डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-17


 


तरुन-काल हम दुइनउ भाई।


गगन उड़े बहु रबि नियराई।


    सहि न सका रबि-तेज जटायू।


    भरि उड़ान तब चला परायू।।


मैं अभिमानी बड़ा गुमानी।


पुनि-पुनि उड़ि निज पंख जरानी।।


    गिरा धड़ाम नभहिं तें भुइँ पर।


    कीन्ह दया चंद्र मुनि मोंहि पर।।


मुनि कह सुनु त्रेता-जुग माहीं।


नर-तन प्रभु अइहैं यहिं राहीं।।


     रावन राम क पत्नी हरहीं।


     जासु बियोग राम यहिं अवहीं।।


खोजत-फिरतै कपी-समाजा।


आई अवसि करन प्रभु-काजा।।


    तब तव भेंट तिनहिं सँग होई।


    जीवन तोर पुनीतै होई ।।


पावहु तुम्ह तव पंख तुरंता।


लइ के कृपा राम भगवंता।।


     मुनि कै बचन असत नहिं भवई।


     प्रभु कै दरस आज मोंहि मिलई।।


प्रभु कै काजु करब हम अबहीं।


कछुक देर नहिं देखउ सबहीं।।


    गिरि त्रिकूट पै लंका नगरी।


    तिसु नृप रावन, सुदंर-सवँरी।।


चुरा सियहिं माँ लाइ के रावन।


रक्खा ताहि असोकहिं उपबन।।


     लागहिं सीय बहु दुखी-उदासी।


     चिंतित मन अति खिन्न-पियासी।।


गीध जाति मम दृष्टि अपारा।


देखि क सियहिं जाउँ नहिं पारा।।


      बृद्ध गात मैं उड़ि ना पाऊँ।


       मम मन पीड़ा कसक जताऊँ।।


सत जोजन सागर जे लाँघहिं।


सो मति धीर सीय पहँ जावहिं।।


दोहा-करउ न तुम्ह चिंता कोऊ, महिमा नाथ अपार।


        करिहैं प्रभु अब जतन कछु,होई बेड़ा पार ।।


 


ग्यारहवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-7


 


सुनतै सभ जन भए अचंभित।


भईं नंद सँग जसुमति चिंतित।।


      सभ जन आइ निहारैं किसुनहिं।


      करैं सुरछा सभ मिलि सिसुनहिं।।


यहि क अनिष्ट करन जे चाहा।


मृत्य-अगिनि हो जाए स्वाहा।।


    आवहिं असुर होय जनु काला।


    मारहिं उनहिं जसोमति-लाला।।


साँच कहहिं सभ संत-महाजन।


होय उहइ जस कहहिं वई जन।।


    कहे रहे जस गरगाचारा।


    वैसै होय कृष्न सँग सारा।।


मारि क असुरहिं किसुन-कन्हाई।


सँग-सँग निज बलरामहिं भाई।।


    गोप-सखा सँग खेलहिं खेला।


   नित-नित नई दिखावहिं लीला।।


उछरैं-कूदें बानर नाई।


खेलैं आँखि-मिचौनी धाई।।


दोहा-नटवर-लीला देखि के,सभ जन होंहिं प्रसन्न।


         भूलहिं भव-संकट सभें,पाइ प्रभू आसन्न।।


        संग लेइ बलरामहीं,कृष्न करहिं बहु खेल।


        लीला करैं निरन्तरहिं,ब्रह्म-जीव कै मेल।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

सप्त दिवस नवरात्रि का , कालरात्रि आह्वान।


भक्ति भाव पूजन करे , प्राप्ति अभय वरदान।।१।।


 


गंगाजल अक्षत कुसुम , पंचामृत सह गन्ध।


कालरात्रि पूजा करें , कटे आपदा बन्ध।।२।।


 


कालरात्रि माँ कालिका , भैरवि काल कपाल।


रौद्री चंडी चण्डिका , चामुण्डा विकराल।।३।।


 


श्यामा तारा भाविनी , रिद्धि सिद्धि दे योग।


मुण्डमाल बिजुरी समा , प्रिय काली गुड़ भोग।।४।।


 


महा काली कपालिनी , भद्रकाली सुनाम।


ग्रह बाधा से मुक्त हों , हो जीवन सुखधाम।।५।।


 


अर्द्धरात्रि पूजन करें , माँ काली तम रूप।


रोग शोक सब पाप मन , मिटे क्रोध मन कूप।।६।।


 


रक्तबीज शोणित हरे , चण्ड मुण्ड संहार ।


चामुण्डा जग में विदित , रुद्राणी अवतार ।।७।।


 


असुर निकन्दनी कालिके , गोलाकार कपाल।


आलोकित ब्रह्माण्ड सम , भाल त्रिनेत्र विशाल।।८।।


 


खड्गधारिणी चण्डिके, धरे हाथ लौहास्त्र।


अभय मुद्रा में भगवति , वरमुद्रा ब्रह्मास्त्र।।९।।


 


पूर्ण सकल अभिलाष मन,भज काली जगदम्ब।


सप्त रूप माँ कालिके , दुर्गा जग अवलम्ब।।१०।।


 


कर निकुंज अभिराम माँ , हरो सकल संताप।


भक्ति प्रीति समरस वतन, बाँटों नेह प्रसाद।।११।।


 


कालरात्रि माँ कालिके , महिमा अपरम्पार।


महाशक्ति बदलामुखी , कृपा सिन्धु आगार।।१२।।


 


कविः डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ राधा वाल्मीकि

......डॉ.राधा वाल्मीकि....


शिक्षिका,समाजसेविका,कवयित्री


         (संक्षिप्त परिचय)


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नाम - डॉ.राधा वाल्मीकि


पिता - श्री सियाराम वाल्मीकि


माता - श्रीमती मीनू देवी


जन्म - 12 अगस्त 1964 बरेली उ. प्र. (ननिहाल में)


गृह जनपद - पिथौरागढ़,(उत्तराखंड)


शिक्षा- 


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एम. ए. (राजनीतिशास्त्र,इतिहास,अर्थशास्त्र,समाजशास्त्र,शिक्षाशास्त्र),बी.एड.,एल.एल.बी.,पी.एच.डी.(राजनीतिशास्त्र),हिमालय वुड बैज(स्काउटिंग)।


सम्प्रति-


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पं.गो.ब.पं.कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर,उत्तराखण्ड के प्रबन्धन में संचालित पन्तनगर इण्टर कॉलेज में प्रवक्ता( इतिहास )


साहित्यिक एवं संस्थात्मक कार्य - 


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विद्यालय की पत्रिकाऐं, स्मारिका, निर्झरिणी, आह्वान का सम्पादन।


नवोदय पर्वतीय कलाकेन्द्र, पिथौरागढ़(1985),सृजन सांस्कृतिक समिति पन्तनगर(2006) की स्थापना में संस्थापक मंडल की सदस्या।


उपलब्धियां(राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर)-


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"लॉंग टाइम अचीवर अवॉर्ड"13 सितम्बर 2014,भारत स्काउट एवं गाइड उत्तराखंड।


"डॉ. अम्बेडकर विशिष्ट सम्मान" 17अगस्त 2014


भारतीय दलित साहित्य अकादमी उत्तराखंड।सम्मान2017


,1अक्टूबर 2017राष्ट्रीय वाल्मीकि समाज चेतना संगठन नई दिल्ली।


 "नेशनल वूमैन अचीवर अवॉर्ड",17 जून 2018 गोपाल किरण समाज सेवी संस्था ग्वालियर,मध्य प्रदेश।


"समाज का गौरव" सम्मान,25 मई 2018,राष्ट्रीय संस्था भावाधस,अमृतसर।


"अम्बेडकर रत्न"सम्मान


31अक्टूबर 2018, वाल्मीकि आश्रम मेरठ। 


" काव्य श्री" सम्मान 21अक्टूबर 2018, वाल्मीकि साहित्यिक चेतना मंच,सहारनपुर उ. प्र.।


"श्रेष्ठ कवयित्री सम्मान"2019 विश्व हिन्दी लेखिका मंच।


"मातृभूमि गौरव सम्मान"2019,विश्व हिन्दी रचनाकार मंच।


"नारीशक्ति सागर सम्मान"2019 विश्व हिन्दी लेखिका मंच।


"डॉ.अ्बेडकर साहित्य रत्न सम्मान"21जून 2019,प्रबुद्ध फाउंडेशन भारत,प्रयागराज।


"उत्तराखण्ड गौरव सम्मान" 27 जुलाई 2019,न्यूज 24 लाइव एवं रे फाउंडेशन।


"नीरज साहित्य रत्न सम्मान" 4 अगस्त 2019,विश्व हिन्दी रचनाकार मंच।


"अम्बेडकर रत्न सम्मान" 10 अगस्त 2019 महादलित परिसंघ भारत।


"शिक्षा मार्तण्ड सम्मान" 24 नवम्बर 2019,स्वर्ण भारत मिशन एवं दिशा फाउंडेशन दिल्ली।


"ग्लोबल अचीवर अवॉर्ड" 25 नवम्बर 2019,गोपाल किरण समाजसेवी संस्था ग्वालियर मध्य प्रदेश।


"डॉ.अम्बेडकर नेशनल फैलोशिप अवॉर्ड" 8 दिसम्बर 2019 भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली।


"माता सावित्रीबाई फुले गौरव सम्मान" 5 जनवरी 2020,सम्यक दृष्टि महिला समिती बरेली,उत्तर प्रदेश।


"अखिल भारतीय मेधावी सृजन सम्मान" 8 मार्च 2020 आदित्य फाउंडेशन वर्धा, महाराष्ट्र।


महादेवी वर्मा शक्ति सम्मान,2020 विश्व हिन्दी लेखिका मंच ।


साहित्य सितारे ,2020,


 "उत्तम रचनाकार सम्मान, सारथी सम्मान 2020कलम बोलती है साहित्य समूह सूरत(गुजरात)


श्रेष्ठ रचनाकार,2020


वर्तमान अंकर साहित्य ,उत्तरांचल उजाला।


कोरोना वॉरियर्स सम्मान 2020 इंकलाब न्यूज दिल्ली,संवैधानिक क्रांति एवं युगधारा फाउंडेशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश।


"सर्वश्रेष्ठ सृजन सम्मान"16अगस्त2020


नव किरण साहित्य साधना मंच ।


"देशभक्ति काव्य सम्मान"2020,श्रेष्ठ सृजन सम्मान एव काव्य शिरोमणि सम्मान विश्व विज्ञानी काव्य साधना मंच।


 


अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश) एवं हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन नीदरलैंड के संयुक्त तत्वावधान में 7अगस्त से 11 अगस्त तक "भारतीय वांड़मय में जीवन मूल्यों की वैश्विक स्वीकारोक्ति"विषय पर आयोजित पंच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार-2020 में शोधपत्र वाचन,सहभागिता प्रमाणपत्र से सम्मानित।  


साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा काव्य साधक सम्मान 2020


स्वर्ण भारत परिवार दिल्ली द्वारा "अंतर्राष्ट्रीय मदर टेरेसा अवार्ड 2020" से सम्मानित। 


सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान 'शिक्षा शिरोमणि सम्मान2020 से सम्मानित 


युगधारा फाउंडेशन लखनऊ उत्तर प्रदेश द्वारा युगधारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान 2020।


लखीमपुरखीरी उत्तरप्रदेश 


काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका द्वारा डॉ. राधाकृष्णन सम्मान 2020


हिन्दी साहित्य रत्न2020, स्वर्ण भारत परिवार 


डॉ एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रीय पुरस्कार 2020


ग्लोबल गांधी पीस अवॉर्ड 2020,ल्वर्ण भारत परिवार।


 


 


प्रशस्ति पत्र-


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पं.दीनदयाल उपाध्याय शैक्षिक उत्कृष्ठता पुरस्कार (विद्यालयी शिक्षा विभाग, उत्तराखंड)।


राष्ट्रीय शैक्षिक सेमीनरों में प्रतिभागिता पर सम्मान।


सामुदायिक रेडियो स्टेशन"जनवाणी"एवं संचार निदेशालय पन्तनगर द्वारा सामाजिक साहित्यिक प्रतिभागिता के लिए प्रत्येक वर्ष सम्मान।


कुलपति विश्वविद्यालय पन्तनगर द्वारा सम्मान।


समय-समय पर विभिन्न


शिक्षाधिकारियों,विधायकों,रेडक्रॉस सोसाइटी,राष्ट्रीय सेवा योजना,अनेकों सामाजिक संगठनों,संस्थाओं एवं गणमान्य जनों द्वारा सम्मानित।


 


प्रकाशन-


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विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कहानियाँ,गीत,कविताऐं प्रकाशित जैसे-प्रतिबद्ध,अम्बेडकर इन इंडिया,डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, दलित दस्तक,ग्लोब दर्पण, कीर टाइम्स,वाल्मीकि बाण, वाल्मीकि जन सन्देश, वाडेकर टाइम्स,मूलनिवासी टाइम्स,उदय प्रभात, वंचित स्वर,हाशिए की आवाज, उत्तराखंड ज्योति, उत्तरांचल दर्पण,न्यूज प्रिंट,शाह टाइम्स,उत्तरांचल पत्रिका,साहित्यिक पत्रिका नारीशक्ति सागर आदि।


 प्रकाशित पुस्तकें-


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 अन्तर्मन की पीड़ा,फ़ुर्सत के लम्हे एकल काव्य-संग्रह।


साझा काव्य-संग्रह-हरसिंगार (सम्पादन)गुलदस्ता,काव्य दर्पण,व्यवस्था पर चोट,काव्यसंगम,फुलवारी,कोविड 19,मैं निःशब्द हूँ, ज़िन्दगी लॉकडाउन,देशबंदी,भारत की श्रेष्ठ कवयित्रियां,भारत माता की जय,आदि


 


सम्पर्क - ।।।/669 चकफेरी कॉलोनी, निकट- जनमिलन केन्द्र (कृषि विश्वविद्यालय कैम्पस),न


जिला-ऊधमसिंह नगर,उत्तराखण्ड।


पिनकोड-263145


 स्थाई पता-धर्मशाला लाइन, निकट-सोल्जर्स बोर्ड जिला- पिथौरागड़,उत्तराखण्ड


पिनकोड-262501


मो0-9720460708,


 


 


रचनाऐं-


             (1)


 


जिंदगी लॉकडाउन कर लो


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कोरोना को हल्के में लेने वालों,


बात मेरी इतनी सी सुन लो।


देश भले अनलॉक हो चुका,


तुम जिंदगी लॉकडाउन कर लो॥....


लॉकडाउन अब खत्म हो चुका,


पर कोरोना बढ़ रहा है।


लॉकडाउन तोड़ने वालों से ही,


जीवन खतरे में पड़ रहा है॥....


संक्रमित लोगों की संख्या,


तेजी से बढ़ने लगी है।


धैर्य संयम और बचाव की,


आवश्यकता पड़ने लगी है॥... 


लापरवाही बरतने वालों सुन लो,


एक दिन ऐसा आएगा।


कोरोना तुम्हें भी अपना,


शिकार बना ले जाएगा॥...


जब अचानक तुम्हें किसी दिन,


तेज बुखार आ जाएगा।


गले में जकड़न दर्द होगा,


सांसो में व्यवधान आ जाएगा॥...


कोविड-19 का टेस्ट होगा, 


और तनाव बढ़ जाएगा।


रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा में,


व्यक्ति अधमरा हो जाएगा॥...


यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी,


नगर पालिका /निगम में जाएगी।


अस्पताल फिर तय होगा और,


एंबुलेंस दनदनाती आएगी॥...


कॉलोनी में खिड़कियों से झांक फिर,


 लोग तुम्हें देख हँसने लगेंगे।


नाना प्रकार की टिप्पणियां भी,


देख देख कर करने लगेंगे॥...


एंबुलेंस के कर्मचारी तब,


जरूरी कपड़े सामान रखवाएेंगे।


बेचारे घर के सदस्य तुम्हें,


बस देखते रह जाएेंगें॥...


और सोचने लगेंगे कि अब,


हममें से किसका नंबर है।  


हमें कोरोना कैसे हो सकता है?


हम तो घर के अंदर हैं ॥...


सायरन की कर्कश आवाज से,


एंबुलेंस जब जाएगी। 


फिर पुलिस प्रशासन द्वारा,


कॉलोनी सील की जाएगी॥ 


उधर मरीज को 14 दिन तक,


ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा।


दो वक्त का जीने मात्र का,


भोजन परोसा जाएगा॥... 


टीवी,मोबाइल ,रिश्ते -नाते,


सब अदृश्य हो जाऐंगे।


तब बिस्तर और खाली दीवारें,


भूत भविष्य दिख लाऐंगे॥


फिर उपचार से यदि टेस्ट रिपोर्ट,


नेगेटिव आ जाएगी। 


घर वापसी की सारी तब,


संभावनाएं बढ़ जाएेंगी॥...


और यदि अनहोनी हुई तो,


प्लास्टिक में कैद हो जाओगे।


शायद अपनों को अपना,


अंतिम दर्शन न दे पाओगे॥...


किसी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में,


भस्म कर दिए जाओगे। 


केवल मृत्यु-प्रमाण पत्र रूप में,


कागज बन घर जाओगे॥...


बात कड़वी है पर सच कहती हूँ,


जरूरी हो तभी घर से निकलो।


देश भले अनलॉक हो चुका,


तुम जिंदगी लॉकडाउन कर लो॥


          ------------


           (2)


ज़िन्दगी इक सफ़र 


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जन्म से लेकर मृत्यु तक,


ज़िन्दगी इक सफ़र है।


जीवन पर्यन्त किसी के लिए तो, 


ये मुश्किलों से भरी डगर है॥


 


राह मे इसकी कहीं काटें तो, 


कहीं बिखरे हुए फूल मिलेंगे।


कहीं सफलता की खुशियाँ तो,


कही असफलता के शूल मिलेंगे॥


ज़िन्दगी में सबको सब कुछ,


मिलता कर्मानुसार है... 


 


गर्दिशों के दौर मिलेंगे, 


खुशियों के भी ठौर मिलेंगे,


रिश्ते-नातों के रूप में,


जीवन में कई लोग मिलेंगे।


हंसते-गाते ग़म में उतरते,


आओ अब करते गुज़र हैं....


 


करें कुछ ऐसा सफल हो जीवन।


परहित परोपकारी हो जीवन।


करने पर परलोक गमन


भी, 


कहलाए एक आदर्श जीवन।


सुख-दुख की इस छाँव-धूप में तब, 


होती आसान ज़िन्दगी बसर है...


 


जिम्मेदारियों का बोझ उठाते, 


सारे दायित्वों को निभाते।


बचपन की मुस्कान से जाने कब, 


कराहते वृद्धावस्था में आते।


एक दिन फिर थम जाता है, 


इस ज़िन्दगी का सफ़र है


ज़िन्दगी इक सफ़र है॥


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            (3)


 


मुश्किल में मुस्काना सीखो


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मुश्किल में मुस्काना सीखो,


हँस कर ग़म भुलाना सीखो। 


बाधाओं से लड़ना है तो,


धैर्यबल बढ़ाना सीखो॥


 


किसी का दर्द अपना कर देखो।


किसी का साथ निभा कर देखो।


अपना गम भी कम लगेगा, 


दूसरों को हँसाकर देखो॥


 


कंटकमय ये जीवन पथ है,  


पग संभलकर रखना सीखो।


राहें निष्कंटक हो जाएंगी।


कांटे तो हटाना सीखो॥


 


सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं,


इनमें समन्वय बनाना सीखो।


मुश्किल नहीं है कुछ भी करना,


हौंसले तो बढ़ाना सीखो॥


 


आसान लगेगी हर मुश्किल,


इनसे जरा तुम लड़ना सीखो।


रोना तो कायरता है तुम,


रोना नहीं मुस्काना सीखो॥


 


मुश्किल में मुस्काना सीखो,  


हँसकर ग़म भुलाना सीखो।


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            (4)


 


      टूटते ख़्वाब


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एक पूरी हसीन दुनिया,


ख़्वाबों मे समायी होती है।


जीवन में बड़ा कुछ पाने की,


उम्मीदें लगाई होती हैं॥


 


एक तलाश खुशियों की,


जिन्हें हम खुली आँखों से


तलाशते हैं।


या बंद आंखों में संजोकर देखतें हैं।


हर वो मंजर,


जो बदल कर रख देता है तकदीर।


पर जब,


यही ख़्वाब..


यकायक टूटते हैं।


तिनका-तिनका होकर बिखरते हैं।


अश्रु बन आँखों से झरते हैं।


तब कर जाते हैं हृदय में,


घाव गंभीर।


तोड़ डालते हैं हर उम्मीद,


दे जाते हैं..


गहरी वेदना।


छा जाता है चेहरे पर,


उदासी का घना आवरण।


दिल कर लेता है फिर


एकान्तवास।


और कर लेता है,


ख़ामोशियों का वरण।


क्योंकि,


ख़्वाब टूटते ही...


उसकी वो दुनिया,


लुट चुकी होती है।


जो पहले से देखे,


सैकड़ों हसीन ख़्वाबों में,


समायी होती है।


टूटे हुए ख़्वाबों की स्थिति,


बड़ी दुखदायी होती है।


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          (5)


विधा-हाइकु


 


        दर्द


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दर्द बड़ा ही


बेदर्द होता है जो


तोड़ देता है ॥1॥


 


इसका नाता


हर जीवन से है


जुड़ा रहता ॥2॥


 


दिल का दर्द


बंया नहीं करती


होंठों की हँसी॥3॥


 


बन नासूर


रिसते जख़्मों से ये


है तड़पाता ॥4॥


 


अकेलापन


दर्द में है सुहाता 


सुकूं दिलाता ॥5॥


 


दिल परेशां 


समझ नहीं आता


कुछ न भाता ॥6॥


 


नहीं है कोई 


बांट सके जो दर्द


वो हमदर्द ॥7॥


 


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स्वरचित



पन्तनगर,उत्तराखंड।


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ. निर्मला शर्मा

व्यक्तिगत परिचय


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अपना नाम-


पति का नाम- श्री दीपक शर्मा


 


शिक्षा-


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- एम. ए.,बी. एड., एम. एड.,पी. एच डी.(हिंदी साहित्य),


संगीत भूषण, संगीत विशारद(सितार)


पद -


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असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी विभाग)


इम्पल्स डिग्री कॉलेज दौसा।


साहित्यक पटल-


 


राष्ट्रीय साहित्यिक परिवर्तन मंच-महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष


हिंदी साहित्य परिषद -सक्रिय कार्यकारिणी सदस्य


भारतीय शिक्षण मण्डल गुजरात-सक्रिय कार्यकारिणी सदस्य


अन्य मंचों पर सक्रिय सहभागिता


प्रकाशित रचनाएँ/कृति -


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● विविध समाचार पत्रों मैं प्रकाशित काव्य रचनाएँ


● साहित्य रश्मि"-पत्रिका मैं कविताओ का प्रकाशन


● "शब्द सारथी"-सामूहिक काव्य संग्रह मैं काव्य रचनाएँ प्रकाशित


● "आचार्य महाप्रज्ञ पर आधारित वर्ल्ड रिकॉर्ड में समाहित काव्य रचना


● "हे भारतभूमि"सामूहिक काव्य मैं काव्य रचनायें प्रकाशित


● "रंग दे बसंती" साझा संग्रह


● "कोरोना वायरस" साझा काव्य संग्रह


● "स्त्री संदर्श" साझा कहानी संग्रह


● "रिकॉर्ड नम्बर130 कहानी संग्रह"में प्रकाशित कहानी


 'बहिष्कार'


● अग्रसर ई पत्रिका में प्रकाशित रचनाएँ


● स्टोरी मिरर वेबसाइट पर कहानी एवं कविताओं का प्रकाशन


● काव्य रंगोली वेबसाइट पर रचनाओं का प्रकाशन


● विविध राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समूहों में रचनाओं का 


प्रकाशन


● सरदार बल्लभ भाई पटेल पर आधारित केंद्रीय निदेशालय द्वारा प्रस्तावित पुस्तक में प्रकाशनाधीन आलेख


भारत के बिस्मार्क:सरदारबल्लभ भाई पटेल


● कवि रामधारी सिंह दिनकर पर आधारित पुस्तक में प्रकाशित आलेख कुरुक्षेत्र:पराधीन भारत के आक्रोश का काव्य


● प्रेमचंद के साहित्य में नारी पुस्तक में प्रकाशित आलेख


● आदरणीय प्रधामंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी के जीवन पर प्रकाशनाधीन पुस्तक में सहभागिता।


● लोकसाहित्य पर आधारित पुस्तक में सहभागिता


● दर्शन रश्मि ई पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन  


●साहित्य रश्मि ई पत्रिका में रचनाओं का निरन्तर प्रकाशन


● 'प्रेमचन्द के नारी पात्र' पुस्तक में सहभागिता


   ■ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , दौसा (राज.)


      विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित एवं       


हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद (दिसंबर 2010) "वैश्वीकरण का दावा और हिंदी की दशा एवं दिशा" विषय मे शोधार्थी के रूप मे सहभागिता। 


   ■ कोटा विश्वविद्यालय ,कोटा की पीएच.डी.(हिन्दी)उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध प्रबन्ध " व्यंगयकार डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व"।


प्राप्त सम्मान- 


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1)राष्ट्र भाषा शिक्षक सम्मान2011- 12


२) वृक्षारोपण हेतु विशेष प्रमाण पत्र एवं सम्मान


3)साहित्यिक गतिविधियों हेतु प्रशस्ति पत्र विद्यालय स्तर


4)माननीय जिला कलेक्टर द्वारा जिला स्तर पर शिक्षण 


    संस्थान मैं शत -प्रतिशत शिक्षण कार्य हेतु सम्मान पत्र 


    15 अगस्त 2012


5 ) विशाल लघुकथा सम्मेलन में प्राप्त सम्मान पत्र


6 ) साहित्य अँचल मंच पर अनेक बार काव्य पाठ हेतु प्राप्त सम्मान पत्र


7 )साहित्य लहर मंच पर कवि सम्मेलन में प्राप्त सम्मान पत्र


8 )साहित्यिक मण्डल मंच-8 पर साप्ताहिक प्रतियोगिता में अनेक बार प्रथम पुरष्कृत रचना का सम्मान पत्र


9 )राष्ट्रभाषा ब्राह्म मंच पर कविता पाठ हेतु प्राप्त सम्मान पत्र


10 ) मीन साहित्य हिंदी मंच पर प्राप्त सम्मान


        (1) फूलवती देवी सम्मान


         ( 2) मातृ दिवस विशेष सम्मान   


11 ) विविध साहित्यिक ज्ञान एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं में सहभागिता एवं प्राप्त सम्मान पत्र 


12 ) अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक वेबिनारों में सक्रिय सहभागिता


13 ) सामाजिक कार्यक्रमों व शैक्षिक कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागिता एवं निर्णायक समिति में निर्णायक की भूमिका सम्हालने का परम सौभाग्य एवं प्राप्त सम्मान


14 ) विद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर मंच संचालन एवं सांस्कृतिक तथा साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता का प्रमाण पत्र


15 ) साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर मंच-8 की साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ सृजन सम्मान


16 )अभिव्यक्ति ई पत्रिका के विशेष एवं मासिक अंकों में नियमित सहभागिता


17 )विविध ई पत्रिकाओं एवं मंचों पर काव्य लेखन, आलेख लेखन एवं काव्य पाठ में सहभागिता


अन्य ---


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■ स्वतन्त्र लेखन कार्य 


विधा--कहानी,कविता, नाटक, निबन्ध इत्यादि


■ नाटकों का सफल निर्देशन(विद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर)


 ■ नुक्कड़ नाटक, मंचीय नाटक


■ गायन, वादन में विशेष रुचि एवं योग्यता


■ लोकनृत्य एवं शास्त्रीय नृत्य में कुशलता


■ चित्रकला


■ विगत19 वर्षों से शैक्षिक गतिविधियों से जुड़ाव


■ 2012 में प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग सेंटर मैं बतौर हिंदी शिक्षिका दैनिक व्याख्यान देने का अनुभव ।


पता- जैसवाल कोठी के पीछे, पी. जी. कॉलेज के पास


         आगरा रोड, दौसा (राजस्थान) 303303


 


ई. मेल- nirmalsharma1818@gmail.com


 


वृद्धाश्रम


 जीवन के रंगमंच का 


आखिरी मंचन है वृद्धाश्रम 


जीवन काल का परिपक्व 


कालखंड है यह स्वशासन


क्या खोया ,क्या पाया, क्या था ?


जिसे मैं पूर्ण नहीं कर पाया


 एकाकी जीवन की चौखट पर


 मानसिक द्वंद्व का अंतर्द्वंद्व है 


गीता के ज्ञान का मिलता 


यहीं ज्ञान अवलंब है


 मानव जीवन के कष्ट से


 मिला मैं यहां जाना हर सत्य है 


विकल्पों का स्थान नहीं


 चलता यूँ ही जीवन है


 जीवन की पाठशाला का


यह भी मानो एक लंबा प्रसंग 


क्यों ??मैं प्रतीक्षारत हूं 


प्रतिध्वनियों के लिए


 नियम विज्ञान का 


जीवन में प्रतिध्वनित होता नहीं 


पानी के बुलबुले सी स्मृतियां 


बनकर मानो मिटती चली


 यादों की स्याही भी अब


 बह कर स्वतंत्र होने लगी


 चुभन भरी मन में


 कसक सी रहती है क्षण


  उसे जीवन का आधार बना


 उत्साह मैं स्वयं में भर लूं 


जीवन की आखरी शाम को


 जी भर कर जिंदादिली से जी लूं 


बढूं आगे अविरल 


क्यों देखूं पीछे मुड़कर 


खुशी पर किसी का पंजीकरण नहीं 


क्यों शुल्क भरुँ रोकर 


वृद्धाश्रम को कर्म क्षेत्र बनाकर


 क्यों ना चंद यादें सजा लूं 


अंतिम सफर में बढ़ते हुए 


स्वयं को प्रकाशमान सितारा बना लूं


 डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


 


भूख बड़ी या कोरोना


कोरोना महामारी जब आई


 संग अनेक समस्या लाई


लॉक डाउन का पडा है साया


 हर मन है थोड़ा घबराया


सूनी गलियाँ सूनी सड़कें


 हवा से केवल खिड़कियाँ ही खड़कें


डगमग होते जीवन में अब 


खड़ी है विपदा बाहें खोले


छूटा काम, दाम भी बीते, 


रैना निकले अखियाँ मीचे


कैसे पालन करूँ कुटुम्ब का


 चिंता की रेखा यूँ बोले


सिमटी आंतें पेट भी सुकड़ा


 कहाँ से लाऊँ रोटी का टुकड़ा


कोरोना की महामारी ने 


सुख और चैन सभी कुछ छीना


विकल हुआ मन तन है जर्जर


 नैनों में अश्रुओं की धारा


कोरोना ने जीवन छीना 


कैसे कहूँ में मन की पीड़ा


भूख की हूक उठे जब तन में 


मन का भी हर कोना फीका


कैसे बैठूँ घर में भगवान 


मुझे सताती चिंता हर शाम


भूख से बेकल बच्चों के चेहरे


 कदम मेरे घर में कैसे ठहरें


भूख बड़ी है कोरोना से 


करूँ काम निकलूँ में घर से


करूँ जतन अपने पुरुषार्थ से 


प्राण न निकले भूख से उनके


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


" चंदन री महक"


बात वही सुणाऊँ पुराणी


चित्तौड़ रे महलां री कहाणी


पन्ना धाय री ममता झळकै


इत उत षड़यंत्र खड़ा पनपै


स्वामिभक्त वा बड़ी बलिदानी


राजपूती इतिहास री अमर कहाणी


चन्दन री माँ धाय उदय री


ममता री मूरत वा प्रलय सी


बनवीर क्रूर बड़ा आततायी


चित्तोड़ री जनता बड़ी दुखयाई


हाय!री विधना काँई लिख्यो या


हिवड़ो फट ज्या काज हुयो वा


काल रूप बण हाथ खड्ग लै 


बनवीर आयो महलां री गत में


तब राजवंश री आण बचावण


लियो कठोर निर्णय छत्राणी


आपणो पूत सजायौ मनभर


करयो दुलार प्यार जी भरकर


करयो काळजो आपणो पत्थर


उदय सिंह रे पलंग पर सुलायो


मीठी लोरी वाने गाके सुणायो


अट्टहास करतो वा आयो


पलंग रे ऊपर खड्ग चलायो


बिखरी धार खून री उस क्षण


उठ्यो जबर तूफान हिय में


चीत्कार सो गूँजयो नभ में


फिर भी सधी खड़ी छत्राणी


अँसुवन रोक सही मनमाणी


हुई न जग में ऐसी नारी


जिससे विधना भी थी हारी


धन्य धन्य!! वा वीरांगना नारी


ऐसी हिम्मत किसी में न री


बिखरी गन्ध मधुर सी प्रातः


चन्दन रे बलिदान री गाथा


 


