दिनांकः १०.१०.२०२०
दिवसः शनिवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
शीर्षकः ,🌅नयी भोर नव आश मन🇮🇳
नई भोर नव आश मन , नव अरुणिम आकाश।
मिटे मनुज मन द्वेष तम , मधुरिम प्रीति प्रकाश।।१।।
मार काट व्यभिचार चहुँ , जाति धर्म का खेल।
फँसी सियासी दाँव में , हुई मीडिया फ़ेल।।२।।
अनुशासन की नित कमी , लोभ घृणा उत्थान।
प्रतीकार में जल रहा , शैतानी हैवान।।३।।
मिटी आज सम्वेदना , दया धर्म आचार।
कहाँ त्याग परमार्थ जग , पाएँ करुणाधार।।४।।
सत्ता के मद मोह में , अनाचार सरकार।
मार रही है साधु को , पाती जन धिक्कार।।५।।
बँटी हुई है मीडिया , लोकतंत्र आवाज़।
बेच आज निजअस्मिता,फँस लालच बिन लाज।।६।।
कौन दिखाए सत्य को , जगाए जनता कौन।
जाति धर्म फँस मीडिया ,चतुर्थ आँख जब मौन।।७।।
अद्भुत भारत अवदशा , अद्भुत जनता देश।
तुली तोड़ने देश को , कोप लोभ खल वेश।।८।।
नश्वर तन है जानता , नश्वर भौतिक साज।
फिर भी पापी जग मनुज ,चाहत धन सरताज।।९।।
स्वार्थ पूर्ति में देश को , तोड़ रहा इन्सान।
रिश्ते नाते सब भुले , देश धर्म सम्मान।।१०।।
आहत है माँ भारती ,लज्ज़ित है निज जात।
पा कुपूत चिर हरण निज , अश्रु नैन पछतात।।११।।
लज्जित हैं पूर्वज वतन , देख वतन गद्दार।
पछताती कुर्बानियाँ , भारतार्थ उद्धार।।१२।।
कामुक लोभी कपट जन , देश द्रोह नासूर।
विध्वंसक ये देश के , दुष्कर्मी नित क्रूर।।१३।।
आवश्यक जन जागरण , दर्शन नव पुरुषार्थ।
नैतिक शिक्षा हो पुनः, भरें भाव परमार्थ।।१४।।
त्याग शील मानव हृदय , दें बचपन उपदेश।
धर्म कर्म सद्ज्ञान दें , भारतीय परिवेश।।१५।।
उपकारी अन्तःकरण , राष्ट्र भक्ति मन प्रीति।
राष्ट्र प्रगति हो निज प्रगति , हो शिक्षा नवनीति।।१६।।
समरसता सद्भाव मन , बचपन में दें पाठ।
मानवीय अनमोल गुण , संस्कार दें गाँठ ।।१७।।
बचपन जब नैतिक सबल, तरुण बने मजबूत।
तब भारत सुख शान्ति हो , युवा देश हों दूत।।१८।।
इन्द्रधनुष सतरंग बन , खिले प्रगति अरुणाभ।
खुशियाँ महकेँ कुसुम बन,सुखद शान्ति नीलाभ।।१९।।
कवि निकुंज दोहावली , माँग ईश वरदान।
मति विवेक परहित सदय , बने मनुज इन्सान।।२०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली