*माँ दुर्गा नव दुर्गा माता*
जय जय जय जय हे सुखदाता।
ज्ञानामृता शिवा पितु माता।।
अंक अनंत अपार नवम हो।
नव के लिखत पहाड़ सुगम हो।।
कुष्मांडादि रूपसी युवती।
बाला वृद्धा सत्य बलवती।।
सकल शस्त्र शास्त्र की ज्ञाता।
वीरांगना विज्ञ शुभदाता।।
वरदायी यशदायी यशमय।
भयमोचन संकटहर निर्भय।।
महा तेजपुंज अखिलेश्वर।
ब्रह्मवादिनी प्रिय परमेश्वर।।
तीन लोक की महा भवानी।
तुझे पूजते सिद्ध सुज्ञानी।।
मानव सिद्ध मुनी सब सेवत।
हर कोई विवेक से पूजत।।
अति दुर्गम अति सुगम मातु तुम।
परम कृपालु करुण सम पितु तुम।।
जो भी जाता शरण तुम्हारी।
कटती उसकी विपदा सारी।।
क्लेशमुक्त हो जीवन जीता।
सदा भक्ति रस तेरा पीता ।।
शंकामुक्त रहत आजीवन।
सहज प्रफुल्लित रहता तन-मन।।
पा पुरुषार्थ रमण करता है ।
बना फकीर भ्रमण करता है।।
सम योगी बन घूमा करता।
मानवता को चूमा करता।।
ब्रह्मवाद का मंत्र जपत है।
सिंहनाद हुंकार भरत है।।
निर्मल मन अरु पावन हॄदयी।
अति सुशांत शालीन मधु दयी ।।
माँ दुर्गा वरदानी शुभदा।
दे देती प्रिय सकल संपदा।।
जय हो जय हो जय जय माता।
माँ श्री चरणों से बस नाता।।
रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801