दयानन्द त्रिपाठी दया

चाय पर दोहा सर्दी की छायी घटा, उर से निकली हाय। आनी-बानी ना पियो, चलो पिलायें चाय।। अन-पानी आहार है, भूखा स्वाद संग नहीं जाय। माधव का दीदार करो, घूंट-घूंट पियो चाय।। जिह्वा कर्म दुराचरी, तीनों गृहस्थ में त्याग। चाय पिलाओ खुद पियो, जब तक लगे न आग।। मांस-मांस सब एक हैं, मुर्गी, हिरनी, गाय। साधु संत फकिरीया, पीते गरम-गरम ही चाय।। सर्दी चढ़ी है जोर से, गलत कहूं क्या राय। मैडम तेरे हाथ की, मस्त बनी है चाय।। अमली हो बहु पाप से, समुझत नहीं है भाय। दुर्व्यसनों को त्याग के, सुबह - शाम लो चाय।। सांच कहूं तो मारि हैं, झूठ कहूं तो विश्वास। जो प्राणी ना चाय पिये, पछिताये संग बास।। सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। चाय पियन को जुटत हैं, राजा रंक संग बाप।। गरम पकौड़ी छान रही, भाग्यवान संग चाय। सर्दी मौसम संग डार्लिंग, मन को बड़ी सुहाय।। भई कोरोना बावरी, कहां फंसी मैं हाय। अदरक तुलसी गिलोइया, डाल पिये सब चाय।। सांस चैन की ले रहे, वैक्सीन मिले हैं भाय। दया कहे पुरजोर से, अभी पियत रहो ही चाय।। जो किस्मत के हैं धनी, जिनके घर में माय। मां के हाथों से मिले, किस्मत वाली चाय।।
-दयानन्द_त्रिपाठी_दया

डॉ0हरि नाथ मिश्र

*शीत-ऋतु*(दोहे) जाड़े की ऋतु आ गई,जलने लगे अलाव। ओढ़े अपना ओढ़ना,करते सभी बचाव।। होती है यह शीत-ऋतु,अनुपम और अनूप। इसकी महिमा क्या कहें,रुचिर लगे रवि-धूप।। परम सुहाने सब लगें,खेत फसल-भरपूर। चना संग गेहूँ-मटर, शोभित महि का नूर।। शीत-लहर आते लगें,यद्यपि लोग उदास। फिर भी रहते हैं मुदित,ले वसंत की आस।। गर्मी-पावस-शीत-ऋतु,हैं जीवन-आधार। विगत शीत-ऋतु पुनि जगत,आए मस्त बहार।। ©डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

डॉ0हरि नाथ मिश्र

*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17 सुनि रावन-मुख प्रभु-अपमाना। भवा क्रुद्ध अंगद बलवाना।। सुनै जे निंदा रामहिं ध्याना। पापी-मूढ़ होय अग्याना।। कटकटाइ पटका कपि कुंजर। भुइँ पे दोउ भुज तुरत धुरंधर।। डगमगाय तब धरनी लागे। ढुलमुल होत सभासद भागे।। बहन लगी मारुत जनु बेगहिं। रावन-मुकुटहिं इत-उत फेंकहिं।। पवन बेगि रावन भुइँ गिरऊ। तासु मुकुट खंडित हो परऊ।। कछुक उठाइ रावन सिर धरा। कछुक लुढ़क अंगद-पद पसरा।। अंगद तिनहिं राम पहँ झटका। तिनहिं उछारि देइ बहु फटका।। आवत तिनहिं देखि कपि भागहिं। उल्का-पात दिनहिं जनु लागहिं।। बज्र-बान जनु रावन छोड़ा। भेजा तिनहिं इधर मुख मोड़ा।। अस अनुमान करन कपि लागे। तब प्रभु बिहँसि जाइ तिन्ह आगे।। कह नहिं कोऊ राहू-केतू। रावन-बानन्ह नहिं संकेतू।। रावन-मुकुटहिं अंगद फेंका। कौतुक बस तुम्ह जान अनेका।। तब हनुमत झट उछरि-लपकि के। धरे निकट प्रभु तिन्ह गहि-गहि के।। कौतुक जानि लखहिं कपि-भालू। रबी-प्रकास मानि हर्षालू।। दोहा-रावन सबहिं बुलाइ के,कह कपि पकरउ धाइ। पकरि ताहि तुमहीं सबन्ह,मारउ अबहिं गिराइ।। डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

कालिका प्रसाद सेमवाल

*मां विद्या विनय दायिनी* ******************** वर दे मां सरस्वती वर दे इतना सा वर मां मुझको देना, कंठ स्वर मृदुल हो तेरा गुणगान करु, जन-जन का मैं आशीष पाऊं सब के लिए मां मैं मंगल गीत गाऊं मां विद्या विनय दायिनी। दीन दुखियों की मैं सेवा करुं प्रेम सबसे करुं छोटा या बड़ा हो, दृढ़ता से कर्तव्य का मैं पालन करुं हाथ जोड़ कर मैं नित तेरी वंदना करुं बस नित यही अर्चना मां तुम से करु मां विद्या विनय दायिनी। मां सरस्वती स्वर दायिनी दे ज्ञान विमल ज्ञानेश्वरी तू हमेशा सद् मार्ग बता मातेश्वरी, तेरी कृपा सभी पर रहे परमेश्वरी भारत मां की स्तुति नित करता रहूं बस यही भाव हर भारतीय में रहे।। ******************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड

राजेंद्र रायपुरी

😄 गुज़ारिