सुनीता असीम

काफिया बिन क्या ग़ज़ल का चाहना।


हुस्न बिन जैसे अधूरा चाहना।


*****


दिल जिगर से प्यार मत करना कभी।


हद में रहकर ही ज़रा सा चाहना।


*****


बोलकर केवल बुरा दुखता है दिल।


अर्थ इसका है निराशा चाहना।


*****


इक सितारा भी नहीं हो बाम पर।


इस तरह की रोशनी क्या चाहना।


******


प्यार की आदत नहीं है आपकी।


फिर हसीना को भला क्या चाहना।


*****


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

तिकोनिया


 


प्रेम करोगे,


नित्य बढ़ोगे।


प्रगति करोगे।।


 


प्रेमी बनना,


खूब थिरकना।


दिल में बहना।।


 


अपलक बनकर,


नजर मिलाकर।


रच-बस जा कर।।


 


बढ़ो अनवरत,


चढ़ो नित सतत।


रुके रहो रत।।


 


बैठो झाँको,


दिल में ताको।


देख प्रिया को।।


 


देखो मिलकर,


बोल सँभलकर।


नत बनठन कर।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ०रामबली मिश्र

मिश्रा कविराय की कुण्डलिया


 


मित्र बने ऐसा मनुज, जिसके पावन भाव।


मन से निर्मल विमल हो, डाले सुखद प्रभाव।।


डाले सुखद प्रभाव, न मन में हो कुटिलाई।


नेक सहज इंसन, किसी की नहीं बुराई।।


कह मिश्रा कविराय, जो महकता बनकर इत्र।


ऐसे जन को खोज, बनाओ अपना प्रिय मित्र।।


 


:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पंचम चरण (श्रीरामचरितबखान)-30


 


लखि दूतन्ह हँसि कह लंकेसा।


देहु मोंहि तिन्हका संदेसा।


   मिले तिनहिं कि आय बरिआई।


    डरे मोर जस सुनतै भाई ।।


का गति दुष्ट बिभीषन अहही।


कालइ तासु अवसि अब अवही।।


    मम तिन्ह मध्य सिंधु-मृदुलाई।


    रच्छहिं तेहिं दोउ तापस भाई।।


सुनहु नाथ अब बचन कठोरा।


समुझहु बहुत कथन जे थोरा।।


     पाइ बिभीषन राम तुरतही।


      कीन्हा तिलक तासु झटपटही।।


जानि हमहिं क नाथ तव दूता।


लंपट-नीच-पिसाचहि-भूता।।


     काटन लगे कान अरु नासा।


     राम-सपथ पे रुका बिनासा।।


बरनि न जाय राम-सेना-बल।


कोटिक गज-बल सजा सेन-दल।।


     कपि असंख्य बाहु-बल भारी।


     बिकट रूप अतिसय भयकारी।।


जे कपि लंक जरायेसि इहवाँ।


अच्छय मारि जरायेसि बगवाँ।।


     अति लघु रूपइ तहवाँ रहई।


      नहिं बिस्वास उहहि कपि अहई।।


मयंद-नील-नल,दधिमुख-अंगद।


द्विविद-केसरी,बिकटस-सठ-गद।।


      जामवंत-निसठहि-बलरासी।


       रामहिं कृपा पाइ बिस्वासी।।


सभ कपि-बल सुग्रीव समाना।


एक नहीं कोटिक तिन्ह जाना।


      सबपे कृपा राम-बल रहई।


       तिनहिं त्रिलोक त्रिनुहिं सम लगई।।


अस मैं सुना नाथ मम श्रवनन्ह।


पदुम अष्ट-दस सनपति कपिनन्ह।।


      ते सभ बिकल जुद्ध के हेतू।


      जोहहिं आयसु कृपा-निकेतू।।


आयसु पाइ तुरत रघुनाथा।


जीतहिं तुमहिं फोरि रिपु-माथा।।


दोहा-कहत रहे मिलि सभ कपी,रावन मारब लात।


         लातन्ह-घूसन्ह मारि के,लाइब सीते मात।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे माँ जगदम्बा*


**************


हे माँ जगदम्बा


बड़े अरमान ले के तेरे दरबार आया हूँ,


हरो संकट मैं आस लेकर आया हूँ,


सुनी महिमा बहुत तेरी, हरो पीर मेरी।


 


