कालिका प्रसाद सेमवाल

माँ शारदे


तुम्हारी वंदना कैसे करूं


माँ तुम्हारी अर्चना कैसे करूं


सभी शब्दों में समाहित तुम्हीं हो


सभी रागों की प्रतिध्वनित तुम ही हो


सभी देवों कि बुद्धि विवेक दाता तुम्हीं हो ।


 


मांँ शारदे


तुम सत्य के आधार हो


माँ तुम्हीं ज्ञान दायिनी हो


तुम्ही विघा की भण्डार हो


तुम्हीं विवेक और सौन्दर्य हो


प्रकृति में भी तुम्ही हो माँ


 


माँ शारदे


तुम दिव्य स्वरूपा हो


माँ तुम्हारी मूर्त्ति को कैसे गढूं 


मांँ मुझे विद्या विनय का दान दें


मुझ अज्ञानी का कल्याण कर


माँ मुझे वरदान दे, माँ मुझे वरदान दे।


 


कालिका प्रसाद सेमवाल


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तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी


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तुम्हें गीत की हर लहर पर संवारूँ,


तुम्हें जिन्दगी में सदा यदि दुलारूँ,


तुम्हीं सच बताओ मुझे मान दोगी,


बहुत मैं चला हूँ बहुत मैं चलूंगा,


कहीं गीत बनकर तुम्हारा ढलूंगा,


तुम्हीं सच बताओ मुझे गान दोगी।


 


प्रणय की निशानी नहीं रह सकेगी,


भले यह जवानी नहीं रह सकेगी,


तुम्हीं सच बताओ मुझे प्रान दोगी,


हृदय में कहो या सुमन में बिठाऊँ,


तरसते नयन है कहाँ देख पाऊँ,


तुम्हीं सच बताओ कहां ध्यान दोगी।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-21


 


देखि लखन भे राम अधीरा।


कारन कवन कहहु कस पीरा।।


     बहु भयभीत लखन तब कहहीं।


     सुनि प्रभु राम बिकल बहु भवहीं।।


सुनहु लखन बहु राच्छस यहि बन।


इत-उत बिचरैं हर-पल,हर-छन।।


     कहहि मोर मन सिय नहिं तहवाँ।


     वाको तजि आयो तुम्ह इहवाँ।।


करि अनुमान तुरत प्रभु धावहिं।


तट गोदावरि कुटिया जावहिं।।


     पाइ न सीतहिं कुटिया माहीं।


     हो बहु बिकल राम बिलखाहीं।।


खोजत-फिरत राम चहुँ-ओरा।


जनु कोउ चकई चकित चकोरा।।


     खग-मृग,पसु-पंछी जे मिलहीं।


     राम बिकल मन सभतें पुछहीं।।


गिरि-तरु, पुष्प-लता सभ सुनहू।


कहँ सिय रहहिं मोर तुम्ह कहहू।।


    होंहिं मुदित निज भागि सराहहिं।


    सुक-कपोत-खंजन मिलि गावहिं।।


भ्रमर-कोकिला,मीन-कुमुदिनी।


गज-केहरि,ससि-हंस-कमलिनी।।


    सब मिलकर मनोज-धनु-हंसा।


     प्रभु-मुख सुनि भे मुदित प्रसंसा।।


सिय बिनु राम बिकल जनु ऐसे।


ब्याकुल बिरही-कामुक जैसे।।


    सुखदायक प्रभु अज-अबिनासी।


    मनुज-चरित लखि आवै हाँसी।।


मिला जटायू तब मग माहीं।


सुमिरत राम-नाम वहिं ठाहीं।।


     निज गति कारन राम बतावा।


     सीता-हरन व गमन जतावा।।


दसकंधर लइ सीयहिं भागा।


पंखहीन करि मोंहि अभागा।।


     दक्खिन-दिसि लइ रावन गयऊ।


     जेहिं दिसि प्रभु तिसु लंका भयऊ।।


प्रभु सुनि दुखद गीध कै बैना।


तिसु तन छूइ दीन्ह सुख-चैना।।


     भइ प्रसन्न तुम्ह तव तन राखहु।


      जीवन भर सुख पूरा पावहु।।


पावहिं अधम सुगति चररन्ह तें।


मैं त्यागहुँ तन तिनहिं छुवन तें।।


दोहा-करहु कृपा प्रभु मोंहि पे,गीध कहा सबिषाद।


         राम परसि तिसु बदन कह,सुर-पुर होहु अबाद।।


         गीध-प्रार्थना सुनि प्रभू,भेजि ताहि हरि-धाम।


         करि तिसु सभ अंतिम-क्रिया,चले बिनू बिश्राम।।


        जात समय प्रभु तब कहे,गीधराजु समुझाइ।


         मम पितु सन तुम्ह मत कह्यो,सीय-हरन तहँ जाइ।।


मम सर मरि जब रावन जाई।


स्वयं कथा सभ पितुहिं बताई।।


                  डॉ0हरि नाथ मिश्र


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आठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


रहे पुरोहित जदुकुल नीका।


पंडित गर्गाचारहिं ठीका।।


    आए गुरु गोकुल इक बारा।


    जा पहुँचे वै नंद-दुवारा ।।


पाइ गुरुहिं तहँ नंदयिबाबा।


करि प्रनाम लीन्ह असबाबा।।


     ब्रह्मइ गुरु अरु गुरु भगवाना।


     अस भावहिं पूजे बिधि नाना।।


बिधिवत पाइ अतिथि-सत्कारा।


भए मगन गुरु नंद-दुवारा।।


     करि अभिवादन निज कर जोरे।


      कहे नंद अति भाव-बिभोरे ।।


तुमहीं पूर्णकाम मैं मानूँ।


केहि बिधि सेवा करउँ न जानूँ।।


    बड़े भागि जे नाथ पधारे।


     अवसि होहि कल्यान हमारे।।


निज प्रपंच अरु घर के काजा।


अरुझल रहहुँ सुनहु महराजा।।


     पहुँचि पाउँ नहिं आश्रम तोहरे।


      छमहु नाथ अभागि अस मोरे।।


भूत-भविष्य-गरभ का आहे।


जानै नहिं नर केतनहु चाहे।।


     ब्रह्म-बेत्ता हे गुरु ग्यानी।


     जोतिष-बिद्या तुमहिं बखानी।।


करि के नामकरन-सँस्कारा।


मम दुइ सुतन्ह करउ उपकारा।।


    मनुज जाति कै ब्रह्मन गुरुहीं।


    धरम-करम ना हो बिनु द्विजहीं।।


                डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

मुड़ कर देखो मीत


 


मुड़ कर देखो मीत।


तुम्हारा प्रियतम आया है।।


 


मुड़कर देखो मीत।


तुम्हारा मोहन आया है।।


 


मुड़कर देखो मीत।


तुम्हारा दीवाना है यह।


 


मुड़कर देखो मीत।


तुम्हारा मस्ताना है यह।।


 


भूल करो मत मीत।


तुम्हारे पास रहेगा यह।।


 


मुड़कर देखो मीत।


तुम्हारी राह चलेगा यह।।


 


दिल में प्रेम समुद्र।


बनकर लहर उठेगा नित यह।।


 


अब तो देखो मीत।


दर पर तेरे खड़ा आज यह।।


 


इसके दिल को देख।


है दिलदार गुलाब -अतर यह।।


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अब मुझे तुम भूल जाओ


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मुझको कभी याद मत करना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मेरे दिल से बाहर रहना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मेरे दिल में नहीं उतरना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मुलाकात को गलत समझना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मिलने की मत कोशिश करना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


अपने मन से मुझे झटकना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मुझपर गुस्सा करते रहना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मुझको देख विदकते रहना।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ।


मेरे शव पर सतत थूंकना।।


 


आया था अब चलता हूँ।


मुझपर मत तुम कभी तरसना ।।


 


अब मुझे तुम भूल जाओ ।


राम नाम है सत्य न कहना।।


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रहे सिलसिला सदा मिलन का।


भागे प्रति क्षण भाव जलन का।।


 


मिलें खोल दिल साफ-स्वच्छ हो।


कर्म कदापि न हो विचलन का।।


 


सुख-दुःख बाँटें हम मिलजुल कर।


गाँव बसे प्रिय रतन-भलन का।।


 


माँगें मिन्नत एक यही सब।


बने पंथ सुंदर प्रचलन का।।


 


सबको मिले प्रीति का प्याला।


शंखनाद हो दुष्ट दलन का ।।


 


हो सर्वत्र अमी- वट -रोपण ।


उर-उपवन हो मधुर फलन का।।


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सर्वसाधिका मातृ शारदा


 


रसमृता अति परम सुबोधिनि।


ज्ञानामृता विवेकदायिनी।।


 


विद्यामृता विनीत महारथ।


शान्ताकारं प्रिय नि:स्वारथ।।


 


अच्युत आनंदी उत्प्रेरक।


महा सिंधु शुभ भाव उकेरक।।


 


करुणा तरुणा शिवा स्वामिनी।


सत शिव सुंदर स्वाभिमानिनी।।


 


श्रेष्ठ वरेण्य दिव्य ब्रह्माणी।


सुयशदायिनी मधु कल्याणी।।


 


सहज प्रतापपुंज दिनकर सम।


महा शीतला चन्द्रमुखी नम।।


 


धन धनतेरस धर्म धुरंधर।


परम पर्व पावन पति प्रियवर।।


 


नित्यानंदी नर नारायण।


महाव्योमनाद उच्चारण।।


 


मात्रिक वर्णिक छंद तुम्हीं हो।


महाकाव्य स्वच्छंद तुम्हीं हो।।


 


करो कृपा माँ सबके ऊपर।


सम्मोहित हों हम सब तुझ पर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 जब जब अत्याचार का


क्रूर दामन करता खुनी


खेल ।


निरंकुश हो जाता करता


अंह का अट्टहास।।


 


तब निरीह नर में नारायण 


आता खुद जगाने विश्वाश।।


 


धरती पर रखता जब पाँव


स्वागत में पुलकित होती


माता ,कोख पर करती अभिमान।।


 


विरले पल प्रहर आते जब 


माताये भगत सिंह जनती 


समय काल भी अभिमान से


बतलाता धरती के वीर सपूतों


से अपना नाता।।


 


वर्तमान इतराता भविष्य अपने


दामन में वतर्मान की सौगात 


समेटे जाता।।


 


भगत भाव है स्वतंत्रता की


चिंगारी ,अंगार।।


भगत सिंह कराहती तलासती


आँखों की रौशनी उजियार।।


 


भगत युवा चेतना का हुंकार हनक


शंख नाद।


भगत सोच भगत त्याग बलिदान


मर्म ज्ञान का बैराग्य।।


 


रोज भगत सिंह नहीं पैदा होता


परम् शक्ति सत्ता का पराक्रम


प्रतिनिधि युग चेतना पुकार की


संतान ।।


 


मकसद का जीवन मकसद


पर कुर्बान।


सरफरोसि विचार क्रांति 


शंख नाद जोर कातिलों के बाजुओं का सर्वनाश के


आवाहन आवाज़।।


 


दुष्ट ,दमन कारी ,अत्याचारी


अन्याय का प्रबल प्रतिकार


निडर, निर्भीक साहस की


चुनौती का भयमुक्त भगत


नौजवान।।


 


धरती माँ की संतान धरती


के कण कण का रौशन चिराग


भगत धीर ,वीर, धैर्य ,धन्य वर्तमान युवा प्रेरणा महिमा गौरव गान।।


 


जीवन के कुछ वसंत ,सावन 


ही युगों युगों के जीवन का


सार ।।


 


वीरों की गाथा इबारत का


जाबांज भगत।


शौर्य सूर्य की चमक छितिज


का युवा उत्सव उल्लास की


शान।।


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बेटी है दुनियां का नाज


बेटी करती हर काज आज


बेटी अरमानों का अवनि


आकाश।।


 


शिक्षित बेटी नैतिक समाज


बेटी संरक्षण संरक्षित समाज


बेटी बुढापे का सहारा


बेटी माँ बाप के लिये 


ज्यादा संवेदन साज।।


 


बेटी बेटा एक सामान 


बेटी गर कोख में मारी


जाती दांवन दरिद्रता 


दुःख क्लेश का आवाहन


साम्राज्।।


 


बेटी लक्ष्मी है बेटी है


वरदान


 


लिंग भेद का पतन पतित


समाज।


बढती बेटी बढ़ाता गौरव मान


बेटी का सम्मान सशक्त राष्ट


समाज की बुनियाद।।


 


बेटी गुण ज्ञान धन धान्य


की पहचान खान


बेटी से मर्यादा का मान


बेटी निश्चिन्त निर्भय विकास


न्याय का पर्याय।।


 


बेटी नगर हाट चौराहे पर


दानवता का गर हुई शिकार


पीढ़ी का घुट घुट कर प्राश्चित 


 दमघुटता शर्मशार समाज।।


 


बेटी प्यारी न्यारी 


जीवन का आभार


बेटी का रीती ,निति राजनीती


ध्यान, ज्ञान ,बैराग्य ,विज्ञानं


यत्र तंत्र सर्वत्र अधिकार।।


 


बेटी गौरव गूँज गर्जना


बेटी स्वर ,संगीत ,व्यंजना


बेटी अक्षय ,अक्षुण, पुण्य ,कर्म


बेटी संस्कृति संस्कार।।


 


बेटी का ना तिरस्कार 


बेटी संग ना भेद भाव


बेटी शिवा शिवाला ईश्वर


रचना की बाला बला नहीं


सृष्टि की ज्योति ज्वाला।।


 


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 वर्षा ऋतु प्यारी न्यारी 


जिंदगी का एहसास जगावे।।


 


कभी बचपन के अठखेली


कागज़ की कश्ती बारिश 


का पानी बालपन वर्षा का


आनन्द बतावे।।


 


सावन की वर्षा मन हर्षा


जवां प्यार की बहार 


रिम झिम फुहार प्यार का


खुमार ह्रदय भाव से पानी पानी।।


सावन की घटाओं में ख्वाबों की


अदाओ अदा बहार आरजू आसमान अंतर्मन पाये।।


 


वर्षा ऋतु में सावन के सुहाने मौसम में चाँद बादलो के आगोश में इश्क इज़हार की प्यास प्यार में दिल पानी पानी कशिश काश की


प्यास बुझाये।।


 


सावन वर्षा मन हर्षा वो आएगी


मन भायेगी भीगा बदन गालो पे सावन की बुँदे शबनम।          


 


नादां इश्क का जज्बा जूनून जोश जश्न का हाल प्याला मधुशाला का रस मकरंद बतायेगी।।


 


उमड़ घुमण वर्षा के बादल 


मन भबराये जीया तरसाये


कभी घनघोर कभी आये


जायें।।


 


वर्षा ऋतु शुख दुःख दोनों आश


विश्वाश धरती की प्यास बुझायें


सुखी धरती के दामन को ऊसर


बंजर से बचाये।।


 


वर्षा ऋतू प्यारी चुहू ओर


हरियाली अँधा भी हरियाली


खुशहाली का राग सुनाये।।


 


वर्षा ऋतु तीज त्योहारों का


अलख जगाये कृष्ण जन्म


युग दृष्ट्री का देव आयें।।


 


रक्षाबंधन स्वतंत्र राष्ट्र का


वन्दे मातरम् जन गण मंगल


दयाक जय हो गाये।।


 


वर्षा ऋतु प्रकृति प्राण की


बुनियाद इश्क मोहब्बत प्यार


यार का इंतज़ार का अवसर


ऋतु ख़ास गीत गाये।।


 


वर्षा ऋतु हरियाली तीज सावन का झूला सखियो का मेला राधा और कान्हा मधुबन का रास रचावे।।


वर्षा ऋतु का बचपन वर्षा का युवा यौवन पहली कर्षा पहला


सावन गोरी छोरी की मादकता


मस्ती मौसम आये।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार मुक्ता तैलंग, बीकानेर

 


परिचय


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 मुक्ता तैलंग 


पिता का नाम- गजानंद राव तैलंग 


जन्म- 10 जुलाई 1969 भोपाल मध्य प्रदेश। 


शैक्षणिक योग्यता m.a. हिंदी/ m.a. संस्कृत/ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन।        


वरिष्ठ अध्यापिका संस्कृत। मास्टर ट्रेनर, 


शोधार्थी (11 से अधिक शैक्षिक शोध) 


ऑल इंडिया रेडियो कंपेयर 1995 से लगातार। 


लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार,     


1988 से 1995 तक आकाशवाणी बीकानेर से काव्य-पाठ का प्रसारण। 


1988 से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं (भास्कर, पत्रिका, युगपक्ष, राष्ट्रदूत, लोकमत, हनी-मनी, कर्मशीला, शिविरा, शुभिका एवं स्थानीय अखबारों ) आदि में लेख, कविता, कहानी प्रकाशन।    


10 से अधिक मौलिक पुस्तकों का लेखन। भूमिका एवं पुस्तक समीक्षा। 


मंचों से कविता पाठ। 


पता -- 7- द -34 पवनपुरी दक्षिण विस्तार बीकानेर। राजस्थान ।334001 


मोबाइल 9829361964. ≠==============


 


 राज़ रहने दो। ------------------------------ 


छुपे है राज़ जितने दिल में,


उनको राज़ रहने दो।


गुज़ारिश है मेरी तुमसे,


ये तोहमत आज रहने दो।।


 


सच को सच कहने की, 


जल्दी में हो क्यूं इतने।


जुबां हक़ में ज़रा खोली, 


कहा आवाज़ रहने दो।।


 


हौसलों के जब खुले पर, 


नापने को आसमां।


वो पर काट कर बोले,  


बस परवाज़ रहने दो।।


 


रश्क तो हमको बहुत है, 


तराशे कोहिनूरों पर।


जहां चाहो वहां चमको, 


मगर यह ताज रहने दो।।


 


सुनेगा आसमां वाला, 


तो पूरी ख्वाहिशें होंगी।


मिलेगी तुमको ये दौलत, 


अभी सरताज रहने दो।।


 


इबारत झूठ सच सारी, 


आंखों में पढ़ी सबने।


तकलीफ ए जुबां छोड़ो,


ये अल्फाज़ रहने दो।। 


 


छुपे है राज जितने दिल में,


उनको राज़ रहने दो।


गुजारिश है मेरी तुमसे,


ये तोहमत आज रहने दो।।


   


                         


  रोटियां। ------------------------------ 


आदमी की भूख को छलती हैं रोटियां। 


वादों की तसल्ली की बनती है रोटियां।।  


 


परवाह नहीं घर के चूल्हे की किसी को।


अब चिता की आग पे सिकती है रोटियां।।


 


चीखती चिल्लाती सी दिखती हैं हसरतें।


जब कभी अचानक जलती है रोटियां।‌।


 


मिलनी तो चाहिए ये सबके हक की बात है।             


कुछ खास कीमतों पर बिकती है रोटियां।।


 


उम्र भर हम्माली का हासिल सिफ़र रहा।


किस जमीं किस पेड़ पर फलती हैं रोटियां।।


 


  - मुक्ता तैलंग,बीकानेर. =============== 


                                                       समाज के जिस्म पे नासूर ना ये फोड़े होते।


कुछ बे लगाम घोड़े इतने भी ना दौड़े होते। 


 


उनकी ज़ुबां खुलती न टापों से दहलते दिल।


साइसों के हाथ में उस वक्त जो कोड़े होते।।


 


हवा में ना जहर होता बाकी ना प्यास रहती।


रुख़ यूं ज़लज़लों के इस ओर न मोड़ें होते।।


 


ये नफरत की आंधियां जो सांसों में है तुम्हारी।


बस्तियां न लुटती गर दिल से दिल जोड़े होते।।


 


ये चीखो पुकार सारी दहशत का नतीजा है।


रोते न बि्लबिलाते घर तुमने न तोड़ें होते।।


 


जो दर्द दूसरों का भी दिल में तुम्हारे होता।


इकतरफा धाराओं के संदर्भ ना जोड़े होते।।


 


पट्टी पढ़ानी कौन सी अब रह गई है बाकी।


न नींव खोदते तुम न हम राह के रोड़े होते।।


 


-मुक्ता तैलंग, बीकानेर। ===============


                                                            कौन परवाह करे ज़माने की।


हमें तो आदत है मुस्कुराने की।।


 


लोग जो आपको नहीं समझें।


क्या ज़रूरत उन्हें समझाने की।।


 


वो अकीदत पे वार करके भी।


ख्वाहिशें रख रहे भुलाने की।।


 


आज उल्फत पे लोग हंसते हैं।


ये भी एक चीज है भुनाने की।।


 


छोड़ भी दीजिए बुरी आदत। 


टूटे रिश्तों को आजमाने की।।


 


ये बारिशें भी अब तेज़ाब हैं।


कोशिशें है तुम्हें जलाने की।।


 


लेके हक़ की मशाल फिरता है।


कौन सुनता है इस दीवाने की।।


    


         -मुक्ता तैलंग, बीकानेर।


 


चेहरे पे चेहरा लगा लीजिएगा।


बातें भी थोड़ी बना लीजिएगा।। 


 


कीमत कहां है सच्चाईयों की।


अच्छाईयों को दबा लीजिएगा।। 


 


बातों में मिश्री सी तुम घोले रखना।


अश्कबार आंखें चुरा लीजिएगा।। 


 


लगी आग घर में बुझानी तो होगी। 


जल जाए दामन जला लीजिएगा।।


 


अपनों को सब कुछ बताने से पहले।


कुछ खास बातें छुपा लीजिएगा।‌।


 


छोड़ो भी दुनिया के रिश्ते निभाना।


बदले में किस से वफ़ा लीजिएगा।।  


 


