संजय जैन

कल आज और कल


 


एक वो जमाना था 


जिसमें आदर सत्कार था।


एक ये जमाना है 


जिसमें कुछ नहीं बचा।


दोनों जमाने में यारो


अन्तर बहुत है।


इसलिए तो घरों में 


अब संस्कार नहीं बचे।।


 


एक बाप छ: बच्चों का


पालन पोशण कर देते थे।


और छ: बच्चे मिलकर


मां बाप को नहीं रख पाते।


और उन्हें बृध्दाश्रम में छोड़कर 


अपना फर्ज निभाते है।


और समाज में अपनी 


नाक ऊंची करते है।।


 


यही काम माँ बाप ने 


बच्चों के साथ किया होता।


और यश करने के लिए तुमसे मुंह मोड़ लेते।


और छोड़कर पालनघर में


अपना फर्ज निभाते।


तो क्या आज तुम 


इस मुकाम पर पहुंच पाते।।


 


कितनी सोच का अंतर


तब अब में हो गया।


रिश्तो में भी मिठास 


अब वो कहा रही।


ये सब कुछ आज की चकाचौंध का असर है।


तभी तो बच्चे मांबाप को अपने से दूर रख रहे है।।


 


हमें अब दिखाने लगा है


दायित्वों कर्तव्यों का अंतर।


इसलिए तो खुदके बच्चो को भी आया पाल रही है।


तो फिर कैसे दिलमें रहेगा


मांबाप के लिए अपनापन।


इसलिए बड़ेबूढे कह गये है


जो बोया है वही तो काटोगे।


और खुदको भी आश्रम में 


अपने मांबाप की तरह पाओगें।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


विनय साग़र जायसवाल

उसी से क्या करें फ़रियाद कर के 


गया है जो हमें बर्बाद कर के


 


करो रोज़ाना हमसे गुफ्तगू तुम


अगर रखना हो दिल को शाद कर के


 


चले आओ मेरे दिल के महल में


ख़ुशी होगी तुम्हें आबाद कर के


 


भरोसा कर के तो देखो हमारा


रखेंगे हम तुम्हें नौशाद कर के


 


जुदाई सह न पायेंगे तुम्हारी


जो चाहो देख लो आज़ाद कर के 


 


कहाँ तक उसका हम रस्ता निहारें 


निकल जाये न दम यूँ याद करके 


 


कफ़स की तीलियों को तोड़ देंगे


अगर रख्खा हमें नाशाद कर के


 


मदद लेना कभी उससे न *साग़र*


जो गाये हर जगह इमदाद कर के


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


फ़रियाद-विनती ,शिकायत 


गुफ्तगू-बातचीत ,वार्तालाप


शाद-खुश


नौशाद-ख़ुश


कफ़स -जेलख़ाना


तीलियों-सलाखों 


नाशाद ,दुखी ,नाराज़


इमदाद-सहायता ,मदद


राजेंद्र रायपुरी

 सिपाही सरहद का


 


शरहद पर तैनात सिपाही, 


                रक्षक बनकर खड़ा हुआ है।


 


हिला नहीं सकता कोई भी, 


                 वह पर्वत सा अड़ा हुआ है।


 


धूप-ताप से डरे नहीं वह,


                  शोलों में तप बड़ा हुआ है।


 


उसे छाॅ॑व की चाह नहीं है,


               धूप -ताप यदि कड़ा हुआ है। 


 


भूख न विचलित करती उसको,


                  भूखे- प्यासे खड़ा हुआ है।


 


कर्मठ है वह तभी देख लो,


                  वर्दी तमग़ा जड़ा हुआ है।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

आधी दुनिया नारी की


सारी सृष्टि नारी से।। हाइकू


1


नारी से नेह


नारी रचनाकार


नारी है स्नेह


2


नारी है रोली


पूजा चंदन टीका


दृढ़ ओ भोली


3


राज दुलारी


बने जीवन क्यारी


कभी बेचारी


4


है प्रभु स्मृति


नारी है पूजनीय


ईश्वर मूर्ति


5


है रौद्र रूपा


कभी शीतल जल


नारी स्वरूपा


6


कभी अबला


नारी रूप अनेक


कभी सबला


7


दी जाती बलि


नारी त्याग मूरत


जाती है छली


8


है माँ शारदे


नारी बने संबल


दुख हार दे


9


नर ओ नारी


नर पे सदा भारी


ये घरवारी


10


अंधा कानून


नारी न मिले न्याय


भोली मासूम


11


दो कुल मान


परिवार की शान


नारी महान


12


दुर्गा की धार


चंडी का अवतार


लुटे जो प्यार


13


श्रद्धा व भक्ति


प्रभु में रखे आस्था


नारी की शक्ति


14


वो सारा प्यार


संतान पर वार


वो ही संसार


15


सृष्टि जननी


पूरी दुनिया है जो


उससे जन्मी


************""""""""************


कोशिश करो कि जिन्दगी हमारी अपनी सहेली बन जाये।।


 


मुस्करा कर ही जीना तुम


इस जिंदगानी में।


माना कि कुछ रास्ते खराब भी


हैं इस रवानी में।।


जान लो कि जिन्दगी फिदा है


इस मुस्कराहट पर।


चाहे कितने गम हों जीत कर ही


आओगे इस कहानी में।।


 


यह जीवन बस इम्तिहानों का ही


दूसरा नाम है ।


एक रास्ता बंद हो तो भी जान लो


दूसरे तमाम हैं ।।


तुम्हारा भाग्य तुम्हारे कर्म की ही


मुट्ठी में होता है कैद ।


यह किस्मत की लकीरें तेरे परिश्रम


का ही ईनाम हैं ।।


 


गमों में भी मुस्कारनें की यह आदत


बहुत अलबेली है ।


तन्हाई में भी जिन्दगी कभी रहती


नहीं अकेली है ।।


तनाव अवसाद यूँ ही असर नहीं


करते आदमी पर ।


कभी यह जिन्दगी हमारी बनती


नहीं पहेली है ।।


 


कोशिश करें कि जिन्दगी हमारी


अपनी चेली बन जाये।


वक़्त मुश्किलों का भी हमारी


सहेली बन जाये।।


बस खुश रहें हम हर वक़्त और


हर दर्दो गम में ।


हो जिसका हर जवाबो हल बस


जिंदगी वो पहेली बन जाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


कालिका प्रसाद सेमवाल

सरस्वती वन्दना


◆◆◆◆◆◆◆◆◆


माँ सरस्वती मेरी तुमसे यही कामना,


ध्यान में डूब कर मैं तुम्हारे गीत गाता रहूँ,


कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,


माँ मैं गीत गंगा में गोते लगाता रहूँ।


 


साधना की डगर हो सुगम माँ यहां,


तन विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।


 


शब्द के कुछ सुमन हैं समर्पित तुम्हें,


बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए,


हर हृदय चले कुछ सुवासित यहां,


छन्द में ताल लय नव सृजन चाहिए।


 


कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हों,


मन मस्तिष्क में माँ तुम्हें सजाता रहूँ।


 


माँ सरस्वती भजन में लगन चाहिए,


वाणी में मुझे माँ मिठास ही चाहिए,


मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,


हंस वाहिनी शुभे शत नमन चाहिए।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नीति-वचन-17


देहिं जलद जग अमरित पानी।


सुख-सीतलता बुधिजन-बानी।।


   संत-संतई कबहुँ न जाए।


   कीच भूइँ जस कमल खिलाए।।


नीम-स्वाद यद्यपि प्रतिकूला।


पर प्रभाव स्वास्थ्य अनुकूला।।


    गर्दभि गर्भहिं अस्व असंभव।


    खल-कर सुकरम होय न संभव।।


नहिं भरोस कबहूँ बड़बोला।


खल-मुस्कान कपट मन भोला।।


    दूध-दही-मक्खन-घृत-तेला।


    जदपि स्वाद इन्हकर अलबेला।।


पर जब होय भोग अधिकाई।


हो प्रभाव जस कीट मिठाई।।


   आसन-असन-बसन अरु बासन।


   चाहैं सभ अनुकूल प्रसासन।।


बट तरु तरि जदि पौध लगावा।


करहु जतन पर फर नहिं पावा।।


दोहा-रबि-ससि-गरहन होय तब,महि जब आवै बीच।


         बीच-बिचौली जे करै,फँसै जाइ ऊ कीच ।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


भुवन बिष्ट

सुप्रभात वंदन


जयति मातु तुम हो वरदानी। 


सब जग पूजे मुनि जन ज्ञानी।। 


नित्य करूँ वंदन मैं माता।


तुम सब जन की भाग्य विधाता।। 


             प्रेम भाव के दीप जलायें। 


             ज्ञान सदा जग में फैलायें।। 


             बने जगत में भारत प्यारा। 


             जग में सुंदर देश हमारा।। 


हर मन जब भी पावन होवे। 


सदा जगत मनभावन होवे।। 


राग द्वेष जब सब मिट जाये। 


सुख तब मानव मन में पाये ।।


    ......भुवन बिष्ट 


                       रानीखेत, उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

धरती मइया की वंदना


हे धरती मइया


परत हव, तोर पइया


महू ह तोर शरण में हो


हर लेबे, तै मोर पीरा


का लइका,का स्यान दाई


धरथे तोरेच ध्यान


चंदा अउ सुरुज लेे ज्यादा


हावे तोर अंजोर ह


ज्ञान गंगा के देवैया, मइया


पहली शीश,नवावव तोला


मोरो तै ह, विनती सुन ले


नइ कर सकव बखान मैहर


हे धरती मइया


परत हव, तोर पईया


महू ह तोर शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


सबो परानी के, माता कहाथस


तोरेच महिमा नियारी हे


तैंतीस कोटि देवता होथे


पर पहली पूजा, तोरेच होथे


हमू ल ते ह, तार लेे मइया


जइसन सब ल तारे हस


हे धरती मइया


परत हव तोर पईया


महू ह तोर, शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


कोनो ह तोला फूल चढ़ाथे


कोनो ह श्रद्धा भकति


ऊंचा तोर आसन मइया


परबत अउ पहाड़ी भी हे


चौसठ योगिनी मंगल गावे


नाचे डमरू वाला


चार लोक, चउदा भुवन में


फइलेे हे, तोर उजाला


हे धरती मइया


परत हव तोर पइया


महू ह तोर, शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र

अब मत रूठो


 


अब मत रूठो।


मुस्कानों से स्वागत करना।।


 


अब मत रूठो।


हँसते ही अब मुझसे मिलना।।


 


अब मत रूठो।


बाँह पकड़ कर चलते रहना।।


 


अब मत रूठो।


कदम-कदम पर बातें करना।।


 


अब मत रूठो।


मीठी-मीठी कहते रहना।।


 


अब मत रूठो।


दिल से दिल को जोड़े रहना।।


 


अब मत रूठो।


प्रीति रसामृत पीते रहना।।


 


अब मत रूठो।


विनिमय नियम बनाये रखना।।


 


अब मत रूठो।


सजना, सदा सजाते रहना।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 शोकाकूल स्तब्ध हूँ


 


निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ,


क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ।


खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन,


क्या कहूँ ,कातिल ,पापी बहसीपन।


 


सोच विकृत घिनौनी चरित दानवी,


बलि चढ़ी पुनः दुष्कर्म पथ मानवी।


मर्यादाएँ क्षतविक्षत मूल्य नैतिक,


निर्लज्जता तोड़ सीमा निर्बाध रथ।


 


छलनी लज्जिता सरे आम अस्मिता,


श्रद्धा लज्जा फिर विलोपित दनुजता।


दरिंदगी बलवती फिर अय्याश पथ,


बेहया पापी घृणित दुष्काम निरत।


 


बन निशाचर बेख़ौप स्वयं मौत से,


बदतर आदमख़ोर जंगली पशु से।


कुलांगार माँ कोख़ करता कलंकित,


विक्षिप्त मानस चित्त दानव दुश्चरित।


 


निडर खल दुस्साहसी फाँसी मिले,


दुर्मति बिन विवेक जग उपहासी बने।


नोंचने नार्य अस्मिता नित गिद्ध बन,


पर दरिंदे पहचानना है कठिन।


 


जनता प्रशासन सजग नित सक्रिय रहे, 


प्रशासनिक दण्ड का भय खल मन जगे।


इच्छाशक्ति हो परपीडना निदान मन,


बहु बेटियाँ सबला बने शक्ति बहन।


 


नारी सुरक्षा प्रश्न है बस देश में,


दनुज दरिंदो को पकड़ बस भून दें।


राजनीति छींटाकशी अस्मित हरण,


तजें, मिल सोचें सभी बस निराकरण।


 


मानवीय संवेदना नैतिक पतन,


शिक्षा मिले नारी महत्त्व बालपन।


शील गुण .सद्कर्म पथ इन्सानीयत,


माँ बहन बेटी बहू हो अहमीयत।


 


कठोरतम दण्डविधान दुष्कर्म हो,


देख औरों पापी जन रूहें कँपे।


सम्बल योजना हो नारी सुरक्षा,


हो निडर तनया शिक्षिता मन आस्था।


 


 डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


डॉ. हरि नाथ मिश्र

दो अक्टूबर


दो अक्टूबर अपने देश की शान रहा है।


एक गांधी जन्मे दूजा लाल किसान रहा है।।


                 एक गांधी जन्मे....


जब-जब दौरे तूफाँ भारत पे आया है,


आज़ादी के चंदा को बादल ने छुपाया है।


तब बादलों में रौशन हिंदुस्तान रहा है।।


              एक गांधी जन्मे....


एक ऐसी घड़ी भी आयी, जब गोरे रंग जमाए,


अपनी रँग-भेदी चालों से माँ को बेड़ी पहनाए।


बेड़ी को तोड़ कर गांधी जाहिर जहान रहा है।।


            एक गांधी जन्मे....


नफ़रत की ज्वाला के जब शोले भड़के थे,


इन्साँ के लहू के ओले दुनिया पे बरसे थे।


शोलों से बचाया जो वो फ़क़ीर महान रहा है।।


          एक गांधी जन्मे....


जय किसान का लहज़ा जो हमें सिखाया है,


भारत-माता को हर-पल वो लाल भाया है।


लाल का दूसरा नारा जय जवान रहा है।।


       एक गांधी जन्मे....


भारत-माता की लाज को बच्चों ने बचाया है,


माँ की खातिर अश्क़ों को हर-दम बहाया है।


बच्चों में हमारे देश का इंसान रहा है।। 


         एक गांधी जन्मे....।।


                       © डॉ. हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां वीणा धारणी वरदे


********************


हे मां वीणा धारणी वरदे


कला की देवी इस जीवन को


सुन्दरता से सुखमय कर दो


अपने अशीष की छाया से


मेरा जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


सरस सुधाकर शुभ वाणी से


अखिल विश्व को आलोकित कर दो


बुद्धि विवेक ज्ञान प्रकाश सबको देकर


सबका जीवन मंगलमय कर दो।


 


हे मां वीणा धारणी वरदे


तेरे चरणों में आकर मां


विश्वास का सम्बल मिलता है


जिस पर भी तुम करुणा करती हो


उसका जीवन धन-धान्य हो जाता है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. निर्मला शर्मा

लाल बहादुर शास्त्री


-----------------------------------       


रत्नों सी आभा जिसकी


उसने कर दिया कमाल


संघर्षों को सदैव दिया


उत्कट धैर्य का जवाब


युवाओं के सामने


उसने रखी मिसाल


हिम्मत न हारी कभी


न पटके कभी हथियार


अंग्रेज हो या चीन हो


या हो पाकिस्तान


अपनी कूटनीति और


वीरता से दिया


उन्हें मुहतोड़ जवाब


अखंड भारत की


ज्योति को जलाये रखा


माँ भारती की


आन को बनाये रखा


तिरंगे को शान से


विश्व पटल पर फहराये रखा


जन जन को दिया नारा


जय जवान जय किसान


भारतमाता के सपूत


उन्हें कोटि- कोटि प्रणाम


व्यक्तित्व उस लाल का


है बड़ा ही महान


बहादुरी की मिसाल


जनता का प्यारा लाल


देश का प्यारा प्रधानमंत्री


पद उनका था उच्च


लेकिन जीवन सदा


सादा ही जीते


कभी किसी को


नहीं समझा उन्होंने तुच्छ


योगी सा जीवन अपनाया


मन मैं कभी अहंकार न लाया


भारतमाता का लाड़ला वह


किसान पुत्र की छाया


उनके जीवन का ध्येय यही


जननी की सेवा करूँ सदा


चरणों मैं निकले प्राण यहीं


जब प्राण गए


हर आँख थी नम


सीने मैं जन-जन के


उस क्षण।


भरा हुआ था केवल गम


तिरंगे मैं लिपटा चला गया


वो माँ का अमर सिपाही था


चेहरे पे अनोखी आभा थी


मस्तक पर गर्व का साया था


करती हूँ उन्हें नमन मैं भी


देती हूँ शब्दों से श्रद्धांजलि


 


डॉ. निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


विनय साग़र जायसवाल

कुछ तो उसकी भी शान रहने दे


इतना ऊँचा बखान रहने दे


हुस्ने मतला ---


 


उलटे सीधे बयान रहने दे


कुछ तो अपना भी मान रहने दे


 


फिर हक़ीक़त समझ में आयेगी


बस मुझे दर्मियान रहने दे


 


तू मुझे हर तरह गवारा है


शिजरा-ऐ-खानदान रहने दे


 


तुझको अब तक यक़ीं न हो पाया


और अब इम्तिहान रहने दे


 


मत मिटा इस तरह कहानी को


कुछ तो बाक़ी निशान रहने दे


 


एक से एक हैं यहाँ *साग़र*


ख़ुद पे इतना गुमान रहने दे


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


बरेली


शिजरा--वंशावलि


बहर -फायलातुन मुफायलुन फेलुन


डॉ0 निर्मला शर्मा

दो अक्टूबर (मुक्तक)


1●


अहिंसा के पथ का वह था अटल सवार


सत्याग्रह आगे बना जिनका एक हथियार


स्वदेशी का जिसने दिखलाया था द्वार


राष्ट्रपिता बापू करती हूँ तुमको नमन हजार।


 


2●   


रत्नों की सी आभा जिसकी


व्यक्तिव था बड़ा कमाल


लाल बहादुर शास्त्री वह


भारत माता का लाल


जनसमूह को दिया है नारा


जय जवान जय किसान


भारत माँ के सपूत को


कोटि कोटि प्रणाम।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


एस के कपूर श्री हंस

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 151 वीं


जयंती पर राष्ट्र को समर्पित एक मुक्तक


 


अहिंसा का मार्ग, दिल में स्वराज, 


करोडों का एक ही आगाज़ था।


पराधीनता सपनेहुँ सुख नहीं बस, 


मिले स्वाधीनता का ही ख्वाब था।। 


भगतसिंह, नेताजी और बापू,


टिक नहीं पाये यह गोरे अंग्रेज़।


इसलिए सन सैंतालीस को हुआ,


अपना भारत महान आज़ाद था।।


*******"""""******""""*******


प्रेरणा परिवार मुक्तक प्रतियोगिता


 


बापू के अहिंसा मन्त्र से ही हुआ


आज़ादी का ये उजियारा है।


 


राष्ट्रपिता के प्रयत्नों से ही बना


भारत इक स्वच्छ किनारा है।।


 


