विनय सागर जायसवाल

ग़ज़ल----


 


तू करता जो हर रोज़ यह दिल्लगी है 


इसी से सनम यह हसीं ज़िन्दगी है


हुस्ने मतला---


 


ज़माने में यूँ खलबली सी मची है


हमारी तुम्हारी जो अब तक बनी है


 


इनायत करम है नवाज़िश तुम्हारी


किसी बात की फिर हमें क्या कमी है


 


रहा तीरगी का न नाम-ओ-निशां अब


मुहब्बत से हर सू हुई रौशनी है


 


तज्रिबे से जानी है यह बात हमने 


मुहब्बतों के महलों में ही बंदगी है


 


जो कर देती थी मस्त सारे बदन को


वही आज ख़ुशबू चली आ रही है


 


उसी के सहारे मज़े में कटेगी 


जो दौलत ये यादों की हम पर बची है 


 


भलाई का दामन न छोड़ेगा *साग़र* 


अभी आदमी में बचा आदमी है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


राजेंद्र रायपुरी

🙏🏻🙏🏻 जय- माता दी 🙏🏻🙏🏻


 


       🌹 *एक गीत* 🌹


 


माता रानी आईं देखो, कर के सिंह सवारी। (२) 


चार भुजाएं बलशाली हैं ॲ॑खियाॅ॑ प्यारी प्यारी।(२) 


कानों में हैं देखो कुंडल(२)


और गले में हार। 


आई माता रानी द्वार,


आओ कर लें जय-जयकार,


हो....ओ,ओ। हो...ओ,ओ ।


 


पहने लाल चुनरिया आईं, देखो माता रानी(२)


ऑ॑खें हैं कजरारी उनकी,होठों पर है पानी। (२)


दो हाथों में भाला- बर्छी(२)


एक हाथ तलवार।


आईं माता रानी द्वार,


आओ कर लें जय-जयकार,


हो....ओ,ओ। हो....ओ,ओ।


 


आओ-आओ मैया जी की, कर लें हम अगवानी।(२)


पूजा थाली लेकर आओ,और कलश में पानी।(२)


श्रीफल भी ले आना भैया, (२)


और साथ में हार।


आईं माता रानी द्वार,


आओ कर लें जय-जयकार,


हो....ओ,ओ। हो...ओ,ओ।


 


करो आरती मिलकर सारे, माता के गुन गाओ।(२)


झाल -मजीरे, ढोल-धमाके, भैया तनिक बजाओ। (२)


पूजा करके माता जी की,(२)


करो सभी जयकार।


आईं माता रानी द्वार,


आओ कर लें जय-जयकार,


हो...ओ,ओ। हो...ओ,ओ।


 


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे माँ ब्रह्मचारिणी कृपा करो


*********************


हे माँ ब्रह्मचारिणी कृपा करो


तुम ही सबकी रक्षक हो माँ।


 


माता तेरे चरणों में


करता हूँ बार -बार वंदन।


 


अष्ट भुजा धारी भी तुम हो


भक्तों का तुम दुख हरती हो।


 


तुम ही दुर्गा तू ही काली


सब की रक्षक तुम ही हो माँ।


 


मैं तुमको माँ चुनर चढाऊँ


और जलाऊँ दीपक माँ।


 


करुं आराधना माँ मै तेरी


और लगाऊँ भोग तुम्हें।


 


ममतामयी माँ तुम हो


काम ,कोध्र और दुख हरती हो।


 


सरल सुहावना रुप तुम्हारा


भक्तों का तुम संकट हरती हो।


 


हम सब के तुम कष्ट हरण कर


बुराइयों का तुम दमन करो।


 


प्रेम वात्सल्य रुप माँ तुम्हारा


जीवन को रोशन कर देता है।


 


खुशियों से सब की झोली भर दो


सब को सुख सम्पति दे दो।


 


 श्रद्धा विश्वास से माँ की आरती करे


हाथ में पूजा की थाल धरे।


 


माँ ब्रह्मचारिणी कृपा करो


हम सब पर तुम दया करो।।


*********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*चतुर्थ चरण*(श्रीरामचरितबखान)-12


लखु लछिमन ऋतु जाड़ा आई।


नाम सरद सभ जन सुखदाई।।


    कास-स्वेत पुष्प मन मोहै।


     बृद्ध होय जनु बरखा सोहै।।


घटहि नीर अब नदी-तलावा।


जनु मिलि ग्यान लोभ नहिं भावा।।


    निर्मल- स्वच्छ नीर सर-सरिता।


    जस हिय सुजन मोह-मद रहिता।।


पाइ सरद ऋतु खंजन दिखहीं।


जस सद्कर्म-सुअवसर भवहीं।।


     जस धन घटत बिकल अग्यानी।


     मछरी बिकल घटै जब पानी।।


कीचड़-धूरि हीन पथ ऋतु कै।


जस सोहै सुनीति कोउ नृप कै।।


     घन बिहीन निर्मल नभ सोहै।


     जस अनिच्छ मन भगतिहि मोहै।।


सरद-मेघ जब कहुँ-कहुँ बरसैं।


लग प्रसाद हरि बिरलहिं परसैं।।


     सिंधु-सरन जस मीन सुखारी।


     पाइ भगति प्रभु नहीं भिखारी।।


कमल बिनू सर लगै अनाथा।


जनु धनपति प्रभु टेक न माथा।।


     उड़त पखेरू-कलरव भावै।


      चंपक-गुंजन मन ललचावै।।


पपिहा पिव-पिव रटन लगावै।


जस सिव-द्रोही सुख नहिं पावै।।


     आतप सरद-चंद्र जनु हरही।


      जनु असंत प्रभु-दरस न पवही।।


ताकहि अपलक चंद्र चकोरा।


हरि-भगतन्ह नहिं दरस निठोरा।।


     पाइ सरद भे मच्छर-नासा।


     अवसि नास बिनु हरि-बिस्वासा।।


पाइ सरद ऋतु कै सितलाई।


भवहिं बिनास कीट-समुदाई।।


दोहा-भूमि होय मच्छर रहित,पाइ सरद ऋतु साथ।


          जस भागहिं संसय-भ्रमहिं,धरत सीष गुरु-हाथ।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


नूतन लाल साहू

धन की माया


 


आत्म ज्ञान बिना,नर भटके


क्या मथुरा, क्या काशी


अरे मन तू,किस पै भूला है


धन की माया है,न्यारी


तेरे मां बाप और भाई बंधु


सभी स्वार्थ के है,साथी


तेरे संग,क्या जायेगा बंदे


धन की माया है,न्यारी


ये जगत,धोखे की दुनिया है


न तेरा है,न मेरा है


यह बिस्तर,ख़ाक में होंगे


धन की माया है,न्यारी


बिन हरि कृपा,कुछ नहीं पावे


लाख उपाय करें,कोई


गुरु बिन मुक्ति न होता है,जग से


धन की माया है,न्यारी


परोपकार में द्रव्य,खर्च हो


ऐसी कमाई,तू कर ले


मत हो डांवाडोल,तू जग में


धन की माया है,न्यारी


छोड़कर,सारे वतन को


तू अकेला,जायेगा


कौड़ी कौड़ी,माया जोड़ी


धन की माया है, न्यारी


जब निकलेंगे, प्राण तेरे


यहां का यहां,रह जायेगा


इस काया का, गुमान न कर


धन की माया है, न्यारी


जीते जी का, है उजियारा


आगे रैन, अंधेरी है


कहत कबीर,सुनो भाई साधो


धन की माया है, न्यारी


नूतन लाल साहू


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*करते सभी हैं वादे*


 


करते सभी हैं वादे,


      निभाते नहीं हैं लेकिन।


खाते बहुत सी कसमें,


       उररते नहीं हैं लेकिन।


वादे निभाना मुश्किल,


       कहना बहुत सरल है।


कसमों का क्या ठिकाना,


       रुचिकर नहीं गरल है।


करना नहीं भरोसा,


       संसार का नियम यह।


वादे बहुत हैं होते,


       पूरे कभी न होते।


वादे-कसम के चक्कर,


       को छोड़कर बढ़ो अब।


विश्वास कर स्वयं पर,


       चलते रहो स्वयं अब।


आशा किया जो रोया,


       पाया नहीं किसी से।


आशा किया जो खुद से,


       रोया नहीं किसी से।


रोता वहीं है जिसको,


       विश्वास है न खुद पर।


हँसता वही है जिसमें,


       विश्वास है स्वयं पर।


विश्वास को जगाये,


       चलता बना पथिक जो।


झुकती है सारी दुनिया ,


       उस राहगीर पर।।


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*माँ चरणों में*


*मात्रा भार 8/16*


 


माँ चरणों में।


मन को सदा लगाते रहना।।


 


माँ चरणों में।


शीश झुकाये दिखते रहना।।


 


माँ चरणों का।


प्रति पल वंदन करते रहना।।


 


माँ चरणों का।


आशीर्वाद माँगते रहना।।


 


माँ चरणोँ से।


आजीवन लिपटे ही रहना।।


 


माँ चरणों का।


नित अभिनंदन करते रहना।।


 


माँ चरणों से।


लिपट-लिपट सब बातें कहना।।


 


माँ चरणों पर।


झुककर फूल चढ़ाते रहना।।


 


माँ चरणों से।


आत्मतोष धन याचन करना।।


 


माँ चरणों का।


पूजन प्रति क्षण करते रहना।।


 


माँ चरणों से।


जीवन भर सब पाते रहना।।


 


माँ चरणों की।


प्रति दिन सेवा करते रहना।।


 


माँ चरणों को।


दीपक-धूप दिखाते रहना।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*अन्नदाता किसान*


हे हलधर,हे अवनि-पुत्र तुम,


लगते कितने प्यारे हो।


दाता अन्न मात्र एक तुम,


सबके तुम्हीं सहारे हो।।


 


ले हल संग वृषभ की जोड़ी,


रोज खेत पर जाते हो।


शरद-गरम या हों बरसातें,


हिकभर फसल उगाते हो।


सना बदन कीचड़ में तेरा-


फिर भी महि के तारे हो।।


 


हर मौसम से तेरी यारी,


यारी है तूफानों से।


बिगड़े बोल भले हों इनके,


 डरे न उर्मि-उफ़ानों से।


सदैव परिश्रम करते रहते-


श्रम के तुम्हीं दुलारे हो।।


 


 छोटे हो या बड़े कृषक तुम,


श्लाघनीय तेरा प्रयास।


निशि-दिन श्रम कर भूख मिटाते,


हिय में सदा भरे हुलास।


हर युग के तुम पूजनीय हो-


कवि-हिय के तुम प्यारे हो।।


 


तुम प्रणम्य-नमनीय सभी के,


वंदन तेरा करते हम।


क्षुधा-पीर के तुम्हीं निवारक,


अर्चन तेरा करते हम।


होगा कोई देव गगन में-


पर तुम देव हमारे हो।


     दाता अन्न मात्र एक तुम,सबके तुम्हीं सहारे हो।।


                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                   9919446372


रवि रश्मि ' अनुभूति '         मुंबई ( महाराष्ट्र ) ।

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


 


🙏🙏नवरात्रि की आप सभी को हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ ।🙏💐💐🌹🌹


 


  देवी गीत 


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छोड़ सिंहासन आज तो मैया , तू आजा दर मेरे .....


आज सजाना घर मेरा तू , पैंया पड़ूँ मैं तेरे .....


 


इक मुद्दत के बाद हे मैया , सुन दिन ये आया है 


घर में अपने अब मैंने तो , जगराता कराया है 


सारी दुनिया आ जायेगी अब , दर्शन करने तेरे .....


छोड़ सिंहासन आज तो मैया , तू आजा दर मेरे .....


 


सुन ले मैया भीर पड़ी है , भक्तन पे अभी भारी 


बाट निहारें तेरी मैया , खड़ी है जनता सारी 


काट चुके सभी मैया सुन ले , कितने अब तक फेरे .....


छोड़ सिंहासन आज तो मैया , तू आजा दर मेरे .....


 


भवसागर में फँसी है नैया , कोई नहीं खिवैया 


सब कष्टों से हमें छुड़ाकर , पार लगा दे नैया 


तेरी करें पुकार हो मैया , हों खुशियों के डेरे .....


छोड़ सिंहासन आज तो मैया , तू आजा दर मेरे .....


 


आज सजाना घर मेरा तू , मैं पैंया पड़ूँ तेरे .....


छोड़ सिंहासन आज तो मैया , तू आजा दर मेरे .....


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(C) रवि रश्मि ' अनुभूति '


        मुंबई ( महाराष्ट्र ) ।


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सुनीता असीम

दिख रहे आसार हैं इल्जाम के।


काम उसने जो किए दुश्नाम के।


*****


जिन्दगी भर सोचते थे कर बुरा।


के मिलेंगे घूंट दो दो जाम के।


*****


दिल दुखाया हर किसी का आपने।


तुम नहीं हकदार हो ईनाम के।


*****


की नहीं तुमने दया मजलूम पर।


देखते हो ख्वाब क्यूं श्रीधाम के।


*****


राम के ही नाम में है फायदा।


आ गए जब पास हो अंजाम के।


*****


अब सुनीता कह रही तुमसे यही।


के करो तुम जाप केवल नाम के।


*****


सुनीता असीम


१७/१०/२०२०


कालिका प्रसाद सेमवाल

*गुरु तत्व नित्य है*


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गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता,


गुरु कोई शरीर नहीं होता,


गुरु तो व्यक्ति के अन्दर जो गुरुत्वा है,


वहीं गुरु तत्व होता है।


 


शरीर अनित्य है गुरु नित्य है,


व्यक्ति आज है परंतु कल नहीं है,


गुरु तत्व आज भी है और कल भी


गुरु एक शक्ति है जो नित्य है।


 


गुरु ईश्वर की कृपा से मिलता है,


गुरु समर्पण से मिलता है,


गुरु भाव से मिलता है,


गुरु प्रभु की अति कृपा से मिलता है।


 


गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता है,


गुरु ही सद् बुद्धि प्रदान करता है,


गुरु के कारण शिष्य की पहचान है,


गुरु कृपा से भवसागर पार होता है।


 


गुरु का आशीष शक्ति देता है


गुरु की सेवा करने से भक्ति मिलती है


गुरु दर्शन से खुशी मिलती है


गुरु सुमिरन से कष्टो का हरण होता है।।


*******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


पिनकोड 246171


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*हो प्रसन्न माँ प्रीति अगाधा*


 


हो प्रसन्न माँ प्रीति अगाधा।


हर लो है माँ सारी वाधा।।


 


निष्कंटमय सारा जग हो।


मुक्त दासता से हर पग हो।।


 


तेरा शुभ आशीष चाहिये।


माँ तुझ सा अवनीश चाहिये।।


 


मन के सारे कपट दूर हों।


मनोकामना सदा पूर हो।।


 


दिल में बैठ मातृ निर्मला।


कर सारे तन मन को धवला।।


 


विद्या दे कर शांत बनाओ।


धन दे पर माँ दंभ मिटाओ।।


 


ज्ञानप्रदा हे भवभय हारिणि।


बन जा माता शुभ हितकारिणि।।


 


बन साकार रहो माँ घर में।


उत्तम भाव बनी आ उर में।।


 


बैठी हंस गगन से आओ।


प्रथम दिवस नौरात्रि मनाओ।।


 


हम सब जागें संग तुम्हारे।


आयें मंगल गान बहारें।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*माँ विद्या सहजा अति पावन*


 


माँ विद्या शुभ ज्ञान प्रदाता।


लोक प्रसिद्ध सहज सुखदाता।।


 


काम क्रोध मद लोभ हारिणी।


दीन-हीन का कष्ट निवारिणी ।।


 


ममतामयी मातु वरदायी।


हरती क्लेश सदा सुखदायी।।


 


विनय विनम्र विनीत विनीता।


अतिशय सौम्य शांत सुपुनीता।।


 


सरल धवल शुभ्रा शिव धर्मी।


अति मनमोहक कृत्य प्रिय मर्मी।।


 


परम अनंत गगन गुरु ज्ञानी।


सात्विक भाव प्रबल सम्मानी।।


 


दिव्य पवित्र इत्र इति महकत।


चतुर शिरोमणि ज्ञानअग्निवत ।।


 


शीतल चन्द्र लोक की रानी।


ढाढ़स देती लिखत कहानी।।


 


शुचितापूर्ण सकल सत्कृत्या।


सर्वोपरि शुभदा अति दिव्या।।


 


वर दे वर दे मातृ शारदे।


हे पावन माँ विद्या वर दे।।


 


रचनाकार:डॉ:रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

माँ दुर्गा को समर्पित 


💐🙏🏻💐


17.10.2020


 


आए नौरात्र 


मैया आ जाओ द्वार 


है इंतजार ।


 


मैया आवह्न 


सजा है दरबार 


विराजो आज ।


 


कर श्रृंगार 


रूप सजाऊँ मैया


मैं गुण गाऊँ ।


 


दीप जलाऊँ


चुनर चढ़ाऊँ माँ


करो स्वीकार ।


 


आरती गाऊँ


रह निरआहर 


तुम्हें मनाऊँ।


 


भोग लगाऊँ


विराजो मन आप


दो वरदान


 


शक्ति संचार


माँ उर में भर दो 


है मनुहार ।


 


न बने कोई


अब निर्भया यहाँ


माँ ये वर दे ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*अन्नदाता किसान*


हे हलधर,हे अवनि-पुत्र तुम,


लगते कितने प्यारे हो।


दाता अन्न मात्र एक तुम,


सबके तुम्हीं सहारे हो।।


 


ले हल संग वृषभ की जोड़ी,


रोज खेत पर जाते हो।


शरद-गरम या हों बरसातें,


हिकभर फसल उगाते हो।


सना बदन कीचड़ में तेरा-


फिर भी महि के तारे हो।।


 


हर मौसम से तेरी यारी,


यारी है तूफानों से।


बिगड़े बोल भले हों इनके,


 डरे न उर्मि-उफ़ानों से।


सदैव परिश्रम करते रहते-


श्रम के तुम्हीं दुलारे हो।।


 


 छोटे हो या बड़े कृषक तुम,


तेरा है स्तुत्य प्रयास।


निशि-दिन श्रम कर भूख मिटाते,


हिय में सदा भरे हुलास।


हर युग के तुम पूजनीय हो-


कवि-हिय के तुम प्यारे हो।।


 


तुम प्रणम्य-नमनीय सभी के,


वंदन तेरा करते हम।


क्षुधा-पीर के तुम्हीं निवारक,


अर्चन तेरा करते हम।


होगा कोई देव गगन में-


पर तुम देव हमारे हो।


     दाता अन्न मात्र एक तुम,सबके तुम्हीं सहारे हो।।


                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                   9919446372


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*प्राण*


 


1-हाय, मेरे प्राण प्रिय आधार बन।


 


2-सत्य बनकर जीव का कल्याण कर।


 


3-प्रेम में पग कर सतत उद्धार कर।


 


4-जिंदगी मझधार में , उद्धार कर।


 


5-रो रहे मन से मधुर संवाद कर।


 


6-मुस्कराते गीत देवी गान कर।


 


7-अतिथि देवों को बुला सम्मान कर।


 


8-देवियों में शैल पुत्री को भजो।


 


9-व्रत रहो संकल्प का सम्मान कर।


 


10-दीन-दुःखियों को बुला कर दान कर।


 


11-प्रेम की बगिया बना कर रमण कर।


 


12-धर्म मानव रच सदा एहसान कर।


 


13-बन विनायक घूम अपनी परिधि पर।


 


14-मान को अपमान को इक सा समझ।


 


15-ज्ञान बाँटो दान में लिखकर सदा।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


संदीप विश्नोई पंजाब

जय माँ शारदे


जय माता दी नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ


 


मत्तगयंद सवैया


 


कुंकुम , केसर , चंदन , स्वास्तिक , द्वार सजा शुचि अम्ब पधारो। 


 


आज लगी नवरात्रि सुपावन , कष्ट मिटाकर अम्ब उबारो। 


 


रुद्र खड़ा दर भेंट लिए कर , माँ निज नैन सदैव निहारो। 


 


दर्शन दो चढ़ सिंह हमें अब , माँ भवसागर पार उतारो। 


 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र


दुतारांवाली अबोहर पंजाब


विनय सागर जायसवाल

ग़ज़ल


 


अपने तू दिल की आज ये हसरत मिटा के देख


मेरी वफ़ा-ए-शौक को तू आज़मा के देख


 


मिट जायेगा अंधेरे का सारा ग़ुरूर ख़ुद


बस इक चराग़ प्यार का दिल में जला के देख 


 


किस दर्जा दिल में प्यार है मेरे भरा हुआ


आँखों के दायरे में ज़रा मुस्कुरा के देख


 


खिलने लगेंगे फूल से दिल के दयार में


मेरे करीब आने का तू मन बना के देख


 


कह दे सितमगरों से निकालें ग़ुबारे-दिल 


मेरे खिलाफ़ तू उन्हें भी बरग़ला के देख


 


आजायेंगे हज़ार हा पत्थर तेरी तरफ़


इल्ज़ाम इक अमीर के सर पर लगा के देख 


 


*साग़र* मेरी ग़ज़ल में है तेरा हरेक अक्स


तन्हाइयों में इसको ज़रा गुनगुना के देख


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


15/10/2020


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*सम्मान*


 


छोटा बड़ा न जानिये, सब हैं एक समान।


हर मानव को चाहिये, स्नेह प्रेम सम्मान।।


 


उम्र बड़ी होती नहीं, होता बड़ा विचार।


रचते दिव्य विचार ही, प्रिय स्वर्गिक संसार।।


 


बड़ी उम्र में यदि घुसा, मन में घटिया भाव।


बड़ा उसे कैसे कहें,जिसके गंदे दाव।।


 


बड़ा वही ताउम्र है, जिसमें बुद्धि-विवेक।


करता काम अनेक है, बनकर सबका नेक।।


 


मानवीय संवेदना, का जिसमें भण्डार।


वही परम सम्मान का, रखता है अधिकार।।


 


मानव हड्डी-मांस का, पुतला नहीं है जान।


सद्विचार के माप से, कर लो इसका ज्ञान।।


 


अंतहीन यह पथिक है, अंतहीन है पंथ।


जीवन पथ पर चल रहा, लिखते अपना ग्रन्थ।।


 


यह विचार का पुंज है, चिंतन इसका मूल।


बन जाता सत्कर्म से , इक दिन सुरभित फूल।।


 


मानवता से युक्त जो, नैतिकता आधार।


रचता रहता अनवरत, सम्मानित संसार।।


 


ऐसे सम्मानित मनुज, की मत पूछो आयु।


जग का संचालन यही, करते बनकर वायु।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर "श्री हंस"

*।।माँ शेरोंवाली।।माँ दुर्गा।।*


*।।अष्ट भुजा धारी ।।*


 *।।नवरात्री महिमा आपार।।*


 


*।1। ।। मुक्तक।।*


 


अष्ट भुजा धारी माँ दुर्गा


लेकर नौ महिमा के अवतार।


प्रकट हुई हैं देवी मैया


हम भक्त जनों के द्वार।।


कलश कसोरा जौ ओ पानी


पुष्प दीप संग करें अगवानी।


करें प्रार्थना माँ बरसाये कृपा


हो हम भक्त जनों का उद्धार।।


 


*। 2। ।।मुक्तक।।*


 


शारदीय नवरात्रि का रामनवमी


विजयादशमी से होता है अंत।


कन्या पूजन से मिलता उत्तम


फल और मन होता है संत।।


जै माता के जयकारों से हो


जाता है सबका बेड़ा पार ।


हर इक रूप महिमा में समाया


होता है भक्ति शक्ति का मंत्र।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री*


*हंस*"


*बरेली।।*


मो 9897071046 ।।।।।


8218685464 ।।।।।।।।।


एस के कपूर "श्री हंस"

*रचना शीर्षक।।*


*हर जुबां पर महोब्बत को*


*सलाम हो जाये।।*


 


काँटों की खेती करता हूँ


फूल बन कर।


गुलों की हिफाज़त करता


हूँ शूल बन कर।।


गमों में भी मुस्कराता हूँ कि


तबियत ऐसी ही मेरी।


हँसता हूँ सामने सबके बस


एक असूल बन कर।।


 


दुआ सबकी चाहिये बददुआ


किसी की लेता नहीं।


सौदा प्यार का करता हूँ और


नफरत को देता नहीं।।


मैं ही अव्वल नहीं कोई ऐसा


रखता यकीन।


जुबान मीठी रखता हूँ बात


कड़वी कहता नहीं।।


 


रिश्तों में झुक जाना बात


अजीब लगती नहीं है।


किसी का दिल मुझसे दुखे ये


तहजीब लगती नहीं है।।


सूरज भी तो ढल जाता है


चांद के लिए हमेशा।


झूठ को सच बना जीतूं सही


तरकीब लगती नहीं है।।


 


अल्फाजों का रखता हूँ ध्यान


कि मेरा किरदार बनाते है।


शब्द हमेशा मीठे ही कि यह


मेरा व्यवहार बनाते हैं।।


हालात हों खराब तो भी मैं


हौंसला खोता नहीं।


ये सबब परेशानियों के मुझे


और दिलदार बनाते हैं।।


 


दिल चाहता खूबसूरत सबेरा


ओ सुहानी शाम हो जाये।


दुनिया में बहुत ऊपर प्रेम का


पैगाम हो जाये।।


कुछ यूँ हो कुदरत का कोई


अजब सा करिश्मा।


कि हर जुबां पर महोब्बत


को सलाम हो जाये।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                      8218685464


एस के कपूर "श्री हंस"

*आज का विषय।। गद्य साहित्य।। आलेख।।*


*दीपावली।।दीपपर्व है,दिखावा पर्व नहीं।।*


 


(त्योहारों का समय आने वाला है, अतएव एक समसामयिक विषय को


रचनाधर्मिता के लिए चुना है।)


 


घंटो जहरीली गैस निकालते, धूम धड़ाके वाले पटाखे ,जो पर्यावरण ,आँखों,साँस,स्वस्थ्य को नुकसान भी पहुंचाते हैं और वायु मंडल में ऑक्सीजन की कमी पैदा करते हैं और चकाचौंध करती नकली और चीनी लाइट्स,महंगे कपडे,मिठाई जो मिलावटी भी हो सकती है,कार्ड्स,मंहगी मोमबत्तियों का प्रयोग ,सोने के सिक्के, बिस्कुट, सोने चांदी के लक्ष्मी गणेश,केवल यह ही दीपावाली नहीं है।यह हमारी पुरातन संस्कृतिपूर्ण दीपावली का ,कुछ विकृत व आधुनिक बाज़ारी संस्करण है।


वास्तव में दीपावली हमारे ,पुरातन संस्कारों से जुड़ा, दीपपर्व है।


इसको मनाने में भारतीयता की सोंधी महक आना बहुत जरुरी है।


ठीक है ,आधुनिकता और समय के साथ कुछ सजावट,रंगरोगन,साज सज्जा आदि सब ठीक है, पर साथ ही घर में बने मिठाई और पकवान,नये लक्ष्मी गणेश की विधिवत स्थापना व पूजन व आरती, माँ लक्ष्मी का आव्हान,कुबेर यंत्र,मिट्टी और तेल के दीये,यम दीया,तुलसी पर दीया,जल के पास दीया,कूड़े के स्थान पर दीया, घर द्वार आंगन के पास रंगोली, पड़ोस में जाकर व्यक्तिगत रूप से, दीपावली की शुभकामनायें,बड़ों का चरणस्पर्श,पूजा की थाली,खीलें ,खिलोने, बताशे,सिक्का ,द्वार, आदि में रोली से ॐ,स्वस्तिक,शुभ लाभ,द्वार पर आधुनिक वंदनवार के साथ ही


 पारंपरिक फूलों व पत्तों जैसे आम अशोक ,गेंदे के पत्तों।फूलों की वंदनवार , छप्पन भोग , धनतेरस पर बर्तन खरीद,पूजन के पश्चात तिलक ,कलावा,यह सब कुछ ऐसी बातें व क्रियायें व परम्परायें हैं , जो हमें अवश्य करनी, निभानी चाहिए और नई पीढी के सामने करनी चाहिए या उनसे ही करानी चाहिए।जिससे नई पीढ़ी को, दीपावली का केवल बाज़ारी रूप ही सामने न आए और इस महत्वपूर्ण दीपपर्व की महत्ता और विरासत और पैराणिक कथायों का भी महत्व ,उन्हें पता चले।अब ज्ञात हुआ है ,कि इस वर्ष


गाय के गोबर के दीये भी उपलब्ध हो जायेंगे।


दीपावाली, धनतेरस,छोटी दीपावली(नरक चतुर्दशी), बड़ी दीपावली,अन्नकूट यानि गोवर्धन पूजा,भैयादूज यानि यमद्वितीया, इन पांच पर्वों का मिश्रित रूप है ,अतः खाने पीने के खर्चे ,आने जाने ,लेने देने, में बहुत समझदारी और व्यवहारिक रूप से व्यय करें, कि पर्व की सुंदरता भी बनी रहे और आपका आय व्यय का बजट भी नहीं गड़बड़ाए।


