डॉ०रामबली मिश्र

 *मीत चाहिये (ग़ज़ल)*


इक सुंदर सा मीत चाहिये ।

मुझको मादक प्रीति चाहिये।।


 मन करता संसार बसाना।

केवल तेरा प्यार चाहिये।।


मेरे पास सदा रहना है।

तुझ सा प्यारा यार चाहिये।।


मेरे सपनों की दुनिया में।

तेरा उर-रसधार चाहिये।।


अंकों की ही गणित चलेगी।

तीन मातृका प्यार चाहिये।।


तीन मातृका नयन सजाये।

नजरों पर एतबार चाहिये।।


दो मात्रा के मन का मिलना।

मन से मन का तार चाहिये।।


प्रेम अश्रु को अंजुलि में भर।

भावों का भण्डार चाहिये।।


अंतस्थल के तल पर लेटे।

दंभमुक्त सत्कार चाहिये।।


लगी प्यास को बुझ जाने दो।

प्रीति-नीर बौछार चाहिये।।


अधर चूमकर रस पीने का।

सुंदरतम आचार चाहिये।।


सभी तरह से एकीकृत हो।

मृदुल गुह्य मधु द्वार चाहिये।।


समरस मधुर प्रीति रस बरसे।

मोहक प्रेमोच्चार चाहिये।।


नहीं रहेंगे अंतेवासी।

सिद्ध प्रेम साकार चाहिये।।


गायेंगे नित प्रेम गीत मिल।

दिल का अविष्कार चाहिये।।


विछुड़ेंगे हम नहीं कभी भी।

प्रेमसूत्र का धार चाहिये।।


दीवाना बनकर जीना है।

प्रिय से आँखें चार चाहिये।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 मुहब्बत हो गई हो तो उसे पाना जरूरी है।

जहां के सामने भी पेश करवाना जरूरी है।

******

किसी से भूल हो जाय तो माफ़ी मांग ले फौरन।

छिपाने की नहीं है बात बतलाना जरूरी है।

******

चलेगा काल का चक्कर पता तुमको नहीं होगा।

तो पहले कर्म अपने साफ करवाना जरूरी है। 

******

किसी मन्दिर से कम होता नहीं घर और आंगन भी।

तो इसमें प्रेम के पत्थर भी लगवाना जरूरी है।

******

अगर ठोकर लगे उनको तो बच्चों को नहीं डांटो।

उन्हें बस प्यार देकर खूब सहलाना जरूरी है।

******

नहीं भाए सुनीता को नज़ारा दूर से करना।

कि बांके को बुलाकर पास बैठाना जरुरी है।

******

सुनीता असीम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

भोली सूरत पे मत जाना,

इसका कोई नहीं ठिकाना।

मालिक,इससे सदा बचाना।।

----------------------------------

कलियों में आते तरुणाई,

भौरों ने गुंजन-धुन गाई।

मधु-रस चख कर लें अँगड़ाई।।

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दुर्जन की संगति मत करना,

तुमको कष्ट भले हो सहना।

सुनो,नीति का है यह कहना।।

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संत-समागम सुख अति देता,

मूल्य नहीं बदले में लेता।

संत-समागम सुबुधि-प्रणेता।।

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सुंदर सोच,कर्म नित शुभकर,

ऐसी प्रकृति सदा हो हितकर।

टिका विश्व शुचि चिंतन बल पर।।

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राजनीति का खेल निराला,

आज शत्रु कल मीत हो आला।

पड़े न गठबंधन से पाला ।।

        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

            9919446372

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *संस्कारी बन जाओ*

★★★★★★★★★

गुरुजन, मात -पिता जन

बच्चों को देते है संस्कार,

 जो बच्चा कहा हुआ माने 

वे ही बच्चे बनते है महान।


सच्चे मार्ग पर चले जो बच्चे

वे अपना परचम फहराते है,

परिश्रम जो नित करते है

वही बच्चे मंजिल पा जाते। 


शिक्षा सबसे बड़ा धन है बच्चों

मन लगाकर पढ़ाई रोज करो,

शिक्षा धन से ही जीवन में

  आ जाती है सुख समृद्धि।


मेहनत से ही जीवन में

उच्च पद पा सकते हो,

केवल सपनों में रहना मत

 नहीं तो मुंगेरी लाल बन जाओगे।


सम्यक ज्ञान ग्रहण कर बच्चे

मातृभूमि की रक्षा करते,

दीन -हीन,निर्बलों विकलों की

यही बच्चे पीड़ा हर लेते है।


 अपना कर्तव्य निभाओ बच्चों

पढ़ लिख कर खूब नाम कमाओ,

फल तुमको मिल जायेगा

कर्मो पर विश्वास जताओ।


जो भी बच्चा कर्तव्य निभाता

विश्व भर में वह नाम कमाता ,

नमन जमाना तुम्हें करेगा

तुम संस्कारी बच्चे बन जाओ।

★★★★ ★★★★★

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

निशा अतुल्य

 मानवता

दोहा छंद

8.12.2020


मानवता अब खो रही,बदल रहा इंसान,

दो धारी भाषा अब,बोल रहा शैतान।


नैनो में ना शरम है,ना मन में उपकार

चौराहे पर रो रहे,सब ही परोपकार।


हो रहे नीलाम आज, नारी के अहसास

निःशब्द सब लोग हुए,मन में ना है आस।


नारी तो बे-मोल है,लुटती रहती लाज 

कान्हा लो अवतार अब,सृष्टि पर ही आज।


आ जाओ संसार में, ले कर के अवतार

बुद्धि दो प्रभु आप ही,तारो पालन हार।


स्वरचित 

निशा अतुल्य

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 गीत(16/14)

जितने दूर हुए तुम तन से,

उतने मन के पास हुए।

प्रेमी के भूगोल न होते,

प्रेमी तो इतिहास हुए।।


जब मन कहता तुमको पाता,

तुम मेरे हृद-वासी हो।

अंतर्मन की शोभा तुम हो,

तुम प्रेमी अविनासी हो।

तुमको अंतर्मन में पाकर-

कभी न भाव उदास हुए।।

 प्रेमी तो इतिहास हुए।।


मेरा प्रेम निराला-अद्भुत,

कभी नहीं जग को दिखता।

प्रेम सदा अध्यात्म रूप है,

कभी न सोने से तुलता।

तुम दैवी अदृश्य भाव हो-

तुम तो बस एहसास हुए।।

   प्रेमी तो इतिहास हुए।।


सागर की लहरों में तुम हो,

तुम रवि-शशि की किरणों में।

सकल ज्ञान की ज्योति तुम्हीं हो,

भाषा-अक्षर-वर्णों में।

दूर दृष्टि से होकर फिर भी-

सदा मुझे आभास हुए।।

     प्रेमी तो इतिहास हुए।।


गंध पुष्प की जब भी पाऊँ,

तुम्हीं महकते मुझे मिले।

भौरों की गुंजन में तुम ही,

मुझको विधवत मिले ढले।

कैसे तुम्हें बताऊँ प्रियवर-

तुम मेरे विश्वास हुए।।

    प्रेमी तो इतिहास हुए।।

         ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

             9919446372

निशा अतुल्य

नहीं मिला


देने वाला देगा इतना

जितना तुझको चाहिए 

सुख हो या हो दुख सुनले

बंदे तेरे ही है ये साथी ।


नही मिला वो जीवन में 

जिसकी जरूरत हमें नही 

देने वाला देता इतना 

भर ले तू अपनी झोली ।


मांगे से तो भीख मिले ना

बिन मांगे मोती चुन ले 

ये तो तेरा भाग्य है बंदे

इसको तू मन में गुन ले ।


सागर भरा हुआ मोती से

सबको कहाँ मिल पाता है

सौ सौ डुबकी कोई लगाए

तब जीवन रस पाता है ।


सब कुछ मिलता इस जीवन में

जो चाह न मन में रखता है

बह चलो बस उस धारा में 

जिसमें जीवन बहता है ।


स्वरचित

निशा अतुल्य

डॉ० रामबली मिश्र

 जलनेवाले (चौपाई)


जलनेवाले को जलने दो।

मुझको सुंदर ही रहने दो।।


जो जलता, वह देत प्रकाशा।

पहुँचा देता है आकाशा।।


जलकर होता खाक स्वयं ही।

मरता है दिन-रात स्वयं ही।।


बिना मौत के मौत बुलाता।

है यमराज पास में आता।।


बात-बात में जलता रहता।

टेढ़ी बोली बोला करता।।


कुंठाग्रस्त सदा दिखता है।

गंदा खेल किया करता है।।


क्षति पहुँचाने की फिराक में।

मन रहता नापाक काम में।।


घटिया बात सदा करता है।

तुच्छ नीच हरकत करता है।।


लुच्चा मन कसरत करता है।

प्रगति देख नफरत करता है।।


झूठ बोलता चोरी करता।

खुद को अच्छा मानुष कहता।।


देख परायी खुशी ऐंठता।

ज्वलनशील उर- गेह बैठता।।


प्रति पल प्रति क्षण जलता चलता।

काला चेहरा लिये टहलता।।


भाग्यहीन यह दुःख दानव है।

स्तरहीन निकृष्ट मानव है।।


अपमानित जीवन जीता है।

तिरस्कार का मय पीता है।।


सबसे उत्तम है वह भाई।

करत-रहत जो जगत भलाई।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

रवि रश्मि अनुभूति

दर्शन दो घन श्याम मुझे तुम , सुधा रस अब तो पिला दो ।

हृदय में बस कर आज प्रभु तुम , दिल का फूल खिला दो ।।


डगमग मेरी नैया डोले , दे दो अभी तो सहारा ।

हाथ पकड़ कर पार लगाओ , मिल जाये मुझे किनारा ।।


सँवरे अब तो जीवन मेरा , दाँव लगाया है मैंने ।

मानुष जीवन पाया है जो , व्यर्थ गँवाया है मैंने ।। 


अब शरण तुम्हारी आकर ही , दर्शन की है प्यास लगी ।

तुम बिन जीवन सूना है जो , बस चरणों की आस जगी ।।


कर दो प्रकाश ज्ञान का अब , मेरा तुम तो हाथ गहो ।

आशीष मुझे दो हे प्रभु तुम , दोगे अब तो साथ कहो ।। 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

डॉ० रामबली मिश्र

 *प्यार में...*


प्यार में मैं बह गया।

आप का ही हो गया।।


अब निकलना कठिन है।

आप में ही खो गया।।


अब बताओ क्या करें?

आप का दिल हो गया।।


अब बचा क्या पास में ?

आप का सब हो गया।।


यह फकीरी राह है।

 काम पूरा हो गया।।


काम में अनुराग है।

प्रेम मन से हो गया।।


अब भटकना है नहीं।

दीप प्रज्ज्वल हो गया।।


मस्त हो कर मचलना। नाम अच्छा हो गया।।


बह गया मधु सिंधु में।

मधुर रस सा हो गया।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

कालिका प्रसाद सेमवाल

 वन्दना

******

हे मां शारदे

तेरे द्वार पर आया हूँ मां

तेरे चरणों में आज पड़ा हूँ

ज्ञान का उपहार दे मां।


हे ज्ञानदायिनी ज्ञान से वर दे

करुणामयी मां अज्ञान को हर दे

ज्योति ज्ञान की जला कर मां

जीवन में मां उत्साह भर दे।


हृदय वीणा को हमारी

नित नवल झंकार दे मां

साधना आराधना का मां

तू हमें ये अधिकार दे दो।


शरण में मां तुम्हारी मैं आया

दीजिए हे मां बुद्धि -विवेक

नित्य ही तेरा ध्यान करो मां

बस तेरा ही गुणगान करो मां।

*********************

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

नूतन लाल साहू

 त्याग


प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं

मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती

एक सांस भी तब आती हैं

जब एक सांस छोड़ी जाती है

छत,दौलत,हीरे,रतन,गिनते रहते हैं

लेकिन बाकी सांस का,रख न सका हिसाब

अगर सांस रुक जायेगी

तो वापिस नहीं आयेगी

आम आदमी यूं लगा है,जैसे पिचका आम

पढ़ना पड़ता है सत्य का,नियमित अध्याय

अपनी मर्जी का नहीं,अब कोई काम

प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

प्राणी इस संसार में,चाहे जितना भी कर ले प्रयत्न

समय नहीं अनुकूल तो,कोई काम न होय

पूर्ण सफलता के लिए,दो चीजें रख याद

रब पर पूरी आस्था और आत्म विश्वास

कब क्या कर दे यह समय,कौन सका है जान

मिट्टी में मिल जायेगा,सत्ता का अभिमान

हरि इच्छा में छिपा है, मानव का कल्याण

कब समझेगा राज यह,कलियुग का इंसान

प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं

मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती

एक सांस भी तब आती है

जब एक सांस छोड़ी जाती हैं

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7

बानर-रीछ-सेन सँग रामा।

रहहिं सुबेलहिं रुचिकर धामा।।

    लखन बिछाइ मृदुल मृगछाला।

    आसन देवहिं राम-कृपाला।।

निज सिर रखि सुग्रीव-गोद महँ।

राम सुधारहिं धनु-सर वहिं पहँ।।

    कहहिं बिभीषन अस लखि तहवाँ।

     बड़ भागी अंगद -हनु इहवाँ ।।

चापहिं प्रभु-पद-पंकज प्रेमा।

बान सरासन लखन सनेमा।।

     जे नित दरस करै अस रूपा।

     प्रभु-प्रसाद उ पाव अनूपा।।

लखि पूरब दिसि तब प्रभु कहऊ।

उदित चंद्र केहरि सम लगऊ। 

     चंद्र गगन तम निसा बिदारै।

     जस बन सिंह मत्त गज मारै।।

निसा-सुनारि-मुकुतहल तारे।

निसि-बाला जनु रहे सवाँरे।।

     सबहिं बताउ मोंहि अब ऐसे।

      चंद्र मध्य स्याम रँग कैसे।।

तब सुग्रीव राम तें कहई।

छाया भूमि मध्य ससि रहई।।

   स्याम चंद्र राहू कर दीन्ही।

    काटि ताहि बिधि रति-मुख किन्ही।।

बहु-बहु मुख अरु बहु-बहु बाता।

कछुक नहीं प्रभु कर मन भाता।।

    कह प्रभु गरल चंद्र बहु भावै।

    यहिं तें बिष उर चंद्र लगावै।।

निज बिष-किरन पसारि क चंदा।

बिरही बदन जरावै बंदा ।।

     कह हनुमत प्रभु ससि उर तुमहीं।

      कीन्ह स्यामता बसि के उरहीं।।

दोहा-सुनि हनुमंतहिं बचन अस,बिहँसे प्रभु श्रीराम।

         लखि के दिसि दक्खिन तुरत,बोले प्रभु अभिराम।।

                              डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 युवा-पुकार

कहते सभी युवा भारत के,

नहीं शस्त्र-तलवार चाहिए।

शिक्षा-स्वास्थ्य-सुरक्षा जो दे-

बस ऐसी सरकार चाहिए।।


मिले हमें अवसर भी पढ़-लिख,

समुचित सेवा भी करने का।

करें सभी जनता की सेवा,

सम्मान राष्ट्र का रखने का।

श्रम जो करें मिले फल उसका-

नहीं तर्क-तकरार चाहिए।।

    बस ऐसी सरकार चाहिए।।


संसद और सभा के प्रतिनिधि,

युवा-युवतियाँ भी बन जाएँ।

सभी घिनौनी चाल सियासी,

पर अंकुश मिल सभी लगाएँ।

करें विमल हम पटल सियासी-

ऐसा ही अधिकार चाहिए।।

      बस ऐसी सरकार चाहिए।।


जनता में विष-बेल जाति की,

बो न हमें है चाहत मत की।

भेद-भाव का बीज डालकर,

फसल भी काटें सियासत की।

करें न दूषित शासन हम सब-

 हमें शुद्ध संचार चाहिए।।

      बस ऐसी सरकार चाहिए।।


समुचित-सुंदर-स्वस्थ व्यवस्था,

है उद्देश्य निराला अपना।

संस्कृति अपनी पुरा काल की,

हो पुनि पुष्पित आला सपना।

ज्ञान और विज्ञान-कला का-

विकसित एक विचार चाहिए।।

    बस ऐसी सरकार चाहिए।।


संकट में भी हम सब मिलकर,

लड़ें लड़ाई धीरज रखकर।

असहायों की करें मदद हम,

सदा सहायक- सेवक बनकर।

हानि-लाभ की रहे न चिंता-

धवल यही संस्कार चाहिए।।

     बस ऐसी सरकार चाहिए।।

                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 *आप का एहसान*

     *(ग़ज़ल)*

आप का एहसान मेरा सर्व है।

आप मेरी जिंदगी का पर्व हैं।।


आप को पाना जरूरी था बहुत।

आप की इंसानियत पर गर्व है।।


आप को देखा था इक दिन राह में।

लग रहा था आप मेरे सर्व हैं।।


गर्मजोशी से भरे अंदाज में।

लग रहे थे आप मानो पर्व हैं।।


दिव्य भावों की सहज मुस्कान में।

आप के इस रूप पर अति गर्व है।।


गति निराली मोहता मुखड़ा गजब।

प्रेम का आगाज मेरा सर्व है।।


करुण चुंबन बुद्ध जैसे अप्रतिम।

करुणसागर सभ्य मेरा पर्व है।।


दिव्यता की ज्योति लेकर हाथ में।

सत्यखोजी आप मेरे सर्व हैं।।


दीनता पर सजल नयनों में दिखे।

घाव धोते आप मह पर गर्व है।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

 *आप ही तो...*

  *(ग़ज़ल)*


आप ही तो प्रेम के अवतार हो।

जिंदगी की आप ही दरकार हो।।


आप सागर की लहर में मचलते।

बूँद के श्रृंगार का सत्कार हो।।

 मोर सा हैं नृत्य करते आप हैं।

आप ही संगीत के आधार हो।।


आप का तात्पर्य पूरा प्रेम है।

आप ही सच प्रेम के आकार हो।।


आप में जो खो गया वह बन गया।

आप ही मनु जाति के उद्धार हो।।


आप के जन्मांक में है प्रेम बैठा।

आप ही शिव कुण्डली में प्यार हो।।


भागते हैं कष्ट सारे मिलन से।

आप का संवाद ही स्वीकार हो।।


एक हो कर बिन बहे का अर्थ क्या?

आप के ही प्रेम का संसार हो।।


उठ रहे तूफान का अब शमन कर।

हर कदम पर प्रेम का जयकार हो।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डा.नीलम

 प्रीत

कैसी अनोखी पिया

तेरी मेरी बातें

आंखों ही आंखों में

कटती हैं रातें


मिली है रब से मुझको

तेरी प्रीत की सौगातें

कितनी प्यारी अपनी

साजन ये मिलन की रातें

मुझको मिली है......


रब्बा नज़र न लग जाए

किसी की 

दुनियां बैठी नज़र गढ़ाए

न कर दे घातें

मुझको मिली..........


निगाहों ही निगाहों में

युग यूं बीते

ज्यों चुटकी में बन जाए बातें

तन-मन के मिलन से

हवाओं -में घुल रही थी सांसें

मुझको मिली है.. ‌‌.......


           डा.नीलम

डॉ० रामबली मिश्र

 *सुबह-शाम*


सुबह-शाम दर्शन किया मैं करूँगा।

दर पर तुम्हारे खड़ा ही रहूँगा।।


इबादत करूँगा मैं करवद्ध हो कर ।

मिलने की खातिर पड़ा ही रहूँगा।।


तरसती ये आँखें हैं व्यकुल हृदय है।

पाने को दर्शन तड़पता रहूँगा।।


तरसना ही मेरी नियति में लिखा है।

आशा की गंगा में बहता रहूँगा।।


पाना असंभव की दरिया का आँचल।

हॄदय जीतने मैं कोशिश करूँगा ।।


आँखों में आँसू के थक्के जमे हैं।

नरम दिल से दिल को लुभाता रहूँगा।।


जन्मों की मंशा अधूरी अभी तक।

अधूरे को पुरा मैं करता रहूँगा।।


चलूँगा दिलेरी का झंडा लिये कर।

हाथों से उँगली पकड़ कर चलूँगा।।


बहुत याद तेरी मुझे आ रही है।

मंदिर पर तेरे टहलता रहूँगा।।


नहीं दोगे दर्शन भला कैसे प्यारे?

दिल में तुम्हारे उतरता रहूँगा।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

 *अदा पर फिदा..*


अदा पर फ़िदा हो गया धीरे-धीरे।

मचलने लगा मन जरा धीरे-धीरे।।


लगा देखने मैं अदायें निराली।

बहकने लगा दिल जरा धीरे-धीरे।।


चढ़ा जोश का ज्वार मुस्कान भर कर।

धड़कने लगा दिल जरा धीरे-धीरे।।


फिदा हो गया इस कदर पूछना मत।

पिघलने लगा मन जरा धीरे-धीरे।।


अँगड़ाइयाँ भर रही थीं कुलाचें।

विचलने लगा दिल जरा धीरे- धीरे।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता उपाध्याय असीम

 दिल मेरा बस वो दुखाने आए।

जख्म पर मरहम लगाने आए।

******

 घी उन्होंने आग में था डाला।

आग जो सारे बुझाने आए।

******

जिन्दगी भर जो लगे दुश्मन से।

मुश्किलों से वो बचाने आए।

******

जल रही थी अग्नि जब विरहा की।

मित्र भी मुझको रुलाने आए।

******

सामने मेरे वो चले आए जब।

कर लिए जितने बहाने आए।

******

अश्क आंखों से पिए थे मेरे।

जब मेरा दिल वो लुभाने आए।

*******

 कान्हा कर दो महर अब हमपर।

हम तुझी पर दिल लुटाने आए।

******

सामने तेरे झुका कर सर को।

सब खड़े हैं जो दिवाने आए।

******

क्यूँ सुनीता से हुए हो रूठे।

गा लिए जितने तराने आए।

******

सुनीता उपाध्याय असीम

७/१२/२०२०

राजेंद्र रायपुरी

 प्रस्तुत है हास्य रस पर एक रचना- 


कुछ लोगों ने नेताजी तक,

                 जब यह बात बढ़ाई।

हमें मिले कुछ हिस्सा जब भी,

                 खाऍ॑   आप   मलाई।

नेताजी उस्ताद बहुत थे, 

                  झट  से  बोले  भाई।

खा लो दो-दो लात चलो सब,

                 कल  है  मैंने  खायी।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *मां सरस्वती मुझे विमल बुद्धि दे*

★★ ★ ★★★★★★

 माँ सरस्वती मुझे विमल बुद्धि दे,

 दिखे जीवन  में  यदि जड़ता,

जला दो माँ ज्ञान की ज्योति,

मेरे मन भवन में आकर के,

सद् मार्ग मुझे तुम बता देना।


शुचिता मन में हमेशा ही रहे,

दूषित विचारों. का नाश करना,

पूर्ण निष्ठा लगन से कर्म करता रहूं,

दृढ़ता से कर्तव्य पालन  करता रहूं,

माँ सरस्वती मुझे विमल बुद्धि दे।


शब्द वर्ण  से लिखो राष्ट्र वंदना,

शुद्ध हो माँ वर्तनी स्वर में निखार हो,

साधना की शक्ति से दिव्य दृष्टि दे,

सबके प्रति माँ प्यार की फुहार हो,

माँ सरस्वती मुझे विमल बुद्धि दे।

★★★★★★★★★  

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8

लखहु बिभीषन दिसि दक्खिन महँ।

गरजहिं बादर रहि-रहि नभ महँ।।

    रहि-रहि बिजुरी चमकि रही जनु।

     ओल-बृष्टि करिहैं जग अब घनु।।

तब प्रभु सन अस कहहिं बिभीषन।

ना तड़ित,न बादर नाथ गगन।।

     अद्भुत लंक-सिखर रँगसाला।

     नृत्य-गान तहँ होंय निराला।।

घन इव कारा अरु बिकराला।

धरि सिर छत्र लखै नटसाला।।

     रावन जाइ तहाँ रस भोगै।

     बिषय-भोगरत निज रुचि जोगै।।

चमक गगन नहिं दामिनि होवै।

कुंडल कर्ण मँदोदरि सोहै।।

     गरजन घन-घमंड नहिं होई।

     थाप मृदंग-पखावज सोई।

तुरत राम धनु-सायक काटा।

कुंडल-छत्र तिनहिं जे ठाटा।।

    कउ लखि सका न रामहिं काजा।

     जदपि रहे सभ उहहिं बिराजा।।

पुनि प्रबिसा सर आइ निषंगा।

अचरज करि रँग डारि क भंगा।।

     बिनु भूकंप न बायु सँजोगा।

     लखा न कोऊ सस्त्र-प्रयोगा।

अस कस भयो अचंभित सबहीं।

सोचे सभ जनु असगुन भवहीं।

दोहा-देखि सबहिं भयभीत तहँ,बिहँसि कहा लंकेस।

         सीष-मुकुट कै अस पतन,जानहु सुभ संदेस।।

         जावहु सभ निज-निज गृहहिं,करहु सयन-बिश्राम।

        होहि मोहिं सुभ अस पतन,असगुन मुकुट न काम।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                             9919446372

नूतन लाल साहू

 सोच


जीवन में ऐसी सोच रखिये

जो खोया उसका गम नहीं

पर जो पाया है

वह किसी से कम नहीं

जो नहीं है वह एक ख्वाब है

पर जो है वह लाजवाब हैं

मत सोच कि मेरा सपना पूरा नहीं होता

हिम्मत वालो का इरादा कभी अधूरा नहीं होता

जिस इंसान का कर्म अच्छा होता है

उसका तो रास्ते भी इंतजार करता है

गहन शोक में आदमी

खो देता हैं निज ज्ञान

भावुकता जब जब बढ़ी

होता है बहुत संताप

जीवन में ऐसी सोच रखिये

जो खोया उसका गम नहीं

पर जो पाया है

वह किसी से कम नहीं

जहां जहां ईमान है

वहा वहा भगवान

मांग उसी भगवान से

जो है अनाथों का नाथ

तू क्या लाया है साथ में

जिसे खो देगा इंसान

फिर भी कहता फिर रहा है

मै लूट गया इस जग में

कर्म कर, फल की इच्छा से नहीं

फल देंगे भगवान

यह है गीता का ज्ञान

जीवन में ऐसी सोच रखिये

जो खोया उसका गम नहीं

पर जो पाया है

वह किसी से कम नहीं

जो नहीं है वह एक ख्वाब है

पर जो है वह लाजवाब हैं

नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *कहानी।*

*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस'*

*बरेली।।*

*शीर्षक।। रिश्ते बड़े या पैसा।।*


राम और रीमा के मध्य और दिनों की

अपेक्षा कुछ अधिक झगड़ा हो रहा था।राम ने बताया था कि माँ कौशल्या देवी अब वृद्धा आश्रम छोड कर घर आ रही हैं।अचानक क्यों आ रही हैं पता नहीं।

तभी माँ कौशल्या देवी का आगमन हो गया। सभी ने उनके चरण स्पर्श किये और संबको आशीर्वाद दिया लेकिन बहु रीमा दूर खड़ी घूर रही थी और फिर तुनक कर बोली कि आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने के लिए।वहां आराम से रह रही थी और हमारी छोटी सी गृहस्थी तुम घुसने आ गई।

माँ शान्ति पूर्वक सुन रही थी ।माँ ने तत्काल वकील को फोन किया कि कागज़ ले कर आ जायो।वकील साहब तुरंत आ गए और बोले कि आप के कहे अनुसार 1 करोड़ रुपये जो आप पति की मृत्यु के बाद कोर्ट के आर्डर से जो मिला वह आपके बेटे राम के नाम कर दिया है।कौशल्या देवी ने कागज़ हाथ में लिए और तुरंत फाड़ दिए।

कुछ देर शांत रही और बोली सुबह काशी जा रही हूं और लौट कर आनंदी और आनन्द ( बेटी और दामाद) के यहाँ जाऊँगी ।वह लोग कबसे जोर दे रहे हैं लेकिन मैंने ही कहा था कि बेटे के यहां अंतिम समय निकले और बेटे के हाथ मुखाग्नि से मोक्ष प्राप्त होता है लेकिन मुझको अब यह बात व्यर्थ लग रही है।मेरी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है और सुबह तक की बात है।मैं सोने जा रही हूँ और चली गई और बेटा बहू बच्चे अवाक शून्य समान देखते रह गए।


*संदेश।निष्कर्ष।*

*हमेशा अपने रिश्तों को अहमियत देनी चाहिए और केवल स्वार्थ वश रिश्ता न रखें। जान लीजिए कि संबंध बनाने चाहिय ।यह सदैव काम आते हैं और चाहे घर छोटा हो पर दिल बड़ा होना चाहिए।अंतिम बात कि माता पिता की सेवा से बढ़ कर अन्य कोई पूजा नहीं होती है।*


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।। 9897071046

                     8218685464

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