नूतन लाल साहू

 राधे राधे


कर भरोसा राधे नाम का

धोखा कभी न खायेगा

हर मौके पर प्रभु श्री कृष्ण

तेरे घर सबसे पहले आयेगा

मात पिता सुत पत्नी भाई

जिनसे तुमने अति प्रीत लगाई

अंत समय कोई संगी नहीं तेरा

आनंदित हो प्रभु गुण गाओ

जन्म मरण के दुख़ से,मुक्ति पा जायेगा

कर भरोसा राधे नाम का

धोखा कभी न खायेगा

हर मौके पर प्रभु श्री कृष्ण

तेरे घर सबसे पहले आयेगा

जिनके घर में मां नहीं

पिता करे नहीं प्यार

ऐसे दीन अनाथों का है

श्री कृष्ण नाम आधार

निर्धन का धन श्री कृष्ण नाम है

सुदामा सा बन जा दीवानी

सब स्नेही सुख के संगी

दुनिया की है चाल दुरंगी

कर भरोसा राधे नाम का

धोखा कभी न खायेगा

हर मौके पर प्रभु श्री कृष्ण

तेरे घर सबसे पहले आयेगा

इस बंगले के दस दरवाजा

बीच पवन का थंबा

पांच तत्व की ईंट बनाई

तीन गुणों का गारा

आवत जावत कोऊ न जाने

यह है बड़ा अचंभा

इस बंगले का जाने वाला

पुनः लौट नहीं आया

कर भरोसा राधे नाम का

धोखा कभी न खायेगा

हर मौके पर प्रभु श्री कृष्ण

तेरे घर सबसे पहले आयेगा

नूतन लाल साहू

राजेंद्र रायपुरी

पद पाते यदि आ गया, 

                    मन तेरे अभिमान।

पतन नहीं फिर दूर है, 

                  कहा मान मत मान।


पैसा सब-कुछ है मगर, 

                     इतना नहीं महान।

मिटा सके विधि का लिखा, 

                     बात सही ये मान।


आपस में मानव लड़े, 

                      करें श्वान से प्रीत।

तनिक नहीं भायी मुझे, 

                    दुनिया की ये रीत।


अपनी ही चिंता नहीं, 

                    हो औरों का ध्यान।

यही अपेक्षा आपसे,

                    आप अगर इंसान।


किए भलाई हो भला, 

                     कहता  है  संसार।

जग कहता यूॅ॑ ही नहीं,

                  अनुभव  है  आधार।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद

 🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


पीला फल पीली सब्जी , पालक मूली पत्ती साग प्रमाण।

गौ घृत मक्खन दूध में, विटामिन ए को लो पहचान ।

त्वचा बाल नाखून ग्रंथि, दांत मसूड़े और हड्डी में डाले जान।

बढ़ाए लहू में कैल्शियम , रतौंधी नेत्र धब्बे को दूर कर,

चुकंदर साग और टमाटर, आजाद आंखों की बढ़ाएं शान । 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

कालिका प्रसाद सेमवाल

गाओ मिल कर गीत प्रभात के

आशा की नई कुतूहल में

उठ जाओ सुप्रभात बेला में

अब आलस को दूर भगाओ,

विधि ने रच दी सुन्दर काया

धरती पर स्वर्ग बसाने की

गाओ मिल कर गीत प्रभात के।


उपवन में गूंजे लय तंरग

चिडिय़ा भी गाने लगी है

मस्ती में बहते मन्द पवन

भौरे भी गुनगुनाने लगे है

फूलों की खूशबू भी फैली

कोयल भी अब कूक रही है

गाओ मिलकर गीत प्रभात के।


धरती की सोंधी माटी में

फसलें कितनी लहरायी है

तितलियों का झुंड आ गया

कितनी मतवाली लगती है

वसुधा पर झलके सुधा बिन्दु

तरु पल्लव तब मुस्कात है

गाओ मिल कर गीत प्रभात के।

★★★★★★★★★★

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


हम उन्हीं को सलाम करते हैं

लोग जो एहतराम करते हैं


लब पे लाली लगा के वो हरदिन

मेरा जीना हराम करते हैं


उनपे लाखों करोड़ों शेर कहे

उनसे हम यूँ कलाम करते हैं


तू ही तू बस रहे ख़यालों में

ऐसा कुछ इंतज़ाम करते हैं


दीन दुनिया के ख़ौफ से बचकर 

मैकदे में ही शाम करते हैं


इससे बेहतर भी और क्या होगा 

उनको दिल में क़याम करते हैं


चढ़ ही जाता सुरूर है *साग़र*

आप जब पेश जाम करते हैं


मौज दुनिया की छोड़ कर *साग़र*

अब चलो राम राम करते हैं


🖋️विनय साग़र जायसवाल

कलाम-बातचीत ,वार्तालाप 

क़याम -ठहरना , ,ठिकाना

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।तुम मिसाल बनो।।आदमी*

*एक बेमिसाल बनो।।*


कुछ ऐसा करो काम कि

जमाना मिसाल दे।

आसमान से बात हो और

तगमा कमाल दे।।

पहचान तो मिले पर अहम

ना आये मन के अंदर।

संबको सहयोग दो कि नाम

तुझे बेमिसाल दे।।


बदन तो बना मिट्टी से और

साँसे बस उधार की हैं।

हैसियत नहीं जमींदार की ये

दुनिया किरायेदार की है।।

जान लो कि ये वक़्त हमेशा

मेहरबान नहीं रहता।

जान लो कि यही पहचान

इक समझदार की है।।


पके फल की तरह नरम और

मीठा भी बनो।

जो दिल में उतर जाये उस

बात का सलीका बनो।।

धूप में खड़े होकर ही मिलती

है अपनी परछाई।

काम सबके आ सको तुम

वह तरीका बनो।।


*रचयिता।। एस के कपूर श्री हंस

*बरेली।।*

मोब।।। 9897071046

                      8218685464


*आज का विषय।।*

*नारे।।कहावतें।मुहावरे ।लोकोक्ति*। *सूक्ति* *आदि।।* *(मौलिक व स्वरचित)*


*।।आधारित।।*

*।।प्रकृति।।पर्यावरण संरक्षण।।वृक्षारोपण।।जल से जीवन।।*

1

जल बचायें।जीवन बचायें

2

यह धरती    हमारी माता  है।

यही हमारी भाग्य विधाता है।।

3

आज   जल को बचाओ खूब।

नहीं तो कल नहीं पयोगे डूब।।

4

एक वृक्ष होता  सौ पुत्र समान है।

यही जीवन की असली कमान है।।

5

मत करो जल   की बरबादी।

बनो जरा इस ओर जज्बाती।।

6

प्रकृति की रक्षा करना  हमारा फ़र्ज़ है।

क्योंकि प्रकृति का हम पर बड़ा कर्ज़ है।।

7

पर्यावरण तभी ही   साफ होगा।

जब प्रदूषण जाकर हाफ  होगा।।

8

वन सम्पदा नहीं काटो भाई।

प्रकृति होगी बहुत दुखदाई।।

9

यह धरती करती सबसे बहुत दुलार।

यदि दोगे कष्ट तो दुख पायेगा संसार।।

10

वृक्ष लगाकर सेवा   करो   निरंतर।

निहित इसमें सुख दुःख का अंतर।।

11

पेड पी लेते हैं वायु का जहर।

कम होता प्रदूषण का कहर।।

12

हर पेड एक देवता समान।

इनकी महिमा को पहचान।।

13

हर वृक्ष में प्रभु का   वास   होता  है।

हमारे जीवन प्राण की आस होता है।।

14

जो रहते हैं प्रकृति के समीप।

स्वास्थ्य   के रहते वह करीब।।

15

जो लेते हैं प्रकृति का सहारा।

हर दुःख    उनसे   है    हारा।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *माँ शारदे वन्दना*

****************

हे मां शारदे. हंसवाहिनी

 नित तेरी वन्दना करता रहूं,

 तुम मुझे सद् बुद्धि देना

काम दूसरों के आता रहूं।


तुम गुणों की खान हो

तुम मान हो सम्मान हो,

मुझे भी मां ऐसा  ज्ञान दो

जो पूर्ण हो मेरी आराधना।


तुमसे  ही सातों स्वर मिले

सुनकर मां नव स्फूर्ति मिले,

जिस पर भी तुम्हारी कृपा हो

जीवन उसका मंगलमय हो।


तुम ही तिमिर नाशकारी हो

तुम  बुद्धि सुविचार दायिनी हो,

तुमने मुझको अपना लिया

पूरी हो गई है अब साधना

★★★★★★★★★★

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

 जय माँ शारदे

लावणी छंद आधारित गीत


कब तक हलधर के अरमानों , को यूँ आप जलाओगे , 

लूट किसानों के खेतों को , कैसे देश बचाओगे। 


क्यों हलधर ने घर को तजकर , संसद को जा घेरा है , 

क्यों सरहद पर दिल्ली की यूँ , जाकर डाला डेरा है। 

क्यों हलधर की माँगों को ये , मान रहे सरदार नहीं , 

क्यों वो फसलों की कीमत को , पाने का हकदार नहीं। 


हलधर की छाती पर चढ़कर , कब तक बीन बजाओगे , 

लूट किसानों के खेतों को , कैसे देश बचाओगे।


क्या संसद का आँगन टेढ़ा , या फिर नो मन तेल नहीं , 

क्यों हलधर की माँगों से अब , होता इनका मेल नहीं। 

नाव चलाने वाले हाथों , में क्यों अब पतवार नहीं , 

हलधर के वोटों के बिन तो , बनती ये सरकार नहीं। 


बातें मानो हलधर की अब , वरना सब पछताओगे , 

लूट किसानों के खेतों को , कैसे देश बचाओगे।


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

दुतारांवाली अबोहर पंजाब 9417282827

डॉ० रामबली मिश्र

 *साथ*


साथ निभाने का वादा कर ।

दिल से प्रेम जरा ज्यादा कर।।


प्रीति करो मन से आजीवन।।

अर्पित कर दो अपना तन-मन।।


अति मनमोहक लगो सर्वदा।

बस नैनन में बने दिव्यदा।। 


कामधेनु बन दुग्ध पिलाओ।

प्रेमामृत रस में नहलाओ।।


शुभश्री बनकर आ जाना है।

प्रिय के दिल में छा जाना है।।


प्रेम पिला कर मस्त बनाना।

अपना पावन रूप दिखाना।।


छलके आँसू सदा प्रीति के।

पड़े कर्ण में गूँज गीत के।।


पंछी बनकर कलरव होगा।

प्रेम मगन हर अवयव होगा।।


बिल्कुल दोनों एक बनेंगे।

सदा एक रस एक रहेंगे।।


दोनों एकाकार दिखेंगे।

खुद खुद को साकार करेंगे।।


अंतःपुर में ही रहना है।

बनकर स्नेह सतत बहना है।।


प्यारे का दिल नहीं दुखाना।

प्रिय प्यारे का दिल बहलाना ।।


महकाना मधु बोल बोलकर।

मुस्काना प्रिय हॄदय खोलकर।।


बाहर कभी नहीं जाना है।

कहीं नहीं भीतर आना है।।


तरसाना मत मेरे प्यारे।

तुम्हीं बनो नित प्रियतम न्यारे।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



*विनम्रता*


1-यह दैवी संपदा है।


2-यह नैसर्गिक गुण है।


3-यह आत्मीयता की जननी है।


4-यह प्रेमत्व को बढ़ावा देती है।


5-यह शांति रस से ओत-प्रोत है।


6-यह विद्या माँ की कृपा से प्राप्त होती है।


7-यह अध्यात्म की ओर संकेत देती है।


8-यह सबको नहीं मिलती।


9-यह मूल्यवान होती है।


10-यह सज्जनता का लक्षण है।


11-विशाल हृदय में यह पायी जाती है।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुर

9838453801

सुनीता असीम

 तप चुके हैं लौह में हम इसलिए फौलाद हैं।

जाँ हमारी है हथेली पर तभी आजाद हैं।

********

दीन दुखियों की सुनी आवाज हमने आज तक।

बाद इसके भी अभी तक क्यूं हमीं  नाशाद हैं।

********

देशहित में काम करते ही रहे थे जो सदा।

उन सभी के हौंसलों से हम रहे आबाद हैं।

********

धन रहे दौलत रहे सम्मान भी भरपूर हो।

पर निछावर देश पर होते नहीं अफ़राद हैं।

********

रह रहे आराम से औ कामना है मौज की।

चाहती हैं सुख सदा कैसी हुईं औलाद हैं।

*******

रह रहे आराम से औ कामना है मौज की।

चाहती हैं सुख सदा कैसी हुईं औलाद हैं।

*******

सुनीता असीम

नाशाद=दुखी

अफ़राद=आदमी

डॉ० रामबली मिश्र

 *विनय चालीसा*

*दोहा:*

विनयावनत बने सहज, जो मानव बड़ भाग।

उसका हिय कोमल अमित, सबके प्रति अनुराग।।

*चौपाई:*

विनयशील मानव अति सुंदर।

सहज प्रेममय स्नेह समंदर।।


सबको अपना बंधु समझता।

सबको नित समान्नित करता।।


आता सबके काम निरन्तर।

करता सबकी मदद धुरंधर।।


सुंदर सोच-विचार युक्त है।

सर्व प्रयोजन में प्रयुक्त है।।


यहाँ वहाँ सर्वत्र जहाँ है।

विनय दिव्य बन सदा वहाँ है।।


अति हँसमुख प्रिय बोली-भाषा।

विनय सभ्यता की अभिलाषा।।


विनय चेतना का प्रतीक है।

राम सरीखा मधुर नीक है।।


विनयशील बनना अति दुष्कर।

पर बन जाये तो श्रेयष्कर।।


विनयी विजयी अति सम्मानित।

आकर्षक मोहक अपराजित ।।


कुण्ठारहित शांत अति शीतल ।

अति पावन स्वभाव प्रिय निर्मल।।


विनय जो मानत वह चेतन है।

जड़ के लिये सिर्फ तन-मन है।।


विनय जहाँ है राम वहीं हैं।

राम बिना निष्काम नहीं है। ।


विनय एक आदर्श मनुज है।

विनयहीन नर महज दनुज है।।


जहाँ विनय तहँ शुद्ध हृदय है।

विनयरहित प्राणी निर्दय है।।


विनय नित्य देही-आतम है।

सबसे ऊपर परमातम है।।


जहाँ विनय तहँ विद्यासागर।

बिन विनम्रता दुःख का नागर।।


विनयशीलता सकल संपदा।

विनयहीनता में दुःख-विपदा।।


विनय महा मानव का गेहा। 

भरी हुई जिसमें है स्नेहा।।


सारे जग समक्ष जो नयता।

वह अति सुंदर मानव बनता।।


विनय भाव नमनीय दिव्य है।

लोकातीत मूल्य स्तुत्य है।।


जो सबको सम्मोहित करता।

विनयशील बन सब दुःख हरता।।


जो विनीत बन करत भलाई।

जग करता उसकी सेवकाई।।


विनयी मानव पाप मुक्त है।

करता कर्म धर्मयुक्त है।।


जिसमें विनय नीर बहता है।

सबकी वही पीर हरता है।।


मृदुल मनोहर विनयशील नर।

सौम्य दृश्यमान प्रिय सुंदर।।


कपटहीन अति साफ-स्वच्छ है।

निर्मल भाव विशाल वक्ष है।।


हृदयगामिनी गंगा बहतीं।

विनम्रता का जल बन दिखतीं।।


विनयशील सत्पात्र समाना।

जग को देता उत्तम ज्ञाना।।


विनयशील का मस्तक नत है।

नतमस्तक पर मस्त जगत है।।


मस्त जगत ही सदा ध्येय है।

छिपा ध्येय में पंथ श्रेय है।।


श्रेय राह में शुभ सन्देशा।

श्रम से अर्जन का उपदेशा ।।


नम्र निवेदन अति मार्मिक है।

हृदय चूमता मन धार्मिक है।।


जहाँ विनय तहँ नम्र भाव है।

अतिशय मीठा मधु स्वभाव है ।।


मधु भावों को बहने देना।

बदले में जन-दुःख हर लेना।।


संकटमोचन विनय भावना।

सबके प्रति अति शुभद कामना।।


जिसके मन में द्वेष नहीं है।

सभ्य विनय का वेश वही है।।


शिवाकार है सत्य विनय मन।

अति भावुक प्रशांत श्यामघन।।


जो होता सबका उपकारी।

वह विनम्रता का अधिकारी।।


हाथ जोड़ विनती कर चलता।

वही विनय प्रिय उत्तम बनता।।


जहाँ विनय तहँ सहज सुमति है।

विनय भावना में सद्गति है।।

*दोहा:*

विनय बना जो चल रहा, करता पावन कर्म।

मीठे मोहक शव्द दे,पालन करता धर्म।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 विशिष्ट दोहे

करते पोषण अन्न दे,देव समान किसान।

पूजनीय हैं ये सदा,इनका हो सम्मान।।


कोरोना के काल में,मदद करे सरकार।

औषधि-सुख-सुविधा मिले, जनता की दरकार।।


करता जब कानून है,समुचित अपना काम।

तभी गुनाहों पे लगे,अंकुश और लगाम।।


धरना की यह प्रक्रिया, होती है हथियार।

प्रजा-तंत्र सरकार में,यह जनता-अधिकार।।


दिल्ली नगर प्रधान है,दिल्ली दिल का केंद्र।

दिल्ली में ही रह रहे,सेवक मुख्य नरेंद्र।।

          ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

               9919446372

निशा अतुल्य

 भारतीय नौ सेना दिवस पर 

4.12.2020



भारतीय नौ सेना दिवस 

शौर्य, समर्पण का दिवस

देश का मान है ये सेना

देश का सम्मान है ।


समुद्र की उठती लहरों को

जिसने अपने दम से बांध लिया

अपनी शौर्य पताका जिसने 

नौका के शिखर पर तान दिया 

ये वीर हमारे सैनिक है 

आज का दिन नौ सेना के नाम किया।


दुश्मन थर थर कांप उठा

जब रणबांकुरों ने हुंकार भरा

दूर दूर तक फैले समुद्र में

नौ सेना में हर वाहन उतार दिया।


नाकों चने चबवाये दुश्मन को

सब ओर से नेस्तनाबूद किया

भारतीय नौ सैनिक जाबांज हमारे

फहरा परचम अपना नाम किया ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

कालिका प्रसाद सेमवाल

 पेड़ लगाकर धरती सजाओ

********************* आधुनिकता के नाम से

बंजर बना  दी धरती मां

पेड़ो को काट  दिया है

और बसा दिये है शहर

नष्ट कर दिये है बाग बगीचे

कर दी है धरती को बंजर

पेड़ लगाकर धरती सजाओ।


पेडों  से धरती  मां

कितनी सुन्दर लगती है

अब हरियाली की जगह

कंकरीट के जंगल है

इस धरा को बचाओ

करनी है वसुधा की रक्षा

पेड़ लगाकर धरती सजाओ।


होड़ लगी  है   विकास की

 हरी घास  की  जगह 

बिछ गये है रंगीन गलीचे,

हरियाली को देखने के लिये

तरस रही है हमारी आंखें

धरती पर हरियाली लाओ

पेड़ लगाकर धरती सजाओ।


अपनी खुशहाली के लिए

धरती मां को नोच रहे है

वृक्षों से धरती मां सजती

हरी  भरी   धरती   का 

चीर हरण क्यों करते हो

अब इस बसुन्धरा को बचाओ

पेड़ लगाकर धरती सजा़ओ।

*******************

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार 

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

डॉ0हरि नाथ मिश्र

 सजल

जाम जिसने था मुझको थमाया,

मैंने वह जाम उसको पिलाया।।


उसे बहुत फ़ख्र था इस अदा पर,

देख,मैंने भी जलवा दिखाया।।


देख कर मेरा रुतबा नया वह,

शीघ्र ही शीष अपना झुकाया।।


कर्म का फल है मिलता जगत में,

तथ्य उसकी समझ में अब आया।।


सदकर्म करता है जो भी यहाँ,

नाम जग में उसी का ही छाया।।


 उचित फल है मिलता सब कर्म का,

हो नहीं कर्म-फल जग में जाया।।


है देवता वह या है वह दनुज,

बस यही सत्य सबने अपनाया।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

सुषमा दिक्षित शुक्ला

 वह मेरी आँखों  के तारे।

 जो  मेरे दो लाल दुलारे ।

वह गुरूर हैं अपनी मां के।

 पापा के  वह राज दुलारे ।

एक अगर है सूरज जैसा।

 दूजा भी तो चंदा जैसा ।

इतना प्यार मुझे वह करते ।

नील गगन में जितने तारे ।

वह मेरी आँखों के तारे  ।

जो मेरे दो लाल दुलारे ।

 रामलला सा इक का मुखड़ा।

 सिर पर है  गेसू  घुंघराले ।

एक परी है आसमान की ।

जिसके नयना काले काले ।

 बिन देखे मैं चैन न पाऊं ।

जरा दूर  हों राज दुलारे ।

वह मेरी आँखों  के तारे ।

जो मेरे दो लाल दुलारे।

 है गुलाब सा इक मतवाला ।

दूजा मानो कमल निराला।

 मेरे घर की बगिया में है ।

स्वयं प्रभू ने  डेरा डाला ।

कृष्ण सुभद्रा की सी जोड़ी ।

 उनके मुखड़े प्यारे-प्यारे ।

वह मेरी आँखों  के तारे ।

जो मेरे दो लाल दुलारे ।

 माँ हूँ ख्याल  रखूँ मैं उनका ।

वह भी बन जाते हैं रखवारे ।

प्रभु की करूणा उनपर बरसे ।

सदा दुआ यह निकले दिल से ।

उनकी नजर उतारूं हर दिन।

 मुझको लगते इतने प्यारे ।

 वह  मेरी आँखों के तारे   ।

जो  मेरे  दो  लाल  दुलारे ।


सुषमा दिक्षित शुक्ला

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।वही होता सफल जो काम*

*को समर्पित होता है।।*


हर मुश्किल के भीतर ही

मुश्किल का हल मिलता है।

कर्तव्य साधना से जरूर

सुख का पल मिलता है।।

कठनाई से ही मिलता है हर

अनुभव फल बहुत बड़ा।

कोशिश करते रहने से ही

इक अच्छा कल मिलता है।।


जान लो पूरी दुनिया जीत

सकते हैं अपने व्यवहार से।

जीता हुआ भी हार सकते

हैं अपने ही अहंकार से।।

कोशिश करते रहो आदमी

से अच्छा इन्सान बनने की।

आदमी मानव बन जाता है

दूसरों के सरोकार से।।


कुशल व्यवहार व्यक्तित्व

का ही दर्पण होता है।

जीत का मंत्र हमारे काम में

ही छिपा समर्पण होता है।।

लक्ष्य और विचार ही हमारे

भविष्य का करते हैं निर्माण।

वही होता सफल जो हर

कोशिश को अर्पण होता है।।


कठनाईयां जब भी आती 

तो कुछ सीखा कर जाती हैं।

जान लीजिए आत्म बल का

उपहार साथ लेकर आती हैं।।

आत्म बल से मिलती है हर

चुनौती से लड़ने की शक्ति।

हमारी आंतरिक ऊर्जा जाग्रत

होकर हमें जीत दिलाती है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।।*

मोब।।।। 9897071046

                     8218685464

डॉ० रामबली मिश्र

 *मेरी अभिनव मधुशाला*


बना आज उत्तर है प्याला, सहज उत्तरित है हाला;

प्याले की हाला को पीकर,मस्ताना पीनेवाला;

साकी की है अदा अनोखी, सबको पात्र समझता है;

निर्विकार निर्लिप्त भावमय, मेरी अभिनव मधुशाला।


प्याले को निर्जीव न मानो, अर्थपूर्ण भावुक प्याला;

 भावभंगिमा की मादकता , से सज्जित मधुरिम हाला;

साकी पावन सत्व भाव में, घूम रहा है जन-जन तक;

देवलोक के प्रांगण में नित, सहज दिव्यमय मधुशाला।


प्रेम परस्पर का उपदेशक, है मेरा बौद्धिक प्याला;

प्रीति दीवानी बनी हुई है, मेरी आराध्या हाला;

प्रेम-प्रीति के प्रिय संगम पर, खड़ा सुघर शिव साकी है.,

बनी हुई है प्रणय मण्डली, मेरी अभिनव मधुशाला।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

 🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


कनक किरण रथ चढ़, भानु भवन आए । 

मणिमय मयूख मुकुट से, स्व शीश सजाए ।

भूषण वसन कंचन के पहिरे,द्वार अरुण आए ।

अब तो उठो तुम बाहर आओ,कर्म तुम्हें बुलाए। 

उद्घोष करें अरुणशिखा, विहग वृंद सब मंगल गाए ।

कली कुसुम से पथ सजाकर, प्रकृति तुम्हें बुलाए।

 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *माँ हंसवाहिनी ज्ञान दो*

********************

भावना श्रद्धा सुमन

अर्पित करुं माँ हंसवाहिनी,

मन वचन और कर्मणा से

माँ मैं तुम्हारी अर्चना करुं।


भव बंधनों के जाल से

तार दो माँ हंसवाहिनी,

अन्तकरण की शुद्धता से

वसुधा पर हो सद्भावनाएँ।


माँ हर आँगन में दीप जले

दिव्य ज्ञान की ज्योति जगा दो,

अपनी करुणा हस्त बढ़ाकर 

माँ विद्या का वरदान दो।


चारों ओर है सघन अंधेरा

विषयों ने डाला है डेरा,

हमको नव सुप्रभात दो

माँ हंसवाहिनी ज्ञान दो।

******************

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

डॉ0 निर्मला शर्मा

 मंहगाई का ज़ोर


जहाँ देखो वहाँ सुनाई देता है 

इतराती  

मंहगाई का शोर

बाज़ार में नित बढ़ती हैं कीमतें

चलता है न हमारा कोई ज़ोर

खाद्यान्न ,कपड़े ,मकान या

दैनिक उपभोग की हो वस्तुएँ

टैक्स 

तो बढ़ता जाता है नित

पर कम न होती कभी कीमतें

गरीब की झोली में केवल

सन्तोष ही क्यों ? 

आबाद है

धनाढ़्य वर्ग तो विपुल

 सम्पत्ति में भी नासाज़ है

मंहगाई ने तोड़ दी है कमर

उछलता है पैसा

 न छोड़ी कसर

अब तो त्योहार भी हुए फीके

 मगर

उत्साह कभी न होगा कम

हम भारतीय खुशियाँ ढूढ़ें

हरदम

छोटी छोटी बातों से ही

जीवन रूपी किताबों से ही

डटकर सामना कर पाते हैं

मंहगाई को आखिर 

हरा ही जाते हैं


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

नूतन लाल साहू

वक्त सभी को मिलता है
जिंदगी बदलने के लिए
जिंदगी दोबारा नहीं मिलती
वक्त बदलने के लिए
समझ न पाया कोई भी
तकदीरो का राज
वक्त बहुत मूल्यवान है
वक्त ही है पहलवान
वक्त को सांसारिक वासनाओं में
व्यर्थ की कल्पनाओं में
जग की सब तृष्णाओ में
क्यों व्यर्थ खो रहे हो
जग की ममता को छोड़
भगवान से नाता जोड़
तेरा जिंदगी बदल जायेगा
वक्त सभी को मिलता है
जिंदगी बदलने के लिए
जिंदगी दोबारा नहीं मिलती
वक्त बदलने के लिए
जिस जिस ने वक्त से प्यार किया
श्रृद्धा से मालामाल हुआ
मिलती है बड़े भाग्य से
सुर दुर्लभ मानुष तन
वक्त के ज्ञान में जो शक्ति है
वो ही जिंदगी के दर्पण को साफ करती हैं
जीवन की डोर को अब
तुम कर दो प्रभु के हवाले
इस भवसागर में केवल
प्रभु शरण ही सुखदाई
वक्त सभी को मिलता है
जिंदगी बदलने के लिए
जिंदगी दोबारा नहीं मिलती
वक्त बदलने के लिए
नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण (श्रीरामचरितबखान)-4

अस सुनि दसकंधर घबराना।

उठि कह तनि तुम्ह मोंहि बताना।

     का बाँधे ऊ उदधि-नदीसा।

     संपति सिंधुहिं,जलधि बरीसा।।

बनहिं-पयोधि,तोय-निधि बाँधा।

मोंहि बताउ नीर-निधि साधा।।

      तब खिसियान बिहँसि गृह गयऊ।

      भय भुलाइ जनु कछु नहिं भयऊ।।

बाँधि पयोधि राम इहँ आयो।

सुनि मंदोदरि चित घबरायो।।

      रावन-कर गहि ला निज गेहू।

       कहा नाथ रखु रामहिं नेहू।।

कीजै नाथ बयरु तिन्ह लोंगा।

बल-बुधि-तेज रहै जब जोगा।

       उदितै चंद्र खदोत न सोहै।

        रबि-प्रकास महँ ससि नहिं मोहै।।

स्वामी तुम्ह खद्योत समाना।

दिनकर-तेज राम भगवाना।।

       मधु-कैटभ रघुबीर सँहारे।

       हिरनकसिपु-हिरनाछहिं मारे।।

बामन-रूप धारि रघुबीरा।

बाँध्यो नाथ बलिहिं रनधीरा।।

    सहसबाहु प्रभु रामहिं मारे।

    परसुराम बनि धरनि पधारे।।

सो प्रभु हरन धरनि कै भारा।

आयो जगत लेइ अवतारा।।

     तेहिं सँग नाथ बिरोध न कीजै।

      हठ परिहरि तिन्ह सीता दीजै।।

काल-करम-जिव राम के हाथहिं।

तिसु बिरोध तुम्ह सोह न नाथहिं।।

      तजि निज क्रोध सौंपि सुत राजहिं।

       करउ गमन-बन भजु तहँ रामहिं।।

दोहा-संत बचन अस कहत अहँ, सुनहु नाथ धरि ध्यान।

        चौथेपन नृप जाइ बन,लहहिं परम सुख ग्यान ।।

                    डॉ0हरि नाथ मिश्र

                     9919446372

राजेंद्र रायपुरी

 🤣🤣   बहती गंगा   🤣🤣


बहती गंगा में सभी, 

                      लोग धो रहे हाथ।

मंशा दूजी पर कहें,

                 हम किसान के साथ।

हम किसान के साथ,

                  खड़े हैं वो दिलवाने।

जो है उनकी माॅ॑ग,

               मगर क्या ये रब जाने।

अपना तो है काम, 

                  करें जो मैया कहती।

धो लेते हम हाथ,

                 जहाॅ॑ भी गंगा बहती।


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।

डॉ0 निर्मला शर्मा

 निशा

निशा 

देती निमंत्रण

चराचर स्वीकार करता

दिवस के पहले प्रहर से

कर परिश्रम

रात्रि में विश्राम करता

सन्ध्या समय

मिल तारों से

शशि को साथ लेकर

करती विहार

प्रतिदिन रवि से

विदा लेकर

चिर शांति की

अनुचरी

वह शांत यामा

सुख स्वप्नों की

सहचरी

शशि की वामा

करती हृदय को

शांत थमता

शोर और व्यवधान

बिखरती 

चाँदनी की उजास

चकोर और चकोरी

की आस

निशा देती निमन्त्रण

कवि को मौन

सा आमंत्रण

मदमाती सी

कहे मन की बात

उतारो कागज़ पर

कविराज

निज हृदय

के हालात

सुकुमारी सी मैं

 निशा 

निश दिन करूँ में

सबके जीवन पर

राज


डॉ0निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

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