डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-29


केहि बिधि उदधि पार सब जाई।


कह रघिनाथ बतावउ भाई।।


     सागर भरा बिबिध जल जीवहिं।


     गिरि सम उच्च उरमिं तट भेवहिं।।


प्रभु तव सायक बहु गुन आगर।


सोखि सकत छन कोटिक सागर।


    तदपि नीति कै अह अस कहना।


    सिंधु-बिनय श्रेष्ठ अह करना।।


जलधि होय तव कुल-गुरु नाथा।


तासु बिनय झुकाइ निज माथा।


      पार होंहिं सभ सिंधु अपारा।


      कह लंकापति प्रकटि बिचारा।।


तब प्रभु कह मत तोर सटीका।


पर लागै नहिं लछिमन ठीका।।


     लछिमन कह नहिं दैव भरोसा।


      अबहिं तुष्ट कब करिहैं रोषा।।


निज महिमा-बल सोखहु सागर।


नाघहिं गिरि पंगुहिं तुम्ह पाकर।।


     दैव-दैव जग कायर-बचना।।


      अस नहिं सोहै प्रभु तव रसना।।


राम कहे सुनु लछिमन भाई।


होहि उहइ जे तव मन भाई।।


      जाइ प्रनाम कीन्ह प्रभु सागर।


      बैठे तटहिं चटाइ बिछाकर।।


पठए रहा दूत तब रावन।


जब तहँ रहा बिभीषन-आवन।


     कपट रूप कपि धरि सभ उहवाँ।


      खूब बखानहिं प्रभु-गुन तहवाँ।।


तब पहिचानि तिनहिं कपि सबहीं।


लाए बान्हि कपीसहिं पहहीं ।।


     कह सुग्रीवा काटहु काना।


     काटि नासिका इनहिं पठाना।।


अस सुनि कहे दूत रिपु मिलकर।


करहु कृपा राम प्रभु हमपर।।


     तब तहँ धाइ क पहुँचे लछिमन।


     बिहँसि छुड़ाइ कहे अस तिन्हसन।।


जाइ कहउ रावन कुल-घाती।


मोर सनेस देहु इह पाती।।


     सीय भेजि तुरतै इहँ आवै।


      नहिं त तासु प्रान अब जावै।


दोहा-अस सनेस लइ दूत सभ,किन्ह लखनहीं प्रनाम।


        पहुँचे रावन-लंक महँ,बरनत प्रभु-गुन नाम।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*नशीला*


प्रेम इतना नशीला पता था नहीं।


प्रेम कितना नशीला पता था नहीं??


प्रेम को देख बेहोश हो गिर पड़ा।


हम पड़े हैं कहाँ कुछ पता ही नहीं।


देख कर यह दशा प्रेम भावुक हुआ।


बोला, अब तुम स्वयं को जलाना नहीं।


आओ पकड़ो भुजायें रहो पास में।


दिल पर रख हाथ खुद को बुझाना नहीं।


हम बसे हैं तुम्हारे हृदय में सदा।


अपने मन को मलिन तुम बनाना नहीं।


जो कमी हो कहो पूरी होगी सहज।


अपने दिल को कभी तुम सुलाना नहीं।


जिंदादिल बनकर रहना सदा सीख लो।


अपने दिल को कभी तुम सताना नहीं।


प्रेम को देखकर खुश रहो सर्वदा।


दुःख के आँसू कभी तुम बहाना नहीं।


प्रेम निर्भय निराकार ओंकार है।


हाड़-मज्जा के मंजर पर जाना नहीं।


प्रेम यमदूत होता नहीं है कभी।


प्रेम को देख नजरें चुराना नहीं।


 


प्रेम है स्वच्छ पावन सदा पीरहर।


प्रेम को देखकर धैर्य खोना नहीं ।


भाग्य से प्रेम मिलता जगत में समझ।


प्रेम पाया अगर चाहिये कुछ नहीं।


प्रेम पर्याप्त है जिंदगी के लिये।


प्रेम से है बड़ा जग में कुछ भी नहीं।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0हरि नाथ मिश्र

गीत(16/16)


जब भी कविता लिखने बैठूँ,


लिख जाता है नाम तुम्हारा।


इसी तरह नित पहुँचा करता,


तुझ तक प्रिये प्रणाम हमारा।।


     लिख जाता है नाम तुम्हारा।।


 


अक्षर-अक्षर वास तुम्हारा,


घुली हुई हो तुम साँसों में।


रोम-रोम में रची-बसी तुम,


सदा ही रहती विश्वासों में।


जब डूबे मन भाव-सिंधु में-


मसि बनकर तुम बनी सहारा।।


    लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


हवा बहे ले महक तुम्हारी,


कलियाँ खिलतीं वन-उपवन में।


तेरी ले सौगंध भ्रमर भी,


रहता रस पीता गुलशन में।


हाव-भाव सब हमें बताती-


बहती सरिता-चंचल धारा।।


    लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


तेरा प्रेमी कवि-हृदयी है,


पंछी में भी तुमको पाता।


चंचल लोचन हर हिरनी का,


इसी लिए तो उसको भाता।


चंदा की शीतल किरणें भी-


भेद बतातीं तेरा सारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


 


तुम्हीं छंद हो सुर-लय तुमहीं,


तुम्हीं हो कविता का आधार।


जहाँ लेखनी मेरी भटके,


तुम्हीं हो करती सदा सुधार।


संकेतों की भाषा तुमहीं-


भाव-सिंधु का प्रबल किनारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


   


भाव-सिंधु में बनकर नौका,


पार कराती तुम सागर को।


कविता-मुक्ता मुझको देकर,


उजला करती रजनी-घर को।


तेरी छवि दे शब्द सलोने-


चमकें जैसे गगन-सितारा।।


     लिख उठता है नाम तुम्हारा।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


चलो साथ चलते रहो, हो सुंदर संवाद।


लेकर अंतिम श्वांस को, हों सब खत्म विवाद।।


हों सब खत्म विवाद, न मन में हो कुछ शंका।


रहें प्रेम से लोग, बजे अब सुख का डंका।।


 


कह मिश्रा कविराय, मनुजता के वश रह लो।


करते सबसे प्रेम, राह पकड़ इक चल चलो।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--


 


किया उसने कभी नखरा नहीं था


मज़ा यूँ इश्क़ में आता नहीं था 


 


बला का सब्र था आदत में उसकी


शिकायत वो कभी करता नहीं था 


 


लगा मेले में भी यह दिल न आखिर


वहाँ जो दिलरुबा मेरा नहीं था 


 


मैं करता प्यार का इज़हार कैसे


वो इतना पास भी आया नहीं था


 


इसी से मुश्किलें आती थीं हरदम


वो अपनी बात पर रुकता नहीं था


 


गये थे हम उसी में डूबने को


*समुंदर वो मगर गहरा नहीं था*


 


खुले दिल से मिले दोनों ही *साग़र*


किसी का भी वहाँ पहरा नहीं था 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


23/11/2020


डॉ०रामबली मिश्र

*माँ चरणों में...*


 


मिले चरण रज माँ का केवल।


माँ ही एक मात्र हैं संबल।।


 


कृपदायिनी माँ हैं जिस पर।


खुश रहता सारा जग उस पर।।


 


माँ का आशीर्वाद चाहिये।


जीवन शुभ आजाद चाहिये।।


 


माँ आ जाओ बैठ हंस पर।


दे माँ विद्या का उत्तम वर।।


 


सद्विविवेक दो आत्म ज्ञान दो।


सहनशील संकोच मान दो।।


 


पुस्तक लिखने की शिक्षा दो।


बुद्धिपूर्णता की भिक्षा दो ।।


 


करुणामृत रसपान करा माँ।


गंगा बन जलपान करा माँ।।


 


मन को सात्विक सहज बनाओ।


अपने शिशु को गले लगाओ।।


 


उतरो स्वर्ग लोक से माता।


आनंदी!हे प्रेम विधाता!!


 


प्रेम पंथ का पाठ पढ़ाओ।


श्रीमद्भगवद्गीता गाओ।।


 


कर्म योग का मर्म बताओ।


आत्मतोष की राह दिखाओ।।


 


सत्य-अहिंसा की हो चर्चा।


डालें मानवता का पर्चा।।


 


राग-द्वेष से ऊपर उठकर।


करें सभी से बातें सुंदर।।


 


शीघ्र मोहिनी मंत्र सिखाओ।


सारे जग को मित्र बनाओ।।


 


रहे क्रूरता नहीं जगत में।


सदा मित्रता भाव स्वगत में।।


 


जय जय जय जय जय जय माता।


मातृ अमृता!बन सुखदाता।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*नन्ही चिड़िया*


*************


घास- फूस का नीड़ बनाकर,


मेरे घर में रहती चिड़िया,


दिन में दाना चुगती चिड़िया,


रात में घर आ जाती चिड़िया।


 


घर में रौनक़ लायी चिड़िया,


बहुत प्यारी लगती चिड़िया,


बहुत सबेरे चीं चीं करती,


हम सब को जगाती चिड़िया।


 


 चिड़िया जब खुश हो जाती है,


उसी नीड़ पर अण्डे देती ,


अण्डे से जब बच्चे बनते ,


 पालन पोषण करती चिड़िया।


 


दिन में दाना लाती है चिड़िया,


बच्चों को खिलाती चिड़िया,


 जब वह उडने वाले होते,


अपने साथ उड़ाती चिड़िया।


 


चीं चीं करके जब उड़ते है,


खुशी के गीत गाती है चिड़िया,


दूर गगन में उड़ जाती चिड़िया,


 रात को नीड़ पर आ जाती चिड़िया।।


******************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


निशा अतुल्य

सरस्वती काव्यकृतां महीयताम्


 


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी


सकल जगत को तुम हर्षाते


छवि अलौकिक मन में समाते ।


 


क्षीर-मंथन हुआ सृष्टि का


निकले अद्भुध रत्न संपदा 


गरल निकल जब बाहर आया


त्राहि त्राहि सब ओर मचाया ।


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी ।


 


हाहाकार मचाया विष जब


सूनी लगती सकल धरा तब


शंकर तो कैलाश विराजे


चले देव दानव तब प्यासे ।


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी ।


 


रोक लिया प्रभु गरल कंठ जब 


कहलाये प्रभु नीलकंठ तब ।


आशुतोष सिर गंगा मोहे


कंकण नाग हार गल सोहे 


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी ।


 


माँ गौरी वामांग विराजे


वर मुद्रा धार सृष्टि तारे 


मात पिता पूजन कर गणपति


प्रथम पूज्य वर पाइ सम्मति ।


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी।


 


जय जय जो एक दंत मनाते


विघ्नहर्ता विघ्न हर जाते


रिद्धि सिद्धि सँग देवा आते


शंकर गौरी पुत्र कहलाते ।


शिव शंकर भोले भंडारी 


महिमा तेरी है अति प्यारी ।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(भ्रमर-16/14)


बेमौसम घेरे हैं बादल,


गरजें देखो घहर-घहर।


हवा है बहती सर-सर,सर-सर,


पानी बरसे झर-झर-झर।


छोड़ कली को भागो झट-पट-


मेरे प्यारे मीत भ्रमर!!


 


सुनो मीत हे प्रेम-दिवाने,


ग़फ़लत में मत रहना तुम।


मौसम का है नहीं भरोसा,


कभी सरद तो कभी गरम।


जाओ मग़र लौट फिर आना-


इसकी रखना सदा ख़बर।।


        मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


सच्चे प्रेमी खाकर कसमें,


वादे सदा निभाते हैं।


मौसम की वे मार भी सहते,


कभी नहीं घबराते हैं।


भले रहें वे दूर कहीं भी-


रखें प्यार पे भली नज़र।।


मेरे प्यारे मीत भ्रमर ।।


 


सुख-दुख तो हैं आते-जाते,


जीवन की इस यात्रा में।


मिलते फूल कभी तो मिलते,


काँटे थोड़ी मात्रा में।


कभी तो मिलतीं समतल राहें-


ऊभड़-खाभड़ कभी डगर।।


        मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


कहाँ चंद्रमा पूनम का है,


कहाँ समुंदर की धारा।


दूर गाँव के वासी दोनों,


अवनि-गगन- मिलन नज़ारा।


अमर प्रेम की अमर कहानी-


है जग में सबसे बढ़कर।।


    मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


भ्रमर-कली का प्रेम प्राकृतिक,


कभी नहीं बंधन टूटे।।    


जब तक गंग-जमुन-जलधारा,


रहे साथ बरु जग छूटे।


शारीरिक अलगाव सुनिश्चित-


किंतु प्रेम जग रहे ठहर।।


    मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल


मात्रा भार-16


इस भारत भू पर आस जगा,


अपना इसपर विश्वास जगा।।


 


मातृ-भूमि की सेवा के प्रति,


मन में अपने उल्लास जगा।।


 


त्याग और बलिदान लक्ष्य हो,


भोग के भाव न विलास जगा।।


 


जिनमें नहीं भला की भावना,


भाव-शून्य मन उदास जगा।।


 


शिक्षा-दीक्षा जहाँ अधूरी,


जा,शिक्षा-क्रांति-विकास जगा।।


 


असहायों की कर सहायता,


जला आस-दीप हुलास जगा।।


 


मानवता ही धर्म एक है,


जन में ऐसा आभास जगा।।


       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

*मंत्र फूँक माँ...*


 


सिद्धिदायिनी शुभ फल दानी।


विनय प्रदात्री महान ज्ञानी।।


 


लोकातीत मूल्य संवाहक।


विद्या महा अनंत सुनायक।।


 


परम रूपसी प्रेम लुभावन।


सहज ज्ञानश्री दिव्य सुहावन।।


 


मंत्र फूँक माँ शिव बनने का।


शांत गौर शुभ्र रचने का।।


 


तुम उत्सव प्रिय पर्व अनंता।


वैभव लक्ष्मी नित श्रीकंता।।


 


ब्रह्माणी ब्राह्मणी सत्व हो।


सबमें एकीकृत समत्व हो।।


 


ध्यान महान सुजान सुशीला।


प्राण महामय स्वरा सुरीला।।


 


धन्य धर्म सत्कर्म सर्व हो।


महा तपस्विनि यज्ञ पर्व हो।।


 


बनी सांत्वना आ माँ उर में।


गंगा बन बह अंतःपुर में।।


 


दोहा:दिल में आओ बैठकर ,गा माँ मोहक गीत।


ज्ञान-प्रेम अरु भक्ति दे,रच सुंदर मनमीत।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


रवि रश्मि अनुभूति

  छठ पूजा 


************


अर्चन करें सूर्य देव का , स्वस्थ जीवन पाने को ।


करते सभी हम नमन उसको , सभी आओ छठ मनाने को ।।


 


हो समर्पित ध्यान धरें सभी ,


        सुख जो सबको देता है ।


कलियाँ खुशियों की दे सबको , 


        जो कण - कण महकाता है ।।


 


भाद्र पद रहे शुक्ल पंचमी , 


        व्रत तो सब करते ही हैं ।


नदी किनारे पूजा होती , 


        खुश मन वे चलते ही हैं ।


 


भोग लगायें आराध्य माँ , 


      धरती पर हरियाली हो ।


करें विनती हे छठी मैया , 


        घर घर में खुशहाली हो ।


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


वैष्णवी पारसे

दिल में उठे सवाल, खुबसूरत से ख्याल, आया एक पल ऐसा, हो गई दिवानी मैं। 


 


 उसमे ही खोई खोई , हरपल रहती हूं , मोह भरी दुनिया से ,हो गई बेगानी में। 


 


दिल में वो बस गया, रंग में वो रंग गया, ऐसा एक नशा छाया, हो गई सयानी मैं।


 


चाहती हूं बस यही, साथ रहे हरदम, तू है मेरा बाजीराव, तेरी हूँ मस्तानी मैं।


 


स्वरचित 


वैष्णवी पारसे


डॉ०रामबली मिश्र

*चतुष्पदियाँ*


 


करो मदद जितना हो संभव,


मत समझो कुछ यहाँ असंभव;


खोजो सत्कर्मों का उद्भव।


बन जाये अति सुंदर यह भव।।


 


अति मोहक प्रतिमा बन चलना,


मधु भावों से सबसे मिलना;


मीठी-मीठी बातें करना।


प्रीति परस्पर करते रहना।।


 


सहज हृदय से चलना-फिरना।


सबका नियमित आदर करना;


दीन-हीन का रक्षक बनना।


मानवता का चिंतन करना।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल(मात्रा भार-16)


बाग एक गुलज़ार चाहिए,


जिसमें रहे बहार चाहिए।।


 


कभी न रूखा होए जीवन,


एक अदद बस प्यार चाहिए।।


 


आपस में बस रहे एकता,


ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।


 


सत्य-अहिंसा-मानवता ही,


जीवन का आधार चाहिए।।


 


रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,


ऐसा उच्च विचार चाहिए।।


 


जो भी हैं असहाय व रोगी,


उचित उन्हें उपचार चाहिए।।


 


घृणा-भाव का हो विनाश अब,


प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।


       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*तिकोनिया छंद*


 


करो कहो मत,


यह है ताकत।


दुनिया सहमत।।


 


मुँह को खोलो,


सुंदर बोलो।


साथ ले चलो।।


 


प्रीति निभाओ,


सेज सजाओ।


पर्व मनाओ।।


 


अति रंगीला,


बहुत छवीला।


परम रसीला।।


 


आ जाओ अब,


गुण गाओ तब।


अब ना तो कब??


 


जोड़ मिलाओ,


रच-बस जाओ।


रस बरसाओ।।


 


प्रीतिपान कर,


नित्य ध्यान कर।


हृदय-स्नान कर।।


 


भंग जमाओ,


मधु महंकाओ।


मौज उड़ाओ।।


 


चलो सरासर,


प्रेम किया कर।


श्याम रूप धर।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

दीप और पतंगा


 


दीपक और पतंगे की है अजब कहानी


दीपक पर मर मिटने की पतंगे ने ठानी


निस्वार्थ प्रेम करे है दीप से पतंगा


मंडराता चहुँ ओर मद मस्त सुरंगा


कितनी भी हो पीड़ा सह लेता मुसकाकर


कहता न कभी कुछ त्याग करे इतराकर


दीपक कहता मैं हूँ प्रकाश बिखराता


आओ न निकट तपिश से तन जल जाता


है दीप पतंगे की अमर संसार में जोड़ी


जिसे तोड़ न पाया कोई दिशा न मोडी


दीपक पर प्राण न्यौछावर करे पतंगा


लौ बुझा दीप भी पतंगे संग समाना


एक दूजे के साथ त्याग, प्रेम और समर्पण


ले जीवन का आधार मिटे एक दूजे पर


दे सीख जगत को मर मिटे प्रेम दीवाने


उनकी अमर कहानी को दुनिया माने।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26


मुक्त करउँ सरनागत-पापी।


कोटिक जनम अघी-संतापी।।


     कपटी-कुटिल-छली नहिं पावैं।


     निरछल-निरमल मन मोंहिं भावैं।।


सुनु कपीस मम हानि न भवही।


जदपि भेद लेवन ई अवही।।


     एकहि पल मा लछिमन बधहीं।


      जे केहु निसिचर जग मा अहहीं।।


राखउँ सरनागत जिमि प्राना।


करउँ अभीत ताहि जग जाना।।


     जाहु लाउ ऊ जे केहु होवै।


     परहित करि नर कछु नहिं खोवै।


कहत राम जय अंगद चलहीं।


पवन-पुत्र लइ सभ कपि-दलहीं।।


      सादर आइ बिभीषन तहवाँ।


      कृपानिधान रहहिं तब जहवाँ।।


पावा लोचन-सुख अभिरामा।


निरखि क अनुज सहित श्रीरामा।।


      अपलक नेत्र लखै भय-मोचन।


      साँवर तन-कंजारुन लोचन।।


देखहि बहुरि राम छबि-धामा।


बाहु अजान अतुल बल रामा।।


     केहरि-कंध,बिसालइ बच्छा।


     मदन असंख्य मोहित मुख अच्छा।।


सजल नयन अरु पुलकित गाता।


कहा नाथ मैं रावन-भ्राता।।


     तामस देह जनम निसिचर-कुल।


      जिमि उल्लू रह तम बिनु ब्याकुल।।


हरहु पीर प्रभु भव-भय-भंजन।


रच्छ मोंहि हे प्रभु चितरंजन।।


दोहा-सुनि अस बाति बिभीषनइ, राम उठे मुसकाय।


         पाद छुवत जब ऊ रहा,निज उर लिए लगाय।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां शारदे*


******************


विद्या की देवी मां शारदे,


नित तेरी आराधना करु,


ऐसी मुझे विमल मति दे मां


गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु,


मुझे तुम वरदान दो मां।


 


हे मधुर भाषिणी मां शारदे,


तिमिर का तू नाश करती,


 कुविचार का तू सर्व नाश करती,


सबको सुविचार और ज्ञान दे मां,


और जीवन में उमंग ला दे मां।


 


हे शुभ्र वस्त्र धारणी मां शारदे,


जो भी तुम्हारे शरण में आये,


उसे सही राह बताना मां,


उसे सद् बुद्धि दे देना मां,


विनम्रता का दान देना मां।


 


हे मां सरस्वती ऐसा वरदान दो,


दीन दुखियों की सेवा सदा करु,


राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,


नित नित तेरा ही ध्यान करु मां,


अपने चरणों में स्थान दो मां।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

*संशोधन*


 *(दोहा)*


 


कर्म करो चलते रहो,देख कर्म का रूप।


मूल्यांकन करते रहो, दो अति सहज स्वरूप।।


 


क्रिया हेतु कोशिश करो, गलती खोजो नित्य।


सतत सुधारो खामियाँ, क्रिया बने नित स्तुत्य।।


 


संशोधन व्यक्तित्व में, लाता सतत निखार।


संशोधन से आगमन, करता शुभद विचार।।


 


जिद पर कभी अड़ो नहीं, पूर्वाग्रह को छोड़।


संशोधन की ओर ही, अपने मन को मोड़।।


 


संशोधन उपकरण है, यह जीवन का भाग।


संशोधन की राह के, प्रति रख नित अनुराग।।


 


सामाजिक अस्तित्व का, संशोधन वरदान।


स्वस्थ समाजीकरण के, लिये यही भगवान।।


 


बिन संशोधन के नहीं, बनता स्वस्थ समाज।


जीवन के हर क्षेत्र में, संशोधन का राज।।


 


संशोधन से व्यक्ति में, विकसित होत विवेक।


सद्विवेक से मनुज बन, जाता सुंदर नेक।।


 


संशोधन करते रहो, यह अत्युत्तम पंथ।


इसी प्रक्रिया से बनो, इक दिन पावन ग्रंथ।।


 


यही संस्करण आत्म का, करता जीर्णोद्धार।


फलीभूत होता सतत, शुभ शिव उच्च विचार।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 सुबह-सुबह 😊😊


 


सुबह -सुबह उठकर करो, 


                प्रभु को प्रथम प्रणाम।


माॅ॑गो प्रभु से वर यही, 


                   पूरे हों सब काम।


 


पानी पीकर गुनगुना,


                   चलो सुबह को सैर। 


तभी साथ देंगे सुनो,


                  जीवन भर ये पैर।


 


आलस करना है मना,


                 सुबह-सुबह श्रीमान।


सोऍ॑ कभी न देर तक, 


                  लम्बी चादर तान।


 


देखें सूरज सुबह का,


                   उसको करें प्रणाम।


ऊर्जा से भरपूर तब, 


                    रहता सूर्य ललाम।


 


स्वस्थ रहें चाहत अगर,


                     इतना करें ज़रूर।


कहना मेरा मानिए, 


                    विनती यही हुज़ूर।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

मेहनत


 


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


दिन कितने रात भी कितनी


तेरी बीती होगी चिंतन में


तय करना होगा जिससे कि


होगी सम्मुख सुख सुविधा तेरी


कठिन मेहनत करके तूने


क्षीण किया होगा अपने तन को


लिया प्रलोभन भांति भांति के


सांसारिक माया ने भी भरमाया होगा


बिना किसी संकोच लक्ष्य बना ले


जो कुछ तुझको पाना हैं


तेरी आंखो के आगे


गीता का ज्ञान,मार्गदर्शन करेगी


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


उस निश्चय से निकली होगी


चिंता तेरे अंतश से


असहाय मानव का भी सहारा है मेहनत


एक आशा की किरण शेष होती हैं


खोजती फिरती किसे है तू


इस तरह पागल विकल होकर


बीच भंवर में तू फंस जायेगा


विश्व से आशा लगाते लगाते


कहीं खो न जाये तेरा विश्वास


विश्व की संवेदना में


वह घड़ी भी निश्चित आयेगी


चिंता नहीं होगी तेरे पास में


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*मनुष्य के कर्मों से ही मनुष्य*


*के जीवन का निर्माण होता*


*है।।*


 


कोई दलील चलती नहीं है


प्रभु की अदालत में।


झूठी गवाही कोई दे नहीं


सकता वहां वकालत में।।


ईश्वर की लाठी में जान लो


कोई आवाज़ होती नहीं।


गुनाहगार मत बनो तुम इस


नफरत की जलालत में।।


 


सब के काम आते रहिये


कोई नुकसान नहीं होगा।


बेवजह जीवन में मुश्किलों


का फरमान नहीं होगा।।


यूँ ही निरर्थक चले गए


बस इस दुनिया से।


फिर बाकी दिल में कोई


ऐसा अरमान नहीं होगा।।


 


जब मेहनत करोगे तुम तो


सफलता खुद शोर मचाएगी।


तेरी मंजिल तुझको तब


नज़र पास और आयेगी।।


कुदरत का एक उसूल है कि


कोशिश की हार नहीं होती।


चीर कर इन अंधेरों को 


खुद जाग भोर जायेगी।।


 


भीड़ के पीछे नहीं कोई 


राह जरा तुम खुद बनायो।


कर्म और श्रम मिला कर


चाह भाग्य की खुद बनायो।।


बांस से तीर ही नहींजरा तुम


देखो बाँसुरी बना कर भी। 


भुला कर अतीत तुम जरा 


वाह भविष्य की खुद बनायो।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


आचार्य गोपाल जी

 अक्षय नवमी की शुभकामनाएं


 


अक्षय आंवला के नाम से ,


कार्तिक नौमी तिथि को जान ।


आंवला वृक्ष पूजन रक्षण कर, 


करें प्रकृति का सब सम्मान ।


पालक विष्णु भगवान का,


पूजन का है अजब विधान ।


आंवला केला कभी कदम में 


करे निवास प्रभु नित ये जान ।


संरक्षण हो पर्यावरण का,


सब मिल इसका धरो ध्यान ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


एस के कपूर श्री हंस

*आज का विषय।।मित्र/मित्रता।।*


*रचना शीर्षक।।कोशिश करो कि*


*जिन्दगी हमारी अपनी मित्र*


*बन जाये।।*


 


मुस्करा कर ही जीना तुम


इस जिंदगानी में।


माना कि कुछ रास्ते खराब भी


हैं इस रवानी में।।


जान लो कि जिन्दगी फिदा है


इस मुस्कराहट पर।


चाहे कितने गम हों जीत कर ही


आओगे इस कहानी में।।


 


यह जीवन बस इम्तिहानों का ही


दूसरा नाम है ।


एक रास्ता बंद हो तो भी जान लो


दूसरे तमाम हैं ।।


तुम्हारा भाग्य तुम्हारे कर्म की ही


मुट्ठी में होता है कैद ।


यह किस्मत की लकीरें तेरे परिश्रम


का ही ईनाम हैं ।।


 


गमों में भी मुस्कारनें की यह आदत


बहुत अलबेली है।


तन्हाई में भी जिन्दगी कभी रहती


नहीं अकेली है ।।


तनाव अवसाद फिर असर नहीं


करते आदमी पर ।


कभी यह जिन्दगी हमारी बनती


नहीं फिर पहेली है ।।


 


कोशिश करें कि जिन्दगी हमारी


अपनी ही मित्र बन जाये।


वक़्त मुश्किलों का भी हमारा


सचरित्र बन जाये।।


बस खुश रहें हम हर वक़्त और


हर दर्दो गम में ।


जिसका हर जवाबो हल हो बस


जिंदगी ऐसा चित्र बन जाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब 9897071046


                            8218685464


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