डॉ० रामबली मिश्र

भगवान राम का आदर्श


 


 वंदन कर श्री राम का, वही उच्च आदर्श।


उनके कृपा-प्रसाद से, सदा हर्ष उत्कर्ष।।


 


त्याग मूर्ति श्री राम जी, दिये त्याग का ज्ञान।


बनवासी बनकर चले , कहलाये भगवान।।


 


असुर वृत्तियों का किये, आजीवन संहार।


रक्षा करने देव की, लिये मनुज अवतार।।


 


सत्य स्थापना के लिये, त्रेता युग में राम।


धर्म धीर गंभीर बन, किये सदा शुभ काम।।


 


जीवन का यह लक्ष्य है, सबका हो कल्याण।


संतों की सेवा किये, लिये दुष्ट का प्राण।।


 


धर्म विरोधी आचरण, कभी नहीं स्वीकार।


मानव धर्म महान का, करते रहे प्रचार।।


 


बहु आयामी राम जी, बहु आयामी कर्म।


इक-इक पावन कर्म ही, बना विश्व का धर्म।।


 


अहंकार को कुचलकर, किये विश्व में नाम।


रावण वध कर विश्व में, हुये अमर श्री राम ।।


 


मात-पिता आदेश का, पालन ही कर्त्तव्य।


ऐसे प्रभु श्री राम का, अभिनंदन हो भव्य।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


 


चित्त चुराकर


 


चित्त चुराकर भाग न जाना ।


पुनः लौटकर वापस आना।।


 


नियमित दिल में बैठे रहना।


स्पर्शन-चुंबन करते रहना।।


 


बहक-बहक कर बहक न जाना।


मटक-मटक कर सदा नाचना।।


 


गलबहियाँ कर सतत थिरकना।


भर बाजू में अथक भींचना।।


 


दो देहों का सहज मिलन हो।


ररुह में रुह का मधुर घुलन हो।।


 


कोई नहीं किसी को छोड़े।


नहीं कभी भी मुख को मोड़े ।।


 


युगों-युगों तक यही भाव हो।


परमानंदी शीत छाँव हो।।


 


उभय एक हो कष्ट हरेंगे।


बनकर मेघ नित्य बरसेंगे।।


 


होगी वर्षा सुधा मिलेगी।


अंग-अंग की कली खिलेगी।।


 


कलियाँ खिलकर फूल बनेंगी।


खुशबू बनकर शोक हरेंगी।।


 


दो दिल का प्रति पल संगम हो।


स्वर्गिक सुख का नित आगम हो।।


 


खत्म न कर देना खेला को।


देख सहज मादक मेला को।।


 


इस अवसर को कभी न खोना।


सींच देह का कोना-कोना।।


 


मन अतृप्त को शांत करो अब।


प्रीति-सिंधु से उदर भरो अब।।


 


ईश प्रदत्त यही अवसर है।


लाभ उठा लो तो सुंदर है।।


 


चूकोगे तो पछताओगे।


बिन चूके सब पा जाओगे।।


 


कोई शंका रहे न मन में।


लग जाने दो आग वदन में।।


 


सी-सी-सी-सी कहते रहना।


प्रेम सिंधु में बहते रहना।।


 


प्रेम सिंधु में ही जीवन है।


जीवन शोभा प्रेम रतन है।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*त्रिपदियाँ*


 


मोहक बनकर चलते जाओ,


प्रेम पंथ का मर्म बताओ।


मधुर भावना भरते जाओ।।


 


स्वस्थ बने यह सारी जगती,


हरी-भरी हो पूरी धरती।


विपदाएँ जायें सब मरती ।।


 


ईश्वर का नित गुणगायन हो,


सुंदर कृति का पारायण हो।


सबके मन में रामायण हो।।


 


माँ सरस्वती सबको वर दें,


पावन सुंदर सबको घर दें।


सब में मानवता को भर दें।।


 


संबंधों में हो अति मृदुता,


अनेकता में दिखे एकता।


विषम मिटे आये नित समता।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


हसीन ख़्वाब निगाहों के घर में पलते हैं


इसी गुमान में हम फूलों जैसा खिलते हैं


 


छुपाये रखते हैं हरदम उदासियाँ अपनी


हरेक शख़्श से हँसते हुए ही मिलते हैं


 


रह-ए-हयात में है ऐसी शख़्सियत अपनी


हमारे नाम हज़ारों चराग़ जलते हैं


 


सलाम करती है दुनिया हमें मुहब्बत से 


कि जब भी सैर को सड़कों पे हम 


निकलते हैं


 


झलक ज़रा सी दिखी थी कभी हमें उनकी


तभी से दीद को अरमां यहाँ मचलते हैं 


 


हमारे आने की लगती है जब ख़बर उनको


उसी को सुनते ही वो मन ही मन उछलते हैं


 


उन्हीं के हुस्नो-तबस्सुम का फ़ैज़ है *साग़र*


मेरी ग़ज़ल में मुहब्बत के शेर ढलते हैं


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


बह्र-मुफायलुन फयलातुन मुफायलुन फेलुन


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*अच्छे के साथ अच्छा और बुरे*


*के साथ बुरा होता है।।*


 


प्रभु के पास रहती न कोई 


कागज़ किताब है।


फिर भी रहता तेरे सब कर्मों


का पूरा हिसाब है।।


देर सबेरअच्छे कामों का फल


मिलता है अवश्य।


पर पाता वो कुफल जो भलाई


के रहता खिलाफ है।।


 


कमियां ढूंढने की शुरुआत जरा


खुद से आरंभ करें।


मत गलत वहम पालें न ही यूँ


कोई दंभ भरें।।


न होअभिमान कि मुझे तो कोई


जरूरत नहीं किसी की।


हर बुराई का सबसे पहले खुद 


में ही अंत धरें।।


 


जीवन को चाहो और जीवन से


तुम प्यार करो।


मत घृणा में पलकर जीवनअपना


दुश्वार करो।।


सोचअगर तंग हो तो जिंदगी एक


जंग सी हो जाती है।


बस एक ही सफलता मंत्र कि हर


काम नियमानुसार करो।


 


पछतावे से नहीं भक्ति शक्ति से


दिन की शुरुआत करें।


कभी नहीं विश्वास को तोड़ें न ही


भीतर घात करें।।


जीने की चाहत जोश उमंग कभी


कम नहीं होने पाये।


हरदिन इक नये संकल्प से जीवन


को आबाद करें।।


 


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।


मो।। 9897071046


                      8218685464


निशा अतुल्य

धनतेरस 


धनवंतरि प्रभु प्रकट हुए थे आज 


ले कर आरोग्य कलश हाथ 


सुख शांति समृद्धि फले तभी


जब हो जीवन आरोग्य साथ ।


 


पूजा की थाली सजी 


चँदन कुमकुम धान


प्रथम गणपति मनावती


पंच दीप त्यौहार ।


 


रंगोली आँगन सजी


आओ धनवंतरि महाराज


आरोग्य करो जग को


दो योग आयुर्वेद का ज्ञान।


 


दीप जगमग जले


काली अमावस रात 


छमछम माँ लक्ष्मी


आती सबके द्वार ।


 


धनतेरस का दिन है 


माँ लक्ष्मी का रहे साथ


सुख शांति समृद्धि से 


सजा रहे संसार ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 भूख बड़ी या कोरोना


नहीं बहस का मुद्दा है यह,


भूख बड़ी या कोरोना।


छोटा कौन बड़ा है इसमें-


दोनों में रोना-रोना।।


 


कोरोना की मार भयानक,


संयम से ही रहना है।


भूख निगोड़ी बहुत सताए,


इससे भी तो बचना है।


करें सभी मिल यत्न अनूठा-


अब तज कर रोना-धोना।।


 


करें कर्म सब अपना-अपना,


थोड़ा दूर-दूर रहकर।


दूरी-संयम हैं निदान बस,


इसका नियमन हो डटकर।


भागे भूख,भगे कोरोना-


नहीं ज़िंदगी को खोना।।


 


हँसी-खुशी,मिल-जुल कर दोनों,


को ही हमें मिटाना है।


साफ-सफाई,भोजन सादा,


का नियमन अपनाना है।


नए सिरे से नई व्यवस्था-


के हैं बीज अभी बोना।।


 


कोरोना तो जाएगा ही,


किंतु भूख रह जानी है।


सदा परिश्रम करते रहना,


सचमुच यही कहानी है।


सदा जागते रहना जीवन-


मरण-निमंत्रण है सोना।।


        नहीं बहस का मुद्दा है यह,


         भूख बड़ी या कोरोना।।


                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

प्रेम दीवाना


 


अति मस्ताना सहज सुहाना।


प्रेम सयाना अति बलवाना।।


 


सदा विशाला भव्य कृपाला।


सहनशील अति भोलाभाला।।


 


परम महाना अति मधु ज्ञाना।


अमृतमय मादक बहु माना।।


 


श्रद्धास्पद अतीव सुखकारी।


परोपकारी हृदयविहारी ।।


 


कमल नयन सुंदर मुख-आकृति।


रचनाकार विराट सुसंस्कृति।।


 


शुभकामी योगी प्रियदर्शी।


महा-आतमा सुजन महर्षी।।


 


दीवाना मानव सुखदाता।


प्रीति रसायनशास्त्र विधाता।।


 


पावन दिव्य कर्म शुभदायक।


सहज सरस रस सुहृद सहायक।।


 


पीताम्बरमय कृष्ण मुरारी।


गोपी-प्रियतम अति मनहारी।।


 


चलो प्रेम! गोपबाला घर ।


बुला रही है प्रिया तुझे हर।।


 


तिलक लगाये स्व-मस्तक पर।


मुस्काते चल प्रेयसि के घर।।


 


देख प्रेयसी परम सुहानी।


बोल रही है मधुरी वानी।।


 


देख नयन में प्रेम नीर है।


गजगामिनि गंभीर धीर है।।


 


ले बाहों में प्रिय सहलाओ।


प्रेम गंग में खूब नहाओ।।


 


डूबो प्रिय के अंतःपुर में।


सदा बसो प्रेयसि के उर में।।


 


प्रेयसि जमकर नृत्य करेगी।


राधा जैसी स्तुत्य बनेगी।।


 


प्रेयसि अनुपम दिव्य मनोरम।


डाल प्रेम रंग सर्वोत्तम।।


 


सारा अंग भिगो देना है।


लाल चुनर पहना देना है।।


 


प्रेयसि का घर पावन धामा।


संग रहो बन राधेश्यामा।।


 


यही प्रेममय दिव्य फकीरी।


प्रेम रंग की खेलो होरी।।


 


प्रेम प्रचारक बनकर चलना।


सदा प्रेयसी संग विचरना।।


 


निमिष मात्र के लिये न त्यागो।


सदा रूपसी में ही जागो।।


 


हाथ पकड़कर सदा चूमना।


दिल में बैठे सतत मचलना।।


 


नदी किनारे घूम थिरकना।


बाजू में प्रेयसि ले चलना।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

राम-कथा


नगर अयोध्या है बसा,पावन सरयू-तीर।


जन्म-भूमि यह राम की,भरी फूल-फल-नीर।


 


गुरु वशिष्ठ-आशीष से,राम सहित सब भ्रात।


शिक्षा ले कर हो गए,गूढ़ ज्ञान-निष्णात।।


 


पुनि जा विश्वामित्र सँग,राम-लखन धनु-वीर।


बध कर दनुजों को किए, यज्ञ-कर्म अति थीर।।


 


पिता-वचन को मानकर,ले हिय में विश्वास।


राम,लखन-सीता सहित,वन में किए निवास।।


 


रावण सिय हर ले गया,सिंधु-पार निज धाम।


ले कर कपि-दल शीघ्र ही,किए चढ़ाई राम।।


 


कर विनाश लंका सहित,रावण-सकल समाज।


किए थापना राम जी,सुखी-राममय-राज।


 


होती है जय सत्य की,हैं प्रमाण प्रभु राम।


 जग-मिथ्या अभिमान से,बने न कोई काम।


               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-


उसकी आँखों में ख़्वाब मेरा है


यह मुक़द्दर जनाब मेरा है


 


उसका सानी नहीं ज़माने में


दोस्त वो लाजवाब मेरा है


 


उसने महफ़िल में पढ़ दिया जिसको


शेर वो कामयाब मेरा है


 


उसको सब लाजवाब कहते हैं


क्या हसीं इंतिख़ाब मेरा है 


 


 महज़बीनों को देख लो साहिब


सबकी चाहत गुलाब मेरा है


 


जो है वादा उसे निभाऊँगा


आज भी यह जवाब मेरा है 


 


जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*


तब से जीना अज़ाब मेरा है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


सुनीता असीम

नाम अमृत का पियो जितना बहुत।


प्रेम की बूंदें मगर चखना बहुत।


******


है बड़ी दौलत रखो संतोष सब।


चाहिए कम तो नहीं रखना बहुत।


******


राम का ही नाम सब कर लो सुमिर।


सिर्फ थोड़ा ही नहीं जपना बहुत।


******


काम काले कर यहाँ छिपते रहे।


हर कदम ख़तरा रहे बचना बहुत।


*******


रोशनी तुमको खुदा की चाहिए।


तो दुखों की मार को सहना बहुत।


******


आ रहा रोना बहुत ये सोचकर।


ज़िन्दगी का नाम है जलना बहुत।


*******


अब सुनीता की सजा को खत्म कर।


हो गया उसका यहां जलना बहुत।


******


सुनीता असीम


निशा अतुल्य

दीप जलाएं


चलो चलें एक दीप जलाएं


प्रेम की बाती उसमें लगाएं


अँधियारा दूर तब होगा


स्नेह संचित संसार हो जाएं ।


 


एक दीपावली ऐसी मनाएं


शिक्षा का एक दीप जलाएं 


है अशक्त जो समाज में 


चल कर उनको सशक्त बनाएं।


 


साथ सभी मिलकर जब चल पाएं


उत्थान समाज का कुछ कर पाएं ।


देता है जो हमें,देश जीवन भर


उऋण होने का कर्म निभाएं।


 


स्वच्छ निर्मल भाव रहें जब


तन मन जन के खिल जाएं ।


सुदृढ सक्षम देश हमारा 


आगे आगे बढ़ता जाएं ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

त्रिपदियाँ


हे रघुनंदन,तेरा वंदन,


तुमसे ही है जग में नंदन।


विश्व करे तेरा अभिनंदन।।


 


वीणा-वादिनि, तुम्हें प्रणाम,


सकल कला की तुम्हीं हो धाम।


मिले अपार सुख लेते नाम।।


 


चहुँ-दिशि फैला है अँधियारा,


ज्ञान-दीप से हो उजियारा।


चलो,जलाएँ इसे दुबारा।।


 


चलो,पथिक को राह दिखाएँ,


भाव दुश्मनी के बिसराएँ।


अज्ञानी को पाठ पढ़ाएँ।।


 


राग-द्वेष से दूर रहें हम,


पालें कभी न मन में वहम।


प्राणी-रक्षा हितकर सुकरम।।


      © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


          9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-14


 


जदि सुमिरउ तुम्ह तन-मन रामहिं।


राज अखंड लंक तुम्ह पावहिं।।


    राम-नाम बिनु जीभ न सोहै।


    सुंदर-गठित सरीर न मोहै।।


जीवन तासु बिफल जग माहीं।


जिन्हके मुख प्रभु-नाम न आहीं।


    मूल रहित जस सजलहिं सरिता।


    सुमिरन बिनु नीरस धन-सहिता।।


सुनु लंकेस कहा मोर मानउ।


एकहिं बेरि सुमिरि प्रभु जानउ।।


     छन भर मा मन सीतल भवई।


     काम-क्रोध-मद-भरा जे रहई।।


भाव तोर जद्यपि कपि नीका।


मोंहि सिखावहु यहि नहिं ठीका।।


    अब जनु काल तोर नियराने।


     तेहिं तें रिपु तुम्ह मोर बखाने।।


मोंहि न भरम भरम तुमहीं को।


कियो भ्रमित तुम्ह हम सबहीं को।।


    कह रावन मारउ कपि यहि छन।


    सचिव सहित तब पहुँचि बिभीषन।।


सिर नवाइ कह सुनु लंकेसा।


दूत होय बाहक संदेसा।।


     बधे दूत जग होत हँसाई।


     नीति कहइ कि दोषु नृप पाई।।


दोहा-सुनि अस बचन बिभीषनै, नीति-रीति कै बात।


         बिहँसि कहा लंकेस तब,भेजु भंजि कपि-गात।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


राजेंद्र रायपुरी

 तभी हों पूरे सपने 


 


अपने दम पर वो लड़ा, 


                  देखो पहली बार।


नाको चने चबा दिया, 


                  भले गया वो हार।


भले गया वो हार, 


             दिखाया उसने दम है।


राजनितिक चाणक्य, 


             नहीं वो कोई कम है।


दिया यही संदेश, 


                   तभी हों पूरे सपने।


नहीं किसी के और,


            बढ़ो जब दम पर अपने।


 


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

*सृष्टि जनक चमत्कारिक*


*ढाई अक्षर।।हाइकु।।*


1


ढाई अक्षर


जन्म मृत्यु अंत है


सत्य अक्षर


2


ढाई अक्षर


आस्था आशा विश्वास


जीत अक्षर


3


ढाई अक्षर


तुरुप इक्का बने


वक्त अक्षर


4


ढाई अक्षर


मित्र शत्रु बनते


ये अवसर


5


ढाई अक्षर


घृणा द्वेष कुकर्म


क्लेश अक्षर


6


ढाई अक्षर


तंत्र मंत्र यंत्र हैं


कर्म अक्षर


7


ढाई अक्षर


स्नेह श्रद्धा प्यार हैं


प्रेम अक्षर


8


ढाई अक्षर


रोली टीका चंदन


पूज्य अक्षत


9


ढाई अक्षर


रहस्य से पूर्ण हैं


भाग्य अक्षर


10


ढाई अक्षर


निस्वार्थ भाव नहीं


स्वार्थ अक्षर


11


शुभ अक्षर


कर्म होता महान


लाभ अक्षर


12


ढाई अक्षर


भक्ति से शक्ति मिले


मन्त्र अक्षर


13


ढाई अक्षर


घृणा हटाओ कहें


प्रेम अक्षर


14


ढाई अक्षर


अर्थी से जायें सभी


अस्थि अक्षर


15


ढाई अक्षर


जीवन मिथ्या नहीं


सत्य अक्षर


16


ढाई अक्षर


श्वास जीवन प्राण


प्रभु अक्षर


17


ढाई अक्षर


अधिक धन बल


मिथ्या अक्षर


*रचयिता।।एस के कपूर" श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब 9897071046


                     8218685464


डॉ० रामबली मिश्र

संभाषण


 


मधुर वचन कह मोहित करना।


सबको अपने वश में रखना।।


 


कर सबसे संवाद प्रेम से।


विनय भाव से सबसे मिलना।।


 


हाल-चाल हो हर प्राणी से ।


खोज-खबर नित लेते चलना।।


 


हर मानव से प्रिय रिश्ता हो।


मधु वाणी में बातें करना।।


 


स्व से पर की ओर निकल पड़।


पर को गले लगाते रहना।।


 


भेदभाव सब अब समाप्त हो।


भेद दृष्टि को पाप समझना।।


 


अपना पेट सभी भरते हैं।


भूखों को भी देते रहना।।


 


आदर अरु सत्कार मुख्य हैं।


अतिथि भाव सबके प्रति रखना।।


 


दिल को जीत बैठ सिंहासन।


सबके उर में सहज उतरना।।


 


नहीं किसी को छोटा समझो।


अपने छोटा बनकर रहना।।


 


यह संसार एक मानव है।


सब को एक समझते रहना।।


 


भेद करो मत नर- नारी में।


सब को ईश्वर रूप समझना।।


 


सभी प्यार के काबिल जग में।


सब को प्रेम सिखाते रहना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

इच्छाये


 


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


हे प्रभु चिंतन हो सदा,इस मन में तेरा


चरणों में तेरे निरंतर ध्यान चाहिए


चाहे दुःख में रंहू,चाहे सुख में रंहु


होठों पर सदा तेरा ही नाम चाहिए


इस कलियुग ने,सांसारिक वासनाओं में


व्यर्थ की कल्पनाओं में


जग की सब तृष्णाओ में


संतुष्टि का स्वप्न दिखा रहा है


मुझे तो सत्संग का,सुबह शाम चाहिए


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


मानव देह धारण किया हूं


कष्ट भी कितने उठा रहा हूं


हंस के प्रेम की बोली से


दुःख सबके मिटा संकू


ऐसा ही तेरा आशीर्वाद चाहिए


हो जाऊ मैं तुझमें ऐसी मगन


ना डोला सके तेरी माया,करू ऐसा यतन


ध्यान तेरा प्रभु मै धरता रहूं


मन सदा ही तेरा अनुरागी रहे


जगत दूषण नहीं,भूषण हो मेरा


न कोई बैरी दिखे,सब अपना हो मेरा


ऐसा ही तेरा आशीर्वाद चाहिए


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


नूतन लाल साहू


आचार्य गोपाल जी

भानु भए उद्धत उगने को,


चहु ओर उषा की अरुणाई ।


नव-नव पुष्प पसरे धरा पर,


प्रभा नूतन आनन्द है लाई ।


मंगल बेला देखो है आई,


विहग बजा रहे शहनाई ।


सब ओर मचने लगा शोर,


हो रही है निशा की विदाई।


गीत गाएं सब सदा प्रेम के,


ईश रहे सब पर सदा सहाई।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार चन्दन सिंह "चाँद"

जीवन परिचय 


 


मूल नाम - चन्दन सिंह 


 


साहित्यिक नाम - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


जन्मतिथि - 4 सितंबर , 1986


 


शिक्षा - बी.ए , बी.एड


 


सहधर्मिणी - रतिमा सिंह 


 


माता - श्रीमती कमला देवी 


 


पिता - श्री अरविन्द सिंह 


 


रुचि - पठन - पाठन , साहित्य , बागवानी


 


विधाएँ - ओज रस में कविता लेखन 


 


प्रकाशित पुस्तक - नाद ( ओजस्वी कविता संग्रह )


 


साझा संकलन - काव्य श्री , शहीद , साहित्य - दर्शन


 


* सहित्यसुधा वेबपत्रिका में कविताएँ प्रकाशित 


 


* मधुसंबोध शैक्षिक पत्रिका में लेखों का प्रकाशन 


 


* अग्निशिखा अखिल भारतीय पत्रिका में कविता प्रकाशित


 


* विभिन्न साहित्यिक मंचों से जुड़ाव 


 


प्राप्त सम्मान - 


* साहित्य सम्राट सम्मान 


* साहित्य रत्न सम्मान 


* परमवीर साहित्य रत्न सम्मान 


* रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान  


* साहित्य भूषण सम्मान 


* काव्य श्री सम्मान 


* उन्मुक्त काव्य सम्मान 


* दिनकर सम्मान 


* साहित्य साधक सम्मान 


* साहित्य वीर अलंकार सम्मान 


* राष्ट्रप्रेमी सम्मान 


* प्रबुद्ध नागरिक सम्मान 


* शिवशक्ति कलाधर सम्मान 


* शिवशक्ति काव्य श्री सम्मान 


* स्वरलहरी सम्मान 


* साहित्य सारथी सम्मान


* प्रेम सौहार्द सम्मान


* साहित्य सारथी सम्मान 


* साहित्य सरस्वती सम्मान


* काव्य भास्कर सम्मान


* साहित्य श्री सम्मान


* लिटरेरी कैप्टन अवार्ड 


* कलम सृजक सम्मान 


* लिटरेरी कर्नल अवार्ड 


* रचना प्रतिभा सम्मान


* राष्ट्रीय कलम गौरव सम्मान 


* साहित्य पीठ सम्मान 


 


निवास - 


ग्राम - अम्बातरी, पोस्ट - मायापुर, प्रखंड - मयूरहण्ड,


जिला - चतरा ( झारखण्ड )पिन नंबर - 825408


 


संपर्क सूत्र - chandanbhaiya12@gmail.com


मोबइल नंबर - 9588023801


व्हाट्सप्प नंबर - 8058963244


ईमेल आईडी - chandanbhaiya12@gmail.com


 


शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा हूँ तथा स्वयं को अनंत पथ पर बढ़ते एक यात्री के रूप में देखता हूँ ।


 


हिंद का सैनिक 


 


उठो हिंद के वीर जवानों !


