डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*सम्मान*


 


छोटा बड़ा न जानिये, सब हैं एक समान।


हर मानव को चाहिये, स्नेह प्रेम सम्मान।।


 


उम्र बड़ी होती नहीं, होता बड़ा विचार।


रचते दिव्य विचार ही, प्रिय स्वर्गिक संसार।।


 


बड़ी उम्र में यदि घुसा, मन में घटिया भाव।


बड़ा उसे कैसे कहें,जिसके गंदे दाव।।


 


बड़ा वही ताउम्र है, जिसमें बुद्धि-विवेक।


करता काम अनेक है, बनकर सबका नेक।।


 


मानवीय संवेदना, का जिसमें भण्डार।


वही परम सम्मान का, रखता है अधिकार।।


 


मानव हड्डी-मांस का, पुतला नहीं है जान।


सद्विचार के माप से, कर लो इसका ज्ञान।।


 


अंतहीन यह पथिक है, अंतहीन है पंथ।


जीवन पथ पर चल रहा, लिखते अपना ग्रन्थ।।


 


यह विचार का पुंज है, चिंतन इसका मूल।


बन जाता सत्कर्म से , इक दिन सुरभित फूल।।


 


मानवता से युक्त जो, नैतिकता आधार।


रचता रहता अनवरत, सम्मानित संसार।।


 


ऐसे सम्मानित मनुज, की मत पूछो आयु।


जग का संचालन यही, करते बनकर वायु।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर "श्री हंस"

*।।माँ शेरोंवाली।।माँ दुर्गा।।*


*।।अष्ट भुजा धारी ।।*


 *।।नवरात्री महिमा आपार।।*


 


*।1। ।। मुक्तक।।*


 


अष्ट भुजा धारी माँ दुर्गा


लेकर नौ महिमा के अवतार।


प्रकट हुई हैं देवी मैया


हम भक्त जनों के द्वार।।


कलश कसोरा जौ ओ पानी


पुष्प दीप संग करें अगवानी।


करें प्रार्थना माँ बरसाये कृपा


हो हम भक्त जनों का उद्धार।।


 


*। 2। ।।मुक्तक।।*


 


शारदीय नवरात्रि का रामनवमी


विजयादशमी से होता है अंत।


कन्या पूजन से मिलता उत्तम


फल और मन होता है संत।।


जै माता के जयकारों से हो


जाता है सबका बेड़ा पार ।


हर इक रूप महिमा में समाया


होता है भक्ति शक्ति का मंत्र।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री*


*हंस*"


*बरेली।।*


मो 9897071046 ।।।।।


8218685464 ।।।।।।।।।


एस के कपूर "श्री हंस"

*रचना शीर्षक।।*


*हर जुबां पर महोब्बत को*


*सलाम हो जाये।।*


 


काँटों की खेती करता हूँ


फूल बन कर।


गुलों की हिफाज़त करता


हूँ शूल बन कर।।


गमों में भी मुस्कराता हूँ कि


तबियत ऐसी ही मेरी।


हँसता हूँ सामने सबके बस


एक असूल बन कर।।


 


दुआ सबकी चाहिये बददुआ


किसी की लेता नहीं।


सौदा प्यार का करता हूँ और


नफरत को देता नहीं।।


मैं ही अव्वल नहीं कोई ऐसा


रखता यकीन।


जुबान मीठी रखता हूँ बात


कड़वी कहता नहीं।।


 


रिश्तों में झुक जाना बात


अजीब लगती नहीं है।


किसी का दिल मुझसे दुखे ये


तहजीब लगती नहीं है।।


सूरज भी तो ढल जाता है


चांद के लिए हमेशा।


झूठ को सच बना जीतूं सही


तरकीब लगती नहीं है।।


 


अल्फाजों का रखता हूँ ध्यान


कि मेरा किरदार बनाते है।


शब्द हमेशा मीठे ही कि यह


मेरा व्यवहार बनाते हैं।।


हालात हों खराब तो भी मैं


हौंसला खोता नहीं।


ये सबब परेशानियों के मुझे


और दिलदार बनाते हैं।।


 


दिल चाहता खूबसूरत सबेरा


ओ सुहानी शाम हो जाये।


दुनिया में बहुत ऊपर प्रेम का


पैगाम हो जाये।।


कुछ यूँ हो कुदरत का कोई


अजब सा करिश्मा।


कि हर जुबां पर महोब्बत


को सलाम हो जाये।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                      8218685464


एस के कपूर "श्री हंस"

*आज का विषय।। गद्य साहित्य।। आलेख।।*


*दीपावली।।दीपपर्व है,दिखावा पर्व नहीं।।*


 


(त्योहारों का समय आने वाला है, अतएव एक समसामयिक विषय को


रचनाधर्मिता के लिए चुना है।)


 


घंटो जहरीली गैस निकालते, धूम धड़ाके वाले पटाखे ,जो पर्यावरण ,आँखों,साँस,स्वस्थ्य को नुकसान भी पहुंचाते हैं और वायु मंडल में ऑक्सीजन की कमी पैदा करते हैं और चकाचौंध करती नकली और चीनी लाइट्स,महंगे कपडे,मिठाई जो मिलावटी भी हो सकती है,कार्ड्स,मंहगी मोमबत्तियों का प्रयोग ,सोने के सिक्के, बिस्कुट, सोने चांदी के लक्ष्मी गणेश,केवल यह ही दीपावाली नहीं है।यह हमारी पुरातन संस्कृतिपूर्ण दीपावली का ,कुछ विकृत व आधुनिक बाज़ारी संस्करण है।


वास्तव में दीपावली हमारे ,पुरातन संस्कारों से जुड़ा, दीपपर्व है।


इसको मनाने में भारतीयता की सोंधी महक आना बहुत जरुरी है।


ठीक है ,आधुनिकता और समय के साथ कुछ सजावट,रंगरोगन,साज सज्जा आदि सब ठीक है, पर साथ ही घर में बने मिठाई और पकवान,नये लक्ष्मी गणेश की विधिवत स्थापना व पूजन व आरती, माँ लक्ष्मी का आव्हान,कुबेर यंत्र,मिट्टी और तेल के दीये,यम दीया,तुलसी पर दीया,जल के पास दीया,कूड़े के स्थान पर दीया, घर द्वार आंगन के पास रंगोली, पड़ोस में जाकर व्यक्तिगत रूप से, दीपावली की शुभकामनायें,बड़ों का चरणस्पर्श,पूजा की थाली,खीलें ,खिलोने, बताशे,सिक्का ,द्वार, आदि में रोली से ॐ,स्वस्तिक,शुभ लाभ,द्वार पर आधुनिक वंदनवार के साथ ही


 पारंपरिक फूलों व पत्तों जैसे आम अशोक ,गेंदे के पत्तों।फूलों की वंदनवार , छप्पन भोग , धनतेरस पर बर्तन खरीद,पूजन के पश्चात तिलक ,कलावा,यह सब कुछ ऐसी बातें व क्रियायें व परम्परायें हैं , जो हमें अवश्य करनी, निभानी चाहिए और नई पीढी के सामने करनी चाहिए या उनसे ही करानी चाहिए।जिससे नई पीढ़ी को, दीपावली का केवल बाज़ारी रूप ही सामने न आए और इस महत्वपूर्ण दीपपर्व की महत्ता और विरासत और पैराणिक कथायों का भी महत्व ,उन्हें पता चले।अब ज्ञात हुआ है ,कि इस वर्ष


गाय के गोबर के दीये भी उपलब्ध हो जायेंगे।


दीपावाली, धनतेरस,छोटी दीपावली(नरक चतुर्दशी), बड़ी दीपावली,अन्नकूट यानि गोवर्धन पूजा,भैयादूज यानि यमद्वितीया, इन पांच पर्वों का मिश्रित रूप है ,अतः खाने पीने के खर्चे ,आने जाने ,लेने देने, में बहुत समझदारी और व्यवहारिक रूप से व्यय करें, कि पर्व की सुंदरता भी बनी रहे और आपका आय व्यय का बजट भी नहीं गड़बड़ाए।


नई पीढ़ी को भी बताएं ,कि इस दीप पर्व में खील ,बताशे ,मीठे खिलौने,धनतेरस पर शगुन के लिए बर्तन खरीदने का ,नरक चतुर्दशी पर नई झाडू का ,अपना एक महत्त्व होता है।केवल सोना , चांदी, चकाचौंध वाले सामान,रात भर जुआ खेलना आदि ही दीवाली नहीं है।


दीपावली में मिलकर घर की सफाई करें,पुराने सामान,कपड़ों को गरीबों को दान करें या अनाथालय आदि में जरूरत के हिसाब से दें।पुराने पूजा अर्चना सामान का जल प्रवाह,आपके द्वारा मिलकर की गई सफाई से ,जो घर में चमक और रौनक आएगी, वो हज़ारों लाखों से खर्च करने की, रोशनी से कँही अधिक चमकदार होगी।


अंत में केवल यही बात कहनी है, कि दीवाली को दिखावा पर्व नहीं दीपपर्व के रूप में मनाएं ,जिसमें संस्कार संस्कृति, भारतीयता का प्रतिबिंब स्पष्ट अवलोकित हो।हाँ, और आजकल इस कॅरोना संकट में सामाजिक दूरी और अन्य सावधानियों का भी विशेष ध्यान रखें क्योंकि आपकी व दूसरे की सुरक्षा सर्वोपरि है।साथ ही अब चीनी सामान का प्रयोग बिलकुल समाप्त करके राष्ट्रभक्ति का परिचय भी देना है।


 


*रचयिता।।*


*एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


*मोबाइल।*


9897071046


8218685464


नूतन लाल साहू

मां की आंचल


 


मां तेरा लाल हूं, मै


तू मुझे,भुल न जाना


जैसा भी हूं,तेरा संतान हूं


अपनी,आंचल में छुपा लेना


भुला हुआ था,तुझको मै


आज फिर से,पुकारा हूं


हर युग में तू,प्रगट हुईं है


लेकर एक, अवतार


हो जाऊ मैं, तुझमे ऐसी मगन


अपनी आंचल में,छुपा लेना


उलझा रहा,अब तक जहां के


झूठे झूठे,ख्यालों में


पैरों में,मोह माया की


जंजीर पड़ी हुई थी


तू शक्ति स्वरूप है, मां


अपनी आंचल में,छुपा लेना


मां की जयकारा से


मिलता है, आत्म ज्ञान


जो हर रोग की


करता है,निदान


मुझ पर,कृपा हो तेरी


अपनी आंचल में,छुपा लेना


भुला हूं मैं,भटका हूं मैं


मेरा कोई नहीं, जहां में


मुझको है,तेरी ही आसरा


जग के,तारणहार हो


इस दास के, सिर पर हाथ रख दे


अपनी आंचल में, छुपा लेना


मेरे जीवन की डोर,अब तो


कर दी, तेरे हवाले


बेड़ा पार लगाने वाला


कोई और नहीं है


तुम हो जग की माता ,मै हूं पुजारी


अपनी आंचल में, छुपा लेना


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

🙏🏻 वंदन,माता रानी का 🙏🏻


 


माता तेरे चरणों में है,


                     नमन हजारों बार।


कोरोना राक्षस ही लगता,


                      देना उसको मार।


तू ही दुर्गा, तू ही काली, 


                        तेरे रूप हजार।


धर काली का रूप तुझे माॅ॑,


                        करना है संहार।


 


            नवरात्रि पर्व की 


       हार्दिक शुभकामनाएं।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🙏🏻 वंदन,माता रानी का 🙏🏻


 


माता तेरे चरणों में है,


                     नमन हजारों बार।


कोरोना राक्षस ही लगता,


                      देना उसको मार।


तू ही दुर्गा, तू ही काली, 


                        तेरे रूप हजार।


धर काली का रूप तुझे माॅ॑,


                        करना है संहार।


 


            नवरात्रि पर्व की 


       हार्दिक शुभकामनाएं।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*ग्यारहवाँ अध्याय*(कृष्णचरितबखान)-1


भई भयंकर ध्वनि तरु गिरतै।


दुइ तरु अर्जुन भुइँ पे परतै।।


      बाबा नंद औरु सभ गोपी।


      बज्र-पात जनु भयो सकोपी।।


सोचि-सोचि सभ भए अचंभित।


अस कस भयो सबहिं भे संकित।।


     डरतइ-डरत सभें तहँ गयऊ।


     लखे बृच्छ अर्जुन भुइँ परऊ।।


जदपि न जानि परा कछु कारन।


लखे कृष्न खैंचत रजु धारन।।


     ऊखल-बँधी कमर सँग रसरी।


     तरुहिं फँसल रह खींचत पसरी।।


अस कस भवा सोचि उदबिग्ना।


मन सभकर रह सोचि निमग्ना।।


     कछु बालक तहँ खेलत रहऊ।


      लगे कहन सभ किसुना करऊ।।


ऊखल फँसा त खैंचन लागे।


गिरत बिटप लखि हम सभ भागे।।


    निकसे तहँ तें दुइ तनधारी।


    सुघ्घर पुरुष स्वस्थ-मनहारी।।


पर ना होय केहू बिस्वासा।


किसुन उखरिहैं तरु नहिं आसा।।


     अति लघु बालक अस कस करई।


     नहिं परितीति केहू मन अवई ।।


सुधि करि लीला पहिले वाली।


सभ कह किसुन होय बलसाली।।


      प्रिय प्रानहुँ तें लखि निज सुतहीं।


      रसरी बँधा कृष्न जहँ रहहीं।।


बाबा नंद गए तहँ तुरतइ।


किसुनहिं मुक्तइ कीन्ह वहीं पइ।।


    कबहुँ-कबहुँ प्रभु कृपा-निकेता।


     नाचहिं ठुमुकि गोपि-संकेता।।


खेल देखावैं जस कठपुतली।


नाचहिं किसुन पहिनि वस झिंगुली।।


    लावहिं कबहुँ खड़ाऊँ-पीढ़ा।


     आयसु लइ गोपिन्ह बनि डीढ़ा।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*चतुर्थ चरण*(श्रीरामचरितबखान)-11


बरषा-काल मदार न फूलै।


बिमल राज जस खल पथ भूलै।।


    सस्य-स्यामला महि उपकारी।


    जनु धन सुजन जगत-सुखकारी।


हलधर निपुन निरावहिं खेती।


जस बुध-जन परिहरहिं अनीती।।


     चक्रवाक नहिं बरषा-काला।


     कलिजुग महँ जस धरम अकाला।।


ऊसर भूमि हरित नहिं भवही।


प्रभु-जन जस न बासना बसही।।


     कबहुँ-कबहुँ नभ जलद-बिहीना।


     बहइ समीर जबर जेहि दीना।।


जस सद्धर्म हीन कुल होवै।


पा कुपुत्र धन-संपति खोवै।।


दोहा-कबहुँ त सूरज नहिं दिखे,तम महँ कबहुँ लखाय।


         मिलै ग्यान जस सुजन सँग,दुरजन मिलत बिलाय।।


       बरषा-ऋतु महँ पथिक जस,इत-उत कतहुँ न जाय।


       बिषयी मन भटके नहीं,ग्यान-जोति वस पाय ।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे माँ शैलपुत्री दया करो


********************


हे माँ शैलपुत्री दया करो,


हमें सत्य की राह बताओ,


कभी किसी को सताये नहीं,


ऐसी सुमति हमें देना माँ।


 


 


हे माँ शैलपुत्री दया करो,


अपनी कृपा वर्षा करो,


हम अज्ञानी तेरी शरण में,


हमें सही राह बताना माँ।


 


ये जीवन तुम्हीं ने दिया है


राह भी तुम्हीं बताओ माँ


हो गई है भूल कोई तो,


राह सही बताओ माँ।


 


कभी किसी का बुरा न करुं,


दया भाव से हृदय भरो,


मस्तक तुम्हारे चरणों में हो,


ऐसी बुद्धि हमें दे दो माँ।


 


हे माँ शैलपुत्री दया करो,


जग में न कोई किसी जीव को,


पीड़ा कभी न पहुंचाएं माँ,


ऐसी सब की बुद्धि कर दो।


 


हे माँ शैलपुत्री तुम करुणा करो


दीन दुखियों पर कृपा करो


सबको सुमति दो माँ


बुरे राह से बचाओ माँ।


 


मुझको तो आता है, एक काम


माँ तेरे चरणों में मेरा धाम


बस इतनी कृपा करना माँ


मेरी प्रार्थना स्वीकार करो माँ।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


 अभय सक्सेना एडवोकेट कानपुर

शारदीय नवरात्र आई है, 


आशायें हजारों लाई है।


***********************


अभय सक्सेना एडवोकेट


 


शारदीय नवरात्र आई है, 


आशायें हजारों लाई है।


 कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


पूरा विश्व बेहाल है इससे, 


मुसीबत हमारे ऊपर भी छाई है।


महामारी है यह तो मैया, 


दवा अभी तक नहीं आई है।


कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


बचने का एक मात्र उपाय,


सोशल डिस्टेंसिंग ही अपनाई है।


मुंह पर मांस्क लगाकर रखते,


फिर भी जान सांसत में आई है।


कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


हाल बुरे हैं हम सभी के,


भूखें मरने की नौबत आई है।


दया करो देवी मैया,


सभी की सामत आई है।


कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


सद्बुद्धि दो सबको मैया,


गुहार ये अभय ने लगाई है।


चलें सभी उसी राह पर ,


मोदीजी ने राह जो दिखाई है।


 कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


डटकर लड़ कोरोना से ,


बहुतों की जान बचाई है।


एक जुटता से फिर हमने,


"अभय"भारत की राह बनाई है।


कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


शारदीय नवरात्र आई है, 


आशायें हजारों लाई है।


 कृपा करो मातारानी,


कोरोना से आफत छाई है।


 


 अभय सक्सेना एडवोकेट


४८/२६८, सराय लाठी मोहाल जनरल गंज कानपुर नगर।


मो.९८३८०१५०१९,


८८४०१८४०८८.


१६/१०/२०


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*बुरी नजर मत डाल*


*मात्रा भार 11/16*


 


बुरी नजर मत डाल।


सबको अपने घर का जानो।।


 


कर सबकी परवाह।


सबको अपना परिजन जानो।।


 


करना सबका साथ।


सबको आत्म भाव में जानो।।


 


रहना सीखो पास।


अपने को सेवक सा मानो।।


 


कर मत किसी को तंग।


सब में मित्र भाव पहचानो।।


 


त्याग भोग की दृष्टि।


आत्मतुष्ट बनने को ठानो।।


 


बुरे लोग को मार।


बुरी नजर पर भौंहें तानो।।


 


आत्मप्रशंसा छोड़।


सुंदर मूल्यों को पहचानो।।


 


देखो अपना दोष।


सद्गुणियों के गुण को मानो।।


 


धर्म मर्म को जान।


मानवीय धर्म पहचानो।।


 


करो सदा सत्संग।


सज्जन बनने को ही ठानो।।


 


कर सबका सहयोग।


सहकारिता मंत्र को जानो।।


 


करना नहीं विवाद।


मधुर आचरण को पहचानो।।


 


मत करना विश्वास


नियमित पानी को भी छानो।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

जय माँ शारदे


 


रूप घनाक्षरी


 


रंग रसिया के संग , रास है रचाने लगे , 


हाथ में पहन चूड़ी , शिव ने किया शृंगार।


 


बांसुरी बजाते हुए , मोहन जो पास आए , 


रास का बने हैं अंग , भोले गोपी रूप धार।


 


हठ करने लगे हैं , मनमोहन जी देखो , 


मुख ये दिखाओ अब , घूंघट को दो उतार।


 


घूंघट उठाया जब , देख के हुए चकित , 


मदन मुरारी से वो , करने लगे हैं प्यार। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


दुतारांजय माँ शारदे


 


रूप घनाक्षरी


 


रंग रसिया के संग , रास है रचाने लगे , 


हाथ में पहन चूड़ी , शिव ने किया शृंगार।


 


बांसुरी बजाते हुए , मोहन जो पास आए , 


रास का बने हैं अंग , भोले गोपी रूप धार।


 


हठ करने लगे हैं , मनमोहन जी देखो , 


मुख ये दिखाओ अब , घूंघट को दो उतार।


 


घूंघट उठाया जब , देख के हुए चकित , 


मदन मुरारी से वो , करने लगे हैं प्यार। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


दुतारांवाली अबोहर पंजाबवाली अबोहर पंजाब


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु

नाम - तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु ( कवि व मंच संचालक ) 


पिता का नाम - स्वर्गीय श्री काशीनाथ मिश्र ( पुजारी बाबा ) 


जन्मतिथि - 7 मई सन् 1975


शिक्षा - स्नातकोत्तर समाजशास्त्र


व्यवसाय - परिषदीय जूनियर शिक्षक


प्रकाशित पुस्तक - एक आईना जिज्ञासु की कलम से ( छंद मुक्त काव्य संग्रह ) 


साझा संग्रह - अपराजिता , हरसिंगार , गीत गूंजते हैं , आया कोरोना मत डरोना ( e-book) 


प्राप्त सम्मान -


1 - साहित्य गौरव सम्मान


2- श्रद्धा साहित्य गौरव सम्मान


3 - तुलसी मीर सम्मान


4 - साहित्य सारथी सम्मान


5 - युवा शक्ति सम्मान वर्ष 2020


6 - कोरोना योद्धा सम्मान


7 - योद्धा रत्नम अवॉर्ड


8 - समीक्षक गुरु सम्मान


9- सृजनश्री सम्मान


10- ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020


11 - साहित्य भूषण सम्मान


12 - श्री कमलेश्वरी मंडल स्मृति काव्य दूत सम्मान


13 - प्रेमचंद सम्मान


14 - हिंदी रत्न सम्मान


15 - अन्यान्य साहित्यिक सम्मान


मोबाइल नंबर - 9450489518


ईमेल आईडी - tkmishra180@gmail.com


स्थाई पता - ग्राम -अहिरौली , पोस्ट - आशापार , तहसील - जलालपुर , जनपद - अंबेडकरनगर , उत्तर प्रदेश ! पिन कोड - 224125


वर्तमान पता - रघुराजीपुरम कॉलोनी निकट होटल विनायक ग्रैंड , अकबरपुर , अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश ! पिन कोड - 224122


 


 


 


वक्त के साथ बदल जाओ तुम भी ! 


वरना पहचान का संकट है सामने !! 


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लकीर के फकीर बने कब तक घूमोगे !


अपना एक ठिकाना बनाओ तो कहीं !! 


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पुराने दिनों को याद करने से फायदा नहीं ! 


आने वाले दिनों को संवारने की सोचो तुम !! 


************************े 


माहौल इस कदर हो गया है इन दिनों !! 


बेचैन हो हर आदमी ढूंढ रहा है सुकून !! 


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यहाँ बहुतेरे आदमी अब शिकार की तलाश में है ! 


बचकर रहो क्या पता किसकी नज़र है तुम पर !! 


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अब कोई भी तरकीबें काम नहीं आ रही हैं ! 


आदमी को आदमी से ही ख़तरा है इन दिनों !! 


*************************


तुम्हारी सियासत तो मेरे समझ में आती नहीं ! 


मालूम नहीं कैसे भला होगा आम आदमी का !! 


************* कवि व मंच संचालक अंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश !


डॉ.रामबली मिश्र

प्यार का प्रतीक


    


आप मेरे प्यार का प्रतीक बन बहो।


आप केवल प्रेम की तस्वीर बन रहो।।


 


आपको मैं छोड़ने का नाम नहीं लूँ।


मैं सुनूँगा बात सारी आप जो कहो।।


 


रम गया हूँ आप में योगी बना रमता।


दिल में बैठ आपके कुछ बात-चीत हो।।


 


मत कभी यह सोचना कि दूर जाना है।


छोड़ सब जंजाल को बस साथ में रहो।।


 


बैठ मेरे घर-हृदय में रात भर जगो।


यशगान आपका हृदय से बार-बार हो।।


 


मुस्कराते गीत गाते आपको जपूँ।


आपका ही ध्यान मेरे मन में सदा हो।।


 


डॉ.रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

देवी माँ का वंदन (दोहे)


माता के नौ रूप हैं,नौ ही हैं घट-द्वार।


पाकर माँ-आशीष ही,कटता कष्ट अपार।।


 


विमल हृदय से यदि करें,माता का सम्मान।


निश्चित सुख-वैभव मिले, रहे सुरक्षित मान।।


 


दोनों ही नवरात्रि में,होता प्रकट स्वरूप।


विधिवत व्रत-पूजा करें,दर्शन मिले अनूप।।


 


माता परम कृपालु हैं,अमित प्रेम का कोष।


पाकर आशीर्वाद ही,मिले हृदय को तोष।।


 


धन्य-धन्य माँ हो तुम्हीं, ममता का भंडार।


करो कृपा हे मातु तुम,देकर अपना प्यार।।


 


है पुकारता भक्त तव,आरत वचन उचार।


माता आओ द्वार मम,करो कष्ट-उपचार।।


 


सकल सृष्टि की धारिणी,सकल सृष्टि का स्रोत।


पा प्रकाश तेरा जलें, रवि-शशि ये खद्योत।।


          ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


            9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

सुनो.....।


 


कान खोलकर बात सुनो इक।


बात-बात में मत कर झिक-झिक।।


 


दंभी मत बन करो प्रतिज्ञा।


मान बुजुर्ग लजनों की आज्ञा।।


 


मगरूरी में जीना छोड़ो।


ऐंठन से तुम नाता तोड़ो।।


 


जो भरता है तेरी प्याली।


उसको ही हो गाली।।


 


जो तेरा सच्चा सहयोगी।


उसको कहते हो तुम भोगी।।


 


जो तेरा अच्छा रखवाला।


उसे पिलाते गम की हाला।।


 


जो बनता है तेरा रक्षक।


हो जाते हो उसके भक्षक।।


 


शर्म करो बेरहम बनो मत।


मानव बनने पर हो सहमत।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुषमा दीक्षित शुक्ला

कविता


 


भारत माँ के सच्चे सपूत अब्दुल पाकिर कलाम।


उनको मेरा शत शत प्रणाम शत शत सलाम ।


 


वह थे पक्के कर्तव्य निष्ठ वह भारत माँ के अमर रत्न ।


अति ज्ञानी थे विज्ञानी थे बस सदा देश हित किये यत्न ।


 


वह मात पिता थे धन्य धन्य जिनके आँगन में जन्म लिया।


महा गरीबी में पलकर भी दुनिया मे था नाम किया ।


 


सबसे ऊँचा राष्ट्रपति पद जिसका मान बढ़ाया था ।


वैज्ञानिक कलाम जी ने जब इस पग कदम उठाया था ।


 


उनके आदर्शों को यारों आओ हम सब मनन करें । 


आज सभी मिल भारत वासी उस सपूत को नमन करें ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-6


 


देहु प्रसाद नाथ कछु हमहन।


करत रहहिं हम तव गुन बरनन।।


     श्रवन सुनहिं तव कथा सुहानी।


     रसमय-मधुर रहहिं सभ बानी।।


करतै रहहिं हाथ तव सेवा।


पद-सरोज तव चित-मन लेवा।।


    सकल जगत प्रभु तोर निवासा।


     नवत रहहिं हम अस लइ आसा।।


तव सरीर प्रत्यछ जग संता।


तिनहिं क दरसन सुख भगवंता।।


     नैन दरस बस करैं तिनहिं कहँ।


      अस प्रसाद प्रभु देउ हमहिं कहँ।।


ऊखल बन्हे कृष्न तब कहऊ।


मिलहिं प्रसाद तुमहिं जे चहऊ।।


    रह मदांध तुमहिं दोउ भाई।


    रहा परत अस मोंहि लखाई।।


नारद मुनी कृपा जनु कीन्हा।


साप तुमहिं जनु जे अस दीन्हा।।


     समदरसी मुनि मोंहि समर्पित।


     मुनिहिं प्रसाद कीन्ह मैं अर्पित।।


बंधन-मुक्त भयो दोउ भाई।


जाहु भगति मम लइ गृह धाई।।


दोहा-सुनि के अस प्रभु कै बचन,नमन किन्ह दोउ भ्रात।


         कइ पैकरमा किसुन कै, दिसि उत्तर चलि जात।।


                         डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


 


 


चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-10


 


कहे पुनः प्रभु सुनहु कपीसा।


जाउँ न गृह दस चार बरीसा।।


    मोर काजु भूलेउ नहिं कबहूँ।


   सीता-खोज करत सभ रहहूँ।।


अब हम रहब निकट गिरि कतहूँ।


अनुजहिं सहित ठौर मिलि जहहूँ।।


   बरखा ऋतु अति सुखद-सुहानी।


   मोहहि धरा चुनर धरि धानी।।


गुहा रुचिर सभ देव बनाए।


परबर्षन गिरि पर मन भाए।।


    कछुक काल तहँ प्रभु अब रहिहैं।


    प्रभु-दर्सन-सुख सभ जन पइहैं।।


नर-तन धरि पसु-पंछी-भँवरे।


सेवहिं प्रभुहिं ध्यान धरि हियरे।।


     मंगल-रूपा धरा अनूपा।


     प्रभु-निवास जहँ रहहि सरूपा।।


फटिकइ-सिला बैठि दोउ भाई।


कहहिं-सुनहिं नृप-नीति सुहाई।।


    भगति-बिरति अरु ग्यान-बिबेका।


     कहहिं-सुनहिं बहु-भाँति अनेका।।


बरषा-काल जलद नभ छाए।


उमड़ि-घुमड़ि जल बहु बरसाए।।


     नाचहिं लखि-लखि जलद मयूरा।


     होहि बिकल मन लखि तेहिं पूरा।।


दामिनि-दमक-गरज-घन नभ मा।


बिरह-अगिनि लागै जनु तन मा।।


      बादर सिर नवाइ जल बरसहिं।


      बिद्यावान नम्र जस हरषहिं।।


गिरत बूँद गिरि-सिर अस फोरैं।


दुष्ट-बचन जस संतन्ह तोरैं।।


    लघु सरिता निज तट अस काटै।


     जस खल पाइ प्रचुर धन ठाटै।।


धरनि-धूरि मिलि जल ढबरैला।


जस माया मिलि मन गोबरैला।।


     सरिता-जल मिलि सागर-जल मा।


     होवहि थीर चपल मन प्रभु मा।।


चहुँ-दिसि महँ सुनि मेंढक-बानी।


लागहिं जनु बटु बेद बखानी।।


दोहा-हृदय होय हरषित लखन,लखि-लखि तरु-सिख-पातु।


        हरषै जस लखि नवल सिसु, मन-हिय कोऊ मातु ।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


नूतन लाल साहू

नशा


 


हे नाथ, मेरी नैया


उस पार,लगा देना


मेरी जीवन को,तुम प्रभु जी


नशा से,बचा लेना


संभव है,झंझटो में


मै तुमको,भुल जाऊ


पर,नाथ कही तुम भी


मुझको न, भूला देना


मेरी जीवन को,तुम प्रभु जी


नशा से, बचा लेना


हो जाऊ मैं, तुझमे ऐसी मगन


नशा की तरफ,न जाये डगर


मन सदा ही,तेरा अनुरागी रहे


सदाचार हो,मेरे जीवन का सफ़र


हे नाथ,मेरी नैया


उस पार,लगा देना


मेरी जीवन को,तुम प्रभु जी


नशा से,बचा लेना


मुझे मिले,सतगुरु की साया


नशा मुक्त हो,मेरी काया


नैया छोड़ी,आपके हवाले


आप संभाले या न संभाले


मेरी जीवन को,तुम प्रभु जी


नशा से, बचा लेना


एक शब्द, दो कान है मेरा


एक नज़र,दो आंख है मेरा


ब्रम्ह ज्ञान में,बड़ी शक्ति है


नशा से वो,मुझे दुर रख सकती हैं


ऐसी शक्ति,मुझे देना दाता


नशा,नाश का घर है


दूसरो को भी,बता संकू


हे नाथ,मेरी नैया


उस पार,लगा देना


मेरी जीवन को,तुम प्रभु जी


नशा से,बचा लेना


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

प्रतिकार


 


करो प्रतिकार,


आक्षेप यदि,


है निराधार।


वर्ना,


समझेंगे लोग,


हो तुम भी,


गुनाहगार।


बढ़ता ही जाएगा,


अत्याचार।


यदि न करो,


प्रतिकार।


है तुम्हें मिला,


गलत को गलत,


और सही को सही,


कहने का अधिकार।


फिर काहे का डर ?


करो प्रतिकार।


यदि गलत को,


सही बताने की चेष्टा,


मैं करूॅ॑,


या सरकार।


 


 ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

बनना है गुलाब तो काँटों


में खिलना सीखो।।


 


जब जायो धूप में तो ही


साया भी मिलता है।


कहलाता गुलाब कि जब


वो कांटों में खिलता है।।


तेरी मेहनत तय करती तेरे


मुक़द्दर का फैंसला।


वही निभाता रिश्तों को जो


तुरपाई भी सिलता है।।


 


हार मानने से पहले कोशिश


करते जाना सीखो।


बोलने से पहले जरा सुनते


भी आना सीखो।।


शब्द और समय को खर्च


करो तुम धन समान।


निभाने से पहले रिश्ते तुम


मनाना भी सीखो।।


 


कोई दर्द पूछने आयेगा मत


तुम इंतिज़ार करना।


अपनी दवा को खुद ही


तुम तैयार रखना।।


सूरज भी ढल जाता है वक्त


पर चांद के लिए।


सीखने को छोटे से भी कभी


मत दीवार रखना।।


 


मुस्कुराकर जीत लो उसे


दुश्मन जो जानी है।


सफलता की ज़माने में यही 


यारो कहानी है।।


ये दुनियाँ इक सराय से नहीं


बढ़ कर यहाँ।


थमे जब डोर सांसों की तो 


रुक जाती रवानी है।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मो।। 9897071046


                8218685464


 


 


 


संघर्ष में ही आपकी वास्तविक,


पहचान होती है।


निकल कर आ जाती है वो शक्ति,


जो अनजान होती है।।


मुसीबत ही सिखाती हमें कैसे चलें,


धारा के विपरीत हम।


कठनाई तो एक शिक्षक बहुत,


महान होती है।।


*।।।।।।।।।2।।।।।।।।।।*


आँधियों में ही तो दीये,


की पहचान होती है।


बुझ न पाये लौ इसकी यही,


इसकी शान होती है।।


हवा के विपरीत संघर्ष ही ,


दीये की ताकत है।


संकट परीक्षा की घडी ही तो,


इम्तिहान होती है ।।


*।।।।।।।।।।3।।।।।।।।।।।*


नसीबों का पिटारा यूँ ही,


कभी खुलता नहीं है।


सफलता का सम्मान जीवन में,


 यूँ ही घुलता नहीं है।।


बस संघर्ष ही लिखता है हाथ,


की लकीरें हमारी ।


ऊँचा हुऐ बिना आसमाँ भी,


कभी झुकता नहीं है।।


*।।।।।।।।।।।4।।।।।।।।।।।।*


हर पल हर कदम जैसे,


संघर्ष है ये जिन्दगी।


कभी दुःख का साया तो कभी,


हर्ष है ये जिन्दगी।।


धैर्य से तो दर्द भी बन, 


जाता है मानो दवा।


जीतें हैं जो इस अंदाज़ से,


तो गर्व है ये जिन्दगी।।


*।।।।।।।।5।।।।।।।।*


मन हार कर तो कभी कोई,


जीत पाता नहीं है।


बिना संघर्ष के ख्याति कभी,


कोई लाता नहीं है।।


मत इंतज़ार करते रहो कुछ,


अच्छा करने के लिए।


बात ये एक जान लो कि कल,


कभी आता नहीं है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*।।बरेली।।*


मोब 9897071046।।।।।।


8218685464।।।।।।।।।।।


डॉ. रामबली मिश्र

नशा


नशा करो अध्यात्म का, अन्य नशा को त्याग।


यही नशा उत्कृष्ट है, इससे ही अनुराग।।


 


भाँग धतूरा मदिर सब, करते सत्यानाश।


इनसे मुखड़ा मोड़कर, चल ईश्वर के पास।।


 


मदिरा पी कर तुम कभी, बनना नहीं मदांध।


आध्यात्मिकता के नशे, से अपने को बाँध।।


 


ईश्वर के आनंद का, कोई नहीं विकल्प।


ईश्वर में ही लीनता, का लेना संकल्प।।


 


जो ईश्वर में रम गया, डूबा वही सदेह।


राम राम जपने लगा, बनकर जनक विदेह।।


 


धार्मिक हाला पी सदा, रहना सीखो मस्त।


लौकिक विषमय मदिर को, करते रहना पस्त।।


 


परम अलौकिक दिव्य रस, के ईश्वर भण्डार।


इसको पी कर रम सहज,बढ़ ईश्वर के द्वार।।


 


स्वयं विस्मरण के लिये, पकड़ ईश की बाँह।


धर्म रसायन पान ही, मन की अंतिम चाह।।


 


लौकिक नशे में धुत्त हो, गाली देते लोग।


ईश्वर रस के पान से, ईश्वर से ही योग।।


 


महा पुरुष मुनि सिद्धगण, किये धर्म का पान।


हो प्रसिद्ध संसार में, कहलाये भगवान।।


 


जिसको बनना ईश है, करे ईश- रसपान।


लौकिक मदिरा बोतलों, से बनते शैतान।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अन्जनी अग्रवाल 'ओजस्वी

संक्षिप्त परिचय


 


नाम--अन्जनी अग्रवाल ओजस्वी


पद-- शिक्षिका


निवास --कानपुर उत्तर प्रदेश


शैक्षिक योग्यता--एम.ए . BEd पत्रकारिता(हिंदी)


लेखन विधा--कविता,कहानी, लेख


 


कश्ती


#########


 


अडिग विश्वास की कश्ती।


पर होकर हम, सब सवार ।।


जाने को ,जीवन नदी के पार।


सद्कर्मों को कर,हैं हम तैयार।।


 


रख दो हम पर, कृपा वरद हाथ।


पलट कर न करे, कोई हम पर वार।


ऐसा तो हमें हे प्रभु! सदविचार।


लगा दो मेरी, जीवन कश्ती पार।।


 


जब जब भंवर ने, मुझे घेरा।


तुमने ही आकर, डाला डेरा।।


उत्पादी समुन्द्रों की, लहरों में।


तेरी मर्जी पर, जीवन पतवार।।


 


अब तो मेरी कश्ती, तेरे हवाले।


कर दो पार ,ओ जीवन रखवाले।।


बुला लो अब तो, अपने दरवार।


कही डुबा न दे, लालच की धार।।


 


अन्जनी अग्रवाल ओजस्वी


 


 


कान्हा से पुकार


 


