नूतन लाल साहू

प्यार का तोहफा


 


बीते बाते सोचकर


मत बन कब्रिस्तान


बीते और भविष्य पर


नहीं दीजिये ध्यान


माता पिता गुरु और


प्रभु के चरणों से कर लो प्यार


प्यार का तोहफा अवश्य मिलेगा


साथ तुम्हारे सदा रहेगा


आशीर्वाद सुबहो शाम


झेल लिया जिस शख्स ने


सांसारिक पीड़ा का संघर्ष


एक दिन उसके सामने


नमन करेगा हर्ष


अनुशासित जीवन से कर लो प्यार


प्यार का तोहफा अवश्य मिलेगा


पता नहीं कब तक चले


मेरी और तेरी श्वास


धोखा दे दे किस समय


इसका क्या विश्वास


नहीं लगाओ किसी से


किसी तरह की आस


आत्मविश्वास और सत्कर्मों से कर लो प्यार


प्यार का तोहफा अवश्य मिलेगा


कलयुग में पैसा ही है खुदा


समय हमे समझाय


बिन पैसे विद्वान को भी


मिले न इक कप चाय


पर,कर्म भाग्य के सत्य से


खींचो बड़ी लकीर


गुरु मंत्र से कर लो प्यार


प्यार का तोहफा अवश्य मिलेगा


नूतन लाल साहू


दयानन्द त्रिपाठी दया

सम्पूर्ण जगत है तुझमें बसता 


मां तूं ही सबकी पालन हार है


तेरे हवन, दीप, नैवेद्य से


मां तरता सकल संसार है।


 


श्वेत तुम्हारी आभा माते


भाती सबको लगती पावन है


श्रीफल से लगता भोग तुम्हारा


हर कष्ट जगत का बृषभ वाहन है।


 


मां सबकी पूर्ण करे मनोरथ सारे


ध्यान धरे जो तेरा ऐसा प्रताप है


सुख-संतान, धन-वैभव से भर देती


महिमा अवर्णनीय हर लेती संताप है।



दयानन्द त्रिपाठी दया


महराजगंज, जनपदवार


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-18


 


देखु सभें मैं भवा सपंखा।


राम-कृपा मोंहि मिली असंखा।।


     पातक सुमिरि नाम प्रभु रामहिं।


     भव-सागर असीम तिर जावहिं।।


तुम्ह सभ प्रभु कै भगत अनूपा।


हिय महँ राखि राम कै रूपा।।


     सुमिरत खोजहु कछू उपाया।


     अवसि सुझा दइहैं रघुराया।।


अस गीधहि कह उड़ा पराई।


कहत बचन अस आस जगाई।।


      जामवंत कह होइ उदासा।


      मैं अब बृद्ध, तरुन-बल-नासा।।


एक बेरि मैं निज तरुनाई।


सुनहु तात निज ध्यान लगाई।।


     दूइ पहर महँ सात पकरमा।


     किए रहे हम राम सुकरमा।।


निज काया बढ़ाइ बामन कै।


बाँधि रहे जब बलि दुसमन कै।।


    अंगद कहा पार मैं जाऊँ।


     पर, संसय की लौटि न पाऊँ।।


जामवंत तब कह समुझाई।


तुम्ह सेनापति तुम्ह कस जाई।।


    सुनहु पवन-सुत तजि संतापा।


     जानउ भुज-बल अपुन प्रतापा।।


तुम्ह सागर बल-बुद्धि-बिबेका।


समरथ करनि करम बहु नेका।।


    मारुति-सुत तुम्ह मारुति नाईं।


    धाइ सकत तुम्ह यहि तरुनाईं।।


तोर जनम प्रभु-कारजु ताईं।


भयउ जगत,तुम्ह ई तन पाईं।।


    अस सुनि हनुमत गिरि आकारा।


    तुरत भए अति बृह्दाकारा ।।


कंचन बदन सुमेरु समाना।


तेजवान-महान हनुमाना।।


    कहे तुरत मैं नाघहुँ सागर।


    करउँ राम-रिपु-नीति उजागर।।


तुरत त्रिकुटि उखारि मैं लाऊँ।


रावन-कुल बिनास करि आऊँ।।


    सिंहनाद करि कह हनुमाना।


    करब काजु तुरतै भगवाना।।


जामवंत अब मोहिं सिखावउ।


कस हम करीं काजु बतलावउ।


     लंक जाइ खोजि सिय माता।


    आवहुँ तुरत लेइ सुधि ताता।।


सेष काजु प्रभु करिहैं खुदहीं।


लीला करिहैं मरकट सँगहीं।।


दोहा-राम बैद्य जग-रोग कै,जे मन अस बिस्वास।


        राम देहिं औषधि तिनहिं,करैं रोग सभ नास।।


        राम करैं मन अति बिमल,धो के दुरगुन-मैल।


        हरन करैं भव-पीर सभ,जौं इहँ दुक्ख भैल।।


प्रभु कै नाम सुमिरि हनुमंता।


कारजु करन सकल भगवंता।।


     आगे बढ़े सीय के खोजन।


     नाँघे सिंधु उग्र सत जोजन।।


            डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बारहवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-1


 


सुनहु परिच्छित कह सुकदेवा।


बन महँ लेवन हेतु कलेवा।।


    नटवर लाल नंद के छोरा।


   लइ सभ गोपहिं होतै भोरा।।


सिंगि बजावत बछरू झुंडहिं।


तजि ब्रज बनहीं चले तुरंतहिं।।


    सिंगी-बँसुरी-बेंतइ लइता।


    बछरू सहस छींक के सहिता।।


गोप-झुंड मग चलहिं उलासा।


उछरत-कूदत हियहिं हुलासा।।


     कोमल पुष्प-गुच्छ सजि-सवँरे।


     कनक-अभूषन पहिरे-पहिरे।।


मोर-पंख अरु गेरुहिं सजि-धजि।


घुँघची-मनी पहिनि सभ छजि-छजि।।


     चलें मनहिं-मन सभ इतराई।


     सँग बलदाऊ किसुन-कन्हाई।।


छींका-बेंत-बाँसुरी लइ के।


इक-दूजे कै फेंकि-लूटि कै।।


     छुपत-लुकत अरु भागत-धावत।


     इक-दूजे कहँ छूवत-गावत ।।


चलै बजाइ केहू तहँ बंसुरी।


कोइल-भ्रमर करत स्वर-लहरी।।


     लखि नभ उड़त खगइ परिछाईं।


      वइसे मगहिं कछुक जन धाईं।।


करहिं नकल कछु हंसहिं-चाली।


चलहिं कछुक मन मुदित निहाली।


     बगुल निकट बैठी कोउ-कोऊ।


     आँखिनि मूनि नकल करि सोऊ।।


लखत मयूरहिं बन महँ नाचत।


नाचै कोऊ तहँ जा गावत ।।


दोहा-करहिं कपी जस तरुन्ह चढ़ि, करैं वइसहीं गोप।


       मुहँ बनाइ उछरहिं-कुदहिं, प्रमुदित मन बिनु कोप।।


                           डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


सुनीता असीम

नशा शराब का सा है ख़ुमार भेजा है।


खिला खिला सा हुआ दिल करार भेजा है।


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जिसे गुरू था बताया हमें जमाने ने।


मगर असल में यहां इक लबार भेजा है।


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किसी भी रूप में नफ़रत हमें नहीं भातीं।


इसीलिए उन्हें फूलों का हार भेजा है।


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वो छा गया है मेरे अब हवास पर ऐसे।


कि रोक मन पे लगाने सवार भेजा है।


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ये चाहती है सुनीता कि ज़िंदगी जी लूँ।


इसीलिए ख़ुदा ने इक विचार भेजा है।


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सुनीता असीम


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

करो नाश खल ख़ुशियाँ भर दे


 


महागौरी दुर्गतिनाशिनी


नवदुर्गे जय कालविनाशिनि।


सकल पाप जग हर अवलम्बे,


हर मानस कल्मष जगदम्बे।


 


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दात्री,


सती रुद्राणी शिवा भवानी।


महातिमिर हर मातु शारदे,


भवसागर से हमें तार दे।  


 


देवासुर मानव नित पूज्या,


हिमकन्या जगजननी रम्या।


रोग शोक जग मोह मिटा दे,


भक्ति प्रेम स्वराष्ट्र जगा दे।


 


जगतारिणि अम्बे माँ गौरी,


ममता समता माँ कल्याणी।


कोरोना जग व्याधि मिटा दे,


विधिलेख चारु सृष्टि बचा दे। 


 


करुणामयि माता मातंगी,


महाकाल काली कपालिनी।


दीन धनी जग भेद मिटा दे,


जाति धर्म समरसता ला दे। 


 


हरिप्रिये पद्मासन लक्ष्मी,


आदिशक्ति नवधा भुवनेशी।


भूख प्यास हरो अन्नपूर्णे,


शोक नैन आतप सम्पूर्णे। 


 


महाशक्ति विप्लव भयाविनी,


दुष्कर्मी खल बन डरावनी।


लज्जे श्रद्धे चिन्ते मुग्धे,


नारी सबला निर्भय कर दे।


 


भुवनेश्वरि चामुण्डघातिनी,


धूम्र अरि रक्तबीज घातिनी।


भ्रमित देश द्रोही बहुतेरे,


करो नाश खल खुशियाँ भर दे।


 


भव्या प्रौढा विश्व मोहिनी,


कमला गंगा मातु रोहिणी।


हिंसा रत छल कपटी हर ले,


मुस्कान अधर जीवनरस भर दे।


 


मातु वैष्णवी जय ब्रह्माणी,


इन्द्राणी जय तारा रानी। 


परार्थ मन्त्र जन रव स्वतंत्र दे,


धीर वीर गंभीर तन्त्र दे।


 


जयन्ती मंगला कल्याणी,


त्रिपुरसुन्दरी राधा रानी।


खिली प्रकृति यश चारु सुरभि दे,


शस्यश्यामला वसुधा कर दे।


 


नवदुर्गे त्रिनेत्र त्रिलोकी,


सर्जन पालन हन्त्री जग की।


रख लाज तिरंगा मान वतन दे,


नव जोश होश बल सेना दे। 


 


स्वधा स्वाहा रिद्धि नारायणी,


क्षमा शिवा धात्री कात्यायनि।


शान्ति सुखद समभाव प्रगति दे,


विज्ञान शोध सुबुद्धि स्वस्ति दे।


 


देवी अष्टमी महा गौरी,


रिद्धि सिद्धि दात्री भयहारी।


जय विजया अनमोल कीर्ति दे,


चन्द्र प्रभा मृदुता मन भर दे।।


 


कवि✍️ डॉ.राम कुमार झा निकुंज


नई दिल्ली


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सुहानी शाम के साये


 


तुम्हारी याद जब आई तो बरबस याद हैं आए,


नज़ारे ज़िंदगी के संग सुहानी शाम के साये।।


 


वो सारे कुदरती मंज़र नदी-दरिया किनारों के-


दरख़्तों के नरम सायों तले,जो वक़्त बिताए।


नहीं भूले भी वह भूले मधुर कलरव परिंदों का-


जिसे सुनते ही तुम शरमा मेरी आगोश में आए।।


 


तेरी बाँकी अदाओं के मधुर अहसास जितने हैं,


तेरे संकेत नैनों के जो,मेरी यादों में पलते हैं।


तेरी गज-चाल जो,वो मधुर मुस्कान होठों की-


सनम कैसे बता दें वो अदा तो आज भी भाए।।


 


मिलन की उस घड़ी का, हसीं अहसास मधुरिम था,


ज़मीं भूली,गगन भूला,मग़र जज़्बात मधुरिम था।


ख़ुदा से आरजू सुन लो सनम बस है यही इतनी-


के नज़ारे वो सभी लेकर सुहानी शाम वो आए।।


      


      हर एक पल तुम्हारे साथ जो उस शाम बीते थे,


       हसीं लम्हे,हसीं घड़ियाँ ,जो वादे भी किए थे।।


       वो आज भी मेरे हृदय में घर बसाए हैं-


       मुझे रहते जिलाते हैं सुहानी शाम के साये।।


 


मुझे उम्मीद है तुम फिर मिलोगे ऐ सनम मेरे,


उसी अंदाज,उसी आवाज़ में तू रू-ब-रू होके।


वही दरिया,वही साहिल, वही साये दरख्तों के-


सभी की याद फिर तेरे मिलन की आस जगाए।।


             सुहानी शाम के साये।।


                       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


 


          अष्टावक्र गीता-17


 


निष्कलंक-अक्रिय-असंग,स्वयं-प्रकाशित आप।


शांति हेतु हो ध्यान रत,बस यह बंधन-पाप।।


 


काया नहीं,न जीव मैं, मेरा नहीं शरीर।


जीने की इच्छा रही,मम बंधन गंभीर।।


 


सिंधु-उर्मि सा यह जगत,मुझसे निर्मित,जान।


इसी सत्य को जान कर,भाग न दीन समान।।


 


बिरले जन ही जानते,आत्मा एक स्वरूप।


बिना किसी डर-भय कहें,हैं जगदीश अनूप।


 


तुमको क्या है त्यागना,किससे है संबंध।


शुद्ध रूप तुम अब करो,मात्र ब्रह्म-अनुबंध।।


 


दृश्यमान जग लहर सम,मैं हूँ उदधि समान।


त्याग-ग्रहण मत कर इसे,एकरूप रख ज्ञान।।


              ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


मदन मोहन शर्मा सजल

दौड़ी आती मात


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माता दुर्गति नाशिनी, सर्व करें कल्याण।


महागौरी स्वरूपिणी, दूर करे सब त्राण।।


दूर करे सब त्राण, सुख भंडार यह भरती।


करती जग उद्धार, आपदा सारी हरती।।


कहे सजल कविराय, दुर्दिन जब भी सताता।


दौड़ी आती छोड़, सिंह सिंहासन माता।।


★★★★★★★★★★★★


मदन मोहन शर्मा सजल


सम्राट

लो चलते हैं हम 


तुम्हारी दुनिया से दूर


तुम्हारे ख़यालो से दूर


तुम्हारी सोच से दूर


अपनी गठरी समेट कर


अपने यादों को समेट कर


अपने शब्दों को समेट कर


किस्से कहानियों को समेट कर


क्योंकि तुम ही कहते थे


अब हमें दूरी बना लेनी चाहिए


लो अब बनाते हैं दूरी


धरती और आसमान के बीच


प्यासे और प्यास के बीच


धोखा और विश्वास के बीच


ये दूरी ही हमारी मुकद्दर है


शायद कोई समझेगा


कभी हमारे इश्क़ को


हमारी चाहत को


तब तलक हम बहुत दूर


चले गए होंगें इस दुनिया से।


 


 


©️सम्राट की कविताएं


विनय साग़र जायसवाल

दानवों का हुआ पल में संहार है


माँ भवानी लिए आज तलवार है


 


तू ही है लक्ष्मी और काली भी तू


वैष्नों भी तो तेरा ही अवतार है 


 


माँगना जिसको जो भी है वो माँग ले 


*अम्बे माँ का सजा आज दरबार है*


 


लौ लगाते हैं तुझसे सभी शारदे 


पल में करती तू सबका जो उद्धार है


 


ज्ञान यश लाभ वैभव सभी तुझ से हैं


तुझसे ही पल्लवित सारा संसार है 


 


दीन दुखियों को तुझ पर यक़ीं है बहुत


तेरी ममता से मन इनका गुलज़ार है


 


मुझको तूफान साग़र डरायेगा क्या 


मेरी माता के हाथों में पतवार है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


एस के कपूर श्री हंस

आसमान ऊँचा नहीं,उड़ने का


तरीका आना चाहिए।।


 


सुखों पर लगा कर ताला


हम चाबी ढूंढते हैं।


खुशियां होती सामने और


हम चूकते हैं।।


टूटी कलम औरों से जलन


भाग्य लिख नहीं सकते।


कर्म और व्यवहार समय


पर ही भूलते हैं।।


 


अपने कर्मों के उत्तराधिकारी


हम स्वयं होते हैं।


यदि चाहें तो सीख कर हम


संस्कारी खुद ही होते हैं।।


दौलत नहीं जीने का सलीका


होता है ज्यादा जरूरी।


ज्ञानवान या विचार भिखारी


हम खुद ही होते हैं।।


 


ऊँचा नहींआसमान बस उड़ने


का तरीका आना चाहिये।


हर बात में छिपी बात समझने


का सलीका आना चाहिये।।


माना कि जन्म मरण हमारे


अपने हाथ में नही होता।


पर अपने किरदार को गढ़ने


का बजीफ़ा आना चाहिए।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।।


नूतन लाल साहू

जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


 


बीता बिन संघर्ष जो


वह जीवन ब्यर्थ है


दुश्मन ने तो दे दिया


जीवन में भुचाल


उलझ जाये जब गुत्थियां,तब


जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


कंचन कृति कामिनी


तीनो विष की खान


इससे कोई अब तक न बचा


चाहे बुढ़ा हो या जवान


भूत भविष्य भूलकर


जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


जिसे मौत का डर नहीं


वहीं छु सकता है आकाश


है बाकी की जिंदगी


चलती फिरती लाश


कदम कदम पर आयेगी मुश्किलें


जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


तू है सिर्फ निमित्त भर


काहे को तू इतराय


कर ले वहीं काम तू


जो रब तुझसे करवाय


पता नहीं प्रारब्ध का तुझको


जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


मां दुर्गा का यदि वर मिले


मिटे कष्ट भय क्लेश


नव जीवन का तू कर ले बंदे


फिर से श्री गणेश


काम खुदा का समझ कर


जिंदगी से दोस्ती कर लीजिए


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

विदाई, माता रानी की 


 


