डॉ. रामबली मिश्र

निसर्ग


 


कितने कोमल कितने सुंदर


परम मनोहर भाव उच्चतर


दिव्य निरंकुश अति शालीना


सहज रम्य मुस्कान निरन्तर।


 


झर-झर झरना कल-कल सरिता


प्रकृति निराली में अति शुचिता


सर-सर पवन चलत सुखदायक


दिव्य तेजमय सृजित सुप्रियता।


 


हंसनाद हिमनाद मनोरम


बहत समंदर गंगा अनुपम


नदी पहाड़ वनस्थलि जंगल


खग-मृग सकल मनोहर उत्तम।


 


नैसर्गिक आनंद सुहावन


बारह माह स्वर्ग मनभावन


गगन भूमि अतिशय आकर्षक


गर्मी वर्षा शीत लुभावन।


 


मादकता संवेदना लपेटे


अपने में सत्कृत्य समेटे


बाँट रहा निसर्ग दाता बन


मुफ्त दान सद्ज्ञान अटूटे।।


 


बोल रहा है चलो प्रेम पथ


ज्ञान सीख बाँट बैठ रथ


विचलन में विश्वास न करना 


 बहे त्रिवेणी भक्ति सहित अथ।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 डॉ निर्मला शर्मा 

"ले संकल्प"


 कर दृढ़ निश्चय 


त्याग संकोच


 कदमों को बढ़ाओ 


 लक्ष्य की ओर


 ले संकल्प 


लक्ष्य को पाना है


 आवे बाधाएं 


चाहे कितनी 


मुझे हर हाल में


 जीत जाना है


 कभी बेड़ियाँ


रूढ़ियों की होंगी 


रोकेगा कभी 


परिवार डरकर 


नहीं रुकना


 तुझे चलना


 दूर नहीं 


 मंजिल की डगर


 मैं कर्तव्यनिष्ठ 


 नागरिक हूँ


 देश के लिए


 निज कर्तव्य निभाना है


 अधिकारों से


 लबरेज़ हूँ मैं


 संस्कारों का


 प्रतीक हूँ मैं


 मुडना नहीं है 


 बढ़ना है आगे


थकना नहीं है


 चलना है आगे


 देश की शांति


 सुरक्षा,एकता में


 बनूँ सहभागी


 पीड़ितों का मैं 


बनूँ एक साथी


 आतंकी, दुष्कर्मी 


असामाजिक तत्वों का


 काल बनकर उभरुँ


 करुँ संहार दुष्टों का


 ले संकल्प 


करुँ कर्म निष्काम


 ना रुकूं प्राणों का चाहे


 दूँ बलिदान


 अन्याय के आगे


 कभी ना झुकूँ


मातृभूमि पर


ये जान भी


है कुर्बान


 


 डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


डॉ. राम कुमार झा निकुंज

दिनांकः १४.१०.२०२०


दिवसः बुधवार


छन्दः मात्रिक


विधाः दोहा


विषयः होठों पर मुस्कान


शीर्षकः मुस्कान


 


जठरानल में अन्न हो , होठों . पर मुस्कान।


सबके तन पर हो वसन , सबके पास मकान।।१।।


 


धन वैभव सुख इज्जतें , सबको सदा नसीब।


सभी बने शिक्षित सबल , सोचे नव तरकीब।।२।।


 


सर्व समाज नित प्रगति हो , खुशियाँ मिले अपार।


दीन हीन अरु पददलित , हो जीवन उद्धार।।३।।


 


न्याय व्यवस्था आम जन , मानक शिक्षा नीति।


ऊँच नीच दुर्भाव मन , मिटे मिलें सब प्रीति।।४।।


 


जाति धर्म को सब तजे , मानवता हो गान।


सदाचार नैतिक सभी , सबको दें सम्मान।।५।।


 


सब सबकी चाहें भला , रखें भाव परमार्थ।


रोग विरत मानस विमल , हो चिन्तन आधार।।६।।


 


हो सुभाष नव पल्लवित ,कोमल रस मकरन्द।


पाएँ मन संतोष सब , कुसमित मुख आनन्द।।७।।


 


समरस मन संचार जन , भाव हृदय सहयोग।


खिले बेटियाँ मुख कमल , अभय सबल मनयोग।।८।।


 


जनता मन विश्वास तब , हो शासक ईमान।


चहुँदिशि जब सुख शान्ति हो,खिले खुशी मुस्कान।।९।।


 


सदा पूज्य मेधा बने , बिना जाति मन भेद।


जीने का अधिकार सब , हो घृणा कपट उच्छेद।।१०।।


 


मधुरिम वेला अरुणिमा , सब हों देश समान।


कीर्ति कुमुद मुस्कान नव , हो जीवन संधान।।११।।


 


सदा समुन्नत जन वतन , तभी समुन्नत देश।


शौर्य कीर्ति सम्मान हो , शान्ति सुखद परिवेश।।१२।।


 


आपस में सद्भावना , मिलकर चलें विकास।


मधु माधव मुस्कान जग , फैले सुखद सुवास।।१३।।


 


तभी सफल कवि कामिनी, पाठक मन उल्लास।


अलंकार ध्वनि नवरसा , रीति प्रीति गुण हास।।१४।।


 


शब्द अर्थ कवि कल्पना , सर्जन कृति सम्मान।


दर्शक पाठक कर श्रवण , दिखे ओष्ठ मुस्कान।।१५।।


 


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


कालिका प्रसाद सेमवाल

🌹🙏🏻मां शारदे🙏🏻🌹


********************


हे मां शारदे


रोशनी दे ज्ञान की,


तू तो ज्ञान का भंडार है


हाथों में वीणा पुस्तक ,


 हंस वाहनी ,कमल धारणी


ओ ममतामयी मां शारदे।


 


इतनी कृपा मुझ पर करना


मैं सदाचारी बनूं,


सत्य पथ पर ही चलूं


हृदय में दया भाव रहे,


मुस्किलों में भी न घबराओ


सुमति मुझे दे दो 


राष्ट्र प्रेम भाव हृदय में रहे,


हे मां शारदे।


 


दूर कर अज्ञानता


उर में दया का वास हो


ज्योति से भर दे वसुंधरा


यही मेरी नित्य प्रार्थाना


यही मेरी कामना


हे मां शारदे।


 


करुणा का दान दे मां


सत्य मार्ग पर मैं चलता रहू


यही मेरी वंदना,


हे मां मुझे रोशनी दे ज्ञान दे


विद्या विनय का दान दें


हे मां शारदे 


हे मां शारदे।।


**********************


📚 कालिका प्रसाद सेमवाल


          मानस सदन अपर बाजार


             रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


                  246171


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-9


अस कह बाली निज तन त्यागा।


पाइ कृपा प्रभु अरु अनुरागा।।


     बिकल बियोगहिं तारा देखा।


     कहे मिटै नहिं बिधि कै लेखा।।


तारा सुनु ई अधम सरीरा।


छिति-जल-पावक-गगन-समीरा।


    निर्मित अस तन काम न काहू।


    रुदन तोर नहिं सोहै आहू।।


माया-मुक्त पाइ अस ग्याना।


तारा भई सुबिग्य-सुजाना।।


   बुला सुग्रीवहिं कह रघुबीरा।


    मृतक क करम करउ धरि धीरा।।


लखन बुलाइ कहे प्रभु रामा।


करहु राज सुग्रीवहिं नामा।।


दोहा-लखन बुला पुर-जन तुरत,बिप्र समच्छ पद-राज।


        सुग्रीवहिं कहँ देइ के,अंगद किन्ह जुवराज ।।


        स्वारथ बस सुर-नर-मुनी,मातु-पिता,गुरु-बंधु।


        करहिं प्रीति जग महँ सभें,राम सकल संबंधु।।


        पुनि बुलाइ सुग्रीव प्रभु,राज-पाट सभ दीन्ह।


        कहे करउ अब राज तुम्ह,सँग अंगद कहँ लीन्ह।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


 


दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-5


छूइ चरन तब धाइ प्रभू कै।


करन लगे स्तुती किसुन कै।।


    हे घनरूप सच्चिदानंदा।


    हे जोगेस्वर नंदहिं नंदा।।


अहउ तमहिं परमेस्वर नाथा।


सकल चराचर तुम्हरे साथा।।


     तुमहिं त जगतै स्वामी सभ जन।


     अंतःकरण-प्रान अरु तन-मन।।


तुम्ह अबिनासी अरु सभ-ब्यापी।


रहहु अदृस सभकर बपु थापी।।


    तुम्ह महतत्वयि प्रकृति स्वरूपा।


    सुक्ष्मइ सत-रज-तमो अनूपा ।।


तुम्ह परमातम जानन हारा।


सूक्ष्म-थूल-तन कर्मन्ह सारा।।


     समुझि न आवै तुम्हरी माया।


     जदि उर बृत्ति-बिकार समाया।।


तुमहीं अद्य-भविष्यत-भूता।


नाथ भगत जन एकल दूता।।


    बासुदेव प्रभु करहुँ प्रनामा।


     पर ब्रह्महिं प्रभु सभ गुन-धामा।।


प्रनमहिं हम दोउ भ्रात तुमहिं कहँ।


तुमहिं भगावत पाप मही कहँ।।


     लइ अवतारहिं धारि सरीरा।


     हरहिं नाथ सभ बिधि जग-पीरा।।


पुरवहिं प्रभू सकल अभिलासा।


बनै निरासा तुरतै आसा ।।


     साधन-साध्यइ अहहिं कन्हैया।


     मंगल अरु कल्यान कै नैया।।


परम सांत जदुबंस-सिरोमन।


निसि-दिन रहैं सबहिं के चित-मन।।


      प्रभु अनंत हम सभ प्रभु-दासा।


       प्रभुहिं त आसा अरु बिस्वासा।।


दोहा-नारद कीन्ह अनुग्रहहि, भयो दरस प्रभु आजु।


        तारे प्रभु हम पापिहीं,सुफल जनम भे काजु।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


नूतन लाल साहू

समय,सबसे बड़ा बलवान है


 


क्यों भिड़ता है, समय से


समय है, पहलवान


जो पंगा ले, समय से


वह, पाछे पछताय


समय,सबसे बड़ा बलवान है


समय आयेगा,समय पर


समय किसी के बाप का


होता नहीं है,गुलाम


समय से पहले, किसी को नहीं मिला सम्मान


समय,सबसे बड़ा बलवान है


जो समय का,सदुपयोग करें


लिख देता है,जीत का एक नया अध्याय


योजना बनाओ,अमल करें


समय ही,सबको समझाय


समय,सबसे बड़ा बलवान है


थोड़ा सब्र कर,सत्कर्म कर


फिर जो मांगेगा,तुझे दे देंगा भगवान


बदल सोचने का ढंग


यदि सुख की है,चाह तुम्हे


समय,सबसे बड़ा बलवान है


दुबारा नहीं लौटता है


बचपन के वो,बीते हुए काल


दूसरो को मिटाने, जो चला था


वो स्वयं,हो गया साफ


समय,सबसे बड़ा बलवान है


अगर, एक द्वार बंद हो जावे


तो तुम,करना नहीं मलाल


ऊपर वाला,खोलता है


भाग्य के,कई द्वार तत्काल


समय,सबसे बड़ा बलवान है


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।एक अवगुण*


*क्रोध का सौ गुणों पर*


*भारी है।।*


 


क्रोध जलते कोयले सा


जो तूने पकड़ रखा है।


इस घृणा की अग्नि ने


तुझे जकड़ रखा है।।


यह आग तुझ को भी


जला कर खाक करेगी।


इसी अहम भाव ने तेरे


भाग्य को रगड़ रखा है।।


 


क्रोध आता नहीं अकेले


लेकर आता है चार।


क्रोध के साथी तो ईर्ष्या


और आ जाता अहंकार।।


दूसरे का नहीं अपना 


होता अधिक नुकसान।


नम्रता हो जाती विलुप्त


और लाता है अंधकार।।


 


सोच विचार दृष्टि पर


छा जाती मैली चादर।


मानसिकता मनुष्य की


भूल जाती भाव आदर।।


कलुष भावना का लग


जाता ग्रहण आदमी को।


आदत हर किसी का


करती जाती है अनादर।।


 


क्रोध का त्याग ही उन्नति


का मार्ग प्रशस्त करता है।


आदमी होता लोकप्रिय


तेजी से आगे बढ़ता है।।


सौ गुण व्यक्ति के होने


होने लगते हैं उजागर।


जो एकअवगुण क्रोध का


बस मनुष्य तजता है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


इक नज़र तुमने जो निहारा है


दिल पे क़ाबू नहीं हमारा है


 


ख़्वाहिशें हो रहीं हैं सब पूरी


साथ जबसे मिला तुम्हारा है


 


प्यार से इक नज़र इधर देखो 


कितना ख़ुशरंग यह नज़ारा है


 


नाख़ुदा यह तेरी बदौलत ही


मुझको हासिल हुआ किनारा है


 


हूक उठती है इस तरह दिल में


जैसे तुमने मुझे पुकारा है


 


बेवफ़ा कह के तूने ऐ ज़ालिम


दिल में खंजर सा इक उतारा है 


 


तेरे आने से ही मेरे *साग़र* 


चमका क़िस्मत का यह सितारा है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

जय माँ शारदे


 


सिंहावलोकन घनाक्षरी छंद


 


 


तोड़ने लगी है दंभ , भारतीय सेना देखो , 


अरिदल का ये सर , निज कर फोड़ने। 


 


फोड़ने में भाई देखो , छोड़ी न कसर कोई , 


चीनियों का लगी वह , कान भी मरोड़ने। 


 


मरोड़ने लगे कान , चीं चीं चीं चीं करते हैं , 


टैंक भी तैयार खड़े , गोला अब छोड़ने ।


 


छोड़ने की बात मन , पृथ्वीराज के जो आई , 


गजनी था लगा फिर , भारत को तोड़ने। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


गाँव दुतारांवाली अबोहर पंजाब


कालिका प्रसाद सेमवाल

मातृ दिवस पर मां को समर्पित पुष्प


********************


मां


एक विश्वास है


एहसास है


प्यार का चम


दुलार का


जिसे पाते ही


हम भूल जाते है


अपने सारे


दुःख दर्द


जिसने दिया ही दिया 


बदले में


कुछ भी नहीं लिया।


 


मां 


परिवार की धुरी होती है


जिसकी


छत्र छाया में


हम फलते फूलते है।


 


 मां सच्चाई है


जो केवल 


देती ही देती है


बदले में


नहीं लेती कुछ


देखती है


केवल एक ही सपना


हमारे बडे होने का


घर बसाने का


तथा अपने को 


दादी होने बनने का।


 


मां को खुश रखना है


यही काम ,


हर बच्चे को अपनी मां के लिए करना है।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*कृषक*(दोहे)


कृषक बैल-हल से करे,सतत जुताई-काम।


उगा फसल यह अन्नप्रद, कर दे महि सुख-धाम।।


 


धरती-पुत्र किसान यह,करता कर्म महान।


बैल और हल ले दवा,करता भूख-निदान।।


 


मिट्टी से लथपथ बदन,काया से अति क्षीण।


पर किसान मन का सबल,रह निज कर्म प्रवीण।।


 


सूखी मिट्टी भुरभुरी,रबी- फसल-आधार।


गीली-कीचड़ से सनी,हो खरीफ़ दरकार।।


 


उगा फ़सल दोनों कृषक,करे जगत-कल्याण।


उदर सभी का भर रहा,रक्षक जन-जन-प्राण।।


 


वंदनीय हे कृषक तुम,हो धरती-भगवान।


हर ऋतु-प्रहरी हो तुम्हीं,हे नर कर्म-प्रधान।।


 


रहे स्वस्थ-संपन्न यह,सब जन करें प्रयास।


गो-रक्षक-पालक यही,करें न इसे उदास।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               9919446372


सुनीता असीम

सीख इस प्यार की सीखी है तुम्हीं से हमने।


हौंसले अपने बढ़ाए हैं यकीं से हमने।


********


जिनसे शिक्षा है मिली दान दया की हमको।


ली मुहब्बत की इनायत भी उन्हीं से हमने।


********


सरफ़रोशी की तमन्ना थी जगी दुनिया में।


जोश का जज्बा लिया सिर्फ वहीं से हमने।


********


एक राजा था हुआ और हुई इक रानी।


ये कहानी सुनी है पहले कहीं से हमने।


********


पार सागर के क्षितिज जो है दिखाई देता।


आसमां को यूं मिलाया है ज़मीं से हमने।


********


सुनीता असीम


सुबोध कुमार

मैं क्या हूं


 


सवाल ये नहीं है मैं क्या हूं


और मैं क्या नहीं हूं


 


मैं क्या हूं और क्या नहीं हूं


मैं ये सोचता ही नहीं हूं


 


मैं जो भी हूं और जैसा भी हूं


पर मैं गलत तो नहीं हूं


 


मैं जो देखता हूं और सुनता हूं


मैं वह समझता तो नहीं हूं


 


इस समाज की शक्ल में जो है


मैं वह दायरा तो नहीं हूं


 


मैं समझा गया ही नहीं कभी


वह फलसफा तो नहीं हूं


 


मैं चला जाता कहां पर रूठ कर


नफरतों का सिलसिला तो नहीं हुं


 


कैसी मीना और कैसा मयखाना


मैकदे में हाजिर ही नहीं हूं


 


यकीन करता हूं ज्यादा तो क्या


पर मैं कुछ भूला तो नहीं हूं


 


वह तौफीक दी है ऊपर वाले ने


कि मैं नाशुक्रा भी नहीं हूं


 


जाते जाते बस कहे जाता हूं मैं


मैं जो हूं बस वही हूं बस वही हूं


 


       सुबोध कुमार


मधु शंखधर स्वतंत्र

*दोहा गीतिका*


 


आज साथ ऐ साथिया, चलूँ चाँद के पार।


जहाँ प्यार ही प्यार हो, गढ़ ऐसा संसार।।


 


हम दोनों का साथ हो, धड़कन साँसों भाँति,


एक दूजे में लीन हो, खोजे मनुज हजार।।


 


नयनों से नयना मिले, अभिव्यक्ति हो मौन,


घायल करते नैन ये, जैसे चले कटार।।


 


सुर सरगम के साथ मैं,गीत सुनाऊँ मीत,


गीतों में तल्लीन हो, छेड़ूँ दिल के तार।।


 


प्रेम अगन यूँ जल रही, मन में है इक आस,


बुझा सकोगे आग ये, गाकर मेघ मल्हार।।


 


 


प्यार सृष्टि का रूप है, शोभित सभ्य समाज,


प्यार सत्य लेता सदा, साधक का आकार।।


 


प्यार बिना जीवन कहाँ, सौम्य सुखद यह भाव,


हो *मधु* का मनमीत तुम,ईश्वर का आभार।।


*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*


*प्रयागराज*


डॉ निर्मला शर्मा 

" मिसाइल मैन कलाम "


