लखीमपुर खीरी में पहला ऑनलाइन कवि सम्मेलन

ऑनलाइन काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका के द्वारा दिनांक 6 अप्रैल 2020 को एक jका ट्रायल किया गया जिसमें लगभग 50 कवियों ने अपना नामांकन किया उसमें से 27 कवियों ने ऑनलाइन प्रतिभाग भी किया। कुछ कभी गण नेटवर्क और ऐप की दिक्कतों के चलते कनेक्ट नहीं हो पाए हालांकि वह लोग भी हमारे संपर्क में बने रहे ।इसके लिए मैं खेद व्यक्त करता हूं ।और जल्दी ही एक दूसरा ट्रायल किसी दूसरे ऐपया इसी के माध्यम से करने की योजना बना रहा हूं।जो लोग कनेक्ट नहीं हो पाए या कनेक्ट हो पाए और जिन का काव्य पाठ नहीं हो सका उन लोगों को वरीयता क्रम में अगले कार्यक्रम में सबसे पहले काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। काव्य पाठ करने वालों में


 आदरणीय श्रीकांत दुबे जी


 कैलाश सोनी उर्फ सोनू वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा से


 नितेश उपाध्याय 


अश्क बस्तरी 


सुनीता महेश्वरी 


दीपक शर्मा 


संदीप कुमार बिश्नोई पंजाब से 


प्रदीप भट्ट दिल्ली से 


डॉ रेखा सक्सेना 


आचार्य गोपाल जी बरबीघा बिहार से 


आदरणीय राजीव पांडे जी नोएडा दिल्ली से 


अविनाश कुमार तिवारी चंपारण बिहार से


 विजयलक्ष्मी जी बिहार से


 संजय जैन मुम्बई से 


ज्ञानेन्द्र् मोहन जी ने


 अपना काव्य पाठ सभी को सुनाया जिसे ऑनलाइन देख और सुनकर के एक बहुत ही रोमांच का अनुभव हुआ। प्रतिभाग करने वालों में।


 अर्चना द्विवेदी जी अयोध्या


 श्याम सागर जी सीतापुर


 डॉ आशा त्रिपाठी जी


राकेश सक्सेना जी 


इलियास अली जी।


 सत्यवान सौरभ जी


 अभिजीत त्रिपाठी जी 


संतोष कुमार वर्मा जी


 देवराज शर्मा जी 


रश्मि लता मिश्रा जी सम्पादक काव्यरंगोली


रूपेश कुमार जी 


नन्दलाल त्रिपाठी जी 


अनिल गर्ग जी


आलोक शुक्ल जी


मुन्नालाल मिश्र जी


माता प्रसाद रस्तोगी जी


सरिता शुक्ल जी


कालिका प्रसाद सेमवाल जी


हेमलता त्रिपाठी गुड़िया जी


डी एस दधीचि


गीता पाण्डेय जी जबलपुर


नीलम मुकेश वर्मा झुंझुनू


शिवानी वर्मा सिकंदरा


अमित कुमार दवे


सुनीता माहेश्वरी नासिक


इन्दु झुनझुनवाला जी


डॉ दीप्ति गौड़


ऑनलाइन मौजूद रहे और सब की रचनाओं का सुनने का लाभ तो मिला किंतु नेटवर्क की दिक्कत से मीटिंग डिस्कनेक्ट हो जाने की वजह से आप लोगों का काव्य पाठ नहीं हो सका ,इसके लिए खेद है और अगले ट्रायल में आप लोगों को वरीयता क्रम में काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा जो भाई बहनों नामांकन करा चुके थे समूह में या व्यक्तिगत रूप से उनसे अत्यंत विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूं कि वो लोग भी संपर्क में बने रहें ।और अपना नाम सूचीबद्ध करवा दे,ताकि अगले ट्रायल में उनको वरीयता क्रम से काव्य पाठ करवाने का अवसर दिया जा सके ,बहुत-बहुत सभी का आभार एवं बधाई क्यों की यह ट्रायल था अतः इस कवि सम्मेलन में किसी भी तरह का कोई पुरस्कार पत्र जारी नहीं किया जा रहा है ,हां क्योंकि यह पहला कार्यक्रम था इसलिए हम सभी सम्मानित प्रतिभागियों को सहभागिता सम्मान से सम्मानित करेंगे यह सम्मान पत्र शीघ्र ही आप लोगों को भेज दिया जाएगा। बहुत-बहुत धन्यवाद बधाई। एवं आभार हम आप लोगों के लिए हमेशा कुछ नया प्रयोग और कुछ नया करने के विषय में प्रयासरत रहते हैं , आप लोग भी हर तरह का सहयोग देते हैं ,जिससे यह साहित्यिक रथ अनवरत रूप से अपनी पूरी गति के साथ गतिमान हो करके यश और कीर्ति की पताका को फहराते हुए विश्व स्तर पर आपकी और अपनी पहचान बनाने और उस प्रतिष्ठा को बराबर संजोए रखने सफल है । इस सफलता का श्रेय आप सभी जांबाज सिपाहियों के नाम। धन्यवाद ,जय हिंद ,जय भारत।


 आप सबका अपना ही आशुकवि नीरज अवस्थी एवं समस्त काव्य रंगोली टीम


 खमरिया पंडित लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश 26 27 22 


मो0 99192 56950


अर्चना शुक्ला मुंबई

आँखों में 


कितने रंग छुपा रखे हैं माँ 


तुम्हारी आँखों में |


गज़ब का भोलापन और चंचलता है


तुम्हारी आँखों में ||


सूरज जैसा तेज ,चाँद सी शीतलता


तुम्हारी आँखों में |


माँ की ममता का सागर भी छुपा 


तुम्हारी आँखों में ||


प्रियतमा का प्यार और मनुहार 


तुम्हारी आँखों में |


सागर जैसी गहराई और कई राज़ 


तुम्हारी आँखों में ||


मनमोहक ,मनमादक पर ठहराव 


तुम्हारी आँखों मैं|


प्यार से संहार तक कई रंग 


तुम्हारी आँखों में ||


अर्चना शुक्ला 


 मुंबई


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ.सुमन शर्मा भावनगर

——डॉ.सुमन शर्मा


शिक्षा—एम.ए.पीएच.डी(यशपाल साहित्य में नारी चित्रण)


विषय—हिन्दी 


प्रकाशन—१.सैलाब(कविता संग्रह)


              २. मन की पाती (कविता संग्रह)


              ३.रहोगी तुम वही(कहानी संग्रह)


              ४. यशपाल के उपन्यासों में नारी के 


                  विविध रूप ।   


              ५. पत्र पत्रिकाओं में विविध विषयों    


पर आलेख, शोध पत्र , कविताएँ प्रकाशित ।


                ६. आकाशवाणी से अनेक वार्तालाप,कविताएँ प्रसारित ।


सम्मान—-अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन द्वारा सम्मानित ।


         —-पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी द्वारा


               सम्मानित ।


संप्रति—-श्रीमती वी पी कापडिया महिला आर्ट्स


             कोलेज भावनगर में हिन्दी विषय की 


             प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत ।


 


कान्हा 


——-


गोकुल कभी,मथुरा तो कभी वृन्दावन में,


तेरे ख़यालों में भटकी कान्हा मन ही मन में।


 


मोर मुकुट,कानन कुंडल,बंसी मधुर अधर में,


अद्भुत श्रृंगार,मोहिनी मूरत तेरी बसे नैंनन में।


 


हर श्रेष्ठ में तेरा निवास,रहता तु कण कण में,


धरूँ ध्यान तेरा,रहूँ मगन हरपल तेरे हीआराधन में।


 


राधा का तु,मीरा का है गोपियों का तु कनैया,


सुनूँ मधुर तेरी बंसी की धुन खो जाऊँ मैं तुझी में।


 


हो जाऊँ लीन,रूह में बसे,न रहे अस्तित्व मेरा,


मुक्ति पाऊँ,द्वार आऊँ,देना स्थान अपने चरणों में।


सुमन शर्मा ।


 


 


जरूरी था


 


तुझसे मेरा मिलना ज़रूरी था,


उस वक़्त का थमें रहना ज़रूरी था।


 


अनकही रह गई संवेदनाओं का,


शब्दों में अभिव्यक्त होना ज़रूरी था।


 


उलझे हुए रिश्तों की कश़्मकश को,


तद्वीर से सुलझाना ज़रूरी था।


 


बदले वक़्त में दिलों तक पहुँचने को,


फ़ासलों का मिटना ज़रूरी था।


 


गहरे समन्दरों में उठती लहरों का,


साहिलों तक पहुँचना ज़रूरी था।


 


चैन ओ सुकून से रुखसत के लिए,


ज़िन्दगी,तेरा इक़रार ज़रूरी था।


 


सुमन शर्मा ।


 


मैं…


———.


आजकल मैं.. मनचाहा करती हूँ ...।


जागती हूँ…,करवटें बदलती हूँ,


अंधेरे अनजान..अकेले.रास्तों पर


चलते चलते दूर कहीं निकलती हूँ….।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ ...।


 


उडती हूँ, उड़कर पहूँच जाती हूँ,


रंगबिरंगी तितलियों के देश में…,


मैं फूलों संग बतियाती हूँ…, 


सपनों की दुनिया में विचरती हूँ...।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।


 


अपने लिए बचाकर रखे..


मन के कोने में कभी छिपती 


कभी बाहर निकलती हूँ …,


यों ख़ुद से आँखमिचौनी खेलती हूँ...।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।


 


तपती दुपहरी में हंसकर खिलते..


गुलमोहर,अमलतासों को हाथ,


हिलाकर मिलती हूँ,देख हौंसले...


उनके…,मैं भी तो खिलती हूँ ।


आजकल मैं मनचाहा करती हूँ ।


 


न कुछ कहती हूँ,न समझती हूँ 


जेही विधि राखे तु ,मैं रहती हूँ 


असार तेरे इस संसार में..,


न मैं रचती हूँ न बसती हूँ…,


आजकल, तु चाहे वैसा करती हूँ


तु मन का करवाये, मैं करतीं हूँ ,


आजकल मैं मनचाहा करती हूँ...।


सुमन 


 


 


बरसात 


—————-


ज़िक्र में तेरी बातें होंगी,


जल्द ही मुलाक़ातें होंगी।


 


खुशियों के बादल उमड़ेंगे,


नैनों में बरसातें होंगी।


 


मन का मयुरा नाच उठेगा,


यादों की बारातें होंगी।


 


मेघ लायेंगे संदेशे,


पुरनम सी वो रातें होंगी।


 


पुरवैया रूख बदलेगी,


जीवन को सौग़ातें होंगी।


 


सुमन शर्मा


 


 


कुछ लम्हे 


————


ज़िन्दगी….


आज मन है..


तुझसे बतियाने का…,


तेरे सफ़हों को पलटने का…,


तेरे हरफ़ों पर नज़रें डालने का,


तूने क्या दिया..,


तुझसे क्या लिया…,


उसे समझ पाने का…..।


 


ज़िन्दगी…,


तेरे साथ चलते चलते…, 


कुछ वादे टूटे,कई रस्ते छूटे,


कुछ सपने टूटे, कई अपने रूठे..,


तब जाकर जिये..,


कुछ पल ... अनूठे।


 


ज़िन्दगी… ,


तेरी किताब के,


फटे हुए वरकों में..,


मिले कुछ दर्द के लम्हे,


कई पल अकेले…,


कुछ उदास घड़ियाँ,


कभी दुनिया के मेले..।


तुने जो दिया न था कम….,


रहा तुझसे शिकवा गिला..हरदम…!


 


फिर भी...


तेरे लिखे हर सफ़हे को…,


जतन से जोड़ने की कोशिशों में,


नेक इरादों से…,


तुझसे वादा किया..,


तेरे हर लम्हे को…,


जी भर के जिया...।


               सुमन शर्मा।


डॉ. रामबली मिश्र

लगे प्यार का प्यारा नारा


 


हो गिरफ्त में यह जग सारा।


लगे प्यार का नारा प्यारा।।


 


प्यार छोड़ कुछ बात न करना।


प्यार-सिंधु में बहते रहना।।


 


लहरों में अति प्यार कसा हो।


घरों-घरों में प्यार बसा हो।।


 


भीतर से हर मानव प्यारा।


अंत:पुर में हो उजियारा।।


 


अंधकार को मिट जाने दो।


निशा काल को पिट जाने दो।।


 


कुत्सित भावों को जलने दो।


गंदे गाँवों को हटने दो।।


 


दूषित आब-हवा को काटो।


शुचिता से दुनिया को पाटो।।


 


सुंदर शिक्षा नीति बनाओ।


संस्कार के गीत सुनाओ।।


 


सदा प्यार से शिक्षा देना ।


सतत प्यार की दीक्षा देना।।


 


पाठ्य पुस्तकें अति प्यारी हों।


शुद्ध आचरण सी न्यारी हों।।


 


बनें चरित्रवान सब शिक्षक।


नैतिकता से युक्त परीक्षक।।


 


अनुशासन का बीजारोपण।


पावन कर्मों का आरोहण।।


 


सभी बनें सत्यार्थ समर्पित।


खुद को करें प्यार को अर्पित।।


 


सदा प्यार का शंखनाद हो।


आत्मवादमय प्यारवाद हो।।


 


रामकृष्ण की सेना आये।


प्यार सूत्र के दीप जलाये।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर श्री हंस

अमृत और जहर एक ही


जुबान पर निवास करते हैं।


इसीसे लोग आपके व्यक्तित्व


का सही हिसाब करते हैं।।


कभी नीम तो कभी शहद


हो जाती ये जिव्हा हमारी।


जान लो इसी से जीवन में


रिश्तों का आभास करते हैं।।


 


बहुत नाजुक दौर कि किसी


से मत रखो तुम बैर।


हो सके जहाँ तक मांगों प्रभु


से तुम सब की खैर।।


तेरी जुबान से ही तेरे दोस्त 


और दुश्मन भी बनेंगें।


हर बात बोलने से पहले तुम


सोचो जाओ कुछ देर ठहर।।


 


तीर कमान से निकला तो फिर


यह वापिस नहीं आ पाता है।


शब्द भेदी वाण है तो फिर ये


घाव करके ही आता है।।


दिल से उतरो नहीं कि तुम


किसी के दिल में उतर जाओ।


गुड़ गर दे नहीं सकते तो गुड़


सा बोलने तेरा क्या जाता है।।


 


जान लो खुशी देना ही खुशी 


पाने का आधार होता है।


वह ही खुशी देता जिससे


कोई सरोकार होता है।।


खुशी कभी आसमान से


है कहीं टपकती नहीं।


न ही कहीं पर खुशी का 


कोई व्यापार होता है।।


 


मन की आँखों से भीतर सबके


जरा तुम दीदार करो।


मिट जाता है हर अंधेरा बस


तुम सुबह का इन्तिज़ार करो।।


जान लो कि मीठी जुबान और


खुशियों का है गहरा रिश्ता।


इक छोटी सी जिन्दगी है बस


तुम हर किसी से प्यार करो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


8218685464


एस के कपूर श्री हंस

चार बजे गये पार्टी की सौगात, 


अभी बाकी है।


गुमनामी केअंधेरों की रात अभी, 


बाकी है।।


दल दल है, धुंआ है, धुंध है,  


है छाया गुबार।             


गिरते पतन की तो हर बात, 


अभी बाकी है।।


 


मौज मस्ती शराब ड्रग का चढ़ना, 


अभी खुमार है।


अभी से हो रहा जाने जिया,


 


 कैसा बेकरार है।।


अभी डूब कर जाना वह दरिया, 


तो है बाकी।


अभी तो यह नशा उतरने को, 


बेशुमार है।।


 


अभी तो हमें अपना जीवन मिट्टी, 


में मिलाना है।


माँ बाप के उन सपनों की अभी,


राख बनाना है।।


अभी तो हमें सीखना वो सब जो,


पढ़ाया नहीं जाता।


बहुत से नये नये गुल अभी हमें,


खिलाना हैं।।


 


रोक लो थाम लो अभी इस गर्त में,


गिरते अच्छों को।


संस्कार संस्कृति का पाठ पढ़ाओ,


जरा इन कच्चोँ को।।


कच्ची उम्र और मिट्टी का घड़ा है,


संभाल लो अभी।


लग गई है जो गलत लत वह जरा,


छुड़ाओ इन बच्चों को।।


 


बचाओ इनको अभी से कि यह,


देश का भविष्य हैं।


बताओ कैसे होते विद्यार्थी , आदर्श, 


गुरु शिष्य हैं।।


समझाओ क्या होते हैं मायने आदर,


 


और आशीर्वाद के।


कैसे होते समर्पणऔर देश भक्ति के,


सच्चे दृश्य हैं।।


 


भारत का पुरातन इतिहासऔर शौर्य,


उनको पढ़ना है।


राष्ट की भावी धरोहर के रूप में उन,


को गढ़ना है।।


भविष्य के बोस, गांधी,टैगोर,कलाम,


बनना है उनको।


विश्व गुरु भारत महान की पताका,


लेकर ऊपर चढ़ना है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


सुनील कुमार गुप्ता

आस


पतझड़ के मौसम में भी फिर,


साथी तुम होना न तुम उदास।


फूटेगी नव-कोपल फिर से,


रखना मन में ये आस।।


फूल खिलेगे उपवन में फिर,


यहाँ महकेगी हर एक साँस।


भटकेगे नहीं कदम फिर से,


साथी पल -पल जो हो पास।।


छट जायेगी गम की बदली,


साथी होना न तुम निराश।


खिल उठे ये धरती अंबर,


साथी जब होते तुम पास।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

सोच-समझकर वोट दें 


 


शंखनाद है हो गया, 


                     सेनाऍ॑ तैयार।


लेकिन लड़ना है उन्हें, 


                   घर से अबकी बार।


 


पाॅ॑डव या कौरव कहो, 


                 दें किसको हम नाम।


सारे ही तो एक से, 


                   सारे हैं बदनाम।


 


साॅ॑पनाथ है एक तो, 


                   दूजा उसका बाप।


कुर्सी पा डॅ॑सते सभी, 


                   जान रहे हैं आप।


 


लालच में मत आइए, 


                   दो पैसे के आप।


वोट बेचना मानिए,


                   सबसे भारी पाप।


 


सोच-समझकर वोट दें, 


                 आप सहित परिवार।


भ्रष्टाचारी की नहीं, 


                  बनने दें सरकार।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे !माँ वीणा वादिनी


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हे!माँ वीणा वादिनी


मुझे ज्ञान का भण्डार दे,


जीवन में प्रकाश कर दे


कष्ट मेरे माँ हरण कर दे।


 


हे!माँ वीणा वादिनी


अवगुणों को खत्म कर दे,


विचलित न हो मन कभी 


काम, क्रोध, लोभ मेरे मिटा दे।


 


हे!माँ वीणा वादिनी


बहके न मेरे कदम कभी,


मुझ दुर्लभ को इतनी शक्ति देना


ईष्या, द्वेष कभी मेरे मन में न आये।


 


हे!माँ वीणा वादिनी


सबके हित में बात लिखू मैं,


बाहर भीतर एक दिखूं मैं


मुझ पर ऐसी कृपा करना माँ।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-20


 


पंख काटि कछु देर न लागा।


सिय सँग रथ चढ़ि रावन भागा।।


     बिलखत-रोवत सीता नभ तें।


     पुनि-पुनि सुमिरि राम कहँ तहँ तें।।


निज पट एक गइराईं गिरि पे।


लखि बहु कपिन्ह रहत तब तेहिं पे।।


    पहुँचा अति लाघव खल लंका।


    सीय चोराइ बजाया डंका ।।


सियहिं रखा तुरतहिं असोक बन।


भावी जुगुति लाइ हिय-चित-मन।।


     लखि सीता गति ब्रह्मा ब्याकुल।


      देवराज बुलाइ कह आकुल।।


जाहु इंद्र अति गुप्त सीय पहँ।


रखा असोक तरहिं रावन जहँ।।


    सुंदर हबि मैं सौंपहुँ तुमहीं।


    खीर देइ तेहिं आवहु अबहीं।।


जे नर हबि-प्रसाद ई खावै।


भूखि-पियासिहिं ताहि न आवै।।


       बरिष सहस दस रहै यथावत।


       बल-पौरुष-बुधि संग तथावत।।


इंद्र पहुँचि तहँ माया करहीं।


इंद्र-जाल फँसि रच्छक भवहीं।।


    बिनु कहु लखा पहुँचि सीता पहँ।


    धीमी बचन बताइ नाम तहँ ।।


खीर खवाइ तुरत चलि दीन्हा।


सियहिं बखानि खीर-गुन-चीन्हा।।


     इंद्रहिं जानि सीय निज पितु इव।


     भईं मुदित जस भ्रमर पराग पिव।।


दोहा-खीर-पान करि तरु तरे, सीता बिनु बिश्राम।


       रोवहिं-बिलखहिं मनहिं-मन,सुमिरहिं हर छिन राम।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


 


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सातवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


बिनु सुत बिलखहिं जसुमति मैया।


बछरू बिनू बिकल जस गैया।।


     बेसुध बिकल परीं जा महि पे।


     धावत आईं गोपी वहिं पे ।।


कहँ गे हमरे किसुन-कन्हैया।


कहि-कहि बिलखहिं गोपिहिं-मैया।।


    उधर गगन महँ किसुन क भारा।


     जब सहि सका न दनुज बेचारा।।


भई सिथिल गति तुरत बवंडर।


भवा सांत तुफान भयंकर।।


    त्रिनावर्त कै गला किसुन जी।


    कसि के पकरे रहे ललन जी।।


परबत नीलहिं भार समाना।


रहे कृष्न सिसु पहिरे बाना।।


   भवा दैत्य बड़ बिकल-बेचैना।


    बाहर निकसि गए तिसु नैना।।


निकसा प्रान असुर कै तुरतइ।


खंड-खंड भे तन भुइँ गिरतइ।।


     सिव-सर-हत त्रिपुरासुर रहई।


     त्रिनावर्त गति वैसै भवई।।


लटकि रहे तिसु गरे कन्हैया।


करत रहे जनु ता-ता-थैया।।


    पाइ सुरच्छित किसुनहिं माता।


    परम मुदित भे पुलकित गाता।।


अद्भुत घटना बड़ ई रहई।


गोपी-गोप-नंद सभ कहई।।


    बालक कृष्न मृत्यु-मुख माहीं।


    भगवत कृपा कि बच के आहीं।।


अवसि कछुक रह पुन्यहि कामा।


यहि तें बचा मोर घनस्यामा।।


    बड़-बड़ भागि हमहिं सभ जन कै।


     अवा लवटि ई बालक बचि कै।।


दोहा-एक बेरि माता जसू,कृष्न लेइ निज गोद।


        रहीं पियावत दुग्ध निज,उरहिं अमोद-प्रमोद।।


       करिकै स्तन-पान जब,कृष्न लिए मुहँ तानि।


       लेत जम्हाई मुहँ खुला,जसुमति बिस्व लखानि।।


दोहा-अन्तरिच्छ-रबि-ससि-अगिनि,ज्योतिर्मंडल-बन।


       नभ-सागर-परबत-सरित,मुख मा द्वीप-पवन।।


       सकल चराचर जगत रह,कृष्न मुखहिं ब्रह्मण्ड।


       जसुमति-लोचन बंद भे,लखतै रूप अखण्ड।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


नूतन लाल साहू

ममा भांचा


सुन ले सगा,ये गोठ ला


कुटुंब गंगा में,आज नहाके


दरसन परसन कर ले


आशीर्वाद,तोला मिलही


अपन भांचा के


छत्तीसगढ़ मा अडबड़ नाता हे


पर पवित्र नाता हे,ममा भांचा के


धरम झोली ल, तैहर भर ले


भवसागर पार यदि जाना हे,ते


सुन ले सगा


मरजादा कोंहू, लांघो झन


आज समाज मा,नवा सोच के


जिनगी मा कुछू बने के बात कर ले


पर मत भूलना,पवित्र रिश्ता हे ममा भांचा के


सुन ले सगा


ददा के तोला,मया मिले


दाई के तोला मिले,आंचल


धरती मा पुण्य कमा ले


अपन भांचा के पांव पखार के


सुन ले सगा


कभू बडोरा डराही तोला


कभू शरद गरम के ताव


जियत मरत लेे,तै झन भुलाबे


अपन भांचा के पांव ला


सुन ले सगा


मदिरा मांस ला त्याग दे भाई


सनमारग के बात सुहाही


लाहरा ह रोक लिही तोला


तब भांचा के आशीर्वाद,काम आ ही


सुन ले सगा ये गोठ ला


कुटुंब गंगा में आज नहाके


दरसन परसन कर ले


आशीर्वाद, तोला मिलही


अपन भांचा के


नूतन लाल साहू


डॉ0 निर्मला शर्मा

संस्कृति


विश्व की हर संस्कृति से मेरी संस्कृति निराली है


अध्यात्म योग का समन्वय ये


दर्शन और ज्ञान का क्षेत्र प्रबल


कल कल करती नदियाँ बहती


झर झर झरनों से बहता जल


अतिथि को देव तुल्य माने


नहीं कोई ये भेदभाव जाने


सबका ही किया स्वागत हर क्षण


कर लिया समन्वित न किया क्षरण


हैं विविध नृत्य संगीत यहाँ


परिधानों में दिखता भारत


हर रंग निराला है जिसका


है विश्व शांति ध्येय इसका


है खान पान की विविधता यहाँ


जीने का ढंग निराला है


भारतीय संस्कृति में वसुधा को


माता कहकर के पुकारा है


वसुधैव कुटुम्बकम समझ के हम


संसार को अपना बनाते हैं


करें नमस्कार करें दण्डवत


आदर से शीश नवाते हैं


है विश्व गुरु भारत जग में


अगुवाई विश्व की करता है


हिंदी जिसकी मीठी बोली


संसार भी उसे बोलता है


अपनी संस्कृति पर मै गर्व करूँ


उसे शीश झुका कर नमन करूँ।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

जीवन्त हृदय अरुणिम प्रभात,


नवजीवन की प्रिय आभा हो।


बन इन्द्रधनुष नीलाभ हृदय,


सतरंग ललित मधु छाया हो।


 


शृङ्गार शतक सज पाटल तन,


अभिराम मुदित विधि माया हो।


आह्लाद चारु मादकता मन,


बिम्बाधर मधुरिम साया हो।


 


चारुचन्द्र प्रभा मुखरित आनन,


मधुवन कानन मधुश्रावण हो।


मुख चारु दन्त नक्षत्रजटित,


नखशिख ललाम मनभावन हो।


 


अम्बुज कपोल कोमल रसमय,


विशाल भाल नीलाम्बर हो।


मधुशाल बने कज़रार नयन,


मदहोश सजन मन मधुकर हो।


 


निशि चन्द्र सुधाकर रसिक हृदय,


मदमत्त चपल प्रिय गागर हो।


लज्जा श्रद्धा चिन्तामणि शुभ,  


कामायिनी उरोज मधु सागर हो। 


 


पलकों में छिपा मृगनैन युगल,


तन्वी श्यामा सुख दामिनी हो।


खन खन पायल पद कुमुद मृदुल,


नितम्ब शिखर गजगामिनी हो। 


 


खनक रही विरुदावली सम,


घन श्याम घटा नभ बिजुरी हो।


रजनी गंधा सज केश बन्ध,


नागिन सी लहराती कजरी हो। 


 


मरुभूमि सजन आकुल चितवन,


मधुर निर्मल मन्दाकिनी हो।


विश्रान्त हृदय प्रिय अवगाहन,


अनुराग सुभग सौदामिनी हो। 


 


रतिकाम श्याम घन जल प्लावन,


सखि प्रीति प्रलय नौकायन हो।


पतवार प्रिये अभिसार धिये,


नित प्राणप्रिये पिकगायन हो।  


 


अलिवृन्द भ्रमित मधुपान रसिक,


कोमल किसलय प्रिय साजन हो।


लाजवन्त पुष्प नत पौध पत्र,


अर्पित साजन नित यौवन हो। 


 


सिन्धु सलिल लहरें तरंग,


रत्नाकर दिल मुक्तामणि हो।


हो चन्द्रहास शीतल मधुरिम,


अविरल प्रवाह तरंगिणी हो। 


 


लालित्य मधुर अभिलाष मधुर,


मृदुभाष मुखर नवनीता हो।


कुसमित निकुंज अलिगूंज सरस,


संगीत चित्त परिणीता हो।


 


डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


सुनीता असीम

के द्वार बन्द पड़े हैं सभी मकानों के।


समेटके बैठे हैं पंख सब उड़ानों के।


****


न रास्ते में नज़र आए इक बशर कोई ।


लगे हुए हैं यहां ताले सब दुकानों में।


****


कि कह रहे हैं सभी बात को बढ़ा करके।


न रोकते हैं करोना के पर मुहानों को।


****


बड़ा था नाम निशाने लगाने में जिनका।


चले हैं तीर सभी खाली उन कमानों के।


****


बिना ही बात बखेड़ा किए सभी जाते।


कि स्वर बन्द करो उन सभी बख़ानो के।


****


सुनीता असीम


कालिका प्रसाद सेमवाल

मां तुम जीवन का आधार हो


********************


माँ परिवार की आत्मा होती है,


माँ आदिशक्ति माया होती है,


माँ घर की आरती होती है,


माँ जीवन की आस होती है,


माँ ही घर का प्रकाश होती है,


माँ गंगा सी पावन होती है,


माँ वृक्षों में पीपल सी होती है,


माँ देवियों में गायत्री होती है,


माँ फलों में श्रीफल होती है,


माँ शहद सी मीठी होती है,


माँ ममता का प्याला होती है,


माँ ऋतुराज वसंत होती है,


माँ ईद दिवाली और होली होती है,


माँआन ,बान ,शान होती है,


माँ रामायण वेद पुराण होती है,


माँ वीणा की झंकार होती है,


माँ जीवन का मधुमास होती है,


माँ तन, मन, धन होती है,


माँ ईश्वर की अनुपम कृति होती है,


माँ ही इस जहां में हमें लाईं है,


माँ ही जीवन का आधार होती है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


संजय जैन

रिश्तो को बनाये रखे


 


रिश्तो का बंधन 


कही छूट न जाये।


और डोर रिश्तों की


कही टूट न जाये।


रिश्ते होते है बहुत


जीवन में अनमोल।


इसलिए रिश्तो को


हृदय में सजा के रखे।।


 


बदल जाए परिस्थितियां 


भले ही जिंदगी में।


थाम के रखना डोर


अपने रिश्तों की।


पैसा तो आता जाता है


सबके जीवन में।


पर काम आते है


विपत्तियों में रिश्ते ही।।


 


जीवन की डोर 


बहुत नाजुक होती है।


जो किसी भी समय


टूट सकती है।


इसलिए कहता हूँ में


रिश्तो से आंनद वर्षता है।


बाकी जिंदगी में अब


रखा ही क्या है।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ. रामबली मिश्र

रामरसायन पान कर, यह अमृत अनुपान।


इसके पीने से मनुज, बनता दिव्य महान।।


 


जिसने इसको पी लिया, बना सहज चैतन्य।


लगा घूमने व्योम में, बनकर सिद्ध सुजान।।


 


हुई राम से प्रिति तब, माँ सीता से स्नेह।


सदा राम दरबार में, देता सुंदर ज्ञान।।


 


खुश होते हैं राम जी, सीता मात प्रसन्न।


पीनेवाला लोक में, पाता है सम्मान।।


 


अहोभाग्य जिसका वही, पाता अमृत- भोग।


सतत बनाकर श्रृंखला, देत रसायन दान।।


 


जन्म-जन्म के योग का, आध्यात्मिक परिणाम।


पुण्योदय जब होत है, मिलता निर्भय दान।।


 


करते-करते ध्यान जब, होत ध्यान संपुष्ट।


राम रसायन स्रवित हो, भरत स्वयं मुस्कान।।


 


जिसने पाया राम रस, उसका हाल न पूछ।


इस सारे संसार में, बना वही हनुमान।।


 


राम-जानकी की कृपा, से बरसत रस मेघ।


कोई विरला ही करत, इस रस का अनुपान।।


 


शर्दी गर्मी देत है, गर्मी शर्दी देत।


रामरसायन शुभद की,यह है दिव्य निशान।।


 


पीनेवाला रामधुन, में हो करके मस्त।


सहज छेड़ता रात-दिन, राम ज्ञानमय तान।।


 


राम भक्ति में लीन हो, करत मयूरी नृत्य।


महा प्रभू चैतन्य बन, करत राम घन ध्यान।।


 


हो जाता है लीन नित, अपने में अनुरक्त।


रामकृपा रस अमर पी, पाता आतम ज्ञान।।


***************************


सन्देश शुभद प्यारा


उपदेश भरा है


लगे प्रीति का नारा।


 


सब मिलकर सदा चलें


भावों का गुंफन


हर दिल में प्यार पले।


 


नफरत की ज्वाला पर


प्रेम -नीर बरसे


थिरकें प्याला ले कर।


 


***********************


मातृ शारदा बनें सहायक


 


मातृ शारदा का हो वंदन।


बनें सहायक माँ सुखनंदन।।


 


माँ श्री का आशीष लीजिये।


करते रह माँ का अभिनंदन।।


 


माँ से ही सद्बुद्धि मिलेगी।


माँ विद्यामृत शीतल चन्दन।।


 


माँ ही ज्ञानधाम शुभ राशी।


देती माँ हैं सबको शिव धन।।


 


करो सदा माँ श्री की संगति।


बनो सभ्य संस्कार सुयश मन।।


 


माँ चरणों में लिप्त रहो नित।


रहना चाहो सदा प्रिय मगन।।


 


सबमें माँ की छाया देखो।


करें सदा माँ दुःख-कष्ट हरन।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


श्री मती व्यंजना आनन्द की गीता का लोकार्पण

बिहार की बेटी ने दिया जनमानस को प्रेरणा स्रोत- गीता


गत दिनाँक 23-09-2020 को सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ काव्य गीता के हिन्दी अनुवाद का सफलतापूर्वक विमोचन हुआ जो कि बेतिया(बिहार) के जी जो साहित्य साधक अखिल भारतीय साहित्यिक मंच के उपाध्यक्षा भी है उसी की लेखनी की देन है।


23-09-2020 के शाम को व्यञ्जना आनन्द जी के हिन्दी गीता ग्रन्थ समीक्षात्मक विमोचन ऑनलाइन ज़ूम एप्पलीकेशन द्वारा भव्यता के साथ हुआ। गत कार्यक्रम की अध्यक्षता डा.कवि कुमार निर्मल ने किया जिन्होंने बताया कि ये ग्रंथ समाज को सरलता के साथ नैतिकता की राह दिखायेगा। वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामनाथ साहू "ननकी भईया" जी व्यञ्जना आनन्द जी को ढेरों शुभकामनाएं देते हुए काव्यवक पाठ किया। विशिष्ट अतिथि विजय बागरी जी एवं डॉ० राणा जयराम सिंह प्रताप संरक्षक साहित्य साधक अखिल भारतीय साहित्यिक मंच से थे। इस कार्यक्रम में सम्पूर्ण भारतवर्ष के कोने कोने से साहित्यकार उपस्थित हुए और इस ग्रन्थ पर अपना-अपना मत एवं काव्यपाठ प्रस्तुत किये कहीं पर  पंकज बजाज जी द्वारा बंगाली भाषा में भजन रोमांचित रहा तो वहीं सोलापुर (मुम्बई) की बेटी क्षितिजा व जयपुर की शान इशिता ने अपने नृत्य से सबके हृदय पर गहरा छाप छोड़ दिया कार्यक्रम में आदरणीया डा.सुनीता सिंह, आचार्य गुनिंद्रानंद अवधूत, पंकज बजाज, , शिव प्रकाश पाण्डेय, शर्मा, डॉ० राम प्रकाश पथिक, अशोक कुमार झाखड़, आदि साहित्यकार उपस्थित रहे एवं अपना मन्तव्य व प्रस्तुति दिए।


कार्यक्रम का संचालन श्री मती माधुरी मंजूषा जी एवं ग़ाज़ीपुर के शिव प्रकाश पाण्डेय जी ने सफलता पूर्वक किया। कहीं मंजूषा जी ने दोहे का रस छलकाया तो कहीं पाण्डेय जी ने मुक्तक द्वारा पत्थर में संवेदना जगाई। कार्यक्रम के सम्पन्नता की घड़ी में सभी उपस्थित साहित्यकारों को श्रीमती व्यञ्जना आनन्द द्वारा धन्यवाद ज्ञापित करते समय उनके चक्षुओं में हर्ष के अंबार दिखाई दे रहे थे और उन्होंने बताया कि उनकी प्रेरणा के स्रोत उनके दादा जी कविवर विमल राजस्थानी जो बहुत अच्छे कवि थे वही रहें । वे सदा सृजन ऐसी कर जो जन कल्याण हेतु काम आए कहा करते थे और यह बताते हुए वह भाव विभोर हो गईं ।


इस लोकार्पण कार्यक्रम में साहित्य साधक मंच के संरक्षक डॉ.राणा जयराम सिंह प्रताप, सपना सक्सेना दत्ता, अध्यक्ष शशिकांत शशि , प्रियदर्शनी जी ,अमर सिंह निधि एवं संस्थापक कृष्ण कुमार क्रांति भी शामिल हुए और श्री कृष्ण कुमार क्रांति ने कहा व्यंजना आनंद जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवद्गीता का सृजन जनमानस के लिए अमृत के समान है इनके पाठन एवं श्रवण से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होगी।


सुनील दत्त मिश्रा

छम गिरती बारिश की बूंदों का दिल से नाता है


और यह रिश्ता हमको भी बहुत निभाना आता है


फिसल न जाए पांव कहीं नीचे काई सी लगती है


लिखते जाओ लिखते जाओ सूखी स्याही लगती है


आज बरसती छत पर टप टप


कल नदियों में मिल जाएंगी।


फिर अपना अस्तित्व मिटा कर जल में कल कल कर जाएंगी


तन भी भीगा मनभी भीगा


यह तो बात पुरानी है


एक बूंद जो गिरी जीभ पर


गंगाजल सी मानी है


क्या लिखूं मैं मन की बातें


बौछारें क्या लायी है।


अब मौसम सूखा सूखा सा


किसने बात बताई है


तुम्हें निभाना आता है तो हमें बताना आता है


दोनों हाथों से सिर पर छाता भी बनाना आता है


 


सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर राइटर की कलम से सुरक्षित सर्वाधिकार बिलासपुर छत्तीसगढ़


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

रक्तबीज कोरोना


है बढ़ रहा कोरोना रक्तबीज की तरह,


सबको डरा रहा है, बुरी चीज़ की तरह।


डरना नहीं है इससे मगर,सुन लो दोस्तों-


संयम-नियम को धारो, ताबीज़ की तरह।।


 


क़ुदरत के साथ धोखा करने का फल है ये,


गिरि-सिंधु-सर-अरण्य को ठगने का फल है ये।


क़ुदरत के ही तो ख़ौफ़ का,उछाल कोरोना-


है साज़िशे क़ुदरत कोई, नाचीज़ की तरह।।


 


यद्यपि चला ये चीन से,कुछ लोग कह रहे,


पहुँचा है देश पश्चिम,जहाँ लोग मर रहे।


भारत पे भी प्रभाव इसका,कम तो है नहीं-


लगता यही है दलदल, दैत्य कीच की तरह।।


 


दूरी बना के रहने में,सबकी ही ख़ैर है,


अपने घरों में रहना,करनी न सैर है।


थोड़े दिनों का कष्ट ये,इसे है झेलना-


संकट में धैर्य है दवा,मुफ़ीद की तरह।।


 


सर्दी-जुक़ाम-खाँसी-बुख़ार कोरोना,


स्पर्श-रक्तबीज इव पनपे है कोरोना।


बस स्वच्छता इलाज है,एकमात्र कोरोना-


बनना नहीं समूह,उत्सव-तीज की तरह।।


 


करुणा-दया दिखानी, है अब गरीब पे,


घड़ी मदद की उनकी,मिलती नसीब से।


मिलना मग़र जो उनसे, मुँह ढाँक के मिलो-


उपकार तो होता सदा,तहज़ीब की तरह।।


 


करना विनाश सबको, है रक्तबीज का,


है रोकना फैलाव इसी,रक्तबीज का।


होगा भला जगत का,बस कर विनाश इसका-


जीवन है भोज इसका एक,लजीज़ की तरह।।


                 © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


नूतन लाल साहू

वर्षा ऋतु प्यारी


 


न तो छियालिस डिग्री गर्मी


न तो कपकपाती ठंड


वर्षा ऋतु, सबसे प्यारा लगता है


काला बादल,छलके सागर


झमाझम बरसता है,पानी


झुम झुम कर,मोरनी नांचे


कोयली गीत सुनाती हैं


न तो छियालिस डिग्री गर्मी


न तो कपकपाती ठंड


वर्षा ऋतु, सबसे प्यारा लगता है


जब छलकता है, नरवा नदिया


तब लहराता है, गंगा मैया


पुरवाही चलती है,प्यारी प्यारी


हरियर हरियर धरती माता,सुंदर लगती हैं


न तो छियालिस डिग्री गर्मी


न तो कपकपाती ठंड


वर्षा ऋतु, सबसे प्यारा लगता है


हरा हरा श्रृंगार कर,धरती मां


सबके मन को,हर्षाती है


जब कड़कती है बिजली,तब बादल गरजता है


बरसते हुए पानी में,मौसम सुहाना लगता हैं


न तो छियालिस डिग्री गर्मी


न तो कपकपाती ठंड


वर्षा ऋतु, सबसे प्यारा लगता है


प्रफुल्लित होती हैं,तितलियां


भौरे गुनगुनाता है


पेड़ पौधे,हर्षाती है


कलिया, फुल बन मुस्कुराता है


न तो छियालिस डिग्री गर्मी


न तो कपकपाती ठंड


वर्षा ऋतु, सबसे प्यारा लगता है


नूतन लाल साहू


सुनील कुमार गुप्ता

क्यों-न ढूंढे सुख अपना?


 


देखा था एक सुंदर सपना,


सच होता न होता अपना।


चाहत के रंगो संग फिर,


कब-होता वो साथी अपना?


