नूतन लाल साहू

सत्संग से मिलता है ज्ञान


 


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


 रास्ता भी अंदर है


तेरा निर्मल रूप अनूप है


नहीं हाड़ मांस की काया


निराकार निर्गुण अविनाशी


चेतन अमल सहज सुखरासी


अलख निरंजन सदा उदासी


तू व्यापक ब्रम्ह स्वरूप है


फिर भी भुलाकर अपने रूप को


तू कहां कहां भटक रहा है


तू तो सब प्राणियों में श्रेष्ठ हैं


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


जगत में जीवन है,दिन चार


कल के लिए कोई काम न टाल


जो सोया सो खोया


जो जागा सो पाया


पशु पक्षी सहित सब जीवन में


ईश्वर अंश निहार


मधुर वचन है औषधि 


कटुक वचन है तीर


किसका तू है और है कौन तुम्हारा


स्वारत रत है संसार


जग में सुंदर है दो नाम


चाहे कृष्ण कहो या राम


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमत्मा भी अंदर है


और परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


नूतन लाल साहू


डॉ निर्मला शर्मा

छठ पूजा


 


 हे छठ महामाई तुम्हें प्रणाम


 करती सब के पूरे काम 


निर्जला व्रत में करुँ तुम्हारा 


नाम जपु माँ बारंबारा


 करो कृपा माँ विनती जान 


बिगड़े बनाए सबके काम


 गुड और खीर का भोग लगाउँ


 कोरे -कोरे कलश में जल भर लाऊँ


 करो भोग मेरा स्वीकार


 मेरी आराधना करो अंगीकार 


गली-गली में धूम मची है 


खुशियों की बौछार हुई है


 सब जन पूजें आठो याम


 हे महामाई तुम्हें प्रणाम 


 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


सुनीता असीम

शमा जली है जो मन्दिर की बंदगी जागी।


मिला खुदा का बसेरा तो ज़िन्दगी जागी।


******


जो मैल मन को लगा भावना बुरी जागे।


कि स्वच्छता को हटाया तो गन्दगी जागी।


******


 हटाके घोर अंधेरा दिया जला मन का।


मिला खुदा का सहारा तो रोशनी जागी।


******


मुझे सुलाके ही सोया है बंशीवाला वो।


सुबह जो नींद खुली खूब ताजगी जागी।


******


जो हसरतें सो रही थीं कभी सुनीता की।


कि खास उनके इशारों से रफ्तगी जागी।


******


सुनीता असीम


डॉ० रामबली मिश्र

*प्यार*


प्यार करके भले ही मर जायेंगे,


इसे कभी भी नहीं भूल पायेंगे।


 


भले ही इकतरफा ही सही है सही,


जिंदगी को दांव पर हम लगायेंगे।


 


मरना सभी की है नियति यह बात याद रख,


इक दिन सभी जहां से निर्बाध जायेंगे।


 


माना कि हम मनुज हकदार प्यार के,


पंछी भी प्यार करते इक रोज जायेंगे।


 


कोई भले न प्यार दे इस बात का न गम,


हम प्यार करते विश्व से हर रोज जायेंगे।


 


दिल में गिला न शिकवा हम आप में जगत,


हम प्यार करते प्यार से हर बार जायेंगे।


 


कोई न रोक सकता हमको यहाँ जहां में,


 हक जताते प्यार पर हम रोज जायेंगे।


प्यार का पैगाम लिये आये धरा पर,


प्यार करते हर किसी से लौट जायेंगे।


हमको बुरा न समझो हम दूत ईश के,


प्यार के संदेश को हम गुनगुनायेंगे।


एकतरफा प्यार भी तो प्यार की कली,


पुष्प की मुकाम पर एक रोज जायेंगे।


विश्व की महान शक्तियाँ भी विफल हैं,


बुलंदियों तक प्यार को पहुँचा के मानेंगे।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

शुभ सोच


 


गर आदमी न होता एहसान फ़रामोश,


 माना इसे न जाता जल्लाद कभी का।।


         गर जानती ये दुनिया क्या फ़र्ज़-ए-इंसान?


         होता लहू न इतना बरबाद सभी का ।।


                                    गर आदमी न होता....


ऋतु में,हवा ,फ़ज़ा में होता अगर वजूद,


होता चमन यक़ीनन आबाद कभी का।।


                             गर आदमी न होता....


       होता अगर जो मेल कभी तल्ख़ -मधुर का


       यक़ीनन ये तल्ख़ होता मधुर स्वाद कभी का।।


                               गर आदमी न होता....


होता अगर निशंक ज़माने में कोई यहाँ,


यक़ीनन,वतन ये होता आज़ाद कभी का।।


                    गर आदमी न होता....


होता नहीं गर धर्म का उन्माद जहाँ में।


तो मिलता इसे भी जन्नती प्रसाद कभी का।।


गर आदमी न होता.....।।


   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


9919446372


 


....


निशा अतुल्य

*धार छंद*


21.11.2020


वर्ण विन्यास :- मगण और लघु / मापनी :- 222 1


 


मांगू हाथ 


तेरा साथ 


होगी जीत


मेरे मीत ।


 


देखो आज


कैसा राज


दोनों साथ


बीते रात ।


 


भीगे नैन


ढूंढे बैन


खोई रात 


होए बात ।


 


आधी रात


बीती बात


काटे रैन


आये चैन।


 


मीरा नाम


गाती श्याम


वीणा हाथ


तेरा ध्यान ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ०रामबली मिश्र

*त्रिपदियाँ*


 


हम सब मिलकर काम करेंगे,


नहीं किसी की एक सुनेंगे।


मानवता के हेतु लड़ेंगे।।


 


जो कुण्ठाओं में जीता है,


विज्ञापन करता फिरता है।


प्रति क्षण खुद मरता रहता है।।


 


जो होता अतिशय मति मंदा,


करता रहता सबकी निंदा।


वह मटमैला दूषित गंदा।।


 


जो कृतघ्न दुष्ट अपकारी,


दानवता का सदा पुजारी।


वही अपावन अत्याचारी।।


 


पावन मन को नमस्कार है,


सच्चा मानव सदाचार है।


शुद्ध हृदय में गंगधार है।।


 


जो सबको अच्छा कहता है,


दिल से वह सच्चा लगता है।


कभी नहीं कच्चा होता है।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहे


छठ-पूजा फलदायिनी,सुखी रखे परिवार।


अस्ताचल-रवि अर्घ्य दे,ज्ञापित हो आभार।।


 


छठ माता का व्रत कठिन,पर फल दे भरपूर।


उदित सूर्य का अर्घ्य दे,सुत रवि सम ले नूर।।


 


गंगा भारत-आतमा, औषधि इसका नीर।


पाप-नाशिनी जान्ह्वी, हरे कष्ट गंभीर ।।


 


शंकर-शिख शोभा यही,महिमा अपरंपार।


पुण्यदायिनी गंग को,करें नमन शत बार।।


 


सूर्य नहीं तो जग नहीं,सूर्य-रश्मि जग-प्राण।


रवि नित किरण पसार कर,करे जगत-कल्याण।


 


रवि-आभा से ही मिले,अन्न-फूल-फल-नीर।


ऋतु-परिवर्तन भी करें,सूर्य देव बलवीर।।


 


सरिता सागर से मिले,हर्षित-पुलकित गात।


पथरीले पथ बह चले,कोटिक सह आघात।


 


जीवन को उत्सव समझ,हिय में भरे हुलास।


सकारात्मक सोच से,मिलता पूर्ण उजास।।


            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                9919446372


एस के कपूर श्री हंस

*19 से 25 नंवबर कौमी एकता सप्ताह*


               *।।प्रेरणा परिवार।।*


*।।अखिल भारतीय मुक्तक प्रतियोगिता।।*


             *।।दिनाँक 21 11 2020।।*


 


वसुधैव कुटुम्बकम की धारा हो,


मनुष्यता ही मर्म।


 


पुरातन संस्कृति की स्वीकारा हो,


संस्कार ही शर्म।।


 


लौट कर आ जाये भाई चारे,


की वही बीती रीत।


 


मानवता ही धर्म हो,


मानवता ही कर्म।।


 


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।।।*


मोब।।। 9897071046


                      8218685464


एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।*


*आज की नारी।।आसमाँ*


*में है उड़ने की तैयारी।।*


 


कौन सा काम जो आज की


नारी नहीं कर पाई है।


बेटियां तो आज आसमान 


से सितारे तोड़ लाई हैं।।


नारी को चाहिये आज उड़ने


को पूरा का पूरा जहान।


धन्य हैं वह माता पिता


जिन्होंने बेटी जाई है।।


 


नारी ही तो इस सम्पूर्ण


सृष्टि की रचनाकार है।


नारी आज सबला दुष्टों के


लिये भी बन गई हाहाकार है।।


अनाचारऔर दुष्कर्म के प्रति


आजऔरत ने उठाई आवाज़।


बाँधकर साफा माथे परआज


बनी रण चंडी की ललकार है।।


 


वही समाज राष्ट्र उन्नत बनता


जो महिला सम्मान करता है।


नारी शिक्षा नारी सुरक्षा का


जो अभियान भरता है।।


ईश्वर रूपा ममता स्वरुपा


त्याग की प्रतिमूर्ति है नारी।


वो संसार स्वर्ग बन जाता जो


नारी का नाम महान धरता है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब ।। 9897071046


                     8218685464


आचार्य गोपाल जी

🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


 


छठ


 


छठ की छटा सुहानी है ,


मन निरमल हो जानी है,


ये हरती हर परेशानी है,


अस्त को नमन करें जो,


अद्भुत इसकी कहानी है,


 


स्वच्छता संयम नियम व्रत,


है ये निर्जला का कठिन तप,


अभक्ष्य सारे हैं इसमें वर्जित,


बिना मध्यस्थता के ये पूजित,


समरसता की यह दीवानी है।


 


है यह अलग पूजन अद्भुत,


गेहूं गन्ना मूली फल प्रसाद है


कृषकों के कर्षण से पूजित,


लेस न इसमें आलस्य प्रमाद है,


अनुपम आदित्य की कहानी है ।


 


सृजित सृष्टि मूल के छठे अंश से


देवसुता देवसेना ही छठी कहलाती है ।


संयत से संयम, खरना खाना एक शाम,


अस्ताचल औ उदयाचल अर्घ्य से खुश हो जाती है ।


ममतामई की महिमा मधुरिम सारे जग ने मानी है


 


 ✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


नूतन लाल साहू

कैसे कटेंगे अब,पहाड़ से ये दिन


 


मदिरालय का आंगन देखो


जो गिरते हैं कब उठते हैं


कितने प्यारे अपने छुट गये


जो छुट गये फिर कहां मिलते हैं


जीवन में मधु का प्याला था


वह टूट गया तो टूट गया


व्यक्ति रोता है चिल्लाता है


कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन


कौन कहता है कि सुंदर स्वप्नों को


न आने दें हृदय में


देखते सब है, इन्हें भावुक होकर


अपनी उमर अपने समय में


पर सपना तो सपना होती हैं


मिल नहीं सकती वैसी सफलता


महंगाई और बेरोज़गारी देख


व्यक्ति रोता है चिल्लाता है


कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन


जब तक सांस चलती हैं


तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर


जीवन पथ कठिन और पथरीला है


मत बना बैठ जाने का बहाना


समय चला गया हाथ से तो


लौटने वाले नहीं हैं


खोज लेे मन का मीत कोई


आशा जगाना कब मना है


खो मत देना विश्वास पूरा


विश्व की संवेदना में


धुमिल हो जाता है,उल्लास के आधार तो


व्यक्ति रोता है चिल्लाता है


कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन


नूतन लाल साहू


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक गीत 😊😊


 


आओ रे,आओ रे,आओ रे, 


आओ - आओ रे।


आओ रे, आओ रे,आओ रे,


आओ-आओ रे।


 


आओ नाचें गाएं हम।


छेड़ें खुशियों की सरगम।


दूर हो गई विपदा सारी,


अब काहे का ग़म।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


आओ रे,आओ रे,आओ रे,


आओ-आओ रे।


 


फसल काट खलिहान में आई।


हो गई भैया आज़ मिजाई।


जितना बोया,लाख गुना कर,


देती हमको धरती माई।


अब काहे का ग़म है भैया,(२)


