सुरेश लाल श्रीवास्तव
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर-अम्बेडकर नगर
(उ०प्र०) 224122
मो०न०- 9415789969
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स्थायी पता:-
ग्राम-शिवपुर गयासपुर
पो० गयासपुर (किद्दौद्दा)
जिला-अम्बेडकर नगर
पिन कोड - 224155
जीवन का मुख्य उद्देश्य:-
सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों की सरोकारिता पर आधारित मेरी ये रचनाएं हैं।
गद्य एवं काव्य दोनों विधाओं के अतिरिक्त समाचार पत्रों में सम्पादकीय लेखन मेरे द्वारा किया जाता है।
--------ईश-वन्दना-------
दया कर दयानिधि मुझे ये दुआ दो,
कि परहित में अपना जीवन लगा दूँ।
नहीं चाहिए मुझको दौलत-खज़ाना,
नहीं चाहिए बहु व्यंजन का खाना ।
रहे जीवन सादा विचारों में दम हो,
निर्धन की सेवा में जीवन निरत हो।।
दया कर दयानिधि-------
कि परहित में------------
करूँ जो कमाई निष्ठा लगन से,
औरों की सेवा में समर्पित हो मन से।
हो पापों से दूरी मन में खुशी हो,
सुकर्मों की इच्छा हमेशा प्रबल हो।।
दया कर दयानिधि----------
कि परहित में---------------
यही प्रार्थना है मेरे ईश तुमसे,
सकल जन धरा के रहें दूर गम से।
मिले गम मुझे तो नहीं कोई गम हो,
जीवन सफर चाहे जितना भी कम हो।।
दया कर दयानिधि--------------
कि परहित में -----------------------
मैं जब तक रहूं मेरी इच्छा है प्रभुवर,
धरा को सजाऊँ लगाके मैं तरुवर।
न जीने की चिंता न मरने का गम हो,
मगर कर्म नेकी का किंचिद न कम हो।।
दया कर दयानिधि----------------
कि परहित में--------------------
मुझे निसि व वासर रहे ध्यान तेरा,
अहम मेरे मन में लगाये न फेरा।
करूँ मातृ सेवा पिता में हृदय हो,
मनोकर्म मेरे पावन प्रबल हों।।
दया कर दयानिधि---------------
कि परहित में--------------------
------------सुरेश लाल श्रीवास्तव---
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश
हे तात! तुम्हें हम याद करें
आशाओं के दीप जला,
अर्चन की पूजा-थाली ले।
हे तात! तुम्हें हम याद करें,
आ जाओ मेरे मन-मन्दिर में।।
तेरे पथ पर हो मेरा पथशीलन,
ये चाहत मेरे दिल की है ।
जो चाहा वह पाया तुमसे,
हर इच्छा पूरी तुमसे है।।
जब कठिन समस्या आती है,
कोई निदान नहि सूझता है।
तब पिता मेरे माली बनकर,
संकट से मुझे बचाते हैं ।।
है याद मुझे वह सब बातें,
दुःख के दिन थे कितने आते।
धर धीर नीर नयनों में छिपा ,
कैसे गुजरी दिन व रातें ।।
थी तंग गृहस्थी की पीड़ा,
बीमारी भी कुछ कम न थी।
विचलित न हुए तुम संकट से,
धीरता तुम्हारी ऐसी थी ।।
यादें असीम दिल में रमती,
सब यादों में तुम रमते हो।
ये यादें उर में वास करें,
यादों में तेरा वास जो हो।।
खेतों में खलिहानों में,
बाजारों में घर-आंगन में।
तुम जहाँ चले मैं वहीं चला,
तेरे साथ रहा मैं रातों में।।
तेरी सूरत की मूरत न बनी,
ये कसक आज भी दिल में रहे।
हर सूरत में इस सूरत की,
मूरत मेरे दिल उमें वास करे।।
कर्मों की कठिन तपस्या से,
घर और गृहस्थी सही किये।
निज ज्ञान बुद्धि बल से तूने,
क्या क्या न किये जब तक थे जिये।।
खेती और किसानी से,
जो यत्न किये थे पिता मेरे।
उससे घर की स्थिति सुधरी,
खुशियां आई थीं जीवन में।।
श्रम-साधित जीवन की खुशियां,
अत्यल्प रहीं मेरे चाचा की।
प्रौढ़ काल में स्वांस रोग,
लाचारी बनी मेरे चाचा की।।
दुःख भरी कहानी को तूने,
सुख अर्थ सुनाये थे मुझसे।
संवेदित हो सुत इस दुःख से,
पितु मर्म को माना मैं दिल से।।
निज पिता के जीवन कष्टों की,
प्रतिमूर्ति समाई उर में मेरे।
बनकर प्रेरक जीवन पथ का,
जो राह सुझाये आप मुझे।।
निज तात के जीवन दर्शन ही,
मेरा जीवन दर्शन होवे।
जो सबक उन्होंने सिखलायी,
उस पर चलना मकसद होवे।।
सूखी रोटी टूटी खाटें,
जो नहीं बिछौना तो भी क्या?
घर की दीवारें गिरी-पड़ीं,
जो नहीं किताबें तो भी क्या?
बाधाओं से न मुख मोड़ो,
जो सही उसे करके छोड़ो।
पथ विचलन से न रिश्ता हो,
पथशीलन का अनुकूलन हो।।
सारी सुविधाओं के होते,
यदि आगे बढ़े तो तेरा क्या?
पथ आप प्रशस्त करे जो खुद,
उसके जीवन जैसा है क्या?
राहों पर राही जो हैं चलते,
खुद राह सृजन नहीं करते।
ऐसे लीक के अनुगामी,
इतिहास सृजित नहीं करते।।
महनीय कर्म तो उनका है,
जो स्वयं राह सृजन करते।
इतिहास उन्हीं के लिए बना,
जो जीवन में कुछ अलग करते।।
जीवन की मूल जरूरत को,
अपने श्रम से तुम प्राप्त करो।
शुभ कर्मों से, सुविचारों से,
निज जीवन में तुम मान भरो।।
तुम मदद करो, लो मदद नहीं,
कर्मों का ऐसा विधान करो।
सच्चे जीवन का सबक यही,
इससे जीवन में रंग भरो।।
-------सुरेश लाल श्रीवास्तव-----
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश
सावन मनभावन
मनभावन सावन आते ही,
भू-छटा मनोरम होती है ।
अति हरे-भरे परिधानों से,
यह धरा रम्य हो जाती है।।
खग कलरव से वन उपवन की,
चारुता अधिक बढ़ जाती है ।
गुड़हल-कनेर के पुष्पों की,
शोभा अति न्यारी लगती है ।।
जल भरे खेत को देख -देख,
खुश कृषक अधिक हो जाते हैं।
गांव-गांव के नर - नारी मिल ,
गा-गा कर धान बैठाते हैं ।।
नाचे मयूर वन उपवन में ,
मोरनी साथ जो रहती है।
सुन केक-केक की आवाजें,
मन-मुदित मोरनी होती है।।
बारिस के दिन गदबेरिया में,
पांखियाँ बहुत उधिराती हैं।
दीपक की लौ से उमड़-घुमड़,
स्वाहा उसमें हो जाती हैं ।।
टर-टर करते हैं दादुर,
तालों और तलैया में ।
नाना विहग नव गान करें,
नित बनन और बागन में ।।
गांवों में नीम के पेड़ों पर,
सावन के झूले पड़ते हैं ।
नारियां पीत-परिधानों में,
गा कजरी झूला झूलती हैं।।
तिथि नागपंचमी के दिन का,
त्यौहार विशेष ही रहता है।
धान का लावा दूध चढ़ा ,
सर्पों को पूजा जाता है ।।
गांवों के ताल -तलैया पर,
छोरे व छोरियां जाती हैं ।
छोरियां फेंकती गुड़िया-गुड्डा,
जिसे छोरे खूब पीटते हैं।।
इस दिन बनता ठोकवा-पूरी,
घुघुरी भी चबाया जाता है ।
गुलगुले खूब खाये जाते ,
अनरसा बहुत ही भाता है।।
सावन की हरियाली देख-देख,
नयनों की ज्योति बढ़ जाती है।
अति रम्य छटा नभ-धरती की,
जन-जन का मन हर लेती है ।।
-------सुरेश लाल श्रीवास्तव--------
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कॉलेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश
00:33:39 Aug 12 2020
★★माँ का प्यार★★
माँ के जैसा इस दुनिया में,
कोई दूजा नहीं है ।
निज माँ की पूजा से बढ़कर,
कोई पूजा नहीं है ।।
नौ माह पेट में पाली,
हँस के दुःखों को झेलीं ।
हर दुःख सही जो अकेली,
फिर भी न मुख को खोली ।।
उस माँ के जीवन जैसा,
कोई जीवन नहीं है ।
माँ के ममत्व जैसा,
कोई प्रेम नहीं है।
बेटा मेरा दुलारा,
लगता है कितना प्यारा ।
राजा मेरा रहेगा,
आंखों का मेरे तारा ।।
सुत के सुखों के खातिर,
धूपों में जो है जलती ।
बेटे को पीठ बाँधे,
भट्ठे पर काम करती ।।
जीवन की सारी खुशियां,
बेटे पर वार जाती ।
लाखों सितम है सहती,
और ऊफ तक न करती ।।
देवों ने भी कही है,
मनुजों ने भी कही है ।
जननी के प्यार जैसा,
कोई प्यार ही नही है ।।
~~~सुरेश लाल श्रीवास्तव
रा०इ०का० अकबरपुर
अम्बेडकर नगर(उ० प्र०)
भारत की ऋतुएं न्यारी हैं
साल के काल विभाजन को,
ऋतु या मौसम हशम कहते हैं।
रवि की प्रदक्षिणा जो धरा करे,
सो ऋतुओं के दर्शन होते हैं ।।
ऋतु अनुसारी प्रकृति छटा,
निज देश की कितनी न्यारी है।
ऋतुओं के विविध स्वरूपों से,
भू- लोक का गौरव भारत है ।।
ऋतु-जीवन रूपी फलकों में,
ऋतुराज प्रथम पर आता है।
जो काल-खंड है जरा रूप,
वह शिशिर काल कहलाता है।।
ऋतु-जीवन का द्वितीय फलक,
ऋतु ग्रीष्म पुकारा जाता है।
ऋतु-रानी इसके बाद चलीं,
शरद काल फिर आता है ।।
हेमन्त के आगमन होने से ,
जो खायें सो पच जाता है।
जो छठा रूप है मौसम का,
वह शिशिर काल कहलाता है।।
ऋतु बसन्त के आने से,
यह धरा अलौकिक होती है।
बहु रंग-विरंगे पुष्पों से,
यह मही नवोढ़ा लगती है ।।
मनमोहक वातावरण लगे,
सुरभित पवन चहुँ ओर चले।
उन्मत्त रूप इस मौसम की,
मादकता अति तेज रहे।।
ऋतुराज की शोभा होली है ,
रंगों की चलती टोली है।
नव-पल्लव मंडित तरुओं पर,
मन हरती कोयल बोली है ।।
सुख की अंतिम सीमा ही,
दुख दारुण की भी सूचक है।
बसन्त बयार के थमते ही,
तपने की बारी आती है।।
प्रचण्ड भानु के आतप से ,
पथ बीच पथिक थक जाता है।
धूप से तपती धरती पर,
लू का प्रकोप बढ़ जाता है।।
दिनकर के आतप से राहत,
ऋतु रानी हमें दिलाती हैं ।
घन-गर्जन से जल वर्षण से,
झुलसे तरु खिल जाते हैं।।
पावस मनभावन आते ही,
केकी पग नृत्य बंध जाता है।
त्यौहार तीज अरु रक्षा बंधन,
इस ऋतु में अधिक सुहाता है।।
ऋतु-रानी पावस के जाते ही,
शुद्ध शरद ऋतु आती है।
सुबह घास पर ओस की बूंदें,
कितनी सुन्दर लगती हैं।।
इस शरद सुन्दरी के ऋतु में,
जीवन की ऊर्जा बढ़ती है।
पर्व दशहरा और दिवाली ,
शरद काल में मनती है।।
हेमन्त काल के आते ही ,
ठंड शुरू हो जाती है।
पर्यावरण की चारुता भी,
इस समय बहुत बढ़ जाती है।।
गेंदा-गुलाब के पुष्पों की,
कांति आलौकिक लगती है।
तितली,भौंरे अरु मधु-मक्खी,
रस चूषण को मंडराते हैं ।।
शिशिर काल है जरा काल,
ऋतु-जीवन रूपी फलकों में।
मानव,पशु-पक्षी अरु तरुवर,
उठते हैं कांप इसी ऋतु में।।
शिशिर काल में शीत लहर,
जब अपना प्रभाव दिखलातीहै।
दिन में भी दिनकर के दर्शन,
तब विरले दिन हो पाता है।।
बहु रूप यहाँ हैं ऋतुओं के,
सबके सब हितकारी हैं।
अखिल विश्व में इसीलिए,
निज देश की धरती न्यारी है।।
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प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
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