 आधुनिक भारत के 


 वे व्यक्तित्व महान


सर्वप्रथम थे शिक्षक


 दिया जिन्होंने ज्ञान 


वैज्ञानिक अप्रतिम थे


लोहा माने सारा जहान 


राजनेता की छवि में 


लोकप्रिय वह राजा समान 


परमाणु क्षमताओं का 


देश को दिया अनुपम उपहार 


विश्व स्तर पर बनाया सक्षम


 किया स्वप्न साकार


 युवाओं के मार्गदर्शक 


यूथ आइकन बने विचार


 बाल हित के संरक्षक 


वात्सल्य था मन में अपार


जीवन के आखिरी क्षण में भी 


थे बालकों के हित में साध्य 


विविधता बहुसांस्कृतिकता एवं


 नवीनता के बने वे माध्य 


पद्म भूषण, पद्म विभूषण 


भारत रत्न से अलंकारित


अनेकानेक सम्मान मिले पर 


जीवन था संस्कारित


 साहित्य, कला, संस्कृति के


 सबसे बड़े समर्थक


 राष्ट्रपति पद पर था शोभित


 वह व्यक्तित्व विलक्षण 


सादा जीवन उच्च विचार के


 वे सदैव अनुगामी 


पद चाहे सर्वोच्च रहा हो 


व्यक्तित्व था सदा जमीनी


 बाधाएं जितनी आई


 असफलता कभी डिगा ना पाई 


चले निरंतर पथिक मार्ग के


 सफलता सर्वोच्च पाई 


शत -शत करूँ प्रणाम उन्हें में


 हृदय से करूं सलाम


 वे सच्चे नागरिक देश के


 महान मिसाइल मैन कलाम 


 


डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 


लिए समर्पण-भाव हृदय में,


अपनी बाँह पसारे हैं।


आओ, प्रियवर देख रहे पथ-


मादक नैन हमारे हैं।।


 


चाहत के आँगन में अपने,


हमने सेज सजाई है।


नील गगन की चंद्र-चंद्रिका,


दिलवर, देख बुलाई है।


प्रेम-सुमन से सभी सुगंधित-


घर-आँगन-चौबारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


शीतल-मंद समीर सुगंधित,


मन में भाव जगाता है।


पिया-मिलन का भाव हृदय में,


बार-बार उकसाता है।


बिंदी-काजल-कंगन-चूड़ी-


पहन शरीर सवाँरे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्रेम प्यास-विश्वास-आस है।


इसकी शुचिता न्यारी है।


प्रेम-भावना विमल सोच है,


सभी सोच पर भारी है।


सदियों से हम इसी सोच को-


साजन,उर में धारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।।


 


प्यासी नदी सिंधु से मिलती,


जल-बूँदों का धरा-मिलन।


रस-पराग-मकरंद हेतु ही,


होता भौंरों का गुंजन।


इस नैसर्गिग सहज मिलन को-


खड़े आज हम द्वारे हैं।


       मादक नैन हमारे हैं।


 


करें यत्न हम दोनों मिलकर,


प्रेम-ज्योति यह जला करे।


हरे तिमिर घनघोर जगत का,


भटके जन का भला करे।


सच्चे प्रेमी तूफानों से-


नहीं कभी भी हारे हैं।


     आओ, प्रियवर देख रहे पथ,


      मादक नैन हमारे हैं।।


              ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ0 निर्मला शर्मा

●जीवन के रंग ●


जन्म से मृत्यु पर्यन्त


जीवन के हैं अनेक रंग


कभी धूप कभी छांव सा


 जीवन चले ढलती शाम सा 


विविध रंगों से सजा ये जीवन 


शिशु, बालक, युवा होता ये तन


 गहराती ये शाम सुहानी 


जीवन की अनकही कहानी 


संघर्षों से तपा ये जीवन 


देता नई भोर की दस्तक 


अग्नि में जब स्वर्ण तपाया


 वह उतना ही निखर के आया


कर्मठ बनो छोड़ दो आलस


 बदलो रेखाओं का मानस


 जिसने कर्म पथ है अपनाया


 जीवन उसने ही चमकाया


 जगत- भंवर मैं डटा है जमकर


 पाया उसने हर पल अवसर


 डॉ0 निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


डॉ शिवानी मिश्रा

हरि महिमा(मुक्तक काव्य)


 


 


हरि सत्य है


हरि सार्थक,


हरि ही जीवन


हरि ही माया


हरि मिथ्या


हरि से ही 


बनी यह दुनिया


हरि ही ज्ञान


हरि अज्ञान


हरि से ही


सबके प्राण


हरि ही रचना


हरि ही रचयिता


हरि ही विध्ना


हरि ही विधान


हरि ही भोजन


हरि मिष्ठान


हरि ही क्षुधा


हरि ही पान


हरि ही वृक्ष


हरि ही पुष्प


हरि ही मानव


हरि से दानव


हरि से जीवन


हरि ही मृत्यु


हरि से ही


समस्त संसार


हरि हैं कर्ता


हरि ही कारक


हरि से ही होता


सबका कल्याण।


 


 


डॉ शिवानी मिश्रा


प्रयागराज।


अभय सक्सेना एडवोकेट

सामाजिक व्यंग्य


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जीजी की शादी में जूतों का चमकाना 


 


अभय सक्सेना एडवोकेट


 


याद आगया मुझको वो दिन सुहाना


जीजी की शादी में जूतों का चमकाना।


बरात में कुछ आम तो बहुतेरे खास भी होते हैं


बेवजह कमियां निकालने के उस्ताद होते हैं।


उन्हीं में से खासमखास यूं जिद कर बैठे


मोची को बुलाओ और मेरा जूता पालिस कराओ।


जनवासे से मोची कभी का जा चुका था


दूल्हा भी घोड़ी चढ़ आगे बढ़ चुका था।


सख्त मुसीबत में फंस गई थी जान


अभय बेचारा कैसे बचाता इनसे अपनी आन।


तुरंत ही उसने दिमाग का दरवाजा खोल दिया


झट रुमाल निकाल उनका जूता साफ किया।


यह देख दीदी के ससुर लगे गुस्साने


क्यों लगे अभी से अपनी खासियत दिखाने।


बहू के भाई को भी नहीं छोड़ा


तुमने तो हमें कहीं का भी नहीं छोड़ा।


यह सुन मैंने उनके चरण पकड़ लिये


छोड़िए बाबूजी


 यहतो चलता ही है


लड़के और लड़की वालों में कुछ फर्क होता ही है।


क्षमा करें अभय को और शर्मिंदा न करें


कृपा करके आप भी अपने पैरों को आगे करें 


आगे करें


आगे करें।।


अभय सक्सेना एडवोकेट


४८/२६८, सराय लाठी मोहाल, जनरल गंज, कानपुर।


मो.९८३८०१५०१९


८८४०१८४०८८


डॉ.रामबली मिश्र

जहाँ थिरकता सच्चा मन है।


परमेश्वर का वहीं वतन है।।


 


मन को सच्चा सदा बनाओ।


ईश्वर को मन में ही पाओ।।।


 


जिसका मन निर्मल होता है।


ईश्वरीय बीज बोता है ।।


 


चंचल मन को स्थिर करना।


कुत्सितता को बाहर रखना।।


 


काटो काई साफ करो मन।


पहले मन को तब पीछे तन।।


 


मन को सरिता नीर समझना।


साफ-स्वच्छ नीर को करना।।


 


जितना ही यह निर्मल होगा।


उतना ही हरि दर्शन होगा।।


 


जितना पावन भाव तरंगें।


उतनी साफ-स्पष्ट शिव गंगे।।


 


जाया करे बुद्धि शिव गंगा।


सदा मनाये हर्ष उमंगा।।


 


चेतन बन हो प्रभु में लीना।


सिखलाये मानव को जीना।।


 


सीखे मानव दर्शन करना।


प्रभु चरणों का स्पर्शन करना।।


 


बने श्रृंखला धर्म-स्वरों की।


भीड़ मचे पावन लहरों की।।


 


मन सबका पावन बन जाये।


सहज ईश दर्शन हो जाये।।


 


उठे गगन में ध्वजा तिरंगा।


जागे मन में चेतन गंगा।।


 


मन जब निर्मल धवल रहेगा।


सारा जीवन सफल रहेगा।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


आत्मदर्शन


 


मानव मन की निर्मलता हो


शुद्ध हॄदय में शीतलता हो


बौद्धिकता में पावनता हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


सिद्ध सज्जनों की संगति हो


जीव जगत के लिये भक्ति हो


निर्बल के रक्षार्थ शक्ति हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मन सबके सेवार्थ समर्पित


करुण भावना हो जब तर्पित


दीन-दुःखी के प्रति आकर्षित


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मन में ईर्ष्या-द्वेष नहीं हो


छल-प्रपंच का नाम नहीं हो


सबके प्रति सहयोग भाव हो


आतम का तब दर्शन होगा।


 


मानव देहरहित हो जाये


संवेदना सहज जग जाये


दूषित बुद्धि नष्ट हो जाये


आतम का तब दर्शन होगा।


 


डॉ.रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-8


 


