एस के कपूर श्री हंस

*कॅरोना सावधानी से हो*


*शिक्षित।।रहो सुरक्षित।।*


*(हाइकु)*


1


लापरवाही


कॅरोना जानलेवा


लाये तबाही


2


संयम जरा


मास्क लगा निकलें


जीवन भरा


3


रोज़ बुखार


लक्षण हो सकते


हो उपचार


4


मास्क लगा


कफन से है छोटा


जीवन बचा


5


ये हाथ धोना


आज है वरदान


जीव न खोना


6


नहीं चेतोगे


सावधानी हटी जो


कैसे बचोगे


7


बचें जाने से


खुद लॉकडाउन


यूँ गवानें से


8


न हो दीवाना


मत बाहर जाना


न हो अंजाना


9


करो सुरक्षा


गाइड लाइन हो


तभी तो रक्षा


10


अभी लहर


कॅरोना गया नहीं


अभी कहर


11


हो इम्युनिटी


आयुर्वेद औषधि


पियो काढ़ा भी


12


दो ग़ज़ दूरी


बचाव का साधन


यह जरूरी


13


पास साबुन


साफ करते रहो


हाथ नाखून


14


भीड़ से दूरी


बच कर जरूरी


है मजबूरी


15


अपनी रक्षा


हो कॅरोना सुरक्षा


घर में कक्षा


16


दवाई नहीं


करें जरा सुरक्षा


ढिलाई नहीं


*रचयिता।।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।। बरेली।।*


मोब 9897071046


         8218685464


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण(श्रीरामचरितबखान)-27


कह बिठाइ लछिमन के संगा।


कहु नरेस परिवार-प्रसंगा।।


      बोले प्रभु निवास खल-देसा।


      होय तुम्हारइ सुनहु नरेसा।।


कस तुम्ह तहँ अस सहेसि अनीती।


तव हिय बस अति निष्छल प्रीती।।


      नरक-निवास होय बरु नीका।


       केतनहुँ सुखद कुसंगइ फीका।।


अब तव चरन-सरन मैं आया।


हे प्रभु करउ मोंहि पे दाया।।


     जब तक बिषय-भोग-रत जीवइ।


      तब तक उहइ गरल-रस पीवइ।।


काम-क्रोध-मद-मोह-बिमोचन।


होय दरस करि राजिव लोचन।।


     होत उदय प्रकास प्रभु सूरज।


      भागै मद-अँधियारा दूखज।।


कुसलइ रहहुँ पाइ रज चरना।


कृपा-हस्त प्रभु मम सिर धरना।


     भौतिक-दैहिक-दैविक-सूला।


      पा प्रभु-सरन होंय निरमूला।।


मों सम निसिचर अधम-अधर्मी।


लेइ सरन प्रभु कीन्ह सुधर्मी।।


      सुनहु तात जे आवै सरना।


      तजि मद-मोह-कपट अरु छलना।।


मातुहिं-पिता-बंधु-सुत-नारी।


सम्पति-भवन,खेत अरु बारी।


     देहुँ भगति बर संत की नाईं।


     पाटहुँ तिसु मैं भव-भय खाईं।।


रखहुँ ताहि मैं निज उर माहीं।


जिमि लोभी धन-संपति ध्याहीं।।


     सुनहु नरेस सकल गुन तुझमा।


     तुम्ह मम प्रिय सभतें इह जग मा।


दोहा-जे जग महँ परहित करै, निरछल मनहिं सनेम।


        सुनहु तात तेहिं हिय रखहुँ,सदा करहुँ तेहिं प्रेम।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*होना दुःखी...*


 


होना दुःखी देख दुःखिया को।


यही सीख देना दुनिया को ।।


 


देख दुःखी मोहित हो जाना।


दुःखी हेतु कुछ करते जाना ।।


 


"मदर टेरेसा" बनकर जीना।


दुःखियों के आँसू को पीना।।


 


संकटमोचन बनकर चलना।


महावीर हनुमानस बनना।।


 


भर लो भीतर संवेदन को।


स्वीकारो दुःख-आवेदन को।।


 


दुःखी जगत की सुनो प्रार्थना।


दुःख के मारे करत याचना।।


 


जीवन का यह काम बड़ा है।


अन्य काम इससे छोटा है।।


 


जो करता दीनों की रक्षा।


बन जाता वह सबकी शिक्षा।।


 


जो विद्यालय बनकर जीता।


अमृत रस आजीवन पीता।।


 


बना अमर वट छाया देता।


सारे कष्टों को हर लेता।।


 


जिसके भीतर प्रेम रसायन।


उसके रोम-रोम शोभायन।।


 


जो दे देता अपना तन-मन।


वह बन जाता पावन उपवन।।


 


सकल जगत को सींचा करता।


दुःख-दरिद्रता खींचा करता।।


 


सुंदर भाव जहाँ बहता है।


कायम स्वर्ग वहाँ रहता है।।


 


जहाँ राम का नाटक होता।


वहाँ विभव का फाटक होता।।


 


सन्त मिलन की संस्कृति जागे।


दुःख-दारिद्र्य-रोग सब भागें।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

प्रभु भक्ति में मन लगा लेे


 


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


आत्म ज्ञान बिना नर भटक रहा है


क्या मथुरा क्या काशी


जैसे मृग नाभि में रहता है कस्तूरी


फिर भी बन बन फिरत उदासी


प्रभु जी का भजन न कर तूने


हीरा जैसा जन्म गंवा रहा है


पानी में मीन प्यासी


मोहे सुन सुन आवे हांसी


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


बाहर ढूंढत फिरा मै जिसको


वो वस्तु घट भीतर हैं


बिन प्रभु कृपा शांति नहीं पावे


लाख उपाय करें नर कोई


कहे सतगुरु सुनो भाई साधो


बिन प्रभु कृपा मुक्ति न होई


अरे मन किस पै तू भूला है


बता दें जग में कौन तेरा है


तेरे मां बाप और भाई


सभी स्वार्थ के हैं साथी


तेरे संग क्या जायेगा


जिसे कहता तू मेरा हैं


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


 भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो को नाश कर देती हैं


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*परमवीर-चक्र-प्राप्त-अब्दुल हमीद*


 


परम वीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं,


लगा-लगा प्राणों की बाजी,माँ का मान बढ़ाए हैं।।


 


 परम वीर इक्कीस लाल ये,प्राणों का उत्सर्ग किए,


अरि के मद का मर्दन कर के,इस माटी को स्वर्ग किए।


क़तरा-क़तरा लहू बहा कर,माँ की लाज बचाए हैं-


परम वीर सुत बलि-वेदी पर हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


लांस नायक श्री हमीद जा,रौशन अपना नाम किए,


तीन टैंक को तोड़ शत्रु के,नमन योग्य हैं काम किए।


अंत में घिर कर वे दुश्मन से,अपने प्राण गवाँए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


गौरव जनपद गाजीपुर के,वासी थे धामूपुर के,


यू0पी0 के वे रहनेवाले,दक्ष-निपुण कुश्ती-गुर के।


करके पस्त हौसले अरि के,जन-जन को वे भाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


थल-सेना-नायक हमीद ने,नया एक इतिहास रचा,


तोप-सजी ले एक जीप से,तोड़ा टैंक न शेष बचा।


ऐसे नायक नमन योग्य हैं,ये आज़ादी लाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


भूला नहीं कृतज्ञ देश यह,निडर हमीद बलवीर को,


पाक-युद्ध सन पैंसठ वाले,इसी महान रणधीर को।


परमवीर का चक्र इन्हें दे,हम सब खुशियाँ पाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


               7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी,


               यशलोक हॉस्पिटल के बगल,


              देवकाली रोड, फैज़ाबाद।


                 अयोध्या-22 4001(उ0प्र0)


डॉ०रामबली मिश्र

*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


करना कभी गुमान मत, चलो न टेढ़ी चाल।


अपने मीठे वचन से, रख सबको खुशहाल।।


रख सबको खुशहाल, रहें सब मौज उड़ाते।


मिटे कष्ट-संताप, मिलें सब हाथ मिलाते।।


कह मिश्रा कविराय, सभी से मिलकर रहना।


सबके प्रति हो स्नेह, तकरार कभी न करना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

सर्दी आई


 


माँ देखो अब सर्दी आई


मेरे मन को ये लुभा गई


गर्म मुंगफली की महक है


मीठी रेवड़ी मन भा गई ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई ।।


 


नरम गर्म है मेरा बिस्तर


मज़ा आ गया उस पर सो कर 


माँ मुझको तुम सूप पिलाओ


गर्मी शरीर में पहुँचाओ ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सूरज भी अब मद्धम दिखता


ताप ना क्यों जरा भी लगता 


सर्द हवा जब सर सर चलती


कानो को मफलर है भाता ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सर्दी से हमें बच कर रहना


स्वस्थ स्वयं को हमें है रखना


गर्म वस्त्र पहनने होंगे 


माँ मेरी अचकन सिलवाना।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


सुनीता असीम

चहरा उसका ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब।


आंखें हैं पैमाने उसकी जिनसे छलके शराब।


लबों में खिलती हैं कलियाँ इस मुस्कान से-


हुस्न का ऐसा प्रश्न है वो जिसका नहीं ज़बाब।


******


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

*चलो चूमते.... (चौपाई ग़ज़ल)*


 


चलो चूमते सारी धरती।


हरी-भरी दिख जाये परती।।


 


एक-एक कण का हिसाब रख।


भरो अंक में सारी धरती।।


 


चूमो इसको समझ प्रेयसी।


प्यारी बहुत दुलारी धरती।।


 


यही प्रेयसी मातृ भाव से।


सारे जग का पालन करती।।


 


करो नमन नित सहज समादर।


हरियाली से मन को हरती।।


 


भूमि संपदा नैसर्गिक है।


परमार्थी बन पोषण करती।।


 


सृष्टि असंभव बिन मिट्टी के।


धरती से ही सारी जगती।।


 


अर्थवती नित मूल्यवती यह।


हर प्राणी की सेवा करती।।


 


चूमो गले लगाओ माटी।


सदा रसामृत सारी धरती।।


 


हँसती जब यह फसल लपेटे।


देख रूप यह जगती हँसती।।


 


यह आधारशिला जीवन की।


लिये उदर में नीर मचलती।।


 


धरती का कण-कण अति पावन।


इत्र सदृश यह सतत गमकती।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*रस बरसेगा*


*(तिकोनिया छंद)*


 


रस बरसेगा,


नित मँहकेगा।


मन चहकेगा।।


 


मधुर मिलन हो,


गुप्त हिलन हो।


दिल बहलन हो।।


 


प्रीति जगेगी , 


रात सजेगी।


खुशी मिलेगी।


 


मितवा आये,


गीत सुनाये।


मोह दिखाये।।


 


नित दर्शन हो,


प्रिय स्पर्शन हो।


प्रेम मगन हो।।


 


सुख समता हो,


स्वर्गिकता हो।


मधुमयता हो।।


 


भोग समांतर,


सुख अभ्यंतर।


मेल निरंतर।।


 


रचनाकार०:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

ये रिश्वतखोर


 


मन के काले ईमान से दाग वाले


समाज के दोषी ये रिश्वतखोर


विकृत मानसिकता वाले


खोलें हर फाइल के ताले


करें न काम बिना रिश्वत


बिगाड़ें ईमान शत प्रतिशत


मोटी रकम की चाहत वाले 


लोभी ये रिश्वत पाने वाले


रग-रग में बसी रिश्वतखोरी


हराम का लेते पैसा करके जोरी


मजबूरी का उठाते हैं ये फ़ायदा


इनके जीवन का नहीं है कोई कायदा


हर जगह मिल ही जाते हैं ऐसे इंसान


हमने ही तो बनाया है उन्हें रिश्वतखोर


देकर उन्हें सुविधा पाने रिश्वत का दान


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

माँ मुझे वर दे दो


★★★★★★★★★★


 मां वरदायिनी वर दे,


मैं काव्य का पथिक बन जाऊँ,


थोड़ी सी कविता माँ मैं लिख पाऊँ,


भावों की लड़ियों को गूँथू,


इस कविता रुपी माला से,


मैं भी अभिसिंचित हो जाऊँ,


मां मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ।


 


सबके हित की बात लिखू मैं,


बाहर -भीतर एक दिखूँ मैं,


हृदय में आकर बस जाओ,


नेह राह पर चलू मैं नित,


मात अकिंचन का नमन स्वीकार करो,


जीवन में भर दो अतुलित प्यार,


मां मुझे सही राह दिखाओ।


 


मुक्त भावों के गगन में उड़ सकूं,


निर्मल मन से हर किसी से जुड़ सकूं,


मुक्त कर दो मेरे हृदय के दोषों को,


दम्भ, छल, मद, मोह -माया दोषो से,


व्योम सा निश्चल हृदय विस्तार दो,


जीवन में उल्लास भर दो


माँ मुझे वर दे दो।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-28


जय कृपालु भगवन जगदीसा।


कह अस कपिन्ह समेत कपीसा।।


    पुनः बिभीषन गहि प्रभु-चरना।


     कह रघुनाथ सुनहु मम बचना।।


सरनागत-प्रेमी रघुबीरा।


जग आए धरि मनुज-सरीरा।


    जे कछु मम उर रही बासना।


     लुप्त भईं तव पा उपासना।।


पावन भगति देहु प्रभु मोहीं।


प्रनतपाल-कृपालु प्रभु तोहीं।।


     एवमस्तु तब कह रघुबीरा।


      कह मम बचन सुनहु धरि धीरा।।


तव बिचार जद्यपि अस नाहीं।


करहुँ तुम्हार तिलक यहिं ठाहीं।।


     अस कहि राम सिंधु-जल लइ के।


      कीन्हा तिलक बिभीषन ठहि के।


भवई सुमन-बृष्टि तब नभ तें।


भे लंकेस बिभीषन झट तें।।


दोहा-रावन-क्रोधहिं अनल महँ,जरत बिभीषन-लंक।


       रच्छा करि प्रभु दीन्ह तिन्ह,लंका-राज निसंक।।


       रावन पाया राज लंक,सिवहिं देइ दस सीस।


        तेहि संपत्ति बिभीषनहिं, दीन्ह छिनहिं जगदीस।।


                          डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 देव उठे 😊😊


 


देव उठे तुम भी उठो, 


                    छोड़ो बिस्तर यार।


करो काम कुछ मत बनो,


                   इस धरती का भार।


 


आलस कर देगा तूम्हें,


                    सचमुच में बीमार।


बन जाओगे बोझ ही, 


                      मानो इस संसार।


 


हाल सदा हरदम यही, 


                    रहा अगर तो यार।


जीवन नैया ये नहीं, 


                     हो पाएगी पार।


 


एकादशी पर्व तुम्हें, 


                    प्रण लेना है आज।


श्रम करना हर दिन मुझे,


                छोड़ आलस व लाज।


 


         ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ०रामबली मिश्र

*विचार मूल्य*


      *(दोहा)*


 


मूल्यवान हर चीज वह, जिसका अधिक महत्व।


रक्षा करे समाज की, और बचाये स्वत्व।।


 


सुंदर सार्थक बात ही, मूल्यवान इस लोक।


गढ़ती उत्तम बात ही, सुंदर नित नव श्लोक।।


 


मूल्यवान है वह क्रिया, रचे जो स्वर्गिक देश ।


क्रिया-मूल्य देता सहज, सबको सुंदर वेश।।


 


मूल्यवान वे शव्द हैं, जिनके मोहक भाव।


डाला करते मनुज पर,शिवमय दिव्य प्रभाव।।


 


उसी व्यक्ति का मूल्य है, जिसका सुखद प्रयोग।


मूल्यहीन हर व्यक्ति का, सदा निरर्थक योग।।


 


सत-शिव-सुंदर मूल्य ही, रचते देव-समाज।


सद्विचार का केन्द्र ही , करता जग पर राज।।


 


