*प्रेम चालीसा*
*दोहा:*
प्रेम तत्व प्रिय अमर है, इस असार संसार।
पढ़े प्रेम का पाठ जो,उसका नौका पार।।
*चौपाई:*
प्रेम वचन में अमृत रस है।
सत चित मधु आनंद सरस है।।
प्रेम पंथ अति मादक सरिता।
भाव प्रधान सुफल शुभ कविता।।
प्रेमचक्षु में करुणालय है।
प्रेम- हृदय में देवालय है।।
प्रेम परस्पर परंपरा है।
प्रेम सिंधु अतिशय गहरा है।।
प्रेम बसा है आदि अंत तक।
फैला चारोंओर गगन तक।।
सकल सृष्टि प्रिय प्रेममयी है।
सार्वभौमिकी देवमयी है।।
प्रेम दीवाना द्वारे आया।
खुशबू से आँगन महकाया।।
दीवाने की अदा निराली।
आँखे जैसी रस की प्याली।।
प्याली में मतवाल भावना।
भावों में रसधार कामना।।
देख कामना हर्षित होना।
तान तोड़ आकर्षित होना।।
आकर्षण में प्रीति छिपी हो।
हृदय प्रेम की नीति छिपी हो।।
नीति चलाओ बन जादूगर।
प्रेम पिलाओ साकी बनकर।।
साकी बनकर खुशियाँ बाँटो।
उत्साहित हो जीवन काटो।।
जीवन में हो प्रेम समर्पण।
जग को दो नित जीवन अर्पण।।
अर्पित कर बन स्नेहिल मानव।
मानवता में दिखे न दानव।।
दानवता को मार मनुज बन।
प्रेम हेतु अर्पित कर तन-मन।।
तन-मन से प्रिय को नित चूमो।
प्रेम दीवाना को ले घूमो।।
बनो घुमंतू बन मस्ताना।
प्रेम-जीव को नित सहलाना।।
सहला-सहला रस बरसाओ।
प्रेमी को रस नित्य पिलाओ।
सीखो पीना और पिलाना।
पी कर नाच बना मस्ताना।।
मस्ती लूटो और लुटाओ।
भर अंकों में रसिक बनाओ।।
रसिया के माथे का चंदन।
देख निहारो कर अभिनंदन।।
अभिनंदन कर संग घुमाओ।
प्रियतम का प्रियतम बन जाओ।।
प्रियतम में अति मादकता है।
कीर्तिमान प्रिय मधुमयता है।।
मधुमयता से भरा दीवाना।
पूर्ण ब्रह्म सा अति मस्ताना।।
मस्तानी शैली अति कोमल।
सौम्य सुधा सम अतिशय निर्मल।।
निर्मलता में प्रेम भक्ति है।
द्वार खड़ी दीवान-शक्ति है।।
दीवाना ही घर आया है।
बन लयकार तुझे गाया है।।
हर व्यंजन में स्वर बन जाओ।
लिख-लिख पाती वाक्य बनाओ।।
चिट्ठी लिखकर प्रेम जताओ।
अपने मन का मीत बनाओ।।
नाचो बैठ मीत के उर में।
सतत मीत के अंतःपुर में।।
अंतःपुर में बैठ थिरकना।
कदम-कदम पर सहज फिसलना।।
मन में यही कल्पना करना।
एक मात्र प्रेम ही गहना।।
जो यह गहना नहीं पहनता।
वह कुरूप बन जग में रहता।।
इस जग में अभिशप्त वही है।
जो सात्विक-अनुरक्त नहीं है।।
जहाँ घृणा का है भण्डारण।
दानवता का तहँ पारायण।।
मित्रों!मानवता श्रेयष्कर।
बनो प्रेम स्नेह प्रिय सुंदर।।
जो करता है प्रीति जगत से।
करता घृणा सदा नफरत से।।
जो करता है प्रेम सभी से।
जुड़ जाता है सकल विश्व से।।
जो पढ़ता है यह चालीसा।
उस पर खुश शिव उमा गणेशा।।
*दोहा:*
प्रेम-प्रीति अरु स्नेह से, सारे जग को सींच।
प्रीति रीति की नीति से, सारे जग को खींच।।
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801