डॉ०रामबली मिश्र

*साथ चलते रहो*


 


साथ चलते रहो बात करते रहो।


गुनगुनाते रहो गीत गाते रहो।।


 


हम चलें इस कदर सारी दुनिया लखे।


हाथ में हाथ डाले मचलते रहो।।


 


है पुरानी ये दोस्ती इसी चाल में।


हाथ में कटि लिये प्रिय फिसलते रहो।।


 


चूमकर बाजुओं को नमन हो सदा।


हार बनकर गले का चमकते रहो।।


 


चुंबनों से सकल देह का स्नान हो।


देह मर्दन सहज नित्य करते रहो।।


 


पूर्ण सेवा का व्रत ले चलो रात--दिन।


पूर्णकालिक मिलन नित्य करते रहो।


 


आदि से अंत तक देह से आत्म तक।


राह चलते रहो प्रेम करते रहो।।


 


प्रेम का साथ छोड़ो कभी भी नहीं।


मुँह में मुँह डाल दिलवर से मिलते रहो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल


मात्रा भार-16


इस भारत भू पर आस जगा,


अपना इसपर विश्वास जगा।।


 


मातृ-भूमि की सेवा के प्रति,


मन में अपने उल्लास जगा।।


 


त्याग और बलिदान लक्ष्य हो,


भोग के भाव न विलास जगा।।


 


जिनमें नहीं भला की भावना,


भाव-शून्य मन उदास जगा।।


 


शिक्षा-दीक्षा जहाँ अधूरी,


जा,शिक्षा-क्रांति-विकास जगा।।


 


असहायों की कर सहायता,


जला आस-दीप हुलास जगा।।


 


मानवता ही धर्म एक है,


जन में ऐसा आभास जगा।।


       © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16


पूँछ बुझाइ धारि लघु रूपा।


गया निकट पुनि सीय अनूपा।


    कर जोरे कपि बिनती कीन्हा।


     मातु देउ कोउ आपनु चीन्हा।।


चूड़ामनि उतारि तब सीता।


दीन्हीं कपिहिं बिनू भयभीता।


    जाइ कहेउ प्रभु मोर प्रनामा।


    निसि-बासर सुमिरहुँ प्रभु-नामा।


जे सुमिरै प्रभु बिनु छल-संसय।


ताहिं मिलैं प्रभु जग मा निस्चय।।


    दीन दयालू अंतरजामी।


    पुरवहिं इच्छा सभकर स्वामी।।


जाइ कहहु तुम्ह जे कछु देखा।


निज करतब जे कीन्ह बिसेखा।।


     प्रभुहिं कहेउ जयंत कर गाथा।


     प्रभु-सर-तेज नाइ निज माथा।।


जदि प्रभु मास एक नहिं अइहैं।


प्रानहिं मोर कबहुँ नहिं पइहैं।।


दोहा-बहु समुझाइ-बुझाइ सिय,छूइ चरन हनुमान।


        धीरजु ताहि धराइ के,कीन्हा तुरत पयान।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


राजेंद्र रायपुरी

🪔🪔 दीप-दिवाली 🪔🪔


 


आवन को हैं राम दुलारे।


नर - नारी उत्सुक हैं सारे।


सजी अयोध्या दुल्हन जैसी।


दीप जले हैं द्वारे - द्वारे।


 


कार्तिक मास अमावस को ही,


वन से लौटे थे रघुराई।


सहित जानकी और अनुज निज़,


कहते जिनको लछिमन भाई।


 


स्वागत में तब उनके घर- घर अवधपुरी में दीप जले थे।


बाॅ॑ट मिठाई अवध निवासी,


 इक दूजे से मिले गले। थे‌।


 


कहें इसे ही दीप - दिवाली।


 खुशियाॅ॑ मन में भरने वाली।


रौशन हो जाती है इस दिन, 


रात अमावस काली - काली।


 


आओ हम भी दीप जलाऍ॑।


 खुशी - खुशी त्यौहार मनाऍ॑।


बाॅ॑ट मिठाई इक - दूजे को, 


परंपरा जो उसे निभाऍ॑।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

वाह रे मन


 


कितना अजीब है मन


जब हम गलत होते हैं


तब हम समझौता चाहते हैं


परन्तु जब दुसरा गलत होता है


तब हम न्याय चाहते हैं


किसी गैर की तरक्की देखकर


मन अधीर हो जाता हैं


हम क्यों नहीं सोचते गंभीरता से


कि सबका अपना अपना


भाग्य लकीर होता है


कितना अजीब है मन


किसी गैर की फायदा पर जलते हैं


उन्हें नुकसान होने पर हंसते हैं


मन यह क्यों नहीं सोचता है कि


नियत ठीक नहीं होने पर


संबंध टूट सकता है


कितना अजीब है मन


मत कीजिए ऊपर से दोस्ती


न रखे भीतर,विष के ताज


दर्द पराया आजकल


समझ सका है कोय


यदि नहीं समझ पाया


विधि का अटल विधान तो


रह जाओ मौन


कितना अजीब है मन


एक सीमा तक प्रभु जी भी


कर लेता है बर्दास्त


अति सर्वत्र वर्जित हैं


जैसे चिड़िया उड़ती है आकाश में


पर दाना तो धरती पर ही होता है


कितना अजीब है मन


जब हम गलत होते हैं


तब हम समझौता चाहते हैं


परन्तु जब दुसरा गलत होता है


तब हम न्याय चाहते हैं


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-15


अहहि पूँछि बानर कै सोभा।


तासु नास बानर-मन-छोभा।।


     बाँधु पूँछि पट बोरि क तेला।


      आगि लगा पुनि देखउ खेला।।


पुच्छहीन बानर जब जाई।


तुरत तासु स्वामी इहँ आई।।


     देखब हमहुँ तासु महिमा अब।


     जासु बखान कीन्ह कपि अब-तब।।


सुनत योजना हनु मुस्काए।


कृपा सारदा माँ जनु पाए।।


    जित-जित बस्त्र लपेटहिं ताहीं।


    उत-उत पूँछहिं कपी बढ़ाहीं।।


बसन-तेल नहिं बचा नगर महँ।


लखत रहे निसिचर बहु जहँ-तहँ।


     ढोल बजावत पीटत तारी।


    लखत रहे सभ बारी-बारी।।


लागत आगि तुरत हनुमाना।


जरत पूँछ लइ किए पयाना।।न


    अति लघु रूप धारि हनुमंता।


     उछरैं-कूदैं भजि भगवंता।।


मारुत-बेग भयो तब प्रबला।


जनु उनचास पवन बह सबला।।


     कंचन-भवन लपकि कपि चढ़िगे।


     बाल-बृद्ध-नारी सभ डरिगे।।


भभकि-भभकि इक-इक घर जरई।


तांडव-नृत्य अनल जनु करई।।


    भागहिं इत-उत सबहिं निसाचर।


    चीखहिं कहि बचाउ माँ आकर।।


होय न सकत ई बानर कोऊ।


बानर-रूप देव कोउ होऊ।।


     निमिष एक मा लंका जरई।


     सुर-अपमान क ई फल भवई।


दोहा-छाँड़ि बिभीषन गृहहि तहँ,सभ भे भस्मीभूत।


         उलट-पुलट करि लंक कपि,कुदा सिंधु प्रभु-दूत।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


नूतन लाल साहू

मुस्कुराहट


 


जिंदगी में समस्या तो


हर दिन नई खड़ी हो जाती है


जीत जाते हैं वे लोग जिनकी


सोच कुछ बड़ी होती हैं


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


प्रभु जी रक्खे जिस हाल में


उसे ही अपनी मुकद्दर मान


क्यों लेते हो प्रभु जी से


जानबूझकर तू पंगा


कर्म करो आत्मविश्वास से


फल की आशा से नहीं


कर्म का फल अवश्य ही मिलेगा


तू क्यों घबराता है


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


जाको राखे साइयां


मार सके न कोय


बाल न बांका कर सके


जो जग बैरी होय


सरस्वती मां को करे


बारम्बार प्रणाम


कट जाये,तन मन की


युग युग का अंधियार


हर इच्छा इंसान की


पूरी कभी नहीं होता है


जिंदगी में समस्या तो


हर दिन नई खड़ी हो जाती हैं


जीत जाते हैं वे लोग जिनकी


सोच कुछ बड़ी होती हैं


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


नूतन लाल साहू


आचार्य गोपाल जी

ध्यान धरके श्री गणेश का,


मां शारदे को शीश नवाता हूं ।


पितरौ के चरणों का बंदन कर,


अर्चन अग्रज का तब करता हूं ।


ईश इच्छित प्रदान करें सबको,


सात्विक श्रद्धा से कामना करता हूं ।


आशाएं अनुजों की सब पूरित हो,


सुप्रभात में यही अभिलाषा करता हूं ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


डॉ० रामबली मिश्र

भगवान राम का आदर्श


 


 वंदन कर श्री राम का, वही उच्च आदर्श।


उनके कृपा-प्रसाद से, सदा हर्ष उत्कर्ष।।


 


त्याग मूर्ति श्री राम जी, दिये त्याग का ज्ञान।


बनवासी बनकर चले , कहलाये भगवान।।


 


असुर वृत्तियों का किये, आजीवन संहार।


रक्षा करने देव की, लिये मनुज अवतार।।


 


सत्य स्थापना के लिये, त्रेता युग में राम।


धर्म धीर गंभीर बन, किये सदा शुभ काम।।


 


जीवन का यह लक्ष्य है, सबका हो कल्याण।


संतों की सेवा किये, लिये दुष्ट का प्राण।।


 


धर्म विरोधी आचरण, कभी नहीं स्वीकार।


मानव धर्म महान का, करते रहे प्रचार।।


 


बहु आयामी राम जी, बहु आयामी कर्म।


इक-इक पावन कर्म ही, बना विश्व का धर्म।।


 


अहंकार को कुचलकर, किये विश्व में नाम।


रावण वध कर विश्व में, हुये अमर श्री राम ।।


 


मात-पिता आदेश का, पालन ही कर्त्तव्य।


ऐसे प्रभु श्री राम का, अभिनंदन हो भव्य।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


 


चित्त चुराकर


 


चित्त चुराकर भाग न जाना ।


पुनः लौटकर वापस आना।।


 


नियमित दिल में बैठे रहना।


स्पर्शन-चुंबन करते रहना।।


 


बहक-बहक कर बहक न जाना।


मटक-मटक कर सदा नाचना।।


 


गलबहियाँ कर सतत थिरकना।


भर बाजू में अथक भींचना।।


 


दो देहों का सहज मिलन हो।


ररुह में रुह का मधुर घुलन हो।।


 


कोई नहीं किसी को छोड़े।


नहीं कभी भी मुख को मोड़े ।।


 


युगों-युगों तक यही भाव हो।


परमानंदी शीत छाँव हो।।


 


उभय एक हो कष्ट हरेंगे।


बनकर मेघ नित्य बरसेंगे।।


 


होगी वर्षा सुधा मिलेगी।


अंग-अंग की कली खिलेगी।।


 


कलियाँ खिलकर फूल बनेंगी।


खुशबू बनकर शोक हरेंगी।।


 


दो दिल का प्रति पल संगम हो।


स्वर्गिक सुख का नित आगम हो।।


 


खत्म न कर देना खेला को।


देख सहज मादक मेला को।।


 


इस अवसर को कभी न खोना।


सींच देह का कोना-कोना।।


 


मन अतृप्त को शांत करो अब।


प्रीति-सिंधु से उदर भरो अब।।


 


ईश प्रदत्त यही अवसर है।


लाभ उठा लो तो सुंदर है।।


 


चूकोगे तो पछताओगे।


बिन चूके सब पा जाओगे।।


 


कोई शंका रहे न मन में।


लग जाने दो आग वदन में।।


 


सी-सी-सी-सी कहते रहना।


प्रेम सिंधु में बहते रहना।।


 


प्रेम सिंधु में ही जीवन है।


जीवन शोभा प्रेम रतन है।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*त्रिपदियाँ*


 


मोहक बनकर चलते जाओ,


प्रेम पंथ का मर्म बताओ।


मधुर भावना भरते जाओ।।


 


स्वस्थ बने यह सारी जगती,


हरी-भरी हो पूरी धरती।


विपदाएँ जायें सब मरती ।।


 


ईश्वर का नित गुणगायन हो,


सुंदर कृति का पारायण हो।


सबके मन में रामायण हो।।


 


माँ सरस्वती सबको वर दें,


पावन सुंदर सबको घर दें।


सब में मानवता को भर दें।।


 


संबंधों में हो अति मृदुता,


अनेकता में दिखे एकता।


विषम मिटे आये नित समता।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


हसीन ख़्वाब निगाहों के घर में पलते हैं


इसी गुमान में हम फूलों जैसा खिलते हैं


 


छुपाये रखते हैं हरदम उदासियाँ अपनी


हरेक शख़्श से हँसते हुए ही मिलते हैं


 


रह-ए-हयात में है ऐसी शख़्सियत अपनी


हमारे नाम हज़ारों चराग़ जलते हैं


 


सलाम करती है दुनिया हमें मुहब्बत से 


कि जब भी सैर को सड़कों पे हम 


निकलते हैं


 


झलक ज़रा सी दिखी थी कभी हमें उनकी


तभी से दीद को अरमां यहाँ मचलते हैं 


 


हमारे आने की लगती है जब ख़बर उनको


उसी को सुनते ही वो मन ही मन उछलते हैं


 


उन्हीं के हुस्नो-तबस्सुम का फ़ैज़ है *साग़र*


मेरी ग़ज़ल में मुहब्बत के शेर ढलते हैं


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


बह्र-मुफायलुन फयलातुन मुफायलुन फेलुन


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*अच्छे के साथ अच्छा और बुरे*


*के साथ बुरा होता है।।*


 


प्रभु के पास रहती न कोई 


कागज़ किताब है।


फिर भी रहता तेरे सब कर्मों


का पूरा हिसाब है।।


देर सबेरअच्छे कामों का फल


मिलता है अवश्य।


पर पाता वो कुफल जो भलाई


के रहता खिलाफ है।।


 


कमियां ढूंढने की शुरुआत जरा


खुद से आरंभ करें।


मत गलत वहम पालें न ही यूँ


कोई दंभ भरें।।


न होअभिमान कि मुझे तो कोई


जरूरत नहीं किसी की।


हर बुराई का सबसे पहले खुद 


में ही अंत धरें।।


 


जीवन को चाहो और जीवन से


तुम प्यार करो।


मत घृणा में पलकर जीवनअपना


दुश्वार करो।।


सोचअगर तंग हो तो जिंदगी एक


जंग सी हो जाती है।


बस एक ही सफलता मंत्र कि हर


काम नियमानुसार करो।


 


पछतावे से नहीं भक्ति शक्ति से


दिन की शुरुआत करें।


कभी नहीं विश्वास को तोड़ें न ही


भीतर घात करें।।


जीने की चाहत जोश उमंग कभी


कम नहीं होने पाये।


हरदिन इक नये संकल्प से जीवन


को आबाद करें।।


 


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।


मो।। 9897071046


                      8218685464


निशा अतुल्य

धनतेरस 


धनवंतरि प्रभु प्रकट हुए थे आज 


ले कर आरोग्य कलश हाथ 


सुख शांति समृद्धि फले तभी


जब हो जीवन आरोग्य साथ ।


 