जाने को हैं माता रानी, 


                  कर लूॅ॑ मैं मनुहार।


हे माता हे दुर्गा देवी, 


                  आना फिर से द्वार।


 


सेवा अधिक नहीं कर पाया,


                था माता लाचार।


"कोरोना" से खस्ता हालत,


                 थी माता इस बार।


 


अज्ञानी हूॅ॑ सच कहता माॅ॑,


               हुई अगर कुछ भूल।


क्षमा मुझे कर देना माता,


              समझ चरण की धूल।


 


कैसे करूॅ॑ बिदाई माता,


                 तुम ही वो पतवार। 


जो नैया है पार लगाती, 


                 फॅ॑सी अगर मझधार।


 


समझो नहीं विदाई माता, 


                 ये केवल व्यवहार।


कृपा बनाए रखना मुझपर, 


                 करना ये उपकार।


 


मजबूरी में करूॅ॑ विदाई, 


                 ॲ॑खियन बहती धार।


माता आना फिर से द्वारे, 


                   विनय यही सौ बार।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ. रामबली मिश्र

नहीं छोड़ देना


 


नहीं छोड़ देना कभी दिल लगा कर,


नहीं मुँह घुमाना हॄदय में बसा कर।


 


कोमल कली को नहीं तोड़ देना,


इसे चूम लेना गले से लगा कर।


 


 नाजुक बहुत है नहीं चोट देना,


खुशियाँ विखेरो हॄदय में सजा कर।


 


इसे छोड़ कर मत तुम जाना कहीं ,


आँखों में रखना इसे तुम जिला कर।


 


तेरे लिये पुष्प बनने को आतुर,


रखना इसे केश में नित सजा कर।


 


भावुक हृदय को मसलना कभी मत,


दिल से लगाये सदा तुम चला कर।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


लोक विरुद्धं न करणीयम


 


करना परहित ध्यान।


कभी किसी का अहित न करना।।


 


सच्चरित्र को रक्ष।


चरितामृत बनकर तुम जीना।।


 


थोड़ा ही पर्याप्त।


नहीं अधिक की चोरी करना।।


 


इज्जत है अनमोल।


इज्ज़त की खातिर मर मिटना।।


 


मत करना बकवास।


अच्छी मीठी बातें कहना।।


 


मत रख दूषित भाव।


मन को पावन करते रहना।।


 


छोड़ो सकल विवाद।


शान्तचित्त हो चलते रहना।।


 


झंझट से हो मुक्त।


बना निराला विचरण करना।।


 


दिल को रखना स्वच्छ।


सदा धुलाई करते चलना।।


 


शुद्ध बुद्धि में प्राण।


नियमित हो कर भरते रहना।।


 


हक को कभी न मार।


न्याय पंथ पर चलते रहना।।


 


आँसू सबके पोंछ।


करुणाश्रय बन देते रहना। 


 


संस्था बनो पवित्र।


हर विधि सब की सेवा करना।।


 


मानव बनो महान।


सुंदर मन की रचना करना।।


 


बनो उच्च आदर्श।


सबको प्रेरित करते रहना।।


 


करना नहीं कुकर्म।


नव पीढ़ी को सुंदर गढ़नना।।


 


चोरी करना छोड़।


मेहनत से धन अर्जित करना।।


 


रचनाकर:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


 


अरमान


 


आये हैं हम पास तुम्हारे,


ले कर के अरमान बहुत से।


साथ खड़े आशा के तारे,


मन में हैं अधिमान बहुत से।


कहने को मन अति व्याकुल है,


हिम्मत नहीं जुटा पाता है।


अकुलाता है बार-बार यह,


पर कुछ बोल नहीं पाता है।


बार-बार इसको समझाता,


कुछ तो कह दो खुद अपने से,


पर यह बना मूक दर्शक सा,


टकराता प्रति पल सपने से ।


सपना इस का बहुत सुहाना,


सपने में सब कह जाता है।


नहीं जुटा पाता यह हिम्मत,


उलझा-उलझा रह जाता है।


अरमानों को ले कर मन में,


ढोता पहुँचा आज यहाँ तक।


आशाओं का जलता दीपक,


जलता रहे न जाने कब तक ?


प्रिये !समझ कर लाचारी को,


 इसको सुंदर सा वर देना।


अपने भावुक स्नेहिल मधुरिम,


भावों को इस में भर देना ।


मत तड़पाना इसे कभी भी,


आया है यह द्वार तुम्हारे ।


बन कर प्यारा मीत मनोरम,


सुन लो इसके दुखड़े सारे।


 


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

माँ गौरी तुम्हे वंदन करता हूँ


★★★★★★★★★★


हे माँ जगत कल्याणी


माँ गौरी तुम्हे वंदन करता हूँ,


तुम ब्रह्माणी, तुम रुद्राणी


पाप नाशनी नमो नमो।


 


आज अष्टमी को पूजा होती तुम्हारी


रुप तुम्हारा अति मन भावन,


भक्तों की तुम दुख हरती हो


क्षमा करो माँ अपराध हमारे।


 


हे जगदम्बे हे माँ अम्बे


 जन -जन पर कृपा बरसाओ माँ,


ज्योति जले जगमग माँ तेरी


आरती उतारुं माँ तेरी मैं।


 


हे माँ महागौरी तुम ही


भवसागर पार लगाती हो,


दुष्टों का तुमने संहार किया है


जगदेश्वरी हे माँ परमेश्वरी।


 


घर -घर पूजा हो रही तुम्हारी


धूप दीप और भोग लगाऊँ,


शीतल सात्विक सिन्धु सुधा सम


जय जय माँ गौरी तुम को वंदन करता हूँ।।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चतुर्थ चरण (श्रीरामचरितबखान)-17


 


तरुन-काल हम दुइनउ भाई।


गगन उड़े बहु रबि नियराई।


    सहि न सका रबि-तेज जटायू।


    भरि उड़ान तब चला परायू।।


मैं अभिमानी बड़ा गुमानी।


पुनि-पुनि उड़ि निज पंख जरानी।।


    गिरा धड़ाम नभहिं तें भुइँ पर।


    कीन्ह दया चंद्र मुनि मोंहि पर।।


मुनि कह सुनु त्रेता-जुग माहीं।


नर-तन प्रभु अइहैं यहिं राहीं।।


     रावन राम क पत्नी हरहीं।


     जासु बियोग राम यहिं अवहीं।।


खोजत-फिरतै कपी-समाजा।


आई अवसि करन प्रभु-काजा।।


    तब तव भेंट तिनहिं सँग होई।


    जीवन तोर पुनीतै होई ।।


पावहु तुम्ह तव पंख तुरंता।


लइ के कृपा राम भगवंता।।


     मुनि कै बचन असत नहिं भवई।


     प्रभु कै दरस आज मोंहि मिलई।।


प्रभु कै काजु करब हम अबहीं।


कछुक देर नहिं देखउ सबहीं।।


    गिरि त्रिकूट पै लंका नगरी।


    तिसु नृप रावन, सुदंर-सवँरी।।


चुरा सियहिं माँ लाइ के रावन।


रक्खा ताहि असोकहिं उपबन।।


     लागहिं सीय बहु दुखी-उदासी।


     चिंतित मन अति खिन्न-पियासी।।


गीध जाति मम दृष्टि अपारा।


देखि क सियहिं जाउँ नहिं पारा।।


      बृद्ध गात मैं उड़ि ना पाऊँ।


       मम मन पीड़ा कसक जताऊँ।।


सत जोजन सागर जे लाँघहिं।


सो मति धीर सीय पहँ जावहिं।।


दोहा-करउ न तुम्ह चिंता कोऊ, महिमा नाथ अपार।


        करिहैं प्रभु अब जतन कछु,होई बेड़ा पार ।।


 


ग्यारहवाँ अध्याय (श्रीकृष्णचरितबखान)-7


 


सुनतै सभ जन भए अचंभित।


भईं नंद सँग जसुमति चिंतित।।


      सभ जन आइ निहारैं किसुनहिं।


      करैं सुरछा सभ मिलि सिसुनहिं।।


यहि क अनिष्ट करन जे चाहा।


मृत्य-अगिनि हो जाए स्वाहा।।


    आवहिं असुर होय जनु काला।


    मारहिं उनहिं जसोमति-लाला।।


साँच कहहिं सभ संत-महाजन।


होय उहइ जस कहहिं वई जन।।


    कहे रहे जस गरगाचारा।


    वैसै होय कृष्न सँग सारा।।


मारि क असुरहिं किसुन-कन्हाई।


सँग-सँग निज बलरामहिं भाई।।


    गोप-सखा सँग खेलहिं खेला।


   नित-नित नई दिखावहिं लीला।।


उछरैं-कूदें बानर नाई।


खेलैं आँखि-मिचौनी धाई।।


दोहा-नटवर-लीला देखि के,सभ जन होंहिं प्रसन्न।


         भूलहिं भव-संकट सभें,पाइ प्रभू आसन्न।।


        संग लेइ बलरामहीं,कृष्न करहिं बहु खेल।


        लीला करैं निरन्तरहिं,ब्रह्म-जीव कै मेल।।


                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                     9919446372


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

सप्त दिवस नवरात्रि का , कालरात्रि आह्वान।


भक्ति भाव पूजन करे , प्राप्ति अभय वरदान।।१।।


 


गंगाजल अक्षत कुसुम , पंचामृत सह गन्ध।


कालरात्रि पूजा करें , कटे आपदा बन्ध।।२।।


 


कालरात्रि माँ कालिका , भैरवि काल कपाल।


रौद्री चंडी चण्डिका , चामुण्डा विकराल।।३।।


 


श्यामा तारा भाविनी , रिद्धि सिद्धि दे योग।


मुण्डमाल बिजुरी समा , प्रिय काली गुड़ भोग।।४।।


 


महा काली कपालिनी , भद्रकाली सुनाम।


ग्रह बाधा से मुक्त हों , हो जीवन सुखधाम।।५।।


 


अर्द्धरात्रि पूजन करें , माँ काली तम रूप।


रोग शोक सब पाप मन , मिटे क्रोध मन कूप।।६।।


 


रक्तबीज शोणित हरे , चण्ड मुण्ड संहार ।


चामुण्डा जग में विदित , रुद्राणी अवतार ।।७।।


 


असुर निकन्दनी कालिके , गोलाकार कपाल।


आलोकित ब्रह्माण्ड सम , भाल त्रिनेत्र विशाल।।८।।


 


खड्गधारिणी चण्डिके, धरे हाथ लौहास्त्र।


अभय मुद्रा में भगवति , वरमुद्रा ब्रह्मास्त्र।।९।।


 


पूर्ण सकल अभिलाष मन,भज काली जगदम्ब।


सप्त रूप माँ कालिके , दुर्गा जग अवलम्ब।।१०।।


 


कर निकुंज अभिराम माँ , हरो सकल संताप।


भक्ति प्रीति समरस वतन, बाँटों नेह प्रसाद।।११।।


 


कालरात्रि माँ कालिके , महिमा अपरम्पार।


महाशक्ति बदलामुखी , कृपा सिन्धु आगार।।१२।।


 


कविः डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ राधा वाल्मीकि

......डॉ.राधा वाल्मीकि....


शिक्षिका,समाजसेविका,कवयित्री


         (संक्षिप्त परिचय)


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नाम - डॉ.राधा वाल्मीकि


पिता - श्री सियाराम वाल्मीकि


माता - श्रीमती मीनू देवी


जन्म - 12 अगस्त 1964 बरेली उ. प्र. (ननिहाल में)


गृह जनपद - पिथौरागढ़,(उत्तराखंड)


शिक्षा- 


*****


एम. ए. (राजनीतिशास्त्र,इतिहास,अर्थशास्त्र,समाजशास्त्र,शिक्षाशास्त्र),बी.एड.,एल.एल.बी.,पी.एच.डी.(राजनीतिशास्त्र),हिमालय वुड बैज(स्काउटिंग)।


सम्प्रति-


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पं.गो.ब.पं.कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर,उत्तराखण्ड के प्रबन्धन में संचालित पन्तनगर इण्टर कॉलेज में प्रवक्ता( इतिहास )


साहित्यिक एवं संस्थात्मक कार्य - 


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विद्यालय की पत्रिकाऐं, स्मारिका, निर्झरिणी, आह्वान का सम्पादन।


नवोदय पर्वतीय कलाकेन्द्र, पिथौरागढ़(1985),सृजन सांस्कृतिक समिति पन्तनगर(2006) की स्थापना में संस्थापक मंडल की सदस्या।


उपलब्धियां(राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर)-


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"लॉंग टाइम अचीवर अवॉर्ड"13 सितम्बर 2014,भारत स्काउट एवं गाइड उत्तराखंड।


"डॉ. अम्बेडकर विशिष्ट सम्मान" 17अगस्त 2014


भारतीय दलित साहित्य अकादमी उत्तराखंड।सम्मान2017


,1अक्टूबर 2017राष्ट्रीय वाल्मीकि समाज चेतना संगठन नई दिल्ली।


 "नेशनल वूमैन अचीवर अवॉर्ड",17 जून 2018 गोपाल किरण समाज सेवी संस्था ग्वालियर,मध्य प्रदेश।


"समाज का गौरव" सम्मान,25 मई 2018,राष्ट्रीय संस्था भावाधस,अमृतसर।


"अम्बेडकर रत्न"सम्मान


31अक्टूबर 2018, वाल्मीकि आश्रम मेरठ। 


" काव्य श्री" सम्मान 21अक्टूबर 2018, वाल्मीकि साहित्यिक चेतना मंच,सहारनपुर उ. प्र.।


"श्रेष्ठ कवयित्री सम्मान"2019 विश्व हिन्दी लेखिका मंच।


"मातृभूमि गौरव सम्मान"2019,विश्व हिन्दी रचनाकार मंच।


"नारीशक्ति सागर सम्मान"2019 विश्व हिन्दी लेखिका मंच।


"डॉ.अ्बेडकर साहित्य रत्न सम्मान"21जून 2019,प्रबुद्ध फाउंडेशन भारत,प्रयागराज।


"उत्तराखण्ड गौरव सम्मान" 27 जुलाई 2019,न्यूज 24 लाइव एवं रे फाउंडेशन।


"नीरज साहित्य रत्न सम्मान" 4 अगस्त 2019,विश्व हिन्दी रचनाकार मंच।


"अम्बेडकर रत्न सम्मान" 10 अगस्त 2019 महादलित परिसंघ भारत।


"शिक्षा मार्तण्ड सम्मान" 24 नवम्बर 2019,स्वर्ण भारत मिशन एवं दिशा फाउंडेशन दिल्ली।


"ग्लोबल अचीवर अवॉर्ड" 25 नवम्बर 2019,गोपाल किरण समाजसेवी संस्था ग्वालियर मध्य प्रदेश।


"डॉ.अम्बेडकर नेशनल फैलोशिप अवॉर्ड" 8 दिसम्बर 2019 भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली।


"माता सावित्रीबाई फुले गौरव सम्मान" 5 जनवरी 2020,सम्यक दृष्टि महिला समिती बरेली,उत्तर प्रदेश।


"अखिल भारतीय मेधावी सृजन सम्मान" 8 मार्च 2020 आदित्य फाउंडेशन वर्धा, महाराष्ट्र।


महादेवी वर्मा शक्ति सम्मान,2020 विश्व हिन्दी लेखिका मंच ।


साहित्य सितारे ,2020,


 "उत्तम रचनाकार सम्मान, सारथी सम्मान 2020कलम बोलती है साहित्य समूह सूरत(गुजरात)


श्रेष्ठ रचनाकार,2020


वर्तमान अंकर साहित्य ,उत्तरांचल उजाला।


कोरोना वॉरियर्स सम्मान 2020 इंकलाब न्यूज दिल्ली,संवैधानिक क्रांति एवं युगधारा फाउंडेशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश।


"सर्वश्रेष्ठ सृजन सम्मान"16अगस्त2020


नव किरण साहित्य साधना मंच ।


"देशभक्ति काव्य सम्मान"2020,श्रेष्ठ सृजन सम्मान एव काव्य शिरोमणि सम्मान विश्व विज्ञानी काव्य साधना मंच।


 


अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश) एवं हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन नीदरलैंड के संयुक्त तत्वावधान में 7अगस्त से 11 अगस्त तक "भारतीय वांड़मय में जीवन मूल्यों की वैश्विक स्वीकारोक्ति"विषय पर आयोजित पंच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार-2020 में शोधपत्र वाचन,सहभागिता प्रमाणपत्र से सम्मानित।  


साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा काव्य साधक सम्मान 2020


स्वर्ण भारत परिवार दिल्ली द्वारा "अंतर्राष्ट्रीय मदर टेरेसा अवार्ड 2020" से सम्मानित। 


सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान 'शिक्षा शिरोमणि सम्मान2020 से सम्मानित 


युगधारा फाउंडेशन लखनऊ उत्तर प्रदेश द्वारा युगधारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान 2020।


लखीमपुरखीरी उत्तरप्रदेश 


काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका द्वारा डॉ. राधाकृष्णन सम्मान 2020


हिन्दी साहित्य रत्न2020, स्वर्ण भारत परिवार 


डॉ एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रीय पुरस्कार 2020


ग्लोबल गांधी पीस अवॉर्ड 2020,ल्वर्ण भारत परिवार।


 


 


प्रशस्ति पत्र-


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पं.दीनदयाल उपाध्याय शैक्षिक उत्कृष्ठता पुरस्कार (विद्यालयी शिक्षा विभाग, उत्तराखंड)।


