प्रेमपान
प्रेम पीते रहो नित पिलाते रहो।
ईश का संस्मरण नित दिलाते रहो।
भूल जाना नहीं ईश की अस्मिता।
ईश चरणों में माथा नवाते रहो।
ईश देते सदा प्रेम की भीख हैँ।
ईश को प्रेम से नित नचाते रहो।
ईश से प्रेम है प्रेम से ईश हैँ।
ईश प्रेमी के मन को लुभाते रहो।
ईश की ही कृपा पर टिका प्रेम है।
प्रेम से सारे जग को मनाते रहो।
प्रेम मादक बहुत प्रेम में जोश हैं।
प्रेम से हर किसी को जगाते रहो।
प्रेयसी सारी जगती इसी भाव से।
सारी दुनिया के दिल को सजाते रहो।
प्रेयसी को मनाना बहुत है सरल।
प्रेयसी को गले से लगाते रहो।
प्रेयसी रूठ जाये मनाओ सदा।
अंक में बाँध अधरें घुमाते रहो।
चूम लो वक्ष को मत तनिक देर कर।
प्रेम के गीत हरदम सुनाते रहो।
छोड़ अपने अहं को किनारे करो।
अपने उर में छिपे को जताते रहो।
कवि हृदय का यह उद्गार मीठा बहुत।
प्रेयसी के हृदय में समाते रहो।
गुनगुनाते रहो शिष्टता से सतत।
प्रेयसी को हृदय में बसाते रहो।
नित्य नर्तन करो वंदना भी करो।
प्रेम गंगा में गोते लगाते रहो।
प्रेम सागर असीमित महाकार है।
प्रेम की घूँट हरदम पिलाते रहो।
प्रेयसी की कलाई पकड़ थाम लो।
प्रेयसी संग हर क्षण बिताते रहो।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801