सुनील कुमार गुप्ता

 दूर हो मन का अंधेरा


 


जला दीप ज्ञान के पग-पग,


दूर हो मन का अंधेरा।


संग आशाओं के साथी ,


होगा जीवन में सवेरा।।


भूले कटुता मन की यहाँ,


ऐसा मिले साथी तेरा।


सच हो सपने मन के यहाँ,


जग में हो खुशियों का डेरा।।


महक उठे धरती अम्बर,


गम का न हो कही बसेरा।


जला दीप ज्ञान के पग-पग,


दूर हो मन का अंधेरा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

 नेता हो तो ऐसा 


 


हास्य रस पर एक रचना--


 


नेताजी ने जब किया,भरी सभा ऐलान।


 


देगा मुझको वोट जो, देंगे उसे मकान।


 


देंगे उसे मकान, कहा सच मानो भाई।


 


दे आए हम वोट, उन्हें ही संग लुगाई।


 


हुई उन्हीं की जीत,कहें अब पैसे लाओ।


 


दूॅ॑गा मुफ़्त मकान,कहा ये कहाॅ॑ बताओ।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

वीणा पाणि मां सरस्वती


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वीणा पाणी मां सरस्वती


सुन लो मेरी करुण पुकार।


 


झोली मेरी ज्ञान से भर दो


दूर करो मां जीवन से अंधकार।


 


जन-जन की वाणी निर्मल कर दो


हर मुख में अमृत धार बहे।


 


हर एक प्राणी दूसरे से प्यार करें


ऐसा हो मां ये सारा संसार ।


 


विद्या वाणी की देवी मां तुम हो


मुझ पर भी कुछ उपकार करो।


 


अंहकार ना आए कभी जीवन में


करो मां मैं सबका सम्मान ।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-14


 


नर इ होहि कि होय अवतारा।


अस दसमुख मन करै बिचारा।।


    खर-दूषन-त्रिसिरा बलवाना।


    मारि सकत इन्ह बस भगवाना।।


चित-रंजक,भंजक दुख भारी।


लइ प्रसाद प्रभु जगत सुखारी।।


     चाहेहुँ मैं भव-सागर तरना।


      बिनु प्रभु-कृपा न हो अस करना।।


मैं बड़ अघी-अबुध-अग्यानी।


तामस तन-मन कस प्रभु जानी।।


    ठानि क रारि राम सँग कबहूँ।


    छल करि तासु नारि मैं हरहूँ।।


यहि बिधि मोर होय कल्याना।


राम-हस्त मरि सुर-सुख पाना।।


    मनहिं बिचार अकेल दसानन।


    गया मरिच पहँ आनन-फानन।।


करय मरीच सिंधु-तट बासा।


भगवत-कृपा राखि उर आसा।।


     सीष नाइ रावन तब कहऊ।


     भगिनी-कथा-ब्यथा जे रहऊ।।


तबहिं नीच अवनत सिर करहीं।


स्वारथ-सिद्धि जबहिं ते चहहीं।।


     धनु-हँसुवा अरु ब्याल-बिलारी।


      नवत होंहि नहिं जग-हितकारी।।


मधु तिष्ठति खल-जिह्वा अग्रे।


गरल-कलश-मुख दुग्ध समग्रे।।


छंद-रावन कहेसि मरीच तुम्ह,जावहु कपट-मृग बनि उहाँ।


       सीता सहित दसरथ-तनय,करते निवासइ बन जहाँ।।


        आनहु त्रिया तुम्ह राम कै, करि के कपट-छल जस बनै।


      करि के हरन मैं राम-नारी, लेहुँ बदला सभ इहाँ।।


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


नूतन लाल साहू

हंसी एक, रामबाण औषधि है


 


