राजेंद्र रायपुरी

 राजनीति और नेता 


 


राजनीति अब हो रही, 


       ‌‌ इसीलिए बदनाम।


दो कौड़ी के जो नहीं, 


             लगते ऊॅ॑चे दाम।


 


नेताओं को तो लगे,


              राजनीति व्यापार।


कीमत दो पैसे नहीं, 


             लेते लेकिन चार।


 


क्या होगा इस देश का,


           सबसे बड़ा सवाल।


लूट मची है हर तरफ,


             नेता बने दलाल।


 


बिन पैसे के ये नहीं, 


            करते कोई काम।


निश्चित करके है रखा,


            सभी काम का दाम।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

साथी संग होते


सहते दर्द जीवन का साथी,


क्या-फिर तुमसे कुछ न कहते?


मिलते यहाँ जब तुमसे साथी,


क्यों-न तुमको अपना कहते?


आपनत्व की अभिलाषा संग ही,


फिर जीवन सपने सजाते।


करने साकार सपने अपने,


साथी पल-पल संग रहते।।


जागे जो सपनो से साथी,


फिर संग तुम ही तुम होते।


कितना भी दर्द हो जीवन में,


सहते साथी संग होते।


 


सुनील कुमार गुप्ता


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आईना कहता इंसा देखता


मुझमे चेहरा अपना।


तमाम दाग छुपा देता


चहरे का मैं आईना।।


 


चाँद कहता है दाग है


मुझमे फिर भी हुस्न का


नाज़ मैं चाँद मैं आईना।।


 


चाँद ख़ास अकिकत का


चाँद पूर्ण मै पूर्णिमा 


चौथ का चाँद का भाव भाव


 चौदहवी का चाँद हुस्न हैसियत का रुतबा।।


 


चाँद दूज का एकरार


ईद का चाँद यकीन एतबार


जहां अपना।


सावन सुहाने मौसम में


बादलों में पनाह ठाँव अपना।।


 


ठंडी हवा के झोकों में


जुल्फों का साया 


चाँद से चेहरे का सेहरा


अपना।।


 


रातों की तन्हाईओं में


चाँदनी चाँद का क्या 


कहना।


मेरी पूनम की रौशनी


में उठता सागर के दिल


की गहराई से इश्क का


तूफां जमाने में मोहब्बत


का जज्बा।।


 


दीवानों की नज़रों में मासूम


मासूका को नज़र आता हूँ


मैं चाँद जैसा चेहरा माँ बाप की औलाद का रौशन चाँद सा चेहरा।।


 


चाँद कहता है सुन आईना


तू तो दाग छुपा लेता इंसा


के तमाम इंसा का।।


 


पूछता तुझसे चेहरे का


सबब दिल की तरह नाज़ुक


आह आहट पर भी टूटता बिखरता।।


 


जमाने के संग संग चलता


जहाँ के गम खुशियों को


दुस्वारियों को झेलता जीता।।


 


बचपन से सुरूर का जूनून


कायनात अपना।।


 


आईना तू तो आपने पराये का


फर्क बतलाता दिल चहरे का


फर्क आईना।


 


चाँद मैं दुनियां में नफरतों


के फर्क से बेगाना इश्क 


मोहब्बत आशिकी का


तरन्नुम तराना मेरा दीवाना जमाना।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


दुर्गा प्रसाद नाग

मां से बड़ा न कोई जग में


 


मां से बड़ा न कोई जग में,


स्वार्थ टिके न इनके मग में!


गंगा- जमुना और कावेरी,


तीर्थ छिपे इनके पग पग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


संघर्षों में बीते जीवन......,


निर्मल गंगा सा मां का मन!


मां ही है, मेरा तन मन धन,


मोती,अनामिका के नग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


 


बच्चे को जब दूध पिलाती,


सच में अमृत पान कराती,!