देखि राम पुनि बाली बोला।


सुफल जनम मम कह मुँह खोला।।


    कवन पाप अस भयो हमारा।


     जेहिं तें प्रभु बस हमहीं मारा।।


सुनु बाली तव बड़ अपराधू।


तुम्ह बहु सठ अरु कुमत-असाधू।।


     तनया-बहिन,अनुज-भामिनिहीं।


     निज सुत-बधू कुदृष्टिहिं तकिहीं।।


उनहीं बधे पाप नहिं होवहि।


इन्हकर बध करि जग नर सोहहि।।


      समुझि सके नहिं नारि-सिखावन।


      नहिं लखि सके प्रबल भुज पावन।।


होइ उन्मत्त दर्प-अभिमाना।


चाहे हरन अनुज कै प्राना।।


    निज प्रसाद बाली कह देवहु।


    प्रभु निज सरन मोंहि अब लेवहु।।


राम परसि बाली कै सीषा।


दीन्ह प्रान-तन अचल असीषा।।


    पा असीष अस बाली बोला।


    कछु नहिं अरथ प्रान अरु चोला।।


बड़-बड़ ऋषि-मुनि,दिग्गज संता।


कहि नहिं सके 'राम' मुख अंता।।


    प्रभु-प्रताप-बल कासी-संकर।


    करै अमर जग-जीव निरंतर।।


ई बड़ भागि मोर प्रभु मिलहीं।


अस सुजोग पुनि होय न जनहीं।।


     नेति-नेति कहि सभ श्रुति गावैं।


     जासु पार नहिं ऋषि-मुनि पावैं।।


पाइ तोहिं प्रभु प्रान न राखब।


सुर-तरु तजि बबूर नहिं पालब।।


दोहा-देहु मोंहि प्रभु एक बर, रहहुँ चरन तव दास।


        अंगद मम सुत दे सरन,रखहु सदा निज पास।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


 


दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-4


अस कहि नारद कीन्ह पयाना।


नर नारायन आश्रम जाना ।।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।


     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।


तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।


जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।


    नारद रहे किसुन कै भक्ता।


    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।


जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।


खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।


     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।


     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।


निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।


बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।


      रसरी सहित गए वहि पारा।


       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।


रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।


उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।


     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।


     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।


प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।


तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।


दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।


        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।


                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


नूतन लाल साहू

सांच को आंच नहीं प्यारे


 


आता है सबका शुभ समय


फिर काहे को रोता है


लिख के रख ले, एक दिन


काम तुम्हारा,होगा


समझ न पाया,कोई भी


तकदीरो का,राज


भक्त प्रहलाद सा,अटल विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


अगर कुछ,बुरा भी हो जाये


तो खो मत देना, होश


हरि की इच्छा समझकर


कर लेना,मन में संतोष


बिगड़ी बनाने वाला,ऊपर वाला है


एकाध नहीं हो पाया,तो


क्यों शोर,मचाता है


राजा हरिश्चन्द्र जैसा,दृढ़ विश्वास हो तो


सांच को आंच,नहीं प्यारे


कितना भी जालिम हो जाये


कुदरत का कानून


चाहे दुश्मन,अपनी उम्र भर


करता रहे,कुछ भी उपाय


हानि लाभ,जीवन मरण


यश अपयश,विधि के हाथ


पसीने की बूंदें,देती हैं आह्लाद


सांच को आंच,नहीं प्यारे


प्रारब्धों का योगफल और


कई जन्मों के कर्मफल से


बनता है,मनुष्य का भाग्य


दोष देखना,दूसरो का


बंद कीजिये, आप


कुदरत नित देती नहीं है


दुःख सुख की सौगात


जो देता है ईश्वर,उस पर रख संतोष


सांच को आंच, नहीं प्यारे


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

।बेटी बचायें/बेटी पढ़ाएं*


*रचना शीर्षक।।*


*बेटियों के जरिये ही आतीं* 


*रहमते भगवान की।।*


महाभारत चीरहरण हर दिन


है चिता जलती हुई।


हो रही रोज़ मौत इक


बेटी की पलती हुई।।


बच्ची की दुर्दशा देख रोता


है मन मायों का।


चीत्कारों में मिलती आशा


नारी की गलती हुई।।


 


दानवता दानव की अब बस


शामत की बात करो।


कहाँ हो रही चूक बस उस


लानत की बात करो।।


हर किसी को जिम्मेदारी


समाज में लेनी होगी।


सुरक्षा बेटियों की बस इस


बाबत की बात करो।।


 


अच्छा व्यवहार बेटियों से


ही निशानी इंसान की।


इनसे घर शोभा बढ़ती जैसे


परियां आसमान की।।


बेटी को भी दें बेटे जैसा घर


में प्यार और सम्मान।


मानिये कि बेटियों के जरिये


आती रहमते भगवान की।।


 


खुशियाँ जमाने भर की संग


वह बटोर लाती है।


खुशनसीब हैं वो लोग जिनके


घर बेटी आती है।।


सृष्टि की रचनाकार ईश्वर का


प्रतिरूप हैं बेटियाँ।


सुख दुख में बेटों से भी बड़ा


काम बेटियाँ कर जाती हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


 


