आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

 🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹


अंकुरित अन्न आमला अमरुद अंगूर अन्य खट्टे फल ,

शलजम सेव चुकंदर चौलाई केला बेर बिल्ब कटहल ,

टमाटर मूली पत्ते पालक पुदीना ताजी सब्जियां ताजे फल ,

बंदगोभी मुनक्का दूध दही दालें आजाद खाना देखकर ध्यान ।

नारंगी नींबू रोज रसदार फल लेना उचित प्रमाण,

इन सब में मिले विटामिन सी तुम लो  इनको पहचान ।

मोतियाबिंद मसूड़े से खून व मवाद मुंह के बदबू से हो त्राण,

श्वेतप्रदर संधि शोथ स्कर्वी सांसों की कठिनाई से पाए आराम ।

एलर्जी सर्दी जुकाम आंख कान नाक के रोगों से मिल जाए आराम ,

अल्सर का फोड़ा चेहरे के धब्बे फेफड़े में मजबूती करें प्रदान ।


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 वहम(ग़ज़ल)

यदि मन में पलता ज़रा भी वहम है,

 दुनिया लगे के यहाँ ग़म ही ग़म है।।


बहुत ही भयानक वहम भाव भरता,

लगे भूतखाना निजी जो हरम है।।


लाता विचारों में बदलाव झटपट,

वही शत्रु लगता जो अपना सनम है।।


सुकूँ-चैन सारे वहम छीन लेता,

 छुपा साथ रहता सदा ही भरम है।।


कभी भी न निर्णय ये लेने देता,

बड़ा बेरहम ये न करता रहम है।।


ख़ुदा न करे के कभी ऐसा होए,

यदि हो गया समझो फूटा करम है।।


न चैन दिन में न रातों में नींदिया,

काँटे चुभोता जो बिस्तर नरम है।।

        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

            9919446373

डॉ० रामबली मिश्र

 *आइये....(ग़ज़ल)*


आइये दिखाइये अब गगन प्यार का।

चाहता हूँ देखना मैं मगन यार का।।


आइये सुनाइये अब प्यार के भजन।

पूछिये कुछ हाल-चाल मजेदार का।।


होइयेगा गुम नहीं कभी भी भूलकर।

आइये आलोक बनकर इंतजार का।।


कीजिये वफा सदा कसम है प्यार का।

कीजिये सम्मान सदा वफादार का।।


प्यार को ईश्वर समझकर पूजिये सदा।

ईश की कसम में छिपा कसम प्यार का।।


प्यार के एहसान को न भूलना कभी।

मस्त-मस्त चीज है हृदय है प्यार का।।


प्यार को टुकड़ों में कभी देखना नहीं।

समग्रता की नींव पर है जिस्म प्यार का।।


प्यार में ही जाइये बहते हुये सदा।

आइये मनाइये नित पर्व प्यार का।


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।अनमोल है रिश्तों की सौगात,*

*इन्हें रखो संभाल कर।।*


अहम और   वहम मानो    तो

रिश्तों की  आरी  है।

जिद्द  और    मुकाबला  रिश्ते

हारने की   तैयारी है।।

अपनेपन ओअहसास में बसा

जीवन   रिश्तों  का।

झूठे रिश्ते     स्वार्थ  में   मुफ्त

की      सवारी     है।।


दिल समुन्दर   रखो   कि  नदी

खुद मिलने   आयेगी।

एक  दूजे के    सम्मान से   ही

दोस्ती खिलने पायेगी।।

मत तुलना करते  रहें दुःख का

कारण     बनती    है।

मन में ईर्ष्या  तो  जरूर दोस्ती

टूटने      को जायेगी।।


रिश्ते जिये जाते हैं और  रिश्ते

निभाये    जाते     हैं।

खुद हार कर भी  कभी  रिश्ते

जिताये    जाते    हैं।।

जहर यूँ नहीं  घुलता एक बार

में   जाकर    कहीं।

नासमझी में  तिल  तिल रिश्ते

तुड़वाये  जाते  हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।           9897071046

                     8218685464

नूतन लाल साहू

 श्रृद्धा


जब नाव भी तेरी,दरिया भी तेरा

लहरें भी तेरी और हम भी तेरे

तो डूबने का क्या,खौफ करे प्रभु जी

प्रभु जी तेरा लाल हूं मै

तू भूल न जाना

जैसा भी हूं,तेरा अंश हूं

मुझे कभी न भुलाना

भूल गया था तुझको

जग की माया मोह में

आज फिर से मैंने पुकारा है

प्रभु जी दे दे सहारा

मेरा और न कोई ठिकाना

जब नाव भी तेरी, दरिया भी तेरा

लहरें भी तेरी और हम भी तेरे

तो डूबने का क्या, खौफ करे प्रभु जी

उलझी हुई है मेरी जिंदगी

प्रभु जी फिर से सजाना

तेरी महिमा है बड़ी भारी

आकर मुझे राह दिखाना

क्या भूल हुई मुझसे

जो भूल गया था,तेरा दिखाया डगर

मझधार में है,मेरी नैय्या

सुझे नहीं किनारा

हो जाऊ तुझमे,ऐसी मगन

ना डोलाए,तेरी माया

जन्मो का है,भक्त भगवान का नाता

सुन लो न अर्जी हमारा

टूटे न अपना रिश्ता

ये भक्त है तुम्हारा

जब नाव भी तेरी, दरिया भी तेरा

लहरें भी तेरी और हम भी तेरे

तो डूबने का क्या, खौफ करे प्रभु जी

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-14

अंगद-क्रोधइ भवा अपारा।

सुनि रावन बरनत गुन सारा।

     कह अंगद सुनु सठ-अभिमानी।

      अचरज बड़ तुम्ह राम न जानी।।

जाकर परसु सहसभुज मारा।

नृपहिं असंख्य-अनेक पछारा।।

      तासु दर्प रामहिं लखि भागा।

      राम न नर सुनु अधम-अभागा।।

राम न मनुज जिमि गंग न सरिता।

दान न अन्न,न रस अमरीता ।।

    पसु नहिं कामधेनु जग जानै।

     कल्प बृच्छ नहिं तरु कोउ मानै।।

कामदेव नहिं होंय धनुर्धर।

राम ब्यापहीं सकल चराचर।।

     गरुड़ नहीं साधारन चिरई।

     चिंतामनि नहिं पाथर भवई।।

धाम बिकुंठ मान जे लोका।

ऊ मूरख माटी कै ढोंका।।

    भगति अखंड राम जग माहीं।

    लाभ न मानहु रे सठ ताहीं।।

सुनु रावन, नहिं सेष बियाला।

प्रभु हमार बिराट-विकराला।।

     पुरुष नहीं प्रभु राम दयालू।

     महिमा-मंडित राम कृपालू।।

कपि न होंहिं हनुमत दसकंधर।

लंक जराइ गए सुत-बध कर।।

     मान मरदि तव बाग उजारा।

     करि न सकउ कछु,रहि बेचारा।।

तजि सभ बयरु औरु चतुराई।

भजहु तुरंत राम-रघुराई ।।

    जदि बिरोध कीन्ह रघुराई।

    संकर-ब्रह्म न सकें बचाई।।

रघुबर जदि सकोप सर मारहिं।

एक बान दस सीसहिं ढाहहिं।।

    कंदुक इव लुढ़कहिं तव आनन।

     कपि सभ खेलहिं आनन-फानन।।

अस सुनि रावन जर तन-बदना।

जरत अनल जनु बहु घृत पड़ना।।

दोहा-जानत नहिं तुम्ह मोर बल,अब मत करउ बिबाद।

        कुंभकरन मम भ्रात-सुत,इंद्रजीत-घननाद ।।

                  डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

राजेंद्र रायपुरी

 😊😊 जग जाहिर बात 😊😊


जग जाहिर ये हो गया, 

                     हैं वे नहीं किसान।

जो बैठे हैं सड़क पर, 

                   अपनी भृकुटी तान।

अपनी भृकुटी तान,

                     सुनो बैठे वो नेता।

जिनकी गली न दाल,

              और छिन गया लॅ॑गोटा।

सच कहता कविराय, 

               सड़क पर सारे ही ठग।

छुपी कहाॅ॑ है बात, 

                गई हो ये जाहिर जग।


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।

कालिका प्रसाद सेमवाल

 ~~~सरस्वती वंदना~~~

~~~~~~~~~~~~~

*माँ मुझे ऐसा वर दे  दो*

★★★★★★★★★★

वर दे वरदायिनी वर दे,

मैं काव्य का पथिक बन जाऊँ,

थोड़ी सी कविता माँ मैं लिख पाऊँ,

भावों की लड़ियों को गूँथू,

इस कविता रुपी माला से,

मैं भी अभिसिंचित हो जाऊँ।


सबके हित की बात लिखू मैं,

बाहर -भीतर एक दिखूँ मैं,

हृदय में आकर बस जाओ,

नेह राह  पर  चलू  मैं   नित,

मात अकिंचन का नमन स्वीकार करो,

जीवन में भर दो अतुलित प्यार।


मुक्त भावों के गगन में उड़ सकूं,

निर्मल मन से हर किसी से जुड़ सकूं,

मुक्त कर दो मेरे हृदय के दोषों को,

दम्भ, छल, मद,  मोह -माया दोषो से,

व्योम सा निश्चल हृदय विस्तार दो,

माँ  मुझे   ऐसा वर  दे  दो।

★★★★★★★★★★

कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

काव्य रँगोली आज के सम्मानित रचनाकार प्रीति शर्मा" असीम" कवयित्री


 परिचय -

नाम    - प्रीति शर्मा" असीम" (कवयित्री/ लेखिका

नाम -प्रीति शर्मा "असीम"

पिता का नाम -श्री प्रेम कुमार शर्मा

माता का नाम-श्रीमती शुभ शर्मा

पति का नाम-श्रीमान असीम शर्मा


जन्मतिथि -30 -9-1976.


स्थायी पता-वार्ड न०8,निकट गुरुद्वारा, नालागढ़,जिला-सोलन(हिमाचल प्रदेश)पिन-174101

पत्राचार पता-उपरोक्त


शिक्षा- एम.ए.( हिंदी ,अर्थशास्त्र ) B.Ed


रुचि-पढ़ना,लिखना,खाना बनाना, रचनात्मक कार्य आदि।


भाषा ज्ञान - हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी।


पदनाम- गृहिणी

संगठन- नालागढ़ कला साहित्य मंच

प्रकाशित रचनाएं-


*एकल काव्य संग्रह -  1. जिंदगी के रंग

2. प्रेरणा


*संयुक्त काव्य संग्रह -

1.आखर कुंज  ,

2.समंदर के मोती,

3.love Incredible, 

4.सहित्य धारा, 

5.रत्नावली

6. दिल चाहता है

7. मजदूर

8. पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ

9. पिता

10. बेटियां

11. सृजन संसार

12. नदी

13. अब आ जाओ

14. देश की 11कावित्रिया 

15. मां मां मेरी मां


* देश- विदेश की पत्र -पत्रिकाओं मैं कविता आलेख का प्रकाशन


#सम्मान

*Certificate of Appreciation

National level online Poetry Competition


*अटल काव्य सम्मान

*मेरी कलम हिन्दी बोल रचनाकार सम्मान

* साहित्य गौरव सम्मान

* साहित्यनामाEminence सम्मान "उम्मीद'

* स्टोरी मिरर- Trophy winner

1Nonstop November

2My life My Words

*Certificate of Appreciation (Story Mirror)

#Non stop November

#My life my words

#Mera Bharat

#Yes, I write season-2

#StoryMirror School writing competition 2019.Winner


* प्रखर गूँज रत्नावली सम्मान

* नवीन कदम उत्कृष्ट सृजन सम्मान2019

* साहित्य श्री सम्मान

* प्रखर साहित्य सम्मान

* वीणा पाणी साहित्य सम्मान

* कीर्तिमान साहित्य सम्मान *सरस्वती पुत्री सम्मान 

*साहित्य शिल्पी सम्मान 

*अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान 

*कीर्तिमान क्षेत्र सम्मान

* साहित्य वसुदा गौरव सम्मान *साहित्य गौरव मासिक उन्नाव दिसंबर 2019

 *साहित्यनामा सृजन सम्मान

 *अटल काव्यांजलि श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

*Certificate of Achievement (second position in poetry competition)


*Certificate of Emergence April 2020


*सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान

* सूर्योदय साहित्य सृजन सम्मान

* इंकलाब सृष्टि रक्षक सम्मान

*नवीन कदम उत्कृष्ट सृजन सम्मान2020

* देवभूमि हिम साहित्य मंच श्रेष्ठ रचना का सम्मान 

*शब्द साधक साहित्य सम्मान *हिन्दी साहित्य ज्योतिपुंज सम्मान 

*वर्तमान अंकुर श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान पत्र

*Certificate of Appreciation" Online Quiz on Hindi Language "

*काव्य कलश उत्कृष्ट रचना लेखन सम्मान

*Aagaman-Certificate of Excellence 

* मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान

* काव्यरंगोली ऑनलाइन सावन उत्सव श्रेष्ठ रचनाकर सम्मान

* श्री देशना लघु कथा एवं काव्य प्रतियोगिता 2020 प्रशस्ति पत्र

* माँ  सिया साहित्य अकादमी सम्मान पत्र

* देशभक्त सहित सम्मान 2020

* साहित्य सुषमा सम्मान पत्र

*Certificate of writing  star

* साहित्य वसुधा उत्कृष्ट रचना सम्मान

* डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन साहित्य सम्मान

* हिंदी भाषा विघ्नहर्ता  गणेशा जी स्पर्धा के द्वितीय विजेता सम्मान

* जश्न -ए -आजादी सम्मान पत्र 2020

* राष्ट्रीय साहित्य शिक्षाविद सम्मान 2020

* महादेवी वर्मा सम्मान 2020

*

Mobile 8894456044

E-mail aditichinu80@gmail.com


[13/09 7:01 pm] Preeti Kumar: मैं हिंद की बेटी हिंदी 




भारत के ,


उज्ज्वल माथे की।


मैं ओजस्वी ......बिंदी हूँ।



मैं हिंद की बेटी .....हिंदी हूँ।



संस्कृत, पाली,प्राकृत, अपभ्रंश की,


पीढ़ी -दर -पीढ़ी ....सहेली हूँ।



मैं जन-जन के ,मन को छूने की।


एक सुरीली .......सन्धि हूँ।



मैं मातृभाषा ........हिंदी हूँ।



मैं देवभाषा ,


संस्कृत का आवाहन।


राष्ट्रमान ........हिंदी हूँ।।


मैं हिंद की बेटी..... हिंदी हूँ।



पहचान हूँ हर,


हिन्दोस्तानी की.... मैं।


आन हूँ हर,


हिंदी साहित्य के


अगवानों की........मैं।।



मां ,


बोली का मान हूँ...मैं।


भारत की,


अनोखी शान हूँ......मैं।।



मुझको लेकर चलने वाले,


हिंदी लेखकों की जान हूँ ....मैं।



मैं हिंद की बेटी..... हिंदी हूँ।


मैं राष्ट्र भाषा .........हिंदी हूँ।



विश्व तिरंगा फैलाऊँगी।


मन -मन हिन्दी  ले जाऊँगी।।


मन को तंरगित कर।


मधुर भाषा से।


हिंदी को,


विश्व मानचित्र पर,


सजा कर आऊँगी।।


स्वरचित रचना


           प्रीति शर्मा "असीम" नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

[09/11 4:21 pm] Preeti Kumar: इंसान के शौंक 


 वाह रे !!!! इंसान....??? 

 बदलते परिवेश में, 

क्या-क्या शौक हो गए। 


 गरीब के हिस्से में  "गाय"

और अमीरों के "कुत्ते "

पालने के शौक हो गए। 


 वाह रे !!!! इंसान.....??? 

 बदलते परिवेश में, 

 क्या-क्या शौक हो गए। 


 आधुनिकता - दिखावे का, 

 ऐसा......... नशा चढ़ा। 


 गाय दूध दे कर भी, 

 बासी रोटी और कचरे के, 

 ढेर पर चर  रही। 


कुत्ते के लिए अच्छे-अच्छे बिस्किट और मांस-मछली की भेंटे चढ रही।


 वाह रे.!!!!..... इंसान ??? बदलते परिवेश में, 

 क्या-क्या शौक हो गए। 


 जरा सोचो.......

जिंदगी के सच, 

अंधविश्वास....... ¿¿¿


कहकर नहीं छूट जाएंगे। 

सच को ना मानने से, 

सच के मायने नहीं बदल जाएंगे। 


 गाय को "माता" का दर्जा

 जब तक ना दे पाओगे। 

 "कुत्ता "बेचारा तो.. नीरीह 

  वफादार जीव है। 

 तुम उससे नीचे स्थान पाओगे। 


 प्रीति शर्मा असीम  नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

उक्त रचना नितान्त मौलिक और अप्रकाशित है।

[02/12 12:51 pm] Preeti Kumar: विषय -एड्स जागरूकता


 #शीर्षक-एड्स से खुद को बचाएं



 जीवन को एड्स से बचाएं। 


 ना कि भ्रांतियां फैला कर,  


सामाजिक परिवेश को असंतुलित कर जाएं। 



 जीवन को एड्स से बचाएं। 


 केवल शारीरिक संबंध कहकर,  


 सत्य से मुंह ना छुपाए। 



 रक्त चढ़ाते समय, 


 एच.आई.वी. पॉजिटिव की जांच  भी करवाएं। 



 जीवन को एड्स से बचाएं। 


ना कि भ्रांतियां फैला कर,  


सामाजिक परिवेश को असंतुलित कर जाएं। 



 बीमारी से लड़ें, 


  ना कि बीमार को जताकर, 


 उसे मौत के आगे कर जाएं। 


 हर बार इंजेक्शन में, 


नई सुई का प्रयोग कर सुरक्षा अपनाएं। 



असुरक्षित यौन -संबंध से, 


अपना और समाज का जीवन बचाएं। 



 एड्स के डर को, 


जागरूकता से एड्स मुक्त बनाएं। 



 #स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना


 प्रीति शर्मा "असीम "

नालागढ़ हिमाचल -पंजाब

[06/12 3:38 pm] Preeti Kumar: किसान 



हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।



जब बंजर धरती पे,


अपनी मेहनत के हल से लकीरें खींच जाता है।



हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।



कभी स्थितियों से कभी परिस्थितियों से,


दो- दो हाथ कर जाता है।



वो पालता है,पेट सबके।


खुद आधा पेट भर के,


मुनाफाखोरी के आगे,


हाथ -पैर जोड़ता रह जाता है।



हाथ की लकीरों से लड़ जाता है।



जो जीवन को जीवन देता है। 


सबको अपनी मेहनत से ऊचाईयां देता है।



उसकी महानता को,अगर समझें होते।


कर्ज में डूबे किसान,फांसी पर यूं न चढ़ें होते।।



 आज अनशन लेकर,सड़कों पर क्यों खड़े होते।



दीजिए सम्मान,उसे......जिस का हकदार है।


वह धरा पर,जीवन धरा का प्राण है।



डॉक्टर, इंजीनियर .....बनने से पहले,


जीवन देने वाला है।



अमृत सदृश रोटी हर रोज देने वाला है।।



 स्वरचित रचना


@प्रीति शर्मा "असीम"


 नालागढ़ हिमाचल -पंजाब

[07/12 4:26 pm] Preeti Kumar: मानव अधिकार


 संविधान ने जब,

 मानव अधिकारों का गठन किया।

 लोकतंत्र की देकर ढाल जब, मानव अधिकारों का संगठन किया।


मानव अधिकार...लेकर " देश का मानव" इतना मग्न हुआ।

 अपने देश के प्रति भी....कर्तव्य है।

इस बात का कहां उसे स्मरण हुआ।


 संविधान ने जब,

मानव अधिकारों का गठन किया।


 आजादी थी....अभिव्यक्ति की,

 लोकतंत्र की....  यह ऐसी शक्ति थी।


 शक्ति का....वह दुरुपयोग हुआ। हर नीति का बस..... विरोध-दर - विरोध हुआ।


संविधान ने जब,

मानव अधिकारों का गठन किया। लोकतंत्र की देकर ढाल जब, मानव अधिकारों का संगठन किया।


 धर्मों की आजादी क्या... दी ।

 हर धर्म, दूसरे धर्म का कातिल हुआ।

 मानव अधिकारों की तकड़ी में हर शक्तिशाली का तोल हुआ।


 मानव धर्म का कहीं नहीं मोल  हुआ।


 संविधान ने जब मानव अधिकारों का गठन किया।

 लोकतंत्र की देकर ढाल जब मानव अधिकारों का संगठन किया।


 अधिकारों के लिए लड़ा समाज। अनशन -आंदोलन पर अड़ा समाज।


 हर मुद्दे पर पार्टी बाजी हुई।

 घटिया राजनीति की कामयाबी हुई।


 अंधी भेड़ों की अगवानी में,

 अधिकारों के लिए बस लड़ाई हुई।


 लेकिन मानव कर्तव्य अदा ना करता रहा।

 सविधान के अधिकारों पर लड़ता रहा।

 कर्तव्य विधान से हरता रहा।


 #प्रमाण- रचना नितांत मौलिक स्वरचित


 स्वरचित रचना

प्रीति शर्मा "असीम "

नालागढ़ हिमाचल- पंजाब

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 बाल-गीत

नाना मुझको पैसे दे दो,

जैसे-तैसे-वैसे दे दो।

मुझको टॉफ़ी खानी है-

देती मुझे न नानी है।।


चंदू चाचा पैसे लेते,

लेकर पैसे तब हैं देते।

नहीं वहाँ चलती मनमानी-

चलती वहाँ न खींचातानी।।


मेले में है जाना नाना,

खोलो अपना अभी खजाना।

पूड़ी-दही-जलेबी खाना-

नानी हेतु जलेबी लाना।।


मेले में हैं बहुत खिलौने,

मिलते नहीं हैं औने-पौने।

सबके पैसे भी देना है-

पैसे देकर ही लेना है।।


रामू-श्यामू,नंदू-मोहन,

संग रहेगा छोटू सोहन।

और रहेगी गुड़िया रानी-

खायेंगे हम पूड़ी-पानी।।


मेरे नाना अच्छे नाना,

कोई करना नहीं बहाना।

मेले में है मुझको जाना-

पैसे देकर खाओ खाना।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 लिख रहा हूँ....ग़ज़ल

पूछो न मुझसे मैं क्या लिख रहा हूँ,

तुम्हारे लिए मैं ग़ज़ल लिख रहा हूँ।।


बहुत ही दिनों से तू थी कल्पना में,

तुम्हारे लिए मैं सजल लिख रहा हूँ।।


तुम्हें अक्षरों से विभूषित करूँगा,

मैं दास्ताँ इक नवल लिख रहा हूँ।।


हमेंशा-हमेंशा चमकती रहोगी,

हर्फ़ इश्क़ का मैं धवल लिख रहा हूँ।।


बिठाउँगा तुमको मैं रानी बना के,

सुनो,दास्ताने-महल लिख रहा हूँ।।


पहेली बना प्रश्न जो था अभी तक,

कठिन प्रश्न का आज हल लिख रहा हूँ।

 

हम जब मिले थे कभी वर्षों पहले,

गिन के वही सारे पल लिख रहा हूँ।।

              °©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 *तेरी याद में.        (ग़ज़ल)*


तेरी याद में अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ।

मोहब्बत का मारा सजल लिख रहा हूँ।।


नफरत से टूटा हुआ यह हृदय है।

भजन करके तेरा भजल लिख रहा हूँ।।


हाथी की मस्ती से हो कर प्रभावित।

तेरी आरजू में हजल लिख रहा हूँ।।


नजरों में मेरे तुम्हीं इक गड़े हो।

बड़े प्रेम से इक नजल लिख रहा हूँ।।


बजाता हूँ बाजा मधुर स्वर-त्वरा में।

बहुत आशिकी में बजल लिख रहा हूँ।।


आँखों की काजल में खुशबू है तेरी।

तेरी देख आँखें कजल लिख रहा हूँ।।


मजा तेरा यौवन मजी है जवानी।

सुंदर वदन पर मजल लिख रहा हूँ।।


सुहाना सुजाना सजावट सुघर श्री।

चेहरे पर तेरे महल लिख रहा हूँ।।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

निशा अतुल्य

 कान्हा स्तुति

13.12.2020


कान्हा मुरली निराली है 

बजती मधुर मधुर 

मन को भा जाती है 

कभी बन राधा झूमें 

कभी मीरा बन जाती है ।


मोर मुकुट सिर पर है

गले वैजयंती माला है

छवि कुंडल की प्यारी 

करधनी कटि न्यारी है ।


कमल नयन प्रभु तुम

मन सबका मोह लिया

प्रेम पढा सबको 

गीता का ज्ञान दिया ।


जब धर्म युद्ध हो खड़ा

तब कोई नहीं किसी का

कर सत्य को तू धारण 

बस राह बना सबका ।


राधा ने नाम लिया

राधा कृष्ण बना 

मुरली पुकारे राधा

मीरा ने नाम जपा ।


प्रभु भव से हमें तारो

ये जीवन भार बना

जो जपते नाम तेरा 

उन्हें जीवन उल्लास मिला ।


स्वरचित

निशा अतुल्य

डॉ० रामबली मिश्र

 *हाय मनमीत... (ग़जल)*


हाय मेरे मीत तुम बेजोड़ हो।

रच रहे संसार को दिलजोड़ हो।।


है बहुत रचना निराली तुम रचयिता।।

तुम स्वयं अनमोल प्रिय बेजोड़ हो।।


रच रहे हो सृष्टि को अपना समझ।

रात-दिन की तुम सहज गठजोड़ हो।।


पावनी अमृत हवा की चाल सी।

गंदगी को मात दे मुँहतोड़ हो।।


तुम हमारे प्यार की दीवार सी।

हर तरह की बात पर समकोण हो।।


प्यार तेरा पा हुआ पागल बहुत।

प्रेम में नित नाचती हमजोड़ हो।।


रागिनी बनकर चहकती हॄदय में।

प्रेम में राधा सरीखा जोड़ हो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


*शुभनुमा   (ग़ज़ल)*


बहुत सुंदर भावों की विद्योतमा हो।

मेरी रात रानी लुभानी नुमा हो।।


तेरे प्यार का मैं दीवाना बना अब। 

वीरांगना रक्षिका मोहकमा हो।


तुझ में समा कर थिरकता मचलता।

दिन-रात तुम मेरी प्यारी गुमां हो। 


मोहब्बत क्या होती बताऊँगा तुझ को।

चलो उड़ गगन में तुम्हीं नीलिमा हो।।


तोड़ूंगा जग से पुराने सब रिश्ते।

नवेली नयी नित्य तुम प्रीतिमा हो।।


बड़े नाज से तुझको पाला है मन में।

तुम्हीं मेरे दिल में शिव गंगानुमा हो।।


परम शांत हो कर वदन चूम लूँगा।

पंखुड़ियां चुसाती तुम्हीं आसमां हो।।


भले झाड़ियाँ हों या हो बीहड़ जंगल।

चुंबन ले गाती सदा गीतिमा हो।।


करती हो बातें सदा अंक में भर।

दिल को लुभाती तुम्हीं शुभगमा हो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हृहरपुरी

9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

 *अनमोल रचना*

      *(दोहा)*


वह रचना अनमोल है, रचे जो सुंदर देश।

अच्छे उत्तम भाव से, दे शुभमय संदेश।।


मौलिक रचना अति सहज, रचे सुखद संसार।

दिव्य भाव अनमोल से, हो सबका सत्कार।।


कीर्तिमती रचना वही,जो दे सबको प्यार।

सबके प्रति सद्भाव का, करे नित्य विस्तार।।


वह रचना अनमोल है, जिसके मीठे बोल।

मधुर भाव से सींच कर, देती दिल को खोल।।


उत्तम रचना सर्व प्रिय, सबके प्रति उपकार।

हर लेती है दनुज के, गन्दे मनोविकार।।


रचना अतिशय दिव्य वह, जिसमें मानव मूल्य।

मानवता की सीख से, ओतप्रोत अति स्तुत्य।।

डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

अंजुमन आरज़ू

 वज़न   -   2122   2122   2122   2

                             ग़ज़ल


हुक्मरानों    से    हुई   तकरार   दफ़्तर  में । 

सिरफिरी  है  आजकल  सरकार दफ़्तर में ।


जब से आयी इक  हसीं  गुलनार दफ़्तर में ।

शाह   ज़ादे  हो    गये   बीमार   दफ़्तर  में ।


सल्तनत मेहरुननिशा की  ज़द में है जब से,

नाम का  ही  है  फ़कत  सरदार  दफ्तर में ।


कुछ  नये  पैदल  वज़ीरी  में  लगे  जब  से, 

बादशाहों   की  हुई  तय  हार  दफ़्तर  में ।


हाज़िरी है  लाज़मी  और  नाम का है काम,

हो  रहा  है   वक़्त  यूँ   बेकार  दफ़्तर  में ।


बतकही   में   हैं  बड़े  मशरूफ़  मुंशी  जी,

फ़ाइलों  का  लग  रहा  अंबार  दफ़्तर  में ।


रोज़   चक्कर  काटते   कितने   मुसद्दी  से,

घूमते  फिरते  मिलें   क़िरदार   दफ़्तर  में ।


मर गया भोला न उसको मिल  सकी पेंशन,

अर्ज़ियाँ  हैं  वज़्न  दिन  बेकार  दफ़्तर में ।


जाँच को आएँ जो अफ़सर तो  निकम्मों के,

काम  की फिर  देखिए  रफ़्तार  दफ़्तर में ।


चापलूसी  करके  शातिर  है  मज़े  में  और,

माहिरों  पर  है  तनी  तलवार   दफ़्तर  में ।


रब की रहमत से रही है  शान से अब तक,

'आरज़ू' की  ऊँची  ही  दस्तार  दफ़्तर  में ।


     -©️ अंजुमन 'आरज़ू'✍️


अदक़ लफ़्ज़ :-

ज़द           = काबू

मेहरुननिशा= नूरजहां का नाम

मुंशी          = लिपिक

भोला         = हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य का एक पात्र

दस्तार        = पगड़ी, प्रतिष्ठा

शिवम् कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

 जब ईश्वर नव निर्माण कर रहा था

किन्हीं के सपनों को साकार कर रहा था

वह नन्हा जीव था अचंभित

भविष्य को लेकर था चिंतित

पूछ ही डाला विचलित होकर

आगम से भयभीत होकर

"कुछ तो डाला होगा व्यवधान

क्षमा करो हे पिता महान

आपके शरण में था भगवान

फिर क्यों बना रहे मुझे इंसान"


ईश्वर मुस्कुराये

अबोध मन पर हर्षाये

फिर दिखाकर अपना हृदय विराट

बोले "मत हो अधीर, सुनो तात!

जब धरा पर तुम्हारा अवतरण होगा।

हर पथ पर मुझसे मिलन होगा

पर तुम मोह-माया में खो जाओगे

क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?"


सुनकर थोड़ा ठिठका वह मन

पूछ बैठा यह यक्ष प्रश्न

"मुझ तुच्छ पर थोड़ी कृपा करें

बतलायें कैसे पता करें?

किस पथ पर मिलेंगे आप

आपको भूल जाऊँगा कैसा यह श्राप

जैसे बिन माली कलियाँ कुमल्हा जाती

बिन दीपक क्या करे बाती"


अबोध मन की सुनकर जिज्ञासा

त्रिलोकपति ने दिया दिलासा

"जिस गोद में तुम आँखे खोलोगे

जिस माता-पिता से अपना दुख बोलोगे

उनमें मेरा ही अंश होगा

जो तुझे नैतिक ज्ञान से समर्थ करेगा

माता हैं धरती से बढ़कर

पिता अंतरिक्ष से हैं विशाल

तुम्हारी उन्नति ही जिनका लक्ष्य

ममता जिनकी तुमपर निढाल

मित्र, सखा में भी रहूंगा

पुष्प, शाखाओं में भी दिखूंगा

जब बाल्य अवस्था में जाओगे

तो मेरे बृहद रूप से मिल पाओगे

मेरे इस अवतार को कहते गुरू

जीवन ज्ञान जिनसे है शुरू

वो जो सच्चा पथ प्रदर्शक

जीवनवृत्त जिनका सबसे आकर्षक

भाषा का ज्ञान कराएंगे

गणना-विज्ञान सिखाएंगे

तू देख सकेगा मुझे प्रत्यक्ष

कला कौशल में होगा दक्ष

इनका तुझपे होगा ऋण

जीवन तेरा होगा सुदृढ़"


मुग्ध जीव को हुआ चिंतन

"बोला प्रभु मैं हूँ अकिंचन

मात-पिता, गुरू का उपकार

कैसे चुकाऊंगा यह ऋण अपार"


बोले प्रभु सुन हे प्राण

"कभी ना करना तुम अभिमान

सदा बड़ो का करना सम्मान

उनका सदैव रखना तुम ध्यान"


