पुरखा के सुरता
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
पुरखा के चलाये,रीति रिवाज
सुमत म चलत हे,पूरा संसार
पुरखा नी चाहय, खरचा कर जादा
नाम चलत रहय, इही चाहत हे
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
बर पीपर, अमरईया,पुरखा के निशानी
छइहा पावत हे, लइका अउ सियान ह
रघुकुल रीति,सब झन ल याद हे
परान दे दे, पुरखा नी चाहत हे
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
पुरखा ल देवता कहवइया,समाज ह
वोला काबर भूलावत जात हे
पुछथव अपन आप सो,काबर होवत हे अइसना
कभू कुछु मागय नहीं,पुरखा ह अधिकार ल
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
काबर नइ जानय,महू ल बनना हे पुरखा
नइ कहावन, कुलटा अउ कुलबोरनी
भीतरे भीतर कसकत हे,पुरखा के मन हा
काबर भूलावत हे,अपन पुरखा ल
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
पुरखा कोन सो, कहय अपन पीरा ल
बच्छर दिन बाद, आथे सुरता ह
खोजत हव मय हा,अपन वो ही गांव ल
सपना म घलो,अपन पावव वो पल के आंनद ल
पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे
पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे
नूतन लाल साहू