फिर बन जाता है स्वर्ग वहीं*


*(हाइकु)*


1


न्याय प्रियता


यही तो स्वर्ग देश


मन चाहता


2


करुणा वास


वही स्थान स्वर्ग है


दया निवास


3


सत्य की जय


बन जाता स्वर्ग है


नहीं हो भय


4


संवेदना हो


होता स्वर्ग का वास


जहाँ भाव हो


5


सुंदर सोच


क्रोध नहीं तो स्वर्ग


नहीं हो रोष


6


दानशीलता


उपकार स्वर्ग है


नम्र शीलता


7


आत्म चिंतन


बन जाता स्वर्ग वो


आत्म मनन


8


निर्मल मन


यही तो स्वर्ग बस


स्वस्थ हो तन


9


मानव प्रेम


स्वर्ग बसता वहीं


रहें सप्रेम


10


सहनशील


धैर्य से बने स्वर्ग


बनो सुशील


11


प्यार करुणा


स्वर्ग के दो कारक


घृणा हरणा


12


माँ का आँचल


स्वर्ग सी गोद माँ की


स्नेह आँचल


13


आत्म सौंदर्य


भीतर सुंदरता


मन सौंदर्य


14


पवित्र मन


स्वर्ग समान बोध


स्वच्छ हो तन


15


मधुर भाव


वहीं बनता स्वर्ग


सबमें चाव


16


शिष्टाचार हो


स्वर्ग के दो कारक


सदाचार हो


17


सहानुभूति


स्वर्ग सी अनुभूति


कल्याणी नीति


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*'"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


विनय साग़र जायसवाल

गीत--


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं


 


तेरे नयनों में मचल रही, मेरे जीवन की अभिलाषा 


कुछ और निकट आ जाओ तो,बदले सपनों की परिभाषा 


है तप्त बदन हैं तृषित अधर,कबसे है यह तन मन प्यासा ।।


तुम प्रेमनगर आ कर देखो ,महके-महके गलियारे हैं ।।


कंचन काया-----


 


बरसा दो प्रेम सलिल आकर ,इस जलते नंदन कानन में


अंतस स्वर अब तक प्यासे हैं ,मेघों से छाये सावन में 


कितना उत्पात मचाती हैं ,तेरी छवियाँ उर-आँगन में 


तुम राग प्रणय का गाओ तो ,हँसते-खिलते उजियारे हैं ।।


कंचन काया -----


 


तुम साँझ-सवेरे दर्पण में ,अपना श्रंगार निहारोगी


मेरे सपनो के आँगन में, यौवन के कलश उतारोगी 


कब प्रणय-निमंत्रण आवेदन ,इन नयनों के स्वीकारोगी 


आखिर तुमको भी पता चले ,हम कब से हुए तुम्हारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


आँचल में सुरभित गन्ध लिये,बहती है चंचल मस्त पवन


सच कहता हूँ खिल जायेगा, तेरे उर का हर एक सुमन


पंछी सा इत उत डोलेंगे ,झूमेंगे धरती और गगन 


अपने स्वागत में ही तत्पर ,जगमग यह चाँद-सितारे हैं ।।


कंचन काया------


 


मानो मन के हर कोने में ,तेरी आहट ही रहती हो 


सुर-सरिता बन कर तुम निशिदिन ,अंतस-सागर को भरती हो 


शुचि स्वप्नों का भण्डार लिये, मेरे ही लिये संवरती हो 


रेशम कुंतल बिखराओ तुम ,व्याकुल कितने अँधियारे हैं ।।


कंचन काया ----


 


संयम के आधारों से अब ,फूटे मदरिम फुब्बारे हैं ।


कंचन काया पर राम क़सम, यह नैना भी कजरारे हैं ।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां सिद्धिदात्री सुमति दे


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हे मां सिद्धिदात्री


अष्ठ भुजा धारी जगत कल्याणी,


हम भक्तो पर कृपा बरसाओं,


तेरी महिमा अपरम्पार है मां।


 


हे मां सिद्धिदात्री


अन्दर ऐसा प्रेम जगाओ,


जन जन का उपकार करूं,


प्रज्ञा की किरण पुंज तुम,


हम तो निपट अज्ञानी है।


 


हे मां सिद्धिदात्री


करना मुझ दीन पर कृपा मां,


निर्मल करके तन-मन सारा,


मुझ में विकार मिटाओ मां,


इतना तो उपकार करो।


 


हे मां जग जननी


पनपे ना दुर्भाव कभी मन में,


ऐसी सुमति दे दो मां,


बुरा न करूं -बुरा सोचूं,


ऐसी सुबुद्धि प्रदान करो।


 


हे मां जगदम्बे


इतना उपकार करो,


निर्मल करके मन मेरा,


सकल विकार मिटाओ दो मां,


जो भी शरण तुम्हारी आते,


उन्हे सद् मार्ग बताओ मां।


*******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


 मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


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