यह सुनकर जीव हरषाया

करकमलों में शीश नवाया

माता-पिता गुरू के रूप में

ईश्वर हैं हर छाँव व धूप में।



   - शिवम् कुमार त्रिपाठी 'शिवम्'

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


निगाहों से जो छुप छुप कर बराबर वार करते हैं 

मुहब्बत से वो महफ़िल में सदा  इन्कार करते हैं


हुस्ने-मतला--

कभी इज़हार करते हैं कभी इनकार करते हैं

हमारे साथ हरदम आप क्यों तकरार करते हैं


 शरारत ख़ूब है उनमें अदा शोखी भी है क़ातिल

इन्हीं से वो हमारी ज़िन्दगी गुलज़ार करते हैं


मैं उनकी मिन्नतें कर कर के आखिर क्यों न इतराऊँ

भंवर से नाव मेरी वो हमेशा पार करते हैं 


न पूछो क्या गुज़रती है दिल-ए-नादान पर उस दम

बजा पाज़ेब जब जज़्बात वो बेदार  करते हैं 


जो बख़्शी हैं हमें उसने सुनहरे पल की सौगातें

लगा कर हम गले उनको अभी तक प्यार करते हैं


ये ग़मगीं हैं मगर इनके ज़रा तुम हौसले देखो 

जहां में रौनक़े साग़र यही  फ़नकार करते हैं


🖋️विनय साग़र जायसवाल

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

 🌹🙏सुप्रभात🙏🌹


दूध दही अंकुरित अन्न अंडा भुर्जी,

लस्सी मछली मेवा बर्फी ।

छाछ पनीर चावल चिकन काजू लड्डू तिल के लड्डू काजू बर्फी । ।

टर्की खमीर भोजन में लें इन सबको, विटामिन बी ट्वेल्व के प्रमाण ।

कायम रखें शरीर की ऊर्जा तंत्रिका को,  मदद मस्तिष्क को करे प्रदान । ।

कमजोरी, जल्दी थकना रक्त अल्पता, 

अवसाद अनियमित मासिक । 

यह स्वस्थ रखें हृदय को हमारी , रक्त कोशिकाओं में डाले नूतन जान ।।

कमजोर पाचन शक्ति सरदर्द , बजती कान में घंटी  ,

त्वचा में पीलापन धड़कन तेज, याददाश कमी  ,

हाथ-पैर में झुनझुनी बधिरता, मुंह में हो छाले ,

चिडचिडापन भ्रम में रहता हो जीवन, तो B12 की कमी को जान । ।


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

एस के कपूर श्री हंस

 *।।क्यों मुझको पसंद है संस्था*

*काव्य रंगोली।।*

*((काव्य रंगोली लखीमपुर )पटल व संस्था*

*की विशिष्टता पर आधारित*

*मेरी रचना।)*


रंग रंग बिखरे हैँ   साहित्य

के     जहाँ    पर।

नित प्रतिदिन    नव सृजन

होता    वहाँ   पर।।

सुविख्यात काव्य   रंगोली

संस्था कहलाती वो।

रचनाकारों  का      सम्मान

होता    यहाँ     पर।।


जिला स्थान  छोटा ही सही

दिल बहुत बड़ा है।

हर पदाधिकारी  स्वागत को

आतुर      खड़ा है।।

हर उत्सव पटल    मनाता है

हर्षोल्लास        से।

कविता रंग   यहाँ हर  किसी

पर    चढ़ा       है।।


व्यवस्था  व  अनुशासन यहाँ

के प्रमुख   मापदंड हैं।

सहयोग व  सहभागिता  यहाँ

के मुख्य  मानदंड   हैँ।।

सीखने और सीखाने का क्रम

रहता यहाँ निरंतर जारी।

प्रतियोगिता  आयोजन संस्था

के मुख्य    मेरुदंड   है।।


भांति भांति के  रंग   मिलकर

बन गई है काव्य रंगोली।

प्रत्येक सिद्ध साहित्यकार की

यह तो    है   हमजोली।।

कविता लेख कहानी   हैं तरह

तरह        के           रंग।

आज उत्तर भारत की हर जुबाँ

की बन गई ये मुँहबोली।।


*रचयिता।।एस के कपूर 'श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

राजेंद्र रायपुरी

 😊    एक भजन    😊


आरती श्री  राम जी की,

आरती घनश्याम जी की,

आइए मिलकर करें।

आरती श्री राम की-----।


दीनबंधू     वो    दयालू,  

पाप, सब  की  ही  हरें। 

आरती श्री राम जी की, 

आरती घनश्याम जी की। 

आइए मिलकर करें। 

आरती श्री राम जी की --------।


हैं जगत के जो खेवइया।

पार  करते  हैं जो नइया।

हैं   सहारे   वो  सभी  के,

जो चराते  वन में गईया।

आइए गोपाल को उस,

ध्यान  मन अपने   धरें।


आरती श्री राम जी की,

आरती घनश्याम जी की,

आइए मिलकर करें।

आरती श्री राम जी- -------।


पापियों को जिनने मारा।

भार   धरती  का उतारा।

श्राप ऋषि से मुक्त करके,

था  अहिल्या  को  उबारा।

आइए  उन  राम  जी का,

मिल सभी वंदन करें।


आरती  श्रीराम  जी  की,

आरती घनश्याम जी की,

आइए मिलकर करें।

आरती श्रीराम जी की -----।


        ।। राजेंद्र रायपुरी।।

कालिका प्रसाद सेमवाल

 *शारदे वन्दना*

**************

माँ शारदे मेरी यही कामना,

ध्यान में डूब कर तेरे गीत गाता रहूं,

कण्ठ से फूट जाये मधुर रागनी,

गीत गंगा में गोते लगाता रहूं।


स्वर लहर में रहे भीगते रहे मन,

शारदा माँ भजन में लगन चाहिए,

मिट जाये जगत के सारे तम

हंस वाहिनी शुभे सर्वत्र  चाहिए 


शब्द के कुछ सुमन तुम्हें अर्पित,

बस चरण में शरण माँ दीजिए,

हर हृदय चले कुछ सुवासित यहां,

छन्द में ताल लय नव सृजन चाहिए।


कल्पना के क्षितिज नये बिम्ब हो,

चित्र जिनसे नये नित सजाया रहूं।

अपनी कृपा माँ बरसाती रहो,

मैं गीत नित तुम्हारे गाता रहूं।

*********************

कालिका प्रसाद सेमवाल

डॉ0 हरि नाथ मिश्र।

 *जीवनोपयोगी दोहे*

सुनो,सफल जीवन वही, जिसमें हो उपकार।

शुद्ध आचरण,सोच शुचि,संतों का सत्कार।।


रहो निरंकुश मत कभी,रख अनुशासन-ध्यान।

अनुशासित जीवन करे, जग में तुम्हें महान।।


निर्जन वन में संत सब,रहें सदा निर्भीक।

ईश्वर का गुणगान कर,लेते सुफल सटीक।।


चंदन सम शीतल रहो, करो कभी मत क्रोध।

क्रोध पाप का मूल है,जीवन-गति-अवरोध।।


प्रभु के वंदन से खुले,तम-अज्ञान-कपाट।

आत्म-तुष्टि अति शीघ्र तब,दे भव-खाईं पाट।।


क्रंदन-नंदन जगत में,हैं जीवन के खेल।

सृष्टि विधाता ने रची,उसको दे यह मेल।।

           © डॉ0हरि नाथ मिश्र।

               9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-13

स्वामि-भक्त बड़ बानर जाती।

मालिक-हित नाचै बहु भाँती।।

     मैं गुन-ग्राही बालि कुमारा।

     सहहुँ तुम्हारै बचन कुठारा।।

मैं जानउ तुम्हरो गुन रावन।

बान्हि न सकउ तुमहिं कपि लावन।।

     लंका जारि हता सुत तोरा।

     करि ना सक्यो अहित तुम्ह थोरा।।

यहिं तें हो डिढ़ाइ मैं आई।

कहुँ न लाजि-रोष तोहिं भाई।।

     तुमहिं भछउ निज पितुहीं बंदर।

     अस कहि तुरत हँसा दसकंधर।।

तुम्हरो बालि-मिताई जानी।

कीन्हा नहिं तव बध अभिमानी।।

     कित रावन बताउ जग माहीं।

      मैं जानउँ जे सुनु अब आहीं।।

एक त बँधा रहा घुड़साला।

जे जीतन बलि गयउ पताला।।

    खेलत सिसुहिं रहे जेहिं पीटत।

     बलि कै दया ल भागा छूटत।।

दूजा रहा सहस भुज पाई।

जानि जंतु बिचित्र घर लाई।।

    पाइ पुलस्ति ऋषिहिं कै दाया।

     मुक्ति सहस भुज तें तब पाया।।

रावन एक बताउँ सकुचाई।

बालि-काँखि महँ देखा भाई।।

    कवन होहु तुम्ह मोहिं बतावउ।

    छाँड़ि क्रोध व खीझ,जतावउ।।

सुनु कपि मैं रावन बलवाना।

मम भुज-बल कैलासहिं जाना।।

    मोर भगति जानहिं महदेवा।

     निज सिर-सुमन चढ़ा जे देवा।।

अवगत मम बल भल दिगपाला।

चुभहुँ तिनहिं उर धँसि जिमि भाला।।

    टूटे मूली इव तिन्ह दंता।

     भिरत देरि नहिं भगे तुरंता।।

मम डोलत महि हीलत ऐसे।

डगमग नाव चढ़त गज जैसे।।

     तू ललकारै इहवाँ आई।

      लागत काल तोर बउराई।।

दोहा-कहेसि मोहिं तुम्ह अति लघू,औरु सिखावत मोंहि।

         तुम्ह सम जग नहिं दुष्ट-सठ, बुद्धि-ग्यान नहिं तोहिं।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

नूतन लाल साहू

 लाचारी


कौन सा विश्वास मुझको

खींचता जाता है निरंतर

आखिरी मंजिल नहीं होती

कहीं भी दृष्टिगोचर

एक भी संदेश आशा का

जीवन में नहीं मिला

यह कैसी लाचारी है

मिल गया मांगा बहुत कुछ

पर कहां संतोष मन में

दोष दुनिया का नहीं हैं

यदि कहीं है तो,दोष मन में

दुनिया अपनी,जीवन अपना

यह सत्य नहीं,केवल है मन सपना

यह कैसी लाचारी है

कौन तपस्या करके कोकिल

इतना सुमधुर सुर पाया

पर ऐसी क्या घटना हुई

काली कर डाली काया

यह कैसी लाचारी है

देख कहीं कोई तरू सूखा

द्रवित हुई होंगी मन में

हरे नहीं होते तरु सुखे

नियम प्रकृति का युग चिर से

जिस निश्चय से अर्धरात्रि में

गौतम निकले थे घर से

यह कैसी लाचारी है

हर पल में तेरा स्वर बदला

पल में बदली तेरी सोच

यह बुरा है या है अच्छा

व्यर्थ सोच,इस पर दिन बिताना

असंभव लगा तो,छोड़ वह पथ

दुसरे पथ पर पग बढ़ाना

यह कैसी लाचारी है

नूतन लाल साहू

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