उत्तम मूल्यों से रचो, खुद को सबको रोज।


उत्तम मूल्यों से खिला, दिखता दिव्य सरोज।।


 


भौतिकता से दूर अति,है वैचारिक मूल्य ।


सदाचार अरु शिष्टता,सतत सनातन स्तुत्य।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*जीवन में जो देते हैं वह ही लौट*


*कर वापिस आता है।।*


 


जान लो कि यह जिन्दगी एक


दिन छूट जायेगी।


देखते देखते श्वास भी यूँ ही 


इक दिन टूट जायेगी।।


कर लो कुछ अच्छा अपने इसी


एक जीवन में।


ना जाने कब यह जिंदगानी 


तुझसे रूठ जायेगी।।


 


मझधार में घिर कर भी किसी


के साहिल बन कर देखो।


अपनी ही मेहनत से ही जरा


तुम माहिर बन कर देखो।।


जो संघर्ष स्वीकार करता वही


ही आगे बढ़ता है।


किसी की तकलीफों में भी तुम


जरा जाहिर बन कर देखो।।


 


जीवन एक प्रतिध्वनि सब कुछ


लौट कर आ जाता है।


हर मनुष्य अपनी करनी का 


फल जरूर पाता है।।


आपका कहा आपके आचरण


में जरूरआना ही चाहिये।


आपका ही अच्छा बुरा वापिस


लौट कर लाता है।।


 


सूरज धीरे धीरे निकलता और


ऊपर चढ़ता जाता है।


जो जैसा विचार सोचता वैसा 


ही वो बनता जाता है।।


हमेशा स्व आकलन अपना आप


जरूर ही करते रहे।


जो हार से सीखता रास्ता जीत


का वो पकड़ता जाता है।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


एस के कपूर श्री हंस

*सुंदर व्यक्तित्व जीवन जीवन की अनमोल धरोहर।। नकारात्मक से सकारात्मक बनने की ओर।।* 


*(हाइकु)*


*(क) क्रोध से बचें।*


1


क्रोध अंधा है


अहम का बंदा है


बचो गंदा है


2


अहम क्रोध


कई हैं रिश्तेदार


न आत्मबोध


3


लम्हों की खता


मत क्रोध करना


सदियों सजा


4


ये भाई चारा


ये क्रोध है हत्यारा


प्रेम दुत्कारा


5


ये क्रोधी व्यक्ति


स्वास्थ्य सदा खराब


न बने हस्ती


6


क्रोध का धब्बा


बचके रहना है


ए मेरे अब्बा


7


ये अहंकार 


जाते हैं यश धन


ओ एतबार


8


जब शराब


लत लगती यह


काम खराब


*(ख) रिश्तों को संभाल कर रखें।*


9


नज़र फेर


वक्त वक्त की बात


ये रिश्ते ढेर


10


दिल हो साफ


रिश्ते टिकते तभी


गलती माफ


11


दोस्त का घर


कभी दूर नहीं ये


मिलन कर


12


मदद करें


जबानी जमा खर्च


ये रिश्ते हरें


13


मिलते रहें


रिश्तों बात जरूरी


निभते रहें


14


मित्र से आस


दोस्ती का खाद पानी


यह विश्वास


15


मन ईमान


गर साफ है तेरा


रिश्ते तमाम


16


मेरा तुम्हारा


रिश्ता चलेगा तभी


बने सहारा


17


दूर या पास


फर्क नहीं रिश्तों में


बात ये खास


*(ग) अहम खराब है।*


18


जरा तिनका


काँटों जैसा चुभता


मन इनका


19


कोई बात हो


टोका टाकी ज्यादा ना


दिन रात हो


20


कोई न आँच


खुद पाक साफ तो


दूजे को जाँच


21


खुद बचाव


बहुत खूब करें


यह दबाव


22


दोषारोपण


दक्ष इस काम में


होते निपुण


23


तर्क वितर्क


काटते उसको हैं


तर्क कुतर्क


24


रहे न भला


गलती ढूंढते हैं


शिकवा गिला


25


बुद्धि विवेक


तभी होते हैं पूर्ण


यही है नेक


26


जल्द आहत


तुरंत आग लगे


हो फजीहत


*रचयिता।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।बरेली।*


मो 9897071046


       8218685464


 


*VJTM 965019 IN*


*एस के कपूर "श्री हंस"*


*बरेली*


*सदस्य कोड संख्या*


नूतन लाल साहू

एक सुझाव


 


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


सच कहता हूं तू थक जायेगा


विश्व को विनती सुनाते सुनाते


चाह किसका है तुझे जो


तड़पता रहता हैं निरंतर


सुख संपत्ति की ख्वाहिश तुझे


सब ओर से घेरे हुए हैं


सब कुछ प्रभु पर छोड़ दें


चिंता तेरे पास नहीं आयेगा


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


विश्व तो उस पर जरूर हंसेगा


जो सत्कर्म भूला,खूब भटका


पंथ जीवन का चुनौती


दे रहा है हर कदम पर


आखिरी मंजिल तो भवसागर पार जाना है


जो दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है कहीं भी


आत्मविश्वास बढ़ा,ख्वाहिशें घटा


वह करेगा धैर्य संचित


प्रकृति का मंगल शकुन पथ


तेरा इंतज़ार कर रहा है


शक्तियां अपनी न जांची तूने


तू तो ईश्वर का अंश है


जिंदगी में सारा झगड़ा


ख्वाहिशों का है


ना तो किसी को गम चाहिए


और ना ही किसी को कम चाहिए


नूतन लाल साहू


निशा अतुल्य

छंद प्रबोधनी एकादशी


ढ़ेर सारी शुभकामनाएं 


25.11.2020


 


 


प्रबोधनी एकादशी ,पाप करम नाशनी


उठे देव जान कर सब,मंगलम मनाइए।


 


व्रत रखे निरआहार,कष्ट करें सब पार


विष्णु प्रिया संग रहे,आशीष पा जाइए।


 


मन में सदा है हुलसी,विष्णु प्रिय है तुलसी


विष्णु सँग तुलसी जी का,विवाह करवाइए।


 


सोए देव उठाइए,विष्णु हरि मनाइए


बैकुंठ धाम पाइए,भव से तर जाइए।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


डॉ0हरि नाथ मिश्र

व्यथा(दोहे)


कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।


सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।


 


प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।


व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।


 


बिन औषधि तन भी सहे, पीड़ादायी रोग।


व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।


 


कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।


अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।


 


व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।


कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।


 


इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।


धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।


 


व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।


जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।


         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


             9919446372


डॉ0हरि नाथ मिश्र

*त्रिपदी*


जिसका तन-मन निर्मल रहता,


मिलती उसको सदा सफलता।


सुखी वही जीवन भर रहता।।


 


बल-विद्या-धन-पौरुष अपना,


करें पूर्ण सदा ही सपना।


कभी घमंड न इनपर करना।।


 


मानव-जीवन सबसे सुंदर,


यदि है पावन भी अभ्यंतर।


मिलता सुख है तभी निरंतर।।


 


देश-भक्ति का भाव न जिसमें,


पत्थर दिल रहता है उसमें।


 देश-प्रेम भी होए सबमें ।।


 


निज माटी का तिलक लगाओ,


तिलक लगाकर अति सुख पाओ।


मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाओ।।


 


अपनी धरती,अपना अंबर,


वन-पर्वत,शुचि सरित-समुंदर।


संस्कृति रुचिरा बाहर-अंदर।।


 


सदा बड़ों का आदर करना,


स्नेह-भाव छोटों से रखना।


रहे यही जीवन का सपना।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।


                 9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

*गुनगुनी धूप*


 


गुनगुनी धूप मन को लुभाने लगीं।


अब प्रिया की मधुर याद आने लगी।


है सुहाना ये मौसम बहुत ही रसिक।


रस की वर्षा हृदय में रसाने लगी।


धूप ठंडक की कितनी सहज मस्त है।


अब मधुर कामना मन में आने लगी।


बिन प्रिया मन उदासी से भरपूर है।


अग्नि विछुड़न की मन को जलाने लगी।


 