नई पीढ़ी को भी बताएं ,कि इस दीप पर्व में खील ,बताशे ,मीठे खिलौने,धनतेरस पर शगुन के लिए बर्तन खरीदने का ,नरक चतुर्दशी पर नई झाडू का ,अपना एक महत्त्व होता है।केवल सोना , चांदी, चकाचौंध वाले सामान,रात भर जुआ खेलना आदि ही दीवाली नहीं है।


दीपावली में मिलकर घर की सफाई करें,पुराने सामान,कपड़ों को गरीबों को दान करें या अनाथालय आदि में जरूरत के हिसाब से दें।पुराने पूजा अर्चना सामान का जल प्रवाह,आपके द्वारा मिलकर की गई सफाई से ,जो घर में चमक और रौनक आएगी, वो हज़ारों लाखों से खर्च करने की, रोशनी से कँही अधिक चमकदार होगी।


अंत में केवल यही बात कहनी है, कि दीवाली को दिखावा पर्व नहीं दीपपर्व के रूप में मनाएं ,जिसमें संस्कार संस्कृति, भारतीयता का प्रतिबिंब स्पष्ट अवलोकित हो।हाँ, और आजकल इस कॅरोना संकट में सामाजिक दूरी और अन्य सावधानियों का भी विशेष ध्यान रखें क्योंकि आपकी व दूसरे की सुरक्षा सर्वोपरि है।साथ ही अब चीनी सामान का प्रयोग बिलकुल समाप्त करके राष्ट्रभक्ति का परिचय भी देना है।


 


*रचयिता।।*


*एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


*मोबाइल।*


9897071046


8218685464


नूतन लाल साहू

मां की आंचल


 


मां तेरा लाल हूं, मै


तू मुझे,भुल न जाना


जैसा भी हूं,तेरा संतान हूं


अपनी,आंचल में छुपा लेना


भुला हुआ था,तुझको मै


आज फिर से,पुकारा हूं


हर युग में तू,प्रगट हुईं है


लेकर एक, अवतार


हो जाऊ मैं, तुझमे ऐसी मगन


अपनी आंचल में,छुपा लेना


उलझा रहा,अब तक जहां के


झूठे झूठे,ख्यालों में


पैरों में,मोह माया की


जंजीर पड़ी हुई थी


तू शक्ति स्वरूप है, मां


अपनी आंचल में,छुपा लेना


मां की जयकारा से


मिलता है, आत्म ज्ञान


जो हर रोग की


करता है,निदान


मुझ पर,कृपा हो तेरी


अपनी आंचल में,छुपा लेना


भुला हूं मैं,भटका हूं मैं


मेरा कोई नहीं, जहां में


मुझको है,तेरी ही आसरा


जग के,तारणहार हो


इस दास के, सिर पर हाथ रख दे


अपनी आंचल में, छुपा लेना


मेरे जीवन की डोर,अब तो


कर दी, तेरे हवाले


बेड़ा पार लगाने वाला


कोई और नहीं है


तुम हो जग की माता ,मै हूं पुजारी


अपनी आंचल में, छुपा लेना


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

🙏🏻 वंदन,माता रानी का 🙏🏻


 


माता तेरे चरणों में है,


                     नमन हजारों बार।


कोरोना राक्षस ही लगता,


                      देना उसको मार।


तू ही दुर्गा, तू ही काली, 


                        तेरे रूप हजार।


धर काली का रूप तुझे माॅ॑,


                        करना है संहार।


 


            नवरात्रि पर्व की 


       हार्दिक शुभकामनाएं।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल

🙏🏻 वंदन,माता रानी का 🙏🏻


 


माता तेरे चरणों में है,


                     नमन हजारों बार।


कोरोना राक्षस ही लगता,


                      देना उसको मार।


तू ही दुर्गा, तू ही काली, 


                        तेरे रूप हजार।


धर काली का रूप तुझे माॅ॑,


                        करना है संहार।


 


            नवरात्रि पर्व की 


       हार्दिक शुभकामनाएं।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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