घर बैठे तुम खाओ रे।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


आओ रे,आओ ये,आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


हुई नहीं बरबाद फसल ,


ये दुआ प्रभो की भारी।


सबने पाया मन भर-भर के,


खुश सारे नर-नारी।


खाने भर रख बेच-भाॅ॑ज कर,(२)


नगदी घर में लाओ रे।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


आओ रे,आओ रे,आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


बहा पसीना हमने बोया,


फल उसका है पाया। 


लाख गुना कर दिया प्रभो ने,


देखो उसकी माया।


वो ही सबका है रखवाला,(२)


गुन उसके तुम गाओ रे।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


आओ रे,आओ रे,आओ रे,


आओ-आओ रे।


 


नहीं भुलाना तुम धरती को,


वो ही है महतारी।


पेट वही है भरती सबकी,


माता प्यारी-प्यारी।


उस मैया के चरणों में तुम,(२)


निश दिन शीश झुकाओ रे।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


आओ रे,आओ रे,आओ रे।


आओ-आओ रे।


आओ-आओ रे।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-24


मुनि पुलस्ति सिष्य लइ आवा।


अस सनेस मैं तुमहिं सुनावा।।


     मुनि-सनेस मलवंतहिं भावा।


     सुनि सनेस सचिवहिं सुख पावा।


दसमुख प्रभु-बखान नहिं भावै।


भागु दूर कहि क्रोध जतावै ।।


     माल्यवंत तब निज गृह गयऊ।


     तदपि बिभीषन कहतै रहऊ।।


सुबुधि कुबुधि रहहीं इक साथा।


कह अस सो झुकाइ निज माथा।


      बेद-पुरान-नीति अस कहहीं।


      संपति रहै सुबुधि जहँ रहहीं।।


नाथ कुबुधि बड़ घातक होवै।


आए तासु बिपति नर ढोवै ।।


      सुनहु नाथ सीता कुल-नासक।


       प्रीति तासु सभ निसिचर घातक।।


रखहु लाजि नाथहिं मम बचना।


सीता भेजि अहित नहिं अपुना।।


      सुनि श्रुति-सम्मत,नितिगत बचना।


       रावन कहा काल तव रसना।।


जीयसि खाइ मोर अन-पानी।


मम रिपु-गुन तुम्ह करत बखानी।


       जानसि नहिं मैं निज बल-बूता।


        जीता सभ बलवान अभूता।


जल बसि बैर मगर कस सोहै।


इहँ रहि प्रीति तपस कस मोहै।।


      करि प्रहार रावन निज लाता।


       कह जा करहु तपस सँग बाता।


तदपि बिभीषन कह कर जोरे।


मिलि प्रभु राम होय हित तोरे।


      तुम्ह मारे नहिं मोर अनादर।


       तुम्ह पितु सम कुरु राम समादर।


दोहा-पुनि-पुनि कहै बिभीषनै,रावन-मन न सुहाय।


         कह सो तुम्ह अब काल बस,नहिं कोउ तोर सहाय।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                        9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*भुला न देना*


    *(चौपाई ग़ज़ल)*


 


भुला न देना तुम प्रियतम को।


गले लगाओ नित अनुपम को।।


 


रक्षा करना कष्ट न देना।


सदा मानना निज प्रियतम को।।


 


तेरा ही है इसे सहारा।


छोड़ न देना सर्वोत्तम को।।


 


तुझे देखता रहता ही यह।


ओझल मत करना प्रियतम को।।


 


अपने दिलवर सहज सलोने।


दिल देना अपने प्रियतम को।।


 


देखा करना इसे अहर्निश।


दूर न रखना तुम प्रियतम को।।


 


यह भावों से सना-बना है।


रख जेहन में नित प्रियतम को।।


 


इसे मनोहर -मुरली जानो।


रखना मधुबन में प्रियतम को।।


 


यमुना तीरे बैठ बात कर।


सुख देते रहना प्रियतम को।।


 


अभिन्न साथी बनकर रहना।


सदा स्नेह देना प्रियतम को।।


 


अंकों में भर लेना प्रिय को।


खूब रिझाना शिव सत्यम को।।


 


तेरा ही यह आशिक प्रेमी।


प्रेम पिलाना मधु प्रियतम को।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ०रामबली मिश्र

