डॉ0 निर्मला शर्मा

देश का मान हैं बेटियाँ


 


देश का मान हैं बेटियाँ


देश की शान हैं बेटियाँ


नहीं किसी से कम वो


तुलना न करो हरदम


ये प्रबंधन में बड़ी कुशल


घर हो या ऑफिस का चैम्बर


कभी माने नहीं मन से हार


ये है ईश्वर का अनुपम उपहार


राजनीति हो या शास्त्रार्थ


ज्ञान की उन पर कृपा अपार


हर क्षेत्र में बढ़ाये कदम


अपना जीवन बनाये उत्तम


सैन्य शक्ति हो या युद्ध क्षेत्र


इनकी वीरता का नहीं कोई मेल


भुजबल में नहीं है बेटी कम


शत्रु की नाक में कर दे वो दम


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


दयानन्द त्रिपाठी 'दया'

26/11 बरसी पर छोटी सी रचना....


 


स्वर्ण सवेरा था उस दिन 


उल्लास भरा था जन-जीवन में 


मुंबई की धरा कांप उठी थी


अताताइयों के गोली के खनखन में।


 


मानवता को शर्मसार कर 


कितनों के जीवन हर लिये


होता है निशिचर का संहार


पर आतंक के पोषक ललकार दिये।


 


आतंक की काली छाया से


हर तरफ पड़ी थीं लाशें


चारों ओर हाहाकार मचा था


बदहवास खड़ी थीं जिंदा लाशें।


 


बिखर गये कितनों के अपने


बिखर गये कितनों के सपनें


अरमानों की दुनियां से देखो


बिछड़ गये कितनों के कितनें।


 


दशाशीश सा पाक धरा पर 


फैला रहा आतंक की कहानी


विश्व धरा के हर कोने में


प्रचलित है यही हर जुबानी ।


 


जब-जब टकराकर किसी राम से 


रावण मारा जाता है।


नहीं पूजता कोई कभी भी


समूल नष्ट हो जाता है।


 


धैर्य बड़ा है भारत का


आघात भले ही तुम करते


तेरे ही हर कष्टों में


दया सहयोग लिए हम फिरते।



   - दयानन्द त्रिपाठी 'दया'


डॉ०रामबली मिश्र

*हरिहरपुरी की कुण्डलिया*


 


मन को सदा मनाइए, रहे संयमित नित्य।


नैतिकता की राह चल, करे सदा सत्कृत्य।।


करे सदा सत्कृत्य, सारी जड़ता छोड़कर।


बने चेतनाशील, माया से मुँह मोड़कर।।


कह मिश्रा कविराय,सतत क्षणभंगुर है तन।


यह विशुद्ध है सत्य,समझे इसको सहज मन।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


देखो हरिहरपुर सदा, मनमोहक आकार।


रामेश्वर जी पास में,निराकार साकार।।


निराकार साकार, करते रक्षा ग्राम की।


हरते अत्याचार, कष्ट दूर करते सकल।।


कह मिश्रा कविराय, सबमें रामेश्वर लखो ।


सबका बनो सहाय, सहोदर जैसा देखो ।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

इश्क की राह में रवानी है।


मुश्क से आँख जो मिलानी है।


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 लाज जिन्दा नहीं शरम जिन्दा।


नाम मेरा फ़कत दिवानी है।


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 जी रही हिज्र की हिरासत में।


वस्ल की भी व्यथा सुनानी है।


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जिस्म दो एक जान हो जाए‌।


रूह की प्यास जो बुझानी है।


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सांवरे आज मान जाओ ये।


इक झलक आपको दिखानी है।


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या मुहब्बत मेरी रही सच्ची।


या मेरा कृष्ण इक कहानी है।


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यूं सुनीता कहे कन्हैया से।


धाक दिल पे तेरे जमानी है।


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सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी


 


शरदोत्सव की रीति दिखेगी।


प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी।।


 


सदा प्रीति में अमी -रसायन।


होता सदा प्रेम का गायन।।


 


प्रेम-प्रिति का सहज मिलन है।


शीतल चंदन तरु-उपवन है।।


 


अतिशय शांत पंथ यह भावन।


परम पुनीत भाव प्रिय पावन।।


 


सुघर सुशील सहज शिव सागर।


नेति नेति नित्य नव नागर।।


 


सजल ग़ज़ल अमृत का गागर।


सभ्य सत्य साध्य शिव सागर।।


 


विश्वविजयिनी प्रेम-प्रीति है।


सोहर कजली चैत गीत है।।


 


दिव्य दिवाकर दिवस दिनेशा।


मह महनीय ममत्व महेशा।।


 


प्रेम-प्रीति अति पावन संगम।


पापहरण संकटमोचन सम।।


 


निर्भय निडर नितांत नयन नम।


करुणाश्रम कृपाल सुंदरतम।।


 


प्रेम-प्रीति के नयन मिलेंगे।


ज्वाल देह के सहज मिटेंगे।।


 


स्नेह परस्पर आलय होगा।


प्रीति-प्रेम देवालय होगा।।


 


मधुर कण्ठ से कलरव होगा।


मानव मोहक अवयव होगा।।


 


दिव्य भाव का आवन होगा।


शरद काल मधु पावन होगा।।


 


प्रेम-प्रीति का योग मिलेगा।


सदा महकता पवन चलेगा।।


 


मानव बना परिंदा घूमे।


प्रेम प्रिति को प्रति पल चूमे।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

भजन -श्री कृष्ण जी का


122-122-122-122


धुन-तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ


वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला


मेरे नंदलाला मेरे नंदलाला


 


हवाएं भी निर्भर हैं जिसपर जहाँ की 


कभी सुध तो ले वो भी आकर यहाँ की


न जाने कहाँ खो गया वंशीवाला ।।


मेरे नंदलाला------


 


परेशान कितनी हैं गोकुल की गलियाँ


कि रो-रो के खिलती हैं मासूम कलियाँ


पुकारे है तुझको तो हर ब्रजबाला।।


मेरे नंदलाला


तेरी बाँसुरी और राधा की पायल


करे गोपियों के कलेजे को घायल


जलाई है कैसी विकट प्रेम ज्वाला ।।


मेरे नंदलाला


तेरे प्यार की यह भी कैसी अगन है 


तेरे दर्शनों से ही मीरा मगन है 


मेरे मन को भी तूने उलझा ही डाला ।।


मेरे नंदलाला


कंहैया ये लीला जो तूने रचाई


किसी की समझ में अभी तक न आई


कि अर्जुन को कैसे भ्रम से निकाला ।।


मेरे नंदलाला----


छँटेगा मेरे मन से कब तक कुहासा


मैं जन्मों से हूँ तेरे दर्शन का प्यासा


कहीं टूट जाये न आशा की माला ।।


मेरे नंद लाला मेरे नंदलाला ।


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


निशा अतुल्य

अन्नदाता की सुनो पुकार ।


मन में कर लो सुनो सुधार ।।


दिखे है कृशकाय आधार ।


भूख गरीब बना शृंगार ।।


 


खेत खलियान उसकी जान ।


पैदावार बनी पहचान ।।


हरे भरे खेतों की जान ।


अन्नदाता देता अन्न दान।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


- शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

आर्यावर्त की संतति हम, सिंधु सभ्यता के भावी


वेद हमारे पथप्रदर्शक, शांति पथ के हम राही।


आर्यों के वंसज हैं हम, क्षमा त्याग पहचान हमारी


मातृभूमि के हम सेवक, भाषा हिंदी मान हमारी।।


 


रामायण, गीता, पुराण से, भरा पड़ा इतिहास हमारा


बाल्मीकि, तुलसी, कालिदास, कबीर से है जग उजियारा।


मीरा, सूर, जायसी जैसी, भक्ति है पहचान हमारी


माँ गंगा के पाल्य हैं हम, भाषा हिंदी शान हमारी।।


 


संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश, ये सांस्कृतिक यात्रा के साथी हैं


पद्मावत, साकेत, पंचतंत्र हमारे पुरखों की थाती हैं।


अशफ़ाक, भगत, चंद्रशेखर सी वीरता है पहचान हमारी


हिमालय संरक्षक हमारा, भाषा हिंदी प्राण हमारी।।


 


अटल जैसे नायक हमारे, कलाम सरीखा धरतीपुत्र


कल्पना जैसी बिटिया जिसकी, विश्वबंधुत्व जहां का सूत्र।


टेरेसा, भावे जैसी, सेवा है पहचान हमारी


हमारी उन्नति का सूचक, भाषा हिंदी सम्मान हमारी।।



                - शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'


डॉ० रामबली मिश्र

*प्रीति निभाना (तिकोनिया छंद)*


दिल में आना,


कहीं न जाना।


प्रिति निभाना।।


 


उर में बसना,


सदा चहकना।


छाये रहना।।


 


गीत सुनाना,


मधुर भावना।


नित दीवाना।।


 


प्रेम रसिक बन,


रसमय तन-मन।


हो अमृत घन।।


 


सत्यपरायण,


पढ़ रामायण।


बन नारायण।।


 


आओ प्रियवर,


नाचो दिलवर ।


सुघर बराबर।।


 


थिरको तो अब,


अभी न तो कब?


आओ मतलब।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कमल कालु दहिया

*वो अमर कहानी हो गए*


 


तिरंगे के ख़ातिर, 


मुल्क की हिफाज़त करने, 


माँ भारती के आँचल में 


बहा अंतिम दृगजल, 


वो इक अमर कहानी हो गए, 


बहती धारा का पानी हो गए।। 


 


दुश्मन को कर परास्त, 


नए सवेरे की रोशनी बने, 


बदन से हारे वो 


सूरज से चमकते रहे, 


ढ़लती साँझ की निशानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।


 


माँ की ममता के मोती बने, 


पिता ने चढ़ाया सूरज देश को, 


बहिन की राखी बनी रक्षासूत्र


पत्नी ने गौरव का सिन्दुर भरा, 


बेटियाँ खुशियाँ चढ़ाकर महादानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


मोहल्ले का फूल खुश्बू दे गया, 


मित्रों की टोलियां एहसास करती है, 


उसके बिन दिन आता संध्या ढ़लती 


वो रहा कहीं तो होगा 


माठी के कण सुहानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


रचनाकार ~ कमल कालु दहिया


कालिका प्रसाद सेमवाल

*धरती माँ बचानी होगी*


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धरती माँ बचानी होगी,


सोच नई अपनानी होगी,


धरती पर जो प्रदूषण बढ़ा,


उससे मुक्ति दिलानी होगी।


         यहां सभी जीते है जीवन,


         यहां है सारे बाग और उपवन,


         यदि करते हो धरा से प्यार,


         करो न धरा पर अत्याचार।


हमीं राष्ट्र के शुभ चिंतक है,


आओ बढ़कर आगे आयें,


दूषित सारी दुनिया हो गई,


 धरा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाये।


         जल , ध्वनि, वायु प्रदूषण,


          नदियांभी ही गई कसैली,


           प्लास्टिक की हो गई भरमार,


           संकट है धरा पर चारों ओर।


अत्यधिक दोहन हमने किया,


धरती माँ से प्यार न किया,


धरती माँ ने सब कुछ दिया,


बदले में हमने धरा को क्या दिया।


         जब -जब हमने लालच किया,


           आपदा को न्यौता दिया,


          धरा ने अमूल्य संसाधन दिये,


            बृक्षारोपण से धरा सजाये।


सब मिलकर पौध लगायें,


बृक्षारोपण सफल बनायें,


धरती पर जो बढ़ा प्रदूषण,


उससे सबको मुक्ति दिलाये।


        राह नई दिखानी होगी,


        युक्ति नई अपनानी होगी,


        कैसे पर्यावरण स्वच्छ बने,    


        सब मिलकर एक सलाह बनायें।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

जिंदगी


 


जिंदगी जी के खुशबू विखेरो सदा।


पूरी दुनिया को दिल में उकेरो सदा।


मत कभी करना कोई गलत काम तुम।


सारी जगती को आँखों से घेरो सदा।


मत निरादर किसी का तुम करना कभी।


सबको सम्मान देकर तुम टेरो सदा।


सारे जग के लिये नित दुआ माँगना।


सबके सिर पर सतत हाथ फेरो सदा।


मंत्र पढ़ना निरंतर मनुजता का ही।


बनकर छाया मचलना बसेरो सदा।


दुःख न देना किसी को कभी स्वप्न में।


बाँटते जाना खुशियाँ घनेरो सदा।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*जय जय जय श्री हनुमान जी*


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जय जय जय श्री हनुमान जी


संकट मोचन कृपा निधान,


बल -बुद्धि विद्या के धाम


आपको मेरा शत् -शत् प्रणाम।


 


मारुत नंदन असुर निकन्दन,


जन मन रंजन भव भय भंजन,


सन्त जनों के सुखनंदन 


अंजना नंदन शत्-शत् वंदन।


 


भक्तजनों के प्रति पालक


दीनों के आनन्द प्रदायक,


अनवरत रामगुण गायक,


बाधा विध्न विदारक।


 


हे राम दूत पवन पूत


शांति धर्म के अग्रदूत ,


सतमार्ग के तुम प्रदर्शक


सत्य धर्म के हो तुम रक्षक।


 


मानवता के महाप्राण हो


मृतकों में भी भरते प्राण हो


हृदय में बसते सीताराम


प्रभु श्री हनुमान को प्रणाम।


 


अनाचारी आज प्रचण्ड है


रक्षक भी हो गये उदण्ड है


करो अनाचार का दमन


जग का भय ताप शमन।


 


दुख दरिद्रता का नाश करो


अनाचारियों का विनाश करो


 दीन दुखियों के कष्ट हरो तुम


जय जय जय श्री हनुमान जी। 


 


भक्तो के तुम रक्षक हो


करो अनाचारियों का दमन ,


हे राम भक्त पवन पुत्र


तुमको कोटि कोटि प्रणाम।


~~~~~~~~~~~~


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक मुक्तक 😊😊


        आधार छंद- चौपाई।


 


हुआ जन्म किस अर्थ कहो तुम।


दारुण दुख मत व्यर्थ सहो तुम।


भजन करो प्रभु का हे मानव,


अपनी धुन में मस्त रहो तुम।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर श्री हंस

*कॅरोना सावधानी से हो*


*शिक्षित।।रहो सुरक्षित।।*


*(हाइकु)*


1


लापरवाही


कॅरोना जानलेवा


लाये तबाही


2


संयम जरा


मास्क लगा निकलें


जीवन भरा


3


रोज़ बुखार


लक्षण हो सकते


हो उपचार


4


मास्क लगा


कफन से है छोटा


जीवन बचा


5


ये हाथ धोना


आज है वरदान


जीव न खोना


6


नहीं चेतोगे


सावधानी हटी जो


कैसे बचोगे


7


बचें जाने से


खुद लॉकडाउन


यूँ गवानें से


8


न हो दीवाना


मत बाहर जाना


न हो अंजाना


9


करो सुरक्षा


गाइड लाइन हो


तभी तो रक्षा


10


अभी लहर


कॅरोना गया नहीं


अभी कहर


11


हो इम्युनिटी


आयुर्वेद औषधि


पियो काढ़ा भी


12


दो ग़ज़ दूरी


बचाव का साधन


यह जरूरी


13


पास साबुन


साफ करते रहो


हाथ नाखून


14


भीड़ से दूरी


बच कर जरूरी


है मजबूरी


15


अपनी रक्षा


हो कॅरोना सुरक्षा


घर में कक्षा


16


दवाई नहीं


करें जरा सुरक्षा


ढिलाई नहीं


*रचयिता।।एस के कपूर*


*"श्री हंस"।। बरेली।।*


मोब 9897071046


         8218685464


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण(श्रीरामचरितबखान)-27


कह बिठाइ लछिमन के संगा।


कहु नरेस परिवार-प्रसंगा।।


      बोले प्रभु निवास खल-देसा।


      होय तुम्हारइ सुनहु नरेसा।।


कस तुम्ह तहँ अस सहेसि अनीती।


तव हिय बस अति निष्छल प्रीती।।


      नरक-निवास होय बरु नीका।


       केतनहुँ सुखद कुसंगइ फीका।।


अब तव चरन-सरन मैं आया।


हे प्रभु करउ मोंहि पे दाया।।


     जब तक बिषय-भोग-रत जीवइ।


      तब तक उहइ गरल-रस पीवइ।।


काम-क्रोध-मद-मोह-बिमोचन।


होय दरस करि राजिव लोचन।।


     होत उदय प्रकास प्रभु सूरज।


      भागै मद-अँधियारा दूखज।।


कुसलइ रहहुँ पाइ रज चरना।


कृपा-हस्त प्रभु मम सिर धरना।


     भौतिक-दैहिक-दैविक-सूला।


      पा प्रभु-सरन होंय निरमूला।।


मों सम निसिचर अधम-अधर्मी।


लेइ सरन प्रभु कीन्ह सुधर्मी।।


      सुनहु तात जे आवै सरना।


      तजि मद-मोह-कपट अरु छलना।।


मातुहिं-पिता-बंधु-सुत-नारी।


सम्पति-भवन,खेत अरु बारी।


     देहुँ भगति बर संत की नाईं।


     पाटहुँ तिसु मैं भव-भय खाईं।।


रखहुँ ताहि मैं निज उर माहीं।


जिमि लोभी धन-संपति ध्याहीं।।


     सुनहु नरेस सकल गुन तुझमा।


     तुम्ह मम प्रिय सभतें इह जग मा।


दोहा-जे जग महँ परहित करै, निरछल मनहिं सनेम।


        सुनहु तात तेहिं हिय रखहुँ,सदा करहुँ तेहिं प्रेम।।


                         डॉ0हरि नाथ मिश्र


                           9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*होना दुःखी...*


 


होना दुःखी देख दुःखिया को।


यही सीख देना दुनिया को ।।


 


देख दुःखी मोहित हो जाना।


दुःखी हेतु कुछ करते जाना ।।


 


"मदर टेरेसा" बनकर जीना।


दुःखियों के आँसू को पीना।।


 


संकटमोचन बनकर चलना।


महावीर हनुमानस बनना।।


 


भर लो भीतर संवेदन को।


स्वीकारो दुःख-आवेदन को।।


 


दुःखी जगत की सुनो प्रार्थना।


दुःख के मारे करत याचना।।


 


जीवन का यह काम बड़ा है।


अन्य काम इससे छोटा है।।


 


जो करता दीनों की रक्षा।


बन जाता वह सबकी शिक्षा।।


 


जो विद्यालय बनकर जीता।


अमृत रस आजीवन पीता।।


 


बना अमर वट छाया देता।


सारे कष्टों को हर लेता।।


 


जिसके भीतर प्रेम रसायन।


उसके रोम-रोम शोभायन।।


 


जो दे देता अपना तन-मन।


वह बन जाता पावन उपवन।।


 


सकल जगत को सींचा करता।


दुःख-दरिद्रता खींचा करता।।


 


सुंदर भाव जहाँ बहता है।


कायम स्वर्ग वहाँ रहता है।।


 


जहाँ राम का नाटक होता।


वहाँ विभव का फाटक होता।।


 


सन्त मिलन की संस्कृति जागे।


दुःख-दारिद्र्य-रोग सब भागें।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


नूतन लाल साहू

प्रभु भक्ति में मन लगा लेे


 


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


आत्म ज्ञान बिना नर भटक रहा है


क्या मथुरा क्या काशी


जैसे मृग नाभि में रहता है कस्तूरी


फिर भी बन बन फिरत उदासी


प्रभु जी का भजन न कर तूने


हीरा जैसा जन्म गंवा रहा है


पानी में मीन प्यासी


मोहे सुन सुन आवे हांसी


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो का नाश कर देती हैं


बाहर ढूंढत फिरा मै जिसको


वो वस्तु घट भीतर हैं


बिन प्रभु कृपा शांति नहीं पावे


लाख उपाय करें नर कोई


कहे सतगुरु सुनो भाई साधो


बिन प्रभु कृपा मुक्ति न होई


अरे मन किस पै तू भूला है


बता दें जग में कौन तेरा है


तेरे मां बाप और भाई


सभी स्वार्थ के हैं साथी


तेरे संग क्या जायेगा


जिसे कहता तू मेरा हैं


जिस तरह थोड़ी सी औषधि


 भयंकर रोगों को शांत कर देती हैं


उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी स्तुति


बहुत से कष्ट और दुखो को नाश कर देती हैं


नूतन लाल साहू


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*परमवीर-चक्र-प्राप्त-अब्दुल हमीद*


 


परम वीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं,


लगा-लगा प्राणों की बाजी,माँ का मान बढ़ाए हैं।।


 


 परम वीर इक्कीस लाल ये,प्राणों का उत्सर्ग किए,


अरि के मद का मर्दन कर के,इस माटी को स्वर्ग किए।


क़तरा-क़तरा लहू बहा कर,माँ की लाज बचाए हैं-


परम वीर सुत बलि-वेदी पर हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


लांस नायक श्री हमीद जा,रौशन अपना नाम किए,


तीन टैंक को तोड़ शत्रु के,नमन योग्य हैं काम किए।


अंत में घिर कर वे दुश्मन से,अपने प्राण गवाँए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


गौरव जनपद गाजीपुर के,वासी थे धामूपुर के,


यू0पी0 के वे रहनेवाले,दक्ष-निपुण कुश्ती-गुर के।


करके पस्त हौसले अरि के,जन-जन को वे भाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


थल-सेना-नायक हमीद ने,नया एक इतिहास रचा,


तोप-सजी ले एक जीप से,तोड़ा टैंक न शेष बचा।


ऐसे नायक नमन योग्य हैं,ये आज़ादी लाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


 


भूला नहीं कृतज्ञ देश यह,निडर हमीद बलवीर को,


पाक-युद्ध सन पैंसठ वाले,इसी महान रणधीर को।


परमवीर का चक्र इन्हें दे,हम सब खुशियाँ पाए हैं-


परमवीर सुत बलि-वेदी पर,हर्षित शीष चढाए हैं।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


               7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी,


               यशलोक हॉस्पिटल के बगल,


              देवकाली रोड, फैज़ाबाद।


                 अयोध्या-22 4001(उ0प्र0)


डॉ०रामबली मिश्र

*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


करना कभी गुमान मत, चलो न टेढ़ी चाल।


अपने मीठे वचन से, रख सबको खुशहाल।।


रख सबको खुशहाल, रहें सब मौज उड़ाते।


मिटे कष्ट-संताप, मिलें सब हाथ मिलाते।।


कह मिश्रा कविराय, सभी से मिलकर रहना।


सबके प्रति हो स्नेह, तकरार कभी न करना।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


निशा अतुल्य

सर्दी आई


 


माँ देखो अब सर्दी आई


मेरे मन को ये लुभा गई


गर्म मुंगफली की महक है


मीठी रेवड़ी मन भा गई ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई ।।


 


नरम गर्म है मेरा बिस्तर


मज़ा आ गया उस पर सो कर 


माँ मुझको तुम सूप पिलाओ


