डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*कृषक*(दोहे)


कृषक बैल-हल से करे,सतत जुताई-काम।


उगा फसल यह अन्नप्रद, कर दे महि सुख-धाम।।


 


धरती-पुत्र किसान यह,करता कर्म महान।


बैल और हल ले दवा,करता भूख-निदान।।


 


मिट्टी से लथपथ बदन,काया से अति क्षीण।


पर किसान मन का सबल,रह निज कर्म प्रवीण।।


 


सूखी मिट्टी भुरभुरी,रबी- फसल-आधार।


गीली-कीचड़ से सनी,हो खरीफ़ दरकार।।


 


उगा फ़सल दोनों कृषक,करे जगत-कल्याण।


उदर सभी का भर रहा,रक्षक जन-जन-प्राण।।


 


वंदनीय हे कृषक तुम,हो धरती-भगवान।


हर ऋतु-प्रहरी हो तुम्हीं,हे नर कर्म-प्रधान।।


 


रहे स्वस्थ-संपन्न यह,सब जन करें प्रयास।


गो-रक्षक-पालक यही,करें न इसे उदास।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               9919446372


सुनीता असीम

सीख इस प्यार की सीखी है तुम्हीं से हमने।


हौंसले अपने बढ़ाए हैं यकीं से हमने।


********


जिनसे शिक्षा है मिली दान दया की हमको।


ली मुहब्बत की इनायत भी उन्हीं से हमने।


********


सरफ़रोशी की तमन्ना थी जगी दुनिया में।


जोश का जज्बा लिया सिर्फ वहीं से हमने।


********


एक राजा था हुआ और हुई इक रानी।


ये कहानी सुनी है पहले कहीं से हमने।


********


पार सागर के क्षितिज जो है दिखाई देता।


आसमां को यूं मिलाया है ज़मीं से हमने।


********


सुनीता असीम


सुबोध कुमार

मैं क्या हूं


 


सवाल ये नहीं है मैं क्या हूं


और मैं क्या नहीं हूं


 


मैं क्या हूं और क्या नहीं हूं


मैं ये सोचता ही नहीं हूं


 


मैं जो भी हूं और जैसा भी हूं


पर मैं गलत तो नहीं हूं


 


मैं जो देखता हूं और सुनता हूं


मैं वह समझता तो नहीं हूं


 


इस समाज की शक्ल में जो है


मैं वह दायरा तो नहीं हूं


 


मैं समझा गया ही नहीं कभी


वह फलसफा तो नहीं हूं


 


मैं चला जाता कहां पर रूठ कर


नफरतों का सिलसिला तो नहीं हुं


 


कैसी मीना और कैसा मयखाना


मैकदे में हाजिर ही नहीं हूं


 


यकीन करता हूं ज्यादा तो क्या


पर मैं कुछ भूला तो नहीं हूं


 


वह तौफीक दी है ऊपर वाले ने


कि मैं नाशुक्रा भी नहीं हूं


 


जाते जाते बस कहे जाता हूं मैं


मैं जो हूं बस वही हूं बस वही हूं


 


       सुबोध कुमार


मधु शंखधर स्वतंत्र

*दोहा गीतिका*


 


आज साथ ऐ साथिया, चलूँ चाँद के पार।


जहाँ प्यार ही प्यार हो, गढ़ ऐसा संसार।।


 


हम दोनों का साथ हो, धड़कन साँसों भाँति,


एक दूजे में लीन हो, खोजे मनुज हजार।।


 


नयनों से नयना मिले, अभिव्यक्ति हो मौन,


घायल करते नैन ये, जैसे चले कटार।।


 


सुर सरगम के साथ मैं,गीत सुनाऊँ मीत,


गीतों में तल्लीन हो, छेड़ूँ दिल के तार।।


 


प्रेम अगन यूँ जल रही, मन में है इक आस,


बुझा सकोगे आग ये, गाकर मेघ मल्हार।।


 


 


प्यार सृष्टि का रूप है, शोभित सभ्य समाज,


प्यार सत्य लेता सदा, साधक का आकार।।


 


प्यार बिना जीवन कहाँ, सौम्य सुखद यह भाव,


हो *मधु* का मनमीत तुम,ईश्वर का आभार।।


*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*


*प्रयागराज*


डॉ निर्मला शर्मा 

" मिसाइल मैन कलाम "


 आधुनिक भारत के 


 वे व्यक्तित्व महान


सर्वप्रथम थे शिक्षक


 दिया जिन्होंने ज्ञान 


वैज्ञानिक अप्रतिम थे


लोहा माने सारा जहान 


राजनेता की छवि में 


लोकप्रिय वह राजा समान 


परमाणु क्षमताओं का 


देश को दिया अनुपम उपहार 


विश्व स्तर पर बनाया सक्षम


 किया स्वप्न साकार


 युवाओं के मार्गदर्शक 


यूथ आइकन बने विचार


 बाल हित के संरक्षक 


वात्सल्य था मन में अपार


जीवन के आखिरी क्षण में भी 


थे बालकों के हित में साध्य 


विविधता बहुसांस्कृतिकता एवं


 नवीनता के बने वे माध्य 


पद्म भूषण, पद्म विभूषण 


भारत रत्न से अलंकारित


अनेकानेक सम्मान मिले पर 


जीवन था संस्कारित


 साहित्य, कला, संस्कृति के


 सबसे बड़े समर्थक


 राष्ट्रपति पद पर था शोभित


 वह व्यक्तित्व विलक्षण 


सादा जीवन उच्च विचार के


 वे सदैव अनुगामी 


पद चाहे सर्वोच्च रहा हो 


व्यक्तित्व था सदा जमीनी


 बाधाएं जितनी आई


 असफलता कभी डिगा ना पाई 


चले निरंतर पथिक मार्ग के


 सफलता सर्वोच्च पाई 


शत -शत करूँ प्रणाम उन्हें में


 हृदय से करूं सलाम


 वे सच्चे नागरिक देश के


 महान मिसाइल मैन कलाम 


 


डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


लिए समर्पण-भाव हृदय में,


अपनी बाँह पसारे हैं।


आओ, प्रियवर देख रहे पथ-


मादक नैन हमारे हैं।।


 


चाहत के आँगन में अपने,


हमने सेज सजाई है।


नील गगन की चंद्र-चंद्रिका,


दिलवर, देख बुलाई है।


प्रेम-सुमन से सभी सुगंधित-


घर-आँगन-चौबारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


शीतल-मंद समीर सुगंधित,


मन में भाव जगाता है।


पिया-मिलन का भाव हृदय में,


बार-बार उकसाता है।


बिंदी-काजल-कंगन-चूड़ी-


पहन शरीर सवाँरे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्रेम प्यास-विश्वास-आस है।


इसकी शुचिता न्यारी है।


प्रेम-भावना विमल सोच है,


सभी सोच पर भारी है।


सदियों से हम इसी सोच को-


साजन,उर में धारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्यासी नदी सिंधु से मिलती,


जल-बूँदों का धरा-मिलन।


रस-पराग-मकरंद हेतु ही,


होता भौंरों का गुंजन।


इस नैसर्गिग सहज मिलन को-


खड़े आज हम द्वारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।


 


करें यत्न हम दोनों मिलकर,


प्रेम-ज्योति यह जला करे।


हरे तिमिर घनघोर जगत का,


भटके जन का भला करे।


सच्चे प्रेमी तूफानों से-


नहीं कभी भी हारे हैं।


     आओ, प्रियवर देख रहे पथ,


      मादक नैन हमारे हैं।।


              ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ0 निर्मला शर्मा

●जीवन के रंग ●


जन्म से मृत्यु पर्यन्त


जीवन के हैं अनेक रंग


कभी धूप कभी छांव सा


 जीवन चले ढलती शाम सा 


विविध रंगों से सजा ये जीवन 


शिशु, बालक, युवा होता ये तन


 गहराती ये शाम सुहानी 


जीवन की अनकही कहानी 


संघर्षों से तपा ये जीवन 


देता नई भोर की दस्तक 


अग्नि में जब स्वर्ण तपाया


 वह उतना ही निखर के आया


कर्मठ बनो छोड़ दो आलस


 बदलो रेखाओं का मानस


 जिसने कर्म पथ है अपनाया


 जीवन उसने ही चमकाया


 जगत- भंवर मैं डटा है जमकर


 पाया उसने हर पल अवसर


 डॉ0 निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


डॉ शिवानी मिश्रा

हरि महिमा(मुक्तक काव्य)


 


 


हरि सत्य है


हरि सार्थक,


हरि ही जीवन


हरि ही माया


हरि मिथ्या


हरि से ही 


बनी यह दुनिया


हरि ही ज्ञान


हरि अज्ञान


हरि से ही


सबके प्राण


हरि ही रचना


हरि ही रचयिता


हरि ही विध्ना


हरि ही विधान


हरि ही भोजन


हरि मिष्ठान


हरि ही क्षुधा


हरि ही पान


हरि ही वृक्ष


हरि ही पुष्प


हरि ही मानव


हरि से दानव


हरि से जीवन


हरि ही मृत्यु


हरि से ही


समस्त संसार


हरि हैं कर्ता


हरि ही कारक


हरि से ही होता


सबका कल्याण।


 


 


डॉ शिवानी मिश्रा


प्रयागराज।


अभय सक्सेना एडवोकेट

सामाजिक व्यंग्य


------------------------


जीजी की शादी में जूतों का चमकाना 


 


अभय सक्सेना एडवोकेट


 


याद आगया मुझको वो दिन सुहाना


जीजी की शादी में जूतों का चमकाना।


बरात में कुछ आम तो बहुतेरे खास भी होते हैं


बेवजह कमियां निकालने के उस्ताद होते हैं।


उन्हीं में से खासमखास यूं जिद कर बैठे


मोची को बुलाओ और मेरा जूता पालिस कराओ।


जनवासे से मोची कभी का जा चुका था


दूल्हा भी घोड़ी चढ़ आगे बढ़ चुका था।


सख्त मुसीबत में फंस गई थी जान


अभय बेचारा कैसे बचाता इनसे अपनी आन।


तुरंत ही उसने दिमाग का दरवाजा खोल दिया


झट रुमाल निकाल उनका जूता साफ किया।


यह देख दीदी के ससुर लगे गुस्साने


क्यों लगे अभी से अपनी खासियत दिखाने।


बहू के भाई को भी नहीं छोड़ा


तुमने तो हमें कहीं का भी नहीं छोड़ा।


यह सुन मैंने उनके चरण पकड़ लिये


छोड़िए बाबूजी


 यहतो चलता ही है


लड़के और लड़की वालों में कुछ फर्क होता ही है।


क्षमा करें अभय को और शर्मिंदा न करें


कृपा करके आप भी अपने पैरों को आगे करें 


आगे करें


आगे करें।।


अभय सक्सेना एडवोकेट


४८/२६८, सराय लाठी मोहाल, जनरल गंज, कानपुर।


मो.९८३८०१५०१९


८८४०१८४०८८


डॉ.रामबली मिश्र

जहाँ थिरकता सच्चा मन है।


परमेश्वर का वहीं वतन है।।


 


मन को सच्चा सदा बनाओ।


ईश्वर को मन में ही पाओ।।।


 


जिसका मन निर्मल होता है।


ईश्वरीय बीज बोता है ।।


 


चंचल मन को स्थिर करना।


कुत्सितता को बाहर रखना।।


 


काटो काई साफ करो मन।


पहले मन को तब पीछे तन।।


 


मन को सरिता नीर समझना।


साफ-स्वच्छ नीर को करना।।


 


जितना ही यह निर्मल होगा।


उतना ही हरि दर्शन होगा।।


 


जितना पावन भाव तरंगें।


उतनी साफ-स्पष्ट शिव गंगे।।


 


जाया करे बुद्धि शिव गंगा।


सदा मनाये हर्ष उमंगा।।


 


चेतन बन हो प्रभु में लीना।


सिखलाये मानव को जीना।।


 


सीखे मानव दर्शन करना।


प्रभु चरणों का स्पर्शन करना।।


 


बने श्रृंखला धर्म-स्वरों की।


भीड़ मचे पावन लहरों की।।


 


मन सबका पावन बन जाये।


सहज ईश दर्शन हो जाये।।


 


उठे गगन में ध्वजा तिरंगा।


जागे मन में चेतन गंगा।।


 


मन जब निर्मल धवल रहेगा।


सारा जीवन सफल रहेगा।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


आत्मदर्शन


 


मानव मन की निर्मलता हो


शुद्ध हॄदय में शीतलता हो


बौद्धिकता में पावनता हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


सिद्ध सज्जनों की संगति हो


जीव जगत के लिये भक्ति हो


निर्बल के रक्षार्थ शक्ति हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मन सबके सेवार्थ समर्पित


करुण भावना हो जब तर्पित


दीन-दुःखी के प्रति आकर्षित


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मन में ईर्ष्या-द्वेष नहीं हो


छल-प्रपंच का नाम नहीं हो


सबके प्रति सहयोग भाव हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मानव देहरहित हो जाये


संवेदना सहज जग जाये


दूषित बुद्धि नष्ट हो जाये


आतम का तब दर्शन होगा।


 


डॉ.रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-8


 


देखि राम पुनि बाली बोला।


सुफल जनम मम कह मुँह खोला।।


    कवन पाप अस भयो हमारा।


     जेहिं तें प्रभु बस हमहीं मारा।।


सुनु बाली तव बड़ अपराधू।


तुम्ह बहु सठ अरु कुमत-असाधू।।


     तनया-बहिन,अनुज-भामिनिहीं।


     निज सुत-बधू कुदृष्टिहिं तकिहीं।।


उनहीं बधे पाप नहिं होवहि।


इन्हकर बध करि जग नर सोहहि।।


      समुझि सके नहिं नारि-सिखावन।


      नहिं लखि सके प्रबल भुज पावन।।


होइ उन्मत्त दर्प-अभिमाना।


चाहे हरन अनुज कै प्राना।।


    निज प्रसाद बाली कह देवहु।


    प्रभु निज सरन मोंहि अब लेवहु।।


राम परसि बाली कै सीषा।


दीन्ह प्रान-तन अचल असीषा।।


    पा असीष अस बाली बोला।


    कछु नहिं अरथ प्रान अरु चोला।।


बड़-बड़ ऋषि-मुनि,दिग्गज संता।


कहि नहिं सके 'राम' मुख अंता।।


    प्रभु-प्रताप-बल कासी-संकर।


    करै अमर जग-जीव निरंतर।।


ई बड़ भागि मोर प्रभु मिलहीं।


अस सुजोग पुनि होय न जनहीं।।


     नेति-नेति कहि सभ श्रुति गावैं।


     जासु पार नहिं ऋषि-मुनि पावैं।।


पाइ तोहिं प्रभु प्रान न राखब।


सुर-तरु तजि बबूर नहिं पालब।।


दोहा-देहु मोंहि प्रभु एक बर, रहहुँ चरन तव दास।


        अंगद मम सुत दे सरन,रखहु सदा निज पास।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


 


दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-4


अस कहि नारद कीन्ह पयाना।


नर नारायन आश्रम जाना ।।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।


     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।


तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।


जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।


    नारद रहे किसुन कै भक्ता।


    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।


जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।


खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।


     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।


निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।


बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।


      रसरी सहित गए वहि पारा।


       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।


रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।


उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।


     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।


     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।


प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।


तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।


दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।


        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


नूतन लाल साहू

सांच को आंच नहीं प्यारे


 


आता है सबका शुभ समय


फिर काहे को रोता है


लिख के रख ले, एक दिन


काम तुम्हारा,होगा


समझ न पाया,कोई भी


तकदीरो का,राज


भक्त प्रहलाद सा,अटल विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


अगर कुछ,बुरा भी हो जाये


तो खो मत देना, होश


हरि की इच्छा समझकर


कर लेना,मन में संतोष


बिगड़ी बनाने वाला,ऊपर वाला है


एकाध नहीं हो पाया,तो


क्यों शोर,मचाता है


राजा हरिश्चन्द्र जैसा,दृढ़ विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


कितना भी जालिम हो जाये


कुदरत का कानून


चाहे दुश्मन,अपनी उम्र भर


करता रहे,कुछ भी उपाय


हानि लाभ,जीवन मरण


यश अपयश,विधि के हाथ


पसीने की बूंदें,देती हैं आह्लाद


सांच को आंच,नहीं प्यारे


प्रारब्धों का योगफल और


कई जन्मों के कर्मफल से


बनता है,मनुष्य का भाग्य


दोष देखना,दूसरो का


बंद कीजिये, आप


कुदरत नित देती नहीं है


दुःख सुख की सौगात


जो देता है ईश्वर,उस पर रख संतोष


सांच को आंच, नहीं प्यारे


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

।बेटी बचायें/बेटी पढ़ाएं*


*रचना शीर्षक।।*


*बेटियों के जरिये ही आतीं* 


*रहमते भगवान की।।*


महाभारत चीरहरण हर दिन


है चिता जलती हुई।


हो रही रोज़ मौत इक


बेटी की पलती हुई।।


बच्ची की दुर्दशा देख रोता


है मन मायों का।


चीत्कारों में मिलती आशा


नारी की गलती हुई।।


 


दानवता दानव की अब बस


शामत की बात करो।


कहाँ हो रही चूक बस उस


लानत की बात करो।।


हर किसी को जिम्मेदारी


समाज में लेनी होगी।


सुरक्षा बेटियों की बस इस


बाबत की बात करो।।


 


अच्छा व्यवहार बेटियों से


ही निशानी इंसान की।


इनसे घर शोभा बढ़ती जैसे


परियां आसमान की।।


बेटी को भी दें बेटे जैसा घर


में प्यार और सम्मान।


मानिये कि बेटियों के जरिये


आती रहमते भगवान की।।


 


खुशियाँ जमाने भर की संग


वह बटोर लाती है।


खुशनसीब हैं वो लोग जिनके


घर बेटी आती है।।


सृष्टि की रचनाकार ईश्वर का


प्रतिरूप हैं बेटियाँ।


सुख दुख में बेटों से भी बड़ा


काम बेटियाँ कर जाती हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


 


फिर बन जाता है स्वर्ग वहीं*


*(हाइकु)*


1


न्याय प्रियता


यही तो स्वर्ग देश


मन चाहता


2


करुणा वास


वही स्थान स्वर्ग है


दया निवास


3


सत्य की जय


बन जाता स्वर्ग है


नहीं हो भय


4


संवेदना हो


होता स्वर्ग का वास


जहाँ भाव हो


5


सुंदर सोच


क्रोध नहीं तो स्वर्ग


नहीं हो रोष


6


दानशीलता


उपकार स्वर्ग है


नम्र शीलता


7


आत्म चिंतन


बन जाता स्वर्ग वो


आत्म मनन


8


निर्मल मन


यही तो स्वर्ग बस


स्वस्थ हो तन


9


मानव प्रेम


स्वर्ग बसता वहीं


रहें सप्रेम


10


सहनशील


धैर्य से बने स्वर्ग


बनो सुशील


11


प्यार करुणा


स्वर्ग के दो कारक


घृणा हरणा


12


माँ का आँचल


स्वर्ग सी गोद माँ की


स्नेह आँचल


13


आत्म सौंदर्य


भीतर सुंदरता


मन सौंदर्य


14


पवित्र मन


स्वर्ग समान बोध


स्वच्छ हो तन


15


मधुर भाव


वहीं बनता स्वर्ग


सबमें चाव


16


शिष्टाचार हो


स्वर्ग के दो कारक


सदाचार हो


17


सहानुभूति


स्वर्ग सी अनुभूति


कल्याणी नीति


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*'"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


विनय साग़र जायसवाल

गीत--


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं


 


तेरे नयनों में मचल रही, मेरे जीवन की अभिलाषा 


कुछ और निकट आ जाओ तो,बदले सपनों की परिभाषा 


है तप्त बदन हैं तृषित अधर,कबसे है यह तन मन प्यासा ।।


तुम प्रेमनगर आ कर देखो ,महके-महके गलियारे हैं ।।


कंचन काया-----


 


बरसा दो प्रेम सलिल आकर ,इस जलते नंदन कानन में


अंतस स्वर अब तक प्यासे हैं ,मेघों से छाये सावन में 


कितना उत्पात मचाती हैं ,तेरी छवियाँ उर-आँगन में 


तुम राग प्रणय का गाओ तो ,हँसते-खिलते उजियारे हैं ।।


कंचन काया -----


 


तुम साँझ-सवेरे दर्पण में ,अपना श्रंगार निहारोगी


मेरे सपनो के आँगन में, यौवन के कलश उतारोगी 


कब प्रणय-निमंत्रण आवेदन ,इन नयनों के स्वीकारोगी 


आखिर तुमको भी पता चले ,हम कब से हुए तुम्हारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


आँचल में सुरभित गन्ध लिये,बहती है चंचल मस्त पवन


सच कहता हूँ खिल जायेगा, तेरे उर का हर एक सुमन


पंछी सा इत उत डोलेंगे ,झूमेंगे धरती और गगन 


अपने स्वागत में ही तत्पर ,जगमग यह चाँद-सितारे हैं ।।


कंचन काया------


 


मानो मन के हर कोने में ,तेरी आहट ही रहती हो 


सुर-सरिता बन कर तुम निशिदिन ,अंतस-सागर को भरती हो 


शुचि स्वप्नों का भण्डार लिये, मेरे ही लिये संवरती हो 


रेशम कुंतल बिखराओ तुम ,व्याकुल कितने अँधियारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं ।


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं ।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां सिद्धिदात्री सुमति दे


********************


हे मां सिद्धिदात्री


अष्ठ भुजा धारी जगत कल्याणी,


हम भक्तो पर कृपा बरसाओं,


तेरी महिमा अपरम्पार है मां।


 


हे मां सिद्धिदात्री


अन्दर ऐसा प्रेम जगाओ,


जन जन का उपकार करूं,


प्रज्ञा की किरण पुंज तुम,


हम तो निपट अज्ञानी है।


 


हे मां सिद्धिदात्री


करना मुझ दीन पर कृपा मां,


निर्मल करके तन-मन सारा,


मुझ में विकार मिटाओ मां,


इतना तो उपकार करो।


 


हे मां जग जननी


पनपे ना दुर्भाव कभी मन में,


ऐसी सुमति दे दो मां,


बुरा न करूं -बुरा सोचूं,


ऐसी सुबुद्धि प्रदान करो।


 


हे मां जगदम्बे


इतना उपकार करो,


निर्मल करके मन मेरा,


सकल विकार मिटाओ दो मां,


जो भी शरण तुम्हारी आते,


उन्हे सद् मार्ग बताओ मां।


*******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


********************


मदन मोहन शर्मा 'सजल'

"माँ का दरबार सजा"


(मनहरण घनाक्षरी छंद)


🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️🧚‍♂️


विधान - ८ , ८ , ८ , ७ वर्णों पर यति के साथ ३१ वर्ण प्रतिचरण, चरणांत ।S, चार चरण, चरणांत तुकांतता।


★★★★★★★★★★★★


माँ का दरबार सजा, नवरात्रि करो पूजा


आशीषों की जननी माँ, आरती उतारिये।


 


पूजा थाल पुष्प माल, चुनरियाँ टीका भाल


तन मन प्राण सागे, दुर्भाग्य बुहारिये।


 


रंक को बनाये राजा, माँ के दरबार आजा


चरणों में रख शीश, भाग्य को संवारिये।


 


ममता की देवी माता, भक्तों की पुकार माता


दुष्टों का संहार माता, हिय से पुकारिये।


★★★★★★★★★★★★


*मदन मोहन शर्मा 'सजल'*


*कोटा 【राजस्थान】*


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


देखा जो मैंने आप को दिल को लुटाना आ गया।


लुट कर मुझे कुछ यूँ लगा जैसे खज़ाना आ गया।।


 


उदासियों में अब तलक कटती रही थी ज़िंदगी।


पाकर तुम्हें जीने का उसको अब बहाना आ गया।।


 


आ गए तुम गीत लेकर जो मधुर सुर-ताल का।


देखो,सिले होंठों को मेरे गीत गाना आ गया।।


 


खिल गईं कलियाँ सभी गुलशन महकने अब लगा।


काँटों के सँग सारे गुलों को मुस्कुराना आ गया।।


 


तिश्नगी जो प्यार की थी पा तुझे अब बुझ गयी।


प्यार में मस्ती ही मस्ती का ज़माना आ गया।।


 


अब तलक रोतीं रहीं आँखे जो सागर-जल भरीं।


पा तुम्हें उनको भी अब सबको हँसाना आ गया।।


 


छँट गईं काली घटाएँ भग गए तूफ़ान सारे।


देखते ही देखते ये, मौसम सुहाना आ गया।।


           ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


सुबोध कुमार

काम बहुत थे सफर की शाम मुझे


पर फिर भी मैं मैसेज देखता रहा


 


हर टुडूंग की आवाज पर तुझे मैं


अपनी यादों में थोड़ा सहेजता रहा


 


जाकर बरामदे में किसी बहाने से


तेरी डीपी जूम करके देखता रहा


 


ना कोई फोन आया ना मैसेज तेरा


सफर में तेरा लास्ट सीन देखता रहा


 


          सुबोध कुमार


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नरेश चन्द्र द्विवेदी (शलभ )फर्रुखाबाद,

नरेश चन्द्र द्विवेदी 'शलभ' 


फर्रुखाबाद, UP. 7905055211, सेवानिवृत नगर शिक्षा अधिकारी, फर्रुखाबाद


 


 


 


मेरी लाज रखो बनबारी 


    


    नाहीं चैन दिन रैन 


       कटु लागैं मीठे बैन 


    लागे जब से नैन 


   नंदनंदन के नेह सों l


    


    कोई बात न सुहाति 


  सीरी चांदनी न भाति 


    लगैं सगे भी पराये 


  झरै आगि घिरे मेघ सों I


    


    नाव बीच तेज धार 


   आगे भंवर अपार 


    आके थामौ पतवार 


दौरि आबौ निज गेह सों l


    


    गत कंठ आए प्रान 


लाज राखौ निज आन 


    पंछी उद्धत पय छाड़ि नेह निज देह सों ll


 


 


 


 


क्षणिका 


 


बारे पै बालसखा संग खेलि के 


           दिन बीतो आनंदमयी है l


ज्वानी भी जीवन -संगिनि संग मे 


      हास बिलास में बीति गयी है l


आओ बुढ़ापा हे भगवान जौ 


          जिंदगी कैसी नर्क भयी है l


देह न नेह सहाय करै कोई 


      कैसी विधाता विपत्ति दयी है ll


 


 


उसकी लाठी है शब्द रहित दुनियां जिसकी वशबर्ती है


*****************


उस जगतनियंता का वैभव


             "मतिमंद"चतुर्दिक छाया है


पापों से संचित भौतिक सुख


             पर क्यों इतना इतराया है   


उसके अनुशासन से सूरज 


               चंदा निशि वासर प्रहरी हैं


उसकी अनुकंपा की हाथों 


                    मे देख लकीरें गहरी हैं


उसका स्नेह छितिज तट  


             से नितअमृत वर्षा करता है


मलयानिल प्राणों में पीड़ा 


               लख अनायास ही हरता है 


तेरे इन कुत्सित कर्मों की 


             सोचा है परिणति क्या होगी


हतभाग्य तेरी सदगति तो क्या


                बद से बदतर दुर्गति होगी


हिंसा ,लंपटता, लोलुपता,


                  धोखे के बीज संजोए हैं 


यह निर्विवाद है सत्य सदा


                      वो पाएगा जो बोए हैं 


ऐ नीच नराधभ,नर पिशाच 


                  मानवता कृंदन करती है


उसकी लाठी है शब्द रहित 


             दुनियां जिसकी वशबर्ती है।


 


 


 


 


छवि सिंगार मनहुँ एक ठौरी 


 


अंगन उमंग


  रग रग मे अनंग, 


      जो भी देखे होय दंग 


        ऐसी रचना छबीली सी 


 


कारे कजरारे 


   अनियारे मतबारे नैन 


      कोयल की कूक सी


         सुरतिया सजीली सी l


 


झुकि झुकि झूमि झूमि 


     हाथ सों करेजो थामि 


        ताकें सुधी कामिनी की             


           अँखियाँ नशीली सी 


 


नवयोवना सी 


  सतरंगी तितली सी लगे 


    सोने मे सुहागा देहयष्टि   


       गदरीली सी ll


 


 


सच कहती हैँ दुनियाँ.. 


 


राधा कान्ह की मिताई 


             घनी जानि दिन दिन 


बदनामी डर से बिछोह 


                 दोऊ को कियो l


कैसे हैँ कठोर दुनियां 


            के लोग प्यार को भी 


सात ताले डारिके  


        जलाएँ दोऊ को जिओ l


नटखट कान्ह 


            बृजवनितन बीच राधै 


नैनन के सैनन 


               संदेश सारो दै दियो l  


दोऊ के मुखन की 


       खिली खिली छटा विलोकि 


खुली चोरी जानि 


       मुख को अधोमुखी कियो ll


 


बुढ़ापे की बिडंबना 


***************


हाल है बेहाल, सूखी खाल, धंसे गाल, 


कान दोनोंहू सेअब नाही तनिक सुनातु है l


मुँह मे न दाँत, नाहीं पेट हू मे आंत 


दोऊ अंखियन नाही अब थोरोहू सुझातु है l


कासे कहूँ, कैसे कहूँ, सुनि अठिलैहैं लोग 


दाँत ना सो खात कौर गिरि गिरि जातु है l


बारे पै जा बेटै गोद बैठि के पिअाओ दूध 


सोई बेटा पोतै गोद देत सकुचातु है ll


 


