दयानन्द त्रिपाठी दया

अंतर्राष्ट्रीय_पुरूष_दिवस_की_हार्दिक_शुभकामनाएं.....


 


कर्तव्यों की दृढ़ता से, संघर्ष सदा ही करता है।


दायित्वों को पूरा करने को, कष्टों को भी सहता है।।


 


त्यागतत्व को लिये सदा, अपनों की इच्छा पूरा करता है।


अपनी इच्छाओं का दमन कर, हर पल हंसता रहता है।।


 


मातृभूमि के लिए सदा, सबकुछ न्यौछावर करता है।


देश-धर्म कर्तव्य-कर्म की, बलिवेदी पर चढ़ता है।।


 


निरपेक्ष भाव से परिजन का, दु:ख हर लेने को फिरता है।


प्राप्त्याशा को छोड़ सदा, सब देने को तत्पर रहता है।।


 


मन मनसा को मार सदा, विलक्षण लिये फिरता है।


संतति में सहभागिता से, वंश बढ़ाया करता है।।


 


गुण और दोष के समन्वय को ले, हंस सरस सा बनता है।


घुट-घुट कर भी पुरूष सदा, जीवन पथ पर चलता है।।


 


दया कहे हे! जग वालों, नर का भी नारी सा सम्मान करो।


एक दूसरे के पूरक हैं, शाश्वत सम्प्रभुता का गुणगान करो।।



दयानन्द_त्रिपाठी_दया


डॉ0निर्मला शर्मा

भाई बहन का प्यार


भाई बहन का प्यार


नटखट सा वह अनुराग


बचपन की सुंदर यादों मैं


बसा है वह संसार


रूठना- मनाना,


 खेलना- कूदना


छीनना- झपटना 


और संग लड़ना


किताबों से होती थी


 तेरी मेरी वो यारी


पढ़ते थे जब संग 


भूल जाते दुनिया सारी


यादों मैं अब भी


समाहित है बातें


ममता का आँचल


वो चूल्हे की रोटी


पंचामृत सी लगती थी


बाजरे की रोटी


घर का आँगन


बना था गुलज़ार


गूँजती थी किलकारियाँ


तो आती थी बहार


भाई मेरा प्यारा


हृदय का दुलारा


जीवन के कालखण्ड का


सुखद अहसास प्यारा


बन्धन बहन भाई का


पवित्र सबसे न्यारा


लगाऊँ मैं टीका


करूँ तेरा स्वागत


भाई दूज के दिन


मिली अनुपम सौगात


व्यस्त जीवन से


समय निकाल


भाई आया चलकर


अपनी बहन के द्वार


बना रहे हमेशा


ये भाई बहन का प्यार


संसार में बड़ा ही निराला है


ये भाई बहन का अनुराग


 


डॉ0निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-22


लंका महँ सभ रहहिं ससंकित।


करि सुधि कपि बहु होंहिं अचंभित।


    अस बलवान दूत अह जाकर।


     कइसन होई तेजहिं ताकर।।


अस सभ कहहिं जाइ क निसिचरी।


भरि जल नयन भवन मँदोदरी।।


      बिकल होइ मंदोदरि रानी।


      पति कै चरन धरी दोउ पानी।।


कही नाथ मानउ मम कहना।


उचित नहीं रामहिं सँग लड़ना।।


      जासु दूत सुधि करि इहँ नारी।


      श्रवहीँ गरभ जिनहिं ते धारी।।


तासु नारि जनु सक्ति-स्वरूपा।


बिनु बिलंबु तेहि भेजहु भूपा।।


     सीय करी बिनास कुल-बंसज।


      करहि सीत-ऋतु जस कुल पंकज।।


राम-बिरोध नाथ नहिं नीका।


ब्यर्थ लगहिं तुम्ह अपजस-टीका।।


     राम-बिरोध बिरोधय नीती।


     करहिं न कोऊ तव परतीती।।


नारि चोराइ कबहुँ नहिं जोधा।


कहलाए जग पुरुष-पुरोधा ।।


दोहा-सुनहु नाथ इह मम बचन,धारि हियहिं महँ ध्यान।


         लगहिं निसाचर दादुरइ, अहि समान प्रभु-बान।।


                               डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                                9919446372


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक वंदना 😊😊


 


वंदना तेरी करूॅ॑ प्रभु, 


           दीन पर कुछ ध्यान दे।


माॅ॑गता मैं धन न दौलत,


              हे दयानिधि ज्ञान दे।


ज्ञान दे प्रभु पा जिसे मैं,


              राह अपनी पा सकूॅ॑।


है नदी जीवन अगर तो,


              पार उसके जा सकूॅ॑।


 


दीनबंधू तू दयालु, 


                 दीन द्वारे है खड़ा।


है नहीं कोई सहारा,


                मैं शरण तेरी पड़ा।


जो विनय तुझसे किया है,


                  तू उसे संज्ञान ले।


और मागूॅ॑ कुछ नहीं प्रभु,


               तू मुझे बस ज्ञान दे।


 


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 निर्मला शर्मा

जय हनुमान


करूँ वन्दना दयानिधान


मंगलकारी श्री हनुमान


कलियुग का साया गहराया


अत्याचार ने पैर फैलाया


अन्यायी करे गर्व अभिमान


करो कृपा हे कृपानिधान


नाम तिहारा जपूँ गुँसाई


तुम्हरे बिन है कौन सहाई


सुख तो रवि किरणों सा बिखरे


दुख मन ही मन ले लूँ सगरे


पार मै पाऊँ इस जग मै प्रभु


बनो जो मेरे तारणहार


जय बजरंग बली महाराज


तारो मोहे बनाओ सब काज


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


नूतन लाल साहू

जो करना है आज कर


 


जीवन जो शेष है


बस वही विशेष है


जिसने सब को बदलने की कोशिश की


वो हार गया


जिसने खुद को बदल लिया


वो जीत गया


हिल उठे जिससे समुन्दर


उस बवंडर के झकोरे को


किस तरह इंसान रोके


अच्छा होगा गुनगुना लेे, दो पंक्तियां


वह करेगा धैर्य संचित


जीवन जो शेष है


बस वही विशेष है


विश्वास ही मनुष्य को


खींचता जाता हैं निरंतर


पंथ कटीला है,थकान भी है


मृत्यु प्रतीक्षा में खड़ा है


उत्साह वर्धक,मंगल और शकुन पथ


तुझे ही संवारना है


लक्ष्य पर अपने कर्म के सहारे


निरंतर आगे कदम बढ़ाना है


जीवन जो शेष है


बस वही विशेष है


इस कलियुग में उत्साह वर्धक शब्द


सत्संग में ही सुनेगा


पंथ जीवन का चुनौती


दे रहा है हर कदम पर


जो खूब भूला, जो खूब भटका


विश्व तो उस पर हंसेगा


जीवन जो शेष है


बस वही विशेष है


जिसने सबको बदलने की कोशिश की


वो हार गया


जिसने खुद को बदल लिया


वो जीत गया


नूतन लाल साहू


डॉ० रामबली मिश्र

*प्रथम प्रेम -पत्र*


 


लिखता हूँ तुझे यह खत, जीवन में पहली बार।


अरमान बहुत मन में, न्योछावर मन सौ बार।


नाराज न होना प्रिय, गलती को क्षमा करना।


नादान समझ कर के, प्रिय! माफ इसे करना।


बेकाबू यह मन-अश्व, है नहीं नियंत्रण में।


समझाना इसे कठिन, नहिं बुद्धि निरीक्षण में।


इस मन को पागल जान, इक बार तरस खाना।


दोबारा गलती पर, दण्डित करना मनमाना।


मत क्षमादान देना, नालायक पागल को।


समतलीकरण करना, इस बीहड़ जंगल को।


प्रियवर!स्वीकार करो, इस उरधि निवेदन को।


पढ़कर के देना फाड़,


इंकार न कर वंदन को।


पागल हाथी का मद, चूर अगर चाहो कर दो।


या जैसी चाहत हो, वैसा ही वर दो।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


आचार्य गोपाल जी

🌹🙏🌹सुप्रभात एवं संयत की शुभकामनाएं🌹🙏🌹


 


रवि षष्ठी व्रत है सबसे पावन पवित्र महान,


संयम संयत से रखें ,खरना खना एक शाम,


अर्घ्य अस्ताचल,उदयाचल दें प्रात: औ शाम,


तन निरोग मन पावन, पूरन होंगे सब काम ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

माँ


           *माँ*


देती है जन्म माँ ही,तुमको भी और हमको,


कर लो सफल ये जीवन,छू-छू के उस चरण को।।


 


सह-सह के लाख विपदा,माँ ने तुम्हे है पाला,


गीले में खुद को रख कर,पोषा है निज ललन को।।


 


त्रिदेव को सुलाया,पलने पे माँ की ममता,


सीता को माँ है माना,शत-शत नमन लखन को।।


 


माता विधायिका है,है रक्षिका व पालिका,


झुकता रहे ये मस्तक,उसके ही नित नमन को।।


 


निर्मित है होती संस्कृति,माँ के ही संस्कारों से,


उनपर करो ही अर्पण,नित प्रेम के सुमन को।।


 


माँ ही तो होती लक्ष्मी,दुर्गा-सरस्वती भी।


हो प्रेम-वारि अर्पित,जीवन के इस चमन को।।


 


चिंतन व धर्म-कर्म की,है केंद्र-बिंदु माँ ही,


होने न व्यर्थ देना,उस ज्ञान-कोष-धन को।


 


माता से श्रेष्ठ होता,कोई नहीं जगत में,


रखना सदा सुरक्षित,शिक्षा-प्रथम-सदन को।।


                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


 


 


चौपाइयाँ


मिल-जुल कर सब रहना भाई।


इसमें रहती सदा भलाई।।


 


सुख-दुख में सहभागी रहना।


मानव-जीवन का है गहना।।


 


जीवन को जिसने समझा है।


कभी नहीं भ्रम में उलझा है।।


 


मानवता ही धर्म एक है।


निर्बल-सेवा कर्म नेक है।।


 


बिन छल-कपट हृदय है जिसका।


हर जन प्रिय रहता है उसका ।।


 


होता है सम्मान उसी का।


करे न जो अपमान किसी का।।


 


सुंदर सोच सदा हितकारी।


देव तुल्य जग में उपकारी।।


       


हितकर कर्म नाम-यश देता।


कर्म आसुरी सब ले लेता ।।


 


प्रेम-धर्म है धर्म अनूठा।


करे मुदित जो हिय है रूठा।।


 


करें कर्म हम नैतिकता का।


छाँड़ि लोभ जग भौतिकता का।।


        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            9919446372


सुनीता असीम

देख के दुख औरों के मेरा तो डरता साया।


और महफ़िल जो दिखे फिर तो उछलता साया।


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तेज रफ्तार करोना की दिखी जो उसको।


फिर तो चलने में सड़क पे भी सहमता साया।


********


डोर रिश्तों की उलझती जा रही ऐसे है।


खुद के धागों में खुदी सिर्फ उलझता साया।


********


आस विश्वास है भगवान में उसको जादा।


फूल पूजा के सबेरे मेरा चुनता साया।


*********


हो गई उनकी दिवानी यूं सुनीता अब तो।


कृष्ण के पीछे सदा चलता है उसका साया।


*********


सुनीता असीम


डॉ० रामबली मिश्र

 आयु..


(दोहा)


 


आयु किसी की पूछ मत, यह नश्वर है देह।


क्षणभंगुर इस देह में, आतम का है गेह।।


 


घटती जाती आयु है, मरते जाते लोग।


सर सर सरकत जगत में, रोग-भोग का योग।।


 


जड़वत सारे जगत का, मत पूछो कुछ हाल।


जड़ रोता है रात-दिन, चेतन है खुशहाल।।


 


घटती प्रति पल आयु है, बढ़ती देह मशान।


देह भोगती कर रही, लगातार प्रस्थान।।


 


इसमें क्या है जानना, किसकी क्या है आयु?


आयु अवस्था देह की, संचालक है वायु  


 


प्राणवायु जब निकलती, दैहिक क्रिया समाप्त।


दैहिक अर्जित प्राप्त सब, हो जाते अप्राप्त।।


 


स्वयंसिद्ध सिद्धांत को, मानत नहीं जहान।


नहीं किसी को मृत्यु का, रहत कभी है भान ।।


 


डरता प्राणी मृत्यु से, फिर भी बेपरवाह।


जग जर्जर की अर्जना, हेतु सदा है चाह।।


 


वंदे!पूछो आयु मत,हर प्राणी अल्पायु।


यह खेला है पवन का, भीतर -बाहर वायु।।


 


भीतर से जब निकल कर, बाहर जाती वायु।


समझ इसी को देह की, अंतिमअसली आयु।।


 


भीतर आना जिंदगी, बाहर जाना मौत।


भीतर है तो माँ सदृश, बाहर है तो सौत।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


 


 


जागृत हो जा,


सत्कृत बन जा।


सबको ले जा।।


 


हृदय न तोड़ो,


सबको जोड़ो।


दिग्भ्रम छोड़ो।।


 


मसला हल कर,


एक समझकर।


आगे बढ़कर।।


 


आधारशिला,


मन उज्ज्वला।


कोई न गिला।।


 


सभी सहोदर,


गाओ सोहर।


बनो मनोहर।।


 


समदर्शी बन,


प्रियदर्शी तन।


शिवदर्शी मन।।


 


रचना करना,


सुंदर लिखना।


मानव बनना।।


 


दुःख हरते रह,


सारे गम सह।


शिव शिव शिव कह।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-21


आए तहँ बहु कपि अरु भालू।


गरजहिं-तरजहिं बहु बिक़रालू।


     निरखि-निरखि कपि-भालू-सेना।


     कृपा करहिं प्रभु भरि-भरि नैना।


पाइ कृपा-बल प्रभुहिं अपारा।


मनु ते भए परबताकारा ।।


     गिरि सपंख इव जनु धरि देही।


     प्रभु सँग करहिं पयान सनेही।।


भयउ सुखद सगुनइ तेहि काला।


लखि-लखि प्रभु-बल-सैन निराला।।


    बाम अंग सिय फरकन लागा।


    रावन दाहिन परम अभागा।।


नीति कहै जब सुभ कछु भवहीं।


अस सुभ सगुन होत सभ लखहीं।।


     सीय जानि जनु राम-पयाना।


     पावहिं सुभ संकेत सुहाना।।


सेना बानर-भालू चलहीं।


गरजत-तरजत कहि नहिं सकहीं।।


    भालू-कपि-नख होंहिं भयंकर।


    सस्त्र-कर्म तिन्ह करहिं निरंतर।


पादप इव धरि निज-निज काया।


चले गगन-पथ करि जनु माया।।


     केहरि-नाद करहिं मग माहीं।


     डगमग महि निज भार कराहीं।।


चहुँ-दिसि दिग्गज करहिं चिघाड़ा।


उमड़इ सागर, बजइ नगाड़ा।।


     चंचल हो जनु परबत घहरैं।


     महि डोलै,तरु-गृह जनु भहरैं।।


सुर-नर-मुनि अरु किन्नर-देवा।


परम मुदित भे सभ गंधरवा।।


     जनु सहि सकहिं न महि-बल सेषा।


     कच्छप-पीठहिं अहिन्ह-नरेसा।।


खुरचहिं निज दसनन तें मोहित।


लिखहिं बयान राम जनु सोभित।।


दोहा-साथ लेइ कपि-रीछ-बल,सागर-तट प्रभु जाहिं।


       उतरि तहाँ कपि-रीछ सभ,घुमरि-घुमरि फल खाहिं।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र।


                      9919446372


एस के कपूर श्री हंस

*सुंदर व्यक्तित्व जीवन जीवन की अनमोल धरोहर।। नकारात्मक से सकारात्मक बनने की ओर।।* 


*(हाइकु)*


1


क्रोध अंधा है


अहम का बंदा है


बचो गंदा है


2


अहम क्रोध


कई हैं रिश्तेदार


न आत्मबोध


3


लम्हों की खता


मत क्रोध करना


सदियों सजा


4


ये भाई चारा


ये क्रोध है हत्यारा


प्रेम दुत्कारा


5


ये क्रोधी व्यक्ति


स्वास्थ्य सदा खराब


न बने हस्ती


6


क्रोध का धब्बा


बचके रहना है


ए मेरे अब्बा


7


ये अहंकार 


जाते हैं यश धन


ओ एतबार


8


जब शराब


लत लगती यह


काम खराब


9


नज़र फेर


वक्त वक्त की बात


ये रिश्ते ढेर


10


दिल हो साफ


रिश्ते टिकते तभी


गलती माफ


11


दोस्त का घर


कभी दूर नहीं ये


मिलन कर


12


मदद करें


जबानी जमा खर्च


ये रिश्ते हरें


13


मिलते रहें


रिश्तों बात जरूरी


निभते रहें


14


मित्र से आस


दोस्ती का खाद पानी


यह विश्वास


15


मन ईमान


गर साफ है तेरा


रिश्ते तमाम


16


मेरा तुम्हारा


रिश्ता चलेगा तभी


बने सहारा


17


दूर या पास


फर्क नहीं रिश्तों में


बात ये खास


18


जरा तिनका


काँटों जैसा चुभता


मन इनका


19


कोई बात हो


टोका टाकी ज्यादा ना


दिन रात हो


20


कोई न आँच


खुद पाक साफ तो


दूजे को जाँच


21


खुद बचाव


बहुत खूब करें


यह दबाव


22


दोषारोपण


दक्ष इस काम में


होते निपुण


23


तर्क वितर्क


काटते उसको हैं


तर्क कुतर्क


24


कोई न भला


गलती ढूंढते हैं


शिकवा गिला


25


बुद्धि विवेक


और सब अपूर्ण


यही हैं नेक


26


जल्द आहत


तुरंत आग लगे


लो फजीहत


*रचयिता।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।बरेली।*


मो 9897071046


       8218685464


राजेंद्र रायपुरी

 इंतजार,नये साल का 


 


नये साल के इंतजार में,


                   सब बैठे हैं भाई।


सबकी चाहत कोरोना की,


                  होवे जल्द विदाई।


साल बीस था लेकर आया,


                विपदा सबसे भारी।


जाने कितने लोगों को खा,


                    गई यही बीमारी।


सबको है उम्मीद बिदाई, 


                   कोरोना की होगी।


नये साल में नहीं दिखेंगे,


                    कोरोना के रोगी।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सारिका विजयवर्गीय वीणा

*विधाता छंद *मुक्तक*


 


*भाईदूज की हार्दिक बधाई*


 


लगा कर भाल पर टीका, खिलाऊँगी मिठाई मैं।


बना कर प्रेम का धागा, सजाऊँगी कलाई मैं।


दुआएँ दे रही तुझको,मिले खुशियाँ तुझे सारी-


सजा उर नेह की थाली, लुटाने प्रेम आई मैं।


 


खिले तेरा सदा आँगन, मनाते पर्व हम पावन।


बलाएँ छू न पाएंगी , उतारूँ मैं नज़र दामन।


रमा माता सदा भाई ,कृपा तुम पर लुटाती हो-


यही आशीष दे बहना, मिले यश नाम ले जन-जन।


 


*सारिका विजयवर्गीय "वीणा"*


*नागपुर( महाराष्ट्र)*


नूतन लाल साहू

सुविचार


 


जिनकी भाषा में सभ्यता होती हैं


उनके जीवन में सदैव भव्यता होती हैं


आओ पहचाने और जाने


अपने अंतस के उदगार को


करते हैं मां सरस्वती की पूजा


वंदना,प्रार्थना उसकी कृपा पाने को


मन में राजसी और तामसी गुण


कभी भी तनिक न आने देना


हम जीवन भर विद्यार्थी और शिक्षार्थी रहे


हमे सतोगुणी बना देना


जिनकी भाषा में सभ्यता होती हैं


उनके जीवन में सदैव भव्यता होती हैं


आरंभ हुआ उत्थान मनुष्य का


जब हुआ अक्षर ज्ञान,बनी भाषाएं


रचे गये वेद उपनिषद


दर्शन धर्म मानव का


जो है वंचित,ज्ञान के आदान प्रदान से


उसके जीवन में कैसे आयेगा उजलापन


टकराव,दुराव,अलगाव आने न पावे


ऐसे शब्दों का चयन करना


जिनकी भाषा में सभ्यता होती हैं


उनके जीवन में सदैव भव्यता होती हैं


जो असंयमित वाणी बोलते हैं


वे अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारते हैं


अविराम,बेलगाम वाणी हमें


पश्चाताप में डूबा जाता हैं


शब्द चयन ऐसा करे


न हो भारत में फिर महाभारत


जिनकी भाषा में सभ्यता होती हैं


उनके जीवन में सदैव भव्यता होती हैं


नूतन लाल साहू


डॉ०रामबली मिश्र

*ग्रंथि खुलेगी*


   *(वीर छंद)*


 


मन को रखना होगा साफ,


               ग्रंथि खुलेगी अंतःपुर की।


भेदभाव का हो जब नाश,


              ग्रन्थि मिटेगी तब अंदर की।


स्व का पर से रहे लगाव,


             करो सफाई नित भीतर की।


गुण को देखो दोष न देख,


           करो प्रशंसा अंतःपुर की।


पढ़ना सदा प्रेम का पाठ,


           देना त्याग घृणा अंदर की।


समझो सबको एक समान,


           जगे मनुजता अंतःपुर की।


व्यापक बनकर जीना सीख,


           उन्नत बने भूमि भीतर की।


मानवता से कर संवाद,


           संवेदना बढ़े अंदर की।


जल-भुन कर मत होना राख


           जगे चेतना अंतःपुर की।


कपट त्यागकर रहना मस्त,


           रहे जिंदगी खुश भीतर की।


सकल दुराग्रह को दो त्याग,


          रखो स्वच्छता अंतःपुर की।


कर विवेक का सदा प्रयोग,


           करो वंदना नित्य जिगर की।


सबको अपना भाई मान,


           करो कल्पना नहीं दिगर की।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

सत्यता का सूरज


18.11.2020


 


चलो चले नई राह बनाए


सत्य,अहिंसा का दीप जलाए


प्रखर प्रचंड सत्यता का सूरज


हर दिल में नित रोशनी फैलाए।


 


स्वस्थ समाज सुदृढ होगा तब 


जब अपने से ऊपर उठ जाएं


परहित कर्म की अलख जगाए ।


चलो चले नई रीत चलाए ।


 


नैतिकता का पतन न हो कभी


सब मिलकर ये अलख जगाए


स्वस्थ समाज बनाने के खातिर


चलो चले नई राह बनाए ।


 


सत्यता का सूरज जब चमके


भारत माँ का भाल तब दमके


विश्व में क्रान्ति मिल कर लाए


भारत को विश्व गुरु बनाए।


चलो चले नई राह बनाए ।


 


सभ्यता संस्कृति अपनी पुरानी


नही कहीं कोई इसका सानी 


छोड़ो पश्चात्यकरण की दौड़


फिर अपनी पद्धति अपनाए।


 


सत्यता का सूरज दमकेगा


हर जीवन खिल कर महकेगा


नित नए आयाम बनाए 


चलो चले नई राह बनाए


सत्य अहिंसा का दीप जलाए ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

त्रिपदियाँ


नहीं किसी से कहना भाई,


अपनी बीती भी विपदाई।


होती जग में बहुत हँसाई।।


 


प्राण जाय पर वचन न जाए,


यही सोच तो मान बढ़ाए।


दृढ़-प्रतिज्ञ जग अति सुख पाए।।


 


कपट नहीं करना हे भाई,


छल से बूड़े सकल कमाई।


विमल हृदय होता सुखदाई।।


 


है उपकार सुजन-आभूषण,


कभी न करना निर्बल-शोषण।


करो सदा वंचित का पोषण।।


 


मानवता का धर्म निभाओ,


परम तोष-सुख इसमें पाओ।


इसी धर्म का पाठ पढ़ाओ।।


 


है यह धर्म सनातन अपना,


युग-युग से यह भारत-सपना।


नहीं लूटना बस है लुटना।।


 


लुटे वित्त तो मत घबराना,


वित्त-प्रकृति है आना-जाना।


लुटे वृत्त को नहीं है आना।।


         ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*बन जा सुंदर*


 *(तिकोनिया छंद)*


 


बन जा सुंदर,


ज्ञान धुरंधर।


प्रेम समंदर।।


 


 


हो जा पावन,


अधिक सुहावन।


अति मनभावन।।


 


दिव्य भाव बन,


उत्साहित तन।


शुभ हर्षित मन।।


 


घर में आ जा,


गीत सुना जा ।


रस बरसा जा।।


 


आओ प्रियतम,


बैठो अनुपम।


नाचो मधुतम।।


 


प्रीति सरस रस,


हृदय भाववश।


दिव्य अमर यश।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*त्रिपदियाँ*


 


सुंदर चिंतन करते रहना,


सत्कर्मों पर मंथन करना।


उत्तम मानव बनते रहना।।


 


मानवता का पाठ पढ़ाओ,


सबको गले लगाते जाओ।


जग को स्वर्ग बनाते जाओ।।


 


सहज भाव से मिलते जाना,


प्राणि मात्र को नित अपनाना।


सबपर प्रेम बहाते जाना।।


 


सबको उर में नित्य बसाओ,


जा सबके दिल में छा जाओ।


सबपर अपना रंग जमाओ।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

मैं बेअदबी निहायत कर रही हूँ।


मुहब्बत में अदावत कर रही हूँ।


******


किया जिसने मेरा दिल दूर मुझसे।


मैं उससे ही मुहब्बत कर रही हूँ।


*******


कहीं का भी मुझे जिसने न छोड़ा।


उसी की क्यूं वकालत कर रही हूँ।


*******


मेरा केवल रहा है वो है जैसा।


बुरा क्या जो जियारत कर रही हूँ ।


*******


मुझे दिल में रखे जो प्यार से बस।


समझ भगवन इबादत कर रही हूं।


*******


मैं उनका भक्त भगवन वो हैं मेरे।


उन्हें अपनी हकीकत कर रही हूँ।


*******


झुका सजदे में सर उनके सुनीता।


मैं कान्हा की ही चाहत कर रही हूँ। 


*******


सुनीता असीम


18/11/2020


डॉ०रामबली मिश्र

*कल्पनालोक की उड़ान*


      *(चौपाई ग़ज़ल)*


 


जीवन आह, बहुत मस्ताना ।


बना परिंदा गगन दीवाना।


 


है उड़ान कितना मनभावन।


इच्छा से सबकुछ बन जाना।।


 


कभी थिरकना यमुना कूले।


कभी-कभी गंगा तट जाना।।


 


कभी समाना सिंधु लहर में।


कभी निकल कर बाहर आना।।


 


जब चाहो कदंब पर बौठे।


गीत श्याम के मधुर सुनाना।।


 


