दुर्गा प्रसाद नाग

दुनिया के रीति रिवाजों से,


एक रोज बगावत कर बैठे।


 


महबूब की गलियों से गुजरे,


तो हम भी मोहब्बत कर बैठे।।


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मन्दिर-मस्जिद से जब गुजरे,


पूजा व इबादत कर बैठे।


 


जब अाई वतन की बारी तो,


उस रोज सहादत कर बैठे।।


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दुनिया दारी के चक्कर में,


जाने की हिम्मत कर बैठे।


 


गैरों के लिए हम भी इक दिन,


अपनों से शिकायत कर बैठे।।


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जो लोग बिछाते थे कांटे,


हम उनसे इनायत कर बैठे।


 


पीछे से वार किये जिसने,


हम उनसे सराफत कर बैठे।।


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हमने अहसानों को माना,


वो लोग अदावत कर बैठे।


 


हर बात सही समझी हमने,


वो लोग शरारत कर बैठे।।


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उनके जीवन की हर उलझन,


हम सही सलामत कर बैठे।


 


पर मेरी हंसती दुनिया में,


कुछ लोग कयामत कर बैठे।।


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दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा- खीरी


मोo- 9839967711


दुर्गा प्रसाद नाग

चीन को चेतावनी


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जीवन की अंधेरी राहों में,


हम दीप जलाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम भोग भूमि पर रहते हो,


हम कर्म भूमि के वासी हैं।


तुम सुरा- सुन्दरी के कीड़े,


हम भारत के सन्यासी हैं।।


 


तुम फूलों पर मंडराते हो,


हम कांटों में गुजारा करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम जख्म पे जख्म देते हो,


हम हंस के उसे सह लेते हैं।


तुम हमे कसाई कहते हो,


हम भाई तुम्हे कह लेते हैं।।


 


तुम कांटे चुभोया करते हो,


हम फूल बिछाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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शैतान तुम्हे यदि कहते हैं,


शैतानी हमें भी आती है।


पर शांति प्रतीक हमारा है,


व शांति ही हमको भाती है।।


 


तुम शूल बिछाया करते हो,


हम डगर बुहारा करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम वार पीठ पर करते हो,


हम सीना फाड़ दिखा देंगे।


यदि भारत में चिंगारी भड़की,


दुनिया को आग लगा देंगे।।


 


तुम अंधेरा फैलाते हो,


हम ज्योति जलाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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कहीं होटल ताज फूंकते हो,


कहीं दंगे भड़काते हो।


जब आती मेरी बारी तो,


झट से बिल में छुप जाते हो।।


 


क्या कर सकते हो तुम चूहों,


यह पता लगाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम छुपकर खेल खेलते हो,


हम खुलकर खेला करते हैं।


तुम मिलकर धोखा करते हो,


हर दुख हम झेला करते हैं।।


 


जिस दिन हत्थे चढ़ गए कहीं,


हम जड़ से सफाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम दहशत यहां फैलाते हो,


हम चैन-ओ-अमन फैलाते हैं।


तुम चोटें देकर जाते हो,


हम भावुक हो सहलाते हैं।।


 


तुम कौमी कोम से जलते हो,


हम नीर बहाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम शांति भंग करते रहते,


हम शांति पाठ सिखलाते हैं।


तुम देख देख जलते रहते,


हम ठाठ बाट बल खाते हैं।।


 


तुम मिर्ची जैसे कड़वे हो,


हम रंग चढ़ाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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तुम आगे पैर बढ़ाओगे,


हम पैर काटकर रख देंगे।


यद्यपि अहिंसावादी हैं,


यह व्रत ताख पर रख देंगे।।


 


जिस दिन हत्थे चढ़ गए कहीं,


हम जड़ से सफाया करते हैं।


जब आंच वतन पर आती है,


हम लहू बहाया करते हैं।।


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दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा खीरी


मोo- 9839967711


डॉ. रामबली मिश्र

प्रेम प्रदर्शन का सभी,करें सहज सत्कार।


प्रेम रत्न धन -संपदा ,पर सबका अधिकार।।


 


सात्विक प्रेम बना रहे,सभी रहें खुशहाल।


कपहीनता है जहाँ, वहीं प्रेम का द्वार।।


 


जहाँ नकारे जा रहे, हों सब गंदे मूल्य।


वहीं प्रेम उद्भूत हो, दिखता सत साकार।।


 


छिपा हुआ है प्रेम में,अति आकर्षण शक्ति।


करते रहना प्रेम का, सुंदर साक्षात्कार।।


 


मीठी बोली निष्कपट, बोल करो मनुहार।


मीठे-मीठे वचन में ,छिपा महकता प्यार।।


 


ऐसी वाणी बोलिये, दे सबको आनंद।


अति आनंदक शव्द से, बहत प्रेम की धार।।


 


दिल की सारी प्रिति को ,देना खूब उड़ेल।


सराबोर हो सकल जग, पी हो तृप्त अपार।।


 


मत चूको बाँटो सदा, यह वितरण की चीज।


प्रेम गेह के द्वार पर, लगे सदा दरबार।।


 


मानुष हो करते रहो, सतत प्रेम का पाठ।


कदम-कदम पर प्रेम का, करते रहो प्रचार।।


 


प्रेम मंत्र का जाप कर, बन पण्डित विद्वान।


प्रेम ग्रंथ पढ़ता रहे ,यह सारा संसार।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चंदन


चंदन शीतल चंद्र सम,रुचिकर लिए सुगंध।


विषधर का यह प्रिय विटप,पर न गरल-संबंध।।


 


चंदन-शीतल लेप से,घटे मानसिक ताप।


संत लगा चंदन-तिलक,करें ईश का जाप।।


 


चंदन शोभा भाल की,करता दिव्य स्वरूप।


मुख-मंडल आभा बढ़े,औषधि एक अनूप।।


 


दे सुगंध दुर्गंध को,चंदन देव समान।


बनकर व्याल-निवास यह,दे शीतल अनुदान।।


 


जाती चंदन-लेप से,विरही हिय की पीर।


यह अमोघ औषधि बने,जब हो हृदय अधीर।।


 


भक्त-संत-प्रेमी सदा,इसका करें प्रयोग।


शुद्ध रखे परिवेश बस,चंदन का उपभोग।।


 


रक्षा चंदन विटप की,सब जन का है धर्म।


इससे बढ़कर इस समय,और नहीं है कर्म।।


          © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

नीम सी लगती जीवन धारा


उठा पटक सी चलती रहती है


धूप छांव है जीवन में पर 


मीठी सी जीवन लगती है।


 


समीर अमन का चलता है


कौशल की सरिता बहती है, 


प्रभु तेरी कृपा अकिंचन पर  


मेरे उर में कविता बसती है।


 


श्रद्धा अरू विश्वास का देखो


रोज गला दबायी जाती है


मधुमास हृदय कोमल मन को


जलप्लावन में उलझायी जाती है।


 


जीवन मृत्यु का अर्थ यहां 


कब किसे समझ में आती है


मानव बनने के चाहत में


बस सच्चाई छुपाई जाती है।


 


काम क्रोध मद लोभ से 


जीवन नरक बनायी जाती है


अहम भाव को त्याग सदा


मानव प्रेम बसायी जाती है।



 दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


 महराजगंज उत्तर प्रदेश।


दुर्गा प्रसाद नाग

काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।


 


एक दीपक जलाऊं तेरे पथ में मै,


मेरे उर में दिया तुम जलाओ प्रिया।।


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जाने क्या हो गया है मुझे आज कल,


याद में खुद तुम्हारी भटकने लगा।


 


लोग कहते थे गिरकर संभल जाऊंगा,


पर मुझे लग रहा, मै बिगड़ने लगा।।


 


मैने सोचा था गागर में सागर भरूं,


खुद ही सागर में गोते लगाने लगा।


 


मेरे वैरागी मन में कहां से प्रिया,


आज अनुराग फिर से उमड़ने लगा।।


 


बनके इक रोशनी इस दीवाली में तुम,


मेरे आंगन में इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग में तुम सजाओ प्रिया।।


_____________________


खुद गुनहगार हूं मैं तुम्हारा प्रिया,


जो तेरे भाव को कुछ समझ न सका।


 


तुमने मेरे लिए क्या नहीं कुछ किया,


तेरी खातिर किसी से उलझ न सका।।


 


मै मृदा का दिया, तुम हो बाती प्रिया,


तेरे संग में रहा और जल न सका।


 


तुम जली रात भर नाम मेरा हुआ,


खुद ही अपने तिमिर से निकल न सका।।


 


अपने दिल को सजाया तेरी याद में,


आओ आओ तुम इक बार आओ प्रिया।


 


काव्य रंगोली की दीपमाला सजी,


प्रेम के रंग से तुम सजाओ प्रिया।।


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(काव्य-रंगोली पत्रिका में प्रकाशित)


................ दुर्गा प्रसाद नाग


                     नकहा- खीरी


        मोo- 9839967711


दुर्गा प्रसाद नाग

हिंदी हिय का मूल है,


हिंदी सुख की खान।


हिंदी का सम्मान कर,


होते मनुज महान।।


 


इसलिए अगर सुख पाना है, तो हिंदी का सम्मान करो।


 


जो नाम अमर कर जाना है,


तो हिंदी का सम्मान करो।।


 


कृति में वह व्यक्ति उठा ऊंचा,


जिसने हिंदी का मान किया।


 


हो गए अमर वे प्रेमचंद,


जिसने इसका सम्मान किया।


 


पूर्व काल के वे बालक जो,


हिंदी की विधा संजोते थे।


 


हरिश्चन्द्र, कविवर दिनकर,


मैथिली से ज्ञानी होते थे।।


 


थे पंडित सूर्यकांत भी तो,


हिंदी ने "निराला" बना दिया।


 


और बच्चन जी की हिंदी ने,


सच में मधुशाला बना दिया।।


 


भारत की नव किशोर पीढ़ी,


निज गौरव भूला जाता है।


 


अपनी भाषा से विमुख हुआ,


पाश्चात्य विषय अपनाता है।


 


इसलिए देश यह सदियों से,


हो रहा रात दिन गारत है।


 


अब तो बस नाम ही भारत है,


भारत अब नहीं वो भारत है।।


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा - खीरी


मोo- 9839967711


एस के कपूर श्री हंस

मिलकर चलो तो ही हर जीत


समझो पक्की है।।


 


गैरों का क्या आज अपनों


का भी जिक्र नहीं करते।


यूँ बदला है माहौल किअब


किसी की फिक्र नहीं करते।।


आज स्वार्थ सिद्धि हो गई


बात सबसे ज्यादा जरूरी।


आज किसी और का क्या


खुद पर भी फ़ख्र नहीं करते।।


 


बहुत जरूरी है जोड़ना और


सबसे ही जुड़ कर रहना।


सुख दुःख में साथ देना और


सवेंदनायों में बंध कर बहना।।


एकाकीपन और एकांत का


अंतर तो समझना है जरूरी।


एक और एक होते ग्यारह हैं


जरूरी बात मिल कर कहना।।


 


भूल गए हैं लोग कि जरूरी है


मिल कर चलना आगे बढ़ना।


नये नये कीर्तिमान स्थापित   


हमें हैं मिल कर ही करना।।


सहयोग सामंजस्य का ही तो


दूसरा नाम अपना जीवन है।


यदि चाहते हो जीत पक्की तो


हर मुश्किल पर मिलकर चढ़ना।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


सुनील कुमार गुप्ता

 दूर हो मन का अंधेरा


 


जला दीप ज्ञान के पग-पग,


दूर हो मन का अंधेरा।


संग आशाओं के साथी ,


होगा जीवन में सवेरा।।


भूले कटुता मन की यहाँ,


ऐसा मिले साथी तेरा।


सच हो सपने मन के यहाँ,


जग में हो खुशियों का डेरा।।


महक उठे धरती अम्बर,


गम का न हो कही बसेरा।


जला दीप ज्ञान के पग-पग,


दूर हो मन का अंधेरा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

 नेता हो तो ऐसा 


 


हास्य रस पर एक रचना--


 


नेताजी ने जब किया,भरी सभा ऐलान।


 


देगा मुझको वोट जो, देंगे उसे मकान।


 


देंगे उसे मकान, कहा सच मानो भाई।


 


दे आए हम वोट, उन्हें ही संग लुगाई।


 


हुई उन्हीं की जीत,कहें अब पैसे लाओ।


 


दूॅ॑गा मुफ़्त मकान,कहा ये कहाॅ॑ बताओ।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

वीणा पाणि मां सरस्वती


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वीणा पाणी मां सरस्वती


सुन लो मेरी करुण पुकार।


 


झोली मेरी ज्ञान से भर दो


दूर करो मां जीवन से अंधकार।


 


जन-जन की वाणी निर्मल कर दो


हर मुख में अमृत धार बहे।


 


हर एक प्राणी दूसरे से प्यार करें


ऐसा हो मां ये सारा संसार ।


 


विद्या वाणी की देवी मां तुम हो


मुझ पर भी कुछ उपकार करो।


 


अंहकार ना आए कभी जीवन में


करो मां मैं सबका सम्मान ।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-14


 


नर इ होहि कि होय अवतारा।


अस दसमुख मन करै बिचारा।।


    खर-दूषन-त्रिसिरा बलवाना।


    मारि सकत इन्ह बस भगवाना।।


चित-रंजक,भंजक दुख भारी।


लइ प्रसाद प्रभु जगत सुखारी।।


     चाहेहुँ मैं भव-सागर तरना।


      बिनु प्रभु-कृपा न हो अस करना।।


मैं बड़ अघी-अबुध-अग्यानी।


तामस तन-मन कस प्रभु जानी।।


    ठानि क रारि राम सँग कबहूँ।


    छल करि तासु नारि मैं हरहूँ।।


यहि बिधि मोर होय कल्याना।


राम-हस्त मरि सुर-सुख पाना।।


    मनहिं बिचार अकेल दसानन।


    गया मरिच पहँ आनन-फानन।।


करय मरीच सिंधु-तट बासा।


भगवत-कृपा राखि उर आसा।।


     सीष नाइ रावन तब कहऊ।


     भगिनी-कथा-ब्यथा जे रहऊ।।


तबहिं नीच अवनत सिर करहीं।


स्वारथ-सिद्धि जबहिं ते चहहीं।।


     धनु-हँसुवा अरु ब्याल-बिलारी।


      नवत होंहि नहिं जग-हितकारी।।


मधु तिष्ठति खल-जिह्वा अग्रे।


गरल-कलश-मुख दुग्ध समग्रे।।


छंद-रावन कहेसि मरीच तुम्ह,जावहु कपट-मृग बनि उहाँ।


       सीता सहित दसरथ-तनय,करते निवासइ बन जहाँ।।


        आनहु त्रिया तुम्ह राम कै, करि के कपट-छल जस बनै।


      करि के हरन मैं राम-नारी, लेहुँ बदला सभ इहाँ।।


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


नूतन लाल साहू

हंसी एक, रामबाण औषधि है


 


सुख दुःख तो,जीवन का अभिन्न अंग है


तू तो सब प्राणियों में है, श्रेष्ठ


हंसता चल, हंसाता चल


लुटाता चल, हंसी के पल


देव देव तो, आलसी पुकारे


तू पाया है, सुर दुर्लभ मानुष तन


मन को रख,तू प्रसन्न और


खुलकर हंस, खुलकर हंस


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


जिसके पास है,हंसी का खजाना


सच कहता हूं मै,उसका नजराना है


नाचता है,मन मयूरी आंनद में


झूम झूम जाता हैं, मूड मस्ती में


फिर देर किस बात की है, प्यारे


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक,रामबाण औषधि है


लहराता है,खुशियों से आंचल


उल्लास और उमंगों में


मन और मस्तिष्क,हिलोरे लेने लगता है


विधुत तरंगों सी,ऊर्जा प्रवाहित होती हैं


जब मानव खुलकर, हंसता है


दुल्हन सी संवरती है, जिंदगी


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


बेहद सहज और सरल है


संकट को भी हंसकर, टाल दीजिये


जितना लुटाया है,हंसी के पल को


उतना ही मिला है,जीवन में आंनद


नश्वर को स्वर, मिलता है


मिलता है,मनुष्य को परमेश्वर का सम्बल


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र

माँ सरस्वती का अर्चन हो


 


बहे भाव रचनामृत बनकर।


फैले सारे जग में बहकर।।


 


स्वच्छ धवल पावन रचना हो।


उत्तम जग की संरचना हो।।


 


पाप नष्ट हो पुण्योदय हो।


आत्म भाव का सूर्योदय हो।।


 


संकट मोचन बन माँ आयें।


मीठे बोल-वचन बरसायें।।


 


कटु वचनों का अंत समय हो।


सारी दुनिया अब निर्भय हो।।


 


बने सकल जग पर-उपकारी।


मन बन जाये शिष्टाचारी।।


 


सकल विश्व हो गुण संपन्ना।


एक दूसरे के आसन्ना।।


 


प्रिति परस्पर का अलाय हो।


सारा जग अब देवालय हो।।


 


जग में प्रेम सुधा की वर्षा।


सुंदर भाव जनित हो हर्षा।।


 


हों प्रसन्न अति मातृ शारदे।


माँ सरस्वती सबको वर दें।।


 


उर में थिरकन बनकर आयें।


नृत्य गीत साहित्य रचायें।।


 


माँ सरस्वती का अर्चन हो।


हंसवाहिनी का वंदन हो।।


 


रचनाकार बनायें माता।


बने ग्रन्थ पावन विख्याता।।


 


उठ जायें खुशियों की लहरें।


कष्ट शोक दु:ख सदा माँ हरें।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थी


 


छात्रों तुम प्रतिभा की खान हो,


तुम ही इस धरा की शान हो,


आओ संघर्ष जीवन का आधार बनाए,


निष्ठावान बन जीवन सफल बनाए।


 


तुमको जितना समय मिला है,


उसका तुम सदुपयोग करो,


इस धरा की तुम ही तो शान हो,


राष्ट्र उन्नति में भी तुम्हारा योग दान है।


 


शिक्षा से होता है सबका विकास,


विद्यार्थियों तुम सृजनशील बनो,


राष्ट्र की तुम ही हो धरोहर ,


राष्ट्र निर्माण में देना है योगदान।


 


तुम ही कल के भाग्य विधाता,


स्व अस्तित्व से स्वयं समृद्ध बनो,


शिक्षा के संग संस्कारों को अपनाओं,


राष्ट्र उन्नति के लिए तुम काम करो।


 


आत्मविश्वास से,परचम फहराओ,


धरा में सर्वत्र फूल खिला सकते हो,


सही दिशा चुन तकदीर बदल दो,


बच्चों तुम सब कुछ कर सकते हो।


 


उत्सुकता नित बनाये रखो,


शांति, स्नेह की सरिता भी बहाओ,


मात पिता के सपनो को साकार करो,


बच्चों तुम सब कुछ कर सकते हो।


 


द्वेष को, प्रतिस्पर्धा में बदल दो,


धैर्य, सहनशीलता को सदा अपनाओ,


राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थी का योगदान है,


तुम ही राष्ट्र, विश्व के भाग्य विधाता हो।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 निर्मला शर्मा

चंदन री महक


बात वही सुणाऊँ पुराणी


चित्तौड़ रे महलां री कहाणी


पन्ना धाय री ममता झळकै


इत उत षड़यंत्र खड़ा पनपै


स्वामिभक्त वा बड़ी बलिदानी


राजपूती इतिहास री अमर कहाणी


चन्दन री माँ धाय उदय री


ममता री मूरत वा प्रलय सी


बनवीर क्रूर बड़ा आततायी


चित्तोड़ री जनता बड़ी दुखयाई


हाय!री विधना काँई लिख्यो या


हिवड़ो फट ज्या काज हुयो वा


काल रूप बण हाथ खड्ग लै 


बनवीर आयो महलां री गत में


तब राजवंश री आण बचावण


लियो कठोर निर्णय छत्राणी


आपणो पूत सजायौ मनभर


करयो दुलार प्यार जी भरकर


करयो काळजो आपणो पत्थर


उदय सिंह रे पलंग पर सुलायो


मीठी लोरी वाने गाके सुणायो


अट्टहास करतो वा आयो


पलंग रे ऊपर खड्ग चलायो


बिखरी धार खून री उस क्षण


उठ्यो जबर तूफान हिय में


चीत्कार सो गूँजयो नभ में


फिर भी सधी खड़ी छत्राणी


अँसुवन रोक सही मनमाणी


हुई न जग में ऐसी नारी


जिससे विधना भी थी हारी


धन्य धन्य!! वा वीरांगना नारी


ऐसी हिम्मत किसी में न री


बिखरी गन्ध मधुर सी प्रातः


चन्दन रे बलिदान री गाथा


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


निशा अतुल्य

स्नेह बंधन 


रिश्तों के स्नेह बन्धन जीवन को पार लगातें है 


हो जाती है राह सरल जब अपने साथ निभातें है 


होती हैं जब कठिनाई तो स्नेह अपनो के याद आतें है 


जीवन की तस्वीर प्यार में स्नेह बन्धन समझातें हैं।


 


ईश्वर ने जो दिए हैं रिश्ते उनका बन्धन मजबूत बड़ा


हो जाये चाहे कोई गलती हरपल राह दिखातें हैं।


 


ये तेरा है ये मेरा है मन पर मैल चढ़ाता है 


राग द्वेष का भाव तजो तुम स्नेह बन्धन सिखलातें हैं।


 


माँ का त्याग सदा श्रेष्ठ है चाह नहीं कुछ भी रखता है 


स्नेह समुंदर भावों कें माँ की आँखों में दिख जातें हैं ।


 


पिता वट वृक्ष जीवन के छाँव सदा ही देतें हैं


तपते स्वयं सर्दी गर्मी में स्नेह बन्धन में बंध जातें हैं 


 


भाई बहन का स्नेह बन्धन रिश्तों को महकातें है 


राक्षबन्धन हो या भाई दूज करीब दोनों को लातें हैं ।


 


मित्रता के रिश्तें सबसे न्यारे कुछ भी चाह नहीं रखते


हर पल रहतें खडे साथ,स्नेह बन्ध साथ निभातें है ।


 


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

जैसी करनी वैसी भरनी


 


जैसी करनी वैसी भरनी,अब तू क्यों पछताए रे,


पागल बन के गली -गली में,खुद को क्यों हँसाये रे??


 


धन के मद में भूल गए तू,रिश्ते सारे अपनों के,


तू मूरख इंसान न जाने क्या दस्तूर फरिश्तों के?


अपने हाथों अपने ही घर में,काहें आग लगाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी.........।।


 


धरम-करम को ताख पे रख के,झूठे नाम कमाए तू,


बने रहे इंसान मगर शैतान को दिल में छुपाए तू।


काम बिगाड़ के जग में अपना,दर-दर ठोकर खाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी............।।


 


कल तक थी जो शोहरत तेरी,आज मिली वो पानी में,


नमो-निशाँ भी मिटा सब तेरा,अब क्या तेरी कहानी में।


बीज जो बोया नफ़रत का तो,प्यार कहाँ से पाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी...........।।


 


तुम्ही तो हो कारण ऐ मूरख, अपने सारे कष्टों के,


भगवान नहीं बच पाए यहाँ, तिकड़म से इन दुष्टों के।


अपने कर्मों से ही तुमने,अपीने चैन गवाएँ रे-


जैसी करनी वैसी भरनी,अब तू क्यों पछताए रे??


               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


संजय जैन

इश्क


न दिल मेरा लगता है


न मन मेरा लगता है।


हुआ है जब से इश्क


सब बेकार लगता है।


इसलिए तो इश्क एक 


बहुत बड़ा रोग होता है।


जिसे लग जाये वो


सदा बीमार रहता है।।


 


जमाने में हमने बहुत 


आशिक और दीवाने देखे।


जो बस एक ही धुनी


रमाते रहते है।


न जीते है न मरते है


अपने में खोये रहते है।


और इश्क को ही 


अपना मसीहा समझते है।।


 


डगर आसान नहीं होती


इश्क को करने वालो की।


बिछे है पग पग पर कांटे 


तो चुभन सहना पड़ेगा।


और अपने इश्क पर


दाग नहीं लगाने दूँगा।


और अपने प्यार को


अमर कर जाऊंगा।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


20/09/2020


एस के कपूर श्री हंस

 पापा आपकी देखा देखी ,


मम्मी पर हाथ उठाया है।।


 


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


घरआकर हमें हाथ मुँह धोना है।


जल्दी ही हमको फिर सोना है।।


कल हैं आन लाइन क्लासेस।


खेलना भी फिर हमें खिलौना है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


घर में बैठकर कहानी सुननी है।


बातें अच्छी वाली चुननी हैं।।


कॅरोना में बाहर खेलने नहीं जाना।


सीख दादी नानी की ही गुननी है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हो कॅरोना ,जाते बिना मास्क।


क्यों निकलते हो बाहर ,बिना टास्क।।


हमसे कहते सब्जी फल खाओ।


आप खुद नहीं पी रहे काढ़ा खास।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हमसे , मत बोलो कभी झूठ।


रोज़ बताते कि, मत जायो यूँ रूठ।।


फिर क्यों कहलवाते, घर पर नहीं हैं।


इससे सीख में ,आ जाता है खोट।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हमसे, मत झगडो आपस में।


मत बोलो गलत ,स्कूल से वापिस में।।


फिर साथ वालेअंकल से गुस्सा किया।


क्यों लड़े उनसें ,आप फिर आपस में।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


मम्मी पापा आप ही हमारी दुनिया हैं।


आप दोनों से ही हम मुन्ना मुनिया हैं।।


जो आज सिखायेंगे करेंगें कल वही।


यही सीधी सी बात की गुनिया है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


आप कहते नशा करना बुरी बात है।


कहते टीवी देखना आँखों आघात है।।


फिर क्यों दिन भर मोबाइल सिगरेट।


शराब पीते रहते आप दिन रात है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


हमें भी पान खाने का शौक़ आया है।


हमनें भी सिगरेट कश आजमाया है।।


आपकी देखा देखी क्षमा करना।


आज मम्मी पर हाथ उठाया है।।


पापा जल्दी घर आ जाना।।


पापा जल्दी घर आ जाना।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


एस के कपूर श्री हंस

कभी नीम सी तो कभी


बहुत मीठी है जिंदगी।


मत ज्यादा उलझा कि


बहुत सीधी है जिंदगी।।


सुख दुःख धूप छाँव हर


किसी के जीवन में।


पूछ कर देखोगे हर किसी


की यहीआपबीती है जिंदगी।।


 