पूजा की थाली सजी 


चँदन कुमकुम धान


प्रथम गणपति मनावती


पंच दीप त्यौहार ।


 


रंगोली आँगन सजी


आओ धनवंतरि महाराज


आरोग्य करो जग को


दो योग आयुर्वेद का ज्ञान।


 


दीप जगमग जले


काली अमावस रात 


छमछम माँ लक्ष्मी


आती सबके द्वार ।


 


धनतेरस का दिन है 


माँ लक्ष्मी का रहे साथ


सुख शांति समृद्धि से 


सजा रहे संसार ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 भूख बड़ी या कोरोना


नहीं बहस का मुद्दा है यह,


भूख बड़ी या कोरोना।


छोटा कौन बड़ा है इसमें-


दोनों में रोना-रोना।।


 


कोरोना की मार भयानक,


संयम से ही रहना है।


भूख निगोड़ी बहुत सताए,


इससे भी तो बचना है।


करें सभी मिल यत्न अनूठा-


अब तज कर रोना-धोना।।


 


करें कर्म सब अपना-अपना,


थोड़ा दूर-दूर रहकर।


दूरी-संयम हैं निदान बस,


इसका नियमन हो डटकर।


भागे भूख,भगे कोरोना-


नहीं ज़िंदगी को खोना।।


 


हँसी-खुशी,मिल-जुल कर दोनों,


को ही हमें मिटाना है।


साफ-सफाई,भोजन सादा,


का नियमन अपनाना है।


नए सिरे से नई व्यवस्था-


के हैं बीज अभी बोना।।


 


कोरोना तो जाएगा ही,


किंतु भूख रह जानी है।


सदा परिश्रम करते रहना,


सचमुच यही कहानी है।


सदा जागते रहना जीवन-


मरण-निमंत्रण है सोना।।


        नहीं बहस का मुद्दा है यह,


         भूख बड़ी या कोरोना।।


                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

प्रेम दीवाना


 


अति मस्ताना सहज सुहाना।


प्रेम सयाना अति बलवाना।।


 


सदा विशाला भव्य कृपाला।


सहनशील अति भोलाभाला।।


 


परम महाना अति मधु ज्ञाना।


अमृतमय मादक बहु माना।।


 


श्रद्धास्पद अतीव सुखकारी।


परोपकारी हृदयविहारी ।।


 


कमल नयन सुंदर मुख-आकृति।


रचनाकार विराट सुसंस्कृति।।


 


शुभकामी योगी प्रियदर्शी।


महा-आतमा सुजन महर्षी।।


 


दीवाना मानव सुखदाता।


प्रीति रसायनशास्त्र विधाता।।


 


पावन दिव्य कर्म शुभदायक।


सहज सरस रस सुहृद सहायक।।


 


पीताम्बरमय कृष्ण मुरारी।


गोपी-प्रियतम अति मनहारी।।


 


चलो प्रेम! गोपबाला घर ।


बुला रही है प्रिया तुझे हर।।


 


तिलक लगाये स्व-मस्तक पर।


मुस्काते चल प्रेयसि के घर।।


 


देख प्रेयसी परम सुहानी।


बोल रही है मधुरी वानी।।


 


देख नयन में प्रेम नीर है।


गजगामिनि गंभीर धीर है।।


 


ले बाहों में प्रिय सहलाओ।


प्रेम गंग में खूब नहाओ।।


 


डूबो प्रिय के अंतःपुर में।


सदा बसो प्रेयसि के उर में।।


 


प्रेयसि जमकर नृत्य करेगी।


राधा जैसी स्तुत्य बनेगी।।


 


प्रेयसि अनुपम दिव्य मनोरम।


डाल प्रेम रंग सर्वोत्तम।।


 


सारा अंग भिगो देना है।


लाल चुनर पहना देना है।।


 


