव


मोर मंदिर हा,तोर बिना


सुन्ना सुन्ना लागत हावय


सुरता तोला कब आ ही


सुग्घर दिन ला मेहा, जोहत हावव


आशा मा बइठे, जोहत हावव


टी बी,कैंसर, स्वाइनफ्लू, कोरोना


न जाने अउ का का बीमारी ह आ ही


बंधाय गेरवा मा बोकरा कस


चारो खुंट,मेहा घुमत हावव


आशा मा बइठे, जोहत हावव


अतेक निठुर, काबर होगेस


तोर संग भेट करेबर


चंदा सुरुज ला,बदना बदे हव


सुग्घर दिन आवत हो ही,दिया धरके बइठे हावव


आशा मा बइठे, जोहत हावव


बाढे बेटी, बाढ़े बेटा


बाचे खेती ह, घलो बेचागे


हाय हमागे, राउर छागे


थोरको नइ थिरावत हो


आशा मा बइठे, जोहत हावव


मंदिर गेव,मस्जिद अउ गुरुद्वारा गेव


आंखी के आंसू, घला सुखागे


लिख लिख पाती,भेजे हावव


सुग्घर दिन कहा गवागे


आशा मा बइठे, जोहत हावव


नूतन लाल साहू


सुनील कुमार गुप्ता

देख रहे वो सपना


आभास नहीं संबंधों का,


कैसे-कह दे उनको अपना?


तलाश अपनत्व की जीवन में,


यहाँ लगता रहा एक सपना।।


अपनत्व संग अपनत्व का यहाँ,


पल-पल देखे साथी सपना।


स्वार्थ की धरती पर पल-पल,


चलता रहा साथी अपना।।


अपनत्वहीन जीवन सारा,


फिर भी कहते रहे अपना,


सच हो न हो साथी जग में,


यहाँ देख रहे वो सपना।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

दिया प्रकृति ने सब कुछ तुमको।


                        उसको ज़रा सहेजो। 


आभारी हम तेरे दाता,


                         ये संदेशा भेजो।


 


जीने को दी हवा सहज ही,


                       पीने को दी पानी।


इन्हें प्रदूषित करते हो तुम,


                     कर हर दिन मनमानी।


 


खाने को भी कंद-मूल फल,


                        बिन माॅ॑गे ही देती।


इसका भैया मोल न कुछ भी,


                       कभी प्रकृति है लेती।


 


लेकिन यही अपेक्षा उसकी,


                        वृक्ष नहीं तुम काटो।


ज़हरीले रासायन से तुम,


                        धरती को मत पाटो।


 


दिया प्रकृति ने जो भी तुमको,


                          यदि न कद्र करोगे।


मानो कहना बिना मौत ही,


                         एक न सभी मरोगे।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हिंदी माथे की बिंदिया 


हिंदी हिंदुस्तान है।


इसे दमकने और चमकने दो।।


क्यों कहते मेरे प्यारे देश को


इंडिया ।


हिंदी देश की शान है हिंदी


हिंदुस्तान है ,हिंदी माथे की बिंदिया इसे दमकने 


और चमकने दो।।


हिंदी भारत की प्राण है


हिंदी एकता की जान है 


हिंदी हिंदुस्तान है 


हिंदी हिन्द की शान है


हिंदी माथे की बिंदिया इसे


चमकने और निखरने दो।।


हिंदी सुबह और शाम


दिन और रात सूरज की गर्मी


चाँद की शीतल


छाया की साया बनने दो


हिंदी हिंदुस्तान है ,हिंदी माथे की


बिंदियाँ इसे चमकने


और निखरने दो।।


गुड बाय और टाटा छोड़ो


हिंदी नमस्कार प्रणाम है


हिंदी बैभव विकास मर्यादा


का मान है।


हिंदी हिंदुस्तान है 


हिंदी माथे की बिंदियां


इसे दमकने और चमकने दो।।


हिंदी आत्म भाव है


हिंदी संस्कृत संस्कार है


हिंदी पूरब पक्षिम उत्तर दखिन का भेद मिटाती स्वतंत्र राष्ट्र पहचान है।


हिंदी हिंदुस्तान है ।


हिंदी माथे की बिंदिया इसे दमकने


और चमकने दो।। हिंदी प्रेम सरोवर


हिंदी गागर में सागर


हिंदी दिनकर हिंदी जय शंकर


हिंदी नीर निराला 


महादेवी की महिमा गान है।


हिंदी हिन्दुस्तान है ।


हिंदी माथे की बिंदियाँ 


इसे दमकने और चमकने दो।।


हिंदी मीरा की भक्ति 


हिंदी रस की रस खान है


कबीर की सूफी बानी


दोहा रहीम की बान है


हिंदी हिंदुस्तान है


हिंदी माथे की बिंदियां


इसे दमकने और चमकने दो।।


हिंदी की मधुशाला है


वीरों की हाला प्याला है


हिंदी हिंदुस्तान है 


हिंदी माथे की बिंदियाँ इसे


दमकने और चमकाने दो।। हिंदी भाषा है हिंदी आशा हिंदी अटल विश्वाश है हिंदी अवनि


अम्बर है ।


हिंदी आचरण मूल्यों का सम्मान 


है ,हिंदी वंदे मातरम् हिंदी जन गण मन गान है ।


हिंदी हिंदुस्तान है 


हिंदी माथे की बिंदियाँ इसे चमकने और दमकने दो।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


अर्चना कटारे

हिन्दी हमारी अमर रहे


 


 मिलकर आह्वान करें


हिन्दी का सम्मान करें


उत्तर से दक्षिण तक.....


 पूरब से पश्चिम तक.....


हिन्दी गुंजायमान रहे


 


जांज पांत का भेद मिटाती


प्रेम भाव और मान बढाती


हिन्दी बोली प्यारी है


हिन्दी सबसे न्यारी है


 


आओ सभी को साक्षर करायें


हिन्दी मे हस्ताक्षर कराये


जन जन तक ये बात पहुचायें


हिन्दी से भारत माँ की मांग सजाये


 


अंग्रेजी भाषा ने बेडी बांधी


हम बोलने पर मजबूर हूऐ


अंग्रेज तो चले गये


हम पर लानत छोड गये


 


आओ इन बंधन को काटे


अब न हम मजबूर हुऐ


क्यों किसी की हुकूमत माने


हम तो आजाद पंक्षी विचर रहे


 


हम अपने भारत पर उपकार करे


हिन्दी का विकास करे


आओ लम्बी चैन बनायें


हिन्दी का मान बढायें


 


हर दिशा से हर फिंजा से


महके केशर की क्यारी


हर बच्चे बच्चे बोले 


हिन्दी की वाणीरहे


 


जांज पांत का भेद मिटाती


प्रेम भाव और मान बढाती


हिन्दी बोली प्यारी है


हिन्दी सबसे न्यारी है


 


आओ सभी को साक्षर करायें


हिन्दी मे हस्ताक्षर कराये


जन जन तक ये बात पहुचायें


हिन्दी से भारत माँ की मांग सजाये


 


अंग्रेजी भाषा ने बेडी बांधी


हम बोलने पर मजबूर हूऐ


अंग्रेज तो चले गये


हम पर लानत छोड गये


 


आओ इन बंधन को काटे


अब न हम मजबूर हुऐ


क्यों किसी की हुकूमत माने


हम तो आजाद पंक्षी विचर रहे


 


हम अपने भारत पर उपकार करे


हिन्दी कि विकास करे


आओ लम्बी चैन बनायें


हिन्दी का मान बढायें


 


हर दिशा से हर फिंजा से


महके केशर की क्यारी


हर बच्चे बच्चे बोले 


हिन्दी की वाणी


 


पूरे हिन्दोस्तां मे राज करे


हमारी मात्रृ भाषा रहे


हिंन्दी जन जन पर राज करे


हिन्दी हमारी अमर रहे


    


     अर्चना कटारे


   शहडोल (म,प्र,)


मनीष मिश्रा हिंदी दिवस 

विचारक


 


हिन्दी दिवस पर विचारक मनीष मिश्र ने हिंदी पर प्रकाश डालते हुए कहा ,कि हिंदी जो कि भारत अधिकतम भू भाग में अपने को मजबूत कर चुकी है विदेशी लोग भी हिन्दी को अपनाने में उत्सुकता व्यक्त करते है ,क्योंकि यह एक ऐसी भाषा है जो आधे अक्षर में आधा मिलाकर पूर्ण कर देती है, हिंदी सहज सरल मृदुभाषी तो है ही साथ ही हिंदी शक्ति है रूप में ,ममत्व के रूप में, करुण के रूप, प्रेम के रूप बखूबी भाव संजोए हुए है, 1850 भारतेंदु युग से हिंदी खड़ी बोली का स्वर्णकाल प्रारम्भ हुआ,इसके पहले हिन्दी चूँकि संस्कृत से निकली है इसलिए यह क्लिष्ट थी, आज भारत ही नही अपितु देश के बाहर भी हिंदी बोलने वालो का अपना अलग ही व्यक्तित्व व स्थान है , सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ में देश के तत्कालीन विदेशमंत्री व बाद में देश के प्रधानमंत्री भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपाई जी ने हिंदी में अभिभाषण दिया, हिंदी के अक्षर आपकी मुख शैली को से पता चल जाते है कि आप किस अक्षर का उच्चारण कर रहे, होष्ठ ,दन्त्य,तालु, कंठ आदि से अलग अलग अक्षरों का उत्सर्जन होता है , हिन्दी सामान्य तरीके से समझी जा सकती है यू तो हिन्दी के क्षेत्रीय कई रूप है पर खड़ी बोली की बात ही अलग है , यदि भारत को ठीक से समझना है तो हिंदी को जानना ही होगा ,अनेको आंदोलनों संघर्षो के बाद,हिंदी ने सहज स्वकृति प्राप्त की और राजा भाषा के रूप में स्थापित हुई, पर देश एक बड़ी विडंबना है देश की सर्वोच्च परीक्षा upssc में हिंदी विद्यार्थियों को पर्याप्त महत्व नही मिलती ही , पिछले कुछ दशकों के परिणाम जो आये है उसमें हिंदी विद्यार्थी को वो परिणाम नही प्राप्त हुए अपेक्षाकृत अंग्रेजी में, उत्तर प्रदेश में हिंदी में सबसे अधिक अंक लाने वाले को सरकार की तरफ से 25000 से 35000 हजार तक का नगद पुरुष्कार दिया जाता है, फिर भी इतनी महत्वपूर्ण व्यवस्था को संचालित करने के लिए यूपी एस सी में हिन्दी विद्यार्थियों की उपेक्षा क्यो की जाती है ,सरकार को इसपर भी विचार करना चाहिए , तभी हम सही मायने में हिन्दी दिवस को मना पाएंगे,


सुमन शर्मा भाव नगर गुजरात             

हिन्दी अभिमान हमारा है।


————————-


हिन्दी अभिमान हमारा है,


‘हिन्दी हैं हम’हिन्दुस्तान का नारा है।


गंगा और तिरंगा वाले देश की


 


भाषा हिन्दी,बनी शान हमारा है।


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


जन मन की यह मीठी बोली


दिल में इसने मिसरी घोली,


शब्दों में ब्रह्माण्ड समाया,


वर्ण वर्ण जुड़ सजी रंगोली।


इससे ही दिवाली होली,


एकता का यह नारा है, 


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


संस्कृत,प्राकृत,अपभ्रंश से निकल,


खड़ीबोली के सरल रूप में ढल, 


शिरो रेखाओं से जुड़कर,


जोड़ा सबको एकत्रित किया बल,


देश की अखंडता का बन प्रतीक,


इसने सबको ललकारा हैं।


अनेक भाषाओं को अपने में समा,


‘अनेकता में एकता’का बनी यह नारा है,


हिन्दी अभिमान हमारा है।


 


इसमें हमारी सभ्यता,संस्कृति,


समायी इसी में भक्ति और शक्ति,


हमारी गतिऔर प्रगति की भाषा,


साधु संतों की यह बानी।


भारतमाता के मस्तक की बिन्दी,


सहजता,संकल्पना की पहचान है हिन्दी 


भारतीयता का अब यही नारा है,


हिन्दी अभिमान हमारा है।


                                हिन्दी दिवस १४ सितंबर


अंजुमन आरज़ू

माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥


 


ये हिंदी गंगा यमुना, सी इक नदी है पावन ।


स्वर और व्यंजनों की, लहरें है जिसमें बावन ॥


संस्कृति के स्वच्छ जल में,


भीगो तनिक नहा लो,


नव पीढ़ी आओ आगे, निज शक्तियाँ सँभालो ॥


संस्कृत सी प्यारी माँ की, संतान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥1॥


 


हिंदी किरीट अपना, हिंदी है माथ बिंदी ।


हिंदी की लोरियाँ सुन, बचपन में पाई निंदी ॥


हिंदी बिछा के सोऊँ, हिंदी ही ओढ़ती हूँ ।


इस हिंदी के सहारे, मैं हिंद जोड़ती हूँ ॥


एका के वास्ते इक, अभियान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥2॥


 


केशव कबीर मीरा, रसलीन ने सँवारा ।


नव कवि हैं हम तो अब ये, दायित्व है हमारा ॥


हिंदी के शब्द मोती, लिपि सीपियों सी नागर ।


हम बूंद बूंद करके, भर देंगे हिंदी गागर ॥


गोते ज़रा लगा लो, रसखान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥3॥


 


हिंदी है मातृ भाषा, भाषा न मात्र करना ।


है जग में श्रेष्ठ हिंदी, हमको इसे है वरना ॥


शोभा विहीन वरना, ये देश होगा अपना ।


उत्थान औ उन्नति का, तब सत्य होगा सपना ॥


अपना के इसको देखो, उत्थान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥4॥


 


माँ भारती को उसका, सम्मान तो दिलाओ ।


भारत के नाम को अब, अनुवाद से बचाओ ॥


क्यों इंडिया कहें अब, भारत कहे ज़माना ।


सार्थक तभी तो होगा, हिंदी दिवस मनाना ॥


भारत के लाड़लों का, अभिमान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥5॥


 


माँ शारदे का न्यारा, वरदान है ये हिंदी ।


इस हिंद देश की तो, पहचान है ये हिंदी ॥


 


 


    - अंजुमन 'आरज़ू' ©✍


अनीता मिश्रा सिद्धि

हिन्दी भाषा के लिये , करें सभी कुछ काम ।


बहुत रचे मिलकर सभी , कविताएँ अविराम ।


कविताएँ अविराम , सभी को पढ़े -पढ़ाए ।


माँ हमको दो ज्ञान , पंथ नव गढ़ते जाए। 


निज-भाषा का मान, हमारी संस्कृति अभिनन्दी।


भाषा मातृ महान, देश की प्यारी हिन्दी।


 


अनीता मिश्रा सिद्धि । 


पटना ।


अविनाश सिंह

हिंदी दिवस


दो हिंदी को सम्मान


है मातृभाषा।


 


पढ़ेगा बच्चा


अंग्रेजो के स्कूल में


हुआ विनाश।


 


है मातृभाषा


पर हस्ताक्षर है


अंग्रेजी भाषा।


 


प्यारी सी हिंदी


कोई न शॉर्टकट


लिखो या पढ़ो।


 


बने महान 


बोल कर अंग्रेजी


हिंदी है देशी।


 


मिला न दर्जा


राष्टभाषा का पद


कैसी है भाषा।


 


अंग्रेजों ने लाया


अंग्रेजी अपनाया


हिंदी भुलाया।


 


बच्चों की चाह


कोचिंग की डिमांड


अंग्रेजी भाषा।


 


बोले जो हिंदी


करे वो शर्मिंदगी


इतनी बुरी ?


 


हिंदी के गुरु


पाते न वो सम्मान


हो अपमान।


 


सरल भाषा


सहज होते रूप


न अपवाद।


 


प्रत्येक कार्य


हो अंग्रेजी भाषा में


कहाँ है हिंदी।


 


हिंदी की बिंदी


सुशोभित हो देश


गए अंग्रेज।


 


नही है पढ़ा


कोई सी आरती को


ये अंग्रेजी में।


 


है अपवाद


आधे से अधिक के


ये अंग्रेजी में।


 


बिन सीखे ही


सिख लेता बालक


हिंदी के बोल।


 


कभी ने रटे


हिंदी के व्याकरण


सिर्फ समझे।


 


अविनाश सिंह


8010017450


शिवांगी मिश्रा

हिंदी से ही तो हम तुम बनें हैं ।


हिंदी से ही तो ये सारा जहाँ है ।।


हिंदी ना होती जीवन में तो ।


हिंदी बिना पहचान कहाँ है ।।


हिंदी हमारी माता है और ।


हिंदी से ही अस्तित्व बना है ।।


हिंदी है हिन्द है तो हम सभी हैं ।


हिंदी बिना पूर्ण ज्ञान कहाँ है ।।


 


                  होती श्रृंगार में जैसे जरूरी ।


                  माथे पे बिंदी से होती है पूरी ।।


                  बिंदी बिना श्रृंगार अधूरा ।


                  सोलह श्रृंगार भी होता ना पूरा ।।


                  बिंदी से चेहरे की आभा दमकती ।


                मस्तक लगी बिंदी जब है चमकती ।।


                  हिंदी भी भाषा की बिंदी बनीं है ।


                  दुल्हन सरीखी ये हिंदी सजी है ।।


 


जैसे खुशी में जरूरी मिठाई ।


वैसे ही चाट में होती खटाई ।।


हिंदी का ज्ञान अगर ना हुआ तो ।


मानो हो जीवन अरण्य बिताई ।।


हिंदी मर्यादा का भान भी रखती ।


द्वेष को हरती है बनके अच्छाई ।।


हिंदी का मान करोगे यदि तुम ।


होगी सदा ही तुम्हारी बड़ाई ।।


 


शिवांगी मिश्रा


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भारत-गौरव हिंदी


करें सभी सम्मान जगत में,


हिंदी-भाषा रानी का।


बोधगम्यता और सरलता-


सहज प्रवाह-रवानी का।।


 


भारतेंदु ने सबसे पहले,


इसका है गुणगान किया।


हिंदी अपना गौरव कहकर,


इसका है सम्मान किया।


यही देश की प्राणवायु है-


उन्नति-स्रोत कहानी का।।


 


बनकर स्नेह सूत्र ही हिंदी,


रखे सभी दिल को जोड़े।


प्रेम-दीप की ज्योति जलाकर,


इर्ष्या-तम का रुख मोड़े।


ज्ञान-कोष अक्षुण्ण है हिंदी-


भाषा हिंदुस्तानी का।।


 


आन-बान यह शान देश की,


मर्यादा है भारत की।


यह विकास-सोपान प्रथम है,


वाणी ज्ञान-विशारद की।


हर जिह्वा पर चढ़कर बोले-


मंत्र-सूत्र इव ज्ञानी का।।


 


सीखें और सिखाएँ सबको,


हिंदी-भाषा-बोली को।


अभी विदेश- देश में जा कर,


अपने सब हमजोली को।


कर विकसित नव शब्द-कोष को-


जो सहाय विज्ञानी का।।


 


'क' से कहना कमल व कबूतर,


'ख' से कहना है खरगोश।


'ग' से बनते गणेश देवता,


'घ' से घड़ी समय-उद्घोष।


'अ'-'आ' से अमरूद व आम हों-


कोमल बोल सुहानी का।।


      बोधगम्यता और सरलता,


      सहज प्रवाह-रवानी का।।


      करें सभी सम्मान जगत में-


      हिंदी-भाषा रानी का।


                    © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


सुनील कुमार गुप्ता

हिन्दी का नित दिन करे प्रयोग,


हिन्दी का बढ़े-


पग-पग सम्मान।


मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,


कही पर भी साथी-


हो न इसका अपमान।


हर दिन हो हिन्दी दिवस,


क्यों-मनाये अलग से-


बना रहने दो इसका सम्मान।


एक दिन मना कर हिन्दी दिवस,


भूल न जाना इसको-


होगा अपना और हिन्दी का अपमान।


हिन्दी सम्पर्क भाषा बन,


हर हृदय में बसी-


तभी कहते हिन्दी-हिन्दी हिन्दुस्तान।


भाषाएं और भी अच्छी है,


सीखे बढाएं-


अपना ज्ञान बने महान।


मातृभाषा बने राष्ट्भाषा,


कही पर भी साथी-


हो न इसका अपमान।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


निशा अतुल्य

हिन्दी मेरी प्यारी भाषा


जीवन का सम्मान है 


माँ शब्द निकले मुख से


जीवन दाता प्राण है ।


 


वर्ण और व्यंजन की 


अद्भुत देखो खान है 


सजी हुई अलंकारों से 


मुहावरे जिसकी जान हैं ।


 


दोहे हो या हो चौपाई


मधुर मधुर गुंजार है 


नव रस में डूबी ये भाषा


भारत की ये शान है ।


 


आन बान ये गौरव सबका


चाहे कोई क्षेत्र कोई प्रान्त है 


हिन्दी है भारत की बिंदी


मातृभाषा अब राष्ट्रभाषा अभियान है।


 


हिन्दी दिवस में ना बाँधो इसको


मातृभाषा ये बोल चाल स्वाभिमान है।


मीठी मधुर स्वरा भाषा ये


जन जन का कल्याण है ।


 


चलो चलें मिल कर हम तुम


प्रचलित करें हर क्षेत्र हर प्रांत है ।


नही दोयम है ये भाषा 


जागृत करना बच्चों में ये भाव हैं ।


 


निशा अतुल्य


आचार्य गोपाल जी

हिंदी हमारी आन है 


 


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


हिंदी से हिंदुस्तान है ,


ये भाषा बड़ी महान है ,


यही बढ़ाती मान है।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


संस्कृत में है संस्कृति हमारी,


हिंदी संस्कृत की संतान है ।


यही हमारी है एक धरोहर,


ये करती सब का सम्मान है ।


अरबी फारसी अंग्रेजी सहित,


यह सबको देती मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


प्रेम सौहार्द की भाषा हिंदी,


प्रेम की मजबूत धागे समान है ।


हिंदू की गौरव गाथा है,


सनातन की पहचान है ।


सूर तुलसी कबीर रहीम ,


कहीं जायसी तो रसखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


हिंदी भारत की बिंदी है,


सुलभ सुगम रस खान है ।


‌गर्व हमें है निज भाषा पर,


यही हमारा स्वाभिमान है ।


जीवन की है यही परिभाषा,


यह कालजई महान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


बिहारी,भूषण,कवि चंद है इसमें,


दिनकर,निराला,पंत,भारतेंदु महान है ।


बड़ी निराली देवनागरी लिपि,


विश्व में इसकी अलग पहचान है ।


हर भारतवासी के दिल में ,


हिंदी के लिए सम्मान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


पर आज यही बनी है दासी ,


हम सब से ही यह परेशान है ।


अंग्रेजी है राज कर रही ,


यह बनी हुई गुमनाम है ।


दिवस पर करते गुणगान सब ,


दिल से करते अंग्रेजी का बखान है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


 


नेताओं की है बात निराली,


अंग्रेजी की करते रखवाली ।


हिंदी का करते अपमान है,


हर वर्ष बना के नए नियम वो,


जिसमे वोट कमीशन नाम है,


यही चलन आज आम है ।


हिंदी हमारी आन है ,


ये भारत की शान है ।


 


आचार्य गोपाल जी


           उर्फ


 आजाद अकेला बरबीघा वाले


सुनीता असीम

ग़म नहीं मुझको सुनाना दिल का।


सुन लिया तो है रुलाना दिल का।


****


खूब आंखों को भिगोते वो हैं।


भा गया जिनको तराना दिल का।


****


शब सुबह चैन नहीं है उनको‌।


गा रहे जो हैं फ़साना दिल का।


****


जिस्म दो एक अगर हो जाएं।


है वही अच्छा लगाना दिल का।


****


चार आँखें जो हुईं आँखों से।


दिल बना फिर तो निशाना दिल का।


****


सुनीता असीम


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

नव हिन्दी नव सर्जना


 


सुन्दर सुखद प्रभात है , राम राम सुखधाम। 


हिन्दीमय सारे जहां , भारत है अभिराम।।१


 


प्रमुदित है संस्कृत सुता , पुण्य दिवस पर आज।


हिन्दी हिन्दूस्तान का , प्रीति भक्ति आगाज।।२।।


  


नव हिन्दी नव सर्जना , कालजयी साहित्य।


अलंकार नवरस ध्वनि , रीति गुणी लालित्य।।३।।


  


रचना हो नित चारुतम , मर्यादित अनुकूल। 


हिन्दी नित प्रेरक बने , नव समाजशुभ फूल।।४।।


  


इन्द्रधनुष सतरंग सम , विविध विधा हो काव्य। 


स्वस्ति लोक निर्माण मन , नवसर्जन मन भाव्य।।५।।


 


 हिन्दी भारत अस्मिता , एक राष्ट्र नित सूत्र। 


 बोले लिखें शान से , हिन्दी हिन्द सपुत्र।।६।।


 


हिन्दी है गौरव वतन , सहज सरल मृदुभाष। 


 वैज्ञानिक मानक सरस, नव भारत अभिलाष।।७।।


 


 सारस्वत लेखन सदा , हिन्दी मन सम्मान।


 निज भाषा हिन्दी लहै , देश लोक उत्थान।।८।।


 


प्रगति राष्ट्र जग वे बने , निज भाषा अभिमान।


 विरत राष्ट्र भाषा जगत , हो वजूद अवसान।।९।।


 


राष्ट्र शक्ति हिन्दी मधुर , कण्ठहार जनतंत्र।


रोज़गार शिक्षा सुलभ , समझो जीवन मंत्र।।१०।।


 


हिन्दी कुमकुम भारती , लाल भाल बिंदास। 


तजो आंग्ल उर्दू प्रणय , वरना जग उपहास।।११।। 


 


सविता हिन्दी अरुणिमा , लाओ पुनः विहान।


खिल निकुंज सुरभित कली,हिन्दी हिन्द महान।१२।।


 


बने लोक भाषा जगत , हिन्दी भाष विलास।


अनुपम रचना सर्जना , गौरव हो इतिहास।।१३।।


 


शक्ति भक्ति रस पूर्ण नित , हिन्दी हो नवनीत।


तरुणाई नव चेतना , दिग्दर्शक नवप्रीत।।१४।।


 


आज पुनः संकल्प लें , मन हिन्दी स्वीकार।


सीखें सब भाषा विविध , पर हिन्दी सत्कार।।१५।। 


 


कवि निकुंज कवि कामिनी,लिख हिन्दी अविराम।


हिन्दी मय माँ भारती , भारत जग शुभ नाम।।१६।।


 


देवनागिरी लिपिका , वैज्ञानिक अभिराम।


पठन श्रवण लेखन समा , हिन्दी हो सत्काम।।१७।। 


 


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


अमित अग्रवाल मीत

मैं हिन्दी हूँ, हिन्द की भाषा, मुझ पे निशाने मत साधो !


बरसों बाद स्वतंत्र हुयी हूँ, मुझे बेड़ियां मत बांधो !!


 


आदिकाल से लुटी जा रही, पल पल मेरी आन ही क्यूँ ?


धूमिल हो रही हर दूजे दिन, मेरी ये पहचान ही क्यूँ ??


 


बचपन में आँचल में अपने, पाला पोसा था तुमको !


अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था, मुझपे भरोसा था तुमको !!


 


आज मगर अंग्रेजी के बिन, मुश्किल लगता है जीना !


राष्ट्रभाषा का नाम दिया था, ओहदा मेरा क्यूँ छीना ??


 


मुझे शिकायत निज पुत्रों से, गैरों से मलाल नहीं !


क्यूँ मेरे अस्तित्व की चिंता, करते मेरे लाल नहीं ??


 


मैं लगती बूढ़ी माँ जैसी, आँखों को न भाती है !


अंग्रेजी बन चली प्रेयसी, हर पल तुम्हें लुभाती है !!


 


मेरी हालत उस अबला सी, जिसकी साड़ी फटी हुयी !


अंग्रेजी उर्दू अरबी के, पैबंदों से सजी हुयी !!


 


आज मुझे ही अपनाने में, शर्म तुम्हें क्यूँ आती है ?


क्यूँ अंग्रेजी सेहरा बनकर, सिर पर चढ़ती जाती है ??


 


सुनो आज तुम सबको मैं, इक सच्चाई बतलाती हूँ !


दुनिया की सब भाषाओं की, मैं ही जीवनदाती हूँ !!


 


इस धरती पर नयी सुबह का, मेरे बिन आगाज नहीं !


मैं हिन्दी स्वच्छंद सुधा हूँ, एक दिन की मोहताज नहीं !!


 


अमित अग्रवाल 'मीत'


संजय जैन

हिंदी ने बदल दी,


प्यार की परिभाषा।


सब कहने लगे


मुझे प्यार हो गया।


कहना भूल गए,


आई लव यू।


अब कहते है


मुझसे प्यार करोगी।


कितना कुछ बदल दिया,


हिंदी की शब्दावली ने।


और कितना बदलोगें,


अपने आप को तुम।


हिंदी से सोहरत मिली,


मिला हिंदी से ज्ञान।


तभी बन पाया,


एक लेखक महान।


अब कैसे छोड़ दू,


इस प्यारी भाषा को।


ह्रदय स्पर्श कर लेती,


जब कहते है आप शब्द।


हर शब्द अगल अलग,


अर्थ निकलता है।


इसलिए साहित्यकारों को,


हिंदी भाषा बहुत भाती है।


हर तरह के गीत छंद,


और लेख लिखे जाते है।


जो लोगो के दिल को छूकर,


हृदय में बस जाते है।


और हिंदी गीतों को,


मन ही मन गुन गुनते है।


और हिंदी को अपनी,


मातृभाषा कहते है।


इसलिए हिंदी को


राष्ट्रभाषा भी कहते है।।


 


संजय जैन (मुंबई )


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

लेखनी के यशस्वी पुजारी


कालिदास की उपमा उत्तम,बाणभट्ट की भाषा,


तुलसी-सूर-कबीर ने गढ़ दी,भक्ति-भाव-परिभाषा।


मीर व ग़ालिब की गज़लों सँग,मीरा के पद सारे-


"प्रेम सार है जीवन का",कह,ऐसी दिए दिलासा।।


                      बाणभट्ट की.........।।


सूत्र व्याकरण के सब साधे,अपने ऋषिवर पाणिनि,


वाल्मीकि,कवि माघ सकल गुण, पद-लालित्य में दण्डिनि।


कण्व-कणाद-व्यास ऋषि साधक,दे संदेश अनूठा-


ज्ञान-प्रकाश-पुंज कर विगसित,हर ली सकल निराशा।।


                   बाणभट्ट की.............।।


गुरु बशिष्ठ,ऋषि गौतम-कौशिक,मानव-मूल्य सँवारे,


औषधि-ज्ञानी श्रेष्ठ पतंजलि,रोग-ग्रसित जन तारे।


ऋषि द्वैपायन-पैल-पराशर,कश्यप-धौम्य व वाम-


सबने मिलकर धर्म-कर्म से,जीवन-मूल्य तराशा।।


                बाणभट्ट की.............।।


श्रीराम-कृष्ण,महावीर-बुद्ध थे,पुरुष अलौकिक भारी,


महि-अघ-भार दूर करने को,आए जग तन धारी।


करके दलन सभी दानव का,ये महामानव मित्रों-


कर गए ज्योतिर्मय यह जीवन,जला के दीपक आशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


किए विवेकानंद विखंडित,सकल खेल-पाखंड,


जा विदेश में कर दिए क़ायम, भारत-मान अखंड।


श्रीअरविंदो ने भी करके,दर्शन का उद्घोष-


भ्रमित ज्ञान-पोषित-मन-जन की,दूर भगाया हताशा।।


              बाणभट्ट की...............।।


भारतेंदु हरिचंद्र हैं,हिंदी-कवि-कुल के गौरव,


उपन्यास-सम्राट,प्रेम ने दिया,कहानी को इक रव।


आचार्य शुक्ल,आचार्य हजारी,भाषा-मान बढ़ाए-


पंत-प्रसाद-निराला भी हैं,हिंदी-बाग-सुवासा।।


               बाणभट्ट की.............।।


यात्रा के साहित्य-पितामह,बहुभाषाविद राहुल,


बौद्ध-धर्म के अध्येता वे,पंडित महा थे काबिल।


सांकृत्यायन राहुल जी भी,ज्ञान-ध्वज फहराए-


ज्ञान-ज्योति-नव दीप जलाकर,दीप्त किए जिज्ञासा।।


            बाणभट्ट की............ ।।


गुप्त मैथिली-दिनकर-देवी,महावीर जी ज्ञानी,


सदानंद अज्ञेय प्रणेता-मुक्त छंद-विज्ञानी।


नीरज-बच्चन गीत-विधाता,सब जन को हैं प्यारे-


प्रखर लेखनी श्री मयंक की,अद्भुत वाग-विलासा।।


           बाणभट्ट की...............।।


नग़मा निग़ार चलचित्र-जगत के,सबने नाम किया है,


राही-हसरत-कैफ़ी-मजरुह ने,रौशन पटल किया है।


बख़्शी-अख़्तर-कवि प्रसून-अंजान सहित इंदीवर-


साहिर-शकील-गुलज़ार सभी ने,नूतन गीत तलाशा।।


         बाणभट्ट की................।।


धन्य धरा यह भारत है,जो जन्म दिया इन लोंगो को,


अध्यात्म-ध्यान,कर्तव्य-ज्ञान का,धर्म सिखाया लोंगो को।


ऋषि-मुनि-ज्ञानी-ध्यानी,सबने मान बढ़ाया माटी का-


"जीवन है अनमोल"तथ्य का,सबने किया खुलासा।।


            बाणभट्ट की............।।


                  


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


विनय साग़र जायसवाल

हिंदी गाँधी के सपनों का अभियान है 


इसके विस्तार में सबका सम्मान है


 


सूर तुलसी ने सींचा इसे प्यार से


जायसी और रसखान की जान है


 


राम सीता हैं इसमें हैं राधा किशन 


मीरा के प्रेम का भी मधुर गान है 


 


चाहे कविता लिखो या कहानी लिखो


इसकी शैली में सब कुछ ही आसान है


 


हिंदी भाषी हैं अब तो हर प्राँत में


इसकी परदेस में भी बढ़ी शान है


 


सत्ताधीशों इसे राष्ट्र भाषा लिखो 


हिंदी भारत के पुत्रों का अभिमान है 


 


कोष हिंदी का बढ़ने लगा दिन ब दिन 


समझो साग़र ये हम सब को वरदान है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पाँचवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


 


ग्वाल-बाल अरु सभ ब्रजबासी।


पहिरि क भूषन-बसन उलासी।।


     निज कर लिए भेंट-उपहारा।


     आए सबजन नंद-दुवारा।।


भईं मगन गोपी सभ ब्रज कै।


सुनि के जनम पुत्र जसुमति कै।।


    सुरुचि बसन-भूषन ते धारी।


     अंजन लोचन डारि सवाँरी।।


कमल-मुखी-सुमुखी सभ नारी।


पंकज केसन कुमकुम धारी।।


     भेंट-समग्री लइ-लइ आई।


     ललन संग जहँ जसुमति माई।।


सुघर-गठित नितम्भ गोपिन्ह कै।


हिलत पयोधर उनहिं सभें कै।।


     धावत रहँ जब मोहहिं लोंगा।


      महि पै अस बिरलै संजोगा।।


झिलमिलाय मनि- कुंडल काना।


कंचन-हार-हुमेलहिं नाना ।।


     बसन पहिरि बहु रंग-बिरंगी।


     पुष्प-गुच्छ चोटिन्ह महँ ढंगी।।


कंगन पहिनि जड़ाऊ दमकैं।


कानन्ह कुंडल झलकैं-चमकैं।।


     देहिं असिष बालक नवजाता।


     कहि-कहि रच्छा करहु बिधाता।।


करहु प्रभू चिरजीवी यहिं का।


रहहि सुखी-स्वस्थ ई लइका।।


दोहा-मगन होइ सभ गोपिहीं,गावैं मंगल-गान।


        हरदी-तेलइ छिड़िकि के,चाहहिं तहँ कल्यान।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                             9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीराचरितबखान)-8


 


कहत-सुनत बिराग-गुन-ग्याना।


बीते कछु दिन ताहि ठिकाना।।


     रावन-भगिनी नाम सुपुनखा।


     बिकल मना भइ आ तिन्ह निरखा।।


आइ क धाइ तुरत करि माया।


रुचिर रूप धरि सुंदर काया।।


     निकट जाइ प्रभु रामहिं पाहीं।


    कही राम हम तुमहीं चाहीं।।


होंहि बिकल चित जग सभ नारी।


सुंदर पुरुष निहारि-निहारी ।।


     जस रबि-तापहिं पिघलै रबि-मनि।


     सुघर देखि नर हँकरै त्रिय-मन ।।


कहहि राम तें रावन-बहिनी।


तुम्ह सम पुरुष न अब तक पवनी।।


     तोर-मोर अस जोड़ बिधाता।


     जोड़े भल संजोगहिं नाता ।।


तब प्रभु राम चितइ सिय ओरा।


कहहिं कुवाँर भ्रात ऊ मोरा।।


    सुनत बचन प्रभु रावन-बहिनी।


     लहरत लखन निकट गइ अहिनी।।


सुमुखी,सुनहु मोर इक बाता।


मों सँग तोर बियाह न भाता।।


     लखन कहे कोमल मृदु बानी।


     सुंदरि सुनु,इक बात बतानी।।


हम त अहहिं दास प्रभु स्वामी।


जस बिहीन मैं, प्रभु बड़ नामी।।


     मम-तव जोड़ी जग नहिं भावै।


     स्वामी रहत दास कस पावै।।


सुख सेवक चाहहि निज हेतू।


ब्यसनी चाह कुबेर-निकेतू।।


     चाहे भिच्छु मान-सम्माना।


     लोभी चाहे जस जग पाना।।


धर्मइ-अर्थ-मोच्छ अरु कामा।


पुरुष गुमानी कै सतधामा।।


     सुभ गति नित चाहे ब्यभिचारी।


      चाहे सिकता तेल निकारी।।


सुनि मुख लखन गूढ़ अस बचना।


कीन्ह सुपुनखा प्रभु पहँ गमना।।


    पुनि प्रभु ताहि लखन पहँ पठऊ।


     मरम बचन तब लछिमन कहऊ।।


होइ निर्लज्ज तोरि जे तृनुहीं।


तुम्ह सम नारि जगत ते बियहीं।।


     तब भइ कुपित तुरत सूपुनखा।


     धरि निज रूप डेरवनहिं निरखा।।


लागहि कोउ खिसियान बिलारी।


खुरुचे खंभा बिनू बिचारी।।


    भइ आतुर सीतहिं लखि रामा


     सैनन कह लछिमन कुरु कामा।।


दोहा-समुझि सनेसहिं लखन तहँ,काटे नाकहिं-कान।


         नाकइ-कान बिहीन तब,भागी करि बिष-पान।।


         नाक-कान तिसु काटि के,राम-लखन अस कीन्ह।


         मौन निमंत्रन रावनहिं,समर करन कै दीन्ह ।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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