मोह माया , स्वार्थ छल।


नही है ,अब कोई हल ।।


दिल देता बधाई, बारम्बार।


हो खुशियों भरा , त्यौहार।।


पर आशाएं,हैं भरी पड़ी ।


कान्हा दो, खुशियाँ बड़ी बड़ी।।


कोरोना काल, होता नही खत्म।


जरा धो दो ,अब ये जख्म।।


निरोग का अमृत,बरसा दो ।


ऐसी अब कोई ,धुन बजा दो।।


अशांत मन, आस्थाएं त्यागे ।


छल कपट भरा, कोरोना भागे।।


प्रीत तुम्हारी,न होगी अब कम।


बिन जीवन,कैसे करें भजन हम।।


घर मन्दिर, सारे बन्द पड़े ।


स्तुति को , जोड़े हाथ खड़े।।


तुम बिन अब,न कोई सहारा ।


जिसने हर विपदा से पार उतारा।


बिन तेरी धुन,राधा भी बेचैन।।


न मिले दिन में,न रात में चैन।।


कर दो ऐसा, कोई चमत्कार।


हो जाए चहुओर, जयजयकार।।


हो मन प्रफ़ुल्लित, सब प्रकार।


मनाएं हर्षोल्लास से, ये त्यौहार।।


एक बार तो, जग को निहारो।


मानव को ,इस त्रासदा से उबारो।।


करती विनती अन्जनी कर जोड़।


ला दो कोरोना का, कोई तोड़ ।।


 


अन्जनी अग्रवाल ओजस्वी


श्याम नगर कानपुर


उत्तर प्रदेश


 


 


मर्यादा पुरुषोतम राम


******************


ये मंदिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का ।


सौभाग्य सिंचित है वर्तमान का।।


धरती अम्बर गूंज रहा जयकार से ।


चहुँ ओर उल्लास अनूठा हर्ष का।


हिन्द के कोने कोने लहराए भगवा। ।।


भारतीय संस्क्रति की छाप पढ़ी है ।


कहानी भक्तों की पीढ़ी ने गढ़ी है ।।


धर्म और अध्यात्म को मिला मुकाम।


सप्तपुरी का ये भव्य मनोरम धाम।।


पूर्ण हुआ ब्रहाण्ड का शिलान्यास।


हो गई पूर्ण हिदुत्व की ये आस।।


हो गई सुसज्जित स्वर्ण अयोध्या।।


न पाए टिकने इसके आगे कोई योद्धा।।


कह अन्जनी दोनों कर जोड के ।


चलो दर्श को सब जन दौड़ कर।।


 


अन्जनी अग्रवाल 'ओजस्वी


कानपुर नगर उत्तर प्रदेश


 


 


एक सीमा पे घायल वीर सैनिक की अपील मृत्यु से कि वह खुद


ही कर्तव्य पूर्ण हो जाने पर मृत्यु का आवाहन कर लेगा


 


 


एक अपील वीर सैनिक की


************************


गूंज रहा चहु ओर यही नारा है,


ललकार मृत्यु ने आज पुकारा है।


ललकार सीमा पर रक्षा की है,


कफ़न सिर पर बाधें आये हैं हम।


राष्ट्र के अलख प्रहरी हैं हम,


न रखने देंगें दुश्मन को एक कदम।


गूंज रहा चहु ओर यही नैरा है,


ललकार मृत्यु ने आज पुकारा है।


जीवन मे संघर्ष नही हैं हमारे कम


कर्तव्य निभाकर ही अब लेंगे दम।


अमन चैन की प्रीत तो सजा दूँ,


मानवता को वह हक तो दिल दूँ।


उज्ज्वल भारत की अलख जगा दूँ,


सोते हुये प्रहरी को तो जगा दूँ।


गूंज रहा चहु ओर यही नारा हैं, ललकार मृत्यु ने आज पुकारा है।


मैं बीज वृक्ष का एक दर्पण हूँ ,


हर बार जनमता मरता रहता हूँ।


बिरासते बारीकियों की बिछा दूँ,


दिव्य पुंज की ज्योति तो जगा दूँ।


कर्मयोगी सा गीता पाठ तो कर लूँ,


थोड़ा अपना कर्तव्य तो निभा दूँ।


गूंज रहा चहु ओर यही नारा हैं, ललकार मृत्यु ने आज पुकारा हैं।


ललकार मृत्यु ने आज पुकारा है।।


 


अन्जनी अग्रवाल 'ओजस्वी'


(सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना)


कानपुर नगर उत्तरप्रदेश


 


 


जागरूकता


***********


जागरूकता फैलाओ सभी,


कर शुरू एक अभियान ।


देखो बढ़ी जागरुकता यदि,


तभी बढ़ेगा निज अभिमान।।


जागरूकता देती स्वस्थ पहचान,


शुद्ध भोजन करे जीवन आसान।


जागरूकता तो कर्तव्य हमारा,


स्वच्छता का देता यही नारा ।


जागरूकता सर्वस्य उपकार,


हर बच्चा पढ़े यही अधिकार।।


जागरुक हो करो मिशन प्रेणना काम,


मिटेंगी उलझनें मिलेगा शुभ परिणाम।


दृढ़ हो कर्तव्य रखो सब ध्यान,


जागरूक करो यही सच्चा ज्ञान।।


जारूकता से सम्पन्न हो राष्ट्र समुदाय,


इससे बढ़ा न कोई दूजा उपाय।


जागरूकता से बढ़े बेसिक की शान,


पूरे प्रदेश मे हो गई अन्जनी की पहचान।।


 


'(सर्वाधिकार सुरक्षित )


अभय सक्सेना एडवोकेट

मां की पुकार 


------------------


अभय सक्सेना एडवोकेट 


 


लुटी थी कभी मैं


विदेशियों के हाथों।


लुट रही हूं आज मैं


अपने ही हाथों।।


कोई तो आओ


अपनों से बचाओ।


सुनकर मां की पुकार


चीख उठा हिन्दुस्तान।।


            ----------


रखवाले


------------


 


धरती मां


 रही पुकार


कहां गए


मेरे नौनिहाल।


जिन्होंने सींचा था


कभी अपने खून से


आखिर कहां गए


उस खून के रखवाले।।                


            -------


अभय सक्सेना एडवोकेट


४८/२६८, सराय लाठी मोहाल, जनरल गंज कानपुर नगर।


मो.९८३८०१५०१९


८८४०१८४०८८


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