हमसब महात्मा गांधी को पूजते


पर नहीं करते हैं अनुसरण।


 


आज अहिंसा के पुजारी को


यहाँ हिंसा ने मारा है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


नूतन लाल साहू

ज्ञान की कुछ बाते


 


सिद्धि नहीं,संयम बिना


बिन दुःख, होत न ज्ञान


प्रेम अहिंसा और मानवता


बना देता हैं,महान


गांधी जी के,जीवनी से सीख ले सकता है


सारी बातें कह चुके,तुलसी सूर कबीर


आता है,सबका शुभ समय


फिर काहे को, रोय इंसान


ईश्वर अल्लाह को,मत भूलना


गांधी जी के,जीवनी से सीख ले सकता है


समय आयेगा,समय पर


इसको निश्चित,तू जान


समय से पहले,किसी को


नहीं मिला सम्मान


समझ न पाया,कोई भी


यही है,तकदीरों का राज


बिन संघर्ष,कोई नहीं होता है महान


गांधी जी के जीवनी से सीख ले सकता है


यश धन वैभव के


पीछे पीछे नहीं भाग


वह खुद,चलकर आयेगा


जरा मोह को,तो त्याग


हानि लाभ,जीवन मरण


यश अपयश,है विधि के हाथ


कर्मो का फल,अवश्य ही मिलेगा


विधि का है,अटल विधान


परमार्थ का काज,सब करें तो


राम राज्य,आ जायेगा


गांधी जी के जीवनी से सीख ले सकता है


नूतन लाल साहू


सुनील कुमार गुप्ता

कभी पनपे न अविश्वास


"सत्यनुभूति संग जीवन को,


फिर मिलता सुखद आभास।


यथार्थ धरातल पर जगत में,


पल-पल बना रहे विश्वास।।


अविश्वास संग जीवन पथ पर,


फिर मिलता पग पग आघात।


अपनत्व संग संग भी साथी,


फिर बने न कोई बात।।


स्नेंह संग विश्वास साथी,


देता मन को शक्ती


अपार।


जीवन बगिया में साथी फिर,


कभी पनपे न विकार।।"


 


        सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

गाॅ॑धी जयंती पर विशेष 


 


खिले फूल दो देश हमारे।


  दो अक्टूबर न्यारे - न्यारे।


    नाम एक का लाल बहादुर,


       दूजे बापू सबके प्यारे।


 


आओ नमन इन्हें हम कर लें।


  आत्मसात इनके गुण कर लें।


    इन के पद चिन्हों पर चलकर,


      सेवा तनिक देश की कर लें।


 


बापूजी ने काट बेड़ियाॅ॑,


  भारत को आजाद कराया।


    मुक्ति मिली अंग्रेजों से तब,


      भारत माॅ॑ का मन हर्षाया।


 


लाल बहादुर छोटे कद के, 


  लेकिन बड़े इरादे थे।


    अंदर से मजबूत मगर वो, 


      दिखते सीधे-सादे थे।


 


सूझ-बूझ का परिचय देकर,


  दुश्मन को था सबक सिखाया।


    ताशकंद समझौता लेकिन, 


      उन्हें तनिक भी रास न आया।


 


विदा हो गए इस दुनिया से,


  कारण कोई जान न पाया।


    दुश्मन के कंधे पर चढ़कर, 


      लाल देश का था घर आया।


 


भारत माॅ॑ के दो सपूत। 


  दोनों ही असमय चले गए। 


    याद रखेंगे हम सब उनको, 


      छोड़ हमें वे भले गए।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ. रामबली मिश्र

कलियुग की माया


 


सभी वासना से हैं व्याकुल।


भोग-कामना से अति आकुल।।


 


चौतरफा संग्राम छिड़ा है।


जर-जोरू के लिये भिड़ा है।।


 


बढ़ते आज दरिंदे निचकट।


करत छिनैती लंपट चोरकट।।


 


बहू-बेटियाँ अब असुरक्षित।


पुलिस-प्रशासन तुच्छ-प्रफुल्लित। 


 


विघटन का यह दौर चल रहा।


बड़ा गरीबों को निगल रहा।।


 


मन दूषित हो गया आज है।


बीत गया अब रामराज है।।


 


पाप नाचता सबके ऊपर।


तामस भाव भर गया भीतर।।


 


दैहिक -भौतिक यह कलियुग है।


विकृत मूल्यों का यह युग है।


 


छल-छद्मों का ज्वार आ गया।


प्रेतों का दरबार छा गया।।


 


चौतरफा है घोर निराशा।


अति धन संग्रह की अभिलाषा।।


 


जंगल बनता अब समाज है।


गन्दे लोगों का स्वराज है।।


 


लक्ष्य बन गया है अब दोहन।


गायब अब मुरली-मनमोहन।।


 


कुंठित सारा जगत-जमाना।


सब करते दिखते मनमाना।।


 