गर्मी शरीर में पहुँचाओ ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सूरज भी अब मद्धम दिखता


ताप ना क्यों जरा भी लगता 


सर्द हवा जब सर सर चलती


कानो को मफलर है भाता ।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


सर्दी से हमें बच कर रहना


स्वस्थ स्वयं को हमें है रखना


गर्म वस्त्र पहनने होंगे 


माँ मेरी अचकन सिलवाना।


माँ देखो अब सर्दी आई 


मेरे मन को ये लुभा गई।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


सुनीता असीम

चहरा उसका ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब।


आंखें हैं पैमाने उसकी जिनसे छलके शराब।


लबों में खिलती हैं कलियाँ इस मुस्कान से-


हुस्न का ऐसा प्रश्न है वो जिसका नहीं ज़बाब।


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सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

*चलो चूमते.... (चौपाई ग़ज़ल)*


 


चलो चूमते सारी धरती।


हरी-भरी दिख जाये परती।।


 


एक-एक कण का हिसाब रख।


भरो अंक में सारी धरती।।


 


चूमो इसको समझ प्रेयसी।


प्यारी बहुत दुलारी धरती।।


 


यही प्रेयसी मातृ भाव से।


सारे जग का पालन करती।।


 


करो नमन नित सहज समादर।


हरियाली से मन को हरती।।


 


भूमि संपदा नैसर्गिक है।


परमार्थी बन पोषण करती।।


 


सृष्टि असंभव बिन मिट्टी के।


धरती से ही सारी जगती।।


 


अर्थवती नित मूल्यवती यह।


हर प्राणी की सेवा करती।।


 


चूमो गले लगाओ माटी।


सदा रसामृत सारी धरती।।


 


हँसती जब यह फसल लपेटे।


देख रूप यह जगती हँसती।।


 


यह आधारशिला जीवन की।


लिये उदर में नीर मचलती।।


 


धरती का कण-कण अति पावन।


इत्र सदृश यह सतत गमकती।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*रस बरसेगा*


*(तिकोनिया छंद)*


 


रस बरसेगा,


नित मँहकेगा।


मन चहकेगा।।


 


मधुर मिलन हो,


गुप्त हिलन हो।


दिल बहलन हो।।


 


प्रीति जगेगी , 


रात सजेगी।


खुशी मिलेगी।


 


मितवा आये,


गीत सुनाये।


मोह दिखाये।।


 


नित दर्शन हो,


प्रिय स्पर्शन हो।


प्रेम मगन हो।।


 


सुख समता हो,


स्वर्गिकता हो।


मधुमयता हो।।


 


भोग समांतर,


सुख अभ्यंतर।


मेल निरंतर।।


 


रचनाकार०:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

ये रिश्वतखोर


 


मन के काले ईमान से दाग वाले


समाज के दोषी ये रिश्वतखोर


विकृत मानसिकता वाले


खोलें हर फाइल के ताले


करें न काम बिना रिश्वत


बिगाड़ें ईमान शत प्रतिशत


मोटी रकम की चाहत वाले 


लोभी ये रिश्वत पाने वाले


रग-रग में बसी रिश्वतखोरी


हराम का लेते पैसा करके जोरी


मजबूरी का उठाते हैं ये फ़ायदा


इनके जीवन का नहीं है कोई कायदा


हर जगह मिल ही जाते हैं ऐसे इंसान


हमने ही तो बनाया है उन्हें रिश्वतखोर


देकर उन्हें सुविधा पाने रिश्वत का दान


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कालिका प्रसाद सेमवाल

माँ मुझे वर दे दो


★★★★★★★★★★


 मां वरदायिनी वर दे,


मैं काव्य का पथिक बन जाऊँ,


थोड़ी सी कविता माँ मैं लिख पाऊँ,


भावों की लड़ियों को गूँथू,


इस कविता रुपी माला से,


मैं भी अभिसिंचित हो जाऊँ,


मां मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ।


 


सबके हित की बात लिखू मैं,


बाहर -भीतर एक दिखूँ मैं,


हृदय में आकर बस जाओ,


नेह राह पर चलू मैं नित,


मात अकिंचन का नमन स्वीकार करो,


जीवन में भर दो अतुलित प्यार,


मां मुझे सही राह दिखाओ।


 


मुक्त भावों के गगन में उड़ सकूं,


निर्मल मन से हर किसी से जुड़ सकूं,


मुक्त कर दो मेरे हृदय के दोषों को,


दम्भ, छल, मद, मोह -माया दोषो से,


व्योम सा निश्चल हृदय विस्तार दो,


जीवन में उल्लास भर दो


माँ मुझे वर दे दो।


★★★★★★★★★★


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


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