डॉ. रामबली मिश्र

चंदन बनकर जीते रहना


 


गम -हाला को पीते रहना।


चंदन बनकर जीते रहना।।


 


चारोंतरफ़ भुजंग खड़े हैं।


मत प्रभाव में इनके पड़ना।।


 


रहो मस्त परवाह किये बिन।


हो निश्चिंत विचरते रहना।।


 


दुष्टों की छाया से बचकर।


राह बनाते चलते रहना।।


 


नहीं छेड़ना कभी किसी को।


भारतीय संस्कृति को गहना।।


 


परेशान मत करो किसी को।


खुशबू बनकर जीते रहना।।


 


रहो कमल सा जग-सरिता में।


जल के चक्कर में मत पड़ना।।


 


खिलो विश्व में चमक गगन में।


नि:स्पृह भावों ही जगना।।


 


अपने में ही जीना सीखो।


खुद को अपना जगत समझना।।


 


बहुरंगी दुनिया को त्यागो।


सत्व रंग में रंगे थिरकना।।


 


करो प्रदर्शन सत्य मनोहर।


सबके मन को हरते रहना।।


 


खुशबू बनकर गंध विखेरो।


चंदन बनकर दिव्य गमकना।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र

मनबंजारा


 


बहुत रम्य है मन बंजारा।


करता भ्रमण सकल संसारा।।


मौज उड़ाता आजीवन है।


उड़ता जैसे प्रेम पवन है।।


मस्ताना अंदाज निराला।


पीने को आतुर मधु प्याला।।


सुंदरता का सहज पुजारी।


बातें करता प्यारी-प्यारी।।


यहाँ-वहाँ सर्वत्र घूमता।


प्रेम पात्र दिन-रात चूमता।।


नहीं किसी से कुछ कहता है।


सबका सबकुछ पा चलता है।।


अति स्वच्छंद सकल रस भोगी।


मायावी खुशहाल सुयोगी।।


अति चंचल अति मादक चितवन।


घुमा करता सारा वन-वन।।


इसको सुख-आनंद चाहिये।


धन वैभव अभिनन्द चाहिये।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


दयानन्द त्रिपाठी हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित "हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद" तेलंगाना के राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी ने प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र देकर किया सम्मानित

दयानन्द त्रिपाठी हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित "हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद" तेलंगाना के राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी ने प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र देकर किया सम्मानित



महराजगंज । हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद द्वारा उत्तर प्रदेश के जनपद महराजगंज के शिक्षक साहित्यकार दयानन्द त्रिपाठी को राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में प्रतिभाग लेने के उपलक्ष्य में प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित करते हुए इनके उज्जवल भविष्य की कामना भी करता है।


 


हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद के संयोजक और संस्थापक अध्यक्ष डॉ रियाज-उल अंसारी और संचालक डॉ विद्याधर जी ने बताया कि 20 सितम्बर को हुए राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी हिन्दी दिवस के अवसर पर मंच से देशभर के हिन्दी के पुरोधा ने जुड़कर मंच को गौरवान्वित किया। इसके साथ मंच ने 84 प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना भी करता है।


  


आप सबको बताते चलें हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद के मुख्य वक्ता श्री गिरीश्वर मिश्र पूर्व कुलपति महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ने हिन्दी विश्व और नई सदी की सांस्कृतिक चुनौतियां विषय पर सारगर्भित व्याख्यान से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया । तकनीकी विषय पर श्री विजय प्रभाकर नगरकर जी जो सेवानिवृत्त राजभाषा अधिकारी बीएसएनएल, महाराष्ट्र ने स्मार्ट फोन से स्मार्ट हिन्दी विषय पर तकनीकी जानकारियों को देते हुए अपना व्याख्यान दिया जिससे मंच से जुड़े सभी लोग लाभान्वित होते हुए तकनीकी जानकारियों के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त की। इसी क्रम में श्री ऋषभदेव शर्मा जी पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष द०भा०हि०प्र०स०, हैदराबाद सहित और तमाम मनीषीयों ने अपना सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया जो सभी के लिए हिन्दी विषय की महत्ता और समाजिक पकड़ पर विचार रखने का श्रेष्ठतम माध्यम है।


