बने दीप मुस्कान
दीप जले सुख सम्पदा , बने दीप मुस्कान।
जले दीप भारत चमन , जले दीप बलिदान।।१।।
जले दीप परमार्थ का , जले दीप गणतंत्र।
संविधान दीपक जले , संघ शक्ति हो मंत्र।।२।।
सज दीपों की आवली , ज्योतिर्मय संसार।
प्रेम त्याग सत् न्याय पथ , मानवता उपहार।।३।।
भेद भाव छल घृणा मन ,लोभ शोक सब मोह।
जले दीप सब पाप जग, अरुण प्रीत आरोह।।४।।
बनूँ मीत का गीत मैं , बाँटू मुख मुस्कान।
सुख दुख में नवदीप बन , धरूँ रूप इन्सान।।५।।
तरसी जो वर्जर धरा , बरसूँ बन घनश्याम।
शस्य ऊर्वरित खुशनुमा , हो जीवन अभिराम।।६
लघु जीवन हो तब सफल, परहित हो उपयोग।
सुख वैभव निज गात्र सब, धरा रहे सब भोग।।७।।
दीप जले सहयोग का , मन वसुधा परिवार।
न्याय दीप सब जन सुलभ, समता हो आधार।।८।।
महाविजय माँ भारती ,जले शौर्य का दीप।
बने तिरंगा अल्पना , सेवा वतन महीप।।९।।
जले शान्ति की दीपिका, हरित भरित भूधाम।
कवि निकुंज शुभकामना, बोलें जय श्रीराम।।१०।।
अंधेरा जग का मिटे , जले दीप सम्मान।
सत्य नेह आलोक से , जगमग हो अवदान।।११।।
पर्व विजय दीपावली , जले ज्योति अविराम।
सद्भावन निर्मल प्रकृति , बने लोक सुखधाम।।१२।।
दीपोत्सव की ज्योति जग , फैले नैतिक मूल्य।
बाँटे खुशियाँ मुदित मन,जीवन मनुज अतुल्य।।१३।।
कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली