मधुरभाष जीवन नशा
नशा सदा नव सीख का , नशा सदा परमार्थ।
मधुर भाष जीवन नशा , नशा कर्म धर्मार्थ।।१।।
नशा नार्य सम्मान हो , नशा भक्ति नित देश।
समरसता मन नशा हो , प्रीति नशा उपवेश।।२।।
मातु पिता सेवन नशा , नशा भक्ति आचार्य।
त्याग शील गुण की नशा , नशा सत्य अनिवार्य।।३।।
सदाचार जीवन नशा , नैतिक जीवन मूल्य।
दान मान परहित नशा , मानव धर्म अतुल्य।।४।।
सर्वोत्तम मानव जनम , स्वार्थ नशा तज लोक।
प्रकृति चारु सुरभित करो , तजो नशा मन शोक।।५।।
करो नशा अरुणाभ जग , नशा प्रगति मुस्कान।
बाँटो खुशियों की नशा , सदभावन सम्मान।।६।।
तजो चाह सत्ता नशा , झूठ कपट पद मोह।
पान नशा कल्याण जग , कीर्ति शिखर आरोह।।७।।
क्रोध लोभ मानस घृणा , हत्या रत दुष्काम।
समझो ये घातक नशा , बनी मौत अविराम।।८।।
साधु समागम कर नशा , विनय नशा कर पान।
निशिवासर सेवा वतन , नशा करो भगवान।।९।।
नशा पान माँ भारती , गाओ भारत गान।
रमो ज्ञान मधुशाल में , शौर्य वीर यश मान।।१०।।
वीर धीर गंभीरता , वसुधा मुदित किसान।
नव शोधन उन्नति वतन , मधुशाला विज्ञान।।११।।
तम्बाकू गाज़ा चरस , द्रग अफ़ीम ये रोग।
शाराबी कामी। नशा , समझ मूल दुर्योग।।१२।।
जीवन है दुर्लभ जगत , प्रीति नशा मन घोल।
जी लो तन मन धन वतन,कीर्ति फलक अनमोल।।१३।।
हमराही जन मन वतन , मधुरिम बने निकुंज।
नशा समादर प्रीति जग , गाएँ समरस गुंज।।१४।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली