*वात्सल्य ममता की देवी,*
*ईश्वर का अमूल्य वरदान।*
*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*
*भूल गये हम नारी सम्मान*।।
माँ का रुप धरा इस जग मे,
जन्म दिया ले पीर अपार।
रुप बहन का धरकर इसने,
भाई का ऋण दिया उतार।
पत्नी बन घर स्वर्ग बनाती,
जननी का न करो अपमान।
*वात्सल्य ममता की देवी,*
*ईश्वर का अमूल्य वरदान।*
प्रीत प्रेम सिखला देती है,
श्याम प्रिया राधा बनकर।
बेटी का धर रुप निराला,
भाग्य जगाती बन दिनकर।
गृह की सोन चिरैया है ये,
चहक रही वन बाग विहान।
*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*
*भूल गये हम नारी सम्मान*।।
पुरुषों के संग कदम मिलाती,
चहुँ ओर बड़े करतब दिखलाती।
खेल,रेल,सेना में जाकर,
देश काल इतिहास बनाती।।
साहस की अद्भूत देवी को,
अपमानित करता इन्सान।
*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*
*भूल गये हम नारी सम्मान*।।
ब्रह्मा ,विष्णु, शंकर निशदिन,
माँ काली का ध्यान करे।
जाने क्यू यह कुँठित मानव,
पल प्रतिपल अपमान करे।
देश की मासूम कलियों को,
नर पिशाच नित लेते जान।
*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*
*भूल गये हम नारी सम्मान*।।
मानवता है हमे सिखाती,
दिव्य प्रेम करुणा बरसाती,
काली,दुर्गा,मीरा बनकर,
साहस ,त्याग का बोध कराती।
दुख में सुख में रहे सहजता,
नारी को सौ-सौ बार प्रणाम।
*नारी श्रद्धा-पावन प्रतिमा,*
*भूल गये हम नारी सम्मान*।।
आशा त्रिपाठी