खुद की मुसीबत ही टलती नहीं है। 


किस-किस की सर पे बला लीजिएगा।।


 


नाहक क्यों खुद को परेशान करना। 


जां बाकी है जब तक मजा लीजिएगा।।


 


पाबंदियों के भी दोहरे है तेवर।


चल जाए जैसे चला लीजिएगा।।


 


-


सुरेन्द्र पाल मिश्र

सबसे प्यारा रिश्ता बिटिया ईश्वर का उपहार।


 बिन बेटी परिवार अधूरा बेटी है उजियार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 जीवन लागे सूना सूना अन्तर सूना बाहर सूना।


 वो आंगन क्या हो ना जिसमें बेटी की किलकार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 मांगो तुम ना हीरा मोती मांगो तुम नयनों की ज्योती।


 रिश्ते के फूलों का मांगो बेटी जैसा हार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 नन्हीं मुन्नी गोदी खेले डगमग डगमग आंगन डोले।


 ममता और स्नेह के आंचल बचपन का संसार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 बड़ी हुई कालेज को जाये आकर मां का हाथ बटाये।


 साफ़ सफाई करके राखे घर को साज संवार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 लाल सोहागी जोड़ा बिंदिया पहने चूड़ी कंगन बिछिया।


 बहू रूप में चली सजाने एक नया परिवार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 सदा सुखी हो बिटिया रानी धूमिल कभी न याद पुरानी।


 कष्ट ताप में प्यारी बिटिया शीतल मलय बयार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


 भाग्यवान पुत्री जो पाये श्री सम्पति उसके घर आये।


 डाटर्स डे आशीष हमारा दुःख आये ना द्वार।


          बिटिया है प्रभु का उपहार।


    सुरेन्द्र पाल मिश्र


विवेक दुबे निश्चल

बहुत कुछ लिख गया मैं वक़्त में बहकर ।


 साथ राह यूँ वक़्त , वक़्त पर मेरा होकर ।


रूठते रहे अपने कभी वक़्त की राहों पे ।


 यूँ सहारा दिया अल्फ़ाज़ ने मेरा होकर ।


 


बहुत कुछ...


 


 अश्क़ गिरे पन्नो पर , लफ्ज़ बनकर ।


  दर्द निगाहों से , चले ग़जल बनकर ।


  सफ़े-दर-सफ़े सफर रहा कलम का 


  लफ्ज़ लफ्ज़ मेरा हिसाब बनकर ।


 


बहुत कुछ...


 


  ख़्वाब सहेजे कुछ ख़्याल समेटे हुए।


 कुछ सँग उठ खड़े कुछ अधलेटे हुए ।


 थी जमीं हक़ीक़त ख़्वाब के ख़यालों में।


 रही अंगूर की बेटी काँच के प्यालो में ।


 


बहुत कुछ ...


 


 ख़ामोश थीं वो खुशियाँ , दर्द बोलते रहे ।


 तूफ़ान के इशारों से ,समन्दर डोलते रहे ।


 मैं होश में रहा, मगर , मदहोश रहकर।


 इश्क़ तेरे अंदाज से, मैं हैरां होकर ।


 


          .. विवेक दुबे निश्चल


 डॉ. राम कुमार झा निकुंज

मिटे भोर पा अरुणिमा


 


सुन्दर मधुरिम मांगलिक , हो जीवन उल्लास।


हो उदार मानस मधुर , नवप्रभात उद्भास।।१।।


 


प्रतिमानक लेखन बने , देश काल परिवेश।


सत्य पूत अभिव्यक्ति से ,जन जागृति संदेश।।२।।


 


चहुँ विकास सतरंग बन , इन्द्रधनुष नीलाभ।


खिले अधर आगम युवा,खिले प्रगति अरुणाभ।।३।।


 


करें शान्ति अभिलाष मन , रखें भाव कल्याण।


मिटे वतन से त्रासदी , दीन हीन जन त्राण।।४।।


 


गेह गेह दीपक जले , शिक्षा शुभ आलोक।


खुशियाँ सुखमय जिंदगी , मिटें रोग भय शोक।।५।।


 


उदरानल तृषार्त जब , बुझे अन्न जल काश।


गेह वसन तन सुलभ हो ,कटे तभी दुख पाश।।६।।


 


जीवन जन अहसास मन, शासन में विश्वास।


अगड़े पिछड़े भेद का , मिटे हृदय आभास।।७।।


 


जाति पाँति अरु धर्म ही , है अवनति का मूल।


आरक्षण की फाँस से , हो उन्नति प्रतिकूल।।८।।


 


लोभ मोह ईर्ष्या कपट , झूठ लूट मद चाह। 


ये विनाश की कालिमा , हो विकास गुमराह।।९।।


 


लोकतंत्र हो तब सफल, शासक हो ईमान।


भाव मनसि इन्सानियत , हो सबका सम्मान।।१०।।


 


क्षतविक्षत अभिलाष मन , सौरभ विरत निकुंज।


पतझड़ बन आहें भरे , मुरझाये दलपूँज।।११।। 


 


कुलीनता बाधक सदा , विद्योत्तम बेकार।


फँस आरक्षण दीनता , लूट घूस सरकार।।१२।।


 


जीवन बस अपमान पा , सहा सदा उपहास।


नीति त्याग सद्कर्म पथ,कठिन जटिल आभास।।१३।।


 


कविरा है अवसाद मन , शोकाकूल आगम्य।


मिटे भोर पा अरुणिमा , जाति धर्म वैषम्य।।१४।।


 


 डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


रवि रश्मि अनुभूति

लो प्रभु के गुण गावत ।


शांति सुख सब पावत ।।


सुन्दर सी छवि भावत ।


ध्यान सभी प्रभु आवत । ।


 


छोड़ कहाँ अब जावत ।


ये जीवन अब भावत ।।


लो तम अब मिटावत ।  


ज्ञान प्रकाश दिखावत ।।


 


दूर कहाँ अब धावत ।


दर्शन पावत जावत ।।


मंदिर तो सब जा कर ।


भोर भयी सब गा कर ।।


 


आज नहीं अब सोवत ।


सोवत जो वह खोवत ।।


खोये सभी कुछ रोवत ।


पाप कहाँ अब धोवत ।।


 


(C) रवि रश्मि अनुभूति


कालिका प्रसाद सेमवाल

संस्कृति की पोषक होती है बेटियां


★★★★★★★★★★


हिमालय की चोटियां होती है बेटियां,


प्रेरणा की मूरत होती है बेटियां,


शहद सी मिठास जैसी होती है बेटियां,


पतित पावनी गंगा सी होती है बेटियां।


 


मां बाप की दुलारी होती बेटियां,


भोर की किरण होती है बेटियां,


बासन्ती बयार जैसी होती है बेटियां,


जीवन की व्याख्या होती है बेटियां।


 


दो परिवारो की लाडली होती बेटियां,


धर्म, न्याय की रक्षक होती है बेटियां,


प्रातःकाल की प्रार्थना होती है बेटियां,


संकट में राह बताती है बेटियां।


 


त्याग-तप की खान होती बेटियां,


कुल का गौरब होती है बेटियां,


बेटे से ज्यादा जिम्मेदार होती बेटियां,


अपनी कक्षा में प्रथम आती है बेटियां।


 