सपनो की शहजादी बन कर,


जो छलती वो जीवन सपना।


मिल कर बिछुड़ने को फिर,


क्यों-हरती सुख अपना?


सुख की चाहत संग जग में,


कभी बीता न एक पल अपना।


सपने तो सपने साथी फिर,


क्यों-न ढूंढे सुख अपना?


 


सुनील कुमार गुप्ता


कालिका प्रसाद सेमवाल

मां शारदे


********************


हे मां शारदे


रोशनी दे ज्ञान की,


तू तो ज्ञान का भंडार है


हाथों में वीणा पुस्तक ,


 हंस वाहनी ,कमल धारणी


ओ ममतामयी मां शारदे।


 


इतनी कृपा मुझ पर करना


मैं सदाचारी बनूं,


सत्य पथ पर ही चलूं


हृदय में दया भाव रहे,


मुस्किलों में भी न घबराओ


सुमति मुझे दे दो 


राष्ट्र प्रेम भाव हृदय में रहे,


हे मां शारदे।


 


दूर कर अज्ञानता


उर में दया का वास हो


ज्योति से भर दे वसुंधरा


यही मेरी नित्य प्रार्थाना


यही मेरी कामना


हे मां शारदे।


 


करुणा का दान दे मां


सत्य मार्ग पर मैं चलता रहू


यही मेरी वंदना,


हे मां मुझे रोशनी दे ज्ञान दे


विद्या विनय का दान दें


हे मां शारदे 


हे मां शारदे।।


**********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


          मानस सदन अपर बाजार


             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


                  246171


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-19


 


होंहिं बिकल सुनि सीता-बानी।


जड़-चेतन सभ जग कै प्रानी।।


    सुनि सीता कै आरत बचना।


    गीधराज कै रह अस कहना।।


तुम्ह सीते मत होहु भयातुर।


कहा जटायू हम बध आतुर।।


    आइ तुरत रावन-बध करहूँ।


    करि सेवा मैं चाहहुँ तरहूँ।।


रावन-रथ सिय लागहिं ऐसे।


बधिक-फाँस महँ चिरई जैसे।।


     की मैनाक कि खगपति होई।


     जानन चह लंकापति सोई।।


तब लखि उमिरि जटायू जाना।


रावन गीधराज पहिचाना।।


     जो चाहेसि निज हित दसकंधर।


      छाँड़ि सियहिं तुम्ह भागहु निज घर।।


नहिं त राम-तप-पावक तुमऊ।


निज कुल सहित सलभ इव जरऊ।।


     गीध-बचन अस सुनि तब रावन।


     भगा सभीत हाँकि रथ वहिं छन।।


उड़ि-उड़ि गीध सबल निज चोंचहि।


करि प्रहार रावन बपु नोचहि।।


    गहि रावन-लट चोंच घसीटा।


    धम भुइँ गिरा दसानन पीटा।।


तब लंकेस निकारि कटारा।


कतरि जटायू-पंखहिं डारा।।


दोहा-भूईं जटायू तहँ परा, राखि न मन महँ रोष।


         रघुपति-काजु सहाइ बनि, परम मुदित हिय तोष।।


                            डॉ0 हरि नाथ मिश्र


********************************


सातवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


पुनि उठाइ क गोद कन्हैया।


स्तन-पान करवनी मैया।।


    मिलि सभ गोप उठाइ क लढ़िया।


    सीधा करि क दीन्ह वहिं ठढ़िया।।


दधि-अछत अरु कुस-जल लइ के।


लढ़िया पूजे पुनि सभ मिलि के।।


    इरिषा-हिंसा-दंभ बिहीना।


    सत्यसील द्विज आसिष दीना।।


बाल कृष्न कै भे अभिषेका।


पढ़ि-पढ़ि बेद क मंत्र अनेका।।


    पाठ 'स्वस्त्ययन' अरु 'हवनादी'।


    नंद कराइ लीन्ह परसादी।।


बिधिवत ब्रह्मन-भोज करावा।


गऊ-दच्छिना-दान दिलावा।।


     कंचन-भूषन-सज्जित गैया।


     द्विजहिं दान दिय बाबा-मैया।।


एक बेरि जब मातु जसोदा।


लइके किसुनहिं आपुन गोदा।।


     रहीं दुलारत हिय भरि नेहा।


     कृष्न-भार तहँ भारी देहा।।


सहि नहिं सकीं कृष्न कै भारा।


तुरत कृष्न कहँ भूइँ उतारा।।


     लगीं करन सुमिरन भगवाना।


     लीला बाल कृष्न जनु जाना।।


रहा दनुज इक कंसहिं दासा।


त्रिनावर्त तिसु नाम उदासा।।


     आया गोकुल होइ बवंडर।


     किसुनहिं लइ नभ उड़ा भयंकर।।


बहु-बहु धूरि उड़ाइ अकासा।


ब्रजहिं ढाँकि जन किया हतासा।।


    उठत बवंडर गर्जन घोरा।


    रजकन-तम पसरा चहुँ-ओरा।।


सब जन बेसुध अरु उदबिगना।


इत-उत भागहिं लउके किछु ना।।


दोहा-घटना अद्भुत घटत लखि,बाबा नंद बिचार।


         सत्य कथन बसुदेव कै, भयो मोंहि एतबार।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


विनय साग़र जायसवाल

पहुँच से दूर साहिल देखता हूँ


करीब-ऐ-मौत तिल-तिल देखता हूँ


 


नज़र जाती है जब भी आइने पर


मुक़ाबिल अपना क़ातिल देखता हूँ 


 


मुलाकातें बढ़ीं जब से यकायक


उसे मैं ख़ुद में शामिल देखता हूँ


 


निगाहें चीख उठती हैं उसी दम


अगर उल्फ़त में बिस्मिल देखता हूँ 


 


नज़र जिस सम्त भी जाती है अब तो


तेरी यादों की महफ़िल देखता हूँ


 


तेरे नक़्श-ऐ-क़दम की ही बदौलत 


निगाहों में मैं मंज़िल देखता हूँ


 


 उसे पूजा है जब से मैंने *साग़र* 


जहां से ख़ुद को ग़ाफ़िल देखता हूँ


 


 🖋️विनय साग़र जायसवाल


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