 


 


लाखों मणियारे सर्प 


         छिपे कुंडली मार 


                अपनों के घर 


कुछ के तो आये 


          निकल पँख 


      उड़ने को बैठे हैं तत्पर 


कुछ शैशव मे ही 


           फेन उगलते 


           बढ़े आरहे हैँ सत्वर 


जीवन का कोई 


        लक्ष्य नहीं मारे 


          फिरते हैं इधर उधर 


इनका न कोई 


     अपना सपना बस 


        एक मात्र बिष बमन लक्ष्य 


पशु पक्षी कीट पतंगे 


         क्या मानव शरीर 


                   तक बना भक्ष्य 


इनका न कोई 


        मज़हब विशेष बस 


             मार काट या आगजनी 


पत्थरबाजी बलबा 


       खूंरेजी सब के सब


                    हैँ नागफनी 


ये मानवता के 


        प्रवल शत्रु इन पर 


             नकेल कसना होगा 


प्रछन्न बिषधरों को 


              चिन्हित कर


               परिमार्जन करना होगा 


सौहार्द, स्नेह, 


      आत्मीयभाव के 


         सब साधन हो चुके ब्यर्थ 


इनको बस बीन


         सपेरे की वश मे 


              करने को हैं समर्थ l


 



डॉ. रामबली मिश्र

सच्चा मन


 


जहाँ थिरकता सच्चा मन है।


परमेश्वर का वहीं वतन है।।


 


मन को सच्चा सदा बनाओ।


ईश्वर को मन में ही पाओ।।।


 


जिसका मन निर्मल होता है।


ईश्वरीय बीज बोता है ।।


 


चंचल मन को स्थिर करना।


कुत्सितता को बाहर रखना।।


 


काटो काई साफ करो मन।


पहले मन को तब पीछे तन।।


 


मन को सरिता नीर समझना।


साफ-स्वच्छ नीर को करना।।


 


जितना ही यह निर्मल होगा।


उतना ही हरि दर्शन होगा।।


 


जितना पावन भाव तरंगें।


उतनी साफ-स्पष्ट शिव गंगे।।


 


जाया करे बुद्धि शिव गंगा।


सदा मनाये हर्ष उमंगा।।


 


चेतन बन हो प्रभु में लीना।


सिखलाये मानव को जीना।।


 


सीखे मानव दर्शन करना।


प्रभु चरणों का स्पर्शन करना।।


 


बने श्रृंखला धर्म-स्वरों की।


भीड़ मचे पावन लहरों की।।


 


मन सबका पावन बन जाये।


सहज ईश दर्शन हो जाये।।


 


उठे गगन में ध्वजा तिरंगा।


जागे मन में चेतन गंगा।।


 


मन जब निर्मल धवल रहेगा।


सारा जीवन सफल रहेगा।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


 


प्रभु ने कम भी दिया,तो क्या हुआ


कभी न करना, मलाल


वो रक्खे, जैसे तुम्हे


उसमे रह, खुशहाल


दुनिया तो,अब भी वही है


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


पढ़ता रहता है,सत्य का


जो नियमित अध्याय


मां सरस्वती, उस शख्स का


करती हैं,सदा सहाय


मिल जाय सहारा,प्रभु नाम का


और नहीं, कुछ चाह


अब, रब खुद ही करेगा


बंदे का परवाह


सत्य को स्वीकारिये


चरित्र निर्माण ही,सबसे बड़ा धन है


स्वर्ग नरक है, एक कल्पना


है,असत्य ये धाम


यही भुगतना पड़ेगा


अपने कर्मो का अंजाम


यह जीवन,इक युद्ध है


कभी जीत,तो कभी हार


हरि इच्छा, होत बलवान है


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


जिसने जाना, स्वयं को


वह साधक,हो जाता हैं


तरह तरह के,धर्म है


तरह तरह के है,संत


जैसा मन,वैसा मनुष्य


दर्पण है,यह संसार


लोग अपनी ही,छबि देखता


है,इसमें बारम्बार


जीवन के सस्पेंस को,कोई समझ न पाया


चरित्र निर्माण ही, सबसे बड़ा धन है


नूतन लाल साहू


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां जगदम्बा दया करो


********************


हे मां जगदम्बा दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी को सताये नहीं,


ऐसी सुमति हमें देना मां।


 


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना मां।


 


ये जीवन तुम्ही ने दिया है


राह भी तुम्हें बताओ मां


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ मां।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो मां।


 


हे मां जगदम्बा दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाएं मां,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*बस प्रेम का ही वास हो दुनिया में।।*


*विविध मुक्तक।।*


 *1,,,,,,,,,,,,,*


*एक नेक इंसान बढ़िया बनो।।*


*।।मुक्तक।।*


किसी के अधरों की मुस्कान


खुशी का जरिया बनो।


हो सके भरा प्रेम से तुम


एक दरिया बनो।।


प्रभु का ही प्रतिरूप है हर


आदमी इस दुनिया में।


बस कुछ और नहीं तुम एक 


इंसान नेक बढ़िया बनो।।


*2.......*


 *दुआयें साक्षातभगवान होती हैं।।*


*।।मुक्तक।।*


दुआयें साथ हों तो मुश्किलें भी  


जैसे आसान होती हैं।


हवायों के रुख से पाते मंजिलें 


जो अंजान होती हैं।।


बस दुआयें लीजिएऔर दीजिए


एक दूसरे के लिए।


दुआयों की ताकतें मानो साक्षात


भगवान होती हैं।।


*3,,,,,,,,,,,,,*


 *बस प्रेम का नाम मिले तुमको।।*


*।।मुक्तक।।*


जिस गली से भी गुज़रो बस


मुस्कराता सलाम हो तुमको।


किसी की मदद तुम कर सको


बस यही पैगाम हो तुमको।।


दुआयों का लेन देन हो तुम्हारा


बस दिल की गहराइयों से।


प्रभु से करो ये गुज़ारिश कि


बस यही काम हो तुमको।।


*4,,,,,,,,,,,,*


 *जो याद रहे वह कहानी बनो।।*


*।।मुक्तक।।*


बस अपना ही अपना नहीं


किसीऔर पर मेहरबानी बनो।


चले जो साथ हर किसी के 


तुम ऐसी कोई रवानी बनो।।


जीवन तो है हर पल कुछ


नया कर दिखाने का नाम।


कोई भूल बिसरा किस्सा नहीं


जो याद रहे वो कहानी बनो।।


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                           8218685464


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खतरे में लोकतंत्र का चौथ स्तम्भ


 


लोकतंत्र की ख़ास खासियत जन जन तक 


जन जन का संवाद 


अभिव्यक्ति की आजादी


सूचना का अधिकार।।


न्याय पालिका, कार्यपालिका,


विधायिका लोकतंत्र महिमा


महत्व सार।।                      


 


चौथा संवाद


संचार का माध्यम मिडिया


का संसार।।


गांधी जी के तीन बन्दर आज


प्रसंगिग उल्टा दिखता मिडिया


सच नहीं देखता सच


नहीं दिखाता सच का कर देता


है त्याग।।                             


 


सच बोलने की हिम्मत


गर दिखलाता बतलाता कोईं


सच सिद्धान्त पर हो जाता


बलिदान।।


 


मिडिया के रूप अनेको प्रिंट मिडिया इलेक्ट्रानिक मिडिया सोशल मिडिया ना जाने कितने


अवतार।।


 


पीत पत्रकारिता टी आर पी


वायरल का कारोबार।।


 


सच को झूठ ,झूठ को सच का


खेल बनगया तमाशा लोकतंत्र


का चौथा अलम्बरदार।।


 


जन जन में अब अवधारणा


कौन सुनाएगा सच आज 


कोई बिक जाता है कोई बिकने


का करता इंतज़ार।।


 


ये कुछ सचाई है मगर आज भी


संजीदा संवेदनशील है लोक


तंत्र का चौथा स्तम्भ की धार।।


 


कितनो ने जान गवाई सच्चाई का


छोड़ा नहीं कभी भी साथ


सच के साथ खड़ा मौलिक


मूल्यों का लोक तंत्र का मजबूत


चौथा स्तम्भ मिडिया संवेदनशील बाज़।।                            


 


मिडिया लोकतंत्र का अतिमहत्वपूर्ण लोकतंत्र का आधार।।


 


मिडिया चाहे जो रातो रात


बाना दे किसी को महान


चाहे तो नैतिकता के गांधी


और महात्मा को भी कर दे शर्मशार।।


 


लोक तंत्र में मिडिया अहम


कलाकार किरदार।।


 


गर शासन प्रशासन को


रखना है संवेदन शील 


जन जन का हो कल्याण


जन जन को अधिकारों का


हो ज्ञान मिडिया स्वतंत्र निष्पक्ष


निडर निर्भीक लोक तंत्र अभिमान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


राजेंद्र रायपुरी

देखो देखो मेरे ॲ॑गना, 


एक कली मुस्काई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


लल्लन, जुम्मन, वाल्टर,केशर,


सारे आओ भाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


बड़े दिनों से आस लगी थी,


आज हुई है पूरी।


ॲ॑गना मेरे खिली कली है,


नाम रखूॅ॑गा नूरी।


 


महक उठा है घर मेरा ये,


महक उठी ॲ॑गनाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना ...........।


 


प्यारी गुड़िया जो आई है।


खुशियां झोली भर लाई है।


आते ही इसके देखो जी,


दुगनी हुई कमाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो ॲ॑गना मेरे ............।


 


खूब पढ़ाऊॅ॑गा मैं इसको।


नहीं डांस या कोई डिस्को।


चाह यही है पा ऊॅ॑चा पद,


करे देश अगुआई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना.............।


 


आस सभी अब होगी पूरी।


नहीं रहेगी एक अधूरी।


निश्चित कल को बजनी ही है,


मेरे घर शहनाई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


देखो-देखो मेरे ॲ॑गना,


एक कली मुस्काई।


आज खुशी का नहीं ठिकाना,


खाओ सभी मिठाई।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...