बच्चों संग बच्ची बन जाती,


जैसे डोरी बंधी पतंग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा- खीरी


9839967711


दुर्गा प्रसाद नाग

श्याम सौभाग्य आंगन में आए मेरे,


मेरेे जीवन में फिर रोशनी आ गयी।


 


स्वागतम् स्वागतम् श्याम सौभाग्य का,


आपके आगमन से खुशी छा गयी।।


 


मेरे जीवन की बगिया थी सूनी पड़ी,


प्रीति के पुष्प उसमें सुकोमल खिले।


 


कितनी भक्ति व श्रद्धा से मांगा तुझे,


श्याम सौभाग्य तब कहीं जाकर मिले।।


 


मेरे जीवन का गहरा अंधेरा मिटा,


देखो चहुं ओर फिर रोशनी आ गयी।


 


स्वागतम् स्वागतम् श्याम सौभाग्य का,


आपके आगमन से खुशी छा गयी।।


 


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा - खीरी


डॉ. रामबली मिश्र

माँ सरस्वती याद रहें बस


 


याद रखो माँ को जीवन भर।


करो प्रार्थना हाथ जोड़कर।।


 


मन में ही उनको स्थापित कर।


अपना तन मन धन अर्पित कर।।


 


दूर न जाना पास में रहना।


अपनी सारी बातें कहना।।


 


 माँ का प्रेम पात्र बन जाना।


उनके आगे शीश झुकाना।।


 


शोक -कष्ट -दुःख वही काटतीं।


सदा भक्त को गले लगतीं।।


 


माँ चरणों का रज रख सिर पर।


नित वंदन कर अभिनंदन कर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


निशा अतुल्य

हिन्दी की जो बात करेंगे,


हिंदुस्तान पर राज करेंगे।


हमारी राज भाषा को,


हमारे राष्ट्र की भाष करेंगे ।


हर चेहरे की मुस्कान है,


हाँ हिन्दी आन बान शान है ।


हृदय से ले जन्म संस्कृत के ,


है चमकती भाल,बिंदी समान है ।


हम हिन्द के वासी है ,


हिन्दी हमारी पहचान है ।


 


निशा अतुल्य


संजय जैन

प्यारा हिंदुस्तान


है प्यार बहुत देश 


हमारा हिन्दुतान।


है संस्कृति इसकी 


सबसे निराली है।


कितनी जाती धर्म के, 


लोग रहते यहाँ पर।


सब को स्वत्रंता पूरी है, 


संविधान के अनुसार।।


कितना प्यार देश है 


हमारा हिंदुस्तान।


इसकी रक्षा करनी है 


आगे तुम सबको।।


 


कितने बलिदानों के 


बाद मिली है आज़ादी।


कितने वीर जवानों को 


हमने खो दिया।


गांधी सुभाष और भगत सिंह 


चढ़े इसकी बलि।


चंद्रशेखर और मंगल पांडेय 


हो गए शाहिद।


तब जाके हमको ये 


मिली है आज़ादी ।।


अब देखो नेताओ का 


ये नया हथकंडा,


आपास में बाट रहे 


अपने ही देश को ।।


 


इससे उन शहीदों को 


कैसे मिलेगा शुकुन।


जिन्होंने आज़ादी के 


लिए गमा दिया प्राण।


क्या उन सभी 


कुर्बानियां व्यर्थ जाएगी।


फिर से देश क्या 


गुलाम बन जायेगा।


यदि ऐसा अब हुआ तो 


सब खत्म हो जाएगा ।


भारत फिर से 


गुलाम बन जायेगा।


इसका सारा दोष देश के 


नेताओ को जाएगा।।


कितना प्यार देश है 


हमारा हिंदुस्तान ।


इसकी रक्षा करनी है 


आगे तुम सब को।।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

मन बंजारा (गीत-16/14)


नहीं ठहरता एक जगह पर,


सचमुच मन बंजारा है।


निरख कली की सुंदर छवि को-


जाता वह गुरु-द्वारा है।।


 


कभी चढ़े यह गिरि-शिखरों पर,


कभी सिंधु-तट जा ठहरे।


कभी खेत-खलिहानों से हो,


वन-हरीतिमा सँग लहरे।


पवन-वेग सी गति है इसकी-


मन चंचल जलधारा है।।


      सचमुच मन बंजारा है।।


 


मन विहंग सम डाल-डाल पर,


कसुमित पल्लव-छवि निरखे।


पुनि बन मधुकर विटप-पुष्प के,


मधुर पाग-मकरंद चखे।


पुनि हो हर्षित निरख रुचिर मुख-


गोरी का जो प्यारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


कभी दुखित हो मन यह रोता,


जब अपार संकट होता।


पर विवेक को मीत बनाकर,


धीरज कभी नहीं खोता।


रखकर ऊँचा सदा मनोबल-


मन तो कभी न हारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


मन अति चंचल चलता रहता,


जीवन-पथ पर इधर-उधर।


कभी हो कुंठित,कभी सजग हो,


बस्ती-बस्ती,नगर-नगर।


लाभ-हानि,यश-अपयश,सुख-दुख-


मन जय-हार-सहारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


कभी गगन-शिख तक ले जाता,


कभी रसातल दिखलाता।


कभी स्वप्न अति नूतन रचकर,


बलखाते यह ललचाता।


कभी कराए मधुर पान मन-


कभी स्वाद जो खारा है।।


       सचमुच मन बंजारा है।।


                  © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव

देखो छत्तीसगढ़ की देवियाँ


सारे जग में निराली।   


कोई गुफा में है विराजी


कोई पहाड़ जा बैठीं ।


कोई घने जंगल में सोहे


कोई मढ़िया साजी ।।


कोई किले में हुई स्थापित 


कोई महलों वाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ---------


 


डोंगरगढ़ में माँ बम्लेश्वरी


बिलाई माता धमतरी ।


दंतेवाड़ा प्रसिद्ध है 


माता हैं वहाँ दंतेश्वरी।। 


जो भी माँ के मंदिर पहुंचा 


मन्नत पूरी पा ली।।


देखो छत्तीसगढ़ ----------


 


चन्द्रपुर की चन्द्रहासिनी माँ


करती पूरण आस। 


रतनपुर की देवी महामाया 


पर सबका है विश्वास।। 


खाली गया न कोई दर से 


सबने पायी खुशहाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ------------


 


खल्लारी माँ,अंगारमोती 


शीतला माँ और कंकाली।


बूढ़ी माता जै गंगा मैया


सीतादेवी, माँ बंजारी।।


नवरातों में जोत जलाते


बोले ज्वारां बाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ------------


 


अन्न-धन्य मांग सिंदूर


देती है मैया। 


विपत् पड़े तो सबकी


खैती है नैया।। 


सीमा कहे सब जसगीत गाओ


और बजाओ शंख, ताली।।


देखो छत्तीसगढ़ -------------


     डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


      रायपुर छ. ग.


सुनीता असीम

लगे रहना सभी तुम उस खुदा की सिर्फ खिदमत में।


कभी आने न देना कुछ कमी उसकी इबादत में।


***


कयामत है सितमगर है इबादत है कज़ा भी है।


दिवानों को मिले जो ग़म लुटे फिर तो मुहब्बत में।


***


करें आदर सभी का वो अगर संस्कार मिलते हैं।


मिलेंगे ये सभी में बस पिता मां से विरासत में।


***


बना देती किसी को तो मिटा देती किसी को है।


बदलते रंग देखे हैं जमाने ने सियासत में।


***


जवानों को नहीं परवाह होती जान की अपनी।


करें कुर्बान अपना सब वतन की वो हिफाजत में।


***


सुनीता असीम


कालिका प्रसाद सेमवाल

मानव दानव बना हुआ है


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निर्जन पथ की मन्द पवन में


मुझको यह अहसास हुआ,


ऐसा लगा कि मुझे देख कर


एक फूल थोड़ा सा मुस्काया।


 


हँस कर वह फूल मुझसे बोला


क्या तुम सोच रहे हो भाई,


यह संसार नितान्त विकट है


यहां तो रहते है अन्यायी।


 


तृष्णा , लालच , राग-द्वेष का


यहाँ पड़ा रहता है नित डेरा,


दिन के उजाले में भी रहता है


अंधकार का घोर बसेरा।


 


भौतिक सुख की अभिलाषा में


होते रहते बड़े बड़े अत्याचार यहाँ,


दया धर्म है जिन लोगो में


बहुत कम लोग है ऐसे सज्जन।


 


आज मानव तो दानव बना हुआ है


पर तुम तो परोपकारी ही बनना,


मानवता के .लिए मात्र 


तुम मानव बनकर जीना मरना।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. रामबली मिश्र