*तिकोनिया छंद*


मैं देखूँगा,


मैं बोलूँगा।


साथ रहूँगा।।


 


साथ निभाना,


उर छा जाना।


दूर न जाना।।


 


निकट बुलाना,


आँख लड़ाना।


कुछ मुस्काना।।


 


दिल में बहना,


सदा उतरना।


नहीं विछड़ना।।


 


चुंबन लेकर,


हाथ पकड़कर।


सदा चलाकर।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौपाई ग़ज़ल


मात्रा भार-16


जीवन में मत करो उधारी,


चाहे मिले छूट सरकारी।।


 


करो परीश्रम निज बल-बूते,


मिले तुम्हें रोटी-तरकारी।।


 


अपने को असहाय न समझो,


अपनी समझो जिम्मेदारी।।


 


कोसो नहीं भाग्य को भाई,


देखो तुझमें है खुद्दारी।।


 


साहस और विवेक न खोना,


यही धरोहर तेरी भारी।।


 


काम-क्रोध,मद-लोभ न रखना,


ये जीवन के अत्याचारी।।


 


अनुशासन-नियमन हैं रक्षक,


करते सदा प्राण-रखवारी।


         ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


             9919446372


विनय साग़र जयसवाल

ग़ज़ल----


 


अता मुझे भी उजाले की इक नज़र कर दे


तू अपनी चाँद सी सूरत ज़रा इधर कर दे


 


किसी को याद मैं आता रहूँ ज़माने तक


मेरी हयात मुझे इतना मोतबर कर दे


 


सुना है मैंने कि आहों में आग होती है


मेरे ख़ुदा मेरी आहों को बेअसर कर दे


 


वो जब मिला है तो ग़ैरों की बात ले बैठा


कोई तो शाम वो इक मेरे नाम पर कर दे


 


उसी घड़ी की है जुस्तजू तो बरसों से


जो उनको मेरी मुहब्बत का हमसफ़र कर दे


 


मेरे सिवा भी मेरे घर में कोई रहता है


कहीं नज़र न मेरे दिल को यह ख़बर कर दे


 


तमाम उम्र रहे तू ही मेरी आँखों में


तू इस यक़ीन को कुछ इतना पुर असर कर दे


 


तमाम शहर में जाये कहीं भी तू साग़र


तू मेरे घर को मगर अपनी रहगुज़र कर दे


 


🖋विनय साग़र जायसवाल


हयात-जीवन


मोतबर--विश्वास के योग्य


बहर-मुफायलुन-फयलातुन-मुफायलुन-फेलुन


डॉ०रामबली मिश्र

*मत पूछो तुम हाल...*


 


मत पूछो जी हाल प्रेम का।


           यह जख्मी है।।


 


बात न करना कभी प्रेम की।


          यह जख्मी है।।


 


रोता रहता सतत अहर्निश।


          बहु जख्मी है।।


 


दर-दर की यह ठोकर खाया।


           अति जख्मी है।।


 


दुत्कारा यह गया बहुत है।


          यह जख्मी है।।


 


किसने इसे नहीं मारा है।


          अति जख्मी है।।


 


ललकारा यह गया बहुत है।


          नित जख्मी है।।


 


दुनिया के लोगों ने मारा।


          बहु जख्मी है।।


 


काम न करती मरहम-पट्टी।


          अति जख्मी है।।


 


इसको अब मत छेड़ कभी भी।


          बहु जख्मी है।।


 


इसे अकेला छोड़ चले जा।


अति प्रसन्न भोला जख्मी है।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-23


 


रावन सुनि मंदोदरि-बचना।


बिहँसि कहा घमंड सनि रसना।।


     जासु नाम सुनि काँपै सबहीं।


      पत्नी तासु डरै कस भवहीं।।


नारी-हिय संसय बहु रहहीं।


सुभ कारजु महँ अपि ते डरहीं।।


      जदि बानर-सेना इहँ अवहीं।


       तिनहीं खाइ निसाचर लरहीं।।


अस कहि चला सभा दसकंधर।


उलटी बुद्धि बिपति जब सिर पर।।


     सिंधु पार करि सेना आई।


     सचिवन्ह कहा बताउ उपाई।।


सभ हँसि टारि दीन्ह अस बाता।


चुप तुम्ह साधि रहउ हे त्राता।।


     जुद्ध सुरासुर बिनु श्रम जीते।


      बानर हों मुरई किन्ह खेते ।।


सचिव-बैद अरु गुरु नहिं नीका।


जे नहिं देहिं सलाह स्टीका ।।


     नीति कहै इन्हकर प्रिय बचना।


      घातक होय जदपि मधु रसना।।


मनहिं समुझि तहँ आइ बिभीषन।


माथ नाइ रावन के चरनन ।।


      आयसु लेइ बैठि निज आसन।


       कह सुनु हे मम भ्रात दसानन।।


जौं चाहसि निज कुल-कल्याना।


सुभगति-सुजसु-सुबुद्धि-खजाना।।


     लखहु न अब तुम्ह ई परनारी।


      जस लखि चंद चौथु अघ भारी।।


अंड-पिंड-स्वेतज-स्थावर।


बिधि जग-निर्मित प्रकृति चराचर।।


     सभ महँ सूक्ष्म रूप प्रभु ब्यापैं।


      होइ अदृस्य जीव-बपु थापैं।।


सुनहु भ्रात,राम भुवनेस्वर।


अज-अनादि,अजित-अखिलेस्वर।।


      ब्यापक राम सकल जग माहीं।


       ब्रह्म अभेदहिं जानउ ताहीं।।


मनुज सरीर धारि प्रभु रामा।


दुष्ट-दलन करिहैं हितकामा।।


दोहा-काम-क्रोध,मद-लोभ तजि,भजहु राम हे भ्रात।


        रच्छक गो-सुर-बेद प्रभु, रच्छक धरमहिं तात।।


                          डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                            9919446372


राजेंद्र रायपुरी

एक गीत 


 


दिल ये चमन है मेरा,आना कभी घूमने।


 


आना कभी घूमने,इसको कभी चूमने।


दिल ये चमन है मेरा,आना कभी घूमने।


 


नाजों से पाला इसे, 


                 इसका पता है किसे।


पत्थर न जाने कोई, 


                मिर्ची न इस पर घिसे।


 


खूशबू से है ये भरा, आना कभी घूमने।


दिल ये चमन है मेरा,आना कभी घूमने।


 


सबको सुहाता है ये,


                 सबको लुभाता है ये।


ख़्वाबों का जो झूलना, 


                उसमें झुलाता है ये।


 


मन का है ये मोहना,आना कभी घूमने।


दिल ये चमन है मेरा,आना कभी घूमने।


 


मत दूर से देखना, 


                    मत घूर के देखना।


खिलतीं हैं कलियाॅ॑ यहाॅ॑,


                   पत्थर नहीं फेंकना।


 


दर्पण से है ये घिरा, आना कभी घूमने।


दिल ये चमन है मेरा,आना कभी घूमने।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ0 निर्मला शर्मा

मैं कवि हूँ


 


आदिकाल से ही


अपने मन के भावों को


सहजता से प्रकट करता


कल्पना लोक मैं


विचरण करता


यथार्थ और आदर्श


 से जूझता


मैं कवि हूँ


कहते हैं सभी


जहाँ न पहुँचे रवि


वहाँ पहुँचे कवि


वहाँ भी मैं


पहुँचा हूँ


मैं कवि हूँ


नायिका के हृदय मैं


कभी प्रेम जगाता


कभी पीड़ा बन जाता


अल्हड़ सी बाला


सा खिलखिलाकर


कभी हँसता सा


माँ की आँखों में


वात्सल्य बन तैरता


कलम से स्याही


कागज़ पर बिखराता


मैं कवि हूँ


गाँवों में, गलियों में


फूलों में कलियों में


गोरी की कलाई में


बागों की अमराई में


पायल की छन छन में


कंगना की खन खन में


खुशियों के हर पल में


स्वयं को समाता


मैं कवि हूँ


 


डॉ0निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


नूतन लाल साहू

उम्मीद


 


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


क्योंकि सूरज डूबने के पश्चात ही


सबेरा होता है


जैसा मनोहर मेरा देश है


वैसा ही मधुर संदेश है


तूफान वर्षा बाढ़ संकट में


विश्वास ही आशा दायिनी होता है


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


कठिन तपस्या करके कोयल


इतना सुमधुर सुर पाया


उत्साह और उमंग के संचार से


युग युग का आलस भागा


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


दैव दैव तो आलसी पुकारे


प्रश्न उठा करता है मन में


बड़े भाग्य मानुष तन पाया


कैसे तुने जीवन में


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


देख कहीं कोई तरू सूखा


द्रवित हुई होगी मन में


एक दिवस इस तरू के ऊपर


हरियाली लहराती रही होगी


इस उत्तर से आई होगी निश्चित


शांति नहीं तेरे मन में


याद करो तुम उस पल को


अर्द्ध रात्रि में गौतम निकले थे घर से


मंजिल पाने की उम्मीद


कभी मत छोड़िए


क्योंकि सूरज डूबने के पश्चात ही


सबेरा होता है


नूतन लाल साहू


प्रिया चारण

मणिकर्णिका की महागाथा


 


लक्ष्मीबाई नाम था जिसका ,


महाकाली का अवतार था जिसका,


शस्त्र विद्या में सरस्वती का वरदान था


मातृ भूमि पर न्योछावर होना, अभिमान था जिसका ।


 


ढाल ,कटार और तलवार


 से जो खेलती आई,


युद्धभूमि जिसका आँगन बतलाई,


बाँध शिशु को पीठ पर ,


स्त्री वीरता अमर दिखलाई ,


थी वह रानी लक्ष्मीबाई।


 


झाँसी की वो रानी थी,


स्त्री रूप में मर्दानी थी,


क्या लिखूं उस शक्ति पर,


वो अमर ज्वाला अभिमानी थी।


 


बेचारी स्त्री से बहादुर बनाया,


वीरांगना ने वीरता का पाठ पढ़ाया ।


शक्ति तुम्हारी तुम पहचानो ,


मर्यादा के बाद मर्दानी कहलाओ।


 


संदेश है ! हर स्त्री को आवाज़ उठाओ


हर स्त्री को रानी लक्ष्मीबाई बनाओ।


 


 


प्रिया चारण


 उदयपुर राजस्थान


अर्चना पाठक निरंतर

3-वीरंगना लक्ष्मी बाई


-----------------------------


 


वीरांगना लक्ष्मीबाई की बचपन से सुनी कहानी थी ।


अंग्रेजों के सीने में अब तक पड़ी अमिट निशानी थी ।


 


        सुंदर और मध्यम कद काठी की छवि निराली थी।


        आँच न आए देश पर वह क्रोध की लाली थी ।


 


अंग्रेजों के षड्यंत्र को पहले उसने भाँपी थी।


 हर क्रांतिकारी से मदद की गहराई उसने नापी थी ।


 


        अपनी झाँसी मेैं न दूँगी कह कर एक हुंकार भरा।


         पेंशन पर गुजर न करूँगी सम्मान का चिंघाड़ भरा ।


 


उनकी एक झलक पाने को अंग्रेज भी बेताब रहे ।


भाव भंगिमा विद्वता पूर्ण नैन नक्श सुंदर रहे ।


 


        न गोरी थी न काली एक सलोना रूप था।


        स्वर्ण बालियाँ, श्वेत वसन और न कोई आभूषण था।


 


 लैंग की तारीफों का सादगी पूर्वक जवाब दिया।


 मदद करें आप गरीबों का शिष्टता का पुल बाँध दिया।


 


        लक्ष्मीबाई को भारतीय राजाओं से लड़ना पड़ा।


        अंग्रेज तो गैर थे अपनों से भी भिड़ना पड़ा।


 


 हिम्मती महिला पुरुषों को युद्ध के लिए तैयार किया ।


 पूरे जोश व ताकत से सात दिनों तक युद्ध किया।


 


        कमजोर होता देख दामोदर को पीठ पर बाँध लिया।


        छोटी सैन्य टुकड़ी संग झाँसी से बाहर निकल लिया।


 


 कह गये फिरंगी सर ह्यू रोज विद्रोहियों में बात कम थी ।


 लक्ष्मीबाई बहादुर नेतृत्व कुशल बागियों बीच वही मर्द थी।


 


अर्चना पाठक 'निरंतर'


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...