 


अन्त में संयोजक और संस्थापक अध्यक्ष डॉ रियाज-उल अंसारी जी ने अलमारी, साबुन, कप्तान, तंबाकू, तौलिया (टावेल)बाल्टी, कमरा, पिस्तौल, पादरी, गिरजा किस भाषा के शब्द हैं, बताइए तो जरा? ये पुर्तगाली भाषा से हिन्दी में आए हैं। यदि आप इनका प्रयोग करते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि आप पुर्तगाली शब्द बोलते हैं।उस्ताद, रेशम, जहान, चाकू, आदमी, गुलाब, चश्मा, बाग (बगीचा), दुकान, कलम, दोस्त, कारखाना, खरगोश, जमीन, रूमाल, साकी, सिपाही, सितार, शहर, रास्ता, सुराही,फारसी के शब्द हैं । साथ ही गरीब, अमीर, ईमानदार, इन शब्दों से भला कौन परिचित न होगा? और दुनिया, अदालत, किताब, दौलत, हुक्का, किस्सा और मालिक शब्दों का प्रयोग भला ऐसा कौन होगा जो न करता होगा? ये सभी अरबी भाषा के शब्द हैं। जो बहुधा हिन्दी प्रयोग में आते हैं। ऐसे तमाम शब्द हैं जो हिन्दी के बोलचाल में प्रयोग होते हैं। हिन्दी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद तेलंगाना, भारत ने हिन्दी को विश्व की भाषा बनाने के लिए बीड़ा उठाया लिया है । सबका अभिवादन और धन्यवाद ज्ञापित करते हुए राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी के समापन की घोषणा की।


नूतन लाल साहू

समस्या


कहते हैं, सागर की अपनी


    होती हैं, मर्यादा


    पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


दिनोदिन तांडव कर रहा है


वाणी भी मौन हो रहा है


कल्पना नहीं कर सकते है हम,समस्या


इतना विकराल रूप, क्यों ले रहा है


अब तक नहीं हिला था मै, पर


अब हिलना स्वाभाविक, हो गया है


यो न करते,प्रकृति से खिलवाड़, हम


तो टूट टूटकर,बिखरना न पड़ता हमे


कहते है,सागर की अपनी


     होती हैं मर्यादा


     पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


डुब गया,पलको में सपने


समस्या,हर पल तांडव कर रही हैं


लहर लहर बन,कहर बरपा रही है


सुख की आशा,हमने छोड़ दिया है


जब चाहा आघात कर रहा है


कलियुग में समस्या,इतना बढ़ गया है


कहते है,सागर की अपनी


     होती हैं मर्यादा


     पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


जब भी चाहा,विस्फोट कर दिया


चंदन सी प्यारी,भारत मां की माटी पर


लक्षण बता रहे हैं,युग के


धरती भी, डावा डोल हो रही है


कैसे चलाऊ, जीवन रथ को पथ पर


समस्या ही समस्या,दिख रहा है


कहते हैं, सागर की अपनी


      होती हैं मर्यादा


      पर समस्या तो


अमर्यादित हो गया है।


 


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-15


 


कह मरीच सुनु रावन भ्राता।


बैर राम सँग तुमहिं न भाता।।


     राम-लखन अतुलित बलधामा।


     बधि सुबाहु किय कौसिक-कामा।।


कीन्ह ताड़का बध ते तबहीं।


सर चढ़ाइ फेंके मों असहीं।।


     छिन भर मा मैं आयहुँ इहवाँ।


     सत जोजन जनु उड़ि तें तहवाँ।।


बैर-बियाहहि औरु मिताई।


समता करहु त होय भलाई।।


     रावन कहा सुनहु मारीचा।


     सिखा न मोंहि तू ऊँचा-नीचा।।


जदि तू कहा सुनउ नहिं मोरा।


तोर परान जगत बस थोरा।।


     थोरे मा समुझा मारीचा।


     रावन बड़ पापी अरु नीचा।


सुगति मृत्यु नहिं रावन-कर तें।


बड़ भल होय मरउँ प्रभु-सर तें।।


     अवसर पाइ राम कह सीता।


     सुनहु प्रिये मम जीवन-मीता।।


लछिमन अबहिं गयो बन माहीं।


कंद-मूल-फल आनय ताहीं।।


     बसहु अगिनि मा सीते तबतक।


     असुरन्ह बधि लौटहुँ मैं जबतक।।


नर-लीला अब बन मैं करऊँ।


पापी-अघी-निसाचर बधऊँ।।


दोहा-सीता कीन्ह प्रबेस तब,तुरत अगिनि बन माहिं।


         वहि स्वरूप,वहि रूप-रँग, पीछे छाँड़ि के ताहिं।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

छठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-8


 


स्तन-पान कराइ क माता।


पलना माहिं सुताय बिधाता।।


    निरखन लगीं जसोदा मैया।


    प्रमुदित मन जब सिसुहिं कन्हैया।।


बाबा नंद तहाँ तब आए।


गोपिन्ह सँग मथुरा तें धाए।।


    देखि पूतना भीम सरीरा।


    अचरज भे सबहीं गम्भीरा।।


अवसि इहाँ बसुदेवहिं रूपा।


जनम लियो जनु ऋषी अनूपा।।


    अस सभ कहन लगे ब्रजबासी।


     काटत अंग पूतना नासी।


रखि लकड़ी पे अंग-प्रत्यंगा।


दिए जरा सभ अंगहिं-अंगा।।


     धूम्र सुगंधित निकसन लागा।


      पुतना-तन तें जरत सुभागा।।


पिबत दूध तन भयो पुनीता।


पाइ क किसुनहिं मुख-अमरीता।।


     तुरत परम गति पाइ पूतना।


      सत्पुरुषहिं जग मिलई जितना।


प्रभु-पद-पंकज जे मन लागा।


जाके हृदय नाथ अनुरागा।।


     पाई उहहि अवसि सतधामा।


     निसि-दिन भजन करत प्रभु-नामा।।


ब्रह्मा-संकर बंदित चरना।


करहिं सुरच्छा जे उन्ह सरना।।


     प्रभु निज चरनहिं दाबि पूतना।


     पिए दूध तिसु जाइ न बरना।।


दियो परमगति ताहि अनूपा।


मिली सुगति जस मातुहिं रूपा।।


दोहा-कथा पूतना मोच्छई,अद्भुत, परम पुनीत।


         बालकृष्ण लीला इहइ, सुनि जन होंहिं अभीत।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

जय जय जय श्री हनुमान


संकट मोचन श्री हनुमान


मारूति नंदन असुर निकन्दन


जन मन रंजन भव भय भंजन।


 


हे राम दूत!पवन पूत!


शांति धर्म के अग्रदूत,


सत्य मार्ग के पथ प्रदर्शक


सत्य धर्म के तुम रक्षक।


 


दुष्टों के हो तुम संहारक


भक्तों के हो तुम रक्षक


करो अनाचार का दमन


जग का भय का ताप शमन।


 


भक्तजनों के प्रति पालक


दीनों के आनन्द प्रदायक,


दुष्टों के संहारक हो तुम


जय जय जय श्री हनुमान।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 निर्मला शर्मा

प्रातः वन्दना


हाथ जोड़ विनती करूँ,


धरूँ तिहारा ध्यान।


अब मोरी विनती सुनो,


परमब्रह्म परमात्म।


भ्रामक है जग मिथ्या ये,


नाशवान संसार।


मेरी जीवन नौका को,


अब पार लगाओ नाथ।


मन भँवरा सा उड़त फिरै,


मिलै न तेरा द्वार।


कैसे मोक्ष मिलेगा भगवन,


करो मेरा उद्धार।


माया मोह में डूबकर,


मनुज हुआ निस्सार।


किस विधि माया से बचै,


कोई ऐसा करो उपाय।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


राजेंद्र रायपुरी

 राजनीति और नेता 


 