राष्ट्रीय शैक्षिक सेमीनरों में प्रतिभागिता पर सम्मान।


सामुदायिक रेडियो स्टेशन"जनवाणी"एवं संचार निदेशालय पन्तनगर द्वारा सामाजिक साहित्यिक प्रतिभागिता के लिए प्रत्येक वर्ष सम्मान।


कुलपति विश्वविद्यालय पन्तनगर द्वारा सम्मान।


समय-समय पर विभिन्न


शिक्षाधिकारियों,विधायकों,रेडक्रॉस सोसाइटी,राष्ट्रीय सेवा योजना,अनेकों सामाजिक संगठनों,संस्थाओं एवं गणमान्य जनों द्वारा सम्मानित।


 


प्रकाशन-


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विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कहानियाँ,गीत,कविताऐं प्रकाशित जैसे-प्रतिबद्ध,अम्बेडकर इन इंडिया,डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, दलित दस्तक,ग्लोब दर्पण, कीर टाइम्स,वाल्मीकि बाण, वाल्मीकि जन सन्देश, वाडेकर टाइम्स,मूलनिवासी टाइम्स,उदय प्रभात, वंचित स्वर,हाशिए की आवाज, उत्तराखंड ज्योति, उत्तरांचल दर्पण,न्यूज प्रिंट,शाह टाइम्स,उत्तरांचल पत्रिका,साहित्यिक पत्रिका नारीशक्ति सागर आदि।


 प्रकाशित पुस्तकें-


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 अन्तर्मन की पीड़ा,फ़ुर्सत के लम्हे एकल काव्य-संग्रह।


साझा काव्य-संग्रह-हरसिंगार (सम्पादन)गुलदस्ता,काव्य दर्पण,व्यवस्था पर चोट,काव्यसंगम,फुलवारी,कोविड 19,मैं निःशब्द हूँ, ज़िन्दगी लॉकडाउन,देशबंदी,भारत की श्रेष्ठ कवयित्रियां,भारत माता की जय,आदि


 


सम्पर्क - ।।।/669 चकफेरी कॉलोनी, निकट- जनमिलन केन्द्र (कृषि विश्वविद्यालय कैम्पस),न


जिला-ऊधमसिंह नगर,उत्तराखण्ड।


पिनकोड-263145


 स्थाई पता-धर्मशाला लाइन, निकट-सोल्जर्स बोर्ड जिला- पिथौरागड़,उत्तराखण्ड


पिनकोड-262501


मो0-9720460708,


 


 


रचनाऐं-


             (1)


 


जिंदगी लॉकडाउन कर लो


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कोरोना को हल्के में लेने वालों,


बात मेरी इतनी सी सुन लो।


देश भले अनलॉक हो चुका,


तुम जिंदगी लॉकडाउन कर लो॥....


लॉकडाउन अब खत्म हो चुका,


पर कोरोना बढ़ रहा है।


लॉकडाउन तोड़ने वालों से ही,


जीवन खतरे में पड़ रहा है॥....


संक्रमित लोगों की संख्या,


तेजी से बढ़ने लगी है।


धैर्य संयम और बचाव की,


आवश्यकता पड़ने लगी है॥... 


लापरवाही बरतने वालों सुन लो,


एक दिन ऐसा आएगा।


कोरोना तुम्हें भी अपना,


शिकार बना ले जाएगा॥...


जब अचानक तुम्हें किसी दिन,


तेज बुखार आ जाएगा।


गले में जकड़न दर्द होगा,


सांसो में व्यवधान आ जाएगा॥...


कोविड-19 का टेस्ट होगा, 


और तनाव बढ़ जाएगा।


रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा में,


व्यक्ति अधमरा हो जाएगा॥...


यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी,


नगर पालिका /निगम में जाएगी।


अस्पताल फिर तय होगा और,


एंबुलेंस दनदनाती आएगी॥...


कॉलोनी में खिड़कियों से झांक फिर,


 लोग तुम्हें देख हँसने लगेंगे।


नाना प्रकार की टिप्पणियां भी,


देख देख कर करने लगेंगे॥...


एंबुलेंस के कर्मचारी तब,


जरूरी कपड़े सामान रखवाएेंगे।


बेचारे घर के सदस्य तुम्हें,


बस देखते रह जाएेंगें॥...


और सोचने लगेंगे कि अब,


हममें से किसका नंबर है।  


हमें कोरोना कैसे हो सकता है?


हम तो घर के अंदर हैं ॥...


सायरन की कर्कश आवाज से,


एंबुलेंस जब जाएगी। 


फिर पुलिस प्रशासन द्वारा,


कॉलोनी सील की जाएगी॥ 


उधर मरीज को 14 दिन तक,


ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा।


दो वक्त का जीने मात्र का,


भोजन परोसा जाएगा॥... 


टीवी,मोबाइल ,रिश्ते -नाते,


सब अदृश्य हो जाऐंगे।


तब बिस्तर और खाली दीवारें,


भूत भविष्य दिख लाऐंगे॥


फिर उपचार से यदि टेस्ट रिपोर्ट,


नेगेटिव आ जाएगी। 


घर वापसी की सारी तब,


संभावनाएं बढ़ जाएेंगी॥...


और यदि अनहोनी हुई तो,


प्लास्टिक में कैद हो जाओगे।


शायद अपनों को अपना,


अंतिम दर्शन न दे पाओगे॥...


किसी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में,


भस्म कर दिए जाओगे। 


केवल मृत्यु-प्रमाण पत्र रूप में,


कागज बन घर जाओगे॥...


बात कड़वी है पर सच कहती हूँ,


जरूरी हो तभी घर से निकलो।


देश भले अनलॉक हो चुका,


तुम जिंदगी लॉकडाउन कर लो॥


          ------------


           (2)


ज़िन्दगी इक सफ़र 


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जन्म से लेकर मृत्यु तक,


ज़िन्दगी इक सफ़र है।


जीवन पर्यन्त किसी के लिए तो, 


ये मुश्किलों से भरी डगर है॥


 


राह मे इसकी कहीं काटें तो, 


कहीं बिखरे हुए फूल मिलेंगे।


कहीं सफलता की खुशियाँ तो,


कही असफलता के शूल मिलेंगे॥


ज़िन्दगी में सबको सब कुछ,


मिलता कर्मानुसार है... 


 


गर्दिशों के दौर मिलेंगे, 


खुशियों के भी ठौर मिलेंगे,


रिश्ते-नातों के रूप में,


जीवन में कई लोग मिलेंगे।


हंसते-गाते ग़म में उतरते,


आओ अब करते गुज़र हैं....


 


करें कुछ ऐसा सफल हो जीवन।


परहित परोपकारी हो जीवन।


करने पर परलोक गमन


भी, 


कहलाए एक आदर्श जीवन।


सुख-दुख की इस छाँव-धूप में तब, 


होती आसान ज़िन्दगी बसर है...


 


जिम्मेदारियों का बोझ उठाते, 


सारे दायित्वों को निभाते।


बचपन की मुस्कान से जाने कब, 


कराहते वृद्धावस्था में आते।


एक दिन फिर थम जाता है, 


इस ज़िन्दगी का सफ़र है


ज़िन्दगी इक सफ़र है॥


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            (3)


 


मुश्किल में मुस्काना सीखो


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मुश्किल में मुस्काना सीखो,


हँस कर ग़म भुलाना सीखो। 


बाधाओं से लड़ना है तो,


धैर्यबल बढ़ाना सीखो॥


 


किसी का दर्द अपना कर देखो।


किसी का साथ निभा कर देखो।


अपना गम भी कम लगेगा, 


दूसरों को हँसाकर देखो॥


 


कंटकमय ये जीवन पथ है,  


पग संभलकर रखना सीखो।


राहें निष्कंटक हो जाएंगी।


कांटे तो हटाना सीखो॥


 


सुख-दुख जीवन के दो पहलू हैं,


इनमें समन्वय बनाना सीखो।


मुश्किल नहीं है कुछ भी करना,


हौंसले तो बढ़ाना सीखो॥


 


आसान लगेगी हर मुश्किल,


इनसे जरा तुम लड़ना सीखो।


रोना तो कायरता है तुम,


रोना नहीं मुस्काना सीखो॥


 


मुश्किल में मुस्काना सीखो,  


हँसकर ग़म भुलाना सीखो।


         ----------


 


            (4)


 


      टूटते ख़्वाब


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एक पूरी हसीन दुनिया,


ख़्वाबों मे समायी होती है।


जीवन में बड़ा कुछ पाने की,


उम्मीदें लगाई होती हैं॥


 


एक तलाश खुशियों की,


जिन्हें हम खुली आँखों से


तलाशते हैं।


या बंद आंखों में संजोकर देखतें हैं।


हर वो मंजर,


जो बदल कर रख देता है तकदीर।


पर जब,


यही ख़्वाब..


यकायक टूटते हैं।


तिनका-तिनका होकर बिखरते हैं।


अश्रु बन आँखों से झरते हैं।


तब कर जाते हैं हृदय में,


घाव गंभीर।


तोड़ डालते हैं हर उम्मीद,


दे जाते हैं..


गहरी वेदना।


छा जाता है चेहरे पर,


उदासी का घना आवरण।


दिल कर लेता है फिर


एकान्तवास।


और कर लेता है,


ख़ामोशियों का वरण।


क्योंकि,


ख़्वाब टूटते ही...


उसकी वो दुनिया,


लुट चुकी होती है।


जो पहले से देखे,


सैकड़ों हसीन ख़्वाबों में,


समायी होती है।


टूटे हुए ख़्वाबों की स्थिति,


बड़ी दुखदायी होती है।


         ---------


 


          (5)


विधा-हाइकु


 


        दर्द


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दर्द बड़ा ही


बेदर्द होता है जो


तोड़ देता है ॥1॥


 


इसका नाता


हर जीवन से है


जुड़ा रहता ॥2॥


 


दिल का दर्द


बंया नहीं करती


होंठों की हँसी॥3॥


 


बन नासूर


रिसते जख़्मों से ये


है तड़पाता ॥4॥


 


अकेलापन


दर्द में है सुहाता 


सुकूं दिलाता ॥5॥


 


दिल परेशां 


समझ नहीं आता


कुछ न भाता ॥6॥


 


नहीं है कोई 


बांट सके जो दर्द


वो हमदर्द ॥7॥


 


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स्वरचित



पन्तनगर,उत्तराखंड।


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ. निर्मला शर्मा

व्यक्तिगत परिचय


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अपना नाम-


पति का नाम- श्री दीपक शर्मा


 


शिक्षा-


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- एम. ए.,बी. एड., एम. एड.,पी. एच डी.(हिंदी साहित्य),


संगीत भूषण, संगीत विशारद(सितार)


पद -


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असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी विभाग)


इम्पल्स डिग्री कॉलेज दौसा।


साहित्यक पटल-


 


राष्ट्रीय साहित्यिक परिवर्तन मंच-महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष


हिंदी साहित्य परिषद -सक्रिय कार्यकारिणी सदस्य


भारतीय शिक्षण मण्डल गुजरात-सक्रिय कार्यकारिणी सदस्य


अन्य मंचों पर सक्रिय सहभागिता


प्रकाशित रचनाएँ/कृति -


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● विविध समाचार पत्रों मैं प्रकाशित काव्य रचनाएँ


● साहित्य रश्मि"-पत्रिका मैं कविताओ का प्रकाशन


● "शब्द सारथी"-सामूहिक काव्य संग्रह मैं काव्य रचनाएँ प्रकाशित


● "आचार्य महाप्रज्ञ पर आधारित वर्ल्ड रिकॉर्ड में समाहित काव्य रचना


● "हे भारतभूमि"सामूहिक काव्य मैं काव्य रचनायें प्रकाशित


● "रंग दे बसंती" साझा संग्रह


● "कोरोना वायरस" साझा काव्य संग्रह


● "स्त्री संदर्श" साझा कहानी संग्रह


● "रिकॉर्ड नम्बर130 कहानी संग्रह"में प्रकाशित कहानी


 'बहिष्कार'


● अग्रसर ई पत्रिका में प्रकाशित रचनाएँ


● स्टोरी मिरर वेबसाइट पर कहानी एवं कविताओं का प्रकाशन


● काव्य रंगोली वेबसाइट पर रचनाओं का प्रकाशन


● विविध राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समूहों में रचनाओं का 


प्रकाशन


● सरदार बल्लभ भाई पटेल पर आधारित केंद्रीय निदेशालय द्वारा प्रस्तावित पुस्तक में प्रकाशनाधीन आलेख


भारत के बिस्मार्क:सरदारबल्लभ भाई पटेल


● कवि रामधारी सिंह दिनकर पर आधारित पुस्तक में प्रकाशित आलेख कुरुक्षेत्र:पराधीन भारत के आक्रोश का काव्य


● प्रेमचंद के साहित्य में नारी पुस्तक में प्रकाशित आलेख


● आदरणीय प्रधामंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी के जीवन पर प्रकाशनाधीन पुस्तक में सहभागिता।


● लोकसाहित्य पर आधारित पुस्तक में सहभागिता


● दर्शन रश्मि ई पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन  


●साहित्य रश्मि ई पत्रिका में रचनाओं का निरन्तर प्रकाशन


● 'प्रेमचन्द के नारी पात्र' पुस्तक में सहभागिता


   ■ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय , दौसा (राज.)


      विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित एवं       


हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद (दिसंबर 2010) "वैश्वीकरण का दावा और हिंदी की दशा एवं दिशा" विषय मे शोधार्थी के रूप मे सहभागिता। 


   ■ कोटा विश्वविद्यालय ,कोटा की पीएच.डी.(हिन्दी)उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध प्रबन्ध " व्यंगयकार डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व"।


प्राप्त सम्मान- 


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1)राष्ट्र भाषा शिक्षक सम्मान2011- 12


२) वृक्षारोपण हेतु विशेष प्रमाण पत्र एवं सम्मान


3)साहित्यिक गतिविधियों हेतु प्रशस्ति पत्र विद्यालय स्तर


4)माननीय जिला कलेक्टर द्वारा जिला स्तर पर शिक्षण 


    संस्थान मैं शत -प्रतिशत शिक्षण कार्य हेतु सम्मान पत्र 


    15 अगस्त 2012


5 ) विशाल लघुकथा सम्मेलन में प्राप्त सम्मान पत्र


6 ) साहित्य अँचल मंच पर अनेक बार काव्य पाठ हेतु प्राप्त सम्मान पत्र


7 )साहित्य लहर मंच पर कवि सम्मेलन में प्राप्त सम्मान पत्र


8 )साहित्यिक मण्डल मंच-8 पर साप्ताहिक प्रतियोगिता में अनेक बार प्रथम पुरष्कृत रचना का सम्मान पत्र


9 )राष्ट्रभाषा ब्राह्म मंच पर कविता पाठ हेतु प्राप्त सम्मान पत्र


10 ) मीन साहित्य हिंदी मंच पर प्राप्त सम्मान


        (1) फूलवती देवी सम्मान


         ( 2) मातृ दिवस विशेष सम्मान   


11 ) विविध साहित्यिक ज्ञान एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं में सहभागिता एवं प्राप्त सम्मान पत्र 


12 ) अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक वेबिनारों में सक्रिय सहभागिता


13 ) सामाजिक कार्यक्रमों व शैक्षिक कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागिता एवं निर्णायक समिति में निर्णायक की भूमिका सम्हालने का परम सौभाग्य एवं प्राप्त सम्मान


14 ) विद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर मंच संचालन एवं सांस्कृतिक तथा साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता का प्रमाण पत्र


15 ) साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर मंच-8 की साप्ताहिक लेखन प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ सृजन सम्मान


16 )अभिव्यक्ति ई पत्रिका के विशेष एवं मासिक अंकों में नियमित सहभागिता


17 )विविध ई पत्रिकाओं एवं मंचों पर काव्य लेखन, आलेख लेखन एवं काव्य पाठ में सहभागिता


अन्य ---


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■ स्वतन्त्र लेखन कार्य 


विधा--कहानी,कविता, नाटक, निबन्ध इत्यादि


■ नाटकों का सफल निर्देशन(विद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर)


 ■ नुक्कड़ नाटक, मंचीय नाटक


■ गायन, वादन में विशेष रुचि एवं योग्यता


■ लोकनृत्य एवं शास्त्रीय नृत्य में कुशलता


■ चित्रकला


■ विगत19 वर्षों से शैक्षिक गतिविधियों से जुड़ाव


■ 2012 में प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग सेंटर मैं बतौर हिंदी शिक्षिका दैनिक व्याख्यान देने का अनुभव ।


पता- जैसवाल कोठी के पीछे, पी. जी. कॉलेज के पास


         आगरा रोड, दौसा (राजस्थान) 303303


 


ई. मेल- nirmalsharma1818@gmail.com


 


वृद्धाश्रम


 जीवन के रंगमंच का 


आखिरी मंचन है वृद्धाश्रम 


जीवन काल का परिपक्व 


कालखंड है यह स्वशासन


क्या खोया ,क्या पाया, क्या था ?


जिसे मैं पूर्ण नहीं कर पाया


 एकाकी जीवन की चौखट पर


 मानसिक द्वंद्व का अंतर्द्वंद्व है 


गीता के ज्ञान का मिलता 


यहीं ज्ञान अवलंब है


 मानव जीवन के कष्ट से


 मिला मैं यहां जाना हर सत्य है 


विकल्पों का स्थान नहीं


 चलता यूँ ही जीवन है


 जीवन की पाठशाला का


यह भी मानो एक लंबा प्रसंग 


क्यों ??मैं प्रतीक्षारत हूं 


प्रतिध्वनियों के लिए


 नियम विज्ञान का 


जीवन में प्रतिध्वनित होता नहीं 


पानी के बुलबुले सी स्मृतियां 


बनकर मानो मिटती चली


 यादों की स्याही भी अब


 बह कर स्वतंत्र होने लगी


 चुभन भरी मन में


 कसक सी रहती है क्षण


  उसे जीवन का आधार बना


 उत्साह मैं स्वयं में भर लूं 


जीवन की आखरी शाम को


 जी भर कर जिंदादिली से जी लूं 


बढूं आगे अविरल 


क्यों देखूं पीछे मुड़कर 


खुशी पर किसी का पंजीकरण नहीं 


क्यों शुल्क भरुँ रोकर 


वृद्धाश्रम को कर्म क्षेत्र बनाकर


 क्यों ना चंद यादें सजा लूं 


अंतिम सफर में बढ़ते हुए 


स्वयं को प्रकाशमान सितारा बना लूं


 डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


 


भूख बड़ी या कोरोना


कोरोना महामारी जब आई


 संग अनेक समस्या लाई


लॉक डाउन का पडा है साया


 हर मन है थोड़ा घबराया


सूनी गलियाँ सूनी सड़कें


 हवा से केवल खिड़कियाँ ही खड़कें


डगमग होते जीवन में अब 


खड़ी है विपदा बाहें खोले


छूटा काम, दाम भी बीते, 


रैना निकले अखियाँ मीचे


कैसे पालन करूँ कुटुम्ब का


 चिंता की रेखा यूँ बोले


सिमटी आंतें पेट भी सुकड़ा


 कहाँ से लाऊँ रोटी का टुकड़ा


कोरोना की महामारी ने 


सुख और चैन सभी कुछ छीना


विकल हुआ मन तन है जर्जर


 नैनों में अश्रुओं की धारा


कोरोना ने जीवन छीना 


कैसे कहूँ में मन की पीड़ा


भूख की हूक उठे जब तन में 


मन का भी हर कोना फीका


कैसे बैठूँ घर में भगवान 


मुझे सताती चिंता हर शाम


भूख से बेकल बच्चों के चेहरे


 कदम मेरे घर में कैसे ठहरें


भूख बड़ी है कोरोना से 


करूँ काम निकलूँ में घर से


करूँ जतन अपने पुरुषार्थ से 


प्राण न निकले भूख से उनके


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


" चंदन री महक"


बात वही सुणाऊँ पुराणी


चित्तौड़ रे महलां री कहाणी


पन्ना धाय री ममता झळकै


इत उत षड़यंत्र खड़ा पनपै


स्वामिभक्त वा बड़ी बलिदानी


राजपूती इतिहास री अमर कहाणी


चन्दन री माँ धाय उदय री


ममता री मूरत वा प्रलय सी


बनवीर क्रूर बड़ा आततायी


चित्तोड़ री जनता बड़ी दुखयाई


हाय!री विधना काँई लिख्यो या


हिवड़ो फट ज्या काज हुयो वा


काल रूप बण हाथ खड्ग लै 


बनवीर आयो महलां री गत में


तब राजवंश री आण बचावण


लियो कठोर निर्णय छत्राणी


आपणो पूत सजायौ मनभर


करयो दुलार प्यार जी भरकर


करयो काळजो आपणो पत्थर


उदय सिंह रे पलंग पर सुलायो


मीठी लोरी वाने गाके सुणायो


अट्टहास करतो वा आयो


पलंग रे ऊपर खड्ग चलायो


बिखरी धार खून री उस क्षण


उठ्यो जबर तूफान हिय में


चीत्कार सो गूँजयो नभ में


फिर भी सधी खड़ी छत्राणी


अँसुवन रोक सही मनमाणी


हुई न जग में ऐसी नारी


जिससे विधना भी थी हारी


धन्य धन्य!! वा वीरांगना नारी


ऐसी हिम्मत किसी में न री


बिखरी गन्ध मधुर सी प्रातः


चन्दन रे बलिदान री गाथा


 


 


डॉ0निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


 


किसान आंदोलन


 धरतीपुत्र किसान कर रहा ,


आंदोलन महान


सदियों से बंजर भूमि को,


 देता आया उर्वरता का दान


अपने श्रम के बल पर करता ,


वह सदैव अभिमान 


अन्नदान हेतु अन्न उगाता,


 साथी उसके खेत खलिहान


प्राचीन काल से ही खेती का, 


मिला उसे वरदान


विकसित होती सभ्यता का 


,वह नवीन प्रतिमान


हल की नोक से धरती को वह, 


देता अकूत सम्मान


वसुंधरा को मान मातु वह, 


करता उसे प्रणाम


जय जवान में नारा जुड़कर, 


जब बना जय किसान


अनाज क्रांति का सैनिक बनकर, 


तब किया नवीन उन्मान


अपने उद्यम और ज्ञान से 


सीखा नवाचार वह किसान


तकनीक और उन्नति का उसने 


पाया तब नवज्ञान


श्वेतक्रान्ति का हिस्सा बनकर 


अपनाया हर कृषि अनुसंधान


सोने सा बरसा अनाज तब


 मिला उसेनया वरदान


वर्तमान में विविध प्रयोग कर, 


बना वह और भी बुद्धिमान


मोबाइल, इंटरनेट की सुविधा से करता, 


नव प्रयोग वह जान


संकर किस्मों औऱ बीजों से


 आज नहीं वह अनजान


सरकारी योजनाओं का लाभ उठाता, 


साक्षर उन्नत किसान


जय जवान और जय किसान में मिलकर


 बना अब जय विज्ञान


नव आंदोलन प्रारम्भ हुआ, 


उन्नति करता नित हिंदुस्तान


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


वीर महाराणा प्रताप


राजस्थान री माटी पर जब राणा रो जनम हुयौ


जेठ शुक्ल री तृतीया पर कुम्भलगढ़ में सूरज चमक्यो


राजस्थान री आन रो रखवालो वा अजब बड़ो सैनानी


जीवन भर स्वाभिमान री खातर देतो रह्यो कुर्बानी


सिसोदिया वंश री धरोहर वा वीर बड़ो सम्मानी


कुम्भलगढ़ रे किला में जन्मयो जिसरी मैं लिखूँ कहानी


माता जिसरी जीतकंवर सा पिता हैं वीर उदयसिंह


त्याग, शौर्य, वीरता बलिदान में सदा आगे रह्यो वा सिंह


पूत रा पाँव पालना दीखे या कहावत चरितार्थ कर माना


बालकपन सूं सब गुण दीखै व्यक्तित्व महान था राणा


राजस्थान री आन, बान और शान रो वा रखवालो


उसरे आगे जो कोई आयौ मुँह की खायौ भाग्यो


हल्दीघाटी रा युद्ध री धरती पै प्रसिद्ध कहानी


मुगलां री सेना रा छक्का छुडायो वा तलवार रो धनी


चेतक री जब करै सवारी रण में तलवार चलावै


बैरी री सेना डर भागै केसरिया बाना ही लहरावै


दानी भामाशाह ने भी आपणो कर्तव्य निभायौ


भीलां रे सहयोग सूं राणा नै अकबर कूं झुकायौ


वा वीर शिरोमणि देशभक्त नें झुक-झुक शीश नवाऊँ


या वीरां री धरती पर ऐसो व्यक्तित्व कभी न पाऊँ


वा स्वाभिमान रो सूरज वा तो वीर बड़ौ बलिदानी


माटी रो करज चुकाने कूं जीवन री दी कुर्बानी


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


 


 


 


 


आत्महत्या!


बड़ा ही जाँबाज़


ईमानदार पुलिस अफसर था वो


होकर राजनीति का शिकार


चढ़ गया फांसी के फंदे पर


दे दी अपनी जान


चंद स्वार्थ के मारों ने 


किया मजबूर उसे


कर न पाया होगा वो वीर


अपने ज़मीर से कोई समझौता


जिसने खाई थी कसम 


कर्तव्य पालन की


कैसे करता वह कोई धोखा


दे ही दी जान-----


कर ली आत्महत्या!


कानून का ज्ञाता था वो


कर्तव्य पालन में मुस्तैद


पर---------न जाने


किस मानसिक तनाव की 


नागिन सी रस्सी ने ढकेल दिया उसे


अकाल मौत के साये में


सिंघम कहकर पुकारा जाता था उसे


वह निडर


सबका रखवाला


शांति और अमन का मसीहा


नेकदिल वह इंसान


उसकी हालत देख 


आज सभी हैरान


यक्ष प्रश्न उठा ,खड़ा हुआ---


क्या ईमानदारी की यही सज़ा है?


क्या फर्ज़ का तराजू करता फ़ना है?


क्या ड्यूटी निभाना


भ्रष्टाचारी समाज में मना है?


उसके सहकर्मी हो या आवाम


बेचैन हैं सभी दिल को नहीं आराम


आँसू सूखते ही नहीं हैं आँखों से


शोक में डूबा है शहर


ये कैसी आज चली यहाँ लहर


लोग जमा है यहाँ


 कोरोना भी अभी है बेअसर


उस जाँबाज़ को नम आँखों से


श्रद्धांजलि देते


प्रश्न उनकी आँखों में भी है यथावत


भाइयो!


इस मसले को सुलझाएगी अब


 कौनसी अदालत?


जिसने अन्याय को मिटाने में


अपराध का शूल निकालने में


लगा दी जान 


अपनी हथेली पर रखकर


जो था श्रेष्ठ दस की सूची में ससम्मान


जिसके नाम से ही अपराधी


छोड़ अपराध भाग जाते थे डरकर


आज उसी का जीवन


उस पर ही बोझ बना क्यों?


कर्तव्य पथ पर उसके पैरों को


किसने तोड़ा और क्यों?


क्या थी वजह इस वज्रपात की


छोड़नी पड़ी दुनिया उसे--


सज़ा मिली आख़िर किस अपराध की?


आज खबर है अखबारों में--


-------------------की आत्महत्या!


प्रश्न फिर?----


ये आत्महत्या थी या हुई उसकी हत्या??


डॉ निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


प्रिया सिंह चारण के उदयपुर

शीर्षक:- "जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी"


 


आओ मिलकर मनाए 15 अगस्त ,


कहते है, गर्व से जिसे स्वतंत्रता दिवस ।


 


तिरंगे को नील गगन में लहराए ,


भारत के हर बच्चे के हाथो में तिरंगा थमाए ।


 


तीन रंगों से मिलकर जो बना है ,


अशोक चक्र जिसमे ,विकासशील विद्यमान है।


 


रंग इसके निराले जग से प्यारे ,


कफ़न तिरंगे सा सुशोभित वाह वाह रे,


 


बिना खड़क ,बिना ढाल किया था, चरखे ने कमाल,


पर इंक़लाब के नारे भी ,हिंदुस्तान से गूँजे थे,


भारत माँ के ,हज़ारो लाल ,फाँसी के फन्दों पर झूले थे।


क्या ? फिर इतनी सस्ती थी आज़ादी ,


जो हम इन वीरो के बलिदान को, 


स्वतंत्रता दिवस के बाद अनदेखा कर यूँ भूले थे ।


 


खेल नही था आज़ादी ,


शब्दों का केवल मेल नही था ,


इंक़लाब और अहिंसा का बेजोड़ द्वन्द था आज़ादी ।


 


जब सुहागन के लाल जोड़े का रंग सफेद हुआ था ।


सिन्दूर माँग का आँसू बन आँख से रुक्सत हुआ था।


जब अपनी माँ का आँचल छोड़, भारत माँ पर ,


लाल केसरी सा ,न्योछावर हुआ था।


 


 


फिर एक नई क्रान्ति आएगी, पुलिस अहिंसा अपनाएगी,


डॉक्टर की टीम इंक़लाब से कोरोना को भगाएगी,


कोरोना से आज़ादी दिलाएगी,


वर्दी रंग जो सफेद हुआ ,


ये ऐतिहासिक 15 अगस्त उन्हें भी सलामी दे जाएगी।


 


जश्ने आज़ादी एक कुर्बानी । जय हिंद


 


प्रिया चारण ,उदयपुर ,राजस्थान


8302854423


निशा अतुल्य

दीप जले


20.10.2020


 


 


दो नैनो में दीप जले हैं,


मन के भाव कहाँ चले हैं।


 


ढूंढ रहे हैं सभी सितारे,


मन को ये बात खले हैं।


 


आ जाओ तुम पास हमारे 


हमको नही अब चैन मिलें हैं ।


 


सोच सोच घबराए मनवा


बोलो साजन कहाँ चले हैं ।


 


प्रेम हमारा रात की रानी


देखो तो हर रात खिले है ।


 


साँझ सकारे तुम्हें पुकारे


मन के मीत कहाँ मिलें है ।


 


साजन अब मुस्काए बेला


गजरा तुमरे संग सजे हैं ।


 


स्वरचित


निशा"अतुल्य"


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल


 


तरक्की में वतन की नाम अपना जोड़ना होगा 


नयी नस्लों की खातिर हमको भी कुछ सोचना होगा 


 


जहां की रहगुज़र में हम कहीं पीछे न रह जायें 


पुरानी बंदिशों को आगे बढ़ कर तोड़ना होगा


 


किसी की रहनुमाई के भरोसे ज़िन्दगी खो दी


हमें ख़ुद रास्ता मंज़िल का अपनी खोजना होगा


 


हमें कुछ अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी याद रखनी हैं


वतन में हो कहीं गड़बड़ तो हमको बोलना होगा


 


रखेगी याद दुनिया तब हमें अपनी मिसालों में


जहां की बेहतरी को कोई रस्ता खोलना होगा 


 


रहें *साग़र* हमेशा हम ज़माने की ज़ुबानों पर 


शगूफा इक नया हर रोज़ हमको छोड़ना होगा


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


20/10/2020


एस के कपूर "श्री हंस"

*रचना शीर्षक।।*


*परदा गिरने के बाद भी याद रहे*


*किरदार सारे संसार को।।*


 


क्रोध और आँधी होते हैं


दोनों एक सामान।


दोनों ही जैसे चलते हैं


मानो तीर कमान।।


एक बात तो समान दोनों


में ही होती है ।


क्रोध, आँधी दोंनों ही करते


हैं इक बड़ा नुकसान।।


 


जैसे जंग खा जाता है खुद


लोहे को ही।


गुस्सा भी खा जाता है क्रोध


के रोये को ही।।


क्रोध तो वह आग धुंआ जाता


आदमी के भीतर को।


होशो हवास नहीं रहता क्रोध


के खोये को ही।।


 


संघर्ष आदमी को कभी


थकाता नहीं है।


डर आदमी को कभी मजबूत


बनाता नहीं है।।


चुनौतियों से घबरा कर बैठना


ठीक नहीं होता।


खुद पर अविश्वास कभी भी


जिताता नहीं है।।


 


कुदरत ने तो आनंद ही बनाया


दुःख हमारी खोज है।


प्रभु के बंदे एक जैसे छोटा बड़ा


तो हमारी सोच है।।


हम खुद खोद देते अपनी खाई


समझ के फेर में।


खो देते बने बनाये प्यार को यही


तो हमारी लोच है।।


 


जिन्दगी में निभायो बहुत शिद्दत


से अपने किरदार को।


कि जीत मिल कर ही रहे उसके


असली हकदार को।।


मत हारना हिम्मत जब कभी


मुश्किल हो पास तुम्हारे।


कि परदा गिरने के बाद भी याद


रहे सारे संसार को।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                      8218685464


एस के कपूर "श्री हंस"

*विषय।। शुभ नवरात्रि महिमा।।*


*शीर्षक।।*


*हे माँ दुर्गा पापनाशनी, तेरा वंदन*


*बारम्बार है।।*


 


सुबह शाम की आरती और


माता का जयकारा।


सप्ताह का हर दिन बन गया


शक्ति का भंडारा।।


केशर चुनरी चूड़ी रोली हे माँ


तेरा श्रृंगार सब करें।


सिंह पर सवार माँ दुर्गा आयी


बन भक्तों का सहारा।।


 


तेरे नौं रूपों में समायी शक्ति


बहुत असीम है।


तेरी भक्ति से बन जाता व्यक्ति


बहुत प्रवीण है।।


हे वरदायनी पपनाशनी चंडी


रूपा कल्याणी तू।


लेकर तेरे नाम मात्र से हो जाता


बहुत तल्लीन है।।


 


नौं दिन की नवरात्रि मानो कि


ऊर्जा का संचार है।


भक्ति में लीन तेरे भजनों की


भरमार है।।


कलश कसोरा जौ और पानी


आस्था के प्रतीक।


हे जगत पालिनी माँ दुर्गा तेरा


वंदन बारम्बार है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"


*बरेली।।*


मोब।।। 9897071046


                      8218685464


डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*मेरे दिल का टुकड़ा*


 


मेरे दिल के टुकड़े को ठुकरा न देना,


गले से लगा कर इसे चूम लेना ।


पाला इसे है बड़े प्रेम से मैं,


सिखाया इसे है हुनर ध्यान से मैं ।


बहुत है मुलायम जिगर का ये टुकड़ा,


ऐ नादान, इसको नहीं तोड़ देना।


ये प्याला है भावुक बहुत मुस्कराता,


गले से सभी को सहज है लगाता।


न छल है कपट से नहीं कोई मतलब,


ईमान-धर्मों से है सिर्फ मतलब।


है मानव का पुतला इसे प्यार देना,


मेरे दिल के टुकड़े को ठुकरा न देना।


 


रचनाकार:डॉ. रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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