वैदिक ऋचाएं जैसी होती है बेटियां,


गुरु ग्रंथ की वाणी जैसी होती बेटियां,


भोर की शीतल हवा होती है बेटियां,


दक्षता का दीप होती है बेटियां।


 


जन्नत का नूर होती है बेटियां,


सबका ध्यान रखती है बेटियां,


ईश्वर की विलक्षण रचना है बेटियां,


परिवार की रौनक होती है बेटियां।


 


बेटा बेटी में न करो कोई भेद भाव,


दोनों को दे बराबर का प्यार,


आओ करें बेटियों का संरक्षण,


दे इनको महत्व और अभिरक्षण।।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अष्टावक्र गीता-13


महासिंधु सम मैं वृहद,यह जग उर्मि समान।


त्याग-ग्रहण बिन मैं रहूँ,एकरूप सँग ज्ञान।।


 


चाँदी रहती सीप में,ज्यों मुझमें संसार।


रहूँ ज्ञान सँग मान मैं, त्याग-ग्रहण बिन सार।।


 


सब प्राणी मुझमें रहें,सब में मेरा वास।


त्याग-ग्रहण बिन मैं रहूँ,कर यह ज्ञानाभास।।


              © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

भारत की बेटियाँ


भारत का नाम रौशन,करतीं हैं बेटियाँ,


नित-नित नवीन शोधन,करतीं हैं बेटियाँ।


 


यद्यपि ये कोमलांगी,होतीं हैं बेटियाँ,


कर लेतीं श्रम कठिन,फिर भी ये बेटियाँ।।


 


जल में हों,चाहे नभ में,होवें धरा पे वे,


नारी-प्रभा को शोभन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


वतन की आन-बान थीं,पहले भी बेटियाँ,


झंडे का आज रोहण, करतीं हैं बेटियाँ।।


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कर्तव्य शासकीय,या हो प्रशासकीय,


सियासती सुयोजन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


होतीं अक्षुण्ण कोष ये,असीम शक्ति का,


कुरीतियों का रोधन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


साहस अदम्य इनमें,रहता विवेक है,


संघर्ष का ही भोजन,करतीं हैं बेटियाँ।।


 


घर में रहें या बाहर,चाहे विदेश में,


शर्मो-हया का लोचन,रहतीं हैं बेटियाँ।।


 


जीवित हैं मूर्ति त्याग की,अपनी ये बेटियाँ,


नहीं कभी प्रलोभन,करतीं हैं बेटियाँ ।।


     


रिक्शा चला भी लेतीं,भारत की बेटियाँ,


परिवार का प्रबंधन,करतीं हैं बेटियाँ।।


             © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


सुषमा दीक्षित शुक्ला

प्यार मेरा आजमा कर देख लो।


इक दफा मुझको बुला कर देख लो।


 


रात ओ दिन जल रही शम्मे वफ़ा।


 हो सके तो पास आकर देख लो।


 


 खाक का इक ढेर हूं तुम बिन सनम ।


इक दफा आंखें उठाकर देख लो।


 


 जोगने बन चुकी रातें दिन हुए बेनूर हैं।


 और भी मुझको मिटा कर देख लो ।


 


अश्क सूखे आंख में अब लव सिले हैं।


 रूह की चादर उठाकर देख लो।


 


 वक्त कितना बेरहम था एक दिन।


 दर्द के लम्हे छुपा कर देख लो ।


 


तेरे बिना बिल्कुल चला जाता नहीं।


फिर मुझे दिल से लगाकर देख लो। 


 


 तुम न आओ तो बुला लो यार मेरे।


 सुष पुराने पल चुरा कर देख लो।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


डॉ. रामबली मिश्र

भविष्य


 


अति उज्ज्वल भविष्य तब होगा।


जब मानव मन सुंदर होगा।।


 


जब तक उत्तम भाव नहीं है।


तब तक उसका भाव नहीं है।।


 


अच्छा बनने की इच्छा ही।


देती सर्वोत्तम शिक्षा ही।।


 


जागरूक जो वर्तमान में।


वह जाता कल आसमान में।।


 


वर्तमान को सदा सँवारो।


कल को अब अरु अभी उतारो।।


 


कल का देखो सुंदर सपना।


हो भविष्य अति सुंदर अपना।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*आओ साथी बनकर*


   


आओ साथी बनकर ।


साथ निभाना चलकर।।


 


तेरा एक सहारा।


जाना नहीं छोड़कर।।


 


मैं मासूम बहुत हूँ।


आ हमराही बनकर।।


 


मेरा चलना मुश्किल ।


ले चल हाथ पकड़कर।।


 


 अपनों के सहयोगी।


हैं पृथ्वी पर अक्सर।।


 


बेगानों का साथी।


बनने का यह अवसर।।


 


बेगानों को जोड़ो।


दीवार तोड़ चलकर।।


 


भेद मिटाते रहना।


बेगानों को अपनाकर।।


 


बेगाना मन का भ्रम।


 भ्रम को रौंद चलाकर।।


 


कठिन नहीं संभव यह।


अभ्यास निरन्तर कर।।


 


जीने का अर्थ यही।


जीना सबका बनकर।।


 


जो करता सबका है।


 मरने पर वही अमर।।


 


डॉ.रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निनिनिक

जीवन की पहली किरण , पड़ी मनुज इह लोक।


बेटी बहना माँ कहो , पत्नी बन हर शोक।।१।।


 


प्रथम सृष्टि की अरुणिमा , करती जग आलोक।


निर्भय नित सबला करो , बिन बाधा या रोक।।२।।


 


बढ़ा मनोबल बेटियाँ , करो साहसी धीर।


पढ़ा लिखा समरथ करो , निर्माणक तकदीर।।३।।


 


ममता समता प्रीति की , तनया नित आगार।


भरी सदा करुणा दया , खुशियाँ दे संसार।।४।।


 


गेह रोशनी बेटियाँ , दीपशिखा सम्मान।


परहित रत मेधाविनी , परकीया बन शान।।५।।


 


सरला सहजा मिहनती , चढ़ तनया सोपान।


रचे कीर्ति संसार को , पाती हर अरमान।।६।।


 


शक्तिशालिनी बेटियाँ , भरो मनसि उत्साह।


रक्षण नित बेटी करो , पूर्ण करो हर चाह।।७।।


 


सींचो स्नेहिल बेटियाँ , बिना किसी मनभेद।


जीवन हो हर्षित सुलभ , करो नहीं उच्छेद।।८।।


 


मानक कुल की बेटियाँ , विधलेखी उपहार।


जननी भगिनी बेटियाँ , महाशक्ति अवतार।।९।।


 


बेटी है शृङ्गार जग , रखो लाज सम्मान। 


साधन बन उत्थान का , नार्यशक्ति वरदान।।१०।।


 


धीर वीर योद्धा वतन , शिक्षित ज्ञान विज्ञान।


कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री कृति गान।।११।। 


 


लालटेन प्रतिबिम्ब। नित , दर्शाती अरमान।


चढ़े ऊँचाई प्रगति पथ , बेटी कुल अभिमान।।१२।।


 


संकल्पित यायावरित , सहने को संघर्ष।


हर बाधा को पार कर , चढ़े सुता उत्कर्ष।।१३।।


 


खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि सोम।


लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।। 


 


डॉ. राम कुमार झा निनिनिक


नई दिल्ली


निशा अतुल्य

बेटी चली


रात तारों भरी धीरे धीरे चली है


चाँद सँग जैसे चाँदनी चली है 


सकुचाई सी एक नाजुक कली है


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन बन चली है।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


बाबुल का आँगन छूटा चला


भाई बहनों का नेह पीछे खड़ा


मैया की आँखे हुई है सजल 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली ।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


ये अम्बुवा की डारी पे झूला पड़ा


सखियों का सँग छूट पीछे खड़ा 


वो बचपन की यादें वो प्यारी सी बातें


सभी आँचल में भर कर चली 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


अब नए रिश्ते नाते निभाने ही होंगे


जो कल थे पराए आज अपनाने होंगे


प्यार का सागर नैनो में भर चली है 


नन्ही कली फूल बनने चली है 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


पराए थे जो हुए सभी उसके अपने 


अपनो को छोड़ जो आज चली है 


कैसी ये दुनिया की रीति बनाई 


बेटी कभी नही होती पराई 


उसे तो दो घर इस जन्म में मिलें है 


दो कुल की मर्यादा बन वो खिले है ।


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


निशा अतुल्य


डॉ निर्मला शर्मा

मेरी बिटिया


मेरी बगिया का ऐसा वो फूल है


 मुस्कुराए करें दुख दूर है 


मेरी बिटिया ,मेरी बिटिया


मेरी बिटिया ,मेरा गुरूर है


 


बिटिया मेरी लाडो, वो नीलम परी 


उसके कदमों से है ,मेरी बगिया हरी 


 मेरी आंखों में चमके,जो नूर है 


वो है मेरी छवि, मेरा प्रतिरूप है 


 


मेरी बगिया का ऐसा, वो फूल है


 मुस्कुराए करें ,दुख दूर है


 मेरी बिटिया ,मेरी बिटिया


मेरी बिटिया मेरा, गुरूर है 


 


मेरे जीवन में ,उपहार है वो


 करती पूरा ये परिवार है वो


 मेरे बेटे की बहना, वह प्यारी प्यारी 


अपने पापा की नन्ही सी, कोमल परी


 


 मेरी बगिया का ऐसा, वो फूल है


 मुस्कुराए करे, दुख दूर है


मेरी बिटिया, मेरी बिटिया


मेरी बिटिया, मेरा गुरुर है


 


 करेगी वो एक दिन, नाम रोशन 


बनेगी सरल सौम्य, पावन 


अपने पैरों पे, एक दिन खड़ी होगी वो


 हमको जानेगा ये जग, होगा नाम वो


 


 मेरी बगिया का ऐसा, वो फूल है 


मुस्कुराए करें ,दुख दूर है


 मेरी बिटिया मेरी बिटिया 


मेरी बिटिया मेरा गुरूर है


 मेरी बिटिया मेरी बिटिया-----------------------


 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


संजय जैन

बेटियां


 


घर आने पर,


दौड़कर पास आये।


और सीने से लिपट जाएं,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


थक जाने पर,


स्नेह प्यार से।


माथे को सहलाए,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


कल दिला देंगे,


कहने पर मान जाये।


और जिद्द छोड़ दे,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


रोज़ समय पर 


दवा की याद दिलाये।


और साथ खिलाये,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


घर को मन से,


फूल सा सजाये।


और सुंदर बनाए।


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


सहते हुए भी, 


दुख छुपा जाये।


और खुशियां बाटे,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


दूर जाने पर,


जो बहुत रुलाये।


याद अपनी दिलाये,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


पति की होकर भी,


पिता को भूल पाये।


सुबह शाम बात करे,


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


मीलों दूर होकर भी, 


जो पास होने का।


एहसास दिलाये, 


उसे कहते हैं बिटिया।।


 


इसलिए अनमोल "हीरा" 


बेटियां कहलाती है।


और घरों में संस्कार,


भर पूर फैलती है।।


 


इसलिए इन्हें सरस्वती,


दुर्गा और लक्ष्मी कहते है।


और ये कविता संजय,


बेटी दिवस पर बेटियों को समर्पित करता है।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


लखीमपुर खीरी में पहला ऑनलाइन कवि सम्मेलन

ऑनलाइन काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका के द्वारा दिनांक 6 अप्रैल 2020 को एक jका ट्रायल किया गया जिसमें लगभग 50 कवियों ने अपना नामांकन किया उसमें से 27 कवियों ने ऑनलाइन प्रतिभाग भी किया। कुछ कभी गण नेटवर्क और ऐप की दिक्कतों के चलते कनेक्ट नहीं हो पाए हालांकि वह लोग भी हमारे संपर्क में बने रहे ।इसके लिए मैं खेद व्यक्त करता हूं ।और जल्दी ही एक दूसरा ट्रायल किसी दूसरे ऐपया इसी के माध्यम से करने की योजना बना रहा हूं।जो लोग कनेक्ट नहीं हो पाए या कनेक्ट हो पाए और जिन का काव्य पाठ नहीं हो सका उन लोगों को वरीयता क्रम में अगले कार्यक्रम में सबसे पहले काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। काव्य पाठ करने वालों में


 आदरणीय श्रीकांत दुबे जी


 कैलाश सोनी उर्फ सोनू वैष्णवी पारसे छिंदवाड़ा से


 नितेश उपाध्याय 


अश्क बस्तरी 


सुनीता महेश्वरी 


दीपक शर्मा 


संदीप कुमार बिश्नोई पंजाब से 


प्रदीप भट्ट दिल्ली से 


डॉ रेखा सक्सेना 


आचार्य गोपाल जी बरबीघा बिहार से 


आदरणीय राजीव पांडे जी नोएडा दिल्ली से 


अविनाश कुमार तिवारी चंपारण बिहार से


 विजयलक्ष्मी जी बिहार से


 संजय जैन मुम्बई से 


ज्ञानेन्द्र् मोहन जी ने


 अपना काव्य पाठ सभी को सुनाया जिसे ऑनलाइन देख और सुनकर के एक बहुत ही रोमांच का अनुभव हुआ। प्रतिभाग करने वालों में।


 अर्चना द्विवेदी जी अयोध्या


 श्याम सागर जी सीतापुर


 डॉ आशा त्रिपाठी जी


राकेश सक्सेना जी 


इलियास अली जी।


 सत्यवान सौरभ जी


 अभिजीत त्रिपाठी जी 


संतोष कुमार वर्मा जी


 देवराज शर्मा जी 


रश्मि लता मिश्रा जी सम्पादक काव्यरंगोली


रूपेश कुमार जी 


नन्दलाल त्रिपाठी जी 


अनिल गर्ग जी


आलोक शुक्ल जी


मुन्नालाल मिश्र जी


माता प्रसाद रस्तोगी जी


सरिता शुक्ल जी


कालिका प्रसाद सेमवाल जी


हेमलता त्रिपाठी गुड़िया जी


डी एस दधीचि


गीता पाण्डेय जी जबलपुर


नीलम मुकेश वर्मा झुंझुनू


शिवानी वर्मा सिकंदरा


अमित कुमार दवे


सुनीता माहेश्वरी नासिक


इन्दु झुनझुनवाला जी


डॉ दीप्ति गौड़


ऑनलाइन मौजूद रहे और सब की रचनाओं का सुनने का लाभ तो मिला किंतु नेटवर्क की दिक्कत से मीटिंग डिस्कनेक्ट हो जाने की वजह से आप लोगों का काव्य पाठ नहीं हो सका ,इसके लिए खेद है और अगले ट्रायल में आप लोगों को वरीयता क्रम में काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा जो भाई बहनों नामांकन करा चुके थे समूह में या व्यक्तिगत रूप से उनसे अत्यंत विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूं कि वो लोग भी संपर्क में बने रहें ।और अपना नाम सूचीबद्ध करवा दे,ताकि अगले ट्रायल में उनको वरीयता क्रम से काव्य पाठ करवाने का अवसर दिया जा सके ,बहुत-बहुत सभी का आभार एवं बधाई क्यों की यह ट्रायल था अतः इस कवि सम्मेलन में किसी भी तरह का कोई पुरस्कार पत्र जारी नहीं किया जा रहा है ,हां क्योंकि यह पहला कार्यक्रम था इसलिए हम सभी सम्मानित प्रतिभागियों को सहभागिता सम्मान से सम्मानित करेंगे यह सम्मान पत्र शीघ्र ही आप लोगों को भेज दिया जाएगा। बहुत-बहुत धन्यवाद बधाई। एवं आभार हम आप लोगों के लिए हमेशा कुछ नया प्रयोग और कुछ नया करने के विषय में प्रयासरत रहते हैं , आप लोग भी हर तरह का सहयोग देते हैं ,जिससे यह साहित्यिक रथ अनवरत रूप से अपनी पूरी गति के साथ गतिमान हो करके यश और कीर्ति की पताका को फहराते हुए विश्व स्तर पर आपकी और अपनी पहचान बनाने और उस प्रतिष्ठा को बराबर संजोए रखने सफल है । इस सफलता का श्रेय आप सभी जांबाज सिपाहियों के नाम। धन्यवाद ,जय हिंद ,जय भारत।


 आप सबका अपना ही आशुकवि नीरज अवस्थी एवं समस्त काव्य रंगोली टीम


 खमरिया पंडित लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश 26 27 22 


मो0 99192 56950


अर्चना शुक्ला मुंबई

आँखों में 


कितने रंग छुपा रखे हैं माँ 


तुम्हारी आँखों में |


गज़ब का भोलापन और चंचलता है


तुम्हारी आँखों में ||


सूरज जैसा तेज ,चाँद सी शीतलता


तुम्हारी आँखों में |


माँ की ममता का सागर भी छुपा 


तुम्हारी आँखों में ||


प्रियतमा का प्यार और मनुहार 


तुम्हारी आँखों में |


सागर जैसी गहराई और कई राज़ 


तुम्हारी आँखों में ||


मनमोहक ,मनमादक पर ठहराव 


तुम्हारी आँखों मैं|


प्यार से संहार तक कई रंग 


तुम्हारी आँखों में ||


अर्चना शुक्ला 


 मुंबई


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ.सुमन शर्मा भावनगर

——डॉ.सुमन शर्मा


शिक्षा—एम.ए.पीएच.डी(यशपाल साहित्य में नारी चित्रण)


विषय—हिन्दी 


प्रकाशन—१.सैलाब(कविता संग्रह)


              २. मन की पाती (कविता संग्रह)


              ३.रहोगी तुम वही(कहानी संग्रह)


              ४. यशपाल के उपन्यासों में नारी के 


                  विविध रूप ।   


              ५. पत्र पत्रिकाओं में विविध विषयों    


पर आलेख, शोध पत्र , कविताएँ प्रकाशित ।


                ६. आकाशवाणी से अनेक वार्तालाप,कविताएँ प्रसारित ।


सम्मान—-अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन द्वारा सम्मानित ।


         —-पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी द्वारा


               सम्मानित ।


संप्रति—-श्रीमती वी पी कापडिया महिला आर्ट्स


             कोलेज भावनगर में हिन्दी विषय की 


             प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत ।


 


कान्हा 


——-


गोकुल कभी,मथुरा तो कभी वृन्दावन में,


तेरे ख़यालों में भटकी कान्हा मन ही मन में।


 


मोर मुकुट,कानन कुंडल,बंसी मधुर अधर में,


अद्भुत श्रृंगार,मोहिनी मूरत तेरी बसे नैंनन में।


 


हर श्रेष्ठ में तेरा निवास,रहता तु कण कण में,


धरूँ ध्यान तेरा,रहूँ मगन हरपल तेरे हीआराधन में।


 


राधा का तु,मीरा का है गोपियों का तु कनैया,


सुनूँ मधुर तेरी बंसी की धुन खो जाऊँ मैं तुझी में।


 


हो जाऊँ लीन,रूह में बसे,न रहे अस्तित्व मेरा,


मुक्ति पाऊँ,द्वार आऊँ,देना स्थान अपने चरणों में।


सुमन शर्मा ।


 


 


जरूरी था


 


तुझसे मेरा मिलना ज़रूरी था,


उस वक़्त का थमें रहना ज़रूरी था।


 


अनकही रह गई संवेदनाओं का,


शब्दों में अभिव्यक्त होना ज़रूरी था।


 


उलझे हुए रिश्तों की कश़्मकश को,


तद्वीर से सुलझाना ज़रूरी था।


 


बदले वक़्त में दिलों तक पहुँचने को,


फ़ासलों का मिटना ज़रूरी था।


 


गहरे समन्दरों में उठती लहरों का,


साहिलों तक पहुँचना ज़रूरी था।


 


चैन ओ सुकून से रुखसत के लिए,


ज़िन्दगी,तेरा इक़रार ज़रूरी था।


 


सुमन शर्मा ।


 


मैं…


———.


आजकल मैं.. मनचाहा करती हूँ ...।


जागती हूँ…,करवटें बदलती हूँ,


अंधेरे अनजान..अकेले.रास्तों पर


चलते चलते दूर कहीं निकलती हूँ….।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ ...।


 


उडती हूँ, उड़कर पहूँच जाती हूँ,


रंगबिरंगी तितलियों के देश में…,


मैं फूलों संग बतियाती हूँ…, 


सपनों की दुनिया में विचरती हूँ...।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।


 


अपने लिए बचाकर रखे..


मन के कोने में कभी छिपती 


कभी बाहर निकलती हूँ …,


यों ख़ुद से आँखमिचौनी खेलती हूँ...।


आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।


 


तपती दुपहरी में हंसकर खिलते..


गुलमोहर,अमलतासों को हाथ,


हिलाकर मिलती हूँ,देख हौंसले...


उनके…,मैं भी तो खिलती हूँ ।


आजकल मैं मनचाहा करती हूँ ।


 


न कुछ कहती हूँ,न समझती हूँ 


जेही विधि राखे तु ,मैं रहती हूँ 


असार तेरे इस संसार में..,


न मैं रचती हूँ न बसती हूँ…,


आजकल, तु चाहे वैसा करती हूँ


तु मन का करवाये, मैं करतीं हूँ ,


आजकल मैं मनचाहा करती हूँ...।


सुमन 


 


 


बरसात 


—————-


ज़िक्र में तेरी बातें होंगी,


जल्द ही मुलाक़ातें होंगी।


 


खुशियों के बादल उमड़ेंगे,


नैनों में बरसातें होंगी।


 


मन का मयुरा नाच उठेगा,


यादों की बारातें होंगी।


 


मेघ लायेंगे संदेशे,


पुरनम सी वो रातें होंगी।


 


पुरवैया रूख बदलेगी,


जीवन को सौग़ातें होंगी।


 


सुमन शर्मा


 


 


कुछ लम्हे 


————


ज़िन्दगी….


