तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-26
राम-लखन-सिय बैठे जहवाँ।
सकल देव-मुनि आए तहवाँ।।
करि स्तुति ते जहँ-तहँ गयऊ।
रुचिकर कथा राम तब कहऊ।।
सुनि-सुनि कथा लखन-हिय हर्षहि।
लखि प्रभु मुदित सुमन नभ बरसहि।।
बिरह-बिकल लखि नारद सोचहिं।
फल मम साप राम अस भोगहिं।।
धारि हस्त निज आपनु बीना।
प्रभु पहँ गे मुनि ग्यान-प्रबीना।
जाइ निकट सिर अवनत कइके।
गावहिं चरित प्रभुहिं कहि-कहि के।।
सादर राम मुनिहिं उर लाए।
आसन दइ निज निकट बिठाए।।
देखि राम अतिसय मन-मुदिता।
हो प्रसन्न नारद तब कथिता।।
देहु नाथ बस इक बर मोंहीं।
जदपि सकल गति जानउ तोहीं।।
मुनि तुम्ह सभ बिधि जानउ मोंहीं।
कबहुँ न करुँ मैं मोंहीं-तोहीं ।।
भगत-दुराव न सपनहु करऊँ।
अस सुभाव मम तुम्ह भल जनऊँ।।
कछु अदेय नहिं यहि जग माहीं।
देइ सकहुँ नहिं मैं तुम्ह ताहीं।।
हर्षित मन तब नारद कहहीं।
प्रभु क नाम बहु अस श्रुति बदहीं।।
राम-नाम सबतें बड़ होवै।
भजि क जाहि जग निर्भय सोवै।।
राम-नाम अह ब्रह्म-प्रकासा।
औरउ नामहिं नखत अकासा।।
अइसहिं प्रभु सभ जन उर बसहू।
एवमस्तु रामहिं तब कहहू ।।
दोहा-जानि प्रभुहिं अति मुदित मन,नारद कहे सिहाहि।
कारन कवन बता प्रभू,भयो न मोर बियाह ।।
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आठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6
कबहुँ त छेद करहि मटका महँ।
छाछ पियहि भुइँ परतइ जहँ-तहँ।।
लला तोर बड़ अद्भुत जसुमत।
गृह मा कवन रहत कहँ जानत।।
केतनउ रहइ जगत अँधियारा।
लखतै किसुन होय उजियारा।।
तापर भूषन सजा कन्हाई।
मणि-प्रकास सभ परे लखाई।।
तुरतै पावै मटका-मटकी।
माखन खाइ क भागै छटकी।।
लखतै हम सभ रत गृह-काजा।
तुरतै बिनु कछु किए अकाजा।।
लइ सभ सखा गृहहिं मा आई।
खाइ क माखन चलै पराई ।।
दोहा-पकरि जाय चोरी करत,तुरतै बनै अबोध।
भोला-भाला लखि परइ, धनि रे साधु सुबोध।।
सुनतै जसुमति हँसि परीं,लीला-चरित-बखान।
डाँटि न पावैं केहु बिधी,कान्हा गुन कै खान।।
एक बेरि निज गृहहिं मा,माखन लिए चुराय।
मनि-खंभहिं निज बिंब लखि,कहे लेउ तुम्ह खाय।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372