डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-8


 


देखि राम पुनि बाली बोला।


सुफल जनम मम कह मुँह खोला।।


    कवन पाप अस भयो हमारा।


     जेहिं तें प्रभु बस हमहीं मारा।।


सुनु बाली तव बड़ अपराधू।


तुम्ह बहु सठ अरु कुमत-असाधू।।


     तनया-बहिन,अनुज-भामिनिहीं।


     निज सुत-बधू कुदृष्टिहिं तकिहीं।।


उनहीं बधे पाप नहिं होवहि।


इन्हकर बध करि जग नर सोहहि।।


      समुझि सके नहिं नारि-सिखावन।


      नहिं लखि सके प्रबल भुज पावन।।


होइ उन्मत्त दर्प-अभिमाना।


चाहे हरन अनुज कै प्राना।।


    निज प्रसाद बाली कह देवहु।


    प्रभु निज सरन मोंहि अब लेवहु।।


राम परसि बाली कै सीषा।


दीन्ह प्रान-तन अचल असीषा।।


    पा असीष अस बाली बोला।


    कछु नहिं अरथ प्रान अरु चोला।।


बड़-बड़ ऋषि-मुनि,दिग्गज संता।


कहि नहिं सके 'राम' मुख अंता।।


    प्रभु-प्रताप-बल कासी-संकर।


    करै अमर जग-जीव निरंतर।।


ई बड़ भागि मोर प्रभु मिलहीं।


अस सुजोग पुनि होय न जनहीं।।


     नेति-नेति कहि सभ श्रुति गावैं।


     जासु पार नहिं ऋषि-मुनि पावैं।।


पाइ तोहिं प्रभु प्रान न राखब।


सुर-तरु तजि बबूर नहिं पालब।।


दोहा-देहु मोंहि प्रभु एक बर, रहहुँ चरन तव दास।


        अंगद मम सुत दे सरन,रखहु सदा निज पास।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


 


दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-4


अस कहि नारद कीन्ह पयाना।


नर नारायन आश्रम जाना ।।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।


     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।


तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।


जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।


    नारद रहे किसुन कै भक्ता।


    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।


जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।


खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।


     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।


निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।


बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।


      रसरी सहित गए वहि पारा।


       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।


रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।


उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।


     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।


     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।


प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।


तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।


दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।


        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


नूतन लाल साहू

सांच को आंच नहीं प्यारे


 


आता है सबका शुभ समय


फिर काहे को रोता है


लिख के रख ले, एक दिन


काम तुम्हारा,होगा


समझ न पाया,कोई भी


तकदीरो का,राज


भक्त प्रहलाद सा,अटल विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


अगर कुछ,बुरा भी हो जाये


तो खो मत देना, होश


हरि की इच्छा समझकर


कर लेना,मन में संतोष


बिगड़ी बनाने वाला,ऊपर वाला है


एकाध नहीं हो पाया,तो


क्यों शोर,मचाता है


राजा हरिश्चन्द्र जैसा,दृढ़ विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


कितना भी जालिम हो जाये


कुदरत का कानून


चाहे दुश्मन,अपनी उम्र भर


करता रहे,कुछ भी उपाय


हानि लाभ,जीवन मरण


यश अपयश,विधि के हाथ


पसीने की बूंदें,देती हैं आह्लाद


सांच को आंच,नहीं प्यारे


प्रारब्धों का योगफल और


कई जन्मों के कर्मफल से


बनता है,मनुष्य का भाग्य


दोष देखना,दूसरो का


बंद कीजिये, आप


कुदरत नित देती नहीं है


दुःख सुख की सौगात


जो देता है ईश्वर,उस पर रख संतोष


सांच को आंच, नहीं प्यारे


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

।बेटी बचायें/बेटी पढ़ाएं*


*रचना शीर्षक।।*


*बेटियों के जरिये ही आतीं* 


*रहमते भगवान की।।*


महाभारत चीरहरण हर दिन


है चिता जलती हुई।


हो रही रोज़ मौत इक


बेटी की पलती हुई।।


बच्ची की दुर्दशा देख रोता


है मन मायों का।


चीत्कारों में मिलती आशा


नारी की गलती हुई।।


 


दानवता दानव की अब बस


शामत की बात करो।


कहाँ हो रही चूक बस उस


लानत की बात करो।।


हर किसी को जिम्मेदारी


समाज में लेनी होगी।


सुरक्षा बेटियों की बस इस


बाबत की बात करो।।


 


अच्छा व्यवहार बेटियों से


ही निशानी इंसान की।


इनसे घर शोभा बढ़ती जैसे


परियां आसमान की।।


बेटी को भी दें बेटे जैसा घर


में प्यार और सम्मान।


मानिये कि बेटियों के जरिये


आती रहमते भगवान की।।


 


खुशियाँ जमाने भर की संग


वह बटोर लाती है।


खुशनसीब हैं वो लोग जिनके


घर बेटी आती है।।


सृष्टि की रचनाकार ईश्वर का


प्रतिरूप हैं बेटियाँ।


सुख दुख में बेटों से भी बड़ा


काम बेटियाँ कर जाती हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


 


फिर बन जाता है स्वर्ग वहीं*


*(हाइकु)*


1


न्याय प्रियता


यही तो स्वर्ग देश


मन चाहता


2


करुणा वास


वही स्थान स्वर्ग है


दया निवास


3


सत्य की जय


बन जाता स्वर्ग है


नहीं हो भय


4


संवेदना हो


होता स्वर्ग का वास


जहाँ भाव हो


5


सुंदर सोच


क्रोध नहीं तो स्वर्ग


नहीं हो रोष


6


दानशीलता


उपकार स्वर्ग है


नम्र शीलता


7


आत्म चिंतन


बन जाता स्वर्ग वो


आत्म मनन


8


निर्मल मन


यही तो स्वर्ग बस


स्वस्थ हो तन


9


मानव प्रेम


स्वर्ग बसता वहीं


रहें सप्रेम


10


सहनशील


धैर्य से बने स्वर्ग


बनो सुशील


11


प्यार करुणा


स्वर्ग के दो कारक


घृणा हरणा


12


माँ का आँचल


स्वर्ग सी गोद माँ की


स्नेह आँचल


13


आत्म सौंदर्य


भीतर सुंदरता


मन सौंदर्य


14


पवित्र मन


स्वर्ग समान बोध


स्वच्छ हो तन


15


मधुर भाव


वहीं बनता स्वर्ग


सबमें चाव


16


शिष्टाचार हो


स्वर्ग के दो कारक


सदाचार हो


17


सहानुभूति


स्वर्ग सी अनुभूति


कल्याणी नीति


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*'"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


विनय साग़र जायसवाल

गीत--


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं


 


तेरे नयनों में मचल रही, मेरे जीवन की अभिलाषा 


कुछ और निकट आ जाओ तो,बदले सपनों की परिभाषा 


है तप्त बदन हैं तृषित अधर,कबसे है यह तन मन प्यासा ।।


तुम प्रेमनगर आ कर देखो ,महके-महके गलियारे हैं ।।


कंचन काया-----


 


बरसा दो प्रेम सलिल आकर ,इस जलते नंदन कानन में


अंतस स्वर अब तक प्यासे हैं ,मेघों से छाये सावन में 


कितना उत्पात मचाती हैं ,तेरी छवियाँ उर-आँगन में 


तुम राग प्रणय का गाओ तो ,हँसते-खिलते उजियारे हैं ।।


कंचन काया -----


 


तुम साँझ-सवेरे दर्पण में ,अपना श्रंगार निहारोगी


मेरे सपनो के आँगन में, यौवन के कलश उतारोगी 


कब प्रणय-निमंत्रण आवेदन ,इन नयनों के स्वीकारोगी 


आखिर तुमको भी पता चले ,हम कब से हुए तुम्हारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


आँचल में सुरभित गन्ध लिये,बहती है चंचल मस्त पवन


सच कहता हूँ खिल जायेगा, तेरे उर का हर एक सुमन


पंछी सा इत उत डोलेंगे ,झूमेंगे धरती और गगन 


अपने स्वागत में ही तत्पर ,जगमग यह चाँद-सितारे हैं ।।


कंचन काया------


 


मानो मन के हर कोने में ,तेरी आहट ही रहती हो 


सुर-सरिता बन कर तुम निशिदिन ,अंतस-सागर को भरती हो 


शुचि स्वप्नों का भण्डार लिये, मेरे ही लिये संवरती हो 


रेशम कुंतल बिखराओ तुम ,व्याकुल कितने अँधियारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं ।


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं ।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां सिद्धिदात्री सुमति दे


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हे मां सिद्धिदात्री


अष्ठ भुजा धारी जगत कल्याणी,


हम भक्तो पर कृपा बरसाओं,


तेरी महिमा अपरम्पार है मां।


 


हे मां सिद्धिदात्री


अन्दर ऐसा प्रेम जगाओ,


जन जन का उपकार करूं,


प्रज्ञा की किरण पुंज तुम,


हम तो निपट अज्ञानी है।


 


हे मां सिद्धिदात्री


करना मुझ दीन पर कृपा मां,


निर्मल करके तन-मन सारा,


मुझ में विकार मिटाओ मां,


इतना तो उपकार करो।


 


हे मां जग जननी


पनपे ना दुर्भाव कभी मन में,


ऐसी सुमति दे दो मां,


बुरा न करूं -बुरा सोचूं,


ऐसी सुबुद्धि प्रदान करो।


 


हे मां जगदम्बे


इतना उपकार करो,


निर्मल करके मन मेरा,


सकल विकार मिटाओ दो मां,


जो भी शरण तुम्हारी आते,


उन्हे सद् मार्ग बताओ मां।


*******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


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मदन मोहन शर्मा 'सजल'

"माँ का दरबार सजा"


(मनहरण घनाक्षरी छंद)


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विधान - ८ , ८ , ८ , ७ वर्णों पर यति के साथ ३१ वर्ण प्रतिचरण, चरणांत ।S, चार चरण, चरणांत तुकांतता।


★★★★★★★★★★★★


माँ का दरबार सजा, नवरात्रि करो पूजा


आशीषों की जननी माँ, आरती उतारिये।


 


पूजा थाल पुष्प माल, चुनरियाँ टीका भाल


तन मन प्राण सागे, दुर्भाग्य बुहारिये।


 


रंक को बनाये राजा, माँ के दरबार आजा


चरणों में रख शीश, भाग्य को संवारिये।


 


ममता की देवी माता, भक्तों की पुकार माता


दुष्टों का संहार माता, हिय से पुकारिये।


★★★★★★★★★★★★


*मदन मोहन शर्मा 'सजल'*


*कोटा 【राजस्थान】*


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


देखा जो मैंने आप को दिल को लुटाना आ गया।


लुट कर मुझे कुछ यूँ लगा जैसे खज़ाना आ गया।।


 


उदासियों में अब तलक कटती रही थी ज़िंदगी।


पाकर तुम्हें जीने का उसको अब बहाना आ गया।।


 


आ गए तुम गीत लेकर जो मधुर सुर-ताल का।


देखो,सिले होंठों को मेरे गीत गाना आ गया।।


 


खिल गईं कलियाँ सभी गुलशन महकने अब लगा।


काँटों के सँग सारे गुलों को मुस्कुराना आ गया।।


 


तिश्नगी जो प्यार की थी पा तुझे अब बुझ गयी।


प्यार में मस्ती ही मस्ती का ज़माना आ गया।।


 


अब तलक रोतीं रहीं आँखे जो सागर-जल भरीं।


पा तुम्हें उनको भी अब सबको हँसाना आ गया।।


 


छँट गईं काली घटाएँ भग गए तूफ़ान सारे।


देखते ही देखते ये, मौसम सुहाना आ गया।।


           ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


सुबोध कुमार

काम बहुत थे सफर की शाम मुझे


पर फिर भी मैं मैसेज देखता रहा


 


हर टुडूंग की आवाज पर तुझे मैं


अपनी यादों में थोड़ा सहेजता रहा


 


जाकर बरामदे में किसी बहाने से


तेरी डीपी जूम करके देखता रहा


 


ना कोई फोन आया ना मैसेज तेरा


सफर में तेरा लास्ट सीन देखता रहा


 


          सुबोध कुमार


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नरेश चन्द्र द्विवेदी (शलभ )फर्रुखाबाद,

नरेश चन्द्र द्विवेदी 'शलभ' 


फर्रुखाबाद, UP. 7905055211, सेवानिवृत नगर शिक्षा अधिकारी, फर्रुखाबाद


 


 


 


मेरी लाज रखो बनबारी 


    


    नाहीं चैन दिन रैन 


       कटु लागैं मीठे बैन 


    लागे जब से नैन 


   नंदनंदन के नेह सों l


    


    कोई बात न सुहाति 


  सीरी चांदनी न भाति 


    लगैं सगे भी पराये 


  झरै आगि घिरे मेघ सों I


    


    नाव बीच तेज धार 


   आगे भंवर अपार 


    आके थामौ पतवार 


दौरि आबौ निज गेह सों l


    


    गत कंठ आए प्रान 


लाज राखौ निज आन 


    पंछी उद्धत पय छाड़ि नेह निज देह सों ll


 


 


 


 


क्षणिका 


 


बारे पै बालसखा संग खेलि के 


           दिन बीतो आनंदमयी है l


ज्वानी भी जीवन -संगिनि संग मे 


      हास बिलास में बीति गयी है l


आओ बुढ़ापा हे भगवान जौ 


          जिंदगी कैसी नर्क भयी है l


देह न नेह सहाय करै कोई 


      कैसी विधाता विपत्ति दयी है ll


 


 


उसकी लाठी है शब्द रहित दुनियां जिसकी वशबर्ती है


*****************


उस जगतनियंता का वैभव


             "मतिमंद"चतुर्दिक छाया है


पापों से संचित भौतिक सुख


             पर क्यों इतना इतराया है   


उसके अनुशासन से सूरज 


               चंदा निशि वासर प्रहरी हैं


उसकी अनुकंपा की हाथों 


                    मे देख लकीरें गहरी हैं


उसका स्नेह छितिज तट  


             से नितअमृत वर्षा करता है


मलयानिल प्राणों में पीड़ा 


               लख अनायास ही हरता है 


तेरे इन कुत्सित कर्मों की 


             सोचा है परिणति क्या होगी


हतभाग्य तेरी सदगति तो क्या


                बद से बदतर दुर्गति होगी


हिंसा ,लंपटता, लोलुपता,


                  धोखे के बीज संजोए हैं 


यह निर्विवाद है सत्य सदा


                      वो पाएगा जो बोए हैं 


ऐ नीच नराधभ,नर पिशाच 


                  मानवता कृंदन करती है


उसकी लाठी है शब्द रहित 


             दुनियां जिसकी वशबर्ती है।


 


 


 


 


छवि सिंगार मनहुँ एक ठौरी 


 


अंगन उमंग


  रग रग मे अनंग, 


      जो भी देखे होय दंग 


        ऐसी रचना छबीली सी 


 


कारे कजरारे 


   अनियारे मतबारे नैन 


      कोयल की कूक सी


         सुरतिया सजीली सी l


 


झुकि झुकि झूमि झूमि 


     हाथ सों करेजो थामि 


        ताकें सुधी कामिनी की             


           अँखियाँ नशीली सी 


 


नवयोवना सी 


  सतरंगी तितली सी लगे 


    सोने मे सुहागा देहयष्टि   


       गदरीली सी ll


 


 


सच कहती हैँ दुनियाँ.. 


 


राधा कान्ह की मिताई 


             घनी जानि दिन दिन 


बदनामी डर से बिछोह 


                 दोऊ को कियो l


कैसे हैँ कठोर दुनियां 


            के लोग प्यार को भी 


सात ताले डारिके  


        जलाएँ दोऊ को जिओ l


नटखट कान्ह 


            बृजवनितन बीच राधै 


नैनन के सैनन 


               संदेश सारो दै दियो l  


दोऊ के मुखन की 


       खिली खिली छटा विलोकि 


खुली चोरी जानि 


       मुख को अधोमुखी कियो ll


 


बुढ़ापे की बिडंबना 


***************


हाल है बेहाल, सूखी खाल, धंसे गाल, 


कान दोनोंहू सेअब नाही तनिक सुनातु है l


मुँह मे न दाँत, नाहीं पेट हू मे आंत 


दोऊ अंखियन नाही अब थोरोहू सुझातु है l


कासे कहूँ, कैसे कहूँ, सुनि अठिलैहैं लोग 


दाँत ना सो खात कौर गिरि गिरि जातु है l


बारे पै जा बेटै गोद बैठि के पिअाओ दूध 


सोई बेटा पोतै गोद देत सकुचातु है ll


 


 


 


लाखों मणियारे सर्प 


         छिपे कुंडली मार 


                अपनों के घर 


कुछ के तो आये 


          निकल पँख 


      उड़ने को बैठे हैं तत्पर 


कुछ शैशव मे ही 


           फेन उगलते 


           बढ़े आरहे हैँ सत्वर 


जीवन का कोई 


        लक्ष्य नहीं मारे 


          फिरते हैं इधर उधर 


इनका न कोई 


     अपना सपना बस 


        एक मात्र बिष बमन लक्ष्य 


पशु पक्षी कीट पतंगे 


         क्या मानव शरीर 


                   तक बना भक्ष्य 


इनका न कोई 


        मज़हब विशेष बस 


             मार काट या आगजनी 


पत्थरबाजी बलबा 


       खूंरेजी सब के सब


                    हैँ नागफनी 


ये मानवता के 


        प्रवल शत्रु इन पर 


             नकेल कसना होगा 


प्रछन्न बिषधरों को 


              चिन्हित कर


               परिमार्जन करना होगा 


सौहार्द, स्नेह, 


      आत्मीयभाव के 


         सब साधन हो चुके ब्यर्थ 


इनको बस बीन


         सपेरे की वश मे 


              करने को हैं समर्थ l


 



डॉ. रामबली मिश्र

सच्चा मन


 


जहाँ थिरकता सच्चा मन है।


परमेश्वर का वहीं वतन है।।


 


मन को सच्चा सदा बनाओ।


ईश्वर को मन में ही पाओ।।।


 


जिसका मन निर्मल होता है।


ईश्वरीय बीज बोता है ।।


 


चंचल मन को स्थिर करना।


कुत्सितता को बाहर रखना।।


 


काटो काई साफ करो मन।


पहले मन को तब पीछे तन।।


 


मन को सरिता नीर समझना।


साफ-स्वच्छ नीर को करना।।


 


जितना ही यह निर्मल होगा।


उतना ही हरि दर्शन होगा।।


 


जितना पावन भाव तरंगें।


उतनी साफ-स्पष्ट शिव गंगे।।


 


जाया करे बुद्धि शिव गंगा।


सदा मनाये हर्ष उमंगा।।


 


चेतन बन हो प्रभु में लीना।


सिखलाये मानव को जीना।।


 


सीखे मानव दर्शन करना।


प्रभु चरणों का स्पर्शन करना।।


 


बने श्रृंखला धर्म-स्वरों की।


भीड़ मचे पावन लहरों की।।


 


मन सबका पावन बन जाये।


सहज ईश दर्शन हो जाये।।


 


उठे गगन में ध्वजा तिरंगा।


जागे मन में चेतन गंगा।।


 


मन जब निर्मल धवल रहेगा।


सारा जीवन सफल रहेगा।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


 


प्रभु ने कम भी दिया,तो क्या हुआ


कभी न करना, मलाल


वो रक्खे, जैसे तुम्हे


उसमे रह, खुशहाल


दुनिया तो,अब भी वही है


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


पढ़ता रहता है,सत्य का


जो नियमित अध्याय


मां सरस्वती, उस शख्स का


करती हैं,सदा सहाय


मिल जाय सहारा,प्रभु नाम का


और नहीं, कुछ चाह


अब, रब खुद ही करेगा


बंदे का परवाह


सत्य को स्वीकारिये


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


स्वर्ग नरक है, एक कल्पना


है,असत्य ये धाम


यही भुगतना पड़ेगा


अपने कर्मो का अंजाम


यह जीवन,इक युद्ध है


कभी जीत,तो कभी हार


हरि इच्छा, होत बलवान है


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


जिसने जाना, स्वयं को


वह साधक,हो जाता हैं


तरह तरह के,धर्म है


तरह तरह के है,संत


जैसा मन,वैसा मनुष्य


दर्पण है,यह संसार


लोग अपनी ही,छबि देखता


है,इसमें बारम्बार


जीवन के सस्पेंस को,कोई समझ न पाया


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


नूतन लाल साहू


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां जगदम्बा दया करो


********************


हे मां जगदम्बा दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी को सताये नहीं,


ऐसी सुमति हमें देना मां।


 


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना मां।


 


ये जीवन तुम्ही ने दिया है


राह भी तुम्हें बताओ मां


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ मां।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो मां।


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाएं मां,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*बस प्रेम का ही वास हो दुनिया में।।*


*विविध मुक्तक।।*


 *1,,,,,,,,,,,,,*


*एक नेक इंसान बढ़िया बनो।।*


*।।मुक्तक।।*


किसी के अधरों की मुस्कान


खुशी का जरिया बनो।


हो सके भरा प्रेम से तुम


एक दरिया बनो।।


प्रभु का ही प्रतिरूप है हर


आदमी इस दुनिया में।


बस कुछ और नहीं तुम एक 


इंसान नेक बढ़िया बनो।।


*2.......*


 *दुआयें साक्षातभगवान होती हैं।।*


*।।मुक्तक।।*


दुआयें साथ हों तो मुश्किलें भी  


जैसे आसान होती हैं।


हवायों के रुख से पाते मंजिलें 


जो अंजान होती हैं।।


बस दुआयें लीजिएऔर दीजिए


एक दूसरे के लिए।


दुआयों की ताकतें मानो साक्षात


भगवान होती हैं।।


*3,,,,,,,,,,,,,*


 *बस प्रेम का नाम मिले तुमको।।*


*।।मुक्तक।।*


जिस गली से भी गुज़रो बस


मुस्कराता सलाम हो तुमको।


किसी की मदद तुम कर सको


बस यही पैगाम हो तुमको।।


दुआयों का लेन देन हो तुम्हारा


बस दिल की गहराइयों से।


प्रभु से करो ये गुज़ारिश कि


बस यही काम हो तुमको।।


*4,,,,,,,,,,,,*


 *जो याद रहे वह कहानी बनो।।*


*।।मुक्तक।।*


बस अपना ही अपना नहीं


किसीऔर पर मेहरबानी बनो।


चले जो साथ हर किसी के 


तुम ऐसी कोई रवानी बनो।।


जीवन तो है हर पल कुछ


नया कर दिखाने का नाम।


कोई भूल बिसरा किस्सा नहीं


जो याद रहे वो कहानी बनो।।


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                           8218685464


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खतरे में लोकतंत्र का चौथ स्तम्भ


 


लोकतंत्र की ख़ास खासियत जन जन तक 


जन जन का संवाद 


अभिव्यक्ति की आजादी


सूचना का अधिकार।।


न्याय पालिका, कार्यपालिका,


विधायिका लोकतंत्र महिमा


महत्व सार।।                      


 


चौथा संवाद


संचार का माध्यम मिडिया


का संसार।।


गांधी जी के तीन बन्दर आज


प्रसंगिग उल्टा दिखता मिडिया


सच नहीं देखता सच


नहीं दिखाता सच का कर देता


है त्याग।।                             


 


सच बोलने की हिम्मत


गर दिखलाता बतलाता कोईं


सच सिद्धान्त पर हो जाता


बलिदान।।


 


मिडिया के रूप अनेको प्रिंट मिडिया इलेक्ट्रानिक मिडिया सोशल मिडिया ना जाने कितने


अवतार।।


 


पीत पत्रकारिता टी आर पी


वायरल का कारोबार।।


 


सच को झूठ ,झूठ को सच का


खेल बनगया तमाशा लोकतंत्र


का चौथा अलम्बरदार।।


 


जन जन में अब अवधारणा


कौन सुनाएगा सच आज 


कोई बिक जाता है कोई बिकने


का करता इंतज़ार।।


 


ये कुछ सचाई है मगर आज भी


संजीदा संवेदनशील है लोक


तंत्र का चौथा स्तम्भ की धार।।


 


कितनो ने जान गवाई सच्चाई का


छोड़ा नहीं कभी भी साथ


सच के साथ खड़ा मौलिक


मूल्यों का लोक तंत्र का मजबूत


चौथा स्तम्भ मिडिया संवेदनशील बाज़।।                            


 


मिडिया लोकतंत्र का अतिमहत्वपूर्ण लोकतंत्र का आधार।।


 


मिडिया चाहे जो रातो रात


बाना दे किसी को महान


चाहे तो नैतिकता के गांधी


और महात्मा को भी कर दे शर्मशार।।


 


लोक तंत्र में मिडिया अहम


कलाकार किरदार।।


 


गर शासन प्रशासन को


रखना है संवेदन शील 


जन जन का हो कल्याण


जन जन को अधिकारों का


हो ज्ञान मिडिया स्वतंत्र निष्पक्ष


निडर निर्भीक लोक तंत्र अभिमान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


राजेंद्र रायपुरी

देखो देखो मेरे ॲ॑गना, 


एक कली मुस्काई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


लल्लन, जुम्मन, वाल्टर,केशर,


सारे आओ भाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


बड़े दिनों से आस लगी थी,


आज हुई है पूरी।


ॲ॑गना मेरे खिली कली है,


नाम रखूॅ॑गा नूरी।


 


महक उठा है घर मेरा ये,


महक उठी ॲ॑गनाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना ...........।


 


प्यारी गुड़िया जो आई है।


खुशियां झोली भर लाई है।


आते ही इसके देखो जी,


दुगनी हुई कमाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो ॲ॑गना मेरे ............।


 


खूब पढ़ाऊॅ॑गा मैं इसको।


नहीं डांस या कोई डिस्को।


चाह यही है पा ऊॅ॑चा पद,


करे देश अगुआई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना.............।


 


आस सभी अब होगी पूरी।


नहीं रहेगी एक अधूरी।


निश्चित कल को बजनी ही है,


मेरे घर शहनाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना,


एक कली मुस्काई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-7


 


तब रघुबीर लेइ धनु-बाना।


सँग सुग्रीवहिं किए पयाना।।


     प्रभु-बल लइ सुग्रीव पुकारा।


     बाली-बाली कह ललकारा।।


सुनि पुकार निकसा तब बाली।


क्रोधित धावै हाली-हाली ।।


     अस लखि बाली-पत्नी तारा।


      गहि पति-चरन कही बहु बारा।।


सुनहु नाथ ई सभ दोउ भाई।


सकहीं मारि काल त्रिनु नाई।।


    दसरथ-सुत ई दोऊ बीरा।।


    राम-लखन-बल-पौरुष-धीरा।।


हो नहिं बिकल सुनउ तुम्ह तारा।


प्रभु समदरसी कह संसारा।।


     जदि रघुबीर हरहिं मम प्राना।


      परमधाम मैं करउँ पयाना।।


निकट सुग्रीवहिं गरजत धावा।


मुठिका मारि ताहि धमकावा।।


     होइ बिकल सुग्रीवहि भागा।


      बालि क प्रहार बज्र सम लागा।।


सुनहु नाथ मम बालि न भाई।


मारेसि मों जनु कीट की नाई।।


    लरत समय तव रूप समाना।


    भ्रमबस बालिहिं मारि न पाना।।


अस कह राम तासु तन परसा।


भयो तासु तन बज्रहि सहसा।।


    पुनि भेजा तेहिं करन लराई।


     पार केहूँ बिधि कपि नहिं पाई।।


देखि बालि मारत सुग्रीवा।


तब प्रभु राम ओट तरु लेवा।।


    तेहिं तें किया बान संधाना।


     हता बालि जनु निकसा प्राना।।


दोहा-बाली हो घायल गिरा,सहसा धरा धड़ाम।


        निरखत प्रभु-पंकज चरन, लोचन-छबि अभिराम।।


       कहा प्रभू आयो जगत,करन धरम कै काम।


      हमहिं क काहें तुम्ह बधेयु, छाँड़ि अनुज यहि धाम।।


      तव पियार सुग्रीव प्रति,सुनहु प्रभू श्रीराम।


     जानि परत मों तें अधिक,लखि मम अघ कै काम।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


*******************************


दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-3


 


जे नहिं कंटक-पीरा जानै।


ऊ नहिं पीरा अपरै मानै।।


    नहीं हेकड़ी,नहीं घमंडा।


    रहै दरिद्री खंडहिं-खंडा।।


नहिं रह मन घमंड मन माहीं।


जे जन जगत बिपन्नय आहीं।।


    रहै कष्ट जग जे कछु उवही।


    ओकर उवहि तपस्या रहही।।


करि कै जतन मिलै तेहिं भोजन।


दूबर रह सरीर जनु रोगन ।।


     इन्द्रिय सिथिल, बिषय नहिं भोगा।


     बनै नहीं हिंसा संजोगा ।।


कबहुँ न मनबढ़ होंय बिपन्ना।


होंहिं घमंडी जन संपन्ना ।।


     साधु पुरुष समदरसी भवहीं।


    जासु बिपन्न समागम पवहीं।।


नहिं तृष्ना,न लालसा कोऊ।


जे जन अति बिपन्न जग होऊ।।


     अंतःकरण सुद्धि तब होवै।


      अवसर जब सतसंग न खोवै।।


जे मन भ्रमर चखहिं मकरंदा।


प्रभु-पद-पंकज लहहिं अनंदा।।


     अस जन चाहहिं नहिं धन-संपत्ति।


    संपति मौन-निमंत्रन बीपति ।।


प्रभु कै भगति मिलै बिपन्नहिं।


सुख अरु चैन कहाँ सम्पन्नहिं।।


      दुइनिउ नलकूबर-मणिग्रीवा।


      बारुनि मदिरा सेवन लेवा।।


भे मदांध इंद्री-आधीना।


लंपट अरु लबार,भय-हीना।।


      करबै हम इन्हकर मद चूरा।


      चेत नहीं तन-बसन न पूरा।।


अहइँ इ दुइनउ तनय कुबेरा।


पर अब पाप इनहिं अस घेरा।।


     जइहैं अब ई बृच्छहि जोनी।


     रोकि न सकै कोउ अनहोनी।।


पर मम साप अनुग्रह-युक्ता।


कृष्न-चरन छुइ होंइहैं मुक्ता।।


दोहा-जाइ बीति जब बरस सत,होय कृष्न-अवतार।


        पाइ अनुग्रह कृष्न कै, इन्हकर बेड़ा पार ।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


सुनीता असीम

बस ख़ुदा से सलाह करता हूँ।


दीन दुखियों की राह करता हूँ।


*****


काम मेरे सभी करेंगे वो।


मैं न कुछ इश्तिबाह करता हूँ।


*****


रूठ जायें न मेरे भगवन।


यूँ न कोई गुनाह करता हूँ।


*****


मुश्किलों में घिरा रहूं जब मैं।


तब उसीकी पनाह करता हूँ।


*****


जो बड़े भक्त हैं कन्हैया के।


अब उन्हींसे डाह करता हूं।


******


सुनीता असीम


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल -


 


ज़ुल्म कैसा हुआ है ख़ुदा देखिए


हर तरफ़ दिख रही है बवा देखिए


 


जीना मरना भी दोनों हैं आसां नहीं


जाने किसकी लगी बद्दुआ देखिए


 


 बंद घर में भी कब तक रहे आदमी


बैठे बैठे भी दम है घुटा देखिए 


 


हर किसी की दुआ है ख़ुदा से यही


ऐसी मुश्किल न दीजे सज़ा देखिए


 


मिन्नतें करते हम थक गये हैं ख़ुदा


सुन भी लीजे हमारी सदा देखिए


 


बच्चे बूढ़े सभी अब परेशान हैं


इनकी जानिब ख़ुदा भी ज़रा देखिए


 


बिन दवा के हैं *साग़र* ख़ुदा सब दुखी


आप ही भेजिए कुछ दवा देखिए 


 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


डॉ. रामबली मिश्र

चलो बेटियाँ प्रगति करो नित


 


चलती रहना राह पकड़ कर।


बढ़ती जाना लक्ष्य चयन कर।।


 


कभी न काँटों से घबड़ाना।


करती जाना पार उछल कर।।


 


मत डरना तुम कभी प्रेत से।


करो सामना भय का डटकर।।


 


चिग्घाड़े यदि शेर राह में।


चलना सीखो आँख मिलाकर।।


 


तूफानों से मत घबड़ाना।


उन्हें भगाओ सदा बैठकर।।


 


तुम्हीं शक्ति की सहज नायिका।


चल खुद की पहचान बनाकर।।


 


रहो एकजुट सतत संगठित।


मार दरिंदों को मिलजुलकर।।


 


कभी न पीछे मुड़कर देखो।


चलना अपना कदम बढ़ाकर ।।


 


साध्य कठिन को सरल बनाना।


चलो बढ़ो पढ़-लिख मेहनत कर।।


 


ठोकर को तुम फूल समझना।


कर नफरत पर वार सँभलकर।।


 


पढ़ो जगत की गतिविधियों को।


सावधान खुद रहो अटल कर।।


 


भावुकता में मत बह जाना।


बुद्धिवादिनी दृष्टि अचल कर।।


 


तुम्हीं हिमालय की बेटी हो।


सोच बैठना विश्व शिखर पर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र

नहीं अर्थ का अर्थ निकालो


 


मन में कोई भ्रम मत पालो।


नहीं अर्थ का अर्थ निकालो।।


 


सुंदर मन से अर्थ निकालो।


मत अनर्थ में मन को डालो।।


 


शव्दों का भावार्थ समझना।


तुम पचड़े में कभी न पड़ना।।


 


तोड़-मोड़कर प्रस्तुत मत कर।


सीधा अर्थ शव्द का बेहतर।।


 


बुद्धि भयंकर नहीं लगाओ।


सीधे-सीधे अर्थ बताओ।।


 


संरचना को कभी न तोड़ो।


प्रिय भावों से नाता जोड़ो।।


 


सरल बनो दिलवर बन जाओ।


सबके आगे शीश झुकाओ।।


 


बुरा शव्द कुछ नहीं यहाँ पर।


शव्द ब्रह्ममय अतिशय सुंदर।।


 


अर्थ निकालो गाढ़ा-गहरा।


देना सदा बुद्धि पर पहरा।।


 


शव्दार्थों का स्वागत करना।


दिल से सोच-समझकर रहना।।


 


आगे-आगे दिल को रखना।


पीछे-पीछे अपने चलना।।


 


शव्द-अर्थ-भावार्थ एक कर।


संयम से ही नित परिचय कर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


***********************


 


बहुत बहुत आभार मित्रवर


कर मेरा उद्धार मित्रवर


मुझको छोड़ न देना प्यारे


कर मुझ पर उपकार मित्रवर।


 


साथी बन साकार मित्रवर


बन मेरा आधार मित्रवर


साकी बनकर प्रेम पिलाओ


करना मत इंकार मित्रवर।


 


अतिशय सज्जन तुम्हीं मित्रवर


मेरे हिय में तुम्हीं मित्रवर


मत करना अपमान कभी भी


स्नेहधाम इक तुम्हीं मित्रवर।


 


डा. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी

 


 


ही


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक


गीत, ग़ज़ल, समीक्षा


कुल आठ पुस्तकें प्रकाशित 2कविता,3गीत,2गज़ल,1खण्ड काव्य।


आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित रचनाकार।


2017के सर्वभाषा कवि सम्मेलन में कश्मीरी कविता का गीत में अनुवाद।


सम्पूर्ण भारत की 150से अधिक संस्थाओं से सम्मान पर्याप्त।


उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ से"नरेश मेहता सृजन सम्मान प्राप्त।


500/1सत्यम नगर, भगवान पुर, लंका वाराणसी 221005


मो.नं.9450186712/8127880111


 


कविताएं


 


नवगीत:किस विधि लाएं


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सामने बबूल वन खड़ा, राह रोकने को है अड़ा, मान सरोवर कैसे जाएं। अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।


गिद्धों ने उपवन में डाल दिया डेरा


दिन में ही पसर गया आसुरी अंधेरा


छोड़कर कहार भागे सज्जित शिविकाएं,


पद्मिनियों ने रचीं चिताएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।01


जाने क्या जाल रचे गर्वित दुर्योधन,


आगे पीछे करता अपना संस्कारित मन,


पग में संकल्पों ने डाल दिया वन्धन


मौन साध देखती दिशाएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।02


स्वान झुंड बार-बार हवन कुंड घेरे,


स्वार्थ पुंज उनके भी अपने बहुतेरे,


जूझ रहे जाम्बवान, अंगद, नल नील विकट,


हाथ लिए सक्षम समिधाएं।


अष्ट कमल दल किस विधि लाएं।।03


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डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी


9450186712


 


 


एक नवगीत


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स्वदेशी का है खुला बाजार ।


सीढ़ियों ने किया कारोबार।।


कल नहीं थे पांव जिनके आज हैं वे दौड़ते आसमानी पर्त चढ़कर हैं क्षितिज को चूमते


 पुरातनता पा गई आधार ।


सीढ़ियों ने किया कारोबार।।01


रस्सियों ने लकड़ियों से संधि कर ली


 रिक्त झोली ने प्रगति की चाह भर ली


बहुत मुझ पर आपका आभार। 


 सीढ़ियों ने किया कारोबार।।02


पास में जिनके कभी है ठंस गए गोदाम, 


समय के शीशे में दिखते आज वे गुमनाम 


कौन करता सहज को स्वीकार। 


 सीढ़ियों ने किया कारोबार।।03


*********


डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी


 


 


 


एक नवगीत:पांवों में चुभती है पिन


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धुंधला धुंधला दिखता दिन 


पावों में चुभती है पिन।।


सुबह-सुबह कुहरे ने है दे दी दस्तक


झुका झुका सा दिखता सूरज का मस्तक


घूंघटा से झांके दुल्हन।


पावों में चुभती है पिन।।01


मुक्ति मिले कैसे अब मच चुके धमाल से


 चल रहा समय अपनी कछुए की चाल से 


सरक रहा चुपके पल छिन ।


पांवों में चुभती है पिन ।।02


आसमान की गाथा सहम -सहम बांच रही,


आंगन में इस कोने उस कोने नाच रही,


रुष्ट हुई काली नागिन।


पावों में चुभती है पिन।।


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वाराणसी भारत 221005


नूतन लाल साहू

एक विचारणीय प्रश्न


यहां कौन सुखी है


 


सादा जीवन,उच्च विचार


लोग,ये भुल रहे हैं


ओद्यौगिक विकास के चक्कर में


हाथी की तरह,फूल रहे हैं


देश में पानी,पैसे से मिलता है


दवा जैसे चीज,मुफ्त में चाहिये


खजूर पेड़ की भांति,बड़ा बनने की चाहत है


बताओ, यहां कौन सुखी है


मुट्ठी बांधकर,आया है जग में


हाथ पसारे,जाना है तुम्हे


प्रभु ने दिया है,मुफ्त में


यश, धन, वैभव,अपार


सत्कर्मों से हासिल करना है,तुम्हे


कुछ करनी और कुछ कर्म गति से


सुर दुर्लभ मानुष तन,मिला है तुम्हे


खजूर पेड़ की भांति,बड़ा बनने की चाहत है


बताओ, यहां कौन सुखी है


हानि लाभ, जीवन मरण


यश अपयश,सब विधि के हाथ है


आम आदमी, यूं लगा है


जैसे पिचका,पक्का आम


क्यों आया है,इस संसार में


समझ न सका,अब तक इंसान


कौन कितने दिन, टिका रहेगा


यह नहीं है, इंसान के हाथ में


खजूर पेड़ की भांति, बड़ा बनने की चाहत है


बताओ, यहां कौन सुखी है


इस संसार में,हर बंदा के लिए


दाना पानी,लिखा हुआ है प्रभु ने


ऊपर वाले,किसी भी प्राणी को


भूखा पेट,नहीं सुलाता है


बचपन,यौवन और बुढ़ापा


बहुत सोचकर,बनाया है


इंसान,अपने जन्मदाता को क्यों भुल रहा है


खजूर पेड़ की भांति, बड़ा बनने की चाहत है


बताओ, यहां कौन सुखी है


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र

बेटी से ही सारा जग है,


          बेटी लक्ष्मी की अवतार।


यही सृष्टि की आदि शक्ति है,


          रचती अति सुंदर परिवार।


बेटी घर की महती शोभा,


          किया करो इसका सत्कार।


बेटी बिन घर सूना-सूना,


          दिया करो इसको नित प्यार।


बेटी से ही सारी दुनिया,


          इसे करो दिल से स्वीकार।


बेटी सुंदर सहज स्वरूपा,


          करो तथ्य को अंगीकार।


बेटी जग की है सुंदरता,


          सुंदर मन का यह आधार।


यह पूरक है अरु सम्पूर्णा,


          भरापूरा रहता घर-द्वार।


कभी न कर इसको अपमानित,


          समझो बेटी को उपहार।


बदलो सामाजिक संरचना,


          जग पर बेटी का उपकार।


घृणा भाव को मन से फेंको,


          जन्मोत्सव का करो प्रचार।


बेटे से बेटी बढ़कर है,


          इस पहलू पर करो विचार।


अति संवेदनशील बेटियाँ,


          बेटी सचमुच शिष्टाचार।


जननी बन देती सपूत है,


          यह जीवन का असली सार।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

तूने कुछ वक़्त मेरे साथ गुज़ारा होता


ज़िन्दगी भर को तू फिर दोस्त हमारा होता 


 


हुस्ने मतला--


पीठ में मेरी ये खंजर न उतारा होता


बेवफ़ाओं में यूँ चर्चा न तुम्हारा होता


 


हौसला तुम भी अगर देते मुझे तो सच में 


मेरी परवाज़ का कुछ और नज़ारा होता 


 


जब तेरे साथ नहीं थी तेरी परछाईं भी 


*ऐसे आलम में कभी हमको पुकारा होता* 


 


मेरे हाथों में अगर होता नसीबों का क़लम


तेरी तक़दीर को हर रुख से संवारा होता 


 


आज सारा ही ज़माना दिखा मेरी जानिब


काश इनमें कहीं तेरा भी इशारा होता 


 


जिस घड़ी तेरी ज़रूरत थी हमें ऐ *साग़र* 


हमको उस वक़्त दिया तूने सहारा होता 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


सुनील दत्त मिश्रा

साक्षात शिव परमेश्वरा यह शिवजी ही आराध्य है।


शिव शंभू ही है, गगन धरा


शिव शंभू ही सब साध्य है।


ऊंचे गगन पहाड़ पर शिव का निवास विराट है ।


चढ़कर हिमालय शीश पर शिव सभी के आराध्य है।


आनंद मगन निवास है ,शिव शंभू नंदी गणेश है


गौरा पति महादेव है ,श्री शंभू स्वयं महेश है।


उत्तर से लेकर दक्षिण तक ,हर कहीं शिव का वास है ।


आराधना शिव की करूं, पूरब पश्चिम तलक निवास है ।


मन चाहे शिव के पैर में ,अपना धरु में शीश अब ।


गौरा पति गणेश है नंदी स्वयं आशीष अब।


यह प्रार्थना है शिव धाम तक पहुंचे मेरी मनकामना ।


है आज दिन यह सुखद, मैं कर रहा इस आराधना ।


शिव शम्भू धरा महेष्वर प्रभु साक्षात शिवा गणेश है ।


स्तुति करू कर जोड़ मैं


अब स्वयं मणिमहेश है


💐💐💐💐💐💐👏


🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾


सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर राइटर छत्तीसगढ़ बिलासपुर से सर्वाधिकार सुरक्षित सुनील दत्त मिश्रा की कलम से


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