देश की माटी करे पुकार


रक्त तिलक तुम आज लगाकर 


अरि दल का कर दो संहार 


 


रिश्ते-नाते का मोह त्याग कर 


निकल पड़ो छोड़ घर - बार


राष्ट्रभक्ति की धधकती ज्वाला से 


करो आज माँ का श्रृंगार 


 


हिमगिरि की विशाल चोटियाँ 


तेरी हिम्मत के आगे बौनी हैं


फड़क उठी हैं आज भुजाएँ


जब बदला लेने की ठानी है


 


खून आज उबाल मार रहा 


अंग - अंग में साहस का हुआ संचार 


भरत सपूतों की यह सेना 


दुश्मन पर करेगी अचूक वार 


 


हिंद का सैनिक , हिंद का गौरव


दिया तूने सर्वस्व है वार 


हे राष्ट्र प्रहरी , हे राष्ट्र सपूत !


नमन करुँ तुझको शत बार ।।


नमन करुँ तुझको शत बार ।।


 


© - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


हम भारत के बच्चे 


 


भारत माता की जय का जयघोष लगाने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं


 


वसुधैव कुटुम्बकम का परचम लहराने आए हैं


जीओ और जीने दो का संदेश सुनाने आए हैं


भारत की गौरव गाथा का गीत सुनाने आए हैं


अखंड राष्ट्र की संस्कृति का बोध कराने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं 


 


भारत की इस पुण्य धरा पर प्राण लुटाने आए हैं


मानवता के इस संगम का पर्व मनाने आए हैं


मिली हुई आज़ादी की कीमत बतलाने आए हैं


भारत माता के चरणों में फूल चढ़ाने आए हैं


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आए हैं


 


हर दिल में देशभक्ति की ज्योत जलाने आए हैं


भारत की दिव्य माटी का तिलक लगाने आए हैं


महापुरुषों की इस भूमि को स्वर्ग बनाने आए हैं


राष्ट्रवेदी पर अपना सर्वस्व चढ़ाने आये हैं 


 


भारत माता की जय का जयघोष लगाने आये हैं ।


हम भारत के नन्हें बच्चे देश जगाने आये हैं ।।


 


© - चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


लक्ष्य - पथ 


 


लक्ष्य पथ पर बढ़ तू मुसाफिर 


लक्ष्य पथ पर चलता जा


हर संघर्ष को करके पार 


विजय पताका फहराता जा 


 


बिना धरती पर गिरे कहो 


नवजात कहीं चल सकता है 


बिना प्रयास किए कहो 


क्या कोई सफल हो सकता है ? 


 


बिना नरक से गुजरे कहो 


क्या स्वर्ग का सुख मिल सकता है ?


बिना विष को चखे कभी 


अमृत का स्वाद पता चलता है 


 


पर्वत - शिखर पर चढ़ने से पहले


तलहटी से कदम बढ़ाना होगा 


अनंत ऊंचाइयों को छूने से पहले 


गहराइयों में उतरना होगा


जमीन से उठकर जो बढ़ता है 


सफलता के सोपान वही चढ़ता है 


कुदरत का नियम कुछ ऐसा है 


जो चढ़ता है वही गिरता है 


जो गिरता है वही उठता है


 


चलो , उठो , निराशा छोड़ो 


मन में दृढ़ संकल्प और आशा भर लो 


अपने भीतर की शक्ति को पहचानो 


लक्ष्य पथ पर बढ़ने की ठानो


 


मंजिल भी उसी को मिलती है


जो कदम से कदम बढ़ाता रहे 


ठोकरों से गिरे , फिर सँभले 


चलता और बस चलता ही रहे


 


चलने का नाम ही जीवन है 


बढ़ने का नाम ही जीवन है 


जब धारा बहती रहती है 


वह निर्मल कहलाती है 


जब धारा रुक जाती है 


वह गंदली हो जाती है


 


नव उमंग की डोर पकड़कर 


अपने सपनों को पंख लगाओ 


प्रचंड ऊर्जा और पुरुषार्थ के साथ 


लक्ष्य पथ पर बढ़ते ही जाओ ।


लक्ष्य पथ पर बढ़ते ही जाओ ।।


 


- ©चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


सड़क 


 


मैं सड़क हूँ , मैं सड़क हूँ 


सबको अपनी मंजिल तक हूँ मैं पहुँचाती


हर किसी का भार मैं सहर्ष उठाती


 


चलती हैं मुझपर रोज़ अनगिनत गाड़ियाँ


इन गाड़ियों के झरोखों से झाँकते हैं बच्चे प्यारे 


कूदते हैं और मचलते देखकर चलते नज़ारे


 


कोई यात्री ले रहा नींद में डूबा खर्राटा


और कोई चल पड़ा है आज करने सैर - सपाटा


 


पहले चलते थे मुझपर पथिक पैदल और चलती थी साइकिलें 


अब इस मोटरकार की बाढ़ से बढ़ी हैं मेरी मुश्किलें


 


खाँसती हूँ और सँभलती इन काले धुओं के गुबार से 


दिल मेरा छलनी है होता इन मनुजों के व्यवहार से


 


पता नहीं आज किसे लगेगा धक्का ? कौन होगा घायल ? किसकी होगी दुर्घटना ? 


सोचकर विह्वल मैं रहती और करती हूँ सर्वमंगल प्रार्थना 


 


नहीं चाहिए मुझे रक्तरंजित आँचल , नहीं देख सकती तड़पते हुए प्राण 


कृपा करो , कृपा करो , कृपा करो हे दयानिधान !


 


लोग मुझको स्वच्छ बनाएँ ,


मेरे दोनों छोर पर वृक्ष लगाएँ


चलते समय रहें सतर्क और सावधान 


घायल व्यक्ति पर दें सब समुचित ध्यान 


स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।


स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।।


 


- ©चन्दन सिंह 'चाँद'


 


 


जागो विश्वविधाता 


 


सारी दुनिया जिनके चरणों में


आज पड़ी है नतमस्तक 


जागो हे भागवतम भारत !


हे ब्रह्मकमल की दिव्य महक !


 


सकल जगत कर रहा आवाहन


जड़ - चेतन दे रहे निमंत्रण 


महाकाल का तुझे निवेदन 


जागो जननी , जागो माता 


जाग उठो हे विश्वविधाता !


 


हे सकल जगत की अग्निशिखा !


हे दिव्यज्योति भारत माता !


प्रगटो तव मूल रूप में अब 


हे परम ज्ञान की विज्ञाता !


 


जागो जागो हे परमप्रभु !


जागो जागो हे विश्वगुरु !


हे जग की जननी अब जागो 


हे भारत धरिणी अब जागो 


 


नन्हा शिशु आर्त पुकार रहा 


चरणों की ओर निहार रहा 


आओ माँ अब कर दो मंथन 


यह जगत बने तव मधुर सदन


 


अंग - अंग से उठी पुकार 


माँ अब तेरे शिशु तैयार 


आज गढ़ तू नवल जगत 


जग जाए भागवतम भारत 


 


माँ आ जाओ अब जीवन में


उतरो माँ तुम अब कण - कण में 


ले नई चेतना तुम आओ 


हृदयों में आज समा जाओ 


 


उठ चुका उदधि में है तूफान 


चरणों में नत हैं कोटि प्राण 


माँ आज कर तू यह भू महान 


माँ ला दे अब तू नव विहान 


 


माँ बस यही है प्रार्थना 


माँ सिद्ध कर तू साधना 


भारतभूमि अब भव्य हो 


जगतमूर्ति यह दिव्य हो ।।


 


- ©


सुषमा दीक्षित शुक्ल

मधुबन जैसी उदारता 


 


बन प्रसून खुशबू बिखरा दो ,


 पुष्प हृदय सी विशालता ।


 


 तालमेल काटो संग सीखो ,


मधुबन जैसी उदारता ।


 


पुष्प सिखाता परिवर्तन को,


 यही पुष्प की महानता ।


 


प्रेम सिखाता त्याग सिखाता,


 बनकर जग की सुंदरता ।


 


पुष्पों के हैं कार्य निराले ,


सुख दुख में यह साथ निभाता ।


 


मृत शैया पर ये बिछ जाता,


 यह सुहाग की सेज सजाता।


 


 दुल्हन का गजरा बन जाता ,


देवों के सिर भक्त चढाता ।


 


 राष्ट्र पताका में जा बंधता 


 औषधियां तक यह बन जाता।


 


 यह परिवर्तन का द्योतक है,


 जीवन का संदेश सुनाता ।


 


राग सुनाता गीत सुनाता ,


बिखरा जग में सुंदरता ।


 


सुषमा दीक्षित शुक्ल


डॉ० रामबली मिश्र

मीत -दर्शन


 


मीत -दर्शन ईश- दर्शन एक है।


मीत मोहक सुघर सुंदर नेक है।।


 


मीत को दिल में सजाना धर्म है ।


मीत का सम्मान ही सत्कर्म है।।


 


मीत को दिल से लगाना पुण्य है।


मीत का प्रेमी निरंतर स्तुत्य है।।


 


मीत का मिलना सहज सौभाग्य है।


मीत-द्रोही पतित निशिचर त्याज्य है।।


 


मीत ईश्वर से मिला वरदान है।


मीत से मिलता सदा सद्ज्ञान है।।


 


मीत मिलता है जिसे वह धन्य है।


मीत पावन धाम मान अनन्य है ।।


 


मीत ही शिव राम प्रिय घनश्याम है ।


मीत ही सर्वोच्च सुंदर नाम है।।


 


मीत का साथी बने चलते रहो।


मीत के ही हृदय में बहते रहो।।


 


मीत को पा कर सदा नित खुश रहो।


मीत का मुँह चूमते चलते रहो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


रवि रश्मि अनुभूति

रंगोली रंगे सदा , बिखरते रंग लाल ।


मन आँगन भी रंगता , सदा रच देखभाल ।।


 


सात रंग से रचित सदा , दृश्य अनुपम बहार ।


अपने मन से देख लो , आँगन दिया सँवार ।।


 


रंगोली मन भावनी , रचते हैं सब लोग ।


रंगत बढ़ती है आज , दीपावली का योग ।


 


तन मन अपना रंग लो , मनभावन हैं रंग ।


ऐसी सजती देख लो , रहे लोग सब दंग । 


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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


10.11.2020 , 6:38 पीएम पर रचित ।


मुंबई ( महाराष्ट्र ) 


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🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹


सुनीता असीम

किसी का घर बसाना चाहिए था।


मुहब्बत से सजाना चाहिए था।


******


खफ़ा होकर नहीं रिश्तों को तोड़ो।


कि जैसे हो निभाना चाहिए था।


******


दिलों को जीतना ही इक कला है।


उसे कैसे लुभाना चाहिए था।


******


बहुत ही रूठते थे तुम सदा ही।


मनाने का बहाना चाहिए था।


******


 जरूरत के समय तुम सोचते ये।


 तुम्हें ही पहले आना चाहिए था।


******


बिना ही बात हो गुस्सा दिखाते।


समझ तुमको ये आना चाहिए था।


******


बढ़ाकर प्रेम की पींगें सुनीता।


नहीं ऐसे सताना चाहिए था।


*******


सुनीता असीम


डॉ० रामबली मिश्र

हाय मेरे प्राण प्रिय


 


हृदय में रहना सदा हे प्राण प्रिय।


आज तुझे बुला रहा है यह हृदय।।


 


हृदय में आकर रहो हे अतुल निधि।


प्राण की रक्षा करो हे प्राण प्रिय।।


 


जल्द आओ देर अस्वीकार अब।


पिघल जाओ शीघ्र अति आ जा हृदय।।


 


मुस्कराते गीत गाते निकल पड़।


वास कर मेरे हृदय में प्राण प्रिय।।


 


निकल पड़ जंजीर को तुम तोड़कर।


मोहमाया छोड़कर आओ हृदय।।


 


दुश्मनों की मत करो चिंता कभी।


है बुलाता प्रेम से मेरा हृदय।।


 


हृदय कोमल भाव मीठा मधुर ध्वनि।


मत कभी इंकारना हे प्राण प्रिय।।


 


प्रेम विह्वल स्नेह आकुल प्रीतिकर ।


यह हृदय आवाज देता आ हृदय।।


 


हाय मेरे प्राण प्रिय आराध्य तुम।


विलखते को शान्ति दे हे प्राण प्रिय।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ० रामबली मिश्र

बिके अगर तो.....


 


बिके अगर तो दास बनोगे।


क्रयकर्त्ता के पास रहोगे।।


 


क्रयकर्त्ता ही तेरा मालिक।


बिक कर मत बनना नाबालिक।।


 


बेच रहे क्यों तन-मन अपना।


मंत्र गुलामी का क्या जपना?


 


घुसखोर है मूर्ख अभागा।


पड़त टूट मांस पर कागा।।


 


गलत ढंग से अर्थ कमाना।


मतलब गड्ढे में गिर जाना।।


 


अर्थ हेतु मत हाथ बढ़ाओ।


नैतिकता का पाठ पढ़ाओ।।


 


बेचो मत अपने आतम को।


नहीं बुलाओ प्रेत-आतम को।।


 


गलती मत कर बेच स्वयं को।


पराधीन मत करो स्वयं को।।


 


श्रम का धन सबसे उत्तम है।


सदा परिश्रम सर्वोत्तम है।।


 


मर्यादा का पालन करना।


सम्मानित स्थिति में रहना।।


 


सीना ताने चलते रहना।


नहीं किसी के ताने सुनना।।


 


क्रय-विक्रय से नाता तोड़ो।


दिव्य शान से रिश्ता जोड़ो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


आचार्य गोपाल जी

प्रभात प्रथम रश्मि, अब लगी छिटकने । 


तरु टहनी पर बैठ विहंग, लगी चहकने ।


खिलने लगी उपवन में कलियां, सारा जग है लगा महकने ।


देख छटा अनुपम प्रकृति की ,तन मन मेरा लगा बहकने ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


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