हे माँ जगदम्बा,


तेरा ही आसरा लेकर दरबार आया हूँ,


 नहीं है ताकत बताने की,


ज्यों तेरे पास आया हूँ।


 


 हे माँ जगदम्बा,


फंसी नैया भवर में मेरी,


लगा दो पार मुझको ,


यहीं अरज है तुमसे माँ मेरी।


*********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

*सुंदर सा घर*


 


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


बसाना हमें एक सुंदर शहर है।


नफरत की दुनुया नहीं है सुहाती।


ईर्ष्या की ज्वाला निरन्तर जलाती।


न भावों की खुशबू का कोई सफर है।


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


झूठी इबादत यहाँ चल रही है।


मिथ्या शरारत यहाँ पल रही है।


सभी में बनावट प्रदर्शन जहर है।


बनाना हमें एक सुंदर नगर है।


सात्विक विचारों का संकट खड़ा है।


नायक सितारों का मुर्दा पड़ा है।


दिखती यहाँ पर भयंकर डगर है।


बनाना हमें एक सुंदर सा घर है।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

🌹🌹 एक चतुष्पदी 🌹🌹


 


ओस की बूॅ॑दे चमकतीं


                 मोतियों सी घास पर।


 


रवि किरण को है कहाॅ॑


           आतीं कभी भी रास पर।


 


सोख लेती है उन्हें वह


                   निर्दयी सा रोज़ ही।


 


बच नहीं सकतीं वो बूॅ॑दे


             रवि किरण ले ख़ोज ही।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

जिंदगी का सफर


 


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


दुःख से जीवन बीता फिर भी


शेष रहता है कुछ आशा


जीवन की अंतिम घड़ियों में भी


प्रभु श्री राम जी का नाम आ जाना


सुंदर और असुंदर जग में


मैंने क्या क्या नहीं किया है


पर इतनी ममता मय दुनिया में


विधि के विधान को समझ न पाया


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


खोज करता रहा अमरत्व पर


आंसूओं की माल,गले पर डाल ली


अंत समय पश्चाताप में डूबा


कैसे लौटेगी,मेरे जीवन की दिवाली


हिल उठे जिससे समुन्दर


हिल उठे दिशि और अंबर


उस बवंडर के झकोरे को


किस तरह इंसान रोके


पा लेने की बेचैनी और


खो देने का डर


बस यही तो है जिंदगी


का सफर


नूतन लाल साहू


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल 


 


उम्मीद मेरी आज इसी ज़िद पे अड़ी है 


हर बार तेरी सिम्त मुझे लेके मुड़ी है 


 


मिलने का किया वादा है महबूब ने कल का 


यह रात हरिक रात से लगता है बड़ी है 


 


मैं कैसे मिलूँ तुझसे बता अहले-ज़माना 


पैरों में मेरे प्यार की ज़ंजीर पड़ी है


 


तू लाख भुलाने का मुझे कर ले दिखावा


तस्वीर अभी साथ में दोनों की जड़ी है


 


जब चाहा कहीं और नशेमन को बना लूँ 


परछाईं तेरी आके वहीं मुझसे 


लड़ी है


 


जिस वक़्त गया हाथ छुड़ाकर वो यहाँ से


तब हमको लगा जैसे कयामत की घड़ी है 


 


मज़हब की सियासत का चलन देखो तो *साग़र* 


हर सिम्त यहाँ ख़ौफ़ की दीवार खड़ी है 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


23/11/2020


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(पल-दो-पल)-16/10


पल-दो पल के इस जीवन में,


बस प्यार बाँट ले।


बिना किसी भी भेद-भाव के-


तु दुलार बाँट ले।।


 


बड़े भाग्य से मिला मनुज-तन,


तू जरा सोच ले।


हिस्से में जो मिले तुम्हें पल,


उनको दबोच ले।


आपस में सब मिल सुख-दुख का-


संसार बाँट ले।।


         बस प्यार बाँट ले।।


 


कपट और छल कभी न करना,


बस यही धर्म है।


मददगार निर्बल का बनना,


बस यही कर्म है।


अंतर भेद मिटा प्रेम -भाव-


व्यवहार बाँट ले।।


     बस प्यार बाँट ले।


 


आज रहे कल रहे न जीवन,


बस यही कहानी।


 हर पल को मुट्ठी में रखकर,


दो अमिट निशानी।


हर मुश्किल को अभी हराकर-


दुःख-भार बाँट ले।।


      बस प्यार बाँट ले।।


 


संकट तो एहसास मात्र है,


बस यही तथ्य है।


साहस से यह कट जाता है,


बस यही सत्य है।


साहस अब दिखलाकर प्यारे-


आभार बाँट ले।।


     बस प्यार बाँट ले।।


           © डॉ0 हरि नाथ मिश्र


              9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

प्रेमपान


 


प्रेम पीते रहो नित पिलाते रहो।


ईश का संस्मरण नित दिलाते रहो।


भूल जाना नहीं ईश की अस्मिता।


ईश चरणों में माथा नवाते रहो।


ईश देते सदा प्रेम की भीख हैँ।


ईश को प्रेम से नित नचाते रहो।


ईश से प्रेम है प्रेम से ईश हैँ।


ईश प्रेमी के मन को लुभाते रहो।


ईश की ही कृपा पर टिका प्रेम है।


प्रेम से सारे जग को मनाते रहो।


प्रेम मादक बहुत प्रेम में जोश हैं।


प्रेम से हर किसी को जगाते रहो।


प्रेयसी सारी जगती इसी भाव से।


सारी दुनिया के दिल को सजाते रहो।


प्रेयसी को मनाना बहुत है सरल।


प्रेयसी को गले से लगाते रहो।


प्रेयसी रूठ जाये मनाओ सदा।


अंक में बाँध अधरें घुमाते रहो।


चूम लो वक्ष को मत तनिक देर कर।


प्रेम के गीत हरदम सुनाते रहो।


छोड़ अपने अहं को किनारे करो।


अपने उर में छिपे को जताते रहो।


कवि हृदय का यह उद्गार मीठा बहुत।


प्रेयसी के हृदय में समाते रहो।


गुनगुनाते रहो शिष्टता से सतत।


प्रेयसी को हृदय में बसाते रहो।


नित्य नर्तन करो वंदना भी करो।


प्रेम गंगा में गोते लगाते रहो।


प्रेम सागर असीमित महाकार है।


प्रेम की घूँट हरदम पिलाते रहो।


प्रेयसी की कलाई पकड़ थाम लो।


प्रेयसी संग हर क्षण बिताते रहो।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

देश का मान हैं बेटियाँ


 


देश का मान हैं बेटियाँ


देश की शान हैं बेटियाँ


नहीं किसी से कम वो


तुलना न करो हरदम


ये प्रबंधन में बड़ी कुशल


घर हो या ऑफिस का चैम्बर


कभी माने नहीं मन से हार


ये है ईश्वर का अनुपम उपहार


राजनीति हो या शास्त्रार्थ


ज्ञान की उन पर कृपा अपार


हर क्षेत्र में बढ़ाये कदम


अपना जीवन बनाये उत्तम


सैन्य शक्ति हो या युद्ध क्षेत्र


इनकी वीरता का नहीं कोई मेल


भुजबल में नहीं है बेटी कम


शत्रु की नाक में कर दे वो दम


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


दयानन्द त्रिपाठी 'दया'

26/11 बरसी पर छोटी सी रचना....


 


स्वर्ण सवेरा था उस दिन 


उल्लास भरा था जन-जीवन में 


मुंबई की धरा कांप उठी थी


अताताइयों के गोली के खनखन में।


 


मानवता को शर्मसार कर 


कितनों के जीवन हर लिये


होता है निशिचर का संहार


पर आतंक के पोषक ललकार दिये।


 


आतंक की काली छाया से


हर तरफ पड़ी थीं लाशें


चारों ओर हाहाकार मचा था


बदहवास खड़ी थीं जिंदा लाशें।


 


बिखर गये कितनों के अपने


बिखर गये कितनों के सपनें


अरमानों की दुनियां से देखो


बिछड़ गये कितनों के कितनें।


 


दशाशीश सा पाक धरा पर 


फैला रहा आतंक की कहानी


विश्व धरा के हर कोने में


प्रचलित है यही हर जुबानी ।


 


जब-जब टकराकर किसी राम से 


रावण मारा जाता है।


नहीं पूजता कोई कभी भी


समूल नष्ट हो जाता है।


 


धैर्य बड़ा है भारत का


आघात भले ही तुम करते


तेरे ही हर कष्टों में


दया सहयोग लिए हम फिरते।



   - दयानन्द त्रिपाठी 'दया'


डॉ०रामबली मिश्र

*हरिहरपुरी की कुण्डलिया*


 


मन को सदा मनाइए, रहे संयमित नित्य।


नैतिकता की राह चल, करे सदा सत्कृत्य।।


करे सदा सत्कृत्य, सारी जड़ता छोड़कर।


बने चेतनाशील, माया से मुँह मोड़कर।।


कह मिश्रा कविराय,सतत क्षणभंगुर है तन।


यह विशुद्ध है सत्य,समझे इसको सहज मन।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


 


*मिश्रा कविराय की कुण्डलिया*


 


देखो हरिहरपुर सदा, मनमोहक आकार।


रामेश्वर जी पास में,निराकार साकार।।


निराकार साकार, करते रक्षा ग्राम की।


हरते अत्याचार, कष्ट दूर करते सकल।।


कह मिश्रा कविराय, सबमें रामेश्वर लखो ।


सबका बनो सहाय, सहोदर जैसा देखो ।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


सुनीता असीम

इश्क की राह में रवानी है।


मुश्क से आँख जो मिलानी है।


******


 लाज जिन्दा नहीं शरम जिन्दा।


नाम मेरा फ़कत दिवानी है।


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 जी रही हिज्र की हिरासत में।


वस्ल की भी व्यथा सुनानी है।


******


जिस्म दो एक जान हो जाए‌।


रूह की प्यास जो बुझानी है।


******


सांवरे आज मान जाओ ये।


इक झलक आपको दिखानी है।


******


या मुहब्बत मेरी रही सच्ची।


या मेरा कृष्ण इक कहानी है।


******


यूं सुनीता कहे कन्हैया से।


धाक दिल पे तेरे जमानी है।


******


सुनीता असीम


डॉ०रामबली मिश्र

प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी


 


शरदोत्सव की रीति दिखेगी।


प्रेम करो तो प्रीति मिलेगी।।


 


सदा प्रीति में अमी -रसायन।


होता सदा प्रेम का गायन।।


 


प्रेम-प्रिति का सहज मिलन है।


शीतल चंदन तरु-उपवन है।।


 


अतिशय शांत पंथ यह भावन।


परम पुनीत भाव प्रिय पावन।।


 


सुघर सुशील सहज शिव सागर।


नेति नेति नित्य नव नागर।।


 


सजल ग़ज़ल अमृत का गागर।


सभ्य सत्य साध्य शिव सागर।।


 


विश्वविजयिनी प्रेम-प्रीति है।


सोहर कजली चैत गीत है।।


 


दिव्य दिवाकर दिवस दिनेशा।


मह महनीय ममत्व महेशा।।


 


प्रेम-प्रीति अति पावन संगम।


पापहरण संकटमोचन सम।।


 


निर्भय निडर नितांत नयन नम।


करुणाश्रम कृपाल सुंदरतम।।


 


प्रेम-प्रीति के नयन मिलेंगे।


ज्वाल देह के सहज मिटेंगे।।


 


स्नेह परस्पर आलय होगा।


प्रीति-प्रेम देवालय होगा।।


 


मधुर कण्ठ से कलरव होगा।


मानव मोहक अवयव होगा।।


 


दिव्य भाव का आवन होगा।


शरद काल मधु पावन होगा।।


 


प्रेम-प्रीति का योग मिलेगा।


सदा महकता पवन चलेगा।।


 


मानव बना परिंदा घूमे।


प्रेम प्रिति को प्रति पल चूमे।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


विनय साग़र जायसवाल

भजन -श्री कृष्ण जी का


122-122-122-122


धुन-तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ


वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला


मेरे नंदलाला मेरे नंदलाला


 


हवाएं भी निर्भर हैं जिसपर जहाँ की 


कभी सुध तो ले वो भी आकर यहाँ की


न जाने कहाँ खो गया वंशीवाला ।।


मेरे नंदलाला------


 


परेशान कितनी हैं गोकुल की गलियाँ


कि रो-रो के खिलती हैं मासूम कलियाँ


पुकारे है तुझको तो हर ब्रजबाला।।


मेरे नंदलाला


तेरी बाँसुरी और राधा की पायल


करे गोपियों के कलेजे को घायल


जलाई है कैसी विकट प्रेम ज्वाला ।।


मेरे नंदलाला


तेरे प्यार की यह भी कैसी अगन है 


तेरे दर्शनों से ही मीरा मगन है 


मेरे मन को भी तूने उलझा ही डाला ।।


मेरे नंदलाला


कंहैया ये लीला जो तूने रचाई


किसी की समझ में अभी तक न आई


कि अर्जुन को कैसे भ्रम से निकाला ।।


मेरे नंदलाला----


छँटेगा मेरे मन से कब तक कुहासा


मैं जन्मों से हूँ तेरे दर्शन का प्यासा


कहीं टूट जाये न आशा की माला ।।


मेरे नंद लाला मेरे नंदलाला ।


तेरे प्रेम से हर तरफ़ है उजाला।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


 


निशा अतुल्य

अन्नदाता की सुनो पुकार ।


मन में कर लो सुनो सुधार ।।


दिखे है कृशकाय आधार ।


भूख गरीब बना शृंगार ।।


 


खेत खलियान उसकी जान ।


पैदावार बनी पहचान ।।


हरे भरे खेतों की जान ।


अन्नदाता देता अन्न दान।।


 


स्वरचित


निशा अतुल्य


- शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

आर्यावर्त की संतति हम, सिंधु सभ्यता के भावी


वेद हमारे पथप्रदर्शक, शांति पथ के हम राही।


आर्यों के वंसज हैं हम, क्षमा त्याग पहचान हमारी


मातृभूमि के हम सेवक, भाषा हिंदी मान हमारी।।


 


रामायण, गीता, पुराण से, भरा पड़ा इतिहास हमारा


बाल्मीकि, तुलसी, कालिदास, कबीर से है जग उजियारा।


मीरा, सूर, जायसी जैसी, भक्ति है पहचान हमारी


माँ गंगा के पाल्य हैं हम, भाषा हिंदी शान हमारी।।


 


संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश, ये सांस्कृतिक यात्रा के साथी हैं


पद्मावत, साकेत, पंचतंत्र हमारे पुरखों की थाती हैं।


अशफ़ाक, भगत, चंद्रशेखर सी वीरता है पहचान हमारी


हिमालय संरक्षक हमारा, भाषा हिंदी प्राण हमारी।।


 


अटल जैसे नायक हमारे, कलाम सरीखा धरतीपुत्र


कल्पना जैसी बिटिया जिसकी, विश्वबंधुत्व जहां का सूत्र।


टेरेसा, भावे जैसी, सेवा है पहचान हमारी


हमारी उन्नति का सूचक, भाषा हिंदी सम्मान हमारी।।



                - शिवम कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'


डॉ० रामबली मिश्र

*प्रीति निभाना (तिकोनिया छंद)*


दिल में आना,


कहीं न जाना।


प्रिति निभाना।।


 


उर में बसना,


सदा चहकना।


छाये रहना।।


 


गीत सुनाना,


मधुर भावना।


नित दीवाना।।


 


प्रेम रसिक बन,


रसमय तन-मन।


हो अमृत घन।।


 


सत्यपरायण,


पढ़ रामायण।


बन नारायण।।


 


आओ प्रियवर,


नाचो दिलवर ।


सुघर बराबर।।


 


थिरको तो अब,


अभी न तो कब?


आओ मतलब।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कमल कालु दहिया

*वो अमर कहानी हो गए*


 


तिरंगे के ख़ातिर, 


मुल्क की हिफाज़त करने, 


माँ भारती के आँचल में 


बहा अंतिम दृगजल, 


वो इक अमर कहानी हो गए, 


बहती धारा का पानी हो गए।। 


 


दुश्मन को कर परास्त, 


नए सवेरे की रोशनी बने, 


बदन से हारे वो 


सूरज से चमकते रहे, 


ढ़लती साँझ की निशानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।


 


माँ की ममता के मोती बने, 


पिता ने चढ़ाया सूरज देश को, 


बहिन की राखी बनी रक्षासूत्र


पत्नी ने गौरव का सिन्दुर भरा, 


बेटियाँ खुशियाँ चढ़ाकर महादानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


मोहल्ले का फूल खुश्बू दे गया, 


मित्रों की टोलियां एहसास करती है, 


उसके बिन दिन आता संध्या ढ़लती 


वो रहा कहीं तो होगा 


माठी के कण सुहानी हो गए, 


वो इक अमर कहानी हो गए।। 


 


