सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


 सपने ले नव-आकार


दु:ख की अनुभूति से ही यहाँ,


होता सुख का आभास।


सुख ही सुख होता जीवन में,


न होता मन में विश्वास।।


बढ़ता रहे विश्वास मन का,


ऐसी हो जग में आस।


बनी रहे आस्था प्रभु में,


टूटे नहीं ये विश्वास।।


हरे काम- क्रोध-मद्-लोभ,


जीवन को दे आधार।


सद्कर्मो संग जीवन में फिर,


सपने ले नव-आकार।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


राजेंद्र रायपुरी

 मनहरण घनाक्षरी पर रचना 


 


क्या हैं दिन ये आ गए,लोग सब यही कहें,


आप घर किसी के भी,भूल के न जाइए।


 


जाइए अगर कभी, तो बात मेरी मानिए,


मत किसी से जा वहाॅ॑, हाथ को मिलाइए।


 


दूर ही रहें सभी से, पास अब न जाइए,


बीच सबसे फासला, गज़ दो बनाइए।


 


खाइए न कुछ वहाॅ॑, कहा ये मान जाइए।


जो दिया उसे कभी भी, हाथ न लगाइए।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-25


 


इच्छु-दंभ,लोभी-बल जग मा।


बचन कठोर कुपित जन मुख मा।।


    कामी कै बल नारी अहहीं।


    मुनि-ऋषि श्रेष्ठ बाति ई कहहीं।।


पर प्रभु राम रहसि ई जानहिं।


तेहिं तें धीर-बिराग जगावहिं।।


     जब होवै प्रभु-कृपा केहू पै।


     कामइ-क्रोध न लोभ तेहू पै।।


करै प्रभाव दंभ नहिं माया।


माया-जाल-मुक्त प्रभु-दाया।।


  सकल जगत बस सपन भरम कै।


  करु प्रभु-भजन न भेव भरम कै।।


दोहा-अस जग देइ सनेस प्रभु,पुनः गए सर-तीर।


        पम्पासर जहँ सोहही,पुरइन-पुष्प-सुनीर।।


पम्पासर कै निरमल नीरा।


संत-हृदय जस बिनु मल थीरा।।


    चार घाट बड़ बँधे सुचारू।


     पिबहिं नीर पसु लघु सँग भारू।।


पम्पासर जनु घर उदार कै।


भिच्छुक खग-मृग बन-बिहार कै।।


     जब चाहहिं पीवहिं जल-बारी।


     चुकता करि बिनु कोऊ उधारी।।


समरस झष जल रहहिं अगाधू।


जस जग रहहिं एक रस साधू।।


    बिबिध रूप-रँग पंकज बिगसैं।


    भन-भन मधुर भृंग तहँ बेलसैं।।


जलकुक्कुट अरु हंस-हंसिनी।


प्रभु लखि किलकैं सिंह-सिंहिंनी।।


    बगुला-चक्रवाक सर-तीरा।


    खग-संकुल निरखहिं प्रभु धीरा।।


सुनि-सुनि खग-संकुल मृदु बैना।


थकित पथिक तहँ पावहिं चैना।।


    निज-निज कुटिन्ह मुनी तहँ रहहीं।


    पम्पासर जहँ तरु बहु भवहीं ।।


कटहल-आम-पलास-तमाला।


चम्पा-मौलिहिं बिबिध बिसाला।।


    सोहै कानन बिबिध स्वरूपा।


    बरनि न जा लखि बिटप अनूपा।।


लइ सुगंध कसुमित तरु-पाती।


झर-झर बायु सुगंधित आती।।


    कोकिल-पपिहा-स्वर बड़ सोहै।


    कुहू-कुहू,पिव-पिव मन मोहै।।


फल भरि डारन तरु अस नवहीं।


जस धन पाइ सुजन जग रहहीं।।


सोरठा-लखि अस रुचिर तड़ाग,राम-लखन मज्जन करहिं।


            लखि-लखि कसुमित बाग,बैठहिं राम लखन सहित।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

अच्छा अगर नहीं सोचोगे....।


 


 अच्छा अगर नहीं सोचोगे,


समझो मरना निश्चित है।


अच्छा अगर नहीं सोचोगे,


 समझो डरना निश्चित है।


जो भी अच्छा नहीं सोचता,


गंदा करता निश्चित है।


जिसके मन में दाह-द्वेष है,


उसका जलना निश्चित है।


जिसके मन में भरी गंदगी


नाला बनना निश्चित है।


संभाषण जो करत कठोरा,


वही कसाई निश्चित है।


जो करता है वार अकारण


पापी बनना निश्चित है।


जो सच्चे को लांछित करता,


दूषित बनना निश्चित है।


जिसके मानस में संवेदन,


साधू बनना निश्चित है।


*******************


मैं छंद हूँ


निबन्ध हूँ


निर्वाध हूँ 


अगाध हूँ


निर्द्वन्द्व हूँ


स्वच्छंद हूँ


मुझे बहने दो


स्वेच्छा से चलने दो


ऐसे ही रहने दो


दुनिया को कहने दो


मैं लिखता हूँ


खुद को पढ़ता हूँ


आनंद के लिये ऐसा करता हूँ


स्वतंत्र रचना करता हूँ


स्वयं के लिये जीता हूँ


जीने के लिये पीता हूँ


आकाश में उड़ता हूँ


समंदर में रत्न ढूढ़ता हूँ


पाताल को भी नाथता हूँ


मैं छंद हूँ


स्वयमेव आनंद हूँ।


आप भी लिखिए


छंद का चक्कर छोड़िए


आगे देखिए


बहुत दूर जाना है लौटकर नहीं आना है।


 


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गाँधी एक दृष्टि है


प्रेम की वृष्टि है


 


गाँधी एक विचारधारा है


सत्य का चमकता सितारा है।


 


गाँधी एक लोक है


अहिंसा का ब्रह्मलोक है।


 


गाँधी एक आत्मनिर्भर समाज है


सुंदर स्वराज है।


 


गाँधी एक दर्शन है


मानवता का स्पर्शन है।


 


गाँधी एक आंदोलन है


अत्याचारियों का मर्दन है।


 


गाँधी एक आग्रह है


महान सत्याग्रह है।


 


गाँधी एक संस्था है


विश्वास और आस्था है।।


 


गाँधी उदारवाद है


अन्त्योदयवाद है।।


 


गाँधी एक अवतार है


नैतिकता का आधार है


स्वतंत्रता का आगार है


जन-मन का विस्तार है।


 


गाँधी एक परिस्थिति है


विदेशी शासकों को मार भगाने की स्थिति है।


 


गाँधी एक नीति है


संगठित प्रीति-रीति है।


 


गाँधी एक मर्यादा है


जीवन सादा है।


 


गाँधी एक रचना है


स्वतंत्रता की संरचना है।


 


गाँधी एक धर्म है


भारतीयता का मर्म है।


 


गाँधी गुलाब का फूल है


भारतीय संस्कृति का मूल है।


 


गाँधी एक शैली है


सत्य-अहिंसाऔर प्रेम की थैली है।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


महराजगंज : चन्द्रभान प्रसाद एवं दयानन्द त्रिपाठी को गांधी जयंती के अवसर पर महादेवी वर्मा साहित्य शोध संस्थान सोनभद्र ने सहभागिता सम्मान प्रमाण-पत्र देकर किया सम्मानित

महराजगंज : चन्द्रभान प्रसाद एवं दयानन्द त्रिपाठी को गांधी जयंती के अवसर पर महादेवी वर्मा साहित्य शोध संस्थान सोनभद्र ने सहभागिता सम्मान प्रमाण-पत्र से दर किया सम्मानित।


 



 


महराजगंज । गांधी जयंती के अवसर पर महादेवी वर्मा साहित्य शोध संस्थान सोनभद्र द्वारा आयोजित दिनांक 02 अक्टूबर 2020 को "गांधी विचार दर्शन सत्य अहिंसा एवं स्वच्छता की प्रासंगिकता" विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार में सम्मिलित हुए । इसके लिए उत्तर प्रदेश के जनपद महराजगंज के शिक्षक साहित्यकार दयानन्द त्रिपाठी एवं चन्द्रभान प्रसाद को सहभागिता प्रमाण-पत्र देते हुए इनके उज्जवल भविष्य की कामना की। 


 


 


 


महादेवी वर्मा साहित्य शोध संस्थान सोनभद्र उत्तर प्रदेश एवं संयोजक डॉ बृजेश महादेव द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार ने बताया कि 02 अक्टूबर 2020 को हुए ऑनलाइन ई-संगोष्ठी पर मंच से देशभर के तमाम कलमकार जुड़े और अपने विचारों को भी रखा । 02 अक्टूबर को चलने वाले "गांधी विचार दर्शन सत्य अहिंसा एवं स्वच्छता की प्रासंगिकता" विषय पर के लिए चयनित कलमकारों को सम्मानित किया गया। इस राष्ट्रीय वबिनार के मुख्य वक्ता के रूप सर्वप्रथम गोरखनाथ पटेल जी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सोनभद्र, उत्तर प्रदेश, डॉ अमृता पाउल विद्यासागर विश्वविद्यालय वेस्ट बंगाल, डॉ रचना तिवारी राष्ट्रीय कवियत्री सोनभद्र , डॉ रामबरन पटेल भूगोल विभागाध्यक्ष डीडीयू विश्वविद्यालय गोरखपुर, डॉ स्वाहिदुल इस्लाम एसआरएम विश्वविद्यालय चेन्नई, डॉ बीएन दूबे अस्सिटेंट प्रोफेसर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी एवं संयोजक डॉ बृजेश महादेव जी के देखरेख एवं संचालन में सम्पन्न हुआ।


सुनीता असीम

हो गईं बातें पुरानी मेरी।


ढल रही जबसे जवानी मेरी।


****


ये गुमाँ भी हो गया लोगों को।


हो गईं ये है दिवानी मेरी।


****


वक्त की रफ्तार भी थम जाएगी।


देख लेगा जो रवानी मेरी।


****


आंख में आंसू तुम्हारी होंगे।


जो सुनोगे तुम कहानी मेरी।


****


यूं पराए हो गए अपने कुछ।


फेंक दी बाहर निशानी मेरी।


****


सुनीता असीम


दयानन्द त्रिपाठी

मानव रूपी शैतानों से 


जननी एक छली गयी


मन के हर भावों को लिए


हैवानों से ठगी गयी ।


 


अब तो समाज के ठेकेदारों


कुछ तो शर्म करो अपने पर


यदि कुछ कर नहीं सकते तो


ठेकेदारी छोड़ रहम करो अपनों पर।


 


अपने ऊल-जुलूल तर्कों से ही 


बचते हैं शैतान यहां पर


शैतानों के अमानवीय आघातों से


सबकुछ चकनाचूर हो गया यहां पर।


 


अब कर्तव्यों की दृढ़ता में 


क्या कुछ और देखना बाकी है


इन दानवों के मुकदमें ना हो बस


सरेआम फांसी देना ही बाकी है।



  -दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


डॉ राजीव पाण्डेय

कुछ घटनाएं झकझोर देती हैं


हैवानियत के दरिंदे इंसानियत को शर्मसार करते हैं।


मेरी काव्यात्मक प्रतिक्रिया इस कविता के माध्यम से देखिए


 


कुछ भँवरों की शैतानी ने,मसली एक कली।


इसीलिए अब फूट फूट कर, रोती गली गली।


 


झीलें पोखर,नदियों तक के,आँसू सूख गए।


सहमे सहमे बाग बगीचे, हँसना भूल गए।


रो रोकर धरती अम्बर ने,अपनी आँख मली।


 


घर आँगन का एक खिलौना, सम्मुख टूट गया,


सहमे सहमे हर कोने का ,सपना रूठ गया,


देखो कोयल भी कागा से,फिर से गयी छली।


 


चिड़ियों के कलरव में छाया, देखो सूनापन,


नन्ही परियों के पँखों को , नोचें अपनापन,


घात लगी हो अंकुर पर जब,फूले नहीं फली।


 


झुकीं झुकीं तरुवर की डालें,करतीं रुदन मिलीं,


अंग भंग वालीं कलियां भी ,देखीं कहाँ खिलीं,


मृतक कपोलों पर है अंकित, न बच पाये अली।


 


 डॉ राजीव पाण्डेय


सुनीता असीम

मुहब्बत बेवफा हो तो कज़ा है।


निभाना यार से यारी मजा है।


***


बड़ा आसान है दिल तोड़ना पर।


नहीं मुश्किल दिलों को जोड़ना है।


***


भला या तो बुरा तुमको कहेगा।


जमाने की रही जिसमें रज़ा है।


***


डगर में ख़ार मिल जायें समझना।


परीक्षा ले रहा अपनी खुदा है।


***


कसौटी पर कसेगा फिर निखारे।


ख़ुदा की ये अनो खी सी अदा है।


***


उन्हें भी ज़िन्दगी जीना न आया।


जिन्हें लगती रही रही ये तो सज़ा है।


***


सुनीता कह रही सबसे यही बस।


जहां में जिंदगी जीना कला है। 


***


सुनीता असीम


सुषमा दीक्षित शुक्ला

प्रकटे बापू 


 


दो अक्टूबर महापर्व है,


 भारत के इतिहास में 


प्रकटे बापू भानु इसी दिन ,


धरा देख तम पाश में ।


सत्य अहिंसा व्रत को लेकर,


चरख चक्र ले हाथ में ।


मिटा दिया दासत्व कलुष तम


अंकित भारत माथ में ।


भय का बिल्कुल नाम नहीं था,


 सत्याग्रह आंदोलन में ।


सारी जनता मुग्ध हुई थी,


 महामंत्र के मोहन में ।


भय से कांपे हिंसक शासक,


 एक अहिंसक के आगे ।


पीछे चली निहत्थी सेना , 


 चला संत आगे आगे।


भीषण लू चलती हो चाहे,


 बरसे वर्षा का पानी ।


निर्भय संत बढा जाता था ,


पैरों में गति तूफानी ।


पाप गुलामी से जब धरती ,


त्राहि त्राहि थी चीख पड़ी।


मोहन ने तब गाँधी बनकर ,


भारत माता मुक्त करी ।


इसी दिवस तो शास्त्री जी भी ,


भारत मे थे जन्मे ।


धर्मवीर थे कर्म वीर थे ,


सत्यनिष्ठ थे पक्के।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


लखनऊ


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 शोकाकूल स्तब्ध हूँ


 


निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ,


क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ।


खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन,


क्या कहूँ ,कातिल ,पापी बहसीपन।


 


सोच विकृत घिनौनी चरित दानवी,


बलि चढ़ी पुनः दुष्कर्म पथ मानवी।


मर्यादाएँ क्षतविक्षत मूल्य नैतिक,


निर्लज्जता तोड़ सीमा निर्बाध रथ।


 


छलनी लज्जिता सरे आम अस्मिता,


श्रद्धा लज्जा फिर विलोपित दनुजता।


दरिंदगी बलवती फिर अय्याश पथ,


बेहया पापी घृणित दुष्काम निरत।


 


बन निशाचर बेख़ौप स्वयं मौत से,


बदतर आदमख़ोर जंगली पशु से।


कुलांगार माँ कोख़ करता कलंकित,


विक्षिप्त मानस चित्त दानव दुश्चरित।


 


निडर खल दुस्साहसी फाँसी मिले,


दुर्मति बिन विवेक जग उपहासी बने।


नोंचने नार्य अस्मिता नित गिद्ध बन,


पर दरिंदे पहचानना है कठिन।


 


जनता प्रशासन सजग नित सक्रिय रहे, 


प्रशासनिक दण्ड का भय खल मन जगे।


इच्छाशक्ति हो परपीडना निदान मन,


बहु बेटियाँ सबला बने शक्ति बहन।


 


नारी सुरक्षा प्रश्न है बस देश में,


दनुज दरिंदो को पकड़ बस भून दें।


राजनीति छींटाकशी अस्मित हरण,


तजें, मिल सोचें सभी बस निराकरण।


 


मानवीय संवेदना नैतिक पतन,


शिक्षा मिले नारी महत्त्व बालपन।


शील गुण .सद्कर्म पथ इन्सानीयत,


माँ बहन बेटी बहू हो अहमीयत।


 


कठोरतम दण्डविधान दुष्कर्म हो,


देख औरों पापी जन रूहें कँपे।


सम्बल योजना हो नारी सुरक्षा,


हो निडर तनया शिक्षिता मन आस्था।


 


 डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


डॉ रामबली मिश्र

मैं परम भारतीय संस्कृति हूँ


 


मैं विदेश चली गयी


विदेशी चकाचौंध


में बह गयी


कुछ समय के लिये


खुद को भूल गयीं


विदेशी लबादा


विदेशी संस्कृति


विदेशी आबो-हवा


विदेशी मिट्टी


विदेशी आकाश


विदेशी तारा मण्डल


विदेशी जूते-सैंडल


लेकिन कब तक?


मन भर तक


मनभर तक


मन में उबाल


भारतीय संस्कृति का ख्याल


देश प्रेम


दासता का घोर विरोध


प्रतिशोध


आजादी की जंग


सत्य का उमंग


अनाचार का अंत


त्वरित वसंत


आगमन की अपरिहार्यता


तात्कालिक आवश्यकता


भारतीयता का जागरण


स्वदेश आगमन


खुद लड़ी


खूब लड़ी


सत्य की तलवार ले कर


सत्य रथ पर चढ़ कर


खूब ललकारा


छक्का छुड़ाया


आततायियों को भगाया


आजादी दिलायी


सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढायी


भारतीय संस्कृति हो न 


बापू हो न।


नमस्ते बापू


नमस्ते भरत


नमस्ते भारत


वंदे मातरम


 


डॉ रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कंचन कृतिका

प्रश्न एक सबसे आज पूछ रहे हैं।


राग क्यूं अनीतियों के गूंज रहे हैं?


वेदनाएं खुद में सिमट रही हैं।


भावनाएं घुट कर क्यूं मर रही हैं?


 


वहशी दरिंदे खुला घूमते हैं क्यूं?


कृत्यों पर अपनें हंस झूमते हैं क्यूं?


मनमानियों को नहीं साध रहे हैं।


नीचता की शीर्षता क्यूं लांघ रहे हैं?


 


घर से निकलते सहम रही हैं।


बेटियां नित आग में क्यूं जल रही हैं?


चीखें चीख-चीख कर मौन हो रही।


धीरता की सेविका क्यूं धैर्य खो रही?


 


मानवता सो रही है, सो रहा ईमान है।


न्याय जो दिला न सके कैसा संविधान है?


ऐसे संविधान को तो फाड़ दीजिए।


मौन खलता है अब जवाब दीजिए।।


 


कंचन कृतिका


गोण्डा-अवध


आशुकवि नीरज अवस्थी

इधर असामाजिक दुर्दांत घटनाओं पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है हम दुखी नही आहत नही बल्कि गुस्से में है और ऐसी घटनाओं का दुष्प्रचार कतई नही कर कर सकते है तो यह करे जो हम कह रहे है:


 


गद्दी पर बैठे गद्दारों कुछ तो अच्छा काम करो।


कर न सको तो छोड़ो गद्दी व्यर्थ न नींद हराम करो।


दानवीय कुकृत्यों पर अब लिखना पढ़ना बन्द करो।


दम है तो इन प्रेतों के वध करने का परबन्ध करो।


चौराहे पर मुंड काट दो सरे आम बाजारों में।


आक्रोशित जनताको सौंपो पैशाचिक हत्यारों को।


न्याय व्यवस्था को बदलो मत संविधान बदनाम करो।


कर न सको तो छोड़ो गद्दी व्यर्थ न नींद हराम करो।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