शिक्षक दे बस शिष्य को, मन से सुंदर ज्ञान।


शिक्षक अपने धर्म से, बनता सदा महान।।


 


शिक्षक हो कर जो नहीं, करता शिक्षण-कर्म।


समझो वह नित कर रहा, पापाचार अधर्म।।


 


सहज समर्पण भाव से, शिक्षक महा सुजान।


अच्छे शिक्षक को मिलत, आजीवन सम्मान।।


 


पढिये और पढ़ाइये, यह शिक्षक का धर्म।


पढ़ता-लिखता है नहीं, जो वह करत अधर्म।।


 


शिक्षक पावन वृत्ति है,शिक्षक पावन भाव।


शिक्षक सुंदर धर्म है, शिक्षक दिव्य स्वभाव।।


 


शिक्षक बनना अति कठिन,वह तपसी विद्वान।


घोर तपस्या का सुखद, फल शिक्षक-भगवान।।


 


निष्ठा अरु कर्तव्य ही, शिक्षक का है धर्म।


कामचोर शिक्षक सदा, करता घोर अधर्म।।


 


कक्षा में जाते नहीं, राजनीति से प्रीति।


ऐसे शिक्षक कर रहे, सतत अधर्म अनीति।।


 


छिपी हुई है सर्जना, पढ़ना-लिखना काम।


सदा काम से काम जो, उस शिक्षक का नाम।।


 


छात्र हितैषी गुरु सदा, करता रोशन नाम।


अपना आसन सिद्ध कर, रचता सुंदर धाम।।


 


गुरु वशिष्ठ संदीपनी, का यह पावन स्थान।


हर शिक्षक सत्कर्म से, पा सकता सम्मान ।


 


शिक्षक बनना है अगर, अर्जन कर शिव ज्ञान।


गहन तपस्या से बनो, अति विनम्र विद्वान।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र

प्रेमाभिव्यक्ति


प्रेम प्रदर्शन का सभी,करें सहज सत्कार।


प्रेम रत्न धन -संपदा ,पर सबका अधिकार।।


 


सात्विक प्रेम बना रहे,सभी रहें खुशहाल।


कपहीनता है जहाँ, वहीं प्रेम का द्वार।।


 


जहाँ नकारे जा रहे, हों सब गंदे मूल्य।


वहीं प्रेम उद्भूत हो, दिखता सत साकार।।


 


छिपा हुआ है प्रेम में,अति आकर्षण शक्ति।


करते रहना प्रेम का, सुंदर साक्षात्कार।।


 


मीठी बोली निष्कपट, बोल करो मनुहार।


मीठे-मीठे वचन में ,छिपा महकता प्यार।।


 


ऐसी वाणी बोलिये, दे सबको आनंद।


अति आनंदक शव्द से, बहत प्रेम की धार।।


 


दिल की सारी प्रिति को ,देना खूब उड़ेल।


सराबोर हो सकल जग, पी हो तृप्त अपार।।


 


मत चूको बाँटो सदा, यह वितरण की चीज।


प्रेम गेह के द्वार पर, लगे सदा दरबार।।


 


मानुष हो करते रहो, सतत प्रेम का पाठ।


कदम-कदम पर प्रेम का, करते रहो प्रचार।।


 


प्रेम मंत्र का जाप कर, बन पण्डित विद्वान।


प्रेम ग्रंथ पढ़ता रहे ,यह सारा संसार।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव

      शब्द 


 


शब्दों में संसार बसा है 


शब्दों से ही शब्द कसा है। 


 


शब्द आकाश है, शब्द अवनि है 


शब्द वायु है और शब्द ध्वनि है।


 


शब्द ब्रम्ह है , शब्द तेज है 


शब्द मंत्र हैं, शब्द वेद है। 


 


शब्द भाव हैं, शब्द स्वर है


शब्द शांत हैं, शब्द मुखर है। 


 


शब्द सुधा है, शब्द जहर है


शब्द सागर है, शब्द लहर है। 


 


शब्द गति है, शब्द यति है 


शब्द शक्ति है, शब्द मति है। 


 


शब्द साज है, शब्द गीत है 


शब्द हार है, शब्द जीत है। 


 


शब्दों में संसार बसा है 


शब्दों में ही प्यार बसा है। 


 


    डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


       रायपुर छ. ग.


डॉ. रामबली मिश्र

मन को भाती अच्छी-सच्ची।


नहीं लुभाती गोली कच्ची।।


 


मन को जो प्रसन्न कर देता।


वही मनोरम दुःख हर लेता।।


 


जो करता है सदा मन-रमण।


गहो उसी की सतत नित शरण।।


 


प्रेम मनोरम अतिशय जानो।


रमण करो इसको पहचानो।।


 


जो मन हर ले वही मनोरम।


वही मनोहर अतिशय अनुपम।।


 


सबके मन को हरते रहना।


अति प्रिय पात्र सभी का बनना।।


 


रमना सीखो रहना सीखो।


परम मनोरम बनना सीखो।।


 


 बहुत मनोरम सुंदरता है।


उससे बढ़कर मानवता है।।


 


मानवता में नैतिकता है।


नैतिकता में सात्विकता है।।


 


सात्विकता में पावन ज्ञाना।


सहज मनोरम वेद पुराना।।


 


वेद-पुराणों को जो पढ़ता।


हृदयांगम कर मनहर लगता।।


 


खिलता जग में बना दिवाकर।


देता अमृत बना सुधाकर।।


 


लिखत मनोरम प्रिय रामायण।


दिखत मनोरम कर पारायण।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


सुषमा दीक्षित शुक्ला

जीवन किस ओर चला 


 


पल की सुधि में युग बीत गए,


 जाने जीवन किस ओर चला ।


 


 जिस पल से मन के मीत गए,


 जाने दर्पण किस ओर चला।


 


 प्रिय लाली चूनर तार-तार ,


जाने कंगन किस ओर चला ।


 


प्रियतम का अप्रतिम दुलार ,


मन बन जोगन किस ओर चला।


 


पल की सुधि में युग बीत गए ,


जाने जीवन किस ओर चला।


 


 जिस पल से मन के मीत गए,


 जाने दर्पण किस ओर चला ।


 


वह माँग सिंदूरी श्वेत हुई ,


जाने यौवन किस ओर चला।


 


 वह मीठी बातें प्रियतम की,


 वो मधुर मिलन किस ओर चला।


 


पल की सुधि मे युग बीत गये ,


जाने जीवन किस ओर चला ।


 


 जिस पल से मन के मीत गए ,


जाने दर्पण किस ओर चला ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


संजय जैन

कल्याण का पथ


छोड़कर सब कुछ अपना


शरण तुम्हारी आया हूँ।


अब अपनाओं या ठुकराओं


तुम्हें ही निर्णय करना है।


मेरी तो एक ही ख़्यास


गुरुवर तुम से है।


की अपने चरणों में


मुझे जगह तुम दे दो।।


 


किया बहुत काला गोरा


मैंने अपने जीवन में।


कमाया बहुत पैसा 


मैंने अपनी करनी से।


पर मुझको मिली नहीं


कभी भी मन में शांति।


जो तेरा दर्शन करके 


मिला मुझको जो शुकुन।।


 


ये दौलत और सौहरत


सभी कुछ बेकार है।


कमालो जितना भी तुम


अपने जीवन में यहाँ।


यही छोड़ जाओगें सारी


अपनी दौलत सौहरत को।


तेरे संग जाएंगे केवल 


तेरे किये गये कर्म।।


 


तेरे कर्मो के कारण ही


तुझे मिलेगा नया जन्म।


और अपनी करनी का


तुझे भोगना होगा फल।


यदि किया होगा तुमने


जीवन में कुछ दानधर्म।


तो अच्छी पर्याय पाओगें


फिर से लेकर मनुष्य जन्म।।


 


धर्म से बढक़र जीवन में


और कुछ होता ही नहीं।


धर्म पर चलने से तुमको


मिलेगा मुक्ति का पथ।


इसलिए समझ लो तुम


पैसा ही सब कुछ नहीं।


जीवन जीने का आनंद


धर्म ध्यान करने से मिलता।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन मुंबई


कुमकुम पंकज

शक्ति इतनी माँगती हूँ


 


राग शोषण के जला दूँ,


द्वैष अन्तर के मिटा दूँ,


दर्द मानव का निगल कर,


धार अमृत की पिला दूँ।


          शक्ति इतनी माँगती हूँ।


 


पंथ भूलों को दिखा दूँ,


शूल राहों के मिटा दूँ ,


नेह की गंगा बहाकर,


फूल शान्ति के खिला दूँ।


           शक्ति इतनी माँगती हूँ । 


 


रक्त में कर्तव्य घोलूँ,


विश्व शांति की बात बोलूँ,


निज हृदय कंचन कलश से,


शान्ति का अमृत उड़ेलूँ ।


           शक्ति इतनी माँगती हूँ।


 


             कुमकुम पंकज


               जिला गोण्डा


                     उ.प्र.


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चमन की कली जब मुक़म्मल खिली,


मस्त खुशबू से गुलशन गमकने लगा।


भनभनाते भ्रमर पा महक प्रीति की-


प्रेम का भाव दिल में दिये हैं जगा।।


 


मछलियाँ चंचला भी मचलने लगीं,


खुल परिंदों के पर फड़फड़ाने लगे।


एक सिहरन सी देती हवाएँ नरम-


उलझनों को तुरत मन से दीं हैं भगा।।


 


झूमता व्योम भी चाँद-तारों सहित,


है उतरता दिखे महि से मिलने गले।


मिटा दूरियाँ दरमियाँ अपनी सारी-


भूल शिक़वे-गिले बन के उसका सगा।।   


 


 नव पल्लवों से सँवर वन-विटप भी,


जानो देता सतत यह सन्देशा नया।


प्यारे,काटो नहीं,बस बसाओ हमें-


हैं हमीं तेरी दौलत,न देंगे दगा ।।


 


वादियों में भी हलचल बहारें करें,


बर्फ भी पा इन्हें लेती अँगड़ाइयाँ।


हो मुदित जल-प्रपातों से बहने लगें-


देख विरही हृदय ख़ुद को समझे ठगा।।


 


वनों-उपवनों-खेतों-खलिहानों में,


प्रकृति कामिनी-यौवना-नायिका।


हाथ में ले के अपने यह कहती फिरे-


ले लो पत्रक मेरा,प्रेम-रस से पगा।।


              डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

परहित हेतु संत दुःख सहते।


अति प्रसन्न फिर भी वे रहते।।


 


नहीं किसी से याचन करते।


शुभ वाक्यों का वाचन करते।।


 


नहीं किसी को कुछ देते हैं।


केवल पीड़ा हर लेते हैं।।


 


शीतलता का परिचय देते।


निष्कामना का विषय बनते।।


 


चन्दन की खुशबू बन जाते।


सबके मन को सदा लुभाते।।


 


काम-क्रोध का नाम नहीं है।


सिद्ध संत का ग्राम वहीं है।।


 


थोड़ा भोजन शयन बहुत कम।


आत्मतुष्ट संत शंकर सम।।


 


आत्मतोष का पंथ दिखाते।


आत्मज्ञान का ग्रन्थ पढ़ाते।।


 


इच्छाओं पर अंकुश रखते।


अमृत वाणी बोला करते।।


 


ब्रह्म क्षेत्र में विचरण करते।


नियमित शुद्ध आचरण करते।।


 


देते हैं उपदेश मनोरम।


अनुकरणीय सन्त अति अनुपम।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


सुनीता असीम

जो भूखे हैं ऐसे हजारों को देखो।


कभी ऐसे किस्मत के मारों को देखो।


 


बिगड़ते रहे हैं जो बन बनके अपने।


उबर डूबते उन विचारों को देखो।


 


सियासत में रेंगें सभी नाग बनके।


जहां वो रहें उन पिटारों को देखो।


 


भंवर को न देखो कज़ा से न डरना।


बचाएं तुम्हें उन किनारों को देखो।


 


जो अपने ही हाथों से घर तोड़ते हैं।


ज़रा नासमझ उन गंवारों को देखो।


 


सुनीता असीम


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

ठोड़ी पर तिल काला , नागिन से है नयन ,


लहराते शिरोधरा , काले काले बाल है।


 


काजल सजा है कोर , अधर रसीले लाल ,


आपका स्वरूप देख , हृद ये बेहाल है। 


 


पतले मंजुल ओष्ठ , कमल की पत्तियों से , 


टपका अनार से ज्यों , रस लाल लाल है।


 


मेनका व रंभा तेरे , रूप की है जूठन सी , 


रूप राशि देख तेरी , मन ये निढाल है।


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


गाँव दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब


डॉ. रामबली मिश्र

मद में चकनाचूर न होना।


अंधा बन प्रकाश मत खोना।।


 


बहुत भयानक मद को जानो।


मद को रोक इसे पहचानो।।


 


मद को समझो अपना दुश्मन।


मद से विचलित कभी न हो मन।।


 


मद को मित्रों खूब कुचलना।


इससे मत समझौता करना।।


 


प्रभुता पा कर नहीं मचलना।


प्रभुता को कुछ नहीं समझना।।


 


जो प्रभुता को शून्य समझता।


जग में महा पुरुष वह बनता।।


 


है मदान्धता अतिशय दुःखदा।


मद विहीन मानव शिव शुभदा।।


 


मद करता मानव को दुर्बल।


मद से रहित मनुज अति निर्मल।।


 


प्रभु बनकर मद कभी न करना।


प्रभुताई से नहीं लिपटना।।


 


सहज रहो प्रभुता को पा कर।


सबको खुश रख शीश झुकाकर।।


 


ऐंठन से कुछ नहीं मिलेगा।


अपना सीना सिर्फ जलेगा।।


 


मद का कभी प्रदर्शन मत कर।


अंधा बनकर नहीं चला कर।।


 


बनो करुण रस प्रभुता पा कर।


मिलो पास में सबके जा कर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


काव्यकुल संस्थान का अंतरराष्ट्रीय काव्योत्सव

काव्यकुल संस्थान(पंजी) की अमेरिका इकाई के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय डिजिटल काव्य आयोजन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय की अध्यक्षता और अमेरिका इकाई की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी के संयोजन/संचालन 20 सितम्बर को किया गया। 


डॉ राजीव पाण्डेय ने संस्था का विस्तृत परिचय देते हुए सभी रचनाकारों का स्वागत किया। 


झांसी भारत की सुमधुर कण्ठ की धनी सुश्री कुंती जी की वाणी वन्दना से प्रारम्भ काव्य समागम अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचा।


कनाडा से कवयित्री प्राची चतुर्वेदी रंधावा ने माँ की दोपहर कविता पढ़कर भाव विभोर कर दिया-


 


... खटती है पर थकती नहीं है, थकती है पर रूकती नहीं है,


माँ मेरी हर दिन पिरो कर कल मेरा बुनती रही है।


सुन दोपहर तू दो पहर जो और रुक जाती,


क्योकि माँ मेरी की हर सुबह बस खर्च हो जाती।


 


मास्को से बहुविधा विशेषज्ञ कोमल भावों की कवयित्री श्वेता सिंह"उमा" आज की विसंगतियों पर रचनापाठ किया तो तालियां स्वतः बज उठी


दरख़्तों से बिछड़ते पत्तों की सरसराहट तो देखो।


इंसान के ईमान में हो रही गिरावट तो देखो।


नवाज़िशें-करम पाने के लिए वो रिश्वत देता है ।


उसकी इबादत में ये ख़ुदगर्ज़ी की मिलावट तो देखो।


भारत से सर्वमङ्गला सोम की कविता 'किसी से' ने अनुपम संवेदना को व्यक्त किया


 


यूँ तो हम नज़रें चुराते नही किसे से


पर क्या करें कि अपनी अभी तक बनती नही किसे से,


शायद किसी को अपने आप पर भरोसा नही रहा,तभी अपना राज-ए-दिल बताते नहीं किसे से।


तरीकीयाँ हैं हर तरफ राह-ए-मुहब्बत में,लेकिन वफ़ा कि शम्मा जलती नहीं किसी से।


आशावादी कविता पढ़ते हुए भारत के कवि सुधीर आनन्द ने आशा का संचार कर दिया


अंधियारी रातों को रौशन करने के लिए


एक जलते दीपक का हौसला बड़ा होता है


दीपो की दीवाली से अमावस भी हारा होता है 


बड़े शुरुआत की बड़ी जरूरत नहीं है सदा


एकल प्रयास से भी जीवन हरा होता है


लखनऊ भारत से वरिष्ठ कवयित्री साधना मिश्रा ने जब हिन्दी की प्रतिष्ठा की पंक्तियां पढ़कर वाहवाही बटोरी-