 


डॉ0निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


 


किसान आंदोलन


 धरतीपुत्र किसान कर रहा ,


आंदोलन महान


सदियों से बंजर भूमि को,


 देता आया उर्वरता का दान


अपने श्रम के बल पर करता ,


वह सदैव अभिमान 


अन्नदान हेतु अन्न उगाता,


 साथी उसके खेत खलिहान


प्राचीन काल से ही खेती का, 


मिला उसे वरदान


विकसित होती सभ्यता का 


,वह नवीन प्रतिमान


हल की नोक से धरती को वह, 


देता अकूत सम्मान


वसुंधरा को मान मातु वह, 


करता उसे प्रणाम


जय जवान में नारा जुड़कर, 


जब बना जय किसान


अनाज क्रांति का सैनिक बनकर, 


तब किया नवीन उन्मान


अपने उद्यम और ज्ञान से 


सीखा नवाचार वह किसान


तकनीक और उन्नति का उसने 


पाया तब नवज्ञान


श्वेतक्रान्ति का हिस्सा बनकर 


अपनाया हर कृषि अनुसंधान


सोने सा बरसा अनाज तब


 मिला उसेनया वरदान


वर्तमान में विविध प्रयोग कर, 


बना वह और भी बुद्धिमान


मोबाइल, इंटरनेट की सुविधा से करता, 


नव प्रयोग वह जान


संकर किस्मों औऱ बीजों से


 आज नहीं वह अनजान


सरकारी योजनाओं का लाभ उठाता, 


साक्षर उन्नत किसान


जय जवान और जय किसान में मिलकर


 बना अब जय विज्ञान


नव आंदोलन प्रारम्भ हुआ, 


उन्नति करता नित हिंदुस्तान


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


वीर महाराणा प्रताप


राजस्थान री माटी पर जब राणा रो जनम हुयौ


जेठ शुक्ल री तृतीया पर कुम्भलगढ़ में सूरज चमक्यो


राजस्थान री आन रो रखवालो वा अजब बड़ो सैनानी


जीवन भर स्वाभिमान री खातर देतो रह्यो कुर्बानी


सिसोदिया वंश री धरोहर वा वीर बड़ो सम्मानी


कुम्भलगढ़ रे किला में जन्मयो जिसरी मैं लिखूँ कहानी


माता जिसरी जीतकंवर सा पिता हैं वीर उदयसिंह


त्याग, शौर्य, वीरता बलिदान में सदा आगे रह्यो वा सिंह


पूत रा पाँव पालना दीखे या कहावत चरितार्थ कर माना


बालकपन सूं सब गुण दीखै व्यक्तित्व महान था राणा


राजस्थान री आन, बान और शान रो वा रखवालो


उसरे आगे जो कोई आयौ मुँह की खायौ भाग्यो


हल्दीघाटी रा युद्ध री धरती पै प्रसिद्ध कहानी


मुगलां री सेना रा छक्का छुडायो वा तलवार रो धनी


चेतक री जब करै सवारी रण में तलवार चलावै


बैरी री सेना डर भागै केसरिया बाना ही लहरावै


दानी भामाशाह ने भी आपणो कर्तव्य निभायौ


भीलां रे सहयोग सूं राणा नै अकबर कूं झुकायौ


वा वीर शिरोमणि देशभक्त नें झुक-झुक शीश नवाऊँ


या वीरां री धरती पर ऐसो व्यक्तित्व कभी न पाऊँ


वा स्वाभिमान रो सूरज वा तो वीर बड़ौ बलिदानी


माटी रो करज चुकाने कूं जीवन री दी कुर्बानी


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


 


 


आत्महत्या!


बड़ा ही जाँबाज़


ईमानदार पुलिस अफसर था वो


होकर राजनीति का शिकार


चढ़ गया फांसी के फंदे पर


दे दी अपनी जान


चंद स्वार्थ के मारों ने 


किया मजबूर उसे


कर न पाया होगा वो वीर


अपने ज़मीर से कोई समझौता


जिसने खाई थी कसम 


कर्तव्य पालन की


कैसे करता वह कोई धोखा


दे ही दी जान-----


कर ली आत्महत्या!


कानून का ज्ञाता था वो


कर्तव्य पालन में मुस्तैद


पर---------न जाने


किस मानसिक तनाव की 


नागिन सी रस्सी ने ढकेल दिया उसे


अकाल मौत के साये में


सिंघम कहकर पुकारा जाता था उसे


वह निडर


सबका रखवाला


शांति और अमन का मसीहा


नेकदिल वह इंसान


उसकी हालत देख 


आज सभी हैरान


यक्ष प्रश्न उठा ,खड़ा हुआ---


क्या ईमानदारी की यही सज़ा है?


क्या फर्ज़ का तराजू करता फ़ना है?


क्या ड्यूटी निभाना


भ्रष्टाचारी समाज में मना है?


उसके सहकर्मी हो या आवाम


बेचैन हैं सभी दिल को नहीं आराम


आँसू सूखते ही नहीं हैं आँखों से


शोक में डूबा है शहर


ये कैसी आज चली यहाँ लहर


लोग जमा है यहाँ


 कोरोना भी अभी है बेअसर


उस जाँबाज़ को नम आँखों से


श्रद्धांजलि देते


प्रश्न उनकी आँखों में भी है यथावत


भाइयो!


इस मसले को सुलझाएगी अब


 कौनसी अदालत?


जिसने अन्याय को मिटाने में


अपराध का शूल निकालने में


लगा दी जान 


अपनी हथेली पर रखकर


जो था श्रेष्ठ दस की सूची में ससम्मान


जिसके नाम से ही अपराधी


छोड़ अपराध भाग जाते थे डरकर


आज उसी का जीवन


उस पर ही बोझ बना क्यों?


कर्तव्य पथ पर उसके पैरों को


किसने तोड़ा और क्यों?


क्या थी वजह इस वज्रपात की


छोड़नी पड़ी दुनिया उसे--


सज़ा मिली आख़िर किस अपराध की?


आज खबर है अखबारों में--


-------------------की आत्महत्या!


प्रश्न फिर?----


ये आत्महत्या थी या हुई उसकी हत्या??


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


प्रिया सिंह चारण के उदयपुर

शीर्षक:- "जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी"


 


आओ मिलकर मनाए 15 अगस्त ,


कहते है, गर्व से जिसे स्वतंत्रता दिवस ।


 


तिरंगे को नील गगन में लहराए ,


भारत के हर बच्चे के हाथो में तिरंगा थमाए ।


 


तीन रंगों से मिलकर जो बना है ,


अशोक चक्र जिसमे ,विकासशील विद्यमान है।


 


रंग इसके निराले जग से प्यारे ,


कफ़न तिरंगे सा सुशोभित वाह वाह रे,


 


बिना खड़क ,बिना ढाल किया था, चरखे ने कमाल,


पर इंक़लाब के नारे भी ,हिंदुस्तान से गूँजे थे,


भारत माँ के ,हज़ारो लाल ,फाँसी के फन्दों पर झूले थे।


क्या ? फिर इतनी सस्ती थी आज़ादी ,


जो हम इन वीरो के बलिदान को, 


स्वतंत्रता दिवस के बाद अनदेखा कर यूँ भूले थे ।


 


खेल नही था आज़ादी ,


शब्दों का केवल मेल नही था ,


इंक़लाब और अहिंसा का बेजोड़ द्वन्द था आज़ादी ।


 


जब सुहागन के लाल जोड़े का रंग सफेद हुआ था ।


सिन्दूर माँग का आँसू बन आँख से रुक्सत हुआ था।


जब अपनी माँ का आँचल छोड़, भारत माँ पर ,


लाल केसरी सा ,न्योछावर हुआ था।


 