मदन मोहन शर्मा सजल

बदलते जा रहे हैं।


~~~~~~~~~~~~~~~~


खाकी वर्दी में दाग भरते जा रहे हैं


गुंडों मवालियों के सर उठते जा रहे हैं,


 


संविधान गूंगा सरकारें लाचार हुई


घुटनों के' बल कानून सरकते जा रहे हैं,


 


संसद कामचोरों का अखाड़ा बन बैठी


अन्यायी आँधी घर उजड़ते जा रहे हैं,


 


बेटियों की आबरू कैसे बचें देश में


घात नशा कुसंस्कार बढ़ते जा रहे हैं,


 


राखियों के धागे हो गए कच्चे यहां


बेटियों की मौत दिल बिलखते जा रहे हैं,


 


राजनेता ने तय किये रकम आँसुओं की


बलात्कारी अट्टहास करते जा रहे है,


 


सरेआम गोली से उड़ा दें कानून हो


जनता दे सजा तेवर बदलते जा रहे हैं।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा 'सजल'


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

किसान


चोर-लुटेरों की चंगुल से,


अब तो मुक्त किसान हुआ।


हो स्वतंत्र अब अन्न बिकेगा-


उसका अब कल्यान हुआ।।


 


अपनी फसल उगा किसान अब,


बिना बिचौलिया साथ लिए।


करेगा विक्रय उपज का अपनी,


बिना दलाली दाम दिए।


मिलेगा उसको उचित मूल्य -


उसका अब सम्मान हुआ।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम,


सभी प्रांतों में जाकर।


उन्मुक्त भाव से बेच सके,


वह उचित दाम अब पाकर।


देकर उसके श्रम की कीमत-


अद्भुत श्रम-गुणगान हुआ।।


       अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


नहीं सियासत शोभित लगती,


इसे बनाकर मुद्दा अब।


तोड़-फोड़-हिंसा अपनाना,


कितना लगता भद्दा अब।


करके हित कृषकों का मित्रों-


भारत देश महान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


कृषक अन्न-दाता हैं सबके,


इनका सुख है सबका सुख।


इनको दुख यदि मिला कभी तो,


समझो वह है सबका दुख।


देकर इनको सुख-सुविधा ही-


जन-जन का ही मान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


 


'एक देश,बाज़ार एक' की,


हुई व्यवस्था उत्तम अब।


निज इच्छा अनुसार कृषक जा,


बेच सकेंगे फसलें सब।


देख व्यवस्था ऐसी अद्भुत-


विस्मित सकल जहान हुआ।।


      अब तो मुक्त किसान हुआ।।


            © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                99194463 72


संजय जैन

कल आज और कल


 


एक वो जमाना था 


जिसमें आदर सत्कार था।


एक ये जमाना है 


जिसमें कुछ नहीं बचा।


दोनों जमाने में यारो


अन्तर बहुत है।


इसलिए तो घरों में 


अब संस्कार नहीं बचे।।


 


एक बाप छ: बच्चों का


पालन पोशण कर देते थे।


और छ: बच्चे मिलकर


मां बाप को नहीं रख पाते।


और उन्हें बृध्दाश्रम में छोड़कर 


अपना फर्ज निभाते है।


और समाज में अपनी 


नाक ऊंची करते है।।


 


यही काम माँ बाप ने 


बच्चों के साथ किया होता।


और यश करने के लिए तुमसे मुंह मोड़ लेते।


और छोड़कर पालनघर में


अपना फर्ज निभाते।


तो क्या आज तुम 


इस मुकाम पर पहुंच पाते।।


 


कितनी सोच का अंतर


तब अब में हो गया।


रिश्तो में भी मिठास 


अब वो कहा रही।


ये सब कुछ आज की चकाचौंध का असर है।


तभी तो बच्चे मांबाप को अपने से दूर रख रहे है।।


 


हमें अब दिखाने लगा है


दायित्वों कर्तव्यों का अंतर।


इसलिए तो खुदके बच्चो को भी आया पाल रही है।


तो फिर कैसे दिलमें रहेगा


मांबाप के लिए अपनापन।


इसलिए बड़ेबूढे कह गये है


जो बोया है वही तो काटोगे।


और खुदको भी आश्रम में 


अपने मांबाप की तरह पाओगें।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


विनय साग़र जायसवाल

उसी से क्या करें फ़रियाद कर के 


गया है जो हमें बर्बाद कर के


 


करो रोज़ाना हमसे गुफ्तगू तुम


अगर रखना हो दिल को शाद कर के


 


चले आओ मेरे दिल के महल में


ख़ुशी होगी तुम्हें आबाद कर के


 


भरोसा कर के तो देखो हमारा


रखेंगे हम तुम्हें नौशाद कर के


 


जुदाई सह न पायेंगे तुम्हारी


जो चाहो देख लो आज़ाद कर के 


 


कहाँ तक उसका हम रस्ता निहारें 


निकल जाये न दम यूँ याद करके 


 


कफ़स की तीलियों को तोड़ देंगे


अगर रख्खा हमें नाशाद कर के


 


मदद लेना कभी उससे न *साग़र*


जो गाये हर जगह इमदाद कर के


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


फ़रियाद-विनती ,शिकायत 


गुफ्तगू-बातचीत ,वार्तालाप


शाद-खुश


नौशाद-ख़ुश


कफ़स -जेलख़ाना


तीलियों-सलाखों 


नाशाद ,दुखी ,नाराज़


इमदाद-सहायता ,मदद


राजेंद्र रायपुरी

 सिपाही सरहद का


 


शरहद पर तैनात सिपाही, 


                रक्षक बनकर खड़ा हुआ है।


 


हिला नहीं सकता कोई भी, 


                 वह पर्वत सा अड़ा हुआ है।


 


धूप-ताप से डरे नहीं वह,


                  शोलों में तप बड़ा हुआ है।


 


उसे छाॅ॑व की चाह नहीं है,


               धूप -ताप यदि कड़ा हुआ है। 


 


भूख न विचलित करती उसको,


                  भूखे- प्यासे खड़ा हुआ है।


 


कर्मठ है वह तभी देख लो,


                  वर्दी तमग़ा जड़ा हुआ है।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

आधी दुनिया नारी की


सारी सृष्टि नारी से।। हाइकू


1


नारी से नेह


नारी रचनाकार


नारी है स्नेह


2


नारी है रोली


पूजा चंदन टीका


दृढ़ ओ भोली


3


राज दुलारी


बने जीवन क्यारी


कभी बेचारी


4


है प्रभु स्मृति


नारी है पूजनीय


ईश्वर मूर्ति


5


है रौद्र रूपा


कभी शीतल जल


नारी स्वरूपा


6


कभी अबला


नारी रूप अनेक


कभी सबला


7


दी जाती बलि


नारी त्याग मूरत


जाती है छली


8


है माँ शारदे


नारी बने संबल


दुख हार दे


9


नर ओ नारी


नर पे सदा भारी


ये घरवारी


10


अंधा कानून


नारी न मिले न्याय


भोली मासूम


11


दो कुल मान


परिवार की शान


नारी महान


12


दुर्गा की धार


चंडी का अवतार


लुटे जो प्यार


13


श्रद्धा व भक्ति


प्रभु में रखे आस्था


नारी की शक्ति


14


वो सारा प्यार


संतान पर वार


वो ही संसार


15


सृष्टि जननी


पूरी दुनिया है जो


उससे जन्मी


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कोशिश करो कि जिन्दगी हमारी अपनी सहेली बन जाये।।


 


मुस्करा कर ही जीना तुम


इस जिंदगानी में।


माना कि कुछ रास्ते खराब भी


हैं इस रवानी में।।


जान लो कि जिन्दगी फिदा है


इस मुस्कराहट पर।


चाहे कितने गम हों जीत कर ही


आओगे इस कहानी में।।


 


यह जीवन बस इम्तिहानों का ही


दूसरा नाम है ।


एक रास्ता बंद हो तो भी जान लो


दूसरे तमाम हैं ।।


तुम्हारा भाग्य तुम्हारे कर्म की ही


मुट्ठी में होता है कैद ।


यह किस्मत की लकीरें तेरे परिश्रम


का ही ईनाम हैं ।।


 


गमों में भी मुस्कारनें की यह आदत


बहुत अलबेली है ।


तन्हाई में भी जिन्दगी कभी रहती


नहीं अकेली है ।।


तनाव अवसाद यूँ ही असर नहीं


करते आदमी पर ।


कभी यह जिन्दगी हमारी बनती


नहीं पहेली है ।।


 


कोशिश करें कि जिन्दगी हमारी


अपनी चेली बन जाये।


वक़्त मुश्किलों का भी हमारी


सहेली बन जाये।।


बस खुश रहें हम हर वक़्त और


हर दर्दो गम में ।


हो जिसका हर जवाबो हल बस


जिंदगी वो पहेली बन जाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


कालिका प्रसाद सेमवाल

सरस्वती वन्दना


◆◆◆◆◆◆◆◆◆


माँ सरस्वती मेरी तुमसे यही कामना,


ध्यान में डूब कर मैं तुम्हारे गीत गाता रहूँ,


कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,


माँ मैं गीत गंगा में गोते लगाता रहूँ।


 


साधना की डगर हो सुगम माँ यहां,


तन विमल मन मगन गुनगुनाता रहूँ।


 


शब्द के कुछ सुमन हैं समर्पित तुम्हें,


बस चरण में इन्हें अब शरण चाहिए,


हर हृदय चले कुछ सुवासित यहां,


छन्द में ताल लय नव सृजन चाहिए।


 


कल्पना के क्षितिज में नये बिम्ब हों,


मन मस्तिष्क में माँ तुम्हें सजाता रहूँ।


 


माँ सरस्वती भजन में लगन चाहिए,


वाणी में मुझे माँ मिठास ही चाहिए,


मिट सके तम के साये प्रखर ज्योति दो,


हंस वाहिनी शुभे शत नमन चाहिए।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नीति-वचन-17


देहिं जलद जग अमरित पानी।


सुख-सीतलता बुधिजन-बानी।।


   संत-संतई कबहुँ न जाए।


   कीच भूइँ जस कमल खिलाए।।


नीम-स्वाद यद्यपि प्रतिकूला।


पर प्रभाव स्वास्थ्य अनुकूला।।


    गर्दभि गर्भहिं अस्व असंभव।


    खल-कर सुकरम होय न संभव।।


नहिं भरोस कबहूँ बड़बोला।


खल-मुस्कान कपट मन भोला।।


    दूध-दही-मक्खन-घृत-तेला।


    जदपि स्वाद इन्हकर अलबेला।।


पर जब होय भोग अधिकाई।


हो प्रभाव जस कीट मिठाई।।


   आसन-असन-बसन अरु बासन।


   चाहैं सभ अनुकूल प्रसासन।।


बट तरु तरि जदि पौध लगावा।


करहु जतन पर फर नहिं पावा।।


दोहा-रबि-ससि-गरहन होय तब,महि जब आवै बीच।


         बीच-बिचौली जे करै,फँसै जाइ ऊ कीच ।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


भुवन बिष्ट

सुप्रभात वंदन


जयति मातु तुम हो वरदानी। 


सब जग पूजे मुनि जन ज्ञानी।। 


नित्य करूँ वंदन मैं माता।


तुम सब जन की भाग्य विधाता।। 


             प्रेम भाव के दीप जलायें। 


             ज्ञान सदा जग में फैलायें।। 


             बने जगत में भारत प्यारा। 


             जग में सुंदर देश हमारा।। 


हर मन जब भी पावन होवे। 


सदा जगत मनभावन होवे।। 


राग द्वेष जब सब मिट जाये। 


सुख तब मानव मन में पाये ।।


    ......भुवन बिष्ट 


                       रानीखेत, उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

धरती मइया की वंदना


हे धरती मइया


परत हव, तोर पइया


महू ह तोर शरण में हो


हर लेबे, तै मोर पीरा


का लइका,का स्यान दाई


धरथे तोरेच ध्यान


चंदा अउ सुरुज लेे ज्यादा


हावे तोर अंजोर ह


ज्ञान गंगा के देवैया, मइया


पहली शीश,नवावव तोला


मोरो तै ह, विनती सुन ले


नइ कर सकव बखान मैहर


हे धरती मइया


परत हव, तोर पईया


महू ह तोर शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


सबो परानी के, माता कहाथस


तोरेच महिमा नियारी हे


तैंतीस कोटि देवता होथे


पर पहली पूजा, तोरेच होथे


हमू ल ते ह, तार लेे मइया


जइसन सब ल तारे हस


हे धरती मइया


परत हव तोर पईया


महू ह तोर, शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


कोनो ह तोला फूल चढ़ाथे


कोनो ह श्रद्धा भकति


ऊंचा तोर आसन मइया


परबत अउ पहाड़ी भी हे


चौसठ योगिनी मंगल गावे


नाचे डमरू वाला


चार लोक, चउदा भुवन में


फइलेे हे, तोर उजाला


हे धरती मइया


परत हव तोर पइया


महू ह तोर, शरण में हो


हर लेबे तै, मोर पीरा


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र

अब मत रूठो


 


अब मत रूठो।


मुस्कानों से स्वागत करना।।


 


अब मत रूठो।


हँसते ही अब मुझसे मिलना।।


 


अब मत रूठो।


बाँह पकड़ कर चलते रहना।।


 


अब मत रूठो।


कदम-कदम पर बातें करना।।


 


अब मत रूठो।


मीठी-मीठी कहते रहना।।


 


अब मत रूठो।


दिल से दिल को जोड़े रहना।।


 


अब मत रूठो।


प्रीति रसामृत पीते रहना।।


 


अब मत रूठो।


विनिमय नियम बनाये रखना।।


 


अब मत रूठो।


सजना, सदा सजाते रहना।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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