विनय साग़र जायसवाल 

🌹ग़ज़ल--


 


तीरगी का गुमां मिटाना है


ऐसे दीपावली मनाना है


 


जिससे सारा जहान हो रौशन


हम को माहौल वो बनाना है


 


ऐसे जज़्बात रख बशर दिल में


सारी दुनिया को जगमगाना है


 


सोच में इतना ढालिए साहिब


अपना घर ही ये सब ज़माना है


 


फिर तो आने लगेंगे सब पीछे


आपको बस क़दम बढ़ाना है


 


सोच लो आज यह सभी दिल में


दौर इंसानियत का लाना है 


 


दौर ऐसा है यह मेरे *साग़र*


नेकियाँ कर के भूल जाना है


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल 


बरेली


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

अब तू बेटी


करो नहीं अंतर कभी,बेटा-बेटी एक।


कभी बहन,बूआ कभी,रखती माँ-हिय नेक।।


 


कला-गीत-संगीत सँग,है शिक्षा की शान।


रक्षा-सेवा-क्षेत्र में,रखे देश का मान ।।


 


इसी भाव को ले सभी,मिलकर करो गुहार।


आ अब तू बेटी यहाँ, तेरा है सत्कार ।।


 


दोनों कुल की रक्षिका,सास-ससुर,पितु-मात।


कुल-मर्यादा हेतु वह,सहे भी वज्राघात ।।


 


इसी सदी इक्कीस ने,लाया है बदलाव।


सक्षम बन कर बेटियाँ,अपना करें बचाव।।


 


आओ बेटी अब यहाँ, करो अवनि पर वास।


बनो शासिका विश्व की,मन में भरे हुलास।।


 


तू जननी है जीव की,तुझसे जग-विस्तार।


सभी प्राणियों का तुम्हीं,एकमात्र आधार।।


          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               991944 63 72


गोवर्धन पूजा 2020

आप सभी को पर भगवान योगीराज कृष्ण की कदम कदम पर सहायता मिले।।


 


इंद्र के कोप से गोकुल को बचाने वाले।


अपने नाखून पे गिरिराज उठाने वाले।


भोर दीपावली का अन्नकूट पूजा है,


कृष्ण गोपाल की जय लाज बचाने वाले।।


आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


चित्र गूगल से साभार डाउनलोड किया हुआ 


आचार्य गोपाल जी

आओ मधुर दीपावली मनाएँ 


 


जगमग-जगमग ज्योत जले


हर हिय में प्रेम के दीप जले 


सुमन सदृश हर शक्ल खिले


हम ऐसे ही दिल दीप जलाएँ 


आओ मधुर दीपावली मनाएँ।


 


हर नफरत की दीवार गिरे,


हो प्रेम चिराग चहुँ ओर जले,


औ अंधकार अंतः पुर की मिटे


मिलकर ऐसी ही ज्योति जलाएँ


आओ मधुर दीपावली मनाएँ ।


 


निर्मल नित्य चित्त रहे हमारा,


भारत चमके बनके सितारा,


ज्ञान ज्योति जगमग जग सारा


गीता ज्ञान दीप दिल से जलाएँ


आओ मधुर दीपावली मनाएँ ।


 


सब सद्विवेक से संयुक्त रहें,


भेद-भाव भरम से दूर रहें,


समरसता हर दिल में बहे,


बाग प्रेम पुष्प की आज लगाएँ,


आओ मधुर दीपावली मनाएँ ।


 


जन-जन में है असंतोष फैला,


जिसने किया इस जग को मैला,


स्वयं को ही ससमय समझाएं,


गीत खुशी के सब मिलके गाएँ,


आओ मधुर दीपावली मनाएँ ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17


चलत-चलत तहँ कपि-गरजन तें।


भयउ निपात सिसुन्ह गरभनतें।।


     सिंधु-पार अति लाघव कीन्हा।


      किलकिलाइ हरषित करि दीन्हा।।


सभ कपि मिलि हनुमान सराहहिं।


लागहि पुनर जनम ते पावहिं ।।


    लखि हनु प्रमुदित सकल समाजा।


    समुझि गए भे प्रभु कै काजा ।।


हरषित सभ सुनि कथा-कहानी।


प्यासा मुदित पाइ जनु पानी।।


    अंगदादि सुनि सभ हरषाने।


     प्रभु कहँ सभ जब चले बताने।।


जाइ बिपिन सभ बहु फल खावा।


आयसु जब अंगद कर पावा।।


    रोकहिं तिन्ह तहँ जब रखवारे।


    मुष्टि मारि कर तिनहिं पछारे।।


अंगद नासि बागु सुनु राजा।


आवा इहँ लइ सकल समाजा।।


      सुनि रखवार-सोर कपि-राजा।


       गवा समुझि भे प्रभु कै काजा।


कोउ नहिं खाइ सकत फल मोरा।


बिनु सिय-सुधि लाए कोउ छोरा।।


     अस सुग्रीव मनहिं महँ लावा।


      हरषित कपिन्ह मिलन तहँ धावा।।


कुसलइ-छेमु पूछि तब जाना।


प्रभु कै काजु कीन्ह हनुमाना।।


    हरषित भइ सभ प्रभु पहँ गयऊ।


    नाचत-कूदत-उछरत रहऊ ।।


फटिक-सिला पे अनुज समेता।


बैठि रहे प्रभु कृपा-निकेता।।


     धाइ चरन कपि प्रभु कै धरहीं।


      मान-भाव प्रभु सभकर करहीं।।


पूछे कुसल-छेमु रघुनाथा।


छुइ-छुइ कपिन्ह देह अरु माथा।।


दोहा-लइ असीष प्रभु कै सभें,पुलकित भे मन-गात।


        प्रभु-दरसन केतनहुँ मिलै,हिय-मन-चित न आघात।।


                           डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                            9919446372


कबीर ऋषि सिद्धार्थी

जगमग- जगमग ज्योति जले, हर- घर हो त्यौहार


पूरा भारत एक रंग रंगा हो, खुश हो सकल संसार


अम्मा- बाऊजी और बड़ों का, हो शुभ आशीर्वाद


हर दीपोत्सव लक्ष्मी जी पधारें, आपके घर- द्वार।


-कबीर ऋषि सिद्धार्थी


नूतन लाल साहू

दिवाली


 


प्रकाश का त्यौहार है दिवाली


खुशी खुशी मना लेना


एक दिया उन शरहद के


दिवानों के नाम का भी जला लेना


सुख के सपनों के साथ


हजारों दुःख जो झेल रहे हैं


हंसी खुशी में भीगे दिवाली


जो अब तक कभी न देखे है


एक दिया उन शरहद के


दिवानों के नाम भी जला लेना


किया काम ऐसा कि हलचल मचा दी


मेरा देश जहन्नुम थी,जन्नत बना दी


जिसने सारा जीवन काट रहा है


दुश्मनों के शरहद पे


एक दिया उन शरहद के


दिवानों के नाम भी जला लेना


मत भुलो उस पल को तुम


सीमा पर वीरों ने प्राण गंवाये है


जो शहीद हुए हैं शरहद पर


जरा याद करो कुरबानी


एक दिया उन शरहद के


दिवानों के नाम भी जला लेना


तुम भुल न जाओ उनको


इसीलिए कही यह कहानी


खुश रहना देश के प्यारों


आज है प्रकाश का पर्व दिवाली


शरहद पर मरने वाला भी


हर वीर था भारतवासी


प्रकाश का पर्व है दिवाली


खुशी खुशी मना लेना


एक दिया उन शरहद के


दिवानों के नाम का भी जला लेना


नूतन लाल साहू


विनय साग़र जायसवाल

🌹दीपावली की शुभकामनाओं के साथ🌹


ग़ज़ल ---


 


चराग़ दिल के जलाकर मनाओ दीवाली


हमें भी साथ बिठाकर मनाओ दीवाली


 


खिलेगी प्यार की बगिया इसी बहाने से 


पड़ोसियों को खिलाकर मनाओ दीवाली


 


अवध में लौट के आये हैं राम सीता लखन


ख़ुशी के गीत सुनाकर मनाओ दीवाली


 


हमारे माता पिता ने यही सिखाया है 


दिलों में प्यार सजाकर मनाओ दीवाली


 


बनेगी कचरी या पापड़ के साथ गुजिया भी


कि इनमें प्रेम मिलाकर मनाओ दीवाली 


 


सजाओ ऐसे चरागाँ तो कोई बात बने 


ग़रीब की भी मनाकर मनाओ दीवाली


 


हरेक फूल सा चेहरा खिलेगा तब *साग़र*


जो नफ़रतों को भुलाकर मनाओ दीवाली 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


7/11/2020


एस के कपूर श्री हंस

*दीपावली।।रोशनी का पर्व*


*।।मुक्तक माला।।*


1


दीपावली का पर्व मानों


जैसे कि दीपों का बाजार है।


उमंगों की लौ में सजा 


आज हर कोना गुलज़ार है।।


ज्योति पर्व की रोशनी और


लक्ष्मी गणेश का पूजन।


अमावस्या के अन्धकार को


मिटाने का यह त्यौहार है।।


2


दीवाली की रात लाखों नई


उम्मीदें जगाती है।


हमारी ऊर्जा और चमक को


कई गुना और बढ़ाती है।।


हर दर और हर कोना 


हो जाता है रोशन।


अपनों को अपनों के ही 


और करीब ले आती है।।


3


हर इक कोना गुलज़ार हो


हर जगह हो बस चमकती।


पटाखों के शोर में भी मिलन


की आवाज़ हो धमकती।।


लक्ष्मी गणेश का पूजन लाये


नयी खुशियों की सौगात।


हर चेहरे पर खिल जाये


रोशनी नई सी दमकती।।


4


इस दिवाली कोई प्रेम का


दिया नया सा जल जाये।


प्यार की ऐसी धारा बहे कि  


किनारे नफरत लग जाये।।


अमन चैन सुख शान्ति की


इक दुनिया यह जाये बन। 


रोशनी के साथ ही महोब्बत का


दिया हर दिल में जग जाये।।


5


हर कदम पर मिले कीर्ति


हर पग पर सम्मान मिले।


हर क्षण हर पल आपका हो


बरसों तक पहचान मिले।।


सदैव अमिट रहे हर दिल


में हमेशा याद तुम्हारे नाम की।     


यही कामना कि इस दिवाली


सबको ऐसा ही यशोगान मिले।।


एस के कपूर "श्री हंस"।।*


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे (प्रकाश-पर्व दीपावली)


दीप दिवाली जब जलें, चहुँ-दिशि होय प्रकाश।


देख दीप हर्षित सभी,प्राणी महि-आकाश।।


 


ज्योति जले जगमग जगत,हिय में भरे उजास।


पा उजास मन मनुज को,मिलता सदा हुलास।।


 


दीप-उजाला ही करे,अंतरमन उजियार।


अंतरमन उजियार से,भगे कलुष-अँधियार।।


 


लगे रौशनी में रुचिर,दिव्य नहाई रात।


रात अमावस-दिव्यता,निरख न चित्त अघात।।


 


लक्ष्मी-पूजन पर्व यह,करता है कल्याण।


हरें मूढ़ता दीप जल,कहते वेद-पुराण ।।


 


इस प्रकाश के पर्व पर,रंक-फकीर-महीप।


माटी का दीया लिए,करें प्रज्वलित दीप।।


 


मिटे तिमिर अज्ञान का,होते दीप-प्रकाश।


दीवाली हर्षित करे,मन जो रहे निराश ।।


             © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                 99194463 72


राजेंद्र रायपुरी

आज दिवाली आई है


 


जगमग-जगमग दीप जले हैं,


                रौशन घर ॲ॑गनाई है।


बहुत दिनों से इंतजार था,


               आज दिवाली आई है।


 


छोटे-बड़े सभी खुश दिखते,


               घटा खुशी की छाई है।


बहुत दिनों से इंतजार था। 


               आज दिवाली आई है।


 


घर-घर पूजन धनलक्ष्मी की,


                     आज हुई है भाई। 


हे माता तुम यहीं विराजो, 


                    सबने अर्ज़ लगाई।


 


फोड़ फटाके बाॅ॑ट रहे हैं,


                    देखो लोग मिठाई।


हाथ जोड़कर शुभ दीवाली,


                   कहते सबको भाई।


 


बच्चों ने तो धमाचौकड़ी,


                  देखो खूब मचाई है। 


बहुत दिनों से इंतजार था,


               आज दिवाली आई है।


 


टॉफी ही मन उनके भाए,


                    भाए नहीं मिठाई।


उछल-कूद कर टाॅफी खाते,


                     छूते नहीं मिठाई।


 


आज खुशी के दिन पर भैया,


                  बच्चों की बन आई।


फोड़े बम कुछ ने तो कुछ ने,


                   चकरी खूब चलाई।


 


सरिता -सुषमा ने रंगोली,


                   द्वारे खूब सजाई है।


बहुत दिनों से इंतजार था,


               आज दिवाली आई है।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ० रामबली मिश्र

चलो आज हम दीप जलाएँ


 


चलो आज हम दीप जलाएँ।


मन-उर में नित खुशी मनाएँ।।


 


दीप जले रोशन छा जाए।


दिव्य भाव मन में आ जाए ।।


 


दीपों की मालाएँ मिलकर।


रचें जगत सुंदर दीपक घर।।


 


ज्ञान दीप का नित आवन हो।


मन उजास दिल में सावन हो।।


 


भव्य लगे पृथ्वी दीपालय।


घर-घर स्थापित होय शिवालय।।


 


दिल-दीपक में भाव -तेल हो।


मन-बाती का सुखद मेल हो।।


 


अंतस बन जाये देवालय।


भीतर-बाहर हो विद्यालय।।


 


आओ मिल-जुल दीप जलाएँ।


शुभ प्रकाश का पर्व मनाएँ।।


 


छटे तिमिर-घन गुरु दर्शन हो।


ज्ञान-मान का सह-स्पर्शन हो।।


 


आओ प्यारे दीप जलाओ।


कदम-कदम पर पर्व मनाओ।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 बने दीप मुस्कान


 


दीप जले सुख सम्पदा , बने दीप मुस्कान।


जले दीप भारत चमन , जले दीप बलिदान।।१।।


 


जले दीप परमार्थ का , जले दीप गणतंत्र।


संविधान दीपक जले , संघ शक्ति हो मंत्र।।२।।


 


सज दीपों की आवली , ज्योतिर्मय संसार।


प्रेम त्याग सत् न्याय पथ , मानवता उपहार।।३।।


 


भेद भाव छल घृणा मन ,लोभ शोक सब मोह।


जले दीप सब पाप जग, अरुण प्रीत आरोह।।४।।


 


बनूँ मीत का गीत मैं , बाँटू मुख मुस्कान।


सुख दुख में नवदीप बन , धरूँ रूप इन्सान।।५।।


 


तरसी जो वर्जर धरा , बरसूँ बन घनश्याम।


शस्य ऊर्वरित खुशनुमा , हो जीवन अभिराम।।६


 


लघु जीवन हो तब सफल, परहित हो उपयोग।


सुख वैभव निज गात्र सब, धरा रहे सब भोग।।७।।


 


दीप जले सहयोग का , मन वसुधा परिवार।


न्याय दीप सब जन सुलभ, समता हो आधार।।८।।


 


महाविजय माँ भारती ,जले शौर्य का दीप।


बने तिरंगा अल्पना , सेवा वतन महीप।।९।।


 


जले शान्ति की दीपिका, हरित भरित भूधाम।


कवि निकुंज शुभकामना, बोलें जय श्रीराम।।१०।।


 


अंधेरा जग का मिटे , जले दीप सम्मान।  


सत्य नेह आलोक से , जगमग हो अवदान।।११।। 


 


पर्व विजय दीपावली , जले ज्योति अविराम।


सद्भावन निर्मल प्रकृति , बने लोक सुखधाम।।१२।।


 


दीपोत्सव की ज्योति जग , फैले नैतिक मूल्य।


बाँटे खुशियाँ मुदित मन,जीवन मनुज अतुल्य।।१३।।


 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*गर हौंसला सच्चा हो तो*


*जान लो जीत पक्की है।।*


 


मुक़द्दर मेहनत से बनता,


कोई ख्वाब नहीं है।


जान लो कि बिना कर्म के,


कोई कामयाब नहीं है।।


किस्मत उंगलियों को,


खूब पहचानती हैं।


मेहनत वो कर सकती जिस,


का कोई हिसाब नहीं है।।


 


वक़्त हँसाता और वक़्त ही,


रुलाता भी है।


वक़्त ही हमको बहुत कुछ,


सिखाता भी है।।


जो जानता वक़्त की कीमत,


वही पाता है मंज़िल।


वरना नहीं कभी वो सफल, 


हो पाता भी है।।


 


आँखों में चमक और चेहरे,


पर हमेशा नूर रखो।


अपने भीतर आत्म विश्वास,


तुम जरूर रखो।।


चेहरे पर मत आने दो कभी,


तुम हार की शिकन।


जीत पक्की है तुम्हारी बस,


हताशा तुम दूर रखो।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।।। 9897071046


                      8218685464


 


 


*रचना शीर्षक।।*


*गर हौंसला सच्चा हो तो*


*जान लो जीत पक्की है।।*


 


मुक़द्दर मेहनत से बनता,


कोई ख्वाब नहीं है।


जान लो कि बिना कर्म के,


कोई कामयाब नहीं है।।


किस्मत उंगलियों को,


खूब पहचानती हैं।


मेहनत वो कर सकती जिस,


का कोई हिसाब नहीं है।।


 


वक़्त हँसाता और वक़्त ही,


रुलाता भी है।


वक़्त ही हमको बहुत कुछ,


सिखाता भी है।।


जो जानता वक़्त की कीमत,


वही पाता है मंज़िल।


वरना नहीं कभी वो सफल, 


हो पाता भी है।।


 


आँखों में चमक और चेहरे,


पर हमेशा नूर रखो।


अपने भीतर आत्म विश्वास,


तुम जरूर रखो।।


चेहरे पर मत आने दो कभी,


तुम हार की शिकन।


जीत पक्की है तुम्हारी बस,


हताशा तुम दूर रखो।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।।। 9897071046


                      8218685464


विनय साग़र जायसवाल

दोहे --


हर नफ़रत को भूल कर ,बाँटो जग में प्यार ।


तुम भी सुख से जी सको ,सुखी रहे परिवार।।


 


जला रही संसार को ,नफ़रत की बारूद ।


बारिश कर दे प्यार की ,ओ मेरे माबूद।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


माबूद-देवता ,भगवान (पूज्नीय)


आचार्य गोपाल जी

🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


 


सुमिरन शंकर सुवन की, प्रात करो करजोर ।


सिद्धि करेंगे गणनायक, गौरी नंदन चितचोर ।


मोदक मन भावे उन्हें, मन से करो मनुहार ।


कष्ट हरेंगे कृपानिधि, होगा तब तेरा उद्धार ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला वाले


रश्मि लता मिश्रा

गणपति भज ले, आ जा।


जगमग कलशा,साजा।


घर-घर कमला,आयें।


जन -जन धन्य हो ,जायें।


 


चुन-चुन फुलवा ,डाली।


गुथ-गुथ गजरा ,काली।


करधन लड़ियाँ, लागी।


चम-चम बिंदिया साजी।


 


अब फुलझड़ियाँ, लाई।


सुन विनय करूँ, माई।


जगमग बने ,दीवाली।


नच-नच सब ,दें ताली।


 


लख-लख खुशियाँ ,आयें।


सकल जगत में,छायें।


अब धड़कन ये,गाये।


सब उलझन है,जाये।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


डॉ०रामबली मिश्र

*साथ चलते रहो*


 


साथ चलते रहो बात करते रहो।


गुनगुनाते रहो गीत गाते रहो।।


 


हम चलें इस कदर सारी दुनिया लखे।


हाथ में हाथ डाले मचलते रहो।।


 


है पुरानी ये दोस्ती इसी चाल में।


हाथ में कटि लिये प्रिय फिसलते रहो।।


 


चूमकर बाजुओं को नमन हो सदा।


हार बनकर गले का चमकते रहो।।


 


चुंबनों से सकल देह का स्नान हो।


देह मर्दन सहज नित्य करते रहो।।


 


पूर्ण सेवा का व्रत ले चलो रात--दिन।


पूर्णकालिक मिलन नित्य करते रहो।


 


आदि से अंत तक देह से आत्म तक।


राह चलते रहो प्रेम करते रहो।।


 


प्रेम का साथ छोड़ो कभी भी नहीं।


मुँह में मुँह डाल दिलवर से मिलते रहो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल


मात्रा भार-16


इस भारत भू पर आस जगा,


अपना इसपर विश्वास जगा।।


 


मातृ-भूमि की सेवा के प्रति,


मन में अपने उल्लास जगा।।


 


त्याग और बलिदान लक्ष्य हो,


भोग के भाव न विलास जगा।।


 


जिनमें नहीं भला की भावना,


भाव-शून्य मन उदास जगा।।


 


शिक्षा-दीक्षा जहाँ अधूरी,


जा,शिक्षा-क्रांति-विकास जगा।।


 


असहायों की कर सहायता,


जला आस-दीप हुलास जगा।।


 


मानवता ही धर्म एक है,


जन में ऐसा आभास जगा।।


       © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16


पूँछ बुझाइ धारि लघु रूपा।


गया निकट पुनि सीय अनूपा।


    कर जोरे कपि बिनती कीन्हा।


     मातु देउ कोउ आपनु चीन्हा।।


चूड़ामनि उतारि तब सीता।


दीन्हीं कपिहिं बिनू भयभीता।


    जाइ कहेउ प्रभु मोर प्रनामा।


    निसि-बासर सुमिरहुँ प्रभु-नामा।


जे सुमिरै प्रभु बिनु छल-संसय।


ताहिं मिलैं प्रभु जग मा निस्चय।।


    दीन दयालू अंतरजामी।


    पुरवहिं इच्छा सभकर स्वामी।।


जाइ कहहु तुम्ह जे कछु देखा।


निज करतब जे कीन्ह बिसेखा।।


     प्रभुहिं कहेउ जयंत कर गाथा।


     प्रभु-सर-तेज नाइ निज माथा।।


जदि प्रभु मास एक नहिं अइहैं।


प्रानहिं मोर कबहुँ नहिं पइहैं।।


दोहा-बहु समुझाइ-बुझाइ सिय,छूइ चरन हनुमान।


        धीरजु ताहि धराइ के,कीन्हा तुरत पयान।।


                       डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


राजेंद्र रायपुरी

🪔🪔 दीप-दिवाली 🪔🪔


 


आवन को हैं राम दुलारे।


नर - नारी उत्सुक हैं सारे।


सजी अयोध्या दुल्हन जैसी।


दीप जले हैं द्वारे - द्वारे।


 


कार्तिक मास अमावस को ही,


वन से लौटे थे रघुराई।


सहित जानकी और अनुज निज़,


कहते जिनको लछिमन भाई।


 


स्वागत में तब उनके घर- घर अवधपुरी में दीप जले थे।


बाॅ॑ट मिठाई अवध निवासी,


 इक दूजे से मिले गले। थे‌।


 


कहें इसे ही दीप - दिवाली।


 खुशियाॅ॑ मन में भरने वाली।


रौशन हो जाती है इस दिन, 


रात अमावस काली - काली।


 


आओ हम भी दीप जलाऍ॑।


 खुशी - खुशी त्यौहार मनाऍ॑।


बाॅ॑ट मिठाई इक - दूजे को, 


परंपरा जो उसे निभाऍ॑।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

वाह रे मन


 