मत तमन्ना रख तू कोई


बड़ा ही खुदा बनने की।


बस आरजू हो अच्छे काम


और कुछ जुदा बनने की।।


यह जीवन सफल होगा


इंसान बनने की कोशिश में।


हर पल कोशिश हो बस


इंसानियत पे फिदा बनने की।।


 


जान लो कि एक मन को दूजे


मन से कुछ आशा होती है।


मित्रता व रिश्तों की यही इक


सही परिभाषा होती है।।


बिन कहे ही जान लें हम


दूजे के भीतर की व्यथा को।


हर रिश्ते में ही परस्पर यही


एक अभिलाषा होती है।।


 


जान लीजिए यह जीवन अर्थ


जीवन निर्माण का ही कदम है।


यही मिलकर बनता जाता युग


निर्माण का परम धरम है।।


हम बदलेंगे तो युग बदलेगा


यही एक है सच्चाई।


छिपा इसीमें सत्व युग निर्माण


का यही सच्चा मानव करम है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


राजेंद्र रायपुरी

शछोटी-छोटी बात पर, 


          करो नहीं तक़रार।


धीर-वीर गंभीर बनो, 


          करो सभी से प्यार।


 


चार दिनों की जिंदगी, 


         लड़ना है बेकार। 


बाॅ॑ट सको तो बाॅ॑ट दो, 


          सारे जग में प्यार।


 


तेरा- मेरा मत करो, 


          है सराय संसार।


जाना जिसको छोड़कर,


         रह दिन दो या चार।


 


संकटमोचन ही बनो,


            मत संकट आधार।


फॅ॑से हुए मझधार जो, 


             उन्हें लगाओ पार।


 


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता 

  बस बन जाये इंसान


समझौता पल पल जीवन से,


जब कर लेता है-इंसान।


अपनत्व नही बसता उसमें,


कैसे-बनता वो इंसान?


अपनत्वहीन जीवन में फिर,


कैसे-चल पाता धनवान?


स्वार्थ की धरती पर चल ,


बन जता वो तो शैतान।।


परमार्थ होता जीवन में,


यहाँ बन जाता भगवान।


भगवान न शैतान बने फिर,


बस बन जाये इंसान ।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता 


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे माँ शारदे वर दे


 


माँ शारदे सद विद्या बुद्धि दायनी,


स्वर को लय प्रदान कर दो,


सृजन अभिव्यक्ति से मुझे भर दो,


ज्ञान से मुझे पूरित कर दो माँ।


 


माँ शारदे तेरी शरण में आया हूँ,


तू ही जग तारिणी है माँ,


तुझ से आलोकित यह संसार है,


अपने आशीष का उपहार दे माँ।


 


मैं नित नित तेरा ध्यान करु माँ,


तेरा ही गुण गान करु मां,


सद मार्ग मिले हे माँ शारदे,


माँ तू वीणा की झंकार बजा दे।


 


हे दयामयि माँ शारदे,


पुण्य पथं प्रशस्त कर माँ,


तिमिर का तू नाश करती,


ज्योति का संसार दे -दे माँ।


 


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

, आलस को तू त्याग दे बंदे


 


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


तेरा निर्मल रूप,अनूप है


नहीं हाड मांस की काया


सब दिन होत न एक समान


जिंदगी बेकार न हो जाये


कैसे बैठे हो,आलस में बंदे


बातन बातन में,सब दिन खो रहा है


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


सोवत सोवत,उमर बीत गई


काल शीश पर,मंडरा रहा है


सुनहरा अवसर,चूक न जावे


बड़े भाग तू,मानुष तन पाया है


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


तेज भवर में फंस गई हैं, नैया


तू ही बता,अब कौन है खिवैया


देव देव आलसी पुकारे


सुकृत कर्म करो,बिनु स्वारथ के


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


नूतन लाल साहू


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