गुनगुनी धूप सुखदा भले ही लगे।


पर विरह वेदना अब सताने लगी।


सर्द की धूप चाहे भले हो सुखद।


भावना आशियाना हटाने लगी।


 


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुषमा दीक्षित शुक्ला

गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।


 फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी ।


अब सुहानी लगे सर्द की दुपहरी।


 मौसमी मयकशी है ये जादू भरी।


 ठंडी ठंडी हवा दिल चुराने लगी।


 गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।


पायल ने छेड़े हैं रून झुन तराने ।


दर्पण से दुल्हन लगी है लजाने ।


याद उसको पिया की सताने लगी ।


गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


 सर्द का मीठा मीठा सुहाना समा।


फूल भौंरें हुए हैं सभी खुशनुमा।


 रुत मोहब्बत की फिर से है छाने लगी ।


गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


फूलों पे यौवन है फसलों में सरगम ।


 भंवरों का गुंजन है मधुबन में संगम ।


 प्यार के रंग तितली सजाने लगी।


 गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी ।


है कहीं पर प्रणय तो कहीं है प्रतीक्षा ।


कहीं दर्द बिरहन का लेती परीक्षा।


 कहीं गीत कोयल सुनाने लगी।


 गुनगुनी धूप फिर से है भाने लगी।


 फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला


डॉ0हरि नाथ मिश्र

व्यथा(दोहे)


कथा व्यथा की क्या कहें,व्यथा देय बड़ पीर।


सह ले जो तन-मन-व्यथा,पुरुष वही है धीर।।


 


प्रेमी-हिय भटके सदा,प्रिया न दे जब साथ।


व्यथा लिए निज हृदय में,मलता रहता हाथ।।


 


बिन औषधि तन भी सहे, कष्टप्रदायी रोग।


व्यथा शीघ्र उसकी कटे, पा औषधि संयोग।।


 


कवि की व्यथा विचित्र है,व्यथा कवित-आधार।


अद्भुत यह संबंध है,पीड़ा कवि-शृंगार ।।


 


व्यथा-व्यथित-मन स्रोत है,उच्च कल्पना-द्वार।


कविता जिससे आ जगत,दे औरों को प्यार।।


 


इसी व्यथा के हेतु ही,जग पूजे भगवान।


धन्य,व्यथा तुम हो प्रबल,देती सबको ज्ञान।।


 


व्यथा छुपाए है खुशी,समझो हे इंसान।


जो समझे इस मर्म को,उसका हो कल्यान।।


         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


             9919446372


सुनीता असीम

खुद से बातें करता होगा।


ठंडी आहें भरता होगा।


*****


बीत गया जो वक्त गुजरके।


मन उनमें ही रमता होगा।


*****


काटे कटते न विरहा के पल।


दिल उसका भी दुखता होगा।


*****


भूल गई सजनी उसको अब।


सोच गगन को तकता होगा।


*****


साथ बिताए लम्हे सुख के।


कैसे उनको भूला होगा।


*****


दर्द चुभोए कांटे कितने।


भीतर भीतर दुखता होगा।


*****


मनकी ज्वाला बढ़ती जाती।


तन भी उसमें जलता होगा।


*****


सुनीता असीम


सारिका विजयवर्गीय वीणा

आज ही के दिन देखो , शुभ ये विवाह हुआ , 


लिखी हुई वेदों में ये , विष्णुप्रिया कहानी।


 


 


प्रबोधिनी एकादशी, देव उठ कहते हैं ,


शालिग्राम प्रिय जानो,तुलसी महारानी।


 


व्रत कीजिए जी आप , कार्तिक ग्यारस का , 


 तुलसी विवाह कर , बनिये बड़ा दानी।


 


तुलसी मैया की करो, तुम सदा सेवा-पूजा,


कहती हैं सदियों से, गाथा ये दादी- नानी।


 


स्वरचित


सारिका विजयवर्गीय "वीणा"


नागपुर( महाराष्ट्र)


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