प्रेयसि का घर पावन धामा।


संग रहो बन राधेश्यामा।।


 


यही प्रेममय दिव्य फकीरी।


प्रेम रंग की खेलो होरी।।


 


प्रेम प्रचारक बनकर चलना।


सदा प्रेयसी संग विचरना।।


 


निमिष मात्र के लिये न त्यागो।


सदा रूपसी में ही जागो।।


 


हाथ पकड़कर सदा चूमना।


दिल में बैठे सतत मचलना।।


 


नदी किनारे घूम थिरकना।


बाजू में प्रेयसि ले चलना।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

राम-कथा


नगर अयोध्या है बसा,पावन सरयू-तीर।


जन्म-भूमि यह राम की,भरी फूल-फल-नीर।


 


गुरु वशिष्ठ-आशीष से,राम सहित सब भ्रात।


शिक्षा ले कर हो गए,गूढ़ ज्ञान-निष्णात।।


 


पुनि जा विश्वामित्र सँग,राम-लखन धनु-वीर।


बध कर दनुजों को किए, यज्ञ-कर्म अति थीर।।


 


पिता-वचन को मानकर,ले हिय में विश्वास।


राम,लखन-सीता सहित,वन में किए निवास।।


 


रावण सिय हर ले गया,सिंधु-पार निज धाम।


ले कर कपि-दल शीघ्र ही,किए चढ़ाई राम।।


 


कर विनाश लंका सहित,रावण-सकल समाज।


किए थापना राम जी,सुखी-राममय-राज।


 


होती है जय सत्य की,हैं प्रमाण प्रभु राम।


 जग-मिथ्या अभिमान से,बने न कोई काम।


               © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-


उसकी आँखों में ख़्वाब मेरा है


यह मुक़द्दर जनाब मेरा है


 


उसका सानी नहीं ज़माने में


दोस्त वो लाजवाब मेरा है


 


उसने महफ़िल में पढ़ दिया जिसको


शेर वो कामयाब मेरा है


 


उसको सब लाजवाब कहते हैं


क्या हसीं इंतिख़ाब मेरा है 


 


 महज़बीनों को देख लो साहिब


सबकी चाहत गुलाब मेरा है


 


जो है वादा उसे निभाऊँगा


आज भी यह जवाब मेरा है 


 


जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*


तब से जीना अज़ाब मेरा है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


सुनीता असीम

नाम अमृत का पियो जितना बहुत।


प्रेम की बूंदें मगर चखना बहुत।


******


है बड़ी दौलत रखो संतोष सब।


चाहिए कम तो नहीं रखना बहुत।


******


राम का ही नाम सब कर लो सुमिर।


सिर्फ थोड़ा ही नहीं जपना बहुत।


******


काम काले कर यहाँ छिपते रहे।


हर कदम ख़तरा रहे बचना बहुत।


*******


रोशनी तुमको खुदा की चाहिए।


तो दुखों की मार को सहना बहुत।


******


आ रहा रोना बहुत ये सोचकर।


ज़िन्दगी का नाम है जलना बहुत।


*******


अब सुनीता की सजा को खत्म कर।


हो गया उसका यहां जलना बहुत।


******


सुनीता असीम


निशा अतुल्य

दीप जलाएं


चलो चलें एक दीप जलाएं


प्रेम की बाती उसमें लगाएं


अँधियारा दूर तब होगा


स्नेह संचित संसार हो जाएं ।


 


एक दीपावली ऐसी मनाएं


शिक्षा का एक दीप जलाएं 


है अशक्त जो समाज में 


चल कर उनको सशक्त बनाएं।


 


साथ सभी मिलकर जब चल पाएं


उत्थान समाज का कुछ कर पाएं ।


देता है जो हमें,देश जीवन भर


उऋण होने का कर्म निभाएं।


 