मां भारती के वैभव का गुण गान बने हिंदी 


प्रत्येक भारतवासी का दिन मान  बने हिंदी


सीखें  कितनी हीभाषाएं,ना भूलें निज मातृभाषा 


जाएं यदि विदेश भी ,तो  सम्मान बने हिंदी ।


संयुक्त अरब अमीरात से हिंदी की प्राध्यापिका कहानीकार,कवयित्री ललिता मिश्रा ने नारी के गौरव की शानदार रचना पढ़ी तो वाह वाह अनायास ही स्वरों से निकलने लगा-


 


ऐ नारी !!!


 जीवन के संधि पत्र पर ये तेरे हस्ताक्षर हैं 


युगों युगों से संचित ये ,


प्रेम के संचालक है 


बचपन में माँ बन तुने 


आँचल की छाँव झुलाया था 


सपनों के पंख लगा 


तुने ही उड़ना सिखलाया था।


 


अबुधावी से अजीत झा ने समय की विसंगतियों पर करारा प्रहार करते हुए कविता का वाचन किया।


अपनों का अपनों से किनारा हो गया।


रिश्तों का पानी अब तो खारा हो गया।


 


 


झांसी की कवयित्री कुंती जी सुमधुर कण्ठ से कविता पढ़ते हुए सबका दिल जीत लिया-


हर स्त्री को बचाकर 


रखना चाहिए अपने 


पास कुछ ऐसा खास


जोआ सके उसके काम


आड़े वक्त के साथ


ठीक धरती की तरह 


लौटाने की क्षमता के साथ


गन्दगी को भी ऊर्जा में बदलने की शक्ति के साथ


ताकि,जब भी कोई मिले


तो उसे लगे , कि उसने एक


उजाले की किरण को छुआ हे।


कार्यक्रम की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी ने 'जलती मशाल' जैसी सार्थक रचना पढ़कर सोचने पर विवश कर दिया।


चले चलो न डरना तुम,


आने वाली आँधी से


गर लड़खड़ाओ कभी जो


डटकर पैर जमाना तुम।


मत ढूँढ कोई बैसाखी,


दूजों के लंबे हाथों में 


खुद जलो और रौशन हो,


एक जलती मशाल बन जाना तुम।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि डॉ राजीव पाण्डेय ने एक मुक्तक के माध्यम से राम की महिमा का गुणगान किया


राम को वन का गमन होना जरूरी था।


मंथरा का नाटकीय रोना जरूरी था।


राक्षसों से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए,


कैकेयी का कोप में सोना जरूरी था।


 


अमेरिका से मनीष कुमार गुप्ता ने पड़ाव कविता पढ़ी और वाहवाही बटोरी।


जब मन देता चंचलता को त्याग


खत्म हो जाती भागमभाग


शांति की शीतलता में 


पनपती नहीं अधीरता की आग


पार हो जाते उफनते बहाव से


गुजरता है हर कोई इस पड़ाव से।


 


नोयडा भारत से युवा कवयित्री नेहा शर्मा ने आत्मविश्वास के साथ डर कविता पढ़ी -


मुझे अपने निडर होने का डर है,


मेरे बारे में ये , ना किसी को खब़र है। 


मेरी खामोशी को कभी कमजोरी तो कभी समझदारी का पहना देते है चोगा,


ना जानते है इस चुप्पी को तोड़ने पर मंजर कैसा होगा।


 


अंत में कार्यक्रम की संयोजिका प्राची चतुर्वेदी ने सभी का आभार प्रकट किया।


 


प्रस्तुति 


डॉ राजीव पाण्डेय


कवि,कथाकार, हाइकुकार


राष्ट्रीय अध्यक्ष


काव्यकुल संस्थान(पंजी)


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