राजनीति अब हो रही, 


       ‌‌ इसीलिए बदनाम।


दो कौड़ी के जो नहीं, 


             लगते ऊॅ॑चे दाम।


 


नेताओं को तो लगे,


              राजनीति व्यापार।


कीमत दो पैसे नहीं, 


             लेते लेकिन चार।


 


क्या होगा इस देश का,


           सबसे बड़ा सवाल।


लूट मची है हर तरफ,


             नेता बने दलाल।


 


बिन पैसे के ये नहीं, 


            करते कोई काम।


निश्चित करके है रखा,


            सभी काम का दाम।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

साथी संग होते


सहते दर्द जीवन का साथी,


क्या-फिर तुमसे कुछ न कहते?


मिलते यहाँ जब तुमसे साथी,


क्यों-न तुमको अपना कहते?


आपनत्व की अभिलाषा संग ही,


फिर जीवन सपने सजाते।


करने साकार सपने अपने,


साथी पल-पल संग रहते।।


जागे जो सपनो से साथी,


फिर संग तुम ही तुम होते।


कितना भी दर्द हो जीवन में,


सहते साथी संग होते।


 


सुनील कुमार गुप्ता


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आईना कहता इंसा देखता


मुझमे चेहरा अपना।


तमाम दाग छुपा देता


चहरे का मैं आईना।।


 


चाँद कहता है दाग है


मुझमे फिर भी हुस्न का


नाज़ मैं चाँद मैं आईना।।


 


चाँद ख़ास अकिकत का


चाँद पूर्ण मै पूर्णिमा 


चौथ का चाँद का भाव भाव


 चौदहवी का चाँद हुस्न हैसियत का रुतबा।।


 


चाँद दूज का एकरार


ईद का चाँद यकीन एतबार


जहां अपना।


सावन सुहाने मौसम में


बादलों में पनाह ठाँव अपना।।


 


ठंडी हवा के झोकों में


जुल्फों का साया 


चाँद से चेहरे का सेहरा


अपना।।


 


रातों की तन्हाईओं में


चाँदनी चाँद का क्या 


कहना।


मेरी पूनम की रौशनी


में उठता सागर के दिल


की गहराई से इश्क का


तूफां जमाने में मोहब्बत


का जज्बा।।


 


दीवानों की नज़रों में मासूम


मासूका को नज़र आता हूँ


मैं चाँद जैसा चेहरा माँ बाप की औलाद का रौशन चाँद सा चेहरा।।


 


चाँद कहता है सुन आईना


तू तो दाग छुपा लेता इंसा


के तमाम इंसा का।।


 


पूछता तुझसे चेहरे का


सबब दिल की तरह नाज़ुक


आह आहट पर भी टूटता बिखरता।।


 


जमाने के संग संग चलता


जहाँ के गम खुशियों को


दुस्वारियों को झेलता जीता।।


 


बचपन से सुरूर का जूनून


कायनात अपना।।


 


आईना तू तो आपने पराये का


फर्क बतलाता दिल चहरे का


फर्क आईना।


 


चाँद मैं दुनियां में नफरतों


के फर्क से बेगाना इश्क 


मोहब्बत आशिकी का


तरन्नुम तराना मेरा दीवाना जमाना।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


दुर्गा प्रसाद नाग

मां से बड़ा न कोई जग में


 


मां से बड़ा न कोई जग में,


स्वार्थ टिके न इनके मग में!


गंगा- जमुना और कावेरी,


तीर्थ छिपे इनके पग पग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


संघर्षों में बीते जीवन......,


निर्मल गंगा सा मां का मन!


मां ही है, मेरा तन मन धन,


मोती,अनामिका के नग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


 


बच्चे को जब दूध पिलाती,


सच में अमृत पान कराती,!


बच्चों संग बच्ची बन जाती,


जैसे डोरी बंधी पतंग में।।


 


मां से बड़ा न कोई जग में।


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा- खीरी


9839967711


दुर्गा प्रसाद नाग

श्याम सौभाग्य आंगन में आए मेरे,


मेरेे जीवन में फिर रोशनी आ गयी।


 


स्वागतम् स्वागतम् श्याम सौभाग्य का,


आपके आगमन से खुशी छा गयी।।


 


मेरे जीवन की बगिया थी सूनी पड़ी,


प्रीति के पुष्प उसमें सुकोमल खिले।


 


कितनी भक्ति व श्रद्धा से मांगा तुझे,


श्याम सौभाग्य तब कहीं जाकर मिले।।


 


मेरे जीवन का गहरा अंधेरा मिटा,


देखो चहुं ओर फिर रोशनी आ गयी।


 


स्वागतम् स्वागतम् श्याम सौभाग्य का,


आपके आगमन से खुशी छा गयी।।


 


 


दुर्गा प्रसाद नाग


नकहा - खीरी


डॉ. रामबली मिश्र

माँ सरस्वती याद रहें बस


 


याद रखो माँ को जीवन भर।


करो प्रार्थना हाथ जोड़कर।।


 


मन में ही उनको स्थापित कर।


अपना तन मन धन अर्पित कर।।


 


दूर न जाना पास में रहना।


अपनी सारी बातें कहना।।


 


 माँ का प्रेम पात्र बन जाना।


उनके आगे शीश झुकाना।।


 


शोक -कष्ट -दुःख वही काटतीं।


सदा भक्त को गले लगतीं।।


 


माँ चरणों का रज रख सिर पर।


नित वंदन कर अभिनंदन कर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


निशा अतुल्य

हिन्दी की जो बात करेंगे,


हिंदुस्तान पर राज करेंगे।


हमारी राज भाषा को,


हमारे राष्ट्र की भाष करेंगे ।


हर चेहरे की मुस्कान है,


हाँ हिन्दी आन बान शान है ।


हृदय से ले जन्म संस्कृत के ,


है चमकती भाल,बिंदी समान है ।


हम हिन्द के वासी है ,


हिन्दी हमारी पहचान है ।


 


निशा अतुल्य


संजय जैन

प्यारा हिंदुस्तान


है प्यार बहुत देश 


हमारा हिन्दुतान।


है संस्कृति इसकी 


सबसे निराली है।


कितनी जाती धर्म के, 


लोग रहते यहाँ पर।


सब को स्वत्रंता पूरी है, 


संविधान के अनुसार।।


कितना प्यार देश है 


हमारा हिंदुस्तान।


इसकी रक्षा करनी है 


आगे तुम सबको।।


 


कितने बलिदानों के 


बाद मिली है आज़ादी।


कितने वीर जवानों को 


हमने खो दिया।


गांधी सुभाष और भगत सिंह 


चढ़े इसकी बलि।


चंद्रशेखर और मंगल पांडेय 


हो गए शाहिद।


तब जाके हमको ये 


मिली है आज़ादी ।।


अब देखो नेताओ का 


ये नया हथकंडा,


आपास में बाट रहे 


अपने ही देश को ।।


 


इससे उन शहीदों को 


कैसे मिलेगा शुकुन।


जिन्होंने आज़ादी के 


लिए गमा दिया प्राण।


क्या उन सभी 


कुर्बानियां व्यर्थ जाएगी।


फिर से देश क्या 


गुलाम बन जायेगा।


यदि ऐसा अब हुआ तो 


सब खत्म हो जाएगा ।


भारत फिर से 


गुलाम बन जायेगा।


इसका सारा दोष देश के 


नेताओ को जाएगा।।


कितना प्यार देश है 


हमारा हिंदुस्तान ।


इसकी रक्षा करनी है 


आगे तुम सब को।।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

मन बंजारा (गीत-16/14)


नहीं ठहरता एक जगह पर,


सचमुच मन बंजारा है।


निरख कली की सुंदर छवि को-


जाता वह गुरु-द्वारा है।।


 


कभी चढ़े यह गिरि-शिखरों पर,


कभी सिंधु-तट जा ठहरे।


कभी खेत-खलिहानों से हो,


वन-हरीतिमा सँग लहरे।


पवन-वेग सी गति है इसकी-


मन चंचल जलधारा है।।


      सचमुच मन बंजारा है।।


 


मन विहंग सम डाल-डाल पर,


कसुमित पल्लव-छवि निरखे।


पुनि बन मधुकर विटप-पुष्प के,


मधुर पाग-मकरंद चखे।


पुनि हो हर्षित निरख रुचिर मुख-


गोरी का जो प्यारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


कभी दुखित हो मन यह रोता,


जब अपार संकट होता।


पर विवेक को मीत बनाकर,


धीरज कभी नहीं खोता।


रखकर ऊँचा सदा मनोबल-


मन तो कभी न हारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


मन अति चंचल चलता रहता,


जीवन-पथ पर इधर-उधर।


कभी हो कुंठित,कभी सजग हो,


बस्ती-बस्ती,नगर-नगर।


लाभ-हानि,यश-अपयश,सुख-दुख-


मन जय-हार-सहारा है।।


     सचमुच मन बंजारा है।।


 


कभी गगन-शिख तक ले जाता,


कभी रसातल दिखलाता।


कभी स्वप्न अति नूतन रचकर,


बलखाते यह ललचाता।


कभी कराए मधुर पान मन-


कभी स्वाद जो खारा है।।


       सचमुच मन बंजारा है।।


                  © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव

देखो छत्तीसगढ़ की देवियाँ


सारे जग में निराली।   


कोई गुफा में है विराजी


कोई पहाड़ जा बैठीं ।


कोई घने जंगल में सोहे


कोई मढ़िया साजी ।।


कोई किले में हुई स्थापित 


कोई महलों वाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ---------


 


डोंगरगढ़ में माँ बम्लेश्वरी


बिलाई माता धमतरी ।


दंतेवाड़ा प्रसिद्ध है 


माता हैं वहाँ दंतेश्वरी।। 


जो भी माँ के मंदिर पहुंचा 


मन्नत पूरी पा ली।।


देखो छत्तीसगढ़ ----------


 


चन्द्रपुर की चन्द्रहासिनी माँ


करती पूरण आस। 


रतनपुर की देवी महामाया 


पर सबका है विश्वास।। 


खाली गया न कोई दर से 


सबने पायी खुशहाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ------------


 


खल्लारी माँ,अंगारमोती 


शीतला माँ और कंकाली।


बूढ़ी माता जै गंगा मैया


सीतादेवी, माँ बंजारी।।


नवरातों में जोत जलाते


बोले ज्वारां बाली।। 


देखो छत्तीसगढ़ ------------


 


अन्न-धन्य मांग सिंदूर


देती है मैया। 


विपत् पड़े तो सबकी


खैती है नैया।। 


सीमा कहे सब जसगीत गाओ


और बजाओ शंख, ताली।।


देखो छत्तीसगढ़ -------------


     डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


      रायपुर छ. ग.


सुनीता असीम

लगे रहना सभी तुम उस खुदा की सिर्फ खिदमत में।


कभी आने न देना कुछ कमी उसकी इबादत में।


***


कयामत है सितमगर है इबादत है कज़ा भी है।


दिवानों को मिले जो ग़म लुटे फिर तो मुहब्बत में।


***


करें आदर सभी का वो अगर संस्कार मिलते हैं।


मिलेंगे ये सभी में बस पिता मां से विरासत में।


***


बना देती किसी को तो मिटा देती किसी को है।


बदलते रंग देखे हैं जमाने ने सियासत में।


***


जवानों को नहीं परवाह होती जान की अपनी।


करें कुर्बान अपना सब वतन की वो हिफाजत में।


***


सुनीता असीम


कालिका प्रसाद सेमवाल

मानव दानव बना हुआ है


********************


निर्जन पथ की मन्द पवन में


मुझको यह अहसास हुआ,


ऐसा लगा कि मुझे देख कर


एक फूल थोड़ा सा मुस्काया।


 


हँस कर वह फूल मुझसे बोला


क्या तुम सोच रहे हो भाई,


यह संसार नितान्त विकट है


यहां तो रहते है अन्यायी।


 


तृष्णा , लालच , राग-द्वेष का


यहाँ पड़ा रहता है नित डेरा,


दिन के उजाले में भी रहता है


अंधकार का घोर बसेरा।


 


भौतिक सुख की अभिलाषा में


होते रहते बड़े बड़े अत्याचार यहाँ,


दया धर्म है जिन लोगो में


बहुत कम लोग है ऐसे सज्जन।


 


आज मानव तो दानव बना हुआ है


पर तुम तो परोपकारी ही बनना,


मानवता के .लिए मात्र 


तुम मानव बनकर जीना मरना।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. रामबली मिश्र

शिक्षक दे बस शिष्य को, मन से सुंदर ज्ञान।


शिक्षक अपने धर्म से, बनता सदा महान।।


 


शिक्षक हो कर जो नहीं, करता शिक्षण-कर्म।


समझो वह नित कर रहा, पापाचार अधर्म।।


 


सहज समर्पण भाव से, शिक्षक महा सुजान।


अच्छे शिक्षक को मिलत, आजीवन सम्मान।।


 


पढिये और पढ़ाइये, यह शिक्षक का धर्म।


पढ़ता-लिखता है नहीं, जो वह करत अधर्म।।


 


शिक्षक पावन वृत्ति है,शिक्षक पावन भाव।


शिक्षक सुंदर धर्म है, शिक्षक दिव्य स्वभाव।।


 


शिक्षक बनना अति कठिन,वह तपसी विद्वान।


घोर तपस्या का सुखद, फल शिक्षक-भगवान।।


 


निष्ठा अरु कर्तव्य ही, शिक्षक का है धर्म।


कामचोर शिक्षक सदा, करता घोर अधर्म।।


 


कक्षा में जाते नहीं, राजनीति से प्रीति।


ऐसे शिक्षक कर रहे, सतत अधर्म अनीति।।


 


छिपी हुई है सर्जना, पढ़ना-लिखना काम।


सदा काम से काम जो, उस शिक्षक का नाम।।


 


छात्र हितैषी गुरु सदा, करता रोशन नाम।


अपना आसन सिद्ध कर, रचता सुंदर धाम।।


 


गुरु वशिष्ठ संदीपनी, का यह पावन स्थान।


हर शिक्षक सत्कर्म से, पा सकता सम्मान ।


 


शिक्षक बनना है अगर, अर्जन कर शिव ज्ञान।


गहन तपस्या से बनो, अति विनम्र विद्वान।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र

प्रेमाभिव्यक्ति


प्रेम प्रदर्शन का सभी,करें सहज सत्कार।


प्रेम रत्न धन -संपदा ,पर सबका अधिकार।।


 


सात्विक प्रेम बना रहे,सभी रहें खुशहाल।


कपहीनता है जहाँ, वहीं प्रेम का द्वार।।


 


जहाँ नकारे जा रहे, हों सब गंदे मूल्य।


वहीं प्रेम उद्भूत हो, दिखता सत साकार।।


 


छिपा हुआ है प्रेम में,अति आकर्षण शक्ति।


करते रहना प्रेम का, सुंदर साक्षात्कार।।


 


मीठी बोली निष्कपट, बोल करो मनुहार।


मीठे-मीठे वचन में ,छिपा महकता प्यार।।


 


ऐसी वाणी बोलिये, दे सबको आनंद।


अति आनंदक शव्द से, बहत प्रेम की धार।।


 


दिल की सारी प्रिति को ,देना खूब उड़ेल।


सराबोर हो सकल जग, पी हो तृप्त अपार।।


 


मत चूको बाँटो सदा, यह वितरण की चीज।


प्रेम गेह के द्वार पर, लगे सदा दरबार।।


 


मानुष हो करते रहो, सतत प्रेम का पाठ।


कदम-कदम पर प्रेम का, करते रहो प्रचार।।


 


प्रेम मंत्र का जाप कर, बन पण्डित विद्वान।


प्रेम ग्रंथ पढ़ता रहे ,यह सारा संसार।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


डाॅ. सीमा श्रीवास्तव

      शब्द 


 


शब्दों में संसार बसा है 


शब्दों से ही शब्द कसा है। 


 


शब्द आकाश है, शब्द अवनि है 


शब्द वायु है और शब्द ध्वनि है।


 


शब्द ब्रम्ह है , शब्द तेज है 


शब्द मंत्र हैं, शब्द वेद है। 


 


शब्द भाव हैं, शब्द स्वर है


शब्द शांत हैं, शब्द मुखर है। 


 


शब्द सुधा है, शब्द जहर है


शब्द सागर है, शब्द लहर है। 


 


शब्द गति है, शब्द यति है 


शब्द शक्ति है, शब्द मति है। 


 


शब्द साज है, शब्द गीत है 


शब्द हार है, शब्द जीत है। 


 


शब्दों में संसार बसा है 


शब्दों में ही प्यार बसा है। 


 


    डाॅ. सीमा श्रीवास्तव 


       रायपुर छ. ग.


डॉ. रामबली मिश्र

मन को भाती अच्छी-सच्ची।


नहीं लुभाती गोली कच्ची।।


 


मन को जो प्रसन्न कर देता।


वही मनोरम दुःख हर लेता।।


 


जो करता है सदा मन-रमण।


गहो उसी की सतत नित शरण।।


 


प्रेम मनोरम अतिशय जानो।


रमण करो इसको पहचानो।।


 


जो मन हर ले वही मनोरम।


वही मनोहर अतिशय अनुपम।।


 


सबके मन को हरते रहना।


अति प्रिय पात्र सभी का बनना।।


 


रमना सीखो रहना सीखो।


परम मनोरम बनना सीखो।।


 


 बहुत मनोरम सुंदरता है।


उससे बढ़कर मानवता है।।


 


मानवता में नैतिकता है।


नैतिकता में सात्विकता है।।


 


सात्विकता में पावन ज्ञाना।


सहज मनोरम वेद पुराना।।


 


वेद-पुराणों को जो पढ़ता।


हृदयांगम कर मनहर लगता।।


 


खिलता जग में बना दिवाकर।


देता अमृत बना सुधाकर।।


 


लिखत मनोरम प्रिय रामायण।


दिखत मनोरम कर पारायण।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


सुषमा दीक्षित शुक्ला

जीवन किस ओर चला 


 


पल की सुधि में युग बीत गए,


 जाने जीवन किस ओर चला ।


 


 जिस पल से मन के मीत गए,


 जाने दर्पण किस ओर चला।


 


 प्रिय लाली चूनर तार-तार ,


जाने कंगन किस ओर चला ।


 


प्रियतम का अप्रतिम दुलार ,


मन बन जोगन किस ओर चला।


 


पल की सुधि में युग बीत गए ,


जाने जीवन किस ओर चला।


 


 जिस पल से मन के मीत गए,


 जाने दर्पण किस ओर चला ।


 


वह माँग सिंदूरी श्वेत हुई ,


जाने यौवन किस ओर चला।


 


 वह मीठी बातें प्रियतम की,


 वो मधुर मिलन किस ओर चला।


 


पल की सुधि मे युग बीत गये ,


जाने जीवन किस ओर चला ।


 


 जिस पल से मन के मीत गए ,


जाने दर्पण किस ओर चला ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


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