कितना अजीब है मन


जब हम गलत होते हैं


तब हम समझौता चाहते हैं


परन्तु जब दुसरा गलत होता है


तब हम न्याय चाहते हैं


किसी गैर की तरक्की देखकर


मन अधीर हो जाता हैं


हम क्यों नहीं सोचते गंभीरता से


कि सबका अपना अपना


भाग्य लकीर होता है


कितना अजीब है मन


किसी गैर की फायदा पर जलते हैं


उन्हें नुकसान होने पर हंसते हैं


मन यह क्यों नहीं सोचता है कि


नियत ठीक नहीं होने पर


संबंध टूट सकता है


कितना अजीब है मन


मत कीजिए ऊपर से दोस्ती


न रखे भीतर,विष के ताज


दर्द पराया आजकल


समझ सका है कोय


यदि नहीं समझ पाया


विधि का अटल विधान तो


रह जाओ मौन


कितना अजीब है मन


एक सीमा तक प्रभु जी भी


कर लेता है बर्दास्त


अति सर्वत्र वर्जित हैं


जैसे चिड़िया उड़ती है आकाश में


पर दाना तो धरती पर ही होता है


कितना अजीब है मन


जब हम गलत होते हैं


तब हम समझौता चाहते हैं


परन्तु जब दुसरा गलत होता है


तब हम न्याय चाहते हैं


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-15


अहहि पूँछि बानर कै सोभा।


तासु नास बानर-मन-छोभा।।


     बाँधु पूँछि पट बोरि क तेला।


      आगि लगा पुनि देखउ खेला।।


पुच्छहीन बानर जब जाई।


तुरत तासु स्वामी इहँ आई।।


     देखब हमहुँ तासु महिमा अब।


     जासु बखान कीन्ह कपि अब-तब।।


सुनत योजना हनु मुस्काए।


कृपा सारदा माँ जनु पाए।।


    जित-जित बस्त्र लपेटहिं ताहीं।


    उत-उत पूँछहिं कपी बढ़ाहीं।।


बसन-तेल नहिं बचा नगर महँ।


लखत रहे निसिचर बहु जहँ-तहँ।


     ढोल बजावत पीटत तारी।


    लखत रहे सभ बारी-बारी।।


लागत आगि तुरत हनुमाना।


जरत पूँछ लइ किए पयाना।।न


    अति लघु रूप धारि हनुमंता।


     उछरैं-कूदैं भजि भगवंता।।


मारुत-बेग भयो तब प्रबला।


जनु उनचास पवन बह सबला।।


     कंचन-भवन लपकि कपि चढ़िगे।


     बाल-बृद्ध-नारी सभ डरिगे।।


भभकि-भभकि इक-इक घर जरई।


तांडव-नृत्य अनल जनु करई।।


    भागहिं इत-उत सबहिं निसाचर।


    चीखहिं कहि बचाउ माँ आकर।।


होय न सकत ई बानर कोऊ।


बानर-रूप देव कोउ होऊ।।


     निमिष एक मा लंका जरई।


     सुर-अपमान क ई फल भवई।


दोहा-छाँड़ि बिभीषन गृहहि तहँ,सभ भे भस्मीभूत।


         उलट-पुलट करि लंक कपि,कुदा सिंधु प्रभु-दूत।।


                      डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


नूतन लाल साहू

मुस्कुराहट


 


जिंदगी में समस्या तो


हर दिन नई खड़ी हो जाती है


जीत जाते हैं वे लोग जिनकी


सोच कुछ बड़ी होती हैं


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


प्रभु जी रक्खे जिस हाल में


उसे ही अपनी मुकद्दर मान


क्यों लेते हो प्रभु जी से


जानबूझकर तू पंगा


कर्म करो आत्मविश्वास से


फल की आशा से नहीं


कर्म का फल अवश्य ही मिलेगा


तू क्यों घबराता है


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


जाको राखे साइयां


मार सके न कोय


बाल न बांका कर सके


जो जग बैरी होय


सरस्वती मां को करे


बारम्बार प्रणाम


कट जाये,तन मन की


युग युग का अंधियार


हर इच्छा इंसान की


पूरी कभी नहीं होता है


जिंदगी में समस्या तो


हर दिन नई खड़ी हो जाती हैं


जीत जाते हैं वे लोग जिनकी


सोच कुछ बड़ी होती हैं


आओ आज मुश्किलों को


हम हराते है


चलो आज दिन भर मुस्कुराते हैं


नूतन लाल साहू


आचार्य गोपाल जी

ध्यान धरके श्री गणेश का,


मां शारदे को शीश नवाता हूं ।


पितरौ के चरणों का बंदन कर,


अर्चन अग्रज का तब करता हूं ।


ईश इच्छित प्रदान करें सबको,


सात्विक श्रद्धा से कामना करता हूं ।


आशाएं अनुजों की सब पूरित हो,


सुप्रभात में यही अभिलाषा करता हूं ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


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