 


फिर एक नई क्रान्ति आएगी, पुलिस अहिंसा अपनाएगी,


डॉक्टर की टीम इंक़लाब से कोरोना को भगाएगी,


कोरोना से आज़ादी दिलाएगी,


वर्दी रंग जो सफेद हुआ ,


ये ऐतिहासिक 15 अगस्त उन्हें भी सलामी दे जाएगी।


 


जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी । जय हिंद


 


प्रिया चारण ,उदयपुर ,राजस्थान


8302854423


निशा अतुल्य

दीप जले


20.10.2020


 


 


दो नैनो में दीप जले हैं,


मन के भाव कहाँ चले हैं।


 


ढूंढ रहे हैं सभी सितारे,


मन को ये बात खले हैं।


 


आ जाओ तुम पास हमारे 


हमको नही अब चैन मिलें हैं ।


 


सोच सोच घबराए मनवा


बोलो साजन कहाँ चले हैं ।


 


प्रेम हमारा रात की रानी


देखो तो हर रात खिले है ।


 


साँझ सकारे तुम्हें पुकारे


मन के मीत कहाँ मिलें है ।


 


साजन अब मुस्काए बेला


गजरा तुमरे संग सजे हैं ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


तरक्की में वतन की नाम अपना जोड़ना होगा 


नयी नस्लों की खातिर हमको भी कुछ सोचना होगा 


 


जहां की रहगुज़र में हम कहीं पीछे न रह जायें 


पुरानी बंदिशों को आगे बढ़ कर तोड़ना होगा


 


किसी की रहनुमाई के भरोसे ज़िन्दगी खो दी


हमें ख़ुद रास्ता मंज़िल का अपनी खोजना होगा


 


हमें कुछ अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी याद रखनी हैं


वतन में हो कहीं गड़बड़ तो हमको बोलना होगा


 


रखेगी याद दुनिया तब हमें अपनी मिसालों में


जहां की बेहतरी को कोई रस्ता खोलना होगा 


 


रहें *साग़र* हमेशा हम ज़माने की ज़ुबानों पर 


शगूफा इक नया हर रोज़ हमको छोड़ना होगा


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


20/10/2020


एस के कपूर "श्री हंस"

*रचना शीर्षक।।*


*परदा गिरने के बाद भी याद रहे*


*किरदार सारे संसार को।।*


 


क्रोध और आँधी होते हैं


दोनों एक सामान।


दोनों ही जैसे चलते हैं


मानो तीर कमान।।


एक बात तो समान दोनों


में ही होती है ।


क्रोध, आँधी दोंनों ही करते


हैं इक बड़ा नुकसान।।


 


जैसे जंग खा जाता है खुद


लोहे को ही।


गुस्सा भी खा जाता है क्रोध


के रोये को ही।।


क्रोध तो वह आग धुंआ जाता


आदमी के भीतर को।


होशो हवास नहीं रहता क्रोध


के खोये को ही।।


 


संघर्ष आदमी को कभी


थकाता नहीं है।


डर आदमी को कभी मजबूत


बनाता नहीं है।।


चुनौतियों से घबरा कर बैठना


ठीक नहीं होता।


खुद पर अविश्वास कभी भी


जिताता नहीं है।।


 


कुदरत ने तो आनंद ही बनाया


दुःख हमारी खोज है।


प्रभु के बंदे एक जैसे छोटा बड़ा


तो हमारी सोच है।।


हम खुद खोद देते अपनी खाई


समझ के फेर में।


खो देते बने बनाये प्यार को यही


तो हमारी लोच है।।


 


जिन्दगी में निभायो बहुत शिद्दत


से अपने किरदार को।


कि जीत मिल कर ही रहे उसके


असली हकदार को।।


मत हारना हिम्मत जब कभी


मुश्किल हो पास तुम्हारे।


कि परदा गिरने के बाद भी याद


रहे सारे संसार को।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                      8218685464


एस के कपूर "श्री हंस"

*विषय।। शुभ नवरात्रि महिमा।।*


*शीर्षक।।*


*हे माँ दुर्गा पापनाशनी, तेरा वंदन*


*बारम्बार है।।*


 


सुबह शाम की आरती और


माता का जयकारा।


सप्ताह का हर दिन बन गया


शक्ति का भंडारा।।


केशर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ


तेरा श्रृंगार सब करें।


सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी


बन भक्तों का सहारा।।


 


तेरे नौं रूपों में समायी शक्ति


बहुत असीम है।


तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति


बहुत प्रवीण है।।


हे वरदायनी पपनाशनी चंडी


रूपा कल्याणी तू।


लेकर तेरे नाम मात्र से हो जाता


बहुत तल्लीन है।।


 


नौं दिन की नवरात्रि मानो कि


ऊर्जा का संचार है।


भक्ति में लीन तेरे भजनों की


भरमार है।।


कलश कसोरा जौ और पानी


आस्था के प्रतीक।


हे जगत पालिनी माँ दुर्गा तेरा


वंदन बारम्बार है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।।। 9897071046


                      8218685464


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*मेरे दिल का टुकड़ा*


 


मेरे दिल के टुकड़े को ठुकरा न देना,


गले से लगा कर इसे चूम लेना ।


पाला इसे है बड़े प्रेम से मैं,


सिखाया इसे है हुनर ध्यान से मैं ।


बहुत है मुलायम जिगर का ये टुकड़ा,


ऐ नादान, इसको नहीं तोड़ देना।


ये प्याला है भावुक बहुत मुस्कराता,


गले से सभी को सहज है लगाता।


न छल है कपट से नहीं कोई मतलब,


ईमान-धर्मों से है सिर्फ मतलब।


है मानव का पुतला इसे प्यार देना,


मेरे दिल के टुकड़े को ठुकरा न देना।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

किसी से,बैर मत कीजिये


 


क्यों आया है,इस संसार में


कौन बतायेगा,इस सच को


इस रहस्य को,आज तक


नहीं समझ पाया,कोई भी


रोजी रोटी और सम्मान


सबको प्रभु ने ही,दिया है


पता नही, इंसान क्यों


अपना,नाम बताता है


सब कुछ,रब पर छोड़ दें


किसी से,बैर मत कीजिये


होनी तो होकर ही रहेगा


कोई बदल नहीं पाया है


जिन प्रश्नों का हल नहीं


उसमे ब्यर्थ,क्यों उलझ रहा है


हुआ न तेरा काम तो भी


गम न कर, तू इंसान है


इसमें भी,कुछ भला है


कहते हैं,भक्त वत्सल भगवान


निश्चित तो,केवल मृत्यु है


किसी से, बैर मत कीजिये


ऊपर से तो,दोस्ती


भीतर है, विष के ताज


अगर छीना,किसी गैर का हक


तो समय,ना करे माफ


जिसकी,जितनी है पात्रता


उतना ही,धन सम्मान


बैठा तो है,सबके हृदय में


जग का पालनहार


जो निर्णय है,समय का


उसको,हंसकर तू मान


ये जिंदगी है,दिन चार का


किसी से, बैर मत कीजिये


नूतन लाल साहू


कालिका प्रसाद सेमवाल

*जय जय माँ कूष्माण्डा*


★◆★◆★◆★◆★◆


जय जय माँ कूष्माण्डा


अष्ट भुजा धारी तुम हो,


चक्र, बाण और धनु धारी हो


सब पर तुम कृपा बरसाती हो।


 


रक्त बीजों का नाश करो माँ


जो मानवता का उपहास करे,


भक्तों की तुम रक्षक हो माँ


 सबको सुमति दे दो माँ।


 


रुप तुम्हारा अति मन भावन


शीतल सात्विक सिन्धु सुधा सा,


सिहं पर सवार रहती हो


भक्तों का तुम कल्याण करती हो।


 


कूष्माण्डा माता पूजा तुम्हारी करुं


धूप दीप और भोग लगाऊँ,


चौथे नवरात्र का रुप तुम्हारा


हर घर में तुम पूजे जाते हो।


★◆★◆★◆★◆★◆


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4


बाबा नंद सकल ब्रजबासी।


होइ इकत्रित सबहिं उलासी।।


आपसु मा मिलि करैं बिचारा।


भवा रहा जे अत्याचारा।।


     ब्रज के महाबनय के अंदर।


     इक-इक तहँ उत्पात भयंकर।।


गोपी एक रहा उपनंदा।


जरठ-अनुभवी मीतइ नंदा।।


    कह बलराम-किसुन सभ लइका।


    खेलैं-कूदें नहिं डरि-डरि का ।।


यहि कारन बन तजि सभ चलऊ।


कउनउ अउर जगह सभ रहऊ।।


      सुधि सभ करउ पूतना-करनी।


       उलटि गयी लढ़ीया यहि धरनी।।


अवा बवंडर धारी दइता।


उड़ा गगन मा किसुनहिं सहिता।।


     पुनि यमलार्जुन तरु महँ फँसई।


     सिसू किसुन आपुनो कन्हई।।


बड़-बड़ पून्य अहहि कुल-देवा।


किसुनहिं बचा असीषहिं लेवा।।


     करउ न देर चलउ बृंदाबन।


      बछरू-गाइ समेतहिं बन-ठन।।


हरा-भरा बन बृंदाबनयी।


पर्बत-घास-बनस्पति उँहयी।।


      बछरू-गाइ सकल पसु हमरे।


      चरि-चरि घास उछरिहैं सगरे।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*चतुर्थ चरण*(श्रीरामचरितबखान)-13


सुनतै श्रुतन्ह लखन क्रोधातुर।


भवा तुरत सुग्रीव भयातुर।।


     कहा पवन-सुत तुम्ह लइ तारा।


     समुझावउ लखनहिं बहु बारा।।


लछिमन-चरन बंदि हनुमाना।


तारा सँग प्रभु-चरित बखाना।।


     होइ बिनम्र लखन गृह लाए।


    धोइ लखन-पद पलँग बिठाए।।


सीष नवा सुग्रिव पद गहही।


तुरत लखन तेहिं हृदय लगवही।।


     ऋषि नहिं जग मा कोऊ असही।


     जिनहिं बासना-नाग न डसही।।


सुनि सुग्रीव-बचन अस लछिमन।


बहु समुझाए कपिसहिं वहि छन।।


     बहु कपि अरु अंगद लइ साथहिं।


     गवा कपीस जहाँ रघुनाथहिं।।


प्रभु-पद सिर नवाइ कर जोरी।


छमहु नाथ कह ई त्रुटि मोरी।।


    मैं बानर मूरख बड़ कामी।


     हो रति-रत भूला निज स्वामी।।


नारी-नयन-बान सभ बेधहिं।


ऋषी-मुनी-जोगिन्ह-हिय सेंधहिं।।


     सभ जन क्रोध-फाँस महँ फँसहीं।


     माया-आहिनि सबहिं कहँ डसहीं।।


नहिं हो बिनू कृपा छुटकारा।


मैं बड़ अधम,करहु उपकारा।।


दोहा-सुनि अस बचन कपीस कै, राम कहे मुसकाइ।


         करहु जतन कछु कपि-पती,सिय-सनेस मिलि जाइ।।


                     डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ0 निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

"नवरात्रि"


नवरात्रि का त्योहार, लाया खुशियाँ अपार।


मन झूमे बार-बार, करे वन्दना श्रृंगार।


नौ देवियों का आगमन, धरा करे सुस्वागतम।


 


फैला चहुँदिश उल्लास, प्रकृति करती हुलास।


लाओ पूजा की थाल, करो दीपक प्रकाश।


करती दुष्टों का नाश, घ्वनि करे आकाश।


 


जीवन करती सुगम, नहीं कोई पथ दुर्गम।


चलो आस्था के मार्ग, हो जीवन का उद्धार।


नवदुर्गा की साधना से,होता कष्टों से उद्धार।


 


बढ़े धन और धान्य, फैले शांति निज धाम।


सुख, शांति, समृद्धि, लाये देवियों के पाँव।


माता दुर्गे सँवारे ,मेरे बिगड़े सब काम।


 


मद, मोह, लोभ, काम ,साधना से कट जायें।


इन्द्रियाँ हो वश में, भवसागर से तर जायें।


मील आशीष जीवन का, सर्व कष्ट मिट जायें।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*माँ श्री से कर सदा याचना*


 


सर्व मंगला मंगलकारी।


शिवा स्वरूपिणि विद्याधारी।।


 


ज्ञान गगन गरिमा गिरि गिरिधर।


नारायणि नित नाथ नामवर।।


 


विश्वाधारय अनंत लोका।


लिखती सतत मधुर शिव श्लोका।।


 


विश्व पटल पर कामधेनु हो।


अमर अजन्मा परम रेणु हो।।


 


महाकार अति व्यापक वदना।


बोल रही माँ अति प्रिय वचना।।


 


सर सर सर सर चलत विवेकी।


करती रात-दिवस शुभ नेकी।।


 


हर हर हर हर गंगा यमुना।


माँ सरस्वती हंसा सुगना।।


 


क्रोध नहीं करती माता हैं।


विद्यादानी सुखदाता हैं।।


 


चम चम चम चम चमकत माता।


महा इत्र जिमि गमकत माता।।


 


है नौरात्र सदा माँ श्री का।


ले चरणामृत नित माँ श्री का।।


 


गाओ भजन लिखो दिन-राती।


नाम जपो माँ का दिन-राती।।


 


महा सरस्वति नव दुर्गा हैं।


समझ इन्हीं को प्रिय दुर्गा हैं।।


 


सहज भाव से मिलो इन्हीं से ।


लेना सुंदर काम इन्हीं से।।


 


माँ श्री से कर सदा याचना।


निष्कामी शिव रूप माँगना।।


 


माँ श्री का वंदन करो, रहो उन्हीं के धाम।


भजनानंदी रूप धर,करो दिव्य विश्राम।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*प्रकृति-प्रेम*


न फूलों का चमन उजड़े,शज़र उजड़े,न वन उजड़े।


न उजड़े आशियाँ पशु-पंछियों का-


हमें महफ़ूज़ रखना है ,जो बहता जल है नदियों का।।


          रहें महफ़ूज़ खुशबू से महकती वादियाँ अपनी,


          सुखी-समृद्ध खुशियों से चहकतीं घाटियाँ अपनी।


          रहें वो ग्लेशियर भी नित जो है जलस्रोत सदियों का


                                        हमें महफ़ूज़....


हवा जो प्राण रक्षक है,हमारी साँस में घुलती,


इशारे पे ही क़ुदरत के,सदा चारो तरफ बहती।


रखना इसे महफ़ूज़ उससे ,जो है मलबा गलियों का-


                               हमें महफ़ूज़....।।


        नहीं भाती छलावे-छद्म की भाषा इस कुदरत को,


       समझ आती महज़ इक प्यार की भाषा इस कुदरत को।


यही है ज्ञान का मख्तब,कल्पना-लोक कवियों का- 


                      हमें महफ़ूज़....।


नज़ारे सारे कुदरत के यहाँ संजीवनी जग की,


हिफ़ाज़त इनकी करने से हिफ़ाज़त होगी हम सबकी।


सदा कुदरत से होता है सुखी जीवन भी दुखियों का-


                   हमें महफ़ूज़....।।


     सितारे-चाँद-सूरज से रहे रौशन फ़लक प्रतिपल,


    न आये ज़लज़ला कोई,मिटाने ज़िन्दगी के पल।


  महज़ सपना यही रहता है,सूफ़ी-संत-मुनियों का-


                हमें महफ़ूज़....।।


जमीं का पेड़ जीवन है लता या पुष्प-वन-उपवन,


धरोहर हैं धरा की ये ,सभी पर्वत-चमन-गुलशन।


प्रकृति ही देवता समझो,प्रकृति ही देश परियों का-


               हमें महफ़ूज़...।।


   पहन गहना गुलों का ये ज़मीं महके तो बेहतर है,


  समय-सुर-ताल पे बादल यहाँ बरसे तो बेहतर है।


प्रदूषण मुक्त हो दुनिया,बने सुख-धाम छवियों का-


         हमें महफ़ूज़ रखना है....।।


               © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ. रामबली मिश्र

नारी!तू ही मातृ स्वरूपा


 


नारी!तू ही मातृ स्वरूपा।


अखिल लोकमय दिव्य अनूपा।।


 


तुम्हीं जगत की करत सर्जना।


भाग्यदायिनी लक्ष्मी रूपा।।


 


पालनकर्त्ता महा वैष्णवी।


क्षीरसागरे विष्णु स्वरूपा।।


 


तुम कैलाश पर्व पर्वत पर।


उमा शिवा शिवधरी स्वरूपा।।


 


गर्भधारिणी पयस्विनी प्रिय।


दुग्धदानमय प्रीति स्वरूपा।।


 


परम विरंचि ब्रह्म ब्रह्मामय ।


सहज सगुण साकार स्वरूपा।।


 


तेरी अनुपस्थिति अति खलती।


हर्ष प्रदायिनि प्रेम स्वरूपा।।


 


पत्नी बहन बेटियाँ सब तुम।


सदा दमकती रत्न स्वरुपा।।


 


घर की शोभा परम लुभानी।


गृहिणी सकल क्षेत्र अनुरूपा।।


 


व्रत त्योहारों शुभ कार्यों में।


पूर्ण कार्य पूरक शुभ रूपा।।


 


बिना तुम्हारे अंधकार जग।


तुम सद्भाव प्रकाश स्वरुपा।।


 


सभी मंच पर तेरा मंचन ।


तुम्हीं काव्य रस पाठ स्वरुपा।।


 


रचनाकार परम मधु सलिला।


महा काव्यमय देवि स्वरुपा।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*स्वागतम*


 


आप का आगमन आप का आगमन।


आप का स्वागतम आप का स्वागतम।।


 


आप का है हॄदय से सदा स्वगतम।


आप के आगमन का सदा स्वगतम।।


 


ये हवाएँ फिजायें हैं करती नमन।


आप का स्वगतम आप को नित नमन।।


 


वन्दना गा रही गीत स्वागत का है।


कर रही स्वगतम स्वगतम स्वगतम।।


 


आप आये तो धरती भी खिल सी उठी।


कर रही प्रेम से स्वगतम स्वगतम।।


 


ये पड़े सूखे वृक्षों की मायूसियों-


में तरावट का मंजर दिखा आज है।।


 


सारा माहौल सुंदर सुहाना हुआ।


ये गगन झाँकता कर रहा स्वगतम।।


 


सारे पंछी भी आये मिलन के लिये।


चहचहाते हुए कर रहे स्वगतम।।


 


आप का आना कितनी मनोरम छटा।


सारा पर्यावरण कर रहा स्वगतम।।


 


मंच पर मेरे उर के रहें आप बस।


कर रहा मन सुमन स्वगतम स्वगतम।।


 


बस यहीं का बनो बस रहो आँगना।


यही अंतिम इच्छा हृदय कामना।।


 


सिर्फ तुझको निहारूँ नहीं और कुछ।


कर लो स्वीकार प्यारे मेरी याचना।।


 


फूल की बगिया तेरे लिये है सजी।


राह में पुष्प वर्षा से है स्वगतम।।


 


बाँह में बाँह डाले चलेंगे सदा।


आप के आगमन का सदा स्वगतम।।


 


झोली भर दूँगा मुस्कान से आप का।


स्वगतम स्वगतम स्वगतम स्वगतम।।


 


जो कहेंगे वही मैं करूँगा सदा।


स्वप्न में भी नहीं सोचना है जुदा।।


 


आप को देखकर जिंदगी खुशनुमा।


आप का स्वगतम नित्य नव स्वगतम।।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*मुझको बुला रही हो*


*******************


आज सपन एक 


मैंने देखा,


तुम आ रही हो


नूपुर बजा रही हो


अंचल सजा रही हो


कोई गीत गा रही हो


मुझको बुला रही हो


कर कोमल हिला रही हो


भाव उर में जता रही हो


प्रणय कहानी बता रही हो।


 


वायु पुरवा झकोरती


है पपीहरी भी बोलती


कली घूंघट को खोलती


रस माती है डोलती


भौंरे रंग-रंग आ रहे


मंद बांसुरी बजा रहे


तुम खड़ी हो पास में


मंद-मंद हास में


सुगन्ध भरी सांस में।


 


थिरक रही लास में


जैसे राधा कृष्ण रास में


गोपियों के संग में


नाच रहे हैं वृंदावन में


जैसे कृष्ण चले गए थे


गोपियों को छोड़कर


मुझसे मुंह मोड़ कर


कह कर नमस्ते


मन्द-मन्द हंसते हंसते।।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सुनीता असीम

अंधेरा भी मुझे अब तो नया रस्ता दिखाता है।


महर मुझपर खुदा की है सभी बढ़िया दिखाता है।


*******


अगर है आदमी सच्चा रखे ईमान की। दौलत।


उसे भगवान बनकर जोत फिर दुनिया दिखाता है।


*******


यही दस्तूर दुनिया का हुआ है आजकल देखो।


करे जो काम शैतानी उसे ज्ञ अच्छा दिखाता है।


*******


जिसे विश्वास है रब पर बनें सब काम बिगड़े भी।


बिगड़ते भाग्य को उसके खुदा बनता दिखाता है।


*******


सभी हो बंद रस्ते भी नहीं मंजिल दिखाई दे।


खुदा उसको झरोखा इक नया खुलता दिखाता है।


*******


सुनीता असीम


१९/१०/२०२०


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

आदि शक्ति को भजो निरन्तर


 


हे आदि शक्ति !हे जग जननी।


स्त्री वाचक, हे प्रिय शव्द धनी।।


 


तुम महा समंदर ज्ञान अगाधा।


सर्व पंथगामिनि मनचाहा।।


 


त्रिपुरवासिनी सर्व मोहिनी।


महा मंत्रमय विघ्न नाशिनी।।


 


कोमल और कठोर नियंता।


सकल स्वचालित प्रभु अभियंता।।


 


नारायणि अति व्यष्टि स्वरूपिणि।


परम विराट सूक्ष्म शिव भूपिणि।।


 


दिव्य ललाट ज्ञानमय सागर।


हिम विशाल शांत प्रिय आखर।।


 


नियम नियामक नियामक नियमित नित्या।


शुभ सन्देश शुभ्र सत स्तुत्या।।


 


आदि शक्ति को भजो निरन्तर।


इनसे बढ़कर कुछ नहिं सुंदर।।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


डॉ. हरि नाथ मिश्र

*वाणी*(दोहे)


वाणी से व्यक्तित्व की,होती है पहचान।


मीठी वाणी अमिय सम,कड़वी सर-संधान।।


 


गरल-कलश हिय में धरे,दुर्जन बोले बोल।


मधु वाणी के शस्त्र से,हते प्राण अनमोल।।


 


ज्ञानी-सज्जन-संत के,सीधे-मीठे बोल।


दुष्ट-हठी-इर्ष्यालु जग,बोलें गोल-मटोल।।


 


वाणी से ही मनुज का,है जग पर अधिकार।


श्रेष्ठ सृजन यह सृष्टि का,है वाणी-उपकार।।


 


वाणी से ये वेद हैं,गीता-शबद-क़ुरान।


वाणी से यह बाइबिल,देती सबको ज्ञान।।


 


वाणी ब्रह्म-स्वरूप है,संस्कृति का आधार।


विद्या देवी मातु को,ज्ञापित है आभार।।


 


मधुर वचन से सुख मिले,मिले सदा संतोष।


घटे सकल धन पर यही,जीवन-अक्षुण कोष।।


            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                9919446372


सुषमा दीक्षित शुक्ला

जयति जय माँ कात्यायनि,


जयति जय जय दुर्गमा ।


 


हे! मातु हम तो शिशु तुम्हारे ,


अब मेरा कल्याण कर माँ ।


 


दुनिया के जननी तू मैया,


तुझ पर अर्पण तन मन धन ।


 


तू माता है तू दाता है ,


तू ही जीवन और मरन ।


 


नजरें कभी न फेरो हे! माँ


इतनी सी फरियाद मेरी ।


 


भूल चूक सब क्षमा करो माँ


दुनिया हो आबाद मेरी ।


 


सारी दुनिया रूठ भी जाये,


तुम ना रूठो प्यारी माँ ।


 


सारी दुनिया अगर त्याग दे ,


नही त्यागती न्यारी माँ ।


 


तेरा धन है तेरा मन है,


तेरा ही ये तन मेरा ।


 


तेरा सबकुछ तुम्हें समर्पित ,


क्या लागे इसमें मेरा ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ला


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