काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नागेन्द्र नाथ गुप्ता, 

नागेंद्र नाथ गुप्ता


पिता स्व० श्री मंगलाचरण गुप्ता


शिक्षा = एम०ए०


व्यवसाय = रेलवे (मुंबई) से सेवा निवृत्त


जन्म स्थान = कानपुर


जन्मतिथि =12/11/1950


प्रकाशित कृति = 


गुरु अमृत, फूलों के दरम्यान (प्रेस में) एवं पांच सांझा संकलन प्रकाशित अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख,कविताओं एवं ग़ज़लों का नियमित प्रकाशन :- जैसे सामना, वृत मित्र- मुंबई वर्तमान अंकुर- नोयडा, युगधारा, तुलसी सौरभ, दिल्ली प्रेस, काव्य रंगोली, सोच विचार- वाराणसी साहित्यनामा आदि आदि


सम्मान - अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित तथा विभिन्न काव्य गोष्ठियों से संलग्न।


वर्तमान पता = बी० 1 / 204, नीलकंठ ग्रीन्स


                    मानपाडा, ठाणे ( मुंबई ) 400610 मोबाइल न० = 9323880849


ई०मेल nagendrangupta@gmail.com     


            


रचनाएं :-


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 एक- सुख - दुख


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सुख दुख शामिल रहते हैं सबके जीवन में,


आते जाते रहते सुख दुख सबके जीवन में।


 


सुख हैं क्षणिक मगर दुखों की लम्बी रातें,


कभी भूल नहीं पाते हम बीते दुख की बातें।


 


सच्चे सुख खातिर पहुंचाए औरों को सुख,


हासिल होगी खुशी और मिलेगा पूरा सुख।


 


ज्ञानी ध्यानी सब कहे दुखिया सब संसार,


दुख में रखे थोड़ा हौसला होगा बेड़ा पार।


 


दो- मौन


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मौन के श्वर जब प्रखर होंगे,


और ज्यादा हम प्रबल होंगे।


 


मौन का वजूद कम हो रहा,


आदमी अस्तित्व है खो रहा।


 


मौन रहने में कोई रुचि नहीं,


खामोशी की कोई गति नहीं।


 


होश है पर एकाग्रता भंग है,


समुचा संसार अपने संग है।


 


एकांत की साधना है दुर्लभ,


जो अनावश्यक वहीं सुलभ।


 


मौन में तरंगें मारती हिलोर,


पकड़े कसके छूटें नही डोर।


 


मौन में बेहतर होगा संवाद,


न कोई बहस न हो विवाद।


 


मौन रहें तो खुशियां करीब,


चंद लोग होते खुशनसीब।


 


मौन रह के बन जाए तरल


मौन साधे तो जीवन सरल।


 


तीन- "शिव और शक्ति" ~~~~~~~~~~~~


 शिव हैं जहॉ वहाॅ शक्ति है 


जहाॅ भाव हैं वहीं भक्ति है।


शिव शक्ति के बिना अधूरे


जगदम्बा ही परम शक्ति है।


 


शिव शक्ति से सदा युक्त है


शिव माया से सदा मुक्त है।


माया की शक्ति है आसक्ति


माया से मुश्किल है विरक्ति।


 


गति प्रदान करती है शक्ति


शक्ति से मिलती है भक्ति।


शक्ति बिन क्रिया असंभव


शक्ति में मिलती तंदुरुस्ती।


 


शिव कृपा से मिलेंगी शक्ति


बिन हरि कृपा नहीं है मुक्ती।


अर्द्धनारीश्वर इसीलिए शिव


शिव हैं जहॉ वहां शक्ति है।


 


चार- जीवन


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जीवन इक संसाधन हैं,


कुछ करने का आंगन है।


जीवन देता मौका बस-


जीवन तो मनभावन है।।


 


मुश्किल आती रहती है,


विपदा जाती रहती है।


कोशिश करनी है पड़ती-


मंजिल उसको मिलती है।।


 


जीवन जैसे सरगम है,


बजती रहती हरदम है।


हंसते - गाते है रहना-


जीने वालों में दम है।।


 


ईश्वर का नज़राना है,


जीवन ना जुर्माना है।


होठों पे मुस्कान रहे-


यूॅ आभार जताना है।।


 


जीवन जीवन यापन है,


कुछ कहते ये कानन है।


सुंदर अनुपम हो जीवन-


जीवन सचमुच पावन है।।


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नागेन्द्र नाथ गुप्ता, 


ठाणे (मुंबई)


दिनांक 27/09/2020


मोबाइल- 9323880849



 


अभय सक्सेना

2 अक्टूबर पर विशेष :


🙈आंख कान मुंह बंद 🙉


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।🙊


✍️अभय सक्सेना एडवोकेट


 


👉एक दिन बैठे बैठे मन में ,


यूं ही यह विचार आया।


मैंने झट से गांधी जी को,


अपनी कविता में सजाया।।


👉 जिन्होंने सत्य और अहिंसा का डंका, विश्व भर में था बजाया‌।


 अपनी अहिंसा प्रवृत्ति से,


 अंग्रेजों को भारत से था भगाया।।


👉तन पर धोती, हाथ में लाठी,


 आंखों पर चश्मा था लगाया।


 तकली चरखा कांत कांत कर, 


उन्होंने फिर सूत था बनाया।।


👉 वक्ते आजादी नेहरू जिन्ना ने, 


अपने चक्कर में था खूब फसाया ।


अखंड भारत को अपनी जिद से, 


भारत-पाक में था बटवाया ।।


👉अहिंसा के पुजारी ने राष्ट्र को ,


धर्म के नाम पर था बटाया।


 पाक को इस्लामिक राष्ट्र ,


 भारत को लोकतांत्रिक का था दर्जा दिलाया।।


👉नेहरू जिन्ना के दबाव ने,


 उन पर इतना था बोझ बढ़ाया।


फिर राष्ट्र पिता ने तीन बंदरों का, प्रतीकात्मक रूप था बनाया।।


👉बुरा मत देखो, सुनो और बोलो का, अनसुलझा था पाठ पढ़ाया।


जिसका अर्थ, हमारे चिंतकों ने ,


हमको हमेशा था उल्टा ही बताया।।


👉बुराईयों पर बोलने, सुनने, देखने का, मतलब हमेशा गलत ही था बताया।अभय संग वर्षों तक सबको ,


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।


👉अभय संग वर्षों तक सबको ,


तीन बंदरों की तरह ही था नचाया।।


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


✍️ अभय सक्सेना एडवोकेट


मो.9838015019


डॉ.राम कुमार झा "निकुंज

दिनांकः ०५.१०.२०२०


दिवसः सोमवार


विधाः कविता (गीत)


विषयः अभिलाषा 


शीर्षकः नव आशा जन अभिलाषा दूँ


 


अभिलाषा बस जीवन जीऊँ,


भारत माँ का पद रज लेपूँ।


जीवन का सर्वस्व लुटाकर,


मातृभूमि जयकार लगाऊँ।


 


चहुँदिशि विकास अभिलाष करूँ,


सौ जनम वतन बलि बलि जाऊँ।


जयकार वतन गुनगान सतत,


निर्माण राष्ट्र कर्तव्य निभाऊँ। 


 


नव शौर्य वतन रणविजय बनूँ,


रक्षण सीमा प्रतीकार मरूँ।


समशान्ति राष्ट्र दूँ महाविजय,


ले ध्वजा तिरंगा शान बनूँ। 


 


गमगीन अधर मुस्कान भरूँ,


क्षुधार्त उदर अन्नपूर्ण करूँ।


तृषार्त कण्ठ दूँ शीतल जल,


शिक्षा रक्षा दे सबल करुँ।


 


जाति धर्म वतन निर्भेद करूँ,


मानवता हित संवेद बनूँ ।


हो मातृशक्ति सबला निर्भय,


सम्मान पूज्य मन नमन करूँ। 


 


कर हरित भरित भू कृषक बनूँ ,


वैज्ञानिक बन नव शोध करूँ।


बन सैन्यबली शत्रुंजय जग ,


सद्भाव मीत नवनीत बनूँ।


 


समता ममता करुणार्द्र बनूँ ,


नित दीन हीन परमार्थ करूँ।


नित त्याग शील गुण वाहक बन,


सत्कर्मरथी पथ सार्थ बनूँ। 


 


नव प्रीति सदय समुदार बनूँ ,


दीनार्त पीड़ उद्धार करूँ।


नित मानसरोवर अवगाहन,


जल क्षीर विवेकी हंस बनूँ।


 


नव सृजन गीति संगीत बनूँ ,


अभिलाष हृदय कवि भाष बनूँ।


नवलेख राष्ट्र उत्थान युवा,


अनमोल कीर्ति नित खुशियाँ दूँ। 


 


नव आशा जन अभिलाषा दूँ,


स्वाधीन तंत्र सुख जनमत दूँ।


संविधान मान निशिवासर जन,


सुख चैन अमन दे मुदित करूँ।


 


उच्छ्वास शुद्ध नव जीवन दूँ,


कुसमित निकुंज सुख सौरभ लूँ।


आरोग्य सृष्टि जग सकल भूत,


अभिलाष वतन निज जीवन दूँ। 


 


कवि✍️ डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*सजल नेत्र की शुचि सरिता*


*मात्रा भार 16/14*


 


सजल नेत्र की शुचि सरिता को ,


देख सजल हो जायेगे।


 


करुणाश्रय की बाट जोहती,


आँखों में बस जायेंगे।


 


पोंछेंगे हम नीर चक्षु के,


इसको नहीं गिरायेंगे।


 


लिए हाथ में दुःख के आँसू,


दिल से इसे लगायेंगे।


 


करुणासागर से विनती कर,


आज दुआएँ माँगेंगे।


 


आँसू का हो अंत न जब तक,


चैन नहीं हम पाएँगे।


 


जीवन के इस महा कुंभ में,


जीवन ज्योति जलाएँगे।


 


करुणामय संसार बनेगा,


करुणाकर को लाएँगे।


 


करुणा ही आँसू पोंछेगी ,


सुखसागर लहराएगे।


 


रचनाकार:


डरपुरी


9838453801


डा. नीलम

*नारी हूँ*


 


माना के नारी हूँ मैं


अपनों के हाथों मारी हूँ मैं


पर कमजोर नहीं मैं


वक्त पड़ने पर मर्दों पर


भी भारी हूँ मैं


 


दर्द को राग में पिरो


तराने गुनगुना लेती हूँ


अपनों के दिए जख्मों


पर मुस्कान की 


मरहम लगा लेती हूँ


 


पीर जब बड़ जाती पीड़ा की , दे थाप ढोलक पर


गीत मन गुनगुना


मन अपना बहलाती हूँ


 


दो घर की राजरानी


कहने वालों के


हाथों ही ,जब तकदीर


बिगड़ती है मेरी


बैठ अकेले में ही 


अपना मन बहलाती हूँ


 


सोज मैं ,साज मैं


अपनी ही आवाज भी हूँ


चोट जमाने की खा- खाकर


भीतर ही भीतर मजबूत


अपने आप को बना लेती हूँ


 


जहर जमाने का पीकर 


भीतर ही भीतर


विष आत्मसात कर लेती हूँ


बनकर फिर नीलकंठी


वक्त आने पर 


रणचंडी भी बन लेती हूँ।


 


               डा. नीलम


संजय जैन (मुम्बई

*भौजी की बहिनिया*


विधा : गीत


 


ये भौजी तुम कितनी


सुंदर और नोनी हो।


और तुमसे ज्यादा सुंदर


तुमरी बहानिया है।


देखकर हमरे नैना 


हटताई नहि हैं।


और धक धक करात


हमरो जो दिल है।।


ये भौजी तुम कितनी


सुंदर हो....।।


 


जबाऊ से तुमरो व्याओ भाऊ है भैया से भौजी।


तभाऊ से हमरो भी दिल


तुमरी बहिनिया पर आऊँगा है।


अब तुम काछऊँ कोऊँ चक्कर तो चलवाओ न।


ताकि हमरो व्याओ उससे


हो जाये।।


ये भौजी तुम कितनी 


सुंदर हो.....।।


 


जबाऊँ हमे देखत वो और


नैनो से गोली से बरसाऊत है।


जो मारे दिलखो लग जाऊत है।


अब भौजी तुम्हाई बताओ


मोहय क्या करना चाहिए।


ताकि तेरी बहिनिया 


हमरी लोगाईं बन जाये।।


और दोनों में फिरऊँ से


बहिनिया वाला रिश्ता तुमरो बन जाये।।


ये भौजी तुम कितनी


सुंदर हो......।।


 


बुंदेलखंडी में लिखने का प्रयास किया है। यदि कही कोई गलती हो जाये तो हमे क्षमा करना जी।पहली बार लिखा है।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन (मुम्बई)


06/10/2020


डॉ0हरि नाथ मिश्र                  

गीत


करने पूर्ण प्यास-आस को,


नदी समंदर से मिलती।


हिम-शिख से वह उतर अवनि पर-


कल-कल,छल-छल नित बहती।।


         जग की शोभा बनी रहे,


          विटप सदा फल दिया करें।


         माँ सी प्यारी धरती माता-


         बूँदी-घात सदा सहती।।


फसल-फूल-फल-अन्न अवनि दे,


पेट है भरती जीवों का।


चीड़-फाड़ जब उसका होता-


कभी नहीं क्रंदन करती।।


        लुट जाती है गंध हवा में,


        चमन-पुष्प की शोभा जो।


        लुट जाने में सुख वो पाती-


        निज उर व्यथा नहीं कहती।।


सरल भाव से सिंधु सौंपता,


निज उर मोती दुनिया को।


पा मोती को छलिया दुनिया-


निज धन कह झोली भरती।।


        सूरज-चाँद-सितारे नभ के,


         मिल अँधियारा दूर करें।


        बिना तेल-बाती के इनकी-


        ज्योति सतत जलती रहती।।


जीवन के हर प्रश्न का उत्तर,


हल हर जटिल समस्या का।


देती क़ुदरत मुदित भाव से-


टाल-मटोल नहीं करती।।


       हम हैं प्रश्न और हम उत्तर,


       हार-जीत के कारण हम।


       सबक फूल-काँटों से सीखो-


       दोनों में कैसे निभती!!


                 © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*ऐ शव्द! बहा करना*


  *मात्रा भार 12/16*


 


ऐ शव्द, बहा करना।


बने कर्णप्रिय चलते रहना।।


 


अपने आँचल से तुम।


सबको शीतल करते रहना।।


 


बहते रहना प्रति पल।


 बने बहार मचलते रहना ।।


 


अपनी प्रिय वाणी से।


सबको मोहित करते रहना।।


 


तुम्हीं बने हो ब्रह्म ।


सबको मधुमय करते रहना।।


 


बैठो सबके दिल में।


मानवता को प्रेरित करना।।


 


बनकर चलना वाक्य।


बन सुलेख हित करते रहना।।


 


बनो गुलाब का फूल।


जग में सदा महकते रहना।।


 


 बनकर चलो शरीरी ।


शुभ समाज को विकसित करना।।


 


बनकर पुस्तक घूमो।


शव्द !जगत को उत्तम रचना।।


 


बनना सुंदर कर्मी।


पावन शिवमय प्रतिमा गढ़ना।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनील कुमार

कविता:-


       *"हँसते-हँसते"*


"थक गये कदम साथी,


चलते-चलते।


ढ़ल गई शाम प्रतीक्षा,


करते करते।


छाने लगे अंधेरे राहे,


तकते-तकते ।


गहराने लगी रात फिर,


डरते डरते।


आने लगी नींद साथी,


थकते थकते।


देखे मीठे सपने साथी,


हँसते-हँतते।।


ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 06-10-2020


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*मत कर लालच*


 


1-लालच से इज्जत घट जाती।


 


2-लालच में मछली फँस जाती।


 


3-अति लालच दुर्दिन का कारण।


 


4-लालच में है छिपी दासता।


 


5-लालच में धोखा मिलता है।


 


6-लालच संकट का कारण है।


 


7-लालच से बेचैन मनुज है।


 


8-जान चली जाती लालच में।


 


9-त्याग और संतोष जहाँ है।


   नहिं लालच का नाम वहाँ है।।


 


10-लालच में अपमान बसा है।


 


11-वशीभूत है जो लालच के।


    वह जीता रहता मर-मर के।।


 


रचनाकार:


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1-जिंदगी के अस्तित्व का पल पल।  


 


 


याद नही वो पल 


दुनियां में रखा कब पहला कदम।।


माँ की लोरी याद नही 


याद है माँ की ममता


के आँचल पल पल।।


याद नही बापू की गोदी ,कंधा


दुनियां में सबसे ऊंचा सिंघासन।।


कुछ कुछ याद आता है


माँ की उंगली पकड़ सीखा


खड़ा होना गिरना औऱ संभालने का पल पल।।


याद है बापू के संग विद्यालय का


प्रथम कदम पल


गुरु से बापू की आशाओं की


संतान का वर्तमान भविष्य की


चाहत वर्णन का वो पल।।


याद हमे आज भी वह पल


जब माँ बड़े गर्व से मेरे गुण गान


बखान करती हर पल।।


कभी कभी तो सुनने वाले 


शर्माते मझ जैसा बनने को करते हकचल।।


पल पल दुनियां को समझने


की जिज्ञासा का पल ।।


 


2- जीवसं संग्राम के पल---            


 


मां बापू का आशीर्वाद 


भगवान का वरदान


जीवन की सच्चाई 


संग्राम के पल।।


धीरे धीरे बढ़ाता पड़ता जीवन


अर्थ का अथर्व पल।।


सामाजिक अच्छाई, कुटिलता


नीति ,नियत के जाने कितने पल।।


पड़ता ,लिखता ,बढ़ाता जाने कब


कहां खो गया बचपन नोक


झोक अभिमान का वह पल।।


हठ करता जो भी मिल जाता


उसी पल खुशियों का वह पल।।


मा बापू को जाहे जो भी पड़ता


करना मेरा हठ हँसी ठिठोली


खुशियो का पल था रहना।।


किशोर जवानी का पल जिम्मेदारी


जिम्मा का जीवन के संग्राम का सच देखता सिखाता पल।।


संघर्ष, परीक्षा ,परिणाम के पल


आशा और निराशा के पल


जीवसं की सच्चाई का पल पल।।


 


3--प्रेम प्रणय मधुमास बसंत पल


 


 जीवन मे कुछ खुशियो के पल


प्यार यार की आशिकी मोहब्बत के


पल पल।।


कमसिन ,नादा ,भोली ,नाज़ुक


मुस्कान जिंदशी प्राण का


हर पल।।


वचन ,प्रतिज्ञ ,रीति ,प्रीति का


जीवन मे साथ निभाने की


सांसो धड़कन का धक धक का


पल।।


मादकता जीवन मधुवन


कली कचनार का मुरझाना फिर खिल


जाना प्रणय प्रतीक्षा साक्षात ,सपनो


हृदय भाव मकरंद गुंजनकरता पल पल।।


मगनी, रश्म जयमाल सात


जन्मो के बंधन का सतरंगी पल।।


चांद चादनी की परछाई प्रथम


प्रणय का प्रियतमा का पल।।


जीवन माँ बापू से विलग संसार


सांसारिकता का प्रथम कदम पल।।


पल पल चलती जिंदगी का हर पल


खास खासियत का पल।।


 


4---बिछोह विक्षोभ का पल ---              


 


मिलन विरह का पल 


विश्वाश नही था माँ बापू


ना होंगे संग का पल।।


ना जाने कौन सा पल मनहूस


काहू या परम्परा का पल ।।


जीवन मे आने जाने का पल 


पल जिस कोख पैदा पल भर में हुआ


जुदा पल।।


वात्सल्य का आँचल पल भर


में ओझल बापू की गोदी ने आंखे मूंदी


काँहे का सिंघासन चार कंधो


का पल भर का आसन पल।।


क्या अजीब है जीवन 


जिनके कारण है जीवन 


उन्ही काया अस्तित्व को 


आग लगाने का आता है


पल।।


कैसे कोई भुला सकता जीवन


खुशियो गम आंसू प्यार मोहब्बत


 अक्षय अक्षुण का पल पल।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


एस के कपूर "श्री हंस

*विषय ।।बेटी बचायें/बेटी पढ़ाएं*


*रचना शीर्षक।।*


*बेटियों के जरिये ही आतीं* 


*रहमते भगवान की।।*


 


महाभारत चीरहरण हर दिन


है चिता जलती हुई।


हो रही रोज़ मौत इक


बेटी की पलती हुई।।


बच्ची की दुर्दशा देख रोता


है मन मायों का।


चीत्कारों में मिलती आशा


नारी की गलती हुई।।


 


दानवता दानव की अब बस


शामत की बात करो।


कहाँ हो रही चूक बस उस


लानत की बात करो।।


हर किसी को जिम्मेदारी


समाज में लेनी होगी।


सुरक्षा बेटियों की बस इस


बाबत की बात करो।।


 


अच्छा व्यवहार बेटियों से


ही निशानी इंसान की।


इनसे घर शोभा बढ़ती जैसे


परियां आसमान की।।


बेटी को भी दें बेटे जैसा घर


में प्यार और सम्मान।


मानिये कि बेटियों के जरिये


आती रहमते भगवान की।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


एस के कपूर "श्री हंस

*रचना शीर्षक।।भारत बेजोड़ महान*


*है।।विश्व का अभिमान है।।*


 


साड़ी सा बेजोड़ कोई और


लिबास नहीं है।


भारत की संस्कार संस्कृति का


जवाब नहीं है।।


प्रेम अटूट बंधन की गंगा बहती


है भारत में।


मेरे देश में सद्भावनाओं का कोई


हिसाब नहीं है।।


 


पावन बलिदानी धरती है यह पूज्य


महात्मा गांधी की।


शहीद भगत सिंह कमाल बोस कर्म


वीरों की आंधी की।।


विविधता में एकता सूत्र ही विश्व


गुरु भारत का मंत्र।


आचरण की पूजा यहाँ नहीं कीमत


हीरे सोने चांदी की।।


 


बंधुत्व भावना सौहार्द्र संस्कार


संस्कृति भारत की जान हैं।


अतिथि देवो भव मानते कि विदेशी


भी हमारे मेहमान हैं।।


पत्थर को भी पूजते हैं हम भगवान


इक समझ कर।


सम्बंध आदर आशीर्वाद में बसते


भारत के प्राण हैं।।


 


नदी पर्वत झील किले भारत  


 मस्तक के भाल।


बिखरे रंग यहाँ पर प्रकृति के   


पात पात ओ डाल डाल।।


वेद पुराण ज्ञान का सागर अपना


देश भारत महान।


होली दीवाली त्योहारों सजा जैसे


के बिखरे रंग गुलाल।।


 


*रचयिता।।। एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।।*


मोब।।।। 9897071046


                         8218685464


देवानंद साहा "आनंद

प्रातः वन्दन-


 


कोई साथ न दे,साथ अपनी तकदीर तो है।


मन बहलाने के लिए दिल में तस्वीर तो है।


मिल जाये कोई फरिश्ता राह-ए-मंज़िल में;


जो किया कुछ भला उसकी तासीर तो है।।


 


------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


कालिका प्रसाद सेमवाल

*श्री बजरंगबली जी के चरणों में एक फूल चढाना है।*


********************


राम दूत तुम सबके रक्षक हो,


तुम ही तो बल के धाम हो,


हम सब तुमको वंदन करते है,


श्री बजरंगबली जी के चरणों में एक फूल चढ़ाना है।


 


तुम ही प्रेम के सच्चे स्वरूप हो,


तुम्ही दया के सागर हो,


तुम कष्ट हरण नाशक हो,


श्री बजरंगबली जी के चरणों में एक फूल चढ़ाना है।


 


तुम ही सबके रक्षक हो,


जो भी तुम्हारा नाम जपे,


उसकी हर विपदा टली,


श्री बजरंगबली जी के चरणों में एक फूल चढ़ाना है।


 


प्रभु श्रीराम के तुम अति प्रिय हो,


केसरी नंदन सबको सुमति का दान दो,


विद्या विनय का दान दो,


श्री बजरंगबली जी के चरणों में एक फूल चढ़ाना है।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी।।

 ** *धोखा*** 


 


धोखा है खाना नहीं, फिर भी खाते लोग।


वे अक्सर जो बुद्धि का, करें नहीं उपयोग।


करें नहीं उपयोग, कहें हम ख़र्चे कैसे।


हो जाने पर खर्च, न मिलती पैसे जैसे।


कौन उन्हें समझाय, नहीं ये लिट्टी-चोखा।


करें जो बुद्धि खर्च, नहीं वो खाए धोखा।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

बेमौसम बारिश


 


कोनो मेर ये, फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


काकरों तो,घर द्वार ल बोरे


काकरॊ तो,रास्ता ल रोके


जब कड़के,बिजली रानी


मउत बनके, बरसत हे पानी


सब बर हे, हानि च हानि


रात दिन में ह,बोहे रहिथौ


ये दुःख के,ओ छानी परवा ल


घर में तो खाये बर, दाना ह नइहे


कहां ले आही, पइसा ह चरिहा चरिहा


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे, हानि च हानि


घर में पानी,खेत में पानी


तन में पानी,मन में पानी


तरबतर पानी,सरवर पानी


यत्र तत्र सर्वत्र,पानी


फसल ह बरबाद, होवत हे


कइसे चलही,हमर जिनगानी


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


खोंधरा में, चिरई चिरगुन कलेचुप


कापय बेंदरा, नरियावय हुप


अपन पाव पसारे,आदमी


रतिहा म,चैन के नींद सो ही कब


कोनो मेर ये,फुसुर फासर


कोनो मेर, विस्फोटक


झमाझम बरसत हे,पानी


सब बर हे,हानि च हानि


नूतन लाल साहू


डॉ0हरि नाथ मिश्र

* तृतीय चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


पुनि मुनि नारद मुनि सन कहहीं।


नाथ बताउ संत कस जगहीं।।


    काम-क्रोध-मद-लोभ न जाको।


    मोह- बिहीन संत कहु ताको।।


पाप रहित-निरछल-कबि-जोगी।


सत्यनिष्ठ-अनिच्छ-मितभोगी।।।


     बाहर-भीतर एक समाना।


     त्यागी-बोधी जे जग जाना।।


धरम-प्रबीन,धीर-मद हीना।


पद सरोज पूजहि प्रति दीना।।


     सकुचहि बहु निज जानि प्रसंसा।


    थकहि न करि पर गुन अनुसंसा।।


नित देवे पर जन सम्माना।


रुष्ट न होय पाइ अपमाना।।


      ब्रत-तप-जप अरु गुरु-पद-प्रेमी।


       प्रमुदित मन अरु संजम-नेमी।।


छिमा-दया अरु प्रीति-मिताई।


मानै सकल जगत जनु भाई।।


      ग्यानी-बिनई, गुनी-बिबेकी।


       मान-दंभ-मद बिनु बड़ नेकी।।


ऋषि-मुनि जे सज्जन अरु नामी।


भूलि न होय कुमारग-गामी ।।


      मरम बुझै जे बेद-पुराना।


        मम लीला जे करै बखाना।।


अस नर होय जगत महँ संता।


सुचि मन पूजै नित भगवंता।।


दोहा-अस बखान प्रभु-मुख सुनत,चरन छुए मुनि धाहिं।


        प्रभु-पद-पंकज-रज लिए,ब्रह्मपुरी पुनि जाहिं।।


        कहि न सकहिं अस चरित जग,सारद-सेष-महेस।


        दीनबंधु प्रभु राम जस,निज मुख कहे बिसेष ।।


        ते नर पावहिं दृढ़ भगति,करहिं राम जे प्रेम।


        पावन मन नित प्रभु भजहिं,बिनु बिराग जप-नेम।।


        राम-भजन सतसंग तें, मनुज होय उद्धार।


        सुंदर तन जानउ ठगिनि, होय न बेड़ा पार।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


डा.नीलम

*संगीत*


 


शब्द मेरे बहा कर


बरसती रही बदलियाँ


बना के अक्षरों को


नाव कागज की


बहती रही नदियां


 


गीतों को बिन साज


गुनगुनाने लगी पवनियां


गजलों में प्रखर हो


दमकने लगी दामिनियां


 


धरा गगन के बीच


मुक्तक मोती से सजाने 


लगी बूँदनियां


नाद डमरू से बजाने 


लगी बिजलियाँ


 


क्षणिक कूक-सी क्षणिकाएं


रह-रह कूक रही कोयलिया


हाइकु-सी हर सूं महक रही


बगियन की कलियाँ


 


छमछम छंद की छनक 


छनकार रहीं बूँद बनी पैजनियां


अलंकार -सी धड़क रही


प्रकृति की रागिनियां।


 


        डा.नीलम


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ दीपा संजय दीप


डॉ दीपा गुप्ता(डॉ दीपा संजय दीप)


जन्मतिथि-22-7-66बरेली उ प्र


पिता का नाम-श्री राजकुमार गुप्ता


माता का नाम-श्रीमती शकुंतला गुप्ता


पति का नाम-श्री संजय कुमार गुप्ता


पता-57,ब्रजलोक कालोनी,प्रेम नगर,बरेली,उ.प्र.मो०न०-8273974532,8630236328


E mail-sanjaydeepa2822@


gmail.com


शिक्षा-स्नातकोत्तर,इंटीरियर डिजाइनर, कम्प्यूटर कोर्स एवं रेकी लेवल2सम्मान


परिचय-किशोरावस्था से ही लेखन में रुझान,भाषण एवं वाद विवाद प्र०यो० एवं कवि सम्मेलनों में सहभागिता,


आकाशवाणी पर काव्य पाठ अमर उजाला के ०काव्या कालम में ०रेल हादसा एवं ०जय गङ्गे  सहित लगभग350 कविताओं का प्रकाशन।अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ०प्रयास ०तितली ०वर्तमान अंकुर ०जीवन प्रकाशन०


वैदिक राष्ट्र ०सवेरा मासिक पत्रिका ०गजल गुंजन ०नारी का अस्तित्व० लघुकथा संगम ०विविध संवाद०अमर उजाला आदि विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन ।


*ट्रू मीडिया न्यूज पोर्टल *उत्कर्ष ज्योति पोर्टल*युवा प्रवर्तक न्यूज पोर्टल*बिहार टाइम्स न्यूज पोर्टल ,


हिंदी भाषा डॉट कॉम उत्कर्ष ज्योति न्यूज पोर्टल आदि विभिन्न न्यूज पोर्टल पर अनेकानेक रचनाएं प्रकाशित।


यू ट्यूब पर "जय गङ्गे" "निर्जन पथ" "शिवाराधना" "महर्षि दयानंद की डॉक्यूमेंट्री"शेरों पे सवार","धोनी"सहित लगभग अनेक वीडियो का प्रसारण।


०विश्व रचना मंच-1-हिंदी सेवा सम्मान 


०मुक्तकलोक द्वारा 1-शब्द श्री सम्मान,2-मु०लो०भूषण सम्मान,मुक्तक लोक गीत रत्न सम्मान,वर्तमान अंकुर द्वारा कथा गौरव सम्मान, वजम ए हिन्द सम्मान


०सा०सं०संस्थान द्वारा-1-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,2-श्रेष्ठ टिपण्णीकार सम्मान ,3-भक्ति गौरव सम्मान,4-हिंद वीरांगना सम्मान,हनुमान जयंती पर -भक्तराज सम्मान,5-अन्नपूर्णा सम्मान,


6-सा० अ० स०,7-दोहा साधक स० ,8-गी०साधक स०,9-साहित्य कदंब सम्मान,10-साहित्य कुंदन सम्मान,11-शिवामृत सम्मान12-नमामि देवी अंबिके सम्मान,13-विद्या0 वाचस्पति(मानद उपाधि)


०नारी सु० मंच द्वारा -1श्रे०रचनाकार


०सम्मान2-श्रे० टि०सम्मान 


०गहमर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर -साहित्य सरोज शिखर सम्मान 


०काव्य रंगोली संस्थान द्वारा- साहित्य


 भूषण सम्मान 


 ०शहीद तिलका मांझी की स्मृति में दिया जाने वाला - तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान आदि।


 


कविताओं के साथ-साथ गीत ,गज़ल, दोहे, मुक्तक्त,गीतिका, छंद,हाइकु,वर्ण पिरामिड,तांका विद्या, सायली छंद,लघुकथा आदि में भी नियमित लेखन।वैदिक राष्ट्र सवेरा मासिक पत्रिका गजल संग्रह नारी का अस्तित्व


तीन एकल संग्रह बालदीप-भाग-1,भाग,भाग-2भाग-3  


साझा संग्रह "रिश्तों के अंकुर" 


"पितृ विशेषांक" "काव्य पुंज" "स्त्री एक सोच" "उड़ान शब्दों की" "लघुकथा संगम""सम्मान समारोह स्मारिका" "उड़ान परिंदो की" "गीत संकलन" एवं "नई उड़ान नया आसमान" "नदी चैतन्य हिन्द धन्य" "पुलवामा शहीद सम्मान भावंजिली" "सुनो तुम मुझसे वादा करो" "हिंदी हैं हम"।


इसके अतिरिक्त शीघ्र ही दो खंड काव्य शतक निकालने की योजना है।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश 


 


 


गीत


 


गीत प्रीत के गाता चल, सबको राह दिखाता चल।


सब पंछी हैं एक डाल के ,सबका मन बहलाता चल।


 


गहन अंधेरा कितना भी हो,सूर्योदय निश्चित होगा,


आंधी एवं तूफानों से ,स्वयं को सदा बचाता चल।


 


छोड़ हमें जो चले गए ,मत अब उनका शोक मना,


नई उम्मीदों की चादर से,अपने स्वप्न सजाता चल।


 


बीती बातें बीती रातें,अब उनसे क्या है हासिल,


मरू भूमि में पुष्प प्रेम के, निसि दिन नवल खिलाता चल।


 


प्रतिस्पर्धा न किसी से तेरी, सारा जग तेरा अपना,


मीठी वाणी से तू अपनी सब पर प्यार लुटाता चल।


 


करतल में प्रकाश लिए ,ध्वनि मंत्र की साथ लिए,


पावन मन संग रवि रश्मि में भोर सांझ नहलाता चल।


 


विजय मिलेगी निश्चित एक दिन मत घबराना हालातों से,


छल बल त्याग नेक राह पर स्वयं को मनुज लगाता चल।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली ,उत्तर प्रदेश


 


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वंदेमातरम


 


वंदेमातरम.... पुकारती माँ भारती


विगुल अखण्ड हिंद का  बजा रही माँ भारती


 


बढ़े चलो बढ़े चलो रुकें नहीं बढ़े कदम


रणबाँकुरे रण में चले चरण माँ पखारती


 


वंदेमातरम ..... पुकारती माँ भारती


 


दिशा दिगंत गूँज रहे गगन को हैं चूम रहे


त्रिलोकी का सिंहासन हिला शत्रु को  ललकारती


 


वंदेमातरम..... पुकारती माँ भारती


 


सूर्य सा प्रचण्ड तेज धैर्यता वसुंधरा सम


भाल उच्च तिलक दिव्य श्रद्धा सुमन  वारती


 


वंदेमातरम ....... पुकारती माँ भारती


 


बन काल आज टूट पड़ो दुंदभि बजा रही


सँहार कर माँ शत्रु का प्रलय की शाल डालती


 


वंदेमातरम....... पुकारती माँ भारती


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली उत्तर प्रदेश 


 


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शहादत


 


तिरंगे में लिपटा जब पिता का शव आया 


बेटे ने माँ को शून्य में निहारता हुआ पाया


 


नैनों से बहते अश्रु धो रहे थे उसके मुख को


कौन था ऐसा जो बांट सकता था उसके दुख को


 


कच्ची मिट्टी सा बालक पल में बड़ा हो गया था


नौ साल की उम्र में ही पच्चीस  सा हो गया था


 


अंदर जाकर माँ के सीने से लिपट कर ये बोला


नहीं हूँ मैं अब छोटा न समझ माँ मुझे भोला


 


संभाल लूँगा परिवार मैं शहीद पिता का बेटा हूँ


रगों में उनका ही लहु है उनकी गोदी में लेटा हूँ


 


पूरे देश  की रक्षा का भार लेने में जब वे थे


समर्थ


तो परिवार की रक्षा का भार उठाने में कैसे मैं असमर्थ??


 


माना कि कंधे अभी कमजोर हैं पर  इरादे हैं मजबूत


नहीं हो निराश माँ क्या देना बाकी है अब भी कोई सबूत??


 


उम्मीद पर दुनिया कायम है और मैं ही हूँ तेरी उम्मीद


अब से मैं ही तेरी होली,दीवाली और मैं ही हूँ तेरी ईद


 


देश के लिए उनकी शहादत को बेकार नहीं जाने दो माँ


हंस कर दो विदाई उनको खुद को आप संभालो माँ


 


तिरंगे की शान को जिंदा रखना है आज हम सबको


पत्थर सीने पर रखकर यह कसम उठाना हम सबको


 


यही हमारी उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी


भारत माता के लिए क़बूल उनकी शहादत होगी


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश


 


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वीर 


 


बढ़ते जाते   बढ़ते जाते,


  कठिन राह पर चलते हैं।


    वीर कभी हिम्मत ना हारें,


        आगे-आगे    बढ़ते हैं।।


 


भाग्य अपना खुद ये लिखते


    विश्वास  कर्म पर ही  करते


        बैर ना किसी  से  इनका


          सत्य  के  लिए  लड़ते हैं


 


आंधी पानी बिजली ओला,


   रोक सके  ना राह कभी।


     तूफानों  में  पलने  वाले,


       तूफानों   में   बढ़ते   हैं।।


 


शीश नवाती दुनिया इनको,


     पूजित   होते    देवों   से।


     आत्मा की शक्ति के बल पर,


        कुंदन  वसुधा  को  करते हैं।।


 


ज्ञान कि ज्योति जले ह्रदय में,


   तेज सकल जग में करते।


     फूल जान पथ के कंटक को,


        मंज़िल   अपनी   चढ़ते   हैं।।


 


जीवन बना अबूझ पहेली, 


  साहस  ना  फिर भी छोड़ें।


     सीप  ढूंढने  सागर  में  ये,


        भीतर  उतरा   करते   हैं।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली , उत्तर प्रदेश


 


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गजल


 


 


गुमां किस बात का मानव नहीं कुछ भी तो तेरा है।


सभी कुछ छोड़ कर जाना कि चिड़िया रैन बसेरा है।


 


सजाए तन पर कपड़े हैं नहीं तेरे रहेंगे वो,


यहीं छोड़ेगा काया भी कि यह मिट्टी का ढेरा है।


 


अाई दौलत भूल बैठा शिष्टता और सभ्यता भी,


यह चलती फिरती माया है नहीं करती बसेरा है।


 


किया संग्रह जो दौलत का यहीं रहनी सभी तेरी,


किया जो कर्म जीवन में वही तेरा घनेरा है।


 


चलेगा ना बहाना भी तेरा कोई अरे मानव,


करे फिर क्यों छलावा मन कि पापों ने ही घेरा है।


 


भ्रमित माया की नगरी में विचरता फिर रहा है मन,


छटेगी धुंध भी इक दिन कि होगा नव सबेरा है।


 


डॉ दीपा संजय दीप


बरेली ,उत्तर प्रदेश


 


 


सुषमा मोहन पांडेय

नमन मंच


राष्ट्रीय एकता पर मेरा गीत


 


देश हो अखण्ड मेरा एकता चाहिए


जाति चाहे भिन्न हो, न भिन्नता चाहिए


बोलियां अनेक हैं पर एक बोली प्रेम की


रंक हो या राजा समान भाव चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


गांव गांव शहर शहर देश का विकास हो


हम भी बढ़े तुम भी बढोऔर सबका साथ हो


कोई न भूखा रहे धरा पर, ऐसा देश चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए


 


देश की अखंडता न तार तार करना


साम्प्रदायिक विचारों का बहिष्कार करना


मिलजुल कर रहना है,प्यार सभी में भरना


राष्ट्रीय एकता की पहचान होनी चाहिए


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


हम सब देश के बच्चे हैं, एक ही माँ के जन्मे है


फिर मजहब का भेद ये कैसा,हमें दूर ये करने हैं


यही धारणा सब बच्चों के अंदर होनी चाहिए।


देश हो अखण्ड मेरा, एकता चाहिए।


 


सुषमा मोहन पांडेय


सीतापुर उत्तर प्रदेश


डॉ. रामबली मिश्र

सारांश


 


जीवन का सारांश यही है,


चलते रहना प्रेम पंथ पर।


 


अत्युत्तम वाक्यांश यही है,


रखना श्रद्धा सदा संत पर।


 


सर्वोत्तम पद्यांश यही है,


नाज करो गीता-मानस पर ।


 


परम अमर दिव्यांश यही है,


अटल प्रेम उर में धारण कर।


 


अति मोहक ज्ञानांश यही है,


आत्म ज्ञान की सदा राह धर।


 


सर्व सुलभ सत्यांश यही है,


जीना सीखो सत्य बोल कर।


 


मनमोहक वेदांश यही है।


निराकार ब्रह्न दर्शन कर।


*********************


मैं फालतू हूँ


 


मैं भी कितना फालतू हूँ,


अनायास अपेक्षा में जीता हूँ


खुद को तो समझ नहीं पाता


संसार को समझने की इच्छा करता हूँ।


 


मैं निर्लज्ज हूँ


बेहया, बेशर्म हूँ


समय गवा कर


कुछ नहीं पाता हूँ।


 


संसार को भूल जाना भी तो


मुमकिन नहीं


पर भुला देना ही ठीक है


इंतजार का क्या मतलब ?


खुद को गले लगाये रहना ही ठीक है।


 


आत्म में ही जीना सीखें


लोक में आत्म को ही देखें


आत्म ब्राह्मण है


इसमें समा जाना ही सीखें।


 


निमंत्रण आत्म को ही दें


आत्म का ही इंतजार करें


आत्म धोखेबाज नहीं है


आत्म से ही बोलें।


 


बाहर तो माया है


कपटी छाया है


दूर रहो


अंतस में ही आत्म की काया है।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


काव्यकुल संस्थान अर्द्धशती काव्योत्सव

का पावन मंच और और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय का जन्मदिवस का अवसर तो परिवार के सभी वैश्विक कवि मित्रों द्वारा आयोजन *अर्द्धशती काव्योत्सव* भी विशेष रहा।


मण्डला मध्यप्रदेश से अनेकों किताबों के प्रणेता डॉ(प्रो) शरद नारायण खरे की अध्यक्षता में सम्पन्न इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि टोकियो से जापान हिंदी कल्चरल सेंटर की अध्यक्ष डॉ रमा शर्मा विशिष्ट अतिथि भूमिका में अबुधावी से ललिता मिश्रा, तंजानिया से सी ए अजय गोयल, अमेरिका से प्राची चतुर्वेदी सहित देश के जाने माने कवि कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर वाणी से कार्यक्रम को शिखर तक पहुँचाया।


दिल्ली से कार्यक्रम के आयोजक रजनीश स्वच्छंद, संयोजक कुसुमलता कुसुम के इस अनूठे आयोजन में ऑनलाइन4 घण्टे बही काव्य रस धारा।


रांची से सुमधुर कण्ठ की धनी डॉ रजनी शर्मा चन्दा की वाणी वन्दना से कवि सम्मेलन हुआ।


संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय के 50वें जन्मदिन पर आयोजित इस कार्यक्रम में 25 कवियों ने अपनी प्रस्तुति देकर भाव विभोर कर दिया।


अबुधावी से ललिता मिश्रा ने जीवन के विभिन्न प्रसंगों को लेकर कहा


 आज पचासवे जन्मदिवस पर 


मेरे कुछ उदगार यहाँ


स्वीकार करें ये पुष्प सुगंधित 


मान हमारा बढ़ जाएगा ।


संस्थान के राष्ट्रीय समीक्षक नोयडा से सोमदत्त शर्मा सोम की भावाव्यक्ति ने कार्यक्रम को गरिमामय बना दिया-


हे विराट-व्यक्तित्व! हे देव-पुरुष! हे नवल-भागीरथ!!                   


छूकर व्योम तुमने पूर्ण किये सकल साहित्य -मनोरथ!!


काव्य कुल संस्थान में स्वर्ग से,ले आये ज्ञान-गंगा !                 


महाभाग! परमार्थी बनकर किया सभी का मन चंगा।


कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ शरद नारायण खरे ने अपने चिर परिचित अंदाज में मुक्तकों के माध्यम से अनुपम काव्य पाठ किया जो काफी सराहा गया।


अमेठी से प्रधानाचार्य डॉ राघवेन्द्र पाण्डेय द्वारा सृजित इन पंक्तियों को बहुत वाहवाही मिली


कीर्ति फैले दशों दिक् में आलोक-सी सूर्य,चंदा,सितारों की हो भव्यता;


घर में सौंदर्य सारे मिलें आपको 


प्रिय - स्वजन में समाई रहे नव्यता।


आजमगढ़ से कवि राजेश मिश्र नवोदयी की इन पंक्तियों ने बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया-


  हम सबके प्यारे हैं दुनिया में न्यारे हैं... 


हिंदी साहित्य के सच में जगमग ध्रुव तारे हैं... 


जिनकी छत्रछाया में हम कवि नवल कविता सुनाएं.... 


वाराणसी से विद्वान कवि डॉ ब्रजेंन्द नारायण द्विवेदी शैलेश के अनुपम गीतों ने झूमने पर मजबूर कर दिया 


अति उदार हैं ह्रदय के,ये डॉक्टर राजीव।


मुझ जैसे पाषाण से,रखते प्रीत अतीव।


इस समारोह में दिल्ली से ओंकार नाथ त्रिपाठी ने नयनों पर अदभुत गीत सुनाया।


अयोध्या से डॉ हरिनाथ मिश्र ने प्रेमगीत सुनाकर मोहित कर दिया। झांसी से कवयित्री कुंती जी ने आत्म मोक्ष की दार्शनिक कविता सुनाई।


नोयडा से नेहा शर्मा ने इतिहास को संकेतों से व्यक्त किया


 


जिसका घोड़ा है इतिहास के पन्नों में, उसका नाम मिटाया क्यूं?


शौर्य का बखान तो किया, किन्तु उस वो नाम ना मिला,


निर्भीकता का तांडव करता, दर्ज उसे सम्मान ना मिला।


जिसकी तलवार की धार से हुए भयभीत, उसे यूं दफनाया क्यूं? 


 


अर्द्धशती काव्योत्सव में राजेश सिंह श्रेयस , साधना मिश्रा लखनऊ, अहमदाबाद से नलिनी शर्मा कृष्णा, छत्तीसगढ़ से संजय बहिदार, दिल्ली से यशपाल सिंह चौहान , मण्डला मध्यप्रदेश से डॉ नीलम खरे, दिल्ली से कुसुमलता कुसुम, कुमार रोहित रोज, नालन्दा से रजनीश स्वछंद, गाजियाबाद से गार्गी कौशिक, आदि कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाकर कार्यक्रम को शिखर तक पहुंचाया।


कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन संस्था के अध्यक्ष डॉ राजीव पाण्डेय ने किया।


प्रस्तुति


डॉ राजीव पाण्डेय


राष्ट्रीय अध्यक्ष


काव्यकुल संस्थान(पंजी)


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नमिता गुप्ता "मनसी"

आत्म परिचय -


नाम - नमिता गुप्ता


साहित्यिक नाम - नमिता गुप्ता "मनसी"


शिक्षा - एम.ए. अंग्रेजी


 


साहित्यिक परिचय - "मुस्कराते पन्नें" व "दास्तान-ए-दोस्ती" में सह-लेखक हूं । "तारे जमीं पर" , "उर्वशी" "अक्षरवार्ता" "हस्ताक्षर" "द्रष्टिपात" " साहित्य त्रिवेणी" व "मेरी सहेली" में कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं । 


हाल ही में USA में भारतीय समूह में प्रचलित हिंदी साप्ताहिक अखबार "हम हिंदुस्तानी" में कविताएं प्रकाशित हुई हैं ‌।


मेरठ के 'दैनिक युवा रिपोर्टर" व "विजय दर्पण" अखबार में रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं ।


 


( 1 )


ईश्वर की खोज जारी है..


 


मनमुटाव तो शुरुआत से ही रहा..


इसीलिए खींच दी गई


लक्ष्मण-रेखाएं ,


ईश्वर को ढूंढा गया


उससे मिन्नतें-मनुहार की ,


..फैंसला तब भी न हुआ !!


 


तब..


धर्मों को गढ़ा


जातियों को जन्म दिया


परम्पराओं की दुहाई दी


.. बंटवारा किया गया सभ्यताओं का भी


और


मनुष्यता कटघरे में ही रही !!


 


आरोप-प्रत्यारोप किए..


ईश्वर को दोषी करार दिया गया


कभी प्रश्न उठाए गए


उसके होने-न होने पर भी..


इसीलिए


स्वयं को भी ईश्वर घोषित किया..


..समस्याएं जस की तस !!


 


सुनों..


ईश्वर की खोज जारी है !!


 


                 ( 2 )


सुनों कवि..


 


सुनों कवि..


कर सकते हो तो करो


कि रास्ता दिखाओ


कागज़ों में दुबकी सभ्यताओं को ,


परिचित कराओ युवा पीढ़ी को


पुरातत्व होने के मायने ,


सिखाओ उन्हें भी कि


बुरा नहीं है प्राचीन होना ,


बुरा है, प्राचीन को सिर्फ प्राचीन ही समझना


हमेशा ,


उनके समक्ष प्रस्तुत करो


अधमिटे दस्तावेज


जिनका पूरा किया जाना बाकी है अभी !!


 


सुनों कवि..


कर सकते हो तो करो आविष्कार


ऐसी आग का


कि जिसका धुंआ कभी जहर न घोले


हवाओं में !!


 


सुनों कवि..


यदि पुनर्जीवित कर सकते हो 


पुरानी सभ्यताओं को 


तो इसकी खबर मुझे जरूर देना ,


देखना चाहूंगी कि 


कहां तक पहुंचाएगा मनुष्य को


ये पहिए का आविष्कार !!


 


सुनों कवि..


पढ़ सकते हो तो जरूर पढ़ना


वो दीवारों में जड़ी हुई प्रेम कहानियां ,


"सिर्फ देह का स्पर्श नहीं


मन को छू जाना होता है प्रेम "..


..हो सके तो खंगालकर लाना


सारी कविताएं


आत्मिक-प्रेम की !!


    


 


                 ( 3 )


 


 मैं इसलिए भी लिखती हूं..


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


मुझे


कंक्रीट कल्चर से वशीभूत


भूल-भुलैया जैसे 


इस शहर में


हरे जंगल उगाना


नदियां तलाशना


और..


धूप के लिए जगह बनाना अच्छा लगता है !!


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


थकी-हारी रातों में


जब तुम लिखना चाहो कोई प्रेम-पत्र ,


तब ये सारे नक्षत्र, चांद, तारे..


चुपचाप


तुम्हारे डाकिए बन जाएं


और..


मैं तलाशती रहूं


एक खत अपने लिए भी !!


 


मैं इसलिए भी लिखती हूं कि..


मैं गढ़ सकूं कभी न कभी


ऐसा कोई किरदार 


जो कुछ करे या न करे


पर बिना शर्त


कम से कम मुझे सुने तो सही !!


 


 


              ( 4 )


 


वो पीली सोच वाली कविता..


 


अभी तलाश रही हूं कुछ पीले शब्द


कि एक कविता लिखूं


पीली सी ,


ठीक उस पीली सोच वाली लड़की के जैसी


भीगती हुई


पीली धूप में तर-बतर ,


बटोरती हुई सपनों में


गिरे पीले कनेर 


जो नहीं जानती फूल तोड़ना ,


घंटों बतियाती है जो चुपचाप


पीले अमलतास से ,


निहारा करती है रोज


रिश्तों के पीले सूरजमुखी !!


 


उसने देखा


एक पीला पत्ता


बनाता हुआ जगह किसी नये हरे के लिए ,


एक पीली चोंच वाली चिड़िया आई


ले गई पीला पत्ता


घोंसले के लिए !!


 


..इस तरह सहेज रही है वो 


अनगिनत पीले बसंत


आगामी पतझड़ के लिए


ताकि खिलें रहें


कनेर.. अमलतास.. सूरजमुखी..


और चहकती रहें चिड़ियां


पीली धूप में !!


 


 


              ( 5 )


 


हर प्रलय में...


 


आज के हालातों में


हर कोई "बचा" रहा है कुछ न कुछ ,


पर, नहीं सोचा जा रहा है


"प्रेम" के लिए 


कहीं भी !!


 


हां, शायद 


"उस प्रलय" में भी


नाव में ही बचा रह गया था "कुछ"


कुछ संस्कृति..


कुछ सभ्यताएं..


और


.. थोड़ा सा आदमी !!


 


प्रेम तब भी नहीं था


आज भी नहीं है ,


..वही "छूटता" है हर बार


हर प्रलय में ,


पता नहीं क्यों !!


 



मदन मोहन शर्मा सजल

मनहरण घनाक्षरी


01- सपनों का सौदागर, आया मेरे दिल गली


प्यार की आवाज लगा, मन मुस्कराता है।


पापी पाप भर लाया, छल करने को आया


धीमे-धीमे डग भरे, आंखें मटकाता है।


कभी देखे इत उत, जैसे है सुहानी रुत


जुबां प्रेम रस घोल, धोखे से बुलाता है।


हौले से पकड़ हाथ, हिय से लगाया माथ


प्रीत भर चूमा भाल, यादों में सताता है।


 


02- बाहुपाश कस दिया, नशा तन मन छाया


सुध बुध खोई सारी, मदन जगाता है।


वादा करो साथ रहें, हर दुःख मिल सहें


जनमों का नाता रहे, ईश को मनाता है।


भोर की सुहानी ताल, टूटा सपनों का जाल


चला गया परदेशी, सपनें सजाता है।


मन हुआ पर वश, नहीं रहा कुछ वश


बैरी प्रीत भर चला, कुछ न सुहाता है।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा सजल


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