डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-9

तब सभ गे झुकाइ निज माथा।

होइ बिनीत लंकपति नाथा।।

     पर नहिं चैन मँदोदरि मन महँ।

      सोचै बिकल घुमरि सो जहँ-तहँ।।

नयनन नीर दोउ कर जोरे।

कहा नाथ बड़ चिंता मोरे।।

     तजहु राम सँग निज रिपुताई।

     देइ सीय तिन्ह करउ मिताई।।

राम अहहिं सुनु बिस्वस्वरूपा।

सकल लोक प्रभु-रूप अनूपा।।

     कह अस बेद, करउ बिस्वासा।

     होई मुक्ति रखहु तुम्ह आसा।।

चरन पताल, ब्रह्म प्रभु-सीसा।

भृकुटि काल,रबि सम जगदीसा।।

       अस्विन कुमारइ राम-नासिका।

        दस दिसि अहहीं श्रवन-तंत्रिका।।

कारे जलद राम कर केसा।

रात्रि-दिवस प्रभु-पलक निमेसा।।

     पवनइ स्वांस,निगम प्रभु-बानी।

      सुनहु नाथ अस बेद बखानी।।

लोभ अधर,जमराजहि दंता।

माया हँसी व बाहु दिगंता।।

     प्रभु-मुख अनल,बरुन प्रभु-जिह्वा।

     रचना-पालन-नास अपुर्वा।।

अठरह अगनित बनजहिं रोमा।

अस्थि नाथ सभ पर्बत-खोमा।।

     प्रभु-तन-नस सरिता महि अहहीं।

     सिंधु उदर नरकेंद्रिय अधहीं।।

ब्रह्मा बुधि, अभिमानहिं संकर।

चित्त बिष्नु,मन चंद्र मयंकर।।

      अस प्रभु राम चराचर बासा।

      मनुज-रूप जग करहिं निवासा।।

अस रामहिं सँग करउ मिताई।

तजि रिपुता अहिवात बचाई।

     श्रवन लगहिं तव बचन सुहाने।

      कह रावन मम चितहिं अघाने।।

निसि बीती अस करत बिनोदा।

गया सभा पुनि रावन मोदा।।

दोहा-सुधा न बरसहिं कबहुँ घन, लागै फर नहिं बेंत।

         खरहिं पढ़ावउ बेद बरु,वाको हृदय न चेत।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

कालिका प्रसाद सेमवाल

 सरस्वती वंदना

**************

जयति जय जय वीणा वादिनी

कमल आसन पर तू विराजे

शुभ्र वस्त्र से मां तू साजे

शीश नमन करता हूँ तेरे आगे।


सबको विद्या बुद्धि का दान दे

ना रहे मां कोई भी अज्ञानी

सभी राग द्वेष से दूर हो

जयति जय वीणा वादिनी।


अज्ञानता और भ्रमित मन में

भरो ज्ञान की संचेतना

भव बंधनो के जाल से

तार दो मां श्वेताम्बरा।


प्रार्थना तेरे चरणों में मेरी

स्वीकार कर दो मेरी वंदना

मन वचन और कर्मणा से

मां मैं नित करु तेरी वंदना

*********************

कालिका प्रसाद सेमवाल

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।अपने किरदार को जियें बहुत*

*ही शिद्दत से जिंदगी में।।*


आओ करें  दुनिया में     कुछ 

काम  हम      ऐसा।

दुनिया चाहे     बनना    फिर  

हम    ही     जैसा।।

किरदार को जियें   जिंदगी में

ऐसी   शिद्दत     से।

जाने से पहले  बनाये  अपना 

नाम कुछ हम वैसा।।



विश्वास झलके   हमारे     हर

किरदार            में।

कुछ कर गुजरने  का   यकीन

हो चाल    ढाल में।।

जान लो हमारे  शरीर  का हर

अंग   बोलता     है।

इनकी मौन भाषा  बोले हमारे

हर     सरोकार में।।


अरमान रखो कि    आसमां से

बात        करनी     है।

हो कैसी   भी    चुनौती    हमें

लड़ाई   लड़नी    है।।

हो इरादा    मजबूत  तकलीफ

तो महसूस नहीं होती।

अपने हर     किरदार में बस ये

बात   धरनी      है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।।।*

मोब।।            9897071046

                     8218685464

डॉ० रामबली मिश्र

 *आप अगर होते..*

   *(ग़ज़ल)*


आप अगर होते तो रमता।

रमण काल में सब कुछ कहता।


देर नहीं करता  मैं थोड़ी।

रहता सारा भेद उगलता।।


दिल में छिपे तथ्य सारे हैं।

सबको कह कर हल्का बनता।।


तुम अप्राप्य हो यह जग जाहिर।

 पर निकाल कर सब कुछ रखता।।


 भगवन से मिलना संभव है।

नहीं असंभव संभव बनता।।


पर कल्पन में तुम्हीं रमे है।

लिये कल्पना लोक विचरता।।


मत आओ पर बनो कल्पना।

लिये कल्पना सदा थिरकता।।


नहीं कल्पना से बाहर हो।

संग कल्पना नित्य विहरता।।


दृढ़ संकल्पित रहे कल्पना।

इच्छा पूरी करता रहता।।


मैं वनवासी इश्क धाम का।

जंगल जंगल घूमा करता।।


मन में रहो हृदय में उतरो।

इस प्रकल्प को स्थापित करता ।।


बहुत कल्पनालोक लुभावन।

प्राक्कल्पना पर चढ़ चलता।।


अनुमानों से हाथ मिलाकर।

सदा असंभव संभव करता।।


सकल सृष्टि को मुट्ठी में रख।

प्रेम-मेघ बन घुमड़ा करता।।


निश्चिन्तित हो शांत पथिक सा।

सबके उर में छाया रहता।।


आप कल्पना दृश्य मनोहर।

दृश्य देखता हर्षित रहता।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

भोली सूरत पे मत जाना,

इसका कोई नहीं ठिकाना।

मालिक,इससे सदा बचाना।।

----------------------------------

कलियों में आते  तरुणाई,

भौरों ने गुंजन-धुन गाई।

मधु-रस चख कर लें अँगड़ाई।।

------------------------------------

दुर्जन की संगति मत करना,

तुमको कष्ट भले हो सहना।

सुनो,नीति का है यह कहना।।

--------------------------------------

संत-समागम सुख अति देता,

मूल्य नहीं बदले में लेता।

संत-समागम सुबुधि-प्रणेता।।

---------------------------------------

सुंदर सोच,कर्म नित शुभकर,

ऐसी प्रकृति सदा हो हितकर।

टिका विश्व शुचि चिंतन बल पर।।

-----------------------------------------

राजनीति का खेल निराला,

आज शत्रु कल मीत हो आला।

पड़े न गठबंधन से पाला ।।

        © डॉ0 हरि नाथ मिश्र

            9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 *प्यार आपका..(चौपाई)*


प्यार आपका दिव्य प्रसादा।

 सहज  शांतिपूर्णअपवादा।।


दिल करुणा का गहरा सागर।

दयापूर्ण भाव का नागर।।


परम प्रसन्न वदन मनमोहक।

वाणी में अमृत रस बोधक।।


नयनों में प्रेमाश्रु समाया।

बात-बात में रस बरसाया।।


अधरों पर है प्रेम कहानी।

सहज भावना की रसखानी।।


मन में उत्तम भाव उमंगा।

वचन-लहर में दिखतीं गंगा।।


अति श्रद्धेय सदा कल्याणी।

दिव्य ज्ञानमय अमृत वाणी।।


सबके उर में बैठे गाते।

मानवता का पाठ पढ़ाते।।


बने हिलोरे मार रहे हो।

प्रेम गीत को सुना रहे हो।।


अति महनीय महंत महाशय।

अति सुंदर वाक्यों के आशय।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



*कैसे मैं...*

*(सजल)*


कैसे मैं खुद को समझाऊँ?

विरह गीत कैसे मैं गाऊँ??


टीस बहुत है मेरे मन में।

कैसे मैं जग को अपनाऊँ??


कदम-कदम पर मिले थपेड़े।

कैसे मैं खुद को बहलाऊँ??


धोखा खाता चला आ रहा।

क्या इसका डंका पिटवाऊँ??


खत्म हो गई सारी क्षमता।

कैसे मन को आज मनाऊँ??


नफरत ने कुचला है मुझको।

कैसे पावन प्रीति निभाऊं??


दल-दल में फँस गये पाँव हैं।

बतला कैसे पैर चलाऊँ??


तोड़ चुके विश्वास बहुत से।

फिर कैसे विश्वास जमाऊँ??


ईर्ष्या -द्वेष भरा है सब में।

कैसे जीवन पर्व मनाऊँ??


अब तो बस है यही सोचना।

स्वयं स्वयं को शीश नवाऊँ।।


नहीं सोचना कभी अन्यथा।

केवल अपने में खो जाऊँ।।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

 *बैठो प्रेम मंच पर*    *(चौपाई ग़ज़ल)*


बैठो प्रेम मंच पर आ कर।

सबसे मिलना शीश झुकाकर।।


सबसे कहना बात एक ही।

बनें सभी नित रसिक सुधाकर।।


सबके उर में मंत्र फूँकना।

हों प्रसन्न सब प्रेम बहा कर ।।


मृतक जगत को जिंदा दिल दो।

सबको खुश रख उन्हें जिलाकर ।।


नाखुश करना नहीं किसी को।

खुद खुश होना दिल बहलाकर।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 प्यार के गीत गाके देख लिया।

दिल भी उनपे लुटाके देख लिया।

*****

जिन्दगी भर बुरा कहा जिनको।

उनको अपना बनाके देख लिया।

*****

मानता वो नहीं      मनाने से।

खूब हमने मनाके देख लिया।

*****

दिल्लगी कब तलक सही जाती।

दिल को उनका बनाके देख लिया।

*****

फर्क उनपे पड़ा नहीं कुछ भी।

हमने जी को जलाके देख लिया।

*****

सुनीता असीम

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *कुशल शिक्षक*

**************

शिक्षक के लिये सब बच्चे पौध समान,

 रखना है सब बच्चों का ध्यान,

ऐसा करे शिक्षक  अपना आचरण,

बच्चा करे शिक्षक का अनुशरण।


बच्चों का दिल अति कोमल होता है,

जैसा चाहो उन्हे  बना  लो,

बच्चों का दिल कभी भी न टूटे ,

 रखना है शिक्षक को इसका ध्यान।


अपनी गरिमा शिक्षक बनाये ,

फिर बच्चों को कक्षा  शिक्षण कराये,

प्यार- प्रेम और गतिविधि से पढ़ाये,

तभी वह उत्कृष्ट शिक्षक कहलाये।


निर्मल हृदय होता है बच्चों का,

उन्हें योग्य और परिश्रमी बनाओ,

अवगुणों उन में न रहे कोई

शिक्षक उच्च आचरण हमेशा बनाये।


किसमें कैसी कितनी प्रतिभा है,

करनी है शिक्षक को इसकी पहिचान,

सुचिता  का शिक्षक  दीप  जलाए,

तब बच्चों को शिक्षण कराये।


बदल रहा परिवेश देश का,

बदलनी होगी अब अपनी सोच,

है उच्च चरित्र यदि   आपका,

 शिष्य  भी निर्मल बन जाता है।


प्रारंभिक कक्षाओं का शिक्षण,

स्थानीय भाषा में ही कराये,

जो शिक्षक बच्चों का मनोबल बढ़ायें,

वही  योग्य कुशल शिक्षक कहलाये।

******************

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मधु शंखधर स्वतंत्र

 गीत...

*विषय.. ह्रदय*

हृदय से प्रेम होता दृढ़, ह्रदय से ही घृणा पलती।

ह्रदय का भाव सर्वोत्तम, ह्रदय में भावना ढ़लती।


अटल विश्वास भी आकर, कहीं पर डगमगा जाए।

किसी का प्रेम यादों में, नैन में अश्रु भर जाए।

ह्रदय में वेदना ऐसी, गंग की धार ज्यूँ छलती।

ह्रदय का भाव सर्वोत्तम........।।


ह्रदय से जो बने रिश्ता, साथ पल पल निभाता हैं।

कभी जब साथ छूटा तो, ह्रदय भी टूट जाता है।

ह्रदय की बात है अनुपम , पवन के वेग सी चलती।

ह्रदय का भाव सर्वोत्तम......।।


ह्रदय की टूटती ध्वनि से, धारणा झूठ धाती है।

रूकी साँसे मनुज की तो,जिन्दगी रूठ जाती है।

ह्रदय करता है स्पंदन,मृत्यु मधु जीव की टलती।

ह्रदय का भाव सर्वोत्तम.......।।

मधु शंखधर स्वतंत्र

प्रयागराज ✒️

डॉ0 निर्मला शर्मा

 प्रेम का पथ


प्रेम गली अति साँकरी, बड़ा विकट है पंथ

पग-पग पर काँटे मिले, कहते सभी ये संत

राम नेह में भीग कर, कबिरा दुलहिन होय

घट-घट दीखै राम ही, दीखत ही सुधि खोय

मीरा प्रेम की बावरी, साँवरे के रंग राचि

जीवन धन अर्पित किया, मोहन प्रीत ही सांचि

मोह,माया सब त्यागकर, चले प्रेम पथ ओर

परमानन्द मिले तभी, करे प्रेम दम्भ छोड़

श्याम प्रीत उर में बसी, वासुदेव सूत जोय

गोपिन की अँखियों बसे, सूझे न दूजा कोय

परम् ब्रह्म भी प्रेमवश, भूले हैं निज रूप

छछिया भर छाछ के लोभ में, नाचे वो चितचोर

श्याम दिवानी राधिका, भोगै प्रेम की पीर

राधा श्याम का नाम ही, ज्यों गंगा को नीर

प्रेम समर्पण भाव है, प्रेम है जीवन राग

प्रेम बिना सब सून है, प्रेम भरे रस भाव।


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

डॉ० रामबली मिश्र

 *सुंदर अदा में (गजल)*


सुंदर अदा में मचलते मचलते।

 मचलते ही रहना सदा चलते चलते।।


कभी सीधे हो कर कभी झुक कर चलना।

कभी टेढ़ हो कर मचलते मचलते।।


हाथों में ले कर तिरंगा मचलना।

दिशाओं में नाचो थिरकते थिरकते।।


खुद को भुलाकर कलाएँ दिखाना।

बातें सब करना बहकते बहकते।।


अदाओं से मोहित करो दर्शकों को।

अचरज दिखाना महकते महकते।।


मधुर भाव विह्वल बने दिखते रहना।

रहना हृदय को बदलते बदलते।।


सदा प्यार के बोल से मुग्ध करना।

चलते ही जाना चहकते चहकते।।


यात्रा गगन की करो बन परिंदा।

गगन को उतारो उतरते उतरते।।


मचलते ही जाना महकते ही आना।

गमकते ही रहना प्रिया कहते कहते।।


विखेरो अदायें करो मस्त सबको।

चले जाना जग से सदा हँसते हँसते।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ०रामबली मिश्र

 *मीत चाहिये (ग़ज़ल)*


इक सुंदर सा मीत चाहिये ।

मुझको मादक प्रीति चाहिये।।


 मन करता संसार बसाना।

केवल तेरा प्यार चाहिये।।


मेरे पास सदा रहना है।

तुझ सा प्यारा यार चाहिये।।


मेरे सपनों की दुनिया में।

तेरा उर-रसधार चाहिये।।


अंकों की ही गणित चलेगी।

तीन मातृका प्यार चाहिये।।


तीन मातृका नयन सजाये।

नजरों पर एतबार चाहिये।।


दो मात्रा के मन का मिलना।

मन से मन का तार चाहिये।।


प्रेम अश्रु को अंजुलि में भर।

भावों का भण्डार चाहिये।।


अंतस्थल के तल पर लेटे।

दंभमुक्त सत्कार चाहिये।।


लगी प्यास को बुझ जाने दो।

प्रीति-नीर बौछार चाहिये।।


अधर चूमकर रस पीने का।

सुंदरतम आचार चाहिये।।


सभी तरह से एकीकृत हो।

मृदुल गुह्य मधु द्वार चाहिये।।


समरस मधुर प्रीति रस बरसे।

मोहक प्रेमोच्चार चाहिये।।


नहीं रहेंगे अंतेवासी।

सिद्ध प्रेम साकार चाहिये।।


गायेंगे नित प्रेम गीत मिल।

दिल का अविष्कार चाहिये।।


विछुड़ेंगे हम नहीं कभी भी।

प्रेमसूत्र का धार चाहिये।।


दीवाना बनकर जीना है।

प्रिय से आँखें चार चाहिये।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 मुहब्बत हो गई हो तो उसे पाना जरूरी है।

जहां के सामने भी पेश करवाना जरूरी है।

******

किसी से भूल हो जाय तो माफ़ी मांग ले फौरन।

छिपाने की नहीं है बात बतलाना जरूरी है।

******

चलेगा काल का चक्कर पता तुमको नहीं होगा।

तो पहले कर्म अपने साफ करवाना जरूरी है। 

******

किसी मन्दिर से कम होता नहीं घर और आंगन भी।

तो इसमें प्रेम के पत्थर भी लगवाना जरूरी है।

******

अगर ठोकर लगे उनको तो बच्चों को नहीं डांटो।

उन्हें बस प्यार देकर खूब सहलाना जरूरी है।

******

नहीं भाए सुनीता को नज़ारा दूर से करना।

कि बांके को बुलाकर पास बैठाना जरुरी है।

******

सुनीता असीम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

भोली सूरत पे मत जाना,

इसका कोई नहीं ठिकाना।

मालिक,इससे सदा बचाना।।

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कलियों में आते तरुणाई,

भौरों ने गुंजन-धुन गाई।

मधु-रस चख कर लें अँगड़ाई।।

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दुर्जन की संगति मत करना,

तुमको कष्ट भले हो सहना।

सुनो,नीति का है यह कहना।।

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संत-समागम सुख अति देता,

मूल्य नहीं बदले में लेता।

संत-समागम सुबुधि-प्रणेता।।

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सुंदर सोच,कर्म नित शुभकर,

ऐसी प्रकृति सदा हो हितकर।

टिका विश्व शुचि चिंतन बल पर।।

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राजनीति का खेल निराला,

आज शत्रु कल मीत हो आला।

पड़े न गठबंधन से पाला ।।

        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

            9919446372

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *संस्कारी बन जाओ*

★★★★★★★★★

गुरुजन, मात -पिता जन

बच्चों को देते है संस्कार,

 जो बच्चा कहा हुआ माने 

वे ही बच्चे बनते है महान।


सच्चे मार्ग पर चले जो बच्चे

वे अपना परचम फहराते है,

परिश्रम जो नित करते है

वही बच्चे मंजिल पा जाते। 


शिक्षा सबसे बड़ा धन है बच्चों

मन लगाकर पढ़ाई रोज करो,

शिक्षा धन से ही जीवन में

  आ जाती है सुख समृद्धि।


मेहनत से ही जीवन में

उच्च पद पा सकते हो,

केवल सपनों में रहना मत

 नहीं तो मुंगेरी लाल बन जाओगे।


सम्यक ज्ञान ग्रहण कर बच्चे

मातृभूमि की रक्षा करते,

दीन -हीन,निर्बलों विकलों की

यही बच्चे पीड़ा हर लेते है।


 अपना कर्तव्य निभाओ बच्चों

पढ़ लिख कर खूब नाम कमाओ,

फल तुमको मिल जायेगा

कर्मो पर विश्वास जताओ।


जो भी बच्चा कर्तव्य निभाता

विश्व भर में वह नाम कमाता ,

नमन जमाना तुम्हें करेगा

तुम संस्कारी बच्चे बन जाओ।

★★★★ ★★★★★

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

निशा अतुल्य

 मानवता

दोहा छंद

8.12.2020


मानवता अब खो रही,बदल रहा इंसान,

दो धारी भाषा अब,बोल रहा शैतान।


नैनो में ना शरम है,ना मन में उपकार

चौराहे पर रो रहे,सब ही परोपकार।


हो रहे नीलाम आज, नारी के अहसास

निःशब्द सब लोग हुए,मन में ना है आस।


नारी तो बे-मोल है,लुटती रहती लाज 

कान्हा लो अवतार अब,सृष्टि पर ही आज।


आ जाओ संसार में, ले कर के अवतार

बुद्धि दो प्रभु आप ही,तारो पालन हार।


स्वरचित 

निशा अतुल्य

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 गीत(16/14)

जितने दूर हुए तुम तन से,

उतने मन के पास हुए।

प्रेमी के भूगोल न होते,

प्रेमी तो इतिहास हुए।।


जब मन कहता तुमको पाता,

तुम मेरे हृद-वासी हो।

अंतर्मन की शोभा तुम हो,

तुम प्रेमी अविनासी हो।

तुमको अंतर्मन में पाकर-

कभी न भाव उदास हुए।।

 प्रेमी तो इतिहास हुए।।


मेरा प्रेम निराला-अद्भुत,

कभी नहीं जग को दिखता।

प्रेम सदा अध्यात्म रूप है,

कभी न सोने से तुलता।

तुम दैवी अदृश्य भाव हो-

तुम तो बस एहसास हुए।।

   प्रेमी तो इतिहास हुए।।


सागर की लहरों में तुम हो,

तुम रवि-शशि की किरणों में।

सकल ज्ञान की ज्योति तुम्हीं हो,

भाषा-अक्षर-वर्णों में।

दूर दृष्टि से होकर फिर भी-

सदा मुझे आभास हुए।।

     प्रेमी तो इतिहास हुए।।


गंध पुष्प की जब भी पाऊँ,

तुम्हीं महकते मुझे मिले।

भौरों की गुंजन में तुम ही,

मुझको विधवत मिले ढले।

कैसे तुम्हें बताऊँ प्रियवर-

तुम मेरे विश्वास हुए।।

    प्रेमी तो इतिहास हुए।।

         ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

             9919446372

निशा अतुल्य

नहीं मिला


देने वाला देगा इतना

जितना तुझको चाहिए 

सुख हो या हो दुख सुनले

बंदे तेरे ही है ये साथी ।


नही मिला वो जीवन में 

जिसकी जरूरत हमें नही 

देने वाला देता इतना 

भर ले तू अपनी झोली ।


मांगे से तो भीख मिले ना

बिन मांगे मोती चुन ले 

ये तो तेरा भाग्य है बंदे

इसको तू मन में गुन ले ।


सागर भरा हुआ मोती से

सबको कहाँ मिल पाता है

सौ सौ डुबकी कोई लगाए

तब जीवन रस पाता है ।


सब कुछ मिलता इस जीवन में

जो चाह न मन में रखता है

बह चलो बस उस धारा में 

जिसमें जीवन बहता है ।


स्वरचित

निशा अतुल्य

डॉ० रामबली मिश्र

 जलनेवाले (चौपाई)


जलनेवाले को जलने दो।

मुझको सुंदर ही रहने दो।।


जो जलता, वह देत प्रकाशा।

पहुँचा देता है आकाशा।।


जलकर होता खाक स्वयं ही।

मरता है दिन-रात स्वयं ही।।


बिना मौत के मौत बुलाता।

है यमराज पास में आता।।


बात-बात में जलता रहता।

टेढ़ी बोली बोला करता।।


कुंठाग्रस्त सदा दिखता है।

गंदा खेल किया करता है।।


क्षति पहुँचाने की फिराक में।

मन रहता नापाक काम में।।


घटिया बात सदा करता है।

तुच्छ नीच हरकत करता है।।


लुच्चा मन कसरत करता है।

प्रगति देख नफरत करता है।।


झूठ बोलता चोरी करता।

खुद को अच्छा मानुष कहता।।


देख परायी खुशी ऐंठता।

ज्वलनशील उर- गेह बैठता।।


प्रति पल प्रति क्षण जलता चलता।

काला चेहरा लिये टहलता।।


भाग्यहीन यह दुःख दानव है।

स्तरहीन निकृष्ट मानव है।।


अपमानित जीवन जीता है।

तिरस्कार का मय पीता है।।


सबसे उत्तम है वह भाई।

करत-रहत जो जगत भलाई।।


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

रवि रश्मि अनुभूति

दर्शन दो घन श्याम मुझे तुम , सुधा रस अब तो पिला दो ।

हृदय में बस कर आज प्रभु तुम , दिल का फूल खिला दो ।।


डगमग मेरी नैया डोले , दे दो अभी तो सहारा ।

हाथ पकड़ कर पार लगाओ , मिल जाये मुझे किनारा ।।


सँवरे अब तो जीवन मेरा , दाँव लगाया है मैंने ।

मानुष जीवन पाया है जो , व्यर्थ गँवाया है मैंने ।। 


अब शरण तुम्हारी आकर ही , दर्शन की है प्यास लगी ।

तुम बिन जीवन सूना है जो , बस चरणों की आस जगी ।।


कर दो प्रकाश ज्ञान का अब , मेरा तुम तो हाथ गहो ।

आशीष मुझे दो हे प्रभु तुम , दोगे अब तो साथ कहो ।। 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

डॉ० रामबली मिश्र

 *प्यार में...*


प्यार में मैं बह गया।

आप का ही हो गया।।


अब निकलना कठिन है।

आप में ही खो गया।।


अब बताओ क्या करें?

आप का दिल हो गया।।


अब बचा क्या पास में ?

आप का सब हो गया।।


यह फकीरी राह है।

 काम पूरा हो गया।।


काम में अनुराग है।

प्रेम मन से हो गया।।


अब भटकना है नहीं।

दीप प्रज्ज्वल हो गया।।


मस्त हो कर मचलना। नाम अच्छा हो गया।।


बह गया मधु सिंधु में।

मधुर रस सा हो गया।।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

कालिका प्रसाद सेमवाल

 वन्दना

******

हे मां शारदे

तेरे द्वार पर आया हूँ मां

तेरे चरणों में आज पड़ा हूँ

ज्ञान का उपहार दे मां।


हे ज्ञानदायिनी ज्ञान से वर दे

करुणामयी मां अज्ञान को हर दे

ज्योति ज्ञान की जला कर मां

जीवन में मां उत्साह भर दे।


हृदय वीणा को हमारी

नित नवल झंकार दे मां

साधना आराधना का मां

तू हमें ये अधिकार दे दो।


शरण में मां तुम्हारी मैं आया

दीजिए हे मां बुद्धि -विवेक

नित्य ही तेरा ध्यान करो मां

बस तेरा ही गुणगान करो मां।

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कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

नूतन लाल साहू

 त्याग


प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं

मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती

एक सांस भी तब आती हैं

जब एक सांस छोड़ी जाती है

छत,दौलत,हीरे,रतन,गिनते रहते हैं

लेकिन बाकी सांस का,रख न सका हिसाब

अगर सांस रुक जायेगी

तो वापिस नहीं आयेगी

आम आदमी यूं लगा है,जैसे पिचका आम

पढ़ना पड़ता है सत्य का,नियमित अध्याय

अपनी मर्जी का नहीं,अब कोई काम

प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

प्राणी इस संसार में,चाहे जितना भी कर ले प्रयत्न

समय नहीं अनुकूल तो,कोई काम न होय

पूर्ण सफलता के लिए,दो चीजें रख याद

रब पर पूरी आस्था और आत्म विश्वास

कब क्या कर दे यह समय,कौन सका है जान

मिट्टी में मिल जायेगा,सत्ता का अभिमान

हरि इच्छा में छिपा है, मानव का कल्याण

कब समझेगा राज यह,कलियुग का इंसान

प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा

विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी

साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा

किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं

मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती

एक सांस भी तब आती है

जब एक सांस छोड़ी जाती हैं

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7

बानर-रीछ-सेन सँग रामा।

रहहिं सुबेलहिं रुचिकर धामा।।

    लखन बिछाइ मृदुल मृगछाला।

    आसन देवहिं राम-कृपाला।।

निज सिर रखि सुग्रीव-गोद महँ।

राम सुधारहिं धनु-सर वहिं पहँ।।

    कहहिं बिभीषन अस लखि तहवाँ।

     बड़ भागी अंगद -हनु इहवाँ ।।

चापहिं प्रभु-पद-पंकज प्रेमा।

बान सरासन लखन सनेमा।।

     जे नित दरस करै अस रूपा।

     प्रभु-प्रसाद उ पाव अनूपा।।

लखि पूरब दिसि तब प्रभु कहऊ।

उदित चंद्र केहरि सम लगऊ। 

     चंद्र गगन तम निसा बिदारै।

     जस बन सिंह मत्त गज मारै।।

निसा-सुनारि-मुकुतहल तारे।

निसि-बाला जनु रहे सवाँरे।।

     सबहिं बताउ मोंहि अब ऐसे।

      चंद्र मध्य स्याम रँग कैसे।।

तब सुग्रीव राम तें कहई।

छाया भूमि मध्य ससि रहई।।

   स्याम चंद्र राहू कर दीन्ही।

    काटि ताहि बिधि रति-मुख किन्ही।।

बहु-बहु मुख अरु बहु-बहु बाता।

कछुक नहीं प्रभु कर मन भाता।।

    कह प्रभु गरल चंद्र बहु भावै।

    यहिं तें बिष उर चंद्र लगावै।।

निज बिष-किरन पसारि क चंदा।

बिरही बदन जरावै बंदा ।।

     कह हनुमत प्रभु ससि उर तुमहीं।

      कीन्ह स्यामता बसि के उरहीं।।

दोहा-सुनि हनुमंतहिं बचन अस,बिहँसे प्रभु श्रीराम।

         लखि के दिसि दक्खिन तुरत,बोले प्रभु अभिराम।।

                              डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

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