रचनाकार ~ कमल कालु दहिया


कालिका प्रसाद सेमवाल

*धरती माँ बचानी होगी*


*********************


धरती माँ बचानी होगी,


सोच नई अपनानी होगी,


धरती पर जो प्रदूषण बढ़ा,


उससे मुक्ति दिलानी होगी।


         यहां सभी जीते है जीवन,


         यहां है सारे बाग और उपवन,


         यदि करते हो धरा से प्यार,


         करो न धरा पर अत्याचार।


हमीं राष्ट्र के शुभ चिंतक है,


आओ बढ़कर आगे आयें,


दूषित सारी दुनिया हो गई,


 धरा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाये।


         जल , ध्वनि, वायु प्रदूषण,


          नदियांभी ही गई कसैली,


           प्लास्टिक की हो गई भरमार,


           संकट है धरा पर चारों ओर।


अत्यधिक दोहन हमने किया,


धरती माँ से प्यार न किया,


धरती माँ ने सब कुछ दिया,


बदले में हमने धरा को क्या दिया।


         जब -जब हमने लालच किया,


           आपदा को न्यौता दिया,


          धरा ने अमूल्य संसाधन दिये,


            बृक्षारोपण से धरा सजाये।


सब मिलकर पौध लगायें,


बृक्षारोपण सफल बनायें,


धरती पर जो बढ़ा प्रदूषण,


उससे सबको मुक्ति दिलाये।


        राह नई दिखानी होगी,


        युक्ति नई अपनानी होगी,


        कैसे पर्यावरण स्वच्छ बने,    


        सब मिलकर एक सलाह बनायें।


*********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

जिंदगी


 


जिंदगी जी के खुशबू विखेरो सदा।


पूरी दुनिया को दिल में उकेरो सदा।


मत कभी करना कोई गलत काम तुम।


सारी जगती को आँखों से घेरो सदा।


मत निरादर किसी का तुम करना कभी।


सबको सम्मान देकर तुम टेरो सदा।


सारे जग के लिये नित दुआ माँगना।


सबके सिर पर सतत हाथ फेरो सदा।


मंत्र पढ़ना निरंतर मनुजता का ही।


बनकर छाया मचलना बसेरो सदा।


दुःख न देना किसी को कभी स्वप्न में।


बाँटते जाना खुशियाँ घनेरो सदा।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


कालिका प्रसाद सेमवाल

*जय जय जय श्री हनुमान जी*


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जय जय जय श्री हनुमान जी


संकट मोचन कृपा निधान,


बल -बुद्धि विद्या के धाम


आपको मेरा शत् -शत् प्रणाम।


 


मारुत नंदन असुर निकन्दन,


जन मन रंजन भव भय भंजन,


सन्त जनों के सुखनंदन 


अंजना नंदन शत्-शत् वंदन।


 


भक्तजनों के प्रति पालक


दीनों के आनन्द प्रदायक,


अनवरत रामगुण गायक,


बाधा विध्न विदारक।


 


हे राम दूत पवन पूत


शांति धर्म के अग्रदूत ,


सतमार्ग के तुम प्रदर्शक


सत्य धर्म के हो तुम रक्षक।


 


मानवता के महाप्राण हो


मृतकों में भी भरते प्राण हो


हृदय में बसते सीताराम


प्रभु श्री हनुमान को प्रणाम।


 


अनाचारी आज प्रचण्ड है


रक्षक भी हो गये उदण्ड है


करो अनाचार का दमन


जग का भय ताप शमन।


 


दुख दरिद्रता का नाश करो


अनाचारियों का विनाश करो


 दीन दुखियों के कष्ट हरो तुम


जय जय जय श्री हनुमान जी। 


 


भक्तो के तुम रक्षक हो


करो अनाचारियों का दमन ,


हे राम भक्त पवन पुत्र


तुमको कोटि कोटि प्रणाम।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 एक मुक्तक 😊😊


        आधार छंद- चौपाई।


 


हुआ जन्म किस अर्थ कहो तुम।


दारुण दुख मत व्यर्थ सहो तुम।


भजन करो प्रभु का हे मानव,


अपनी धुन में मस्त रहो तुम।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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