सन्त मिलन सम सुख जग नाहीं
संतों का मिलना अति दुर्लभ।
बड़े भाग्य से होते सुलभ।।
जन्म-जन्म के पुण्यार्जन से।
दरश-परश संत-सज्जन से।।
प्रभु प्रसाद से यह संभव है।
बिन प्रभु कृपा कहाँ संभव है।।
संत मिलन जो जन अनुरागी।
संत बिना मानव हतभागी।।
जिसपर पड़ती संत दृष्टि है।
उसपर हरि की कृपा वृष्टि है।।
जहाँ संत तहँ नहिं विपदा है।
संत समागम खुद शुभदा है।।
जहाँ संत तहँ ईश निवासा।
वहाँ नहीं दुर्जन का वासा।।
सभी देव-देवी का संगम।
होत जहाँ पर संत समागम।।
ऋद्धि-सिद्धियाँ वहीं रहत हैं।
सिद्ध संतजन जहाँ बसत हैं।
लक्ष्मी दौड़ी चल आती हैं।
संत मिलन सुख नित पाती हैं।।
संतों की महिमा अति पावन।
स्वर्गिक सुखमय पाप नशावन।।
डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801