*रचना शीर्षक।।*
*मनुष्य के कर्मों से ही मनुष्य*
*के जीवन का निर्माण होता*
*है।।*
कोई दलील चलती नहीं है
प्रभु की अदालत में।
झूठी गवाही कोई दे नहीं
सकता वहां वकालत में।।
ईश्वर की लाठी में जान लो
कोई आवाज़ होती नहीं।
गुनाहगार मत बनो तुम इस
नफरत की जलालत में।।
सब के काम आते रहिये
कोई नुकसान नहीं होगा।
बेवजह जीवन में मुश्किलों
का फरमान नहीं होगा।।
यूँ ही निरर्थक चले गए
बस इस दुनिया से।
फिर बाकी दिल में कोई
ऐसा अरमान नहीं होगा।।
जब मेहनत करोगे तुम तो
सफलता खुद शोर मचाएगी।
तेरी मंजिल तुझको तब
नज़र पास और आयेगी।।
कुदरत का एक उसूल है कि
कोशिश की हार नहीं होती।
चीर कर इन अंधेरों को
खुद जाग भोर जायेगी।।
भीड़ के पीछे नहीं कोई
राह जरा तुम खुद बनायो।
कर्म और श्रम मिला कर
चाह भाग्य की खुद बनायो।।
बांस से तीर ही नहींजरा तुम
देखो बाँसुरी बना कर भी।
भुला कर अतीत तुम जरा
वाह भविष्य की खुद बनायो।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस
*बरेली।।*
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