——डॉ.सुमन शर्मा
शिक्षा—एम.ए.पीएच.डी(यशपाल साहित्य में नारी चित्रण)
विषय—हिन्दी
प्रकाशन—१.सैलाब(कविता संग्रह)
२. मन की पाती (कविता संग्रह)
३.रहोगी तुम वही(कहानी संग्रह)
४. यशपाल के उपन्यासों में नारी के
विविध रूप ।
५. पत्र पत्रिकाओं में विविध विषयों
पर आलेख, शोध पत्र , कविताएँ प्रकाशित ।
६. आकाशवाणी से अनेक वार्तालाप,कविताएँ प्रसारित ।
सम्मान—-अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन द्वारा सम्मानित ।
—-पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी द्वारा
सम्मानित ।
संप्रति—-श्रीमती वी पी कापडिया महिला आर्ट्स
कोलेज भावनगर में हिन्दी विषय की
प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत ।
कान्हा
——-
गोकुल कभी,मथुरा तो कभी वृन्दावन में,
तेरे ख़यालों में भटकी कान्हा मन ही मन में।
मोर मुकुट,कानन कुंडल,बंसी मधुर अधर में,
अद्भुत श्रृंगार,मोहिनी मूरत तेरी बसे नैंनन में।
हर श्रेष्ठ में तेरा निवास,रहता तु कण कण में,
धरूँ ध्यान तेरा,रहूँ मगन हरपल तेरे हीआराधन में।
राधा का तु,मीरा का है गोपियों का तु कनैया,
सुनूँ मधुर तेरी बंसी की धुन खो जाऊँ मैं तुझी में।
हो जाऊँ लीन,रूह में बसे,न रहे अस्तित्व मेरा,
मुक्ति पाऊँ,द्वार आऊँ,देना स्थान अपने चरणों में।
सुमन शर्मा ।
जरूरी था
तुझसे मेरा मिलना ज़रूरी था,
उस वक़्त का थमें रहना ज़रूरी था।
अनकही रह गई संवेदनाओं का,
शब्दों में अभिव्यक्त होना ज़रूरी था।
उलझे हुए रिश्तों की कश़्मकश को,
तद्वीर से सुलझाना ज़रूरी था।
बदले वक़्त में दिलों तक पहुँचने को,
फ़ासलों का मिटना ज़रूरी था।
गहरे समन्दरों में उठती लहरों का,
साहिलों तक पहुँचना ज़रूरी था।
चैन ओ सुकून से रुखसत के लिए,
ज़िन्दगी,तेरा इक़रार ज़रूरी था।
सुमन शर्मा ।
मैं…
———.
आजकल मैं.. मनचाहा करती हूँ ...।
जागती हूँ…,करवटें बदलती हूँ,
अंधेरे अनजान..अकेले.रास्तों पर
चलते चलते दूर कहीं निकलती हूँ….।
आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ ...।
उडती हूँ, उड़कर पहूँच जाती हूँ,
रंगबिरंगी तितलियों के देश में…,
मैं फूलों संग बतियाती हूँ…,
सपनों की दुनिया में विचरती हूँ...।
आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।
अपने लिए बचाकर रखे..
मन के कोने में कभी छिपती
कभी बाहर निकलती हूँ …,
यों ख़ुद से आँखमिचौनी खेलती हूँ...।
आजकल मैं..मनचाहा करती हूँ...।
तपती दुपहरी में हंसकर खिलते..
गुलमोहर,अमलतासों को हाथ,
हिलाकर मिलती हूँ,देख हौंसले...
उनके…,मैं भी तो खिलती हूँ ।
आजकल मैं मनचाहा करती हूँ ।
न कुछ कहती हूँ,न समझती हूँ
जेही विधि राखे तु ,मैं रहती हूँ
असार तेरे इस संसार में..,
न मैं रचती हूँ न बसती हूँ…,
आजकल, तु चाहे वैसा करती हूँ
तु मन का करवाये, मैं करतीं हूँ ,
आजकल मैं मनचाहा करती हूँ...।
सुमन
बरसात
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ज़िक्र में तेरी बातें होंगी,
जल्द ही मुलाक़ातें होंगी।
खुशियों के बादल उमड़ेंगे,
नैनों में बरसातें होंगी।
मन का मयुरा नाच उठेगा,
यादों की बारातें होंगी।
मेघ लायेंगे संदेशे,
पुरनम सी वो रातें होंगी।
पुरवैया रूख बदलेगी,
जीवन को सौग़ातें होंगी।
सुमन शर्मा
कुछ लम्हे
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ज़िन्दगी….
आज मन है..
तुझसे बतियाने का…,
तेरे सफ़हों को पलटने का…,
तेरे हरफ़ों पर नज़रें डालने का,
तूने क्या दिया..,
तुझसे क्या लिया…,
उसे समझ पाने का…..।
ज़िन्दगी…,
तेरे साथ चलते चलते…,
कुछ वादे टूटे,कई रस्ते छूटे,
कुछ सपने टूटे, कई अपने रूठे..,
तब जाकर जिये..,
कुछ पल ... अनूठे।
ज़िन्दगी… ,
तेरी किताब के,
फटे हुए वरकों में..,
मिले कुछ दर्द के लम्हे,
कई पल अकेले…,
कुछ उदास घड़ियाँ,
कभी दुनिया के मेले..।
तुने जो दिया न था कम….,
रहा तुझसे शिकवा गिला..हरदम…!
फिर भी...
तेरे लिखे हर सफ़हे को…,
जतन से जोड़ने की कोशिशों में,
नेक इरादों से…,
तुझसे वादा किया..,
तेरे हर लम्हे को…,
जी भर के जिया...।
सुमन शर्मा।