काव्यकुल संस्थान(पंजी) की अमेरिका इकाई के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय डिजिटल काव्य आयोजन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय की अध्यक्षता और अमेरिका इकाई की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी के संयोजन/संचालन 20 सितम्बर को किया गया।
डॉ राजीव पाण्डेय ने संस्था का विस्तृत परिचय देते हुए सभी रचनाकारों का स्वागत किया।
झांसी भारत की सुमधुर कण्ठ की धनी सुश्री कुंती जी की वाणी वन्दना से प्रारम्भ काव्य समागम अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचा।
कनाडा से कवयित्री प्राची चतुर्वेदी रंधावा ने माँ की दोपहर कविता पढ़कर भाव विभोर कर दिया-
... खटती है पर थकती नहीं है, थकती है पर रूकती नहीं है,
माँ मेरी हर दिन पिरो कर कल मेरा बुनती रही है।
सुन दोपहर तू दो पहर जो और रुक जाती,
क्योकि माँ मेरी की हर सुबह बस खर्च हो जाती।
मास्को से बहुविधा विशेषज्ञ कोमल भावों की कवयित्री श्वेता सिंह"उमा" आज की विसंगतियों पर रचनापाठ किया तो तालियां स्वतः बज उठी
दरख़्तों से बिछड़ते पत्तों की सरसराहट तो देखो।
इंसान के ईमान में हो रही गिरावट तो देखो।
नवाज़िशें-करम पाने के लिए वो रिश्वत देता है ।
उसकी इबादत में ये ख़ुदगर्ज़ी की मिलावट तो देखो।
भारत से सर्वमङ्गला सोम की कविता 'किसी से' ने अनुपम संवेदना को व्यक्त किया
यूँ तो हम नज़रें चुराते नही किसे से
पर क्या करें कि अपनी अभी तक बनती नही किसे से,
शायद किसी को अपने आप पर भरोसा नही रहा,तभी अपना राज-ए-दिल बताते नहीं किसे से।
तरीकीयाँ हैं हर तरफ राह-ए-मुहब्बत में,लेकिन वफ़ा कि शम्मा जलती नहीं किसी से।
आशावादी कविता पढ़ते हुए भारत के कवि सुधीर आनन्द ने आशा का संचार कर दिया
अंधियारी रातों को रौशन करने के लिए
एक जलते दीपक का हौसला बड़ा होता है
दीपो की दीवाली से अमावस भी हारा होता है
बड़े शुरुआत की बड़ी जरूरत नहीं है सदा
एकल प्रयास से भी जीवन हरा होता है
लखनऊ भारत से वरिष्ठ कवयित्री साधना मिश्रा ने जब हिन्दी की प्रतिष्ठा की पंक्तियां पढ़कर वाहवाही बटोरी-
मां भारती के वैभव का गुण गान बने हिंदी
प्रत्येक भारतवासी का दिन मान बने हिंदी
सीखें कितनी हीभाषाएं,ना भूलें निज मातृभाषा
जाएं यदि विदेश भी ,तो सम्मान बने हिंदी ।
संयुक्त अरब अमीरात से हिंदी की प्राध्यापिका कहानीकार,कवयित्री ललिता मिश्रा ने नारी के गौरव की शानदार रचना पढ़ी तो वाह वाह अनायास ही स्वरों से निकलने लगा-
ऐ नारी !!!
जीवन के संधि पत्र पर ये तेरे हस्ताक्षर हैं
युगों युगों से संचित ये ,
प्रेम के संचालक है
बचपन में माँ बन तुने
आँचल की छाँव झुलाया था
सपनों के पंख लगा
तुने ही उड़ना सिखलाया था।
अबुधावी से अजीत झा ने समय की विसंगतियों पर करारा प्रहार करते हुए कविता का वाचन किया।
अपनों का अपनों से किनारा हो गया।
रिश्तों का पानी अब तो खारा हो गया।
झांसी की कवयित्री कुंती जी सुमधुर कण्ठ से कविता पढ़ते हुए सबका दिल जीत लिया-
हर स्त्री को बचाकर
रखना चाहिए अपने
पास कुछ ऐसा खास
जोआ सके उसके काम
आड़े वक्त के साथ
ठीक धरती की तरह
लौटाने की क्षमता के साथ
गन्दगी को भी ऊर्जा में बदलने की शक्ति के साथ
ताकि,जब भी कोई मिले
तो उसे लगे , कि उसने एक
उजाले की किरण को छुआ हे।
कार्यक्रम की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी ने 'जलती मशाल' जैसी सार्थक रचना पढ़कर सोचने पर विवश कर दिया।
चले चलो न डरना तुम,
आने वाली आँधी से
गर लड़खड़ाओ कभी जो
डटकर पैर जमाना तुम।
मत ढूँढ कोई बैसाखी,
दूजों के लंबे हाथों में
खुद जलो और रौशन हो,
एक जलती मशाल बन जाना तुम।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि डॉ राजीव पाण्डेय ने एक मुक्तक के माध्यम से राम की महिमा का गुणगान किया
राम को वन का गमन होना जरूरी था।
मंथरा का नाटकीय रोना जरूरी था।
राक्षसों से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए,
कैकेयी का कोप में सोना जरूरी था।
अमेरिका से मनीष कुमार गुप्ता ने पड़ाव कविता पढ़ी और वाहवाही बटोरी।
जब मन देता चंचलता को त्याग
खत्म हो जाती भागमभाग
शांति की शीतलता में
पनपती नहीं अधीरता की आग
पार हो जाते उफनते बहाव से
गुजरता है हर कोई इस पड़ाव से।
नोयडा भारत से युवा कवयित्री नेहा शर्मा ने आत्मविश्वास के साथ डर कविता पढ़ी -
मुझे अपने निडर होने का डर है,
मेरे बारे में ये , ना किसी को खब़र है।
मेरी खामोशी को कभी कमजोरी तो कभी समझदारी का पहना देते है चोगा,
ना जानते है इस चुप्पी को तोड़ने पर मंजर कैसा होगा।
अंत में कार्यक्रम की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी ने सभी का आभार प्रकट किया।
प्रस्तुति
डॉ राजीव पाण्डेय
कवि,कथाकार, हाइकुकार
राष्ट्रीय अध्यक्ष
काव्यकुल संस्थान(पंजी)