सुख दुःख तो,जीवन का अभिन्न अंग है


तू तो सब प्राणियों में है, श्रेष्ठ


हंसता चल, हंसाता चल


लुटाता चल, हंसी के पल


देव देव तो, आलसी पुकारे


तू पाया है, सुर दुर्लभ मानुष तन


मन को रख,तू प्रसन्न और


खुलकर हंस, खुलकर हंस


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


जिसके पास है,हंसी का खजाना


सच कहता हूं मै,उसका नजराना है


नाचता है,मन मयूरी आंनद में


झूम झूम जाता हैं, मूड मस्ती में


फिर देर किस बात की है, प्यारे


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक,रामबाण औषधि है


लहराता है,खुशियों से आंचल


उल्लास और उमंगों में


मन और मस्तिष्क,हिलोरे लेने लगता है


विधुत तरंगों सी,ऊर्जा प्रवाहित होती हैं


जब मानव खुलकर, हंसता है


दुल्हन सी संवरती है, जिंदगी


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


बेहद सहज और सरल है


संकट को भी हंसकर, टाल दीजिये


जितना लुटाया है,हंसी के पल को


उतना ही मिला है,जीवन में आंनद


नश्वर को स्वर, मिलता है


मिलता है,मनुष्य को परमेश्वर का सम्बल


हंसता चल, हंसाता चल


हंसी तो एक, रामबाण औषधि है


लहराता है, खुशियों से आंचल


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र

माँ सरस्वती का अर्चन हो


 


बहे भाव रचनामृत बनकर।


फैले सारे जग में बहकर।।


 


स्वच्छ धवल पावन रचना हो।


उत्तम जग की संरचना हो।।


 


पाप नष्ट हो पुण्योदय हो।


आत्म भाव का सूर्योदय हो।।


 


संकट मोचन बन माँ आयें।


मीठे बोल-वचन बरसायें।।


 


कटु वचनों का अंत समय हो।


सारी दुनिया अब निर्भय हो।।


 


बने सकल जग पर-उपकारी।


मन बन जाये शिष्टाचारी।।


 


सकल विश्व हो गुण संपन्ना।


एक दूसरे के आसन्ना।।


 


प्रिति परस्पर का अलाय हो।


सारा जग अब देवालय हो।।


 


जग में प्रेम सुधा की वर्षा।


सुंदर भाव जनित हो हर्षा।।


 


हों प्रसन्न अति मातृ शारदे।


माँ सरस्वती सबको वर दें।।


 


उर में थिरकन बनकर आयें।


नृत्य गीत साहित्य रचायें।।


 


माँ सरस्वती का अर्चन हो।


हंसवाहिनी का वंदन हो।।


 


रचनाकार बनायें माता।


बने ग्रन्थ पावन विख्याता।।


 


उठ जायें खुशियों की लहरें।


कष्ट शोक दु:ख सदा माँ हरें।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थी


 


छात्रों तुम प्रतिभा की खान हो,


तुम ही इस धरा की शान हो,


आओ संघर्ष जीवन का आधार बनाए,


निष्ठावान बन जीवन सफल बनाए।


 


तुमको जितना समय मिला है,


उसका तुम सदुपयोग करो,


इस धरा की तुम ही तो शान हो,


राष्ट्र उन्नति में भी तुम्हारा योग दान है।


 


शिक्षा से होता है सबका विकास,


विद्यार्थियों तुम सृजनशील बनो,


राष्ट्र की तुम ही हो धरोहर ,


राष्ट्र निर्माण में देना है योगदान।


 


तुम ही कल के भाग्य विधाता,


स्व अस्तित्व से स्वयं समृद्ध बनो,


शिक्षा के संग संस्कारों को अपनाओं,


राष्ट्र उन्नति के लिए तुम काम करो।


 


आत्मविश्वास से,परचम फहराओ,


धरा में सर्वत्र फूल खिला सकते हो,


सही दिशा चुन तकदीर बदल दो,


बच्चों तुम सब कुछ कर सकते हो।


 


