संजय जैन

दो लालो का जन्म दिन


 


2 अक्टूबर का दिन, 


कितना महान है।


क्योकि जन्मे इस दिन 


दो भारत मां के लाल है।।


 


सोच अलग थी दोनों की,


पर थे समर्पित भारत के लिए।


इसलिए दिन को 


हम लोग याद करते है।


और दोनों के प्रति, 


श्रध्दा सुमन अर्पित करते है।


और उन्हें दिल से 


आज याद करते है।।


 


सत्य अहिंसा के बल पर,


हमे दिलाई आज़दी।


और सत्यग्रह करके,


मजबूर कर दिया अंग्रेजो को ।


और उन्हें छोड़ना पड़ा 


भारत देश को।


और मिल गई हमे आज़दी, 


सत्य अहिंसा के पथ पर चलकर।।


 


याद करो उन छोटे 


कद वाले इंसान को।


जो सोच बहुत बड़ी रखते थे।


और हर कार्य भारत के 


हित मे करते थे।


तभी तो उन्होंने नारा दिया था,


जय जवान जय किसान।


ये ही है भारत की 


आन मान और शान ।।


 


दोनों के प्रति आदर भाव रखते हुए। 


हम उन्हें श्रध्दांजलि अर्पित करते है।


और भारत माँ को प्रणाम करते है।


कि ऐसे लालो को आपने,


जन्म दिया हिंदुस्तान में।।


 


आज ह्रदय से दोनों महापुरुषों 


को श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ।।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुम्बई)


********************


गांधी तेरे बंदर


 


गांधी तेरे तीन बंदरो का, 


हम अनुसरण कर रहे है।


और आज तेरे जन्मदिन पर,


श्रध्दा फूल चढ़ा रहा हूँ।


आज़दी तो मिली गई भारत माँ को।


पर अबतक समझ नहीं पाया,


की क्या मिला इससे हमको।।


 


तेरे बंदर भी है कमाल के,


जो संकेत देते है हर बात के।


एक कहता है देखो सुनो, पर बोलो मत।


वरना बोलती हमेशा, 


के लिए बंद हो जाएगी।


दूसरा कहता है न देखे न सुनो,


और कुछ भी बोल दो।


सारे इस पर उलझ जाएंगे,


और फिर दिनरात पकाएंगे।


तीसरा कहता देखो बोलो,


और किसी की मत सुनो।


नेता अभिनेता बन जाओगें।


और अंधे गूंगे और बैहरो 


कि तरह बनकर,


सफल नेता कहलाओगें।


और देश की जनता को


5वर्षों तक उल्लू बनाओगे।


न खुद शांति से बैठोगें


न जनता को बैठने दोगें।


कुछ बोलकर कुछ सुनाकर और कुछ दिखाकर,


अपास में इन्हें लड़वाओगें।


और देश में अमन शांति 


स्थापित नहीं होने देंगे।


जिससे मूल समस्याओं की तरफ,


जनता का ध्यान नहीं जाएगा।।


इसलिए तो कहता हूं कि,


गांधी तेरे बंदर कमाल के है।।


 


नोट : कविता में सीधा गांधी लिखा गया है इसका ये मतलब नहीं है कि हम उन्हें आदर नही दे रहे वो तो पूज्यनी है क्योकिं


वो देश के राष्ट्रपिता है। इसलिए उन्हें जन्मदिन के अवसर पर अपने श्रध्दा के फूल उनके चरणों मे चढ़ाता हूँ।।


 


जय हिंद 


संजय जैन मुम्बई


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

आज़ादी के मतवाले सरदार भगत सिंह 


 


जय सरदार भगत हूंकार जगत,


आज़ादी के मतवाले शत्रुञ्जय,


जब सिंहनाद सुन भगत सिंह प्रवर,


घबरा थर्राया शत्रु भीत पड़े।  


 


हे शौर्यपुत्र माँ भारत प्रणाम,


जय भक्त राष्ट्र भाल तिलक ललाम,


बन अंग्रेज दमन विकराल काल,


काकोरी विध्वंसक तुझ नमन करे।


 


रग रग आप्लापित जयगान वतन,


लाला लाज चन्द्र सुखदेव रतन,


नव इतिहास वीर रणबाँकुर रण, 


भारती चरण कमल बलिदान करे।


 


सादर अभिवादन धीर वीर भगत,


शत नमन साहसी गंभीर प्रबल,


आत्मबली सुयश शूरवीर भारत,


क्रान्तिदूत आज़ादी जन नमन करे। 


 


जय महावीर सिंह तन मन अर्पित,


वन्दे मातरं भक्ति शक्ति गूंजित,


दहशत में गोरे रूहें कम्पित,


भगत मुदित फाँसी गलहार बने।


 


हे सरदार शौर्य सरताज प्रखर,


पा वीरगति राष्ट्र हिमराज शिखर,


जयकार भगत ए आज़म शहीद,


हम जन मन भारत तव नमन करे।


 


डॉ.राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-22


 


इत-उत पुनि बिचरहिं प्रभु रामा।


सिय खोजत बन अथक-अश्रामा।।


     लखन सहित प्रभु चहुँ-दिसि ताकैं।


     पाइ न सीता इत-उत झाकैं।।


कानन महँ लखि दनुज कबंधा।


हते ताहि प्रभु कीन्ह अबंधा ।।


    मोरि भागि दुरबासा सापा।।


    पायहुँ मुक्ति राम-परतापा।।


राम भगत-बत्सल-भगवाना।


बनि गंधर्ब कबंधय जाना।।


    लखि के निर्छल भगति कबंधा।


    प्रभु गंधर्बहिं कीन्ह अबंधा।।


पहुँचे तब प्रभु सबरी-आश्रम।


प्रभु-मग लखत रही जे हरदम।।


    स्यामल बदन,माल गर सोहै।


    जटा-मुकुट सिर बड़ मन मोहै।।


लखिके राम-लखन मग आवत।


गइ सबरी तहँ धावत-धावत ।।


     गौर बरन लछिमन बड़ सोभन।


     सुंदर तन,लोचन मन-मोहन।।


बेरि-बेरि प्रभु-लखन निहारय।


सबरी-मुख कछु बचन न आवय।।


     पुलकित तन-मन भरि अनुरागा।


     पुनि-पुनि प्रभु-सरोज-पद लागा।।


लाइ सुद्ध जल पाँव पखारी।


सुंदर-सुचि आसन बैठारी।।


    कंदइ-मूल,सरस फल लइ के।


    प्रभुहिं ख़िलावहि प्रमुदित भइ के।।


मम कुल-जाति अधम प्रभु रामा।


मैं अछूत,अवगुन कै ग्रामा ।।


   कस मैं करूँ प्रभू तव सेवा।


   जानि सकूँ नहिं जग लखि भेवा।।


दोहा-अस बिचार सबरी सुनी, राम कहहिं इक बाति।


         मम प्रिय बस निर्छल भगति,कुल न लखहुँ, नहिं जाति।।


        जस जल बिनु नीरद नहीं,कांतिहीन जस कंत।


        भगतिहीन धन-पद सहित,भाय न मोंहि महंत।।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र


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 अठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


 


सुनि अस बचन नंद बाबा कै।


गर्गाचार बाति कह मन कै।।


     सुनहु नंद जग जानै सोई।


     गुरु जदुबंस कुलयि हम होंई।।


कहे नंद बाबा हे गुरुवर।


अति गुप करउ कार ई ऋषिवर।।


    'स्वस्तिक-वाचन' मम गोसाला।


     अति गुप-चुप प्रभु करउ निराला।।


अति एकांत जगह ऊ अहई।


नामकरन तहँ बिधिवत भवई।।


    गुप-चुप कीन्हा गर्गाचारा।


    तुरतयि नामकरन संस्कारा।।


'रौहिनेय' रामयि भे नामा।


तनय रोहिनी अरु 'बल'-धामा।।


    रखहिं सबहिं सँग प्रेम क भावा।


     नाम 'संकर्षन' यहि तें पावा ।।


साँवर तन वाला ई बालक।


रहा सबहिं जुग असुरन्ह-घालक।।


    धवल-रकत अरु पीतहि बरना।


    पाछिल जुगहिं रहा ई धरना।


सोरठा-नंद सुनहु धरि ध्यान,कृष्न बरन यहि जन्महीं।


           नाम कृष्न गुन-खान,रखहु अबहिं यहि कै यहीं।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


राजेंद्र रायपुरी

चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 सीने को अपने तान। 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


सीमाऍ॑ देश की तुम्हें पुकारतीं।


 पुकारती तुम्हें है माता भारती।


 पुकारता है हिंद ये महान। 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान। 


सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


पड़ोसियों से रार आज बढ़ गई।


 नशा उन्हें मिशाइलों की चढ़ गई।


उतार दो नशा सुना के गान।


ब्रम्होस है महान,ब्रम्होस है महान।


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान, चलो रे नौजवान।


 


पीछे नहीं हटाना है कदम तुम्हें।


मां भारती की आज है कसम तुम्हें।


भले ही रण चली ये जाए जान।


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान। 


सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


संजय जैन

*भगत सिंह की गाथा*


 


फौलाद सा सीना लेकर 


एक बालक ने जन्म लिया।


बचपन से ही कुछ कर गुजरने 


की इच्छा शक्ति दिखलाई।


और देश प्रेम की भावनाओ ने


आज़दी की आग लगा दी।


कूदन पड़ा वो रण भूमि में 


उम्र जब उसकी थी 15।


छोड़ छाड़ के घर अपना 


आज़दी की जंग में कूंद पड़ा।


अंग्रेजो के घर में घुसकर


उनको उसने ललकार दिया।


अंग्रेजो के मुंह से उसने


मानो रोटियां छीन लिया।


नाम उन्हें जब पता पड़ा कोई


भगत सिंह रणभूमि आ पहुंचा।


भगदड़ मच गई अंग्रेजी सेना में


जब सुना नाम भगत सिंह का।।


भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में मेरी रचना उन्हें श्रध्दांजलि के रूप में समर्पित है।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन मुम्बई


28/09/2020


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

आज़ादी के मतवाले सरदार भगत सिंह 


 


जय सरदार भगत हूंकार जगत,


आज़ादी के मतवाले शत्रुञ्जय,


जब सिंहनाद सुन भगत सिंह प्रवर,


घबरा थर्राया शत्रु भीत पड़े।  


 


हे शौर्यपुत्र माँ भारत प्रणाम,


जय भक्त राष्ट्र भाल तिलक ललाम,


बन अंग्रेज दमन विकराल काल,


काकोरी विध्वंसक तुझ नमन करे।


 


रग रग आप्लापित जयगान वतन,


लाला लाज चन्द्र सुखदेव रतन,


नव इतिहास वीर रणबाँकुर रण, 


भारती चरण कमल बलिदान करे।


 


सादर अभिवादन धीर वीर भगत,


शत नमन साहसी गंभीर प्रबल,


आत्मबली सुयश शूरवीर भारत,


क्रान्तिदूत आज़ादी जन नमन करे। 


 


जय महावीर सिंह तन मन अर्पित,


वन्दे मातरं भक्ति शक्ति गूंजित,


दहशत में गोरे रूहें कम्पित,


भगत मुदित फाँसी गलहार बने।


 


हे सरदार शौर्य सरताज प्रखर,


पा वीरगति राष्ट्र हिमराज शिखर,


जयकार भगत ए आज़म शहीद,


हम जन मन भारत तव नमन करे।


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भ्रूण हत्या क्यों,कबतक?


 


कन्या भ्रूण हत्या क्यों कबतक,


हत्या उसकी जो जना धरा ,


अस्तित्व मिटाने चला कृतघ्न,


निज कोख उसी का मौत सबब,


क्या सोच बदलेगी मनुज कलियुग,


क्या रूके अन्त कन्या भ्रूण का,


ममता करुणा स्नेहांचल प्रतीक ,


बन मातु बहन वधू कन्या नित।


नित त्याग समर्पण स्नेहिल सरिता,


पाकर कन्या पाकर सुख खुशियाँ,


कोई मातु कहे , कोई निज भार्या,


कोई गृहलक्ष्मी, कोई प्यारी बहना,


आह्लाद हृदय किसलय कोमलतर,


अरुणाभ जगत बन क्षितिज तलक।


ललना कौलिक बन सुता प्रिया ,


स्वाभिमान पिता कुल गेह धिया,


कन्यादान मुदित बन परकीया,


सब तजी स्वत्व परगेह सुता ,


अर्पित तन मन धन अनजान मनुज,


मुस्कान खुशी जीवन प्रियतम,


आनन्दप्रदा पति स्वजन सन्तति,


बन संघर्ष कँटिल पथ यायावर,


सुख ,शान्ति ,प्रीति विश्वास बनी,


पति पूत मान सम्मान खड़ी ,


लगे खरोंच तनिक सुत आहत माँ,


पति ढाल बनी शत्रुंजय ललना।


बन आन बान ईमान पथिक ,


निज मातु पिता अरु पति कौलिक,


जो महाशक्ति नवरूप सुता ,


शिक्षा दीक्षा पद हिमशिखर समा,


दक्षा सफला कुशला शासन,


बन गुरुज्ञान शान विज्ञान सजग ,


नित प्रगति पथी उन्नायक जग,


रक्षक निर्माणक राष्ट्र निहित,


क्यों फिर अवसादित कन्या आजतलक।


बस बनी काम सुख वस्तु जगत,


प्रजनन दायित्व निर्वाहे क्यों,


क्यों सहे वेदना दर्द विलख,


कबतक अबला भयभीत बने,


कलुषित भाव मनुज जाता कन्या,


निज कोख़ मातु भ्रूण स्वयं मरे।


अफ़सोस सोच मद नर जाति जगत,


नित स्वार्थ परत शैतान मनुज ,


तुला स्वयं अवलम्ब अम्ब हनन,


नवसृष्टि विधायक भ्रूण हत्या ,


लानत चिन्तन नरपशु जगत।


नवक्रान्ति पुनः रक्षा कन्या ,


स्वाभिमान मातु कन्या मान्या,


कुलनाशक जन अपराध महत,


सजा ए मौत मिले हर भ्रूण नाशक,


अनिवार्य आज जन जागृति जन,


हो नारी सशक्त सबला ए जगत,


पुरुषार्थ आज नारी सम्बल,


घर बाहर कन्या उत्थान शिखर,


हे मातु सुता बहन बहुरूप प्रिया,


श्रद्धा लज्जा पूज्या नर जीवन 


नवप्रीति सुधा नवनीत जगत।


हम साथ खड़े नारी रक्षण ,


कन्या भ्रूण हत्या कृत्य जघन्य,


स्वर्णिम भविष्य उज्ज्वल जीवन,


हे जननी,कन्या नित बहन नमन।


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा निकुंज


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत (16/16)


आओ पास हमारे बैठो,


अपलक तुम्हें निहारूँ, प्रियतम।


बहुत दिनों से थे तुम ओझल-


आओ पाँव पखारूँ, प्रियतम।।


 


जब तक थे तुम साथ हमारे,


मन-बगिया में हरियाली थी।


ले सुगंध साँसों की तेरी,


बही हवा जो मतवाली थी।


उलझे-उलझे केश तुम्हारे-


आओ केश सवाँरूँ,प्रियतम।


     अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


बहुत दिनों के बाद मिले हो,


अब जाने का नाम न लेना।


रह कर साथ सदा अब मेरे,


डगमग जीवन-नैया खेना।


तेरी अनुपम-अद्भुत छवि को-


आओ, हृद में धारूँ, प्रियतम।


    अपलक तुम्हें निहारूँ ,प्रियतम।।


 


तुम दीपक मैं बाती साजन,


प्रेम-तेल पा यह दिया जले।


प्रेम-ज्योति के उजियारे में,


जीवन-तरुवर की डाल फले।


भर लो अपनी अब बाहों में-


तन-मन तुझपर वारूँ,प्रियतम।


     अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


नहीं साथ थे जब तुम मेरे,


मैं थी तकती राहें तेरी।


बड़े भाग्य से आज मिले हो।


बंद हुईं अब आहें मेरी।


तुम्हीं देवता मन-मंदिर के-


 तुमको सदा पुकारूँ,प्रियतम।


         अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


तुम समीप जो बैठे मेरे,


देखो,चंदा इठलाता है।


बोले पपिहा दूर कहीं से,


पी-पी उसका अब भाता है।


अब तो नैन मिलाकर तुमसे-


नित-नित प्रेम निखारूँ,प्रियतम।


      अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


मन कहता है कहीं दूर जा,


नीले गगन की छाँवों तले।


चंचल नदी-किनारे बैठें,


अति मंद पवन भी जहाँ चले।


तुम्हें बिठाकर निज गोदी में-


हिकभर तुम्हें दुलारूँ, प्रियतम।


      अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


                 © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

*सहमति*


*(चौपाई)*


 


तेरी सहमति बहुत जरूरी।


बिन सहमति के बात अधूरी।।


 


सहमति हो तो खेल शुरू हो।


सहमति हो तो मेल शुरू हो।।


 


सहमति से लीला देखेंगे।


खूब व्योम नीला देखेंगे।।


 


सहमति पार लगाती कश्ती।


जीवन में मस्ती ही मस्ती।।


 


सहमति हो तो जीवन सुंदर।


बिन सहमति के सब कुछ बदतर।।


 


सहमति में है छिपी सफलता।


बिन सहमति के है व्याकुलता।।


 


सहमति है तो बाहर भीतर।


घूमो चारोंओर निरंतर।।


 


सहमति से ही प्रिति परस्पर।


बिन सहमति के सकल भयंकर।।


 


सहमति की हो सदा लालसा।


बिन सहमति के घोर निराशा।।


 


हो सम्मान सदा सहमति का।


मत करना अपमान किसी का।।


 


दिल में पावन भाव जगाओ।


सबकी अनुपम सहमति पाओ।।


 


जीवन को आसान बनाओ।


सहमति को सम्मान दिलाओ।।


 


सहमति का जो वंदन करता।


कभी नहीं वह क्रंदन करता।।


 


सहमति छिपी शुभद कर्मों में।


सहमति सकल मनुज धर्मों में।


 


सहमति से सब कुछ मिलता है।


सहमति में प्रियतम पलता है।।


 


सहमति में ही प्यार छिपा है।


सुंदर सा परिवार छिपा है।।


 


सहमति से संबन्ध मनोरम।


घाव ठीक करता यह मरहम।।


 


बिन विश्वास कहाँ सहमति है।


बिन सहमति के सदा कुमति है।।


 


सहमति में दिलदार छिपा है।


प्रिय पावन संसार छिपा है।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

जीवन नदी की धार सा है 


बने किनारे हम और तुम ।


सँग सँग चलना हमें है


पास हैं नजारे,तुम क्यों दूर ।


 


रेत के कुछ कण आ लिपटे हैं मुझे


एक तुम्हारे स्पर्श की देते अनुभूति मुझे


दूर से तकना तुम्हें,पवन के अहसास से


एक आँचल छू निकलता,जाने कब,


कैसे मुझे। 


 


चल रहे है साथ हम तुम ले अधूरी प्यास को


तोड़ कर हर तट बन्धन सागर में अब आ मिलो ।


बाहें पसारे मैं खड़ा हूँ वहीं तुम्हारे इंतजार में 


दो किनारे हम नदी के कुछ कह न सकें संसार को ।


 


प्यार कर के निभना,प्रीत राधा श्याम सी


निर्बाध बहते रहें नदी सम ना कभी कुछ बात की ।


हो गए दोनों अमर वो बस गए हर एक में 


इश्क़ की बन मिसाल,बहते नदी सम धार में ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


एस के कपूर श्री हंस

विश्व ह्रदय दिवस पर संदेश।


 


यही है संदेश कि रखो अपना,


दिल आप संभाल कर।


दिनचर्या , खाने पीने की तो,


रोज़ ही ख्याल कर।।


आहार व्यवहार व्यस्तता आनंद,


ही बचायेंगे बीमारी से।


नहीं तो सीना चीर कर डॉक्टर,


रख देगा दिल निकाल कर।।


 


तुम दिल की सुनो तो तुम्हारी भी,


यह मन भर कर सुनेगा।


तुम रोज़ आधा घंटा चलोगे तो,


यह जोश भर कर चलेगा।।


यदि नहीं संभले अभी भी तुम, 


वक़्त से पहले जरा।


तो फिर तेरा दिल ही तुझको, 


जी भर कर छलेगा।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


 


 


*मुक्तक माला*


*1............*


भगत सिंह की गाथा तो है


आज भी प्रेरणा की कारण।


आज़ादी के लिए हँसते हँसते


किया था मृत्यु को धारण।।


पराधीनता सपनेहुँ सुख नाही


चढ़ गए वह सूली पर।


गुलामी में नहीं किया


कभी भी वंदना चारण।।


*2,,,,,,,,,,,,,,,*


जालियाँ वाला बाग का समय


और समय उसके बाद।


भारत की स्वाधीनता को बेताब


थे भगत सिंह और आजाद।।


प्राण किये न्यौछावर और


हो गए वह शहीद।


आज सब भारत वासी कर रहे


नम आँखों से याद।।


*रचयिता।।एस के कपूर " श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।।।।9897071046।।।।।।


8218685464।।।।।।।।।।।।।।


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-23


 


सुनु धरि ध्यान मोरि यह बाती।


नवधा भगति मोर मन भाती।।


    प्रथम भगति संतन्ह सतसंगा।


    दूजी बस मम कथा-प्रसंगा।।


तीजी गुरु-पद-सेवा मिलही।


चौथी निष्छल प्रभु-गुन गवही।।


    पंचम मन धरि दृढ़ बिस्वासा।


    मम करि भजन अवहि नर पासा।।


इंद्री-निग्रह,सील-बिरागहिं।


छठवीं भगति संत-अनुरागहिं।।


     सतवीं लख जग मम सम रूपा।


     मोंतें अधि गुन संत अनूपा।।


अठवीं भगति होय संतोषा।


हानि-लाभु बिनु गुन अरु दोषा।।


     नवीं भगति हो कपट बिहीना।


     सरल-सरस प्रभु मन-तल्लीना।।


जड़-चेतन अरु जग नर-नारी।


जदपि एक धरि बड़ मम प्यारी।।


    सकल नवो गुन तव जग न्यारा।


    तुमहिं भगति कै सुदृढ़ अधारा।।


दोहा-तब प्रभु सबरी तें कहहिं, मोंहि बतावउ आजु।


        तुम्ह देखीं सीता कतहुँ,मोर होय यहि काजु।।


भिलनी तब प्रभु राम बताई।


पंपासर अब जाहु गोसाई।।


    तहँ सुग्रीव कपिन्ह सँग रहई।


    करहु मिताई तेहि सँग तहँई।।


जानहि सभ सुग्रीव कपीसा।


पंपासर-महि वही महीसा।।


    जदपि प्रभू जानउ तुम्ह सबही।


    कस पूछहु मों जे अनजनही।।


अस कहि सबरी जरि तन त्यागहि।


प्रभु-पद छूइ जोग के आगहि ।।


    प्रभु-पद-महिमा जे नर गावै।


    बिनु कुल-जाति अमर पद पावै।।


प्रभु-पद कै महिमा बड़ भारी।


दे असीष बिनु जाति-बिचारी।।


दोहा-जाति-पाँति अरु धरम कै, करहिं न तनिक बिचार।


         प्रभु चाहहिं निरछल भगति,करहिं पतित-उद्धार।।


*****************"""""*************


आठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-3


पहिले कबहुँ रहा ई जनमा।


यही बरन बसुदेवहिं गृह मा।।


     यहिंतें बासुदेव कहलाई।


     तोर लला ई किसुन कन्हाई।।


बिबिध रूप अरु बिबिधइ नामा।


रहहि तोर सुत जग बलधामा।।


    गऊ-गोप अरु तव हितकारी।


    अहहि तोर सुत बड़ उपकारी।।


हे ब्रजराज,सुनहु इकबारा।


कोउ नृप रहा न अवनि-अधारा।।


    लूट-पाट जग रह उतपाता।


    धरम-करम रह सुजन-निपाता।।


रही कराहत महि अघभारा।


जनम लेइ तव सुतय उबारा।।


    जे जन करहिं प्रेम तव सुतहीं।


     बड़ भागी ते नरहिं कहहहीं।।


बिष्नु-सरन जस अजितहिं देवा।


अजित सरन जे किसुनहिं लेवा।।


     तव सुत नंद,नरायन-रूपा।


सुंदर-समृद्ध गुनहिं अनूपा।। 


रच्छा करहु तुमहिं यहि सुत कै।


सावधान अरु ततपर रहि कै।।


    नंदहिं कह अस गरगाचारा।


    निज आश्रम पहँ तुरत पधारा।।


पाइ क सुतन्ह कृष्न-बलदाऊ।


नंद-हृदय-मन गवा अघाऊ।।


सोरठा-कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित थीर मन।


           कृष्न औरु बलदेव,चलत बकैयाँ खेलहीं।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


डॉ0 निर्मला शर्मा

सुप्रभात


उषा की बेला में नभ में


हुआ प्रातः का सूत्रपात


प्रकटे दिनकर धीरे धीरे


किया तिमिर का नाश


निशा सुंदरी चली गगन में


भोर का हुआ उजास


सूर्य रश्मियाँ फैली जग में


मुस्काया सारा संसार


सिंदूरी रंगों से सजा है


आसमान का द्वार


स्वागत, वन्दन औऱ अभिनन्दन


गाये प्रकृति मल्हार


सुंदर रम्य मनोरम दृश्य है


नैनो में बस जाए


जागो उठो बढो सब आगे


यही संदेश सुनाए


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


राजेंद्र रायपुरी

कोरोना काढ़ा


 


कोरोना का काढ़ा पी-पी,


                   परेशान तो सब हैं भाई।


करें मगर क्या मजबूरी है,


        वेक्सिन अब तक नज़र न आई।


बीत गए हैं आठ महीने,


                   कहते थे ये जून-जुलाई।


राहत की उम्मीद नहीं है, 


               आने तक अब नई जुलाई।


पीते रहना तब तक काढ़ा,


                 समझ उसे ही दूध मलाई।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

रास्ते


रास्ते तो सीधे थे साथी,


मगर उन पर-


जीवन में चल न सका।


सत्य-पथ चल भी साथी,


इस जीवन में-


अपनत्व पा न सका।


भटकते जो कदम मेरे साथी,


जीवन में इसको-


मैं सह न सका।


साथी-साथी बन साथी,


छलता रहा जीवन में- किसी से कह न सका।


साथी साथी होता साथी,


बिन साथी जीवन में-


अकेला रह न सका।


रास्ते तो सीधे थे साथी,


मगर उन पर-


जीवन मे चल न सका।।


*****"**""*******""***


फिर वही जीवन महकाया


"स्नेह संग बंधा जो साथी,


वो जग में अपना कहलाया।


पग-पग जीवन में साथी,


फिर असीम सुख उसने पाया।।


मोह-माया के बंधन संग भी,


जो प्रभु को नहीं भूल पाया।


भक्ति पथ पर चले जो साथी,


वो जीवन सार्थक कर पाया।।


अंधकार में डूबा जीवन,


कौन-यहाँ दीप जला पाया?


लग्न लगी जो प्रभु संग साथी,


फिर वही जीवन महकाया।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


नूतन लाल साहू

शब्द


शब्द से गुंजती है, धरा और आकाश


शब्द में बसते है,प्रभु पाद


शब्द की यात्रा है, अनंत


शब्द का होता नहीं है,कभी अंत


शब्द ही है,पूजन भजन


शब्द ही है,मन की उमंग


शब्द है,सागर की तरंगे


आओ मिलकर करे,शब्द सुमनो को नमन


शब्द है रामायण,शब्द है गीता


शब्द है, वेद शास्त्र पुराण 


शब्द ही है,वैदिक ऋचाएं


शब्द शक्ति है,सबसे प्रबल


शब्द नहीं होता तो, लय नहीं होता


शब्द से ही सृष्टि का है,नियतक्रम


आओ हम मिलकर करे, शब्द सुमनो को नमन


शब्द है तभी तो,कवि लेखक रचनाकार हैं


शब्द है तभी तो,साहित्य का है भंडार


शब्द है तो, ताल और शब्द है


शब्द ही तो,उस प्रभु का नाद है


शब्द नहीं होता तो,हम इंसान नहीं होते


कल्पना के पंख, अंबर में उड़ रही है,शब्द बनकर


आओ हम मिलकर करे, शब्द सुमनो को नमन


हमारे दिल की धड़कन भी,शब्द ही है


सिक्के पर भी अंकित है,शब्द के भाव


उछलता है,शब्द के ही सिक्के


खनकता भी है,शब्द के ही सिक्के


शब्द ही है,चिंतन मनन


शब्द में ही सुख समाहित,शब्द ही दुःख का है,भंडार


आओ हम मिलकर करे,शब्द सुमनो को नमन


नूतन लाल साहू


कालिका प्रसाद सेमवाल

गौ माता की महिमा


***************


पुत्र दिलाता दाल रोटियां


 गौ माता दूध पिलाती है,


इसी लिए गौ को माता कहते है


और जग में पूजी जाती है।


 


पाप भार जब बड़े धरती पर


तब रूप गऊ का धरती है,


चार पांव में चार धाम है


और अंग अंग में है तीर्थ।


 


मां ने हमें ममत्व दिया है


दूध नहीं अमरत्व दिया है,


एक गठरी घास के खातिर


अपने तन का अमृत दिया है।


 


गौ माता है देश की भाग्य विधाता


और गौ है राष्ट्र के प्राण,


गौ पालन और संवर्द्धन से


होगा शक्ति शाली हिन्दुस्तान।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

चलो आज हम राम बताएं


राम मर्यादा अपनाएँ।।


 


राम रिश्ता मानवता की


अलख जगाएं।।


 


प्रभु राम का समाज बनाएं


मात पिता की आज्ञा सेवा 


स्वयं सिद्ध का राम बनाएं।।


 


भाई भाई के अंतर मन का


मैल मिटाए।


भाई भाई में बैर नहीं भाई


भाई को भारत का भरत बनाएं।।


 


लोभ ,क्रोध का त्याग करे समरस


सम्मत समाज बनाएं।।


 


सम्मत सनमत बैभव राम नियत


का दीप जलाए।।


 


कर्म धर्म श्रम शक्ति निष्ठां


धन चरित पाएं।।


 


पावन सरयू की धाराएं 


कलरव करती जन्म जीवन


का अर्थ सुनाएँ।।


 


भव सागर का स्वर्ग नर्क 


केवट खेवनहार बनाये


भेद भाव रहित राम भव


सागर पार कराएं।।          


 


निर्विकार निराकार राम 


सबमें साकार राम बोध


प्राणी प्राण का दर्शन पाएं।।


 


राम नाम नहीं राम मौलिक


मानवता सिद्धान्त राम रहित


जीवन बेकार।


सांसो धड़कन पल प्रहर में


राम बसाएं।।


 


राम बन वास का रहस्य


जल ,वन ,जीवन का राम


दैत्य ,दानव से भयमुक्त


धर्म ,दया ,दान ऋषिकुल


बैराग्य विज्ञान का राम।।


 


सेवक राम यत्र तंत्र सर्वत्र राम


राम से बिमुख ना जाए ।।


चलो आज हम राम बताएं


राम मर्यादा का युग अपनाएं।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


संजय जैन

संस्कारो ने बनाया दिया


 


जब मेरा जन्म हुआ था


तब बुआ की उम्र थी 25।


खानदान में दूसरी पीढ़ी का 


में पहला चिराग था।


इसलिए खानदान में हर्ष उल्लास बहुत हुआ था।


क्योंकि जमीदार के यहां


पुत्र का जन्म हुआ था।


इसलिए गाँव में और रिश्तेदारों में खुशियां आपार थी।।


 


समय गुजरता गया


मैं बड़ा होता गया।


दादादादी नानानानी


बुआ चाचाचाची आदि


सबसे प्रेम मिलता था।


परन्तु पिताजी की गोद


कभी नहीं चढ़ सका।


क्योंकि वो जमाना शर्म 


लज्जा संस्कारो के साथ


बड़ो को इज्जत देने वाला था।।


 


मांगे मेरी सब पूरी की जाती थी


पर पूरी करने वाले


मेरे पिता नहीं होते थे।


ये बात नहीं थी कि 


पिताजी प्यार नहीं करते थे।


परन्तु उस समय की मान मर्यादाओं के अनुसार चलते थे।


जिसके कारण ही संयुक्त परिवार चलते थे।।


 


डरता नहीं अगर पिताजी से उस जमाने में।


तो आज इस शिखर पर नहीं पहुँच सकता था।


और हिंदी साहित्य के लिए इतना आदर नहीं रख पाता।


ये सब दादा दादी नाना नानी और परिवार के संस्कारो का ही परिणाम है।।


 


पर आज के हालात बहुत अलग है


जिसमें मान मर्यादाओं और संस्कारो का अभाव है।


जिसके चलते ही बाप बेटा साथ बैठकर पीते है।


और नशा हो जाने के बाद


एक दुसरो को गालियां देते है।


और अपनी खानदान को


सड़क पर नंगा कर देते है।


और आज के लोग इसे मॉडर्न जमाना कहते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


मदन मोहन शर्मा सजल

प्रेम ही पूजा


कली ने इशारा किया अलि भागा दौड़ा आया


परिणय की लालसा, मन में समाई है।


 


गुँजन गुंजित शोर, खिल उठा पोर-पर


राधा कृष्ण बन जाये, बाँसुरी बजाई है।


 


कली ने निहारा अलि, लज्जा आँखों बीच पली


लेकर सहारा डाल, थोड़ा शरमाई है।


 


होटों पे तराना आया, प्रीत ज्वर ज्वार छाया


बाहों में समाया अलि, प्रणय बेला आई है।


 


डूबता ही चला गया, होश तन सारा खोया


निशा की सवारी आई, शाम गहराई है।


 


भूल गया सब कुछ, नही रहा याद कुछ


बन्द हुए कली पट, मौत चली आई है।


 


साँसों में घुटन हुई, प्राणों की अटक हुई


छूटे प्राण संग-संग, जहां से विदाई है।


 


प्रेम में ही मिट जाना, ऐसा प्रेम अपनाना


प्रीत याद बन जाये, अलि ने जताई है।


 


समर्पित भाव रहें, लोभ मोह दूर रहें


स्वार्थ का न नाम कहीं, सच्चाई बताई है।


 


प्रेम नहीं राजा रंक, प्रेम में नहीं आशंक


प्रेम पूजा भगवान, वेदों ने जताई है।


 


मदन मोहन शर्मा सजल


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

किसान


चोर-लुटेरों की चंगुल से,


अब तो मुक्त किसान हुआ।


हो स्वतंत्र अब अन्न बिकेगा-


उसका अब कल्यान हुआ।।


 


अपनी फसल उगा किसान अब,


बिना बिचौलिया साथ लिए।


करेगा विक्रय उपज का अपनी,


बिना दलाली दाम दिए।


मिलेगा उसको उचित मूल्य -


उसका अब सम्मान हुआ।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,


सभी प्रांतों में जाकर।


उन्मुक्त भाव से बेच सके,


वह उचित दाम अब पाकर।


देकर उसके श्रम की कीमत-


अद्भुत श्रम-गुणगान हुआ।।


       अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


नहीं सियासत शोभित लगती,


इसे बनाकर मुद्दा अब।


तोड़-फोड़-हिंसा अपनाना,


कितना लगता भद्दा अब।


करके हित कृषकों का मित्रों-


भारत देश महान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


दाता अन्न कृषक हैं सबके,


इनका सुख है सबका सुख।


इनको दुख यदि मिला कभी तो,


समझो वह है सबका दुख।


देकर इनको सुख-सुविधा ही-


जन-जन का ही मान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


         © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


विनय साग़र जायसवाल

इस दर्जा शोखियों को जताया न कीजिए


बेताबियों को मेरी बढ़ाया न कीजिए


 


होश-ओ-हवास पर ही मैं काबू न रख सकूँ 


भर भर के जामे-हुस्न पिलाया न कीजिए


 


इतनी सी सिर्फ़ आप से है इल्तिजा सनम


शर्तें लगा के पास बुलाया न कीजिए 


 


मुद्दत से तशनगी में सुलगते हैं रोज़ो-शब


बीमारे-ग़म को अपने सताया न कीजिए 


 


उल्फ़त की रौशनी से चमक जायेगी हयात 


जलते हुए चराग़ बुझाया न कीजिए


 


मिन्नत के बावजूद पसीजे नहीं हुज़ूर


इतना सितम ग़रीब पे ढाया न कीजिए 


 


*साग़र* न दर्दो-ग़म से तड़प उठ्ठे ज़िन्दगी


नज़रों के तीर इतने चलाया न कीजिए 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


तशनगी-प्यास


रोज़ो-शब--दिन रात


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

जय माँ शारदे


 


क्यों भारत के अन्दर हरपल अस्मत लूटी जाती है , 


क्यों गुण्डों की टोली भारत में दहशत फैलाती है। 


क्यों भारत की संसद अंधी क्यों विधवा कानून हुआ , 


क्यों बाबुल की राजदुलारी का यूं ऐसे खून हुआ। 


क्यों भारत की जनता हरपल अपने दुखड़े गाती है , 


क्यों सड़कों पर जाती टोली केंडल रोज जलाती है। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


दुतारांवाली तह0 अबोहर पंजाब


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

मन वेदना


 


अहंकार निज बुद्धि का ,तिरष्कार नित अन्य।


दावानल अज्ञानता , करते कृत्य जघन्य।।१।।


 


श्रवणशक्ति की नित कमी,कोपानल नित दग्ध।


तर्कहीन थोथी बहस , सुन हो जनता स्तब्ध।।२।।


 


सत्ता सुख मद मोह में , राजनीति आगाज़।


फँसी मीडिया सूर्खियाँ , दबी आम आवाज़।।३।।


 


नित होता नैतिक पतन , हाथरसी दुष्काम।


शर्म हया सब भूल जन , मानवता बदनाम।।४।।


 


सुरसा सम चाहत मनुज , बनता तिकरमबाज़।


झूठ लूट हिंसा कपट , धन वैभव सरताज।।५।।


 


पाएँ कहँ इन्सानियत , सत्य धर्म ईमान।


दीन सदा श्रीहीन है , होता नित अवसान।।६।।


 


किसको चिन्ता देश की , प्रगति प्रजा सम्मान।


जाति धर्म प्रसरित घृणा ,नारी का अपमान।।७।।


 


दया धर्म करुणा अभी , कहँ पाएँ अब देश।


जिसकी है जैसी पहुँच , गढ़ता निज परिवेश।।८।।


 


हो समाज दुर्भाष बस , मर्यादा उपहास।


बदले की चिनगारियाँ , तुली दहन विश्वास।।९।।


 


रीति नीति रचना विधा , बदली लेखन भाव।


आज वही नफ़रत वतन , जाति धर्म दे घाव।।१०।।


 


स्वार्थ सिद्धि में सब दफ़न,न्याय त्याग कर्तव्य।


मान दान अवदान यश , दीन हीन हन्तव्य।।११।।


 


कवि निकुंज मन वेदना , आरक्षण का दंस।


अमन प्रीति मुस्कान हर ,सुख वैभव बन कंस।।१२।।


 


सिसक रही माँ भारती , देख स्वार्थ दुष्कर्म।


लज्जा श्रद्धा गुमसुदा , कहँ परहित सद्धर्म।।१३।।


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


 डा.नीलम

पिता


 


हाँ पिता हूँ मैं


समाज की दकियानुसी


सोच का कायल


चंद नारों में या


निनादों में


*बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ*


का कायल हो कर भी


मोक्ष की चाहत में


पुत्र -लालसा रखता हूँ


 


कहीं कोई बेटी की


खून से लथपथ 


लाश देख कर भी


खून नहीं खौलता मेरा


बल्कि कछुए -सा मैं


अपने खोल में


छुप जाता हूँ


 


सच कहुँ तो.......


पुरूष हूँ न


झूठी मर्दानगी दिखाने


की खातिर


माँ की कोख को 


बेटी की कब्र 


बनाते भी मन


विचलित नहीं होता


ऐसा दिखाता हूँ


 


पर सच कहुँ तो


पिता हूँ ,काष्ठ नहीं


हृदय में मेरे भी


बहती है निर्मल -निर्झरिणी


भीगती है आँख भी


बस ऐकांत में 


बहती हैं 


 


सच पुरूष हूँ,पिता हूँ


पर बेटी का नहीं


बेटे का।


 


       डा.नीलम


डॉ. रामबली मिश्र

**भज लो माता सरस्वती को।*


 


श्री माता जी नित वरदानी।


महा तपस्वी दिव्य सुजानी।।


 


माँ श्री से ही नाता जोड़ो।


लौकिकता से नाता तोड़ो।।


 


भज लो माँ को कर नित वन्दन।


मँहकोगे तुम जैसे चन्दनं।।


 


करो उन्हीं से ज्ञान प्रसंगा।


चलते रह नित माँ के संगा।।


 


ज्ञान रत्न माँ दिव्य खजाना।


माँ को श्रद्धा सुमन चढ़ाना।।


 


सब कुछ सीखो माँ से केवल।


माँ देती रहतीं शुभ मधु फल।।


 


माँ से प्रीति लगाओ भाई।


करते रह उनकी सेवकाई।।


 


बैठी हंस चली आयेंगी।


शुभप्रद ज्ञान सीखा जायेंगी।।


 


आयेंगी पुस्तक को ले कर।


दे जायेंगी मधुर बोल वर।।


 


वीणापाणी बन आयेंगी।


मोहक गीत सुना जायेंगी।।


 


माँ श्री का आशीष मिलेगा।


हरदम पाल्हा बीस रहेगा।।


 


दिग्विजयी बन सदा रहोगे।


विश्व धरा पर सहज बहोगे।।


 


तेरी बातें सब मानेंगे।


तुमको देव तुल्य जानेंगे।।


 


ज्ञान गंग आँगन में होगा।


स्नेह मान सम्मान सुयोगा।।


 


बुद्धि-सरित उर-आलाय आये।


विद्या महा व्योम गहराये।।


 


करना माँ का प्रिय सत्संगा।।


रहना सुधि-बुधि से अति चंगा।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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