स्वच्छ निर्मल भाव रहें जब


तन मन जन के खिल जाएं ।


सुदृढ सक्षम देश हमारा 


आगे आगे बढ़ता जाएं ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

त्रिपदियाँ


हे रघुनंदन,तेरा वंदन,


तुमसे ही है जग में नंदन।


विश्व करे तेरा अभिनंदन।।


 


वीणा-वादिनि, तुम्हें प्रणाम,


सकल कला की तुम्हीं हो धाम।


मिले अपार सुख लेते नाम।।


 


चहुँ-दिशि फैला है अँधियारा,


ज्ञान-दीप से हो उजियारा।


चलो,जलाएँ इसे दुबारा।।


 


चलो,पथिक को राह दिखाएँ,


भाव दुश्मनी के बिसराएँ।


अज्ञानी को पाठ पढ़ाएँ।।


 


राग-द्वेष से दूर रहें हम,


पालें कभी न मन में वहम।


प्राणी-रक्षा हितकर सुकरम।।


      © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


          9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-14


 


जदि सुमिरउ तुम्ह तन-मन रामहिं।


राज अखंड लंक तुम्ह पावहिं।।


    राम-नाम बिनु जीभ न सोहै।


    सुंदर-गठित सरीर न मोहै।।


जीवन तासु बिफल जग माहीं।


जिन्हके मुख प्रभु-नाम न आहीं।


    मूल रहित जस सजलहिं सरिता।


    सुमिरन बिनु नीरस धन-सहिता।।


सुनु लंकेस कहा मोर मानउ।


एकहिं बेरि सुमिरि प्रभु जानउ।।


     छन भर मा मन सीतल भवई।


     काम-क्रोध-मद-भरा जे रहई।।


भाव तोर जद्यपि कपि नीका।


मोंहि सिखावहु यहि नहिं ठीका।।


    अब जनु काल तोर नियराने।


     तेहिं तें रिपु तुम्ह मोर बखाने।।


मोंहि न भरम भरम तुमहीं को।


कियो भ्रमित तुम्ह हम सबहीं को।।


    कह रावन मारउ कपि यहि छन।


    सचिव सहित तब पहुँचि बिभीषन।।


सिर नवाइ कह सुनु लंकेसा।


दूत होय बाहक संदेसा।।


     बधे दूत जग होत हँसाई।


     नीति कहइ कि दोषु नृप पाई।।


दोहा-सुनि अस बचन बिभीषनै, नीति-रीति कै बात।


         बिहँसि कहा लंकेस तब,भेजु भंजि कपि-गात।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


राजेंद्र रायपुरी

 तभी हों पूरे सपने 


 


अपने दम पर वो लड़ा, 


                  देखो पहली बार।


नाको चने चबा दिया, 


                  भले गया वो हार।


भले गया वो हार, 


             दिखाया उसने दम है।


राजनितिक चाणक्य, 


             नहीं वो कोई कम है।


दिया यही संदेश, 


                   तभी हों पूरे सपने।


नहीं किसी के और,


            बढ़ो जब दम पर अपने।


 