उत्सुकता नित बनाये रखो,


शांति, स्नेह की सरिता भी बहाओ,


मात पिता के सपनो को साकार करो,


बच्चों तुम सब कुछ कर सकते हो।


 


द्वेष को, प्रतिस्पर्धा में बदल दो,


धैर्य, सहनशीलता को सदा अपनाओ,


राष्ट्र निर्माण में विद्यार्थी का योगदान है,


तुम ही राष्ट्र, विश्व के भाग्य विधाता हो।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 निर्मला शर्मा

चंदन री महक


बात वही सुणाऊँ पुराणी


चित्तौड़ रे महलां री कहाणी


पन्ना धाय री ममता झळकै


इत उत षड़यंत्र खड़ा पनपै


स्वामिभक्त वा बड़ी बलिदानी


राजपूती इतिहास री अमर कहाणी


चन्दन री माँ धाय उदय री


ममता री मूरत वा प्रलय सी


बनवीर क्रूर बड़ा आततायी


चित्तोड़ री जनता बड़ी दुखयाई


हाय!री विधना काँई लिख्यो या


हिवड़ो फट ज्या काज हुयो वा


काल रूप बण हाथ खड्ग लै 


बनवीर आयो महलां री गत में


तब राजवंश री आण बचावण


लियो कठोर निर्णय छत्राणी


आपणो पूत सजायौ मनभर


करयो दुलार प्यार जी भरकर


करयो काळजो आपणो पत्थर


उदय सिंह रे पलंग पर सुलायो


मीठी लोरी वाने गाके सुणायो


अट्टहास करतो वा आयो


पलंग रे ऊपर खड्ग चलायो


बिखरी धार खून री उस क्षण


उठ्यो जबर तूफान हिय में


चीत्कार सो गूँजयो नभ में


फिर भी सधी खड़ी छत्राणी


अँसुवन रोक सही मनमाणी


हुई न जग में ऐसी नारी


जिससे विधना भी थी हारी


धन्य धन्य!! वा वीरांगना नारी


ऐसी हिम्मत किसी में न री


बिखरी गन्ध मधुर सी प्रातः


चन्दन रे बलिदान री गाथा


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


निशा अतुल्य

स्नेह बंधन 


रिश्तों के स्नेह बन्धन जीवन को पार लगातें है 


हो जाती है राह सरल जब अपने साथ निभातें है 


होती हैं जब कठिनाई तो स्नेह अपनो के याद आतें है 


जीवन की तस्वीर प्यार में स्नेह बन्धन समझातें हैं।


 


ईश्वर ने जो दिए हैं रिश्ते उनका बन्धन मजबूत बड़ा


हो जाये चाहे कोई गलती हरपल राह दिखातें हैं।


 


ये तेरा है ये मेरा है मन पर मैल चढ़ाता है 


राग द्वेष का भाव तजो तुम स्नेह बन्धन सिखलातें हैं।


 


माँ का त्याग सदा श्रेष्ठ है चाह नहीं कुछ भी रखता है 


स्नेह समुंदर भावों कें माँ की आँखों में दिख जातें हैं ।


 


पिता वट वृक्ष जीवन के छाँव सदा ही देतें हैं


तपते स्वयं सर्दी गर्मी में स्नेह बन्धन में बंध जातें हैं 


 


भाई बहन का स्नेह बन्धन रिश्तों को महकातें है 


राक्षबन्धन हो या भाई दूज करीब दोनों को लातें हैं ।


 


मित्रता के रिश्तें सबसे न्यारे कुछ भी चाह नहीं रखते


हर पल रहतें खडे साथ,स्नेह बन्ध साथ निभातें है ।


 


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

जैसी करनी वैसी भरनी


 


जैसी करनी वैसी भरनी,अब तू क्यों पछताए रे,


पागल बन के गली -गली में,खुद को क्यों हँसाये रे??


 


धन के मद में भूल गए तू,रिश्ते सारे अपनों के,


तू मूरख इंसान न जाने क्या दस्तूर फरिश्तों के?


अपने हाथों अपने ही घर में,काहें आग लगाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी.........।।


 


धरम-करम को ताख पे रख के,झूठे नाम कमाए तू,


बने रहे इंसान मगर शैतान को दिल में छुपाए तू।


काम बिगाड़ के जग में अपना,दर-दर ठोकर खाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी............।।


 


कल तक थी जो शोहरत तेरी,आज मिली वो पानी में,


नमो-निशाँ भी मिटा सब तेरा,अब क्या तेरी कहानी में।


बीज जो बोया नफ़रत का तो,प्यार कहाँ से पाए रे-


जैसी करनी वैसी भरनी...........।।


 


तुम्ही तो हो कारण ऐ मूरख, अपने सारे कष्टों के,


भगवान नहीं बच पाए यहाँ, तिकड़म से इन दुष्टों के।


अपने कर्मों से ही तुमने,अपीने चैन गवाएँ रे-


जैसी करनी वैसी भरनी,अब तू क्यों पछताए रे??


               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


संजय जैन

इश्क


न दिल मेरा लगता है


न मन मेरा लगता है।


हुआ है जब से इश्क


सब बेकार लगता है।


इसलिए तो इश्क एक 


बहुत बड़ा रोग होता है।


जिसे लग जाये वो


सदा बीमार रहता है।।


 


जमाने में हमने बहुत 


आशिक और दीवाने देखे।


जो बस एक ही धुनी


रमाते रहते है।


न जीते है न मरते है


अपने में खोये रहते है।


और इश्क को ही 


अपना मसीहा समझते है।।


 


डगर आसान नहीं होती


इश्क को करने वालो की।


बिछे है पग पग पर कांटे 


तो चुभन सहना पड़ेगा।


और अपने इश्क पर


दाग नहीं लगाने दूँगा।


और अपने प्यार को


अमर कर जाऊंगा।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


20/09/2020


एस के कपूर श्री हंस

 पापा आपकी देखा देखी ,


मम्मी पर हाथ उठाया है।।


 


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


घरआकर हमें हाथ मुँह धोना है।


जल्दी ही हमको फिर सोना है।।


कल हैं आन लाइन क्लासेस।


खेलना भी फिर हमें खिलौना है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


घर में बैठकर कहानी सुननी है।


बातें अच्छी वाली चुननी हैं।।


कॅरोना में बाहर खेलने नहीं जाना।


सीख दादी नानी की ही गुननी है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हो कॅरोना ,जाते बिना मास्क।


क्यों निकलते हो बाहर ,बिना टास्क।।


हमसे कहते सब्जी फल खाओ।


आप खुद नहीं पी रहे काढ़ा खास।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हमसे , मत बोलो कभी झूठ।


रोज़ बताते कि, मत जायो यूँ रूठ।।


फिर क्यों कहलवाते, घर पर नहीं हैं।


इससे सीख में ,आ जाता है खोट।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


कहते हमसे, मत झगडो आपस में।


मत बोलो गलत ,स्कूल से वापिस में।।


फिर साथ वालेअंकल से गुस्सा किया।


क्यों लड़े उनसें ,आप फिर आपस में।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


मम्मी पापा आप ही हमारी दुनिया हैं।


आप दोनों से ही हम मुन्ना मुनिया हैं।।


जो आज सिखायेंगे करेंगें कल वही।


यही सीधी सी बात की गुनिया है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


आप कहते नशा करना बुरी बात है।


कहते टीवी देखना आँखों आघात है।।


फिर क्यों दिन भर मोबाइल सिगरेट।


शराब पीते रहते आप दिन रात है।।


*पापा जल्दी घर आ जाना।।*


हमें भी पान खाने का शौक़ आया है।


हमनें भी सिगरेट कश आजमाया है।।


आपकी देखा देखी क्षमा करना।


आज मम्मी पर हाथ उठाया है।।


पापा जल्दी घर आ जाना।।


पापा जल्दी घर आ जाना।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


एस के कपूर श्री हंस

कभी नीम सी तो कभी


बहुत मीठी है जिंदगी।


मत ज्यादा उलझा कि


बहुत सीधी है जिंदगी।।


सुख दुःख धूप छाँव हर


किसी के जीवन में।


पूछ कर देखोगे हर किसी


की यहीआपबीती है जिंदगी।।


 


मत तमन्ना रख तू कोई


बड़ा ही खुदा बनने की।


बस आरजू हो अच्छे काम


और कुछ जुदा बनने की।।


यह जीवन सफल होगा


इंसान बनने की कोशिश में।


हर पल कोशिश हो बस


इंसानियत पे फिदा बनने की।।


 


जान लो कि एक मन को दूजे


मन से कुछ आशा होती है।


मित्रता व रिश्तों की यही इक


सही परिभाषा होती है।।


बिन कहे ही जान लें हम


दूजे के भीतर की व्यथा को।


हर रिश्ते में ही परस्पर यही


एक अभिलाषा होती है।।


 


जान लीजिए यह जीवन अर्थ


जीवन निर्माण का ही कदम है।


यही मिलकर बनता जाता युग


निर्माण का परम धरम है।।


हम बदलेंगे तो युग बदलेगा


यही एक है सच्चाई।


छिपा इसीमें सत्व युग निर्माण


का यही सच्चा मानव करम है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


राजेंद्र रायपुरी

शछोटी-छोटी बात पर, 


          करो नहीं तक़रार।


धीर-वीर गंभीर बनो, 


          करो सभी से प्यार।


 


चार दिनों की जिंदगी, 


         लड़ना है बेकार। 


बाॅ॑ट सको तो बाॅ॑ट दो, 


          सारे जग में प्यार।


 


तेरा- मेरा मत करो, 


          है सराय संसार।


जाना जिसको छोड़कर,


         रह दिन दो या चार।


 


संकटमोचन ही बनो,


            मत संकट आधार।


फॅ॑से हुए मझधार जो, 


             उन्हें लगाओ पार।


 


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता 

  बस बन जाये इंसान


समझौता पल पल जीवन से,


जब कर लेता है-इंसान।


अपनत्व नही बसता उसमें,


कैसे-बनता वो इंसान?


अपनत्वहीन जीवन में फिर,


कैसे-चल पाता धनवान?


स्वार्थ की धरती पर चल ,


बन जता वो तो शैतान।।


परमार्थ होता जीवन में,


यहाँ बन जाता भगवान।


भगवान न शैतान बने फिर,


बस बन जाये इंसान ।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता 


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे माँ शारदे वर दे


 


माँ शारदे सद विद्या बुद्धि दायनी,


स्वर को लय प्रदान कर दो,


सृजन अभिव्यक्ति से मुझे भर दो,


ज्ञान से मुझे पूरित कर दो माँ।


 


माँ शारदे तेरी शरण में आया हूँ,


तू ही जग तारिणी है माँ,


तुझ से आलोकित यह संसार है,


अपने आशीष का उपहार दे माँ।


 


मैं नित नित तेरा ध्यान करु माँ,


तेरा ही गुण गान करु मां,


सद मार्ग मिले हे माँ शारदे,


माँ तू वीणा की झंकार बजा दे।


 


हे दयामयि माँ शारदे,


पुण्य पथं प्रशस्त कर माँ,


तिमिर का तू नाश करती,


ज्योति का संसार दे -दे माँ।


 


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

, आलस को तू त्याग दे बंदे


 


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


तेरा निर्मल रूप,अनूप है


नहीं हाड मांस की काया


सब दिन होत न एक समान


जिंदगी बेकार न हो जाये


कैसे बैठे हो,आलस में बंदे


बातन बातन में,सब दिन खो रहा है


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


सोवत सोवत,उमर बीत गई


काल शीश पर,मंडरा रहा है


सुनहरा अवसर,चूक न जावे


बड़े भाग तू,मानुष तन पाया है


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


तेज भवर में फंस गई हैं, नैया


तू ही बता,अब कौन है खिवैया


देव देव आलसी पुकारे


सुकृत कर्म करो,बिनु स्वारथ के


बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है


जगत में जीवन है,चार दिनों का


आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार


नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

छठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6


 


सभ लइ जसुमति-रोहिनि संगा।


किसुनहिं धरि निज गोद उमंगा।।


    गउ कै पूँछि छुआवन लागी।


    अस उपाय करतै भय भागी।।


लइ गो-मूत्र कृष्न नहवावा।


सकल अंग गो-धूरि लगावा।।


    पुनि बारह अंगन महँ तासू।


     गोबर-लेपन कीन्ह उलासू।।


लइ-लइ 'केशव' प्रभु कै नामा।


रच्छा करउ सबहिं बलधामा।।


    संगहिं 'अंग न्यास'-'कर न्यासा'।


   ग्यारह बीज-मंत्र 'अज' बासा।।


कीन्ह आचमन गोपिन्ह तहवाँ।


'बीज न्यास' कृष्न करि जहवाँ।।


     'अज' प्रभु तव पगु रच्छा करिहैं।


      प्रभु 'मणिमान' घुटन तव रखिहैं।।


'यज्ञ पुरुष' जंघा-रखवारा।


'अच्युत' दैहैं कटि-बल सारा।।


     रच्छा उदर करहिं 'हयग्रीवा'।


     'केशव' हृदय-सुरच्छा लीवा।।


करिहैं 'सूर्य' कंठ कै रच्छा।


 'विष्णु' बाँह कहँ देहिं सुरच्छा।।


     'उरुक्रम' मुखहिं व 'ईश्वर' माथा।


     बालक कृष्न सुरछिहैं नाथा ।।


दोहा-बिबिध मंत्र अरु देव सभ,करिहैं रच्छा नाथ।


        ब्रज-गोपिहिं मिलि सभ कहहिं, करि अवनत निज माथ।।


             डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-13


 


धिक भाई तव बल-बुधि-ग्याना।


समुझि न सकत बहिन-अपमाना।।


     कस हम रहब नाक बिनु काना।


     रहि ना सकब खोइ पहिचाना।।


सुनि अस बाति बहिन- मुख रावन।


जरि-भुनि उठा जरै जस कानन ।।


     पूछा उठि दसकंधर भगिनी।


     मोंहि बता अस केकर करनी।।


कोसलेस दसरथ- सुत दोऊ।


मुख सुंदर बल केहरि होऊ।।


     जनु आखेट करन बन आए।


     तिन्हकर करनी मो नहिं भाए।।


चाहहिं जनु महि मुक्त-निसाचर।


पाइ तिनहिं मुनि फिरैं बिनू डर।।


    मैं तिन्ह पहँ यहि कारन गयऊ।


    बूझै मरम जहाँ ते रहऊ ।।


राम नाम दसरथ-सुत ज्येष्ठा।


स्यामल गात सुमुख कुल-श्रेष्ठा।।


     तेहि सँग तिसु पत्नी बड़ नीकी।


     सहस कोटि छबि रति कै फीकी।।


जानि मोंहि भगिनी तव ताता।


नाक-कान काटा लघु भ्राता।।


    खर-दूषन पहँ तब मैं जाई।


    तिनहिं ब्यथा निज मन बतलाई।।


खर-दूषन-त्रिसिरा अरु सेना।


लरे किंतु जुधि जीति सके ना।।


    राम मारि खर-दूषन-त्रिसिरा।


    बधे सबहिं जे इत-उत पसरा।।


खर-दूषन-त्रिसिरा-बध रावन।


सुनि भे क्रोधित औरु डरावन।।


सोरठा-भेजि बहिन समुझाइ,गया भवन निज रावनइ।


            सोइ न पाया जाइ,लखि निज भवन न भावनइ।।


                             डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                              9919446372


डॉ0 रामबली मिश्र

रोना छोड़ो


 


रोना छोड़ो।


मेरे प्यारे हँसते रहना।।


 


खोना छोड़ो।


मेरे प्यारे बीते रहना।।


 


सोना छोड़ो।


प्यारे सदा जागते रहना।।


 


ढोना छोड़ो।


हल्का बनकर चलते रहना।।


 


कोना छोड़ो।


सरपट धावक बनकर चलना।।


 


टोना छोड़ो।


धर्म पंथ पर चलते रहना।।


 


दोना छोड़ो।


करपात्री बन चलते रहना।।


 


'दो ना' छोड़ो ।


दाता बनकर देते रहना।।


 


'नू ना' छोड़ो।


स्वीकृति सबको देते रहना।।


 


धोना छोड़ो।


सबका प्रिय बन जीते रहना।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 रामबली मिश्र

अंतस्थल में है पड़ी, नैसर्गिक संपत्ति।


जिसके सफल प्रयोग से, जाती भाग विपत्ति।।


 


एक-एक से रत्न का, देखो सदा कमाल।


आत्म निवेदन प्रेम से ,जाती दूर विपत्ति।।


 


श्रद्धा अरु विश्वास से, खुश होते हैं ईश।


अंत:पुर की है यही, आध्यात्मिक संपत्ति।।


 


सच्चाई-ईमान का, करते रहना ख्याल।


इनके आगे टिक नहीं, सकती कभी विपत्ति।।


 


धर्म और सत्कर्म ही, सुंदर मन की सोच।


इन्हीं सुरक्षा कवच को, समझ मूल संपत्ति।।


 


मानव मूल्यों का करो, सत शिव शुभ उपयोग।


मानव मूल्य महान ही, जीवन की संपत्ति।।


 


नैतिकता इंसानियत ,ही जीवन के स्रोत।


मानव देव स्वरूप है, पा कर यह संपत्ति।।


 


मनसा वाचा कर्मणा, करते रह सहयोग।


सबसे उत्तम संपदा, है सहयोग-प्रवृत्ति।।


 


सुंदर-उत्तम सोच रख, गन्दे से रह दूर।


सुंदर भावों पर भला, कौन करे आपत्ति।।


 


दूषित चिंतन मत करो, यह विपत्ति का गेह।


पावन चिंतन -खनन में, है अद्भुत संपत्ति।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अष्टावक्र गीता-12


जग झूठा, तुम शुद्ध हो,करो ब्रह्म सँग योग।


बने न,अष्टावक्र कह,किसी से तव संयोग।।


 


विश्व-मूल है आत्मा,जैसे बुदबुद सिंधु।


करो ब्रह्म सँग मेल तुम,प्राप्त ज्ञान यह बंधु।।


 


नहीं विश्व वह जो दिखे,जैसे रज्जु न सर्प।


रखो योग तुम ब्रह्म से,होत बोध तज दर्प।।


 


सुख-दुख,जीवन-मृत्यु सम,आशा अरु नैराश्य।


रखकर भाव समान तुम,पाओ ब्रह्म उपास्य।।


               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446373


सुनीता असीम

लोग कहां पर ऐसे होंगे।


मिलजुल कर जो रहते होंगे।


 


इक दिन तो आए ऐसा भी।


रिश्ते गुड़ से मीठे होंगे।


 


हरियाली छाएगी हरसू।


दूर डगर से कांटे होंगे।


 


प्यार मिला जी भरकर उनको।


मात पिता ये कहते होंगे।


 


हसना देख ज़रा प्रेमी का।


प्रेम समझ कर रोते होंगे।


 


राह दिखाए सबको सच्ची।


रस्ते ऐसे होते होंगे।


 


जान लुटा दें सिर्फ वतन पर।


लोग वही तो भाते होंगे।


 


सुनीता असीम


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

प्रिय राग तजो कर मधुर मिलन


 


जीवन की सारी खुशियाँ ले,


पुष्पित प्रसून मुस्कान बनो।


नयी प्रगति नित कीर्ति लता में,


गन्धमाद सजन मन रंग भरो।


 


सरस मधुर जीवन्त सुधा प्रिय,


तुम जीवन मधु संगीत बनो।


नव प्रभात अरुणिम छाया बन,


प्रियतम दिल कानन रमण करो।


 


अभिलाष हृदय मुखचन्द्र ललित,


बन सोम प्रभा प्रिय चमन करो।


मधुमास हृदय कोमल किसलय,


सुष्मित सरोज सज सदा खिलो।


 


मुकुलित रसाल तरु सुन्दरतम,


अभिनव कोकिल स्वर गान करो।


अभिसार प्रियम राजीव नयन,


रति बाण मदन संधान करो। 


 


घरघोर घटा जल भींगा तन ,


भींगें बालें प्रिय गलहार बनो।


पीन पयोधर रस गागर बन,


चंचल यौवन मधुशाल बनो।


 


बन स्थूल हृदय साजन कबतक,


सखी शुष्क हृदय घनश्याम बनो।


हूँ पड़ी विरह अवसादित मन,


श्रावण भावन चितचोर बनो। 


 


रजनी गन्धा महकाऊँ तन,


निशिचन्द्र प्रभा उद्गार बनो।


विरही प्रिय लखि नभ तारा गण,


उपहास लाज प्रिय शमन करो।


 


सोलह शृङ्गारों में साजन,


हूँ सजी धजी सुखधाम बनो।


मधुश्रावण रस गुलज़ार मधुप,


सहला चितवन अभिराम बनो। 


 


मैं नव कोपल पाटल पादप,


नित स्नेह सलिल दिलवर सींचो।


प्रिय मूर्ति बना भज मन मन्दिर,


तज राग प्रियम शुभ दर्शन दो।


 


मैं प्रेमवशी कचनार कली,


खिल चारु कुसुम अरुणाभ बनो।


मनुहार प्रिया नैनाश्रु नयन,


करयुगल विनत उपहार बनो।  


 


सब कुछ अर्पण तन मन जीवन,


राधा मीरा गोपी समझो।


फँस जलप्लावन मँझधार प्रलय,


प्रिय प्रीति नाव पतवार बनो।


 


प्रिय राग तजो कर मधुर मिलन,


जूगनू बन निशि न तरसाओ।


विलसित निकुंज फिर प्रेमयुगल,


नवनीत प्रीत रस बरसाओ।   


 


नवगीत सृजन मनमीत सजन,


मन मोरमुकुट दिलराज बनो।


नव उषाकिरण फिर नवजीवन,


चिर स्वप्न प्रीत गुलज़ार करो।


 


डॉ.राम कुमार झा निकुंज


नवदिल्ली


निशा अतुल्य

शब्द सीढ़ी काव्य सृजन 


रंग,तरंग, अंतरंग, जलतरंग, अंग-प्रत्यंग


 


रंग इंद्रधनुषी बिखरे चहुँ ओर


नैनो ने नए ख़्वाब सजाए ।


 


तुमसे मिलने की ख़्वाईश 


मन में अज्जब तरंग जगाए।


 


अंतरंग भाव बतलाऊँ कैसे अपने


पिया तुम बिन सावन सूना जाए।


 


हिये में उठे शूल जलतरंग से


नैनन रात रात नीर बहाए।


 


विरह अग्नि साजन तुम बिन


अंग-प्रत्यंग मेरा धहकाए ।


 


निशा अतुल्य


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