राजेंद्र रायपुरी।।

 ** *धोखा*** 


 


धोखा है खाना नहीं, फिर भी खाते लोग।


वे अक्सर जो बुद्धि का, करें नहीं उपयोग।


करें नहीं उपयोग, कहें हम ख़र्चे कैसे।


हो जाने पर खर्च, न मिलती पैसे जैसे।


कौन उन्हें समझाय, नहीं ये लिट्टी-चोखा।


करें जो बुद्धि खर्च, नहीं वो खाए धोखा।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

बेमौसम बारिश


 


कोनो मेर ये, फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


काकरों तो,घर द्वार ल बोरे


काकरॊ तो,रास्ता ल रोके


जब कड़के,बिजली रानी


मउत बनके, बरसत हे पानी


सब बर हे, हानि च हानि


रात दिन में ह,बोहे रहिथौ


ये दुःख के,ओ छानी परवा ल


घर में तो खाये बर, दाना ह नइहे


कहां ले आही, पइसा ह चरिहा चरिहा


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे, हानि च हानि


घर में पानी,खेत में पानी


तन में पानी,मन में पानी


तरबतर पानी,सरवर पानी


यत्र तत्र सर्वत्र,पानी


फसल ह बरबाद, होवत हे


कइसे चलही,हमर जिनगानी


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


खोंधरा में, चिरई चिरगुन कलेचुप


कापय बेंदरा, नरियावय हुप


अपन पाव पसारे,आदमी


रतिहा म,चैन के नींद सो ही कब


कोनो मेर ये,फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


नूतन लाल साहू


डॉ0हरि नाथ मिश्र

* तृतीय चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


पुनि मुनि नारद मुनि सन कहहीं।


नाथ बताउ संत कस जगहीं।।


    काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।


    मोह- बिहीन संत कहु ताको।।


पाप रहित-निरछल-कबि-जोगी।


सत्यनिष्ठ-अनिच्छ-मितभोगी।।।


     बाहर-भीतर एक समाना।


     त्यागी-बोधी जे जग जाना।।


धरम-प्रबीन,धीर-मद हीना।


पद सरोज पूजहि प्रति दीना।।


     सकुचहि बहु निज जानि प्रसंसा।


    थकहि न करि पर गुन अनुसंसा।।


नित देवे पर जन सम्माना।


रुष्ट न होय पाइ अपमाना।।


      ब्रत-तप-जप अरु गुरु-पद-प्रेमी।


       प्रमुदित मन अरु संजम-नेमी।।


छिमा-दया अरु प्रीति-मिताई।


मानै सकल जगत जनु भाई।।


      ग्यानी-बिनई, गुनी-बिबेकी।


       मान-दंभ-मद बिनु बड़ नेकी।।


ऋषि-मुनि जे सज्जन अरु नामी।


भूलि न होय कुमारग-गामी ।।


      मरम बुझै जे बेद-पुराना।


        मम लीला जे करै बखाना।।


अस नर होय जगत महँ संता।


सुचि मन पूजै नित भगवंता।।


दोहा-अस बखान प्रभु-मुख सुनत,चरन छुए मुनि धाहिं।


        प्रभु-पद-पंकज-रज लिए,ब्रह्मपुरी पुनि जाहिं।।


        कहि न सकहिं अस चरित जग,सारद-सेष-महेस।


        दीनबंधु प्रभु राम जस,निज मुख कहे बिसेष ।।


        ते नर पावहिं दृढ़ भगति,करहिं राम जे प्रेम।


        पावन मन नित प्रभु भजहिं,बिनु बिराग जप-नेम।।


        राम-भजन सतसंग तें, मनुज होय उद्धार।


        सुंदर तन जानउ ठगिनि, होय न बेड़ा पार।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


डा.नीलम

*संगीत*


 


शब्द मेरे बहा कर


बरसती रही बदलियाँ


बना के अक्षरों को


नाव कागज की


बहती रही नदियां


 


गीतों को बिन साज


गुनगुनाने लगी पवनियां


गजलों में प्रखर हो


दमकने लगी दामिनियां


 


धरा गगन के बीच


मुक्तक मोती से सजाने 


लगी बूँदनियां


नाद डमरू से बजाने 


लगी बिजलियाँ


 


क्षणिक कूक-सी क्षणिकाएं


रह-रह कूक रही कोयलिया


हाइकु-सी हर सूं महक रही


बगियन की कलियाँ


 


छमछम छंद की छनक 


छनकार रहीं बूँद बनी पैजनियां


अलंकार -सी धड़क रही


प्रकृति की रागिनियां।


 


        डा.नीलम


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ दीपा संजय दीप


डॉ दीपा गुप्ता(डॉ दीपा संजय दीप)


जन्मतिथि-22-7-66बरेली उ प्र


पिता का नाम-श्री राजकुमार गुप्ता


माता का नाम-श्रीमती शकुंतला गुप्ता


पति का नाम-श्री संजय कुमार गुप्ता


पता-57,ब्रजलोक कालोनी,प्रेम नगर,बरेली,उ.प्र.मो०न०-8273974532,8630236328


E mail-sanjaydeepa2822@


gmail.com


शिक्षा-स्नातकोत्तर,इंटीरियर डिजाइनर, कम्प्यूटर कोर्स एवं रेकी लेवल2सम्मान


परिचय-किशोरावस्था से ही लेखन में रुझान,भाषण एवं वाद विवाद प्र०यो० एवं कवि सम्मेलनों में सहभागिता,


आकाशवाणी पर काव्य पाठ अमर उजाला के ०काव्या कालम में ०रेल हादसा एवं ०जय गङ्गे  सहित लगभग350 कविताओं का प्रकाशन।अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ०प्रयास ०तितली ०वर्तमान अंकुर ०जीवन प्रकाशन०


वैदिक राष्ट्र ०सवेरा मासिक पत्रिका ०गजल गुंजन ०नारी का अस्तित्व० लघुकथा संगम ०विविध संवाद०अमर उजाला आदि विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन ।


*ट्रू मीडिया न्यूज पोर्टल *उत्कर्ष ज्योति पोर्टल*युवा प्रवर्तक न्यूज पोर्टल*बिहार टाइम्स न्यूज पोर्टल ,


हिंदी भाषा डॉट कॉम उत्कर्ष ज्योति न्यूज पोर्टल आदि विभिन्न न्यूज पोर्टल पर अनेकानेक रचनाएं प्रकाशित।


यू ट्यूब पर "जय गङ्गे" "निर्जन पथ" "शिवाराधना" "महर्षि दयानंद की डॉक्यूमेंट्री"शेरों पे सवार","धोनी"सहित लगभग अनेक वीडियो का प्रसारण।


०विश्व रचना मंच-1-हिंदी सेवा सम्मान 


०मुक्तकलोक द्वारा 1-शब्द श्री सम्मान,2-मु०लो०भूषण सम्मान,मुक्तक लोक गीत रत्न सम्मान,वर्तमान अंकुर द्वारा कथा गौरव सम्मान, वजम ए हिन्द सम्मान


०सा०सं०संस्थान द्वारा-1-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,2-श्रेष्ठ टिपण्णीकार सम्मान ,3-भक्ति गौरव सम्मान,4-हिंद वीरांगना सम्मान,हनुमान जयंती पर -भक्तराज सम्मान,5-अन्नपूर्णा सम्मान,


6-सा० अ० स०,7-दोहा साधक स० ,8-गी०साधक स०,9-साहित्य कदंब सम्मान,10-साहित्य कुंदन सम्मान,11-शिवामृत सम्मान12-नमामि देवी अंबिके सम्मान,13-विद्या0 वाचस्पति(मानद उपाधि)


०नारी सु० मंच द्वारा -1श्रे०रचनाकार


०सम्मान2-श्रे० टि०सम्मान 


०गहमर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर -साहित्य सरोज शिखर सम्मान 


०काव्य रंगोली संस्थान द्वारा- साहित्य


 भूषण सम्मान 


 ०शहीद तिलका मांझी की स्मृति में दिया जाने वाला - तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान आदि।


 


कविताओं के साथ-साथ गीत ,गज़ल, दोहे, मुक्तक्त,गीतिका, छंद,हाइकु,वर्ण पिरामिड,तांका विद्या, सायली छंद,लघुकथा आदि में भी नियमित लेखन।वैदिक राष्ट्र सवेरा मासिक पत्रिका गजल संग्रह नारी का अस्तित्व


तीन एकल संग्रह बालदीप-भाग-1,भाग,भाग-2भाग-3  


साझा संग्रह "रिश्तों के अंकुर" 


"पितृ विशेषांक" "काव्य पुंज" "स्त्री एक सोच" "उड़ान शब्दों की" "लघुकथा संगम""सम्मान समारोह स्मारिका" "उड़ान परिंदो की" "गीत संकलन" एवं "नई उड़ान नया आसमान" "नदी चैतन्य हिन्द धन्य" "पुलवामा शहीद सम्मान भावंजिली" "सुनो तुम मुझसे वादा करो" "हिंदी हैं हम"।


इसके अतिरिक्त शीघ्र ही दो खंड काव्य शतक निकालने की योजना है।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश 


 


 


गीत


 


गीत प्रीत के गाता चल, सबको राह दिखाता चल।


सब पंछी हैं एक डाल के ,सबका मन बहलाता चल।


 


गहन अंधेरा कितना भी हो,सूर्योदय निश्चित होगा,


आंधी एवं तूफानों से ,स्वयं को सदा बचाता चल।


 


छोड़ हमें जो चले गए ,मत अब उनका शोक मना,


नई उम्मीदों की चादर से,अपने स्वप्न सजाता चल।


 


बीती बातें बीती रातें,अब उनसे क्या है हासिल,


मरू भूमि में पुष्प प्रेम के, निसि दिन नवल खिलाता चल।


 


प्रतिस्पर्धा न किसी से तेरी, सारा जग तेरा अपना,


मीठी वाणी से तू अपनी सब पर प्यार लुटाता चल।


 


करतल में प्रकाश लिए ,ध्वनि मंत्र की साथ लिए,


पावन मन संग रवि रश्मि में भोर सांझ नहलाता चल।


 


विजय मिलेगी निश्चित एक दिन मत घबराना हालातों से,


छल बल त्याग नेक राह पर स्वयं को मनुज लगाता चल।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली ,उत्तर प्रदेश


 


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वंदेमातरम


 


वंदेमातरम.... पुकारती माँ भारती


विगुल अखण्ड हिंद का  बजा रही माँ भारती


 


बढ़े चलो बढ़े चलो रुकें नहीं बढ़े कदम


रणबाँकुरे रण में चले चरण माँ पखारती


 


वंदेमातरम ..... पुकारती माँ भारती


 


दिशा दिगंत गूँज रहे गगन को हैं चूम रहे


त्रिलोकी का सिंहासन हिला शत्रु को  ललकारती


 


वंदेमातरम..... पुकारती माँ भारती


 


सूर्य सा प्रचण्ड तेज धैर्यता वसुंधरा सम


भाल उच्च तिलक दिव्य श्रद्धा सुमन  वारती


 


वंदेमातरम ....... पुकारती माँ भारती


 


बन काल आज टूट पड़ो दुंदभि बजा रही


सँहार कर माँ शत्रु का प्रलय की शाल डालती


 


वंदेमातरम....... पुकारती माँ भारती


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली उत्तर प्रदेश 


 


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शहादत


 


तिरंगे में लिपटा जब पिता का शव आया 


बेटे ने माँ को शून्य में निहारता हुआ पाया


 


नैनों से बहते अश्रु धो रहे थे उसके मुख को


कौन था ऐसा जो बांट सकता था उसके दुख को


 


कच्ची मिट्टी सा बालक पल में बड़ा हो गया था


नौ साल की उम्र में ही पच्चीस  सा हो गया था


 


अंदर जाकर माँ के सीने से लिपट कर ये बोला


नहीं हूँ मैं अब छोटा न समझ माँ मुझे भोला


 


संभाल लूँगा परिवार मैं शहीद पिता का बेटा हूँ


रगों में उनका ही लहु है उनकी गोदी में लेटा हूँ


 


पूरे देश  की रक्षा का भार लेने में जब वे थे


समर्थ


तो परिवार की रक्षा का भार उठाने में कैसे मैं असमर्थ??


 


माना कि कंधे अभी कमजोर हैं पर  इरादे हैं मजबूत


नहीं हो निराश माँ क्या देना बाकी है अब भी कोई सबूत??


 


उम्मीद पर दुनिया कायम है और मैं ही हूँ तेरी उम्मीद


अब से मैं ही तेरी होली,दीवाली और मैं ही हूँ तेरी ईद


 


देश के लिए उनकी शहादत को बेकार नहीं जाने दो माँ


हंस कर दो विदाई उनको खुद को आप संभालो माँ


 


तिरंगे की शान को जिंदा रखना है आज हम सबको


पत्थर सीने पर रखकर यह कसम उठाना हम सबको


 


यही हमारी उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी


भारत माता के लिए क़बूल उनकी शहादत होगी


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश


 


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वीर 


 


बढ़ते जाते   बढ़ते जाते,


  कठिन राह पर चलते हैं।


    वीर कभी हिम्मत ना हारें,


        आगे-आगे    बढ़ते हैं।।


 


भाग्य अपना खुद ये लिखते


    विश्वास  कर्म पर ही  करते


        बैर ना किसी  से  इनका


          सत्य  के  लिए  लड़ते हैं


 


आंधी पानी बिजली ओला,


   रोक सके  ना राह कभी।


     तूफानों  में  पलने  वाले,


       तूफानों   में   बढ़ते   हैं।।


 


शीश नवाती दुनिया इनको,


     पूजित   होते    देवों   से।


     आत्मा की शक्ति के बल पर,


        कुंदन  वसुधा  को  करते हैं।।


 


ज्ञान कि ज्योति जले ह्रदय में,


   तेज सकल जग में करते।


     फूल जान पथ के कंटक को,


        मंज़िल   अपनी   चढ़ते   हैं।।


 


जीवन बना अबूझ पहेली, 


  साहस  ना  फिर भी छोड़ें।


     सीप  ढूंढने  सागर  में  ये,


        भीतर  उतरा   करते   हैं।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश


 


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गजल


 


 


गुमां किस बात का मानव नहीं कुछ भी तो तेरा है।


सभी कुछ छोड़ कर जाना कि चिड़िया रैन बसेरा है।


 


सजाए तन पर कपड़े हैं नहीं तेरे रहेंगे वो,


यहीं छोड़ेगा काया भी कि यह मिट्टी का ढेरा है।


 


अाई दौलत भूल बैठा शिष्टता और सभ्यता भी,


यह चलती फिरती माया है नहीं करती बसेरा है।


 


किया संग्रह जो दौलत का यहीं रहनी सभी तेरी,


किया जो कर्म जीवन में वही तेरा घनेरा है।


 


चलेगा ना बहाना भी तेरा कोई अरे मानव,


करे फिर क्यों छलावा मन कि पापों ने ही घेरा है।


 


भ्रमित माया की नगरी में विचरता फिर रहा है मन,


छटेगी धुंध भी इक दिन कि होगा नव सबेरा है।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली ,उत्तर प्रदेश


 


 


सुषमा मोहन पांडेय

नमन मंच


राष्ट्रीय एकता पर मेरा गीत


 


देश हो अखण्ड मेरा एकता चाहिए


जाति चाहे भिन्न हो, न भिन्नता चाहिए


बोलियां अनेक हैं पर एक बोली प्रेम की


रंक हो या राजा समान भाव चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


गांव गांव शहर शहर देश का विकास हो


हम भी बढ़े तुम भी बढोऔर सबका साथ हो


कोई न भूखा रहे धरा पर, ऐसा देश चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


देश की अखंडता न तार तार करना


साम्प्रदायिक विचारों का बहिष्कार करना


मिलजुल कर रहना है,प्यार सभी में भरना


राष्ट्रीय एकता की पहचान होनी चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


हम सब देश के बच्चे हैं, एक ही माँ के जन्मे है


फिर मजहब का भेद ये कैसा,हमें दूर ये करने हैं


यही धारणा सब बच्चों के अंदर होनी चाहिए।


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


डॉ. रामबली मिश्र

सारांश


 


जीवन का सारांश यही है,


चलते रहना प्रेम पंथ पर।


 


अत्युत्तम वाक्यांश यही है,


रखना श्रद्धा सदा संत पर।


 


सर्वोत्तम पद्यांश यही है,


नाज करो गीता-मानस पर ।


 


परम अमर दिव्यांश यही है,


अटल प्रेम उर में धारण कर।


 


अति मोहक ज्ञानांश यही है,


आत्म ज्ञान की सदा राह धर।


 


सर्व सुलभ सत्यांश यही है,


जीना सीखो सत्य बोल कर।


 


मनमोहक वेदांश यही है।


निराकार ब्रह्न दर्शन कर।


*********************


मैं फालतू हूँ


 


मैं भी कितना फालतू हूँ,


अनायास अपेक्षा में जीता हूँ


खुद को तो समझ नहीं पाता


संसार को समझने की इच्छा करता हूँ।


 


मैं निर्लज्ज हूँ


बेहया, बेशर्म हूँ


समय गवा कर


कुछ नहीं पाता हूँ।


 


संसार को भूल जाना भी तो


मुमकिन नहीं


पर भुला देना ही ठीक है


इंतजार का क्या मतलब ?


खुद को गले लगाये रहना ही ठीक है।


 


आत्म में ही जीना सीखें


लोक में आत्म को ही देखें


आत्म ब्राह्मण है


इसमें समा जाना ही सीखें।


 


निमंत्रण आत्म को ही दें


आत्म का ही इंतजार करें


आत्म धोखेबाज नहीं है


आत्म से ही बोलें।


 


बाहर तो माया है


कपटी छाया है


दूर रहो


अंतस में ही आत्म की काया है।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


काव्यकुल संस्थान अर्द्धशती काव्योत्सव

का पावन मंच और और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय का जन्मदिवस का अवसर तो परिवार के सभी वैश्विक कवि मित्रों द्वारा आयोजन *अर्द्धशती काव्योत्सव* भी विशेष रहा।


मण्डला मध्यप्रदेश से अनेकों किताबों के प्रणेता डॉ(प्रो) शरद नारायण खरे की अध्यक्षता में सम्पन्न इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि टोकियो से जापान हिंदी कल्चरल सेंटर की अध्यक्ष डॉ रमा शर्मा विशिष्ट अतिथि भूमिका में अबुधावी से ललिता मिश्रा, तंजानिया से सी ए अजय गोयल, अमेरिका से प्राची चतुर्वेदी सहित देश के जाने माने कवि कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर वाणी से कार्यक्रम को शिखर तक पहुँचाया।


दिल्ली से कार्यक्रम के आयोजक रजनीश स्वच्छंद, संयोजक कुसुमलता कुसुम के इस अनूठे आयोजन में ऑनलाइन4 घण्टे बही काव्य रस धारा।


रांची से सुमधुर कण्ठ की धनी डॉ रजनी शर्मा चन्दा की वाणी वन्दना से कवि सम्मेलन हुआ।


संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के 50वें जन्मदिन पर आयोजित इस कार्यक्रम में 25 कवियों ने अपनी प्रस्तुति देकर भाव विभोर कर दिया।


अबुधावी से ललिता मिश्रा ने जीवन के विभिन्न प्रसंगों को लेकर कहा


 आज पचासवे जन्मदिवस पर 


मेरे कुछ उदगार यहाँ


स्वीकार करें ये पुष्प सुगंधित 


मान हमारा बढ़ जाएगा ।


संस्थान के राष्ट्रीय समीक्षक नोयडा से सोमदत्त शर्मा सोम की भावाव्यक्ति ने कार्यक्रम को गरिमामय बना दिया-


हे विराट-व्यक्तित्व! हे देव-पुरुष! हे नवल-भागीरथ!!                   


छूकर व्योम तुमने पूर्ण किये सकल साहित्य -मनोरथ!!


काव्य कुल संस्थान में स्वर्ग से,ले आये ज्ञान-गंगा !                 


महाभाग! परमार्थी बनकर किया सभी का मन चंगा।


कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ शरद नारायण खरे ने अपने चिर परिचित अंदाज में मुक्तकों के माध्यम से अनुपम काव्य पाठ किया जो काफी सराहा गया।


अमेठी से प्रधानाचार्य डॉ राघवेन्द्र पाण्डेय द्वारा सृजित इन पंक्तियों को बहुत वाहवाही मिली


कीर्ति फैले दशों दिक् में आलोक-सी सूर्य,चंदा,सितारों की हो भव्यता;


घर में सौंदर्य सारे मिलें आपको 


प्रिय - स्वजन में समाई रहे नव्यता।


आजमगढ़ से कवि राजेश मिश्र नवोदयी की इन पंक्तियों ने बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया-


  हम सबके प्यारे हैं दुनिया में न्यारे हैं... 


हिंदी साहित्य के सच में जगमग ध्रुव तारे हैं... 


जिनकी छत्रछाया में हम कवि नवल कविता सुनाएं.... 


वाराणसी से विद्वान कवि डॉ ब्रजेंन्द नारायण द्विवेदी शैलेश के अनुपम गीतों ने झूमने पर मजबूर कर दिया 


अति उदार हैं ह्रदय के,ये डॉक्टर राजीव।


मुझ जैसे पाषाण से,रखते प्रीत अतीव।


इस समारोह में दिल्ली से ओंकार नाथ त्रिपाठी ने नयनों पर अदभुत गीत सुनाया।


अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने प्रेमगीत सुनाकर मोहित कर दिया। झांसी से कवयित्री कुंती जी ने आत्म मोक्ष की दार्शनिक कविता सुनाई।


नोयडा से नेहा शर्मा ने इतिहास को संकेतों से व्यक्त किया


 


जिसका घोड़ा है इतिहास के पन्नों में, उसका नाम मिटाया क्यूं?


शौर्य का बखान तो किया, किन्तु उस वो नाम ना मिला,


निर्भीकता का तांडव करता, दर्ज उसे सम्मान ना मिला।


जिसकी तलवार की धार से हुए भयभीत, उसे यूं दफनाया क्यूं? 


 


अर्द्धशती काव्योत्सव में राजेश सिंह श्रेयस , साधना मिश्रा लखनऊ, अहमदाबाद से नलिनी शर्मा कृष्णा, छत्तीसगढ़ से संजय बहिदार, दिल्ली से यशपाल सिंह चौहान , मण्डला मध्यप्रदेश से डॉ नीलम खरे, दिल्ली से कुसुमलता कुसुम, कुमार रोहित रोज, नालन्दा से रजनीश स्वछंद, गाजियाबाद से गार्गी कौशिक, आदि कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाकर कार्यक्रम को शिखर तक पहुंचाया।


कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने किया।


प्रस्तुति


डॉ राजीव पाण्डेय


राष्ट्रीय अध्यक्ष


काव्यकुल संस्थान(पंजी)


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नमिता गुप्ता "मनसी"

आत्म परिचय -


नाम - नमिता गुप्ता


साहित्यिक नाम - नमिता गुप्ता "मनसी"


शिक्षा - एम.ए. अंग्रेजी


 


साहित्यिक परिचय - "मुस्कराते पन्नें" व "दास्तान-ए-दोस्ती" में सह-लेखक हूं । "तारे जमीं पर" , "उर्वशी" "अक्षरवार्ता" "हस्ताक्षर" "द्रष्टिपात" " साहित्य त्रिवेणी" व "मेरी सहेली" में कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं । 


हाल ही में USA में भारतीय समूह में प्रचलित हिंदी साप्ताहिक अखबार "हम हिंदुस्तानी" में कविताएं प्रकाशित हुई हैं ‌।


मेरठ के 'दैनिक युवा रिपोर्टर" व "विजय दर्पण" अखबार में रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं ।


 


( 1 )


ईश्वर की खोज जारी है..


 


मनमुटाव तो शुरुआत से ही रहा..


इसीलिए खींच दी गई


लक्ष्मण-रेखाएं ,


ईश्वर को ढूंढा गया


उससे मिन्नतें-मनुहार की ,


..फैंसला तब भी न हुआ !!


 


तब..


धर्मों को गढ़ा


जातियों को जन्म दिया


परम्पराओं की दुहाई दी


.. बंटवारा किया गया सभ्यताओं का भी


और


मनुष्यता कटघरे में ही रही !!


 


आरोप-प्रत्यारोप किए..


ईश्वर को दोषी करार दिया गया


कभी प्रश्न उठाए गए


उसके होने-न होने पर भी..


इसीलिए


स्वयं को भी ईश्वर घोषित किया..


..समस्याएं जस की तस !!


 


सुनों..


ईश्वर की खोज जारी है !!


 


                 ( 2 )


सुनों कवि..


 


सुनों कवि..


कर सकते हो तो करो


कि रास्ता दिखाओ


कागज़ों में दुबकी सभ्यताओं को ,


परिचित कराओ युवा पीढ़ी को


पुरातत्व होने के मायने ,


सिखाओ उन्हें भी कि


बुरा नहीं है प्राचीन होना ,


बुरा है, प्राचीन को सिर्फ प्राचीन ही समझना


हमेशा ,


उनके समक्ष प्रस्तुत करो


अधमिटे दस्तावेज


जिनका पूरा किया जाना बाकी है अभी !!


 


सुनों कवि..


कर सकते हो तो करो आविष्कार


ऐसी आग का


कि जिसका धुंआ कभी जहर न घोले


हवाओं में !!


 


सुनों कवि..


यदि पुनर्जीवित कर सकते हो 


पुरानी सभ्यताओं को 


तो इसकी खबर मुझे जरूर देना ,


देखना चाहूंगी कि 


कहां तक पहुंचाएगा मनुष्य को


ये पहिए का आविष्कार !!


 


सुनों कवि..


पढ़ सकते हो तो जरूर पढ़ना


वो दीवारों में जड़ी हुई प्रेम कहानियां ,


"सिर्फ देह का स्पर्श नहीं


मन को छू जाना होता है प्रेम "..


..हो सके तो खंगालकर लाना


सारी कविताएं


आत्मिक-प्रेम की !!


    


 


                 ( 3 )


 


 मैं इसलिए भी लिखती हूं..


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


मुझे


कंक्रीट कल्चर से वशीभूत


भूल-भुलैया जैसे 


इस शहर में


हरे जंगल उगाना


नदियां तलाशना


और..


धूप के लिए जगह बनाना अच्छा लगता है !!


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


थकी-हारी रातों में


जब तुम लिखना चाहो कोई प्रेम-पत्र ,


तब ये सारे नक्षत्र, चांद, तारे..


चुपचाप


तुम्हारे डाकिए बन जाएं


और..


मैं तलाशती रहूं


एक खत अपने लिए भी !!


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


मैं गढ़ सकूं कभी न कभी


ऐसा कोई किरदार 


जो कुछ करे या न करे


पर बिना शर्त


कम से कम मुझे सुने तो सही !!


 


 


              ( 4 )


 


वो पीली सोच वाली कविता..


 


अभी तलाश रही हूं कुछ पीले शब्द


कि एक कविता लिखूं


पीली सी ,


ठीक उस पीली सोच वाली लड़की के जैसी


भीगती हुई


पीली धूप में तर-बतर ,


बटोरती हुई सपनों में


गिरे पीले कनेर 


जो नहीं जानती फूल तोड़ना ,


घंटों बतियाती है जो चुपचाप


पीले अमलतास से ,


निहारा करती है रोज


रिश्तों के पीले सूरजमुखी !!


 


उसने देखा


एक पीला पत्ता


बनाता हुआ जगह किसी नये हरे के लिए ,


एक पीली चोंच वाली चिड़िया आई


ले गई पीला पत्ता


घोंसले के लिए !!


 


..इस तरह सहेज रही है वो 


अनगिनत पीले बसंत


आगामी पतझड़ के लिए


ताकि खिलें रहें


कनेर.. अमलतास.. सूरजमुखी..


और चहकती रहें चिड़ियां


पीली धूप में !!


 


 


              ( 5 )


 


हर प्रलय में...


 


आज के हालातों में


हर कोई "बचा" रहा है कुछ न कुछ ,


पर, नहीं सोचा जा रहा है


"प्रेम" के लिए 


कहीं भी !!


 


हां, शायद 


"उस प्रलय" में भी


नाव में ही बचा रह गया था "कुछ"


कुछ संस्कृति..


कुछ सभ्यताएं..


और


.. थोड़ा सा आदमी !!


 


प्रेम तब भी नहीं था


आज भी नहीं है ,


..वही "छूटता" है हर बार


हर प्रलय में ,


पता नहीं क्यों !!


 



मदन मोहन शर्मा सजल

मनहरण घनाक्षरी


01- सपनों का सौदागर, आया मेरे दिल गली


प्यार की आवाज लगा, मन मुस्कराता है।


पापी पाप भर लाया, छल करने को आया


धीमे-धीमे डग भरे, आंखें मटकाता है।


कभी देखे इत उत, जैसे है सुहानी रुत


जुबां प्रेम रस घोल, धोखे से बुलाता है।


हौले से पकड़ हाथ, हिय से लगाया माथ


प्रीत भर चूमा भाल, यादों में सताता है।


 


02- बाहुपाश कस दिया, नशा तन मन छाया


सुध बुध खोई सारी, मदन जगाता है।


वादा करो साथ रहें, हर दुःख मिल सहें


जनमों का नाता रहे, ईश को मनाता है।


भोर की सुहानी ताल, टूटा सपनों का जाल


चला गया परदेशी, सपनें सजाता है।


मन हुआ पर वश, नहीं रहा कुछ वश


बैरी प्रीत भर चला, कुछ न सुहाता है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा सजल


डॉ. रामबली मिश्र

जब तुम मेरे घर आओगे....।


 


जब तुम मेरे घर आओगे ,


हँसकर कदम बढ़ाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


हँसकर गले लगाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


सुंदर सेज सजाऊँगा मैं।


 


जब तुन मेरे घर आओगे,


फूलों पर बैठाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


आतिथ्य धर्म मनाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


छप्पन भोग कराऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे


खुशियों से इतराऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


वंशी खूब बजाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


मनहर गीत सुनाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


नाचूँ और नचाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे


होली खूब मनाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे,


माला-फूल चढ़ाऊँगा मैं।


 


जब तुम मेरे घर आओगे


 तुझ पर रस बरसाऊँगा मैं।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

जो ग़मों से गुजर गया हूँ मैं।


लग रहा है निखर गया हूँ मैं।


***


चाहिए था नहीं वहां जाना।


ख़ारों पे पर उतर गया हूँ मैं।


***


शक रहे कुछ रहे शुब्हे मुझको।


देख अंजाम डर गया हूँ मैँ। 


***


रास आई नहीं मुहब्बत भी।


बस जफ़ा से सिहर गया हूँ मैं।


***


इश्क के नाम से लगा डर है।


ख़ौफ लगता जिधर गया हूं मैं।


***


सुनीता असीम


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ, प्रियतम।


बहुत दिनों से थे तुम ओझल-


आओ पाँव पखारूँ, प्रियतम।।


 


जब तक थे तुम साथ हमारे,


मन-बगिया में हरियाली थी।


ले सुगंध साँसों की तेरी,


बही हवा जो मतवाली थी।


उलझे-उलझे केश तुम्हारे-


आओ केश सवाँरूँ,प्रियतम।


    आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


बहुत दिनों के बाद मिले हो,


अब जाने का नाम न लेना।


रह कर साथ सदा अब मेरे,


डगमग जीवन-नैया खेना।


तेरी अनुपम-अद्भुत छवि को-


आओ, हृद में धारूँ, प्रियतम।


    आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ ,प्रियतम।।


 


तुम दीपक मैं बाती साजन,


प्रेम-तेल पा ही दिया जले।


प्रेम-ज्योति के उजियारे में,


जीवन-तरुवर की डाल फले।


भर लो अपनी अब बाहों में-


तन-मन तुझपर वारूँ,प्रियतम।


     आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


नहीं साथ थे जब तुम मेरे,


मैं थी तकती राहें तेरी।


बड़े भाग्य से आज मिले हो।


बंद हुईं अब आहें मेरी।


तुम्हीं देवता मन-मंदिर के-


 तुमको सदा पुकारूँ,प्रियतम।


         आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


तुम समीप जो बैठे मेरे,


देखो,चंदा इठलाता है।


बोले पपिहा दूर कहीं से,


पी-पी उसका अब भाता है।


अब तो नैन मिलाकर तुमसे-


नित-नित प्रेम निखारूँ,प्रियतम।


      आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


 


मन कहता है कहीं दूर जा,


नीले गगन की छाँवों तले।


चंचल नदी-किनारे बैठें,


 पवन सुगंधित भी जहाँ चले।


तुम्हें बिठाकर निज गोदी में-


हिकभर तुम्हें दुलारूँ, प्रियतम।


      आओ बैठो पास हमारे,


अपलक तुम्हें निहारूँ,प्रियतम।।


                 ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


विनय साग़र जायसवाल

दिल की हर मुश्किल का कोई इसमें हल मौजूद है 


आप सबके सामने मेरी ग़ज़ल मौजूद है 


 


जिसमें चाहो जाओ निकलो अपनी मनमानी करो 


इन सियासतदानों को भी दल बदल मौजूद है 


 


बस इसी इक बात से है मुतमइन यह ज़िंदगी 


अक्स उसका सामने हर एक पल मौजूद है 


 


उसकी ख़ुशबू से महकता है मेरा ज़ख़्मी जिगर 


जिस्म में उस तीर का हर इक कँवल मौजूद है


 


हाथ दोनों के मिले लब पर तबस्सुम भी सजा


फिर भला क्यों दर्मियां अब भी जदल मौजूद है 


 


जो बनाया था कभी दोनों ने मिल कर ख़्वाब में


आज भी यादों में अपनी वो महल मौजूद है


 


जब ग़ज़ल *साग़र* कही हमने नये अंदाज़ में 


कुछ ही पल में देख ली उसकी नक़ल मौजूद है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


मुतमइन -संतुष्ट , तृप्त 


जदल-युद्ध ,कलह ,वाद-विवाद


सुषमा दीक्षित शुक्ला

ऐ!मातृशक्ति अब जाग जाग। 


ऐ!शक्तिपुंज अब जाग जाग ।


 


रणचंडी बन तू स्वयं आज।


 मत बन निरीह नारी समाज।


 


उठ हो सशक्त भय रहा भाग ।


 अबला का चोला त्याग त्याग ।


 


 चल अस्त्र उठा तज लोक लाज ।


शोषण का ले जग से हिसाब ।


 


भारत की नारी दुर्गा है ,


भारत की नारी सीता है ।


 


रणचण्डी बन वह युद्ध करे ,


गीता सी परम पुनीता है ।


 


मां कौशल्या, जसुदा बनकर ,


जग् को सौगात दिया उसने ।


 


लक्ष्मीबाई रजिया बनकर ,


बैरी को मात दिया उसने ।


 


  वह अनुसुइया वह सावित्री ,


वह पार्वती का मृदुल रूप ।


 


वह राधा है वह सरसवती


माँ लक्ष्मी का अनुपम स्वरूप ।


 


इसको अपमानित मत करना ,


ऐ!दुनिया वालों सुन लो तुम ।


 


सब नरक भोग कर जाओगे ,


अब कान खोलकर सुन लो तुम ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


संजय जैन

आशीष मिला तो....


 


तेरा आशीष पा कर, 


सब कुछ पा लिया हैं।


तेरे चरणों में हमने, 


सर को झुका दिया हैं।


तेरा आशीष पा कर .....।


 


आवागमन गालियां 


न हत रुला रहे हैं।


जीवन मरण का झूला 


हमको झूला रहे हैं।


आज्ञानता निंद्रा 


हमको सुला रही हैं।


नजरे पड़ी जो तेरी, 


मानो पापा धूल गए है। 


तेरा आशीष पा कर.....।।


 


तेरे आशीष वाले बादल 


जिस दिन से छाए रहे हैं।


निर्दोष निसंग के पर्वत 


उस दिन से गिर रहे हैं।


रहमत मिली जो तेरी, 


मेरे दिन बदल गये है।


तेरी रोशनी में विद्यागुरु, 


सुख शांति पा रहे है।


तेरा आशीष पा कर ....।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन (मुम्बई)


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 तृतीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-27


 


तब प्रभु राम मुनी तें कहहीं।


जे जग मोर भरोसा करहीं।।


     करहुँ तासु रखवारी हमहीं।


     जस निज सुत महतारी करहीं।।


माता-गउ जग एक समाना।


निज सुत-बच्छ देहिं निज प्राना।।


    होत सयान देखि गो-माता।


    रखहिं न तिन्ह सँग पाछिल नाता।।


जदपि सनेह थोर नहिं रहई।


अतुल नेह पर तस नहिं भवई।।


     भगत मोर बल निज बल मानै।


     छाँड़ि मोंहि नहिं औरहु जानै।।


निरछल भगति पछाड़ै रिपुहीं।


काम-क्रोध-मद-लोभ जे रहहीं।।


     जदपि सत्रु ये सभ दुखदाई।


     माया बड़ी इन्हन्ह तें भाई।।


सकल बासना-बिपिन मँझारी।


माया रूपी नारि पियारी।।


     बेद-पुरानहिं-संत बखानै।


    षट ऋतु सम सुभाउ तिय जानै।।


हेम-सिसिर ऋतु,सरद-बसंता।


बरषा-गृष्म कहहिं जे संता।।


     जदपि नारि ममता कै मूरत।


      मातु तुल्य नहिं कोऊ सूरत।।


काम-क्रोध-प्रपंच-भंडारा।


रुष्ट भए तै तपै अँगारा।।


    नारि-बियाह भगत नहिं सोहै।


    जप-तप-नियम भगत सभ खोवै।।


दोहा-सुनि के प्रभु कै अस बचन,नारद पुलकित गात।


         नैन अश्रु-पूरित मुनी,कहत भए अस बात ।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


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आठवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-7


 


एक दिवस बलदाऊ भैया।


लइ गोपिन्ह कह जसुमति मैया।।


     माई,खाए किसुन-कन्हाई।


     माटी इत-उत धाई-धाई।।


पकरि क हाथ कृष्न कै मैया।


कह नटखट तू बहुत कन्हैया।।


     काहें किसुन तू खायो माटी।


     अस कहि जसुमति किसुनहिं डाँटी।।


सुनतै कान्हा डरिगे बहुतै।


लगी नाचने पुतरी तुरतै।।


    झूठ कहहिं ई सभें हे मैया।


    गोप-सखा-बलदाऊ भैया।।


अस कहि कृष्न कहे सुनु माई।


नहिं परतीति त मुँहहिं देखाई।।


    अब नहिं बाति औरु कछु बोलउ।


    कहहिं जसोदा मुहँ अब खोलउ।।


तुरत किसुन तब खोले आनन।


लखीं जसोदा महि-गिरि-कानन।।


      सकल चराचर अरु ब्रह्मंडा।


      बायु-अग्नि-रबि-ससी अखंडा।।


जल-समुद्र अरु द्वीप-अकासा।


विद्युत-तारा सकल प्रकासा।।


    सत-रज-तम तीनिउँ मुख माहीं।


    परे जसोदा सभें लखाहीं।।


जीव-काल अरु करम-सुभावा।


साथ बासना जे बपु पावा।।


     बिबिध रूप धारे संसारा।


     स्वयमहुँ देखीं जसुमति सारा।।


दोहा-किसुन-छोट मुख मा लखीं,जसुमति रूप अनूप।


        सकल विश्व जामे रहा,जल-थल-गगन-स्वरूप।।


                 डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां शारदे दया करो


********************


हे मां शारदे दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी का बुरा न करु,


ऐसी सुमति हमें देना मां।


 


हे मां शारदे दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना मां।


 


ये जीवन तुम्ही ने दिया है


राह भी तुम्हें बताओ मां


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ मां।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो मां।


 


हे मां शारदे दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाऊं मां,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


नूतन लाल साहू

धूप और छांव


 


चिंता से दुर रहो


चिंता, चिता समान


दुःख की आंसू पीकर


बांटे जा, मुस्कान


जीवन का रहस्य


न समझा, इंसान


जिंदगी में आते ही रहेगा


कभी धूप, तो कभी छांव


सोच सोच कर स्वयं को


क्यूं हो रहा है,हैरान


प्रभु कर्मो का फल,दे रहा है


विधि का है,अटल विधान


जो देता हैं, ईश्वर


उसमे रख,संतोष


लालच में पड़कर, कभी


खो मत देना,अपना होश


जिंदगी में, आते ही रहेगा


कभी धूप, तो कभी छांव


तुम सबसे,कहते रहे


दुनिया बड़ी,खराब


अपने दोषों का मगर


रक्खा नहीं,हिसाब


क्यों भिड़ता है,समय से


समय हैं,बहुत बलवान


बड़े बड़ों के,समय ने


काट दिये है, कान


जिंदगी में आते ही रहेगा


कभी धूप, तो कभी छांव


समय आयेगा,समय पर


इसको निश्चित, जान


समय से पहले किसी को


नहीं मिला,सम्मान


खुद अपने हाथो से


खींचे,भाग्य लकीर


बिना परिश्रम के,नहीं बनती


इंसानों का तक़दीर


जिंदगी में आते ही रहेगा


कभी धूप, तो कभी छांव


नूतन लाल साहू


डॉ0 निर्मला शर्मा

"लापरवाही पूरी


 ना मास्क ना दूरी, लापरवाही है पूरी


 फैलेगा ही कोरोना ,सावधानी है अधूरी 


सोशल डिस्टेंसिंग, का नहीं किसी को ध्यान 


सब्जी मंडी में तो, खूब चढ़े यह परवान


 रेलवे स्टेशन बस स्टैंड ,सभी जगह इस का डेरा 


नहीं किया बचाव तो होगा ,आपके तन में बसेरा लॉकडाउन में सब को, सरकार ने खूब बताया


 कोरोना गाइडलाइन देकर, मानव को चेताया अनुशासन किया भंग, तो होगी बड़ी फजीहत 


कोरोना तैयार है बैठा ,करेगा सब को आहत


 धारा 144 लगाई, कभी किया डंडा वार


 आर्थिक दंड लगाया फिर भी ,समझाना गया बेकार 


घर में बैठे कैसे हम तुम ,काम भी है जरूरी


 गांठ बांध लो सभी समझ लो, सावधानी है जरूरी


 


 डॉ0 निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


*******************************


धूप- छाँव


धूप छाँव का साथ अनोखा


साथ में चलें करें न धोखा


धूप कर्मपथ है दिखलाती


परिश्रम की राह सिखाती


छाँव कराये सुखद अहसास


चैन की अब तो ले लो श्वास


जीवन में दोनों का महत्व


धूप छाँव का अपना कर्तव्य


ये सुख- दुख सरिस है साधो


जिनकी व्याख्या करते माधो


पानी सम बुलबुला समाना


जीवन धूप छाँव सा माना


जीवन पथ पर रहो अग्रसर


चलो न देखो अब तुम मुड़कर


पीछे का पीछे ही छोड़ो


आगे बढ़कर लक्ष्य को छू लो


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


राजेंद्र रायपुरी

 आलस छोड़ो 


 


आलस छोड़ो जागो भाई।


  देखो पूरब लाली छाई।


    उठो सैर पर तुमको जाना,


      मुर्गे ने भी बाॅ॑ग लगाई।


 


चिड़िया देखो चहक रही है।


  बाग चमेली महक रही है।


    कली-कली देखो मुस्काई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


सूर्य रश्मि अब आने वाली।


  इसीलिए पूरब है लाली।


    तम की करती वही विदाई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


नभ तारे नहिं पड़ें दिखाई।


  सबने ले ली भोर बिदाई।


    तोता भी आवाज लगाए,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


उठो काम पर तुमको जाना।


  खाना-पीना और नहाना।


    कब तक लोगे तुम ॲ॑गड़ाई,


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


जो सोते हैं, वो खोते हैं।


  पछताते, पीछे रोते हैं।


    झूठ नहीं ये, है सच्चाई।


      आलस छोड़ो जागो भाई।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

  अपनो में


"खोया रहा मन सपनो में,


कैसे-मिले वो अपनो में?


अपना-अपना कहते जिनको,


कहाँ -मिले वो सपनो में?


अपनत्व की अभिलाषा मे ही,


खोये रहे वो सपनो में।


मिला न अपनत्व जीवन साथी,


बढ़ती रही कटुता मन में।।


दूर होती कटुता तन-मन की,


ऐसी गरिमा हो सबंधों मे।


बाँध सके जीवन को साथी,


ऐसा स्नेंह हो अपनो में।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


सुषमा मोहन पांडेय

राष्ट्रीय एकता पर मेरा गीत


 


देश हो अखण्ड मेरा एकता चाहिए


जाति चाहे भिन्न हो, न भिन्नता चाहिए


बोलियां अनेक हैं पर एक बोली प्रेम की


रंक हो या राजा समान भाव चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


गांव गांव शहर शहर देश का विकास हो


हम भी बढ़े तुम भी बढोऔर सबका साथ हो


कोई न भूखा रहे धरा पर, ऐसा देश चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


देश की अखंडता न तार तार करना


साम्प्रदायिक विचारों का बहिष्कार करना


मिलजुल कर रहना है,प्यार सभी में भरना


राष्ट्रीय एकता की पहचान होनी चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


हम सब देश के बच्चे हैं, एक ही माँ के जन्मे है


फिर मजहब का भेद ये कैसा,हमें दूर ये करने हैं


यही धारणा सब बच्चों के अंदर होनी चाहिए।


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


डा. नीलम

भावों का प्रवाह......


 


कहने को बहुत कुछ है मगर


शब्द-शब्द भीग रहा


बाहर आसमां ,भीतर-भीतर


मनाकाश बरस रहा


 


सामने हैं कागज-कलम


हाथ बेदम हुआ


लेने से आकार अक्षर-अक्षर लाचार रहा


 


बेरहमी से कुचला था जिस्म


जानते हैं सब जन 


सच बोलने से आदमी आज


बेजार रहा


 


बहुत जतन किये सच उगलवाने के


सच सामने न आया हर जतन बेकार रहा


 


बयां करती रहीं *नील* हादसे को भीगी आँखे


आहों ने आकार ले लिया, लब मगर खामोश रहा।


 


       डा. नीलम


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 हे चारुचन्द्र नव आश किरण


 


मन माधव कुसुमित कुसुम गन्ध,


नव भोर मुदित नवपल्लव लवंग।


सतरंग गगन गुंजित विहंग,


अलिगुंज हृदय यौवन तरंग।


 


नँच मन मयूर आनन्द मग्न,


पिक गान मधुर संगीत रंग।


मधुशाल बना पुलकित निकुंज,


नभ इन्द्रधनुष साजन तरंग।


 


अरुणाभ जगत अभिलाष सतत,


नव प्रीति मिलन अनुराग सजन।


प्रियतम वियोग अब हो न सहन,


जीवन अन्तर्मन प्रियदर्शन। 


 


पलकों में ओझल पीड़ प्रियम,


नयनाश्रु मात्र अविरल चितवन।


रतिराग हृदय संताप कठिन,


उरभार शिखर उन्माद मदन। 


 


उपहास विरह लखि तारागण,


ठिठक रहे जुगनू रात्रि चमन।


संकोच पड़ी लखि चन्द्र प्रभा,


अनुताप विरहिणी अश्रु नयन।


 


बाट जोहती प्रियतम आगम,


वासन्तिक बीता मधुमय क्षण।


सरसिज आनन मतवाला मन,


बिम्बाधर पाटल मुस्कान क्षयण।


 


देखी सावन आह्लाद नयन,


घन श्याम बरस सूखे चितवन।


नव आश दमक चमकी विरहण,


अधीरा मुदिता प्रिय चारु मिलन।


 


घनघोर घटा बरसी अम्बर,


भींगी काया तन वदन वसन।


रति बाण पयोधर घाव सघन,


यौवन उफान अभिसारिक मन। 


 


कोमल किसलय द्रुम पत्र नवल,


निशि चन्द्र मधुर परिमल शीतल। 


कुमुद विहँसती शशिकान्त मृदुल, 


आहत प्रिया लखि चकोर युगल।


 


तज राग सजन आओ मधुवन,


आलिंगन तन मन रास चमन।


गलहार हार मधुशाल बलम,


संभाल प्रिया रति प्रलय सजन।


 


आया विप्लव तूफ़ान कठिन,


अभिलाष प्रीति उड़ रहा चमन।


घनश्याम बरस ला आप्लावन,


पतवार बनो रक्षक साजन।


 


घनघोर घटा बन नैन रुदन,


कजरी बह काली गाल वदन।


मधुरिम रसाल सम भाष मधुर,


राह देखती निशिरैन सनम।


 


अभिनव कोमल जल रहा वदन,


देह विलोपित गन्धमादन।


प्रीत प्रगल्भा बनी वियोगन,


आ रमण करो प्रिय हृदयांगन।


 


वेणी लड़ियाँ झूल रही कमर,


प्रिय मिलन विरह पी रही ज़हर।


गज गयी चाल उच्छल नितम्ब,


संजीवन सजन न बरस कहर।


 


हिमाद्रि तुंग सम वक्षस्थल,


रणवीर प्रीत उन्मत्त युगल,


मधुपान नशीले विजय मिलन,


अभिनन्दन प्रियतम आश नवल। 


 


हे चारुचन्द्र नव आश किरण,


मैं पूनम रच प्रियरास चमन।


अनमोल धरोहर तुम साजन,


नव कीर्ति निशाकर प्रीति बलम।


 


डॉ. राम कुमार झा निकुंज


नवदिल्ली


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