आज मन है..


तुझसे बतियाने का…,


तेरे सफ़हों को पलटने का…,


तेरे हरफ़ों पर नज़रें डालने का,


तूने क्या दिया..,


तुझसे क्या लिया…,


उसे समझ पाने का…..।


 


ज़िन्दगी…,


तेरे साथ चलते चलते…, 


कुछ वादे टूटे,कई रस्ते छूटे,


कुछ सपने टूटे, कई अपने रूठे..,


तब जाकर जिये..,


कुछ पल ... अनूठे।


 


ज़िन्दगी… ,


तेरी किताब के,


फटे हुए वरकों में..,


मिले कुछ दर्द के लम्हे,


कई पल अकेले…,


कुछ उदास घड़ियाँ,


कभी दुनिया के मेले..।


तुने जो दिया न था कम….,


रहा तुझसे शिकवा गिला..हरदम…!


 


फिर भी...


तेरे लिखे हर सफ़हे को…,


जतन से जोड़ने की कोशिशों में,


नेक इरादों से…,


तुझसे वादा किया..,


तेरे हर लम्हे को…,


जी भर के जिया...।


               सुमन शर्मा।


डॉ. रामबली मिश्र

लगे प्यार का प्यारा नारा


 


हो गिरफ्त में यह जग सारा।


लगे प्यार का नारा प्यारा।।


 


प्यार छोड़ कुछ बात न करना।


प्यार-सिंधु में बहते रहना।।


 


लहरों में अति प्यार कसा हो।


घरों-घरों में प्यार बसा हो।।


 


भीतर से हर मानव प्यारा।


अंत:पुर में हो उजियारा।।


 


अंधकार को मिट जाने दो।


निशा काल को पिट जाने दो।।


 


कुत्सित भावों को जलने दो।


गंदे गाँवों को हटने दो।।


 


दूषित आब-हवा को काटो।


शुचिता से दुनिया को पाटो।।


 


सुंदर शिक्षा नीति बनाओ।


संस्कार के गीत सुनाओ।।


 


सदा प्यार से शिक्षा देना ।


सतत प्यार की दीक्षा देना।।


 


पाठ्य पुस्तकें अति प्यारी हों।


शुद्ध आचरण सी न्यारी हों।।


 


बनें चरित्रवान सब शिक्षक।


नैतिकता से युक्त परीक्षक।।


 


अनुशासन का बीजारोपण।


पावन कर्मों का आरोहण।।


 


सभी बनें सत्यार्थ समर्पित।


खुद को करें प्यार को अर्पित।।


 


सदा प्यार का शंखनाद हो।


आत्मवादमय प्यारवाद हो।।


 


रामकृष्ण की सेना आये।


प्यार सूत्र के दीप जलाये।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर श्री हंस

अमृत और जहर एक ही


जुबान पर निवास करते हैं।


इसीसे लोग आपके व्यक्तित्व


का सही हिसाब करते हैं।।


कभी नीम तो कभी शहद


हो जाती ये जिव्हा हमारी।


जान लो इसी से जीवन में


रिश्तों का आभास करते हैं।।


 


बहुत नाजुक दौर कि किसी


से मत रखो तुम बैर।


हो सके जहाँ तक मांगों प्रभु


से तुम सब की खैर।।


तेरी जुबान से ही तेरे दोस्त 


और दुश्मन भी बनेंगें।


हर बात बोलने से पहले तुम


सोचो जाओ कुछ देर ठहर।।


 


तीर कमान से निकला तो फिर


यह वापिस नहीं आ पाता है।


शब्द भेदी वाण है तो फिर ये


घाव करके ही आता है।।


दिल से उतरो नहीं कि तुम


किसी के दिल में उतर जाओ।


गुड़ गर दे नहीं सकते तो गुड़


सा बोलने तेरा क्या जाता है।।


 


जान लो खुशी देना ही खुशी 


पाने का आधार होता है।


वह ही खुशी देता जिससे


कोई सरोकार होता है।।


खुशी कभी आसमान से


है कहीं टपकती नहीं।


न ही कहीं पर खुशी का 


कोई व्यापार होता है।।


 


मन की आँखों से भीतर सबके


जरा तुम दीदार करो।


मिट जाता है हर अंधेरा बस


तुम सुबह का इन्तिज़ार करो।।


जान लो कि मीठी जुबान और


खुशियों का है गहरा रिश्ता।


इक छोटी सी जिन्दगी है बस


तुम हर किसी से प्यार करो।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


8218685464


एस के कपूर श्री हंस

चार बजे गये पार्टी की सौगात, 


अभी बाकी है।


गुमनामी केअंधेरों की रात अभी, 


बाकी है।।


दल दल है, धुंआ है, धुंध है,  


है छाया गुबार।             


गिरते पतन की तो हर बात, 


अभी बाकी है।।


 


मौज मस्ती शराब ड्रग का चढ़ना, 


अभी खुमार है।


अभी से हो रहा जाने जिया,


 


 कैसा बेकरार है।।


अभी डूब कर जाना वह दरिया, 


तो है बाकी।


अभी तो यह नशा उतरने को, 


बेशुमार है।।


 


अभी तो हमें अपना जीवन मिट्टी, 


में मिलाना है।


माँ बाप के उन सपनों की अभी,


राख बनाना है।।


अभी तो हमें सीखना वो सब जो,


पढ़ाया नहीं जाता।


बहुत से नये नये गुल अभी हमें,


खिलाना हैं।।


 


रोक लो थाम लो अभी इस गर्त में,


गिरते अच्छों को।


संस्कार संस्कृति का पाठ पढ़ाओ,


जरा इन कच्चोँ को।।


कच्ची उम्र और मिट्टी का घड़ा है,


संभाल लो अभी।


लग गई है जो गलत लत वह जरा,


छुड़ाओ इन बच्चों को।।


 


बचाओ इनको अभी से कि यह,


देश का भविष्य हैं।


बताओ कैसे होते विद्यार्थी , आदर्श, 


गुरु शिष्य हैं।।


समझाओ क्या होते हैं मायने आदर,


 


और आशीर्वाद के।


कैसे होते समर्पणऔर देश भक्ति के,


सच्चे दृश्य हैं।।


 


भारत का पुरातन इतिहासऔर शौर्य,


उनको पढ़ना है।


राष्ट की भावी धरोहर के रूप में उन,


को गढ़ना है।।


भविष्य के बोस, गांधी,टैगोर,कलाम,


बनना है उनको।


विश्व गुरु भारत महान की पताका,


लेकर ऊपर चढ़ना है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


सुनील कुमार गुप्ता

आस


पतझड़ के मौसम में भी फिर,


साथी तुम होना न तुम उदास।


फूटेगी नव-कोपल फिर से,


रखना मन में ये आस।।


फूल खिलेगे उपवन में फिर,


यहाँ महकेगी हर एक साँस।


भटकेगे नहीं कदम फिर से,


साथी पल -पल जो हो पास।।


छट जायेगी गम की बदली,


साथी होना न तुम निराश।


खिल उठे ये धरती अंबर,


साथी जब होते तुम पास।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


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