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

*सृष्टि जनक चमत्कारिक*


*ढाई अक्षर।।हाइकु।।*


1


ढाई अक्षर


जन्म मृत्यु अंत है


सत्य अक्षर


2


ढाई अक्षर


आस्था आशा विश्वास


जीत अक्षर


3


ढाई अक्षर


तुरुप इक्का बने


वक्त अक्षर


4


ढाई अक्षर


मित्र शत्रु बनते


ये अवसर


5


ढाई अक्षर


घृणा द्वेष कुकर्म


क्लेश अक्षर


6


ढाई अक्षर


तंत्र मंत्र यंत्र हैं


कर्म अक्षर


7


ढाई अक्षर


स्नेह श्रद्धा प्यार हैं


प्रेम अक्षर


8


ढाई अक्षर


रोली टीका चंदन


पूज्य अक्षत


9


ढाई अक्षर


रहस्य से पूर्ण हैं


भाग्य अक्षर


10


ढाई अक्षर


निस्वार्थ भाव नहीं


स्वार्थ अक्षर


11


शुभ अक्षर


कर्म होता महान


लाभ अक्षर


12


ढाई अक्षर


भक्ति से शक्ति मिले


मन्त्र अक्षर


13


ढाई अक्षर


घृणा हटाओ कहें


प्रेम अक्षर


14


ढाई अक्षर


अर्थी से जायें सभी


अस्थि अक्षर


15


ढाई अक्षर


जीवन मिथ्या नहीं


सत्य अक्षर


16


ढाई अक्षर


श्वास जीवन प्राण


प्रभु अक्षर


17


ढाई अक्षर


अधिक धन बल


मिथ्या अक्षर


*रचयिता।।एस के कपूर" श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब 9897071046


                     8218685464


डॉ० रामबली मिश्र

संभाषण


 


मधुर वचन कह मोहित करना।


सबको अपने वश में रखना।।


 


कर सबसे संवाद प्रेम से।


विनय भाव से सबसे मिलना।।


 


हाल-चाल हो हर प्राणी से ।


खोज-खबर नित लेते चलना।।


 


हर मानव से प्रिय रिश्ता हो।


मधु वाणी में बातें करना।।


 


स्व से पर की ओर निकल पड़।


पर को गले लगाते रहना।।


 


भेदभाव सब अब समाप्त हो।


भेद दृष्टि को पाप समझना।।


 


अपना पेट सभी भरते हैं।


भूखों को भी देते रहना।।


 


आदर अरु सत्कार मुख्य हैं।


अतिथि भाव सबके प्रति रखना।।


 


दिल को जीत बैठ सिंहासन।


सबके उर में सहज उतरना।।


 


नहीं किसी को छोटा समझो।


अपने छोटा बनकर रहना।।


 


यह संसार एक मानव है।


सब को एक समझते रहना।।


 


भेद करो मत नर- नारी में।


सब को ईश्वर रूप समझना।।


 


सभी प्यार के काबिल जग में।


सब को प्रेम सिखाते रहना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

इच्छाये


 


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


हे प्रभु चिंतन हो सदा,इस मन में तेरा


चरणों में तेरे निरंतर ध्यान चाहिए


चाहे दुःख में रंहू,चाहे सुख में रंहु


होठों पर सदा तेरा ही नाम चाहिए


इस कलियुग ने,सांसारिक वासनाओं में


व्यर्थ की कल्पनाओं में


जग की सब तृष्णाओ में


संतुष्टि का स्वप्न दिखा रहा है


मुझे तो सत्संग का,सुबह शाम चाहिए


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


मानव देह धारण किया हूं


कष्ट भी कितने उठा रहा हूं


हंस के प्रेम की बोली से


दुःख सबके मिटा संकू


ऐसा ही तेरा आशीर्वाद चाहिए


हो जाऊ मैं तुझमें ऐसी मगन


ना डोला सके तेरी माया,करू ऐसा यतन


ध्यान तेरा प्रभु मै धरता रहूं


मन सदा ही तेरा अनुरागी रहे


जगत दूषण नहीं,भूषण हो मेरा


न कोई बैरी दिखे,सब अपना हो मेरा


ऐसा ही तेरा आशीर्वाद चाहिए


ज्यादा कुछ नहीं जिंदगी में


बस खुशनुमा शाम चाहिए


जब मैं सोकर उठू तो मुझे


अपनों का मंगल प्रभात चाहिए


नूतन लाल साहू


आचार्य गोपाल जी

भानु भए उद्धत उगने को,


चहु ओर उषा की अरुणाई ।


नव-नव पुष्प पसरे धरा पर,


प्रभा नूतन आनन्द है लाई ।


मंगल बेला देखो है आई,


विहग बजा रहे शहनाई ।


सब ओर मचने लगा शोर,


हो रही है निशा की विदाई।


गीत गाएं सब सदा प्रेम के,


ईश रहे सब पर सदा सहाई।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


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