घोर निशा की काली छाया।


नचा रही कलियुग की माया।।


=====================


सत्य-अहिंसा-प्रेम पुजारी


 


सत्य-अहिंसा-प्रेम पुजारी।


गाँधी जी की दुनिया न्यारी।।


 


सत्य-अहिंसा-प्रेम ही गाँधी।


मिली देश को है आजादी।।


 


सत्यग्रह उपवास नियम प्रिय।


भारतीयता कूट-कूट हिय।।


 


प्रेम सुधा वट के संपोषक।


शीतल छाया के उद्घोषक।।


 


दयावान अति सरल कृपालू।


अति संवेदनशील दयालू।।


 


सम्मोहक आकर्षक भव्या।


अति साधारण वेश सुसभ्या।।


 


लाठी -कोपीन और नहीं कुछ।


साधारण चप्पल ही सब कुछ।।


 


परम नीतिवान खुद संस्था।


भारत के प्रति अमिट आस्था।।


 


अति संघर्षशील उत्प्रेरक।


सारी जनता के प्रिय प्रेरक।।


 


सत्य जीवनी प्रेम कहानी।


धर्म-अहिंसा अति मृदु वानी।।


 


मोहनदास कर्मचंद गाँधी।


राष्ट्रपिता अतुलित जनवादी।।


 


राम-कृष्ण सन्देश मनीषी।


रामायण-गीता उपदेशी।।


 


भारतीय संस्कृति संवाहक।


अति मधुरामृत भाव सुचालक।।


 


दिव्य धाम प्रिय गाँधी आश्रम।


आत्मनिर्भरा शक्ति सु-आगम।।


 


वन्दनीय महनीय यशस्वी।


स्वतंत्रता- संग्राम-तपस्वी।।


 


भारत पालक -पोषक जिमि पित।


राष्ट्र शिखर पर अज-अम -स्थापित।।


 


अमर राष्ट्र भारत निर्माता।


श्री गाँधी जग में विख्याता।।


 


अति श्रद्धेय भरत इव जानो।


भारत-गंगा को पहचानो।।


 


यह बापू का धर्म-कर्म था।


आजादी का जश्न मर्म था।।


 


गाँधी के कदमों पर चलना।


साफ-सफाई करते रहना।।


 


पुनः करो आजाद देश को।


भ्रष्ट आचरण मुक्त देश को।।


 


गन्दे भावों को जलने दो।


पावन संस्कृति को रचने दो।।


 


रहो समर्पित सदा राष्ट्र को।


देना सीखो सतत राष्ट्र को।।


 


जो देता है वह साधू है।


वही अथाह अमर बापू है।।


 


बापू संत समाज प्रतीका।


सब कुछ सरस सकल रस नीका ।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

जय गाँधी शास्त्री नमन


 


सत्य त्याग शालीनता , कर्म धर्म समुदार।


गांधी शास्त्री युगल वे , स्वच्छ न्याय आधार।।१।।


 


मार्ग अहिंसा विजय का , जीवन उच्च विचार।


जीया जीवन सादगी , किया देश उद्धार।।२।।


 


अर्पित तन मन धन वतन, गाँधी शास्त्री साथ।


रामराज्य अभिलाष मन , सदा बढ़ाये हाथ।।३।।


 


सर्वधर्म समभाव मन ,शान्ति सुखद परमार्थ।


शिक्षा सब जन हो सुलभ, उन्नत राष्ट्र कृतार्थ।।४।।


 


एक पुरोधा क्रान्ति का , प्रतीक इतर संघर्ष।


जीत ब्रिटिश पराधीनता , आज़ादी उत्कर्ष।।५।।


 


सम्वाहक नव प्रगति का ,लेकर ध्वजा तिरंग। 


दी अरुणिम स्वाधीनता , जीत गुलामी जंग।।६।।


 


विकट समय नेतृत्व दे , बन प्रधान निज देश।


जय किसान नारा वतन, जय जवान संदेश।।७।।


 


गुदड़ी का था लाल जो , देश बहादुर भक्त।


गाँधी से अनुरक्त मन , सत्य कर्म आशक्त।।८।।


 


गाँधी की परिकल्पना , चहुँमुख जन उत्थान।


सहनशील समरस वतन, सार्वभौम मुस्कान।।९।।


 


शान्ति प्रेम सम्भाष मधु , भारत जीते विश्व।


जाति धर्म निर्भेद बन, लोकतंत्र अस्तित्व।।१०।।


 


कर्मचन्द्र शीतल प्रभा , मोहन दास स्वदेश।


ऋषितुल्य आस्तिक चरित,मोहित जन उपवेश।।११।।


 


शास्त्र निपुण शासक प्रखर , शौर्य धीर गंभीर।


लाल भारती लाड़ला , शत्रुंजय रणवीर।।१२।।


 


त्यागमूर्ति दृष्टान्त बन, देकर निज बलिदान।


स्वर्णाक्षर इतिहास में , गाँधी शास्त्री मान।।१३।।


 


कवि निकुंज सादर विनत , नमन करे सम्मान।


शास्त्री नित गांधी वतन , अमरकीर्ति यशगान।।१४।।


 


मृदुल चन्द्र निशि चन्द्रिका ,चरित भोर अरुणाभ।


शान्ति प्रगति शास्त्री उभय , गाँधी जन अमिताभ।।१५।।


 


जय गाँधी शास्त्री नमन , वन्दे हिन्द महान।


आन बान शान ए वतन , भारत माँ अभिमान।।१६।।


 


डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नवदिल्ली


संजय जैन

दो लालो का जन्म दिन


 


2 अक्टूबर का दिन, 


कितना महान है।


क्योकि जन्मे इस दिन 


दो भारत मां के लाल है।।


 


सोच अलग थी दोनों की,


पर थे समर्पित भारत के लिए।


इसलिए दिन को 


हम लोग याद करते है।


और दोनों के प्रति, 


श्रध्दा सुमन अर्पित करते है।


और उन्हें दिल से 


आज याद करते है।।


 


सत्य अहिंसा के बल पर,


हमे दिलाई आज़दी।


और सत्यग्रह करके,


मजबूर कर दिया अंग्रेजो को ।


और उन्हें छोड़ना पड़ा 


भारत देश को।


और मिल गई हमे आज़दी, 


सत्य अहिंसा के पथ पर चलकर।।


 


याद करो उन छोटे 


कद वाले इंसान को।


जो सोच बहुत बड़ी रखते थे।


और हर कार्य भारत के 


हित मे करते थे।


तभी तो उन्होंने नारा दिया था,


जय जवान जय किसान।


ये ही है भारत की 


आन मान और शान ।।


 


दोनों के प्रति आदर भाव रखते हुए। 


हम उन्हें श्रध्दांजलि अर्पित करते है।


और भारत माँ को प्रणाम करते है।


कि ऐसे लालो को आपने,


जन्म दिया हिंदुस्तान में।।


 


आज ह्रदय से दोनों महापुरुषों 


को श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ।।


 


जय हिंद जय भारत


संजय जैन (मुम्बई)


********************


गांधी तेरे बंदर


 


गांधी तेरे तीन बंदरो का, 


हम अनुसरण कर रहे है।


और आज तेरे जन्मदिन पर,


श्रध्दा फूल चढ़ा रहा हूँ।


आज़दी तो मिली गई भारत माँ को।


पर अबतक समझ नहीं पाया,


की क्या मिला इससे हमको।।


 


तेरे बंदर भी है कमाल के,


जो संकेत देते है हर बात के।


एक कहता है देखो सुनो, पर बोलो मत।


वरना बोलती हमेशा, 


के लिए बंद हो जाएगी।


दूसरा कहता है न देखे न सुनो,


और कुछ भी बोल दो।


सारे इस पर उलझ जाएंगे,


और फिर दिनरात पकाएंगे।


तीसरा कहता देखो बोलो,


और किसी की मत सुनो।


नेता अभिनेता बन जाओगें।


और अंधे गूंगे और बैहरो 


कि तरह बनकर,


सफल नेता कहलाओगें।


और देश की जनता को


5वर्षों तक उल्लू बनाओगे।


न खुद शांति से बैठोगें


न जनता को बैठने दोगें।


कुछ बोलकर कुछ सुनाकर और कुछ दिखाकर,


अपास में इन्हें लड़वाओगें।


और देश में अमन शांति 


स्थापित नहीं होने देंगे।


जिससे मूल समस्याओं की तरफ,


जनता का ध्यान नहीं जाएगा।।


इसलिए तो कहता हूं कि,


गांधी तेरे बंदर कमाल के है।।


 


नोट : कविता में सीधा गांधी लिखा गया है इसका ये मतलब नहीं है कि हम उन्हें आदर नही दे रहे वो तो पूज्यनी है क्योकिं


वो देश के राष्ट्रपिता है। इसलिए उन्हें जन्मदिन के अवसर पर अपने श्रध्दा के फूल उनके चरणों मे चढ़ाता हूँ।।


 


जय हिंद 


संजय जैन मुम्बई


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

आज़ादी के मतवाले सरदार भगत सिंह 


 


जय सरदार भगत हूंकार जगत,


आज़ादी के मतवाले शत्रुञ्जय,


जब सिंहनाद सुन भगत सिंह प्रवर,


घबरा थर्राया शत्रु भीत पड़े।  


 


हे शौर्यपुत्र माँ भारत प्रणाम,


जय भक्त राष्ट्र भाल तिलक ललाम,


बन अंग्रेज दमन विकराल काल,


काकोरी विध्वंसक तुझ नमन करे।


 


रग रग आप्लापित जयगान वतन,


लाला लाज चन्द्र सुखदेव रतन,


नव इतिहास वीर रणबाँकुर रण, 


भारती चरण कमल बलिदान करे।


 


सादर अभिवादन धीर वीर भगत,


शत नमन साहसी गंभीर प्रबल,


आत्मबली सुयश शूरवीर भारत,


क्रान्तिदूत आज़ादी जन नमन करे। 


 


जय महावीर सिंह तन मन अर्पित,


वन्दे मातरं भक्ति शक्ति गूंजित,


दहशत में गोरे रूहें कम्पित,


भगत मुदित फाँसी गलहार बने।


 


हे सरदार शौर्य सरताज प्रखर,


पा वीरगति राष्ट्र हिमराज शिखर,


जयकार भगत ए आज़म शहीद,


हम जन मन भारत तव नमन करे।


 


डॉ.राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-22


 


इत-उत पुनि बिचरहिं प्रभु रामा।


सिय खोजत बन अथक-अश्रामा।।


     लखन सहित प्रभु चहुँ-दिसि ताकैं।


     पाइ न सीता इत-उत झाकैं।।


कानन महँ लखि दनुज कबंधा।


हते ताहि प्रभु कीन्ह अबंधा ।।


    मोरि भागि दुरबासा सापा।।


    पायहुँ मुक्ति राम-परतापा।।


राम भगत-बत्सल-भगवाना।


बनि गंधर्ब कबंधय जाना।।


    लखि के निर्छल भगति कबंधा।


    प्रभु गंधर्बहिं कीन्ह अबंधा।।


पहुँचे तब प्रभु सबरी-आश्रम।


प्रभु-मग लखत रही जे हरदम।।


    स्यामल बदन,माल गर सोहै।


    जटा-मुकुट सिर बड़ मन मोहै।।


लखिके राम-लखन मग आवत।


गइ सबरी तहँ धावत-धावत ।।


     गौर बरन लछिमन बड़ सोभन।


     सुंदर तन,लोचन मन-मोहन।।


बेरि-बेरि प्रभु-लखन निहारय।


सबरी-मुख कछु बचन न आवय।।


     पुलकित तन-मन भरि अनुरागा।


     पुनि-पुनि प्रभु-सरोज-पद लागा।।


लाइ सुद्ध जल पाँव पखारी।


सुंदर-सुचि आसन बैठारी।।


    कंदइ-मूल,सरस फल लइ के।


    प्रभुहिं ख़िलावहि प्रमुदित भइ के।।


मम कुल-जाति अधम प्रभु रामा।


मैं अछूत,अवगुन कै ग्रामा ।।


   कस मैं करूँ प्रभू तव सेवा।


   जानि सकूँ नहिं जग लखि भेवा।।


दोहा-अस बिचार सबरी सुनी, राम कहहिं इक बाति।


         मम प्रिय बस निर्छल भगति,कुल न लखहुँ, नहिं जाति।।


        जस जल बिनु नीरद नहीं,कांतिहीन जस कंत।


        भगतिहीन धन-पद सहित,भाय न मोंहि महंत।।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र


*********************************


 अठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-2


 


सुनि अस बचन नंद बाबा कै।


गर्गाचार बाति कह मन कै।।


     सुनहु नंद जग जानै सोई।


     गुरु जदुबंस कुलयि हम होंई।।


कहे नंद बाबा हे गुरुवर।


अति गुप करउ कार ई ऋषिवर।।


    'स्वस्तिक-वाचन' मम गोसाला।


     अति गुप-चुप प्रभु करउ निराला।।


अति एकांत जगह ऊ अहई।


नामकरन तहँ बिधिवत भवई।।


    गुप-चुप कीन्हा गर्गाचारा।


    तुरतयि नामकरन संस्कारा।।


'रौहिनेय' रामयि भे नामा।


तनय रोहिनी अरु 'बल'-धामा।।


    रखहिं सबहिं सँग प्रेम क भावा।


     नाम 'संकर्षन' यहि तें पावा ।।


साँवर तन वाला ई बालक।


रहा सबहिं जुग असुरन्ह-घालक।।


    धवल-रकत अरु पीतहि बरना।


    पाछिल जुगहिं रहा ई धरना।


सोरठा-नंद सुनहु धरि ध्यान,कृष्न बरन यहि जन्महीं।


           नाम कृष्न गुन-खान,रखहु अबहिं यहि कै यहीं।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


राजेंद्र रायपुरी

चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 सीने को अपने तान। 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


सीमाऍ॑ देश की तुम्हें पुकारतीं।


 पुकारती तुम्हें है माता भारती।


 पुकारता है हिंद ये महान। 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान। 


सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


पड़ोसियों से रार आज बढ़ गई।


 नशा उन्हें मिशाइलों की चढ़ गई।


उतार दो नशा सुना के गान।


ब्रम्होस है महान,ब्रम्होस है महान।


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान, चलो रे नौजवान।


 


पीछे नहीं हटाना है कदम तुम्हें।


मां भारती की आज है कसम तुम्हें।


भले ही रण चली ये जाए जान।


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान। 


सीने को अपने तान।


 


चलो रे नौजवान,चलो रे नौजवान।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...