उड़ना कभी बाग के ऊपर।


कभी किसी घर में घुस जाना।।


 


सकल जगत का मालिक बनकर।


चाहो जहाँ वहीं उड़ जाना।।


 


 सारी इच्छा पूरी करते।


सहज विचरते चलते जाना।।


 


प्रेम लोक की अगर चाह है।


प्रेम काव्य कौशल दिखलाना।।


 


चलते जाना प्रेम पंथ पर।


प्रेम गीत को लिखते जाना।।


 


गाते रहना मधुर गीत को।


सबको वश में करते जाना।।


 


ऐसा गाना गाना वन्दे।


छापा अमिट छोड़ते जाना।।


 


कभी मनुज बन कभी परिंदा।


जैसी इच्छा बनते जाना।।


 


बन स्वतंत्रता का प्रतीक जिमि।


जीवन का आनंद मनाना।।


 


नहीं कल्पना लोक दूर है।


यह अंतस का जगत सुहाना।।


 


मन चिंतन में सृष्टि व्योम है।


खुद से खुद को सहज सजाना।।


 


राजकुमार बने खुद उड़ कर।


स्वयं स्वयंबर दिव्य रचाना।।


 


पूरी सृष्टि करस्थ अवस्थित।


इच्छाओं का जश्न मनाना।।


 


देवदूत बन इस जगती का।


सतत स्नेह की अलख जगाना।।


 


सबके अंतःपुर में जा कर।


प्रेम दिवाली रोज मनाना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ बीके शर्मा

"चल साकी"


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पग-पायल झनकार लिए आ


नयनों में कटार लिए आ


भला बुरा यह कहती दुनिया 


पल दो पल तू प्यार लिए आ


 


रोना-गाना तो दुनिया में


यूं ही चलता रहता है


लगता आंगन छोटा मुझको 


तू सारा संसार लिए आ


 


आने वाला जग जाता यहां


जाने वाला सो जाता


तेरा मेरा संबंध यहां है 


सांसों के दो तारे लिए आ


 


एक दूजे का हाथ थाम कर


एक दूजे की बात मानकर 


"चल साकी" इस जगती से


चलने को रफ्तार लिए आ


 


 डॉ बीके शर्मा


 उच्चैन भरतपुर( राजस्थान)


9828863402


डॉ०रामबली मिश्र

*प्रेम -पात्र*


 


प्रिय प्रेम पिलाता हूँ,


      नाराज नहीं होना।


मन के मधु भावों को,


     प्रिय मत ठुकरा देना।


 प्रेम दीवाना आज,


     इसको सहला देना।


उठ रही तरंगें हैं,


       इनको फुसला देना।


पी लेना प्रेमांजुलि,


       निर्वाध पिला देना।


हृदसागर में उफान,


      उर में बैठा लेना।


प्रेमपात्र अब भर लो,


       रिक्त न रहने देना ।


आँखों की पलकों में,


        प्रिय ज्वार समा लेना।


बन जा गंगा सागर,


         द्वंद्व मिटा देना।


भेद रहित सब कुछ हो,


            इंसान बना देना।


सीने से प्रिय मन को,


            बेरोक लगा लेना।


हे प्रेमपात्र दिलवर!


             विश्राम मना लेना।


 मुर्झायी आँखों को,


              रसपान करा देना।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

चांद फिर धरती पे उतरा ख्वाब में।


प्रेम का अमृत चखा था ख्वाब में।


*******


प्यार के बदले मिलेगा प्यार ही।


ज़िन्दगी के ख़ार सहना ख़्बाव में।


*******


वस्ल के प्यासे हुए वो मुझ बिना।


श्याम का मुझसे ये कहना ख्वाब में।


********


बस करीबी भा गई उनकी मुझे।


हार बाहों का था पहना ख्वाब में।


********


टकटकी उनको लगा थी देखती।


चाँद को भी दूर रक्खा ख्वाब में।


*******


सुनीता असीम


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