भगवान राम का आदर्श
वंदन कर श्री राम का, वही उच्च आदर्श।
उनके कृपा-प्रसाद से, सदा हर्ष उत्कर्ष।।
त्याग मूर्ति श्री राम जी, दिये त्याग का ज्ञान।
बनवासी बनकर चले , कहलाये भगवान।।
असुर वृत्तियों का किये, आजीवन संहार।
रक्षा करने देव की, लिये मनुज अवतार।।
सत्य स्थापना के लिये, त्रेता युग में राम।
धर्म धीर गंभीर बन, किये सदा शुभ काम।।
जीवन का यह लक्ष्य है, सबका हो कल्याण।
संतों की सेवा किये, लिये दुष्ट का प्राण।।
धर्म विरोधी आचरण, कभी नहीं स्वीकार।
मानव धर्म महान का, करते रहे प्रचार।।
बहु आयामी राम जी, बहु आयामी कर्म।
इक-इक पावन कर्म ही, बना विश्व का धर्म।।
अहंकार को कुचलकर, किये विश्व में नाम।
रावण वध कर विश्व में, हुये अमर श्री राम ।।
मात-पिता आदेश का, पालन ही कर्त्तव्य।
ऐसे प्रभु श्री राम का, अभिनंदन हो भव्य।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
चित्त चुराकर
चित्त चुराकर भाग न जाना ।
पुनः लौटकर वापस आना।।
नियमित दिल में बैठे रहना।
स्पर्शन-चुंबन करते रहना।।
बहक-बहक कर बहक न जाना।
मटक-मटक कर सदा नाचना।।
गलबहियाँ कर सतत थिरकना।
भर बाजू में अथक भींचना।।
दो देहों का सहज मिलन हो।
ररुह में रुह का मधुर घुलन हो।।
कोई नहीं किसी को छोड़े।
नहीं कभी भी मुख को मोड़े ।।
युगों-युगों तक यही भाव हो।
परमानंदी शीत छाँव हो।।
उभय एक हो कष्ट हरेंगे।
बनकर मेघ नित्य बरसेंगे।।
होगी वर्षा सुधा मिलेगी।
अंग-अंग की कली खिलेगी।।
कलियाँ खिलकर फूल बनेंगी।
खुशबू बनकर शोक हरेंगी।।
दो दिल का प्रति पल संगम हो।
स्वर्गिक सुख का नित आगम हो।।
खत्म न कर देना खेला को।
देख सहज मादक मेला को।।
इस अवसर को कभी न खोना।
सींच देह का कोना-कोना।।
मन अतृप्त को शांत करो अब।
प्रीति-सिंधु से उदर भरो अब।।
ईश प्रदत्त यही अवसर है।
लाभ उठा लो तो सुंदर है।।
चूकोगे तो पछताओगे।
बिन चूके सब पा जाओगे।।
कोई शंका रहे न मन में।
लग जाने दो आग वदन में।।
सी-सी-सी-सी कहते रहना।
प्रेम सिंधु में बहते रहना।।
प्रेम सिंधु में ही जीवन है।
जीवन शोभा प्रेम रतन है।।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
*त्रिपदियाँ*
मोहक बनकर चलते जाओ,
प्रेम पंथ का मर्म बताओ।
मधुर भावना भरते जाओ।।
स्वस्थ बने यह सारी जगती,
हरी-भरी हो पूरी धरती।
विपदाएँ जायें सब मरती ।।
ईश्वर का नित गुणगायन हो,
सुंदर कृति का पारायण हो।
सबके मन में रामायण हो।।
माँ सरस्वती सबको वर दें,
पावन सुंदर सबको घर दें।
सब में मानवता को भर दें।।
संबंधों में हो अति मृदुता,
अनेकता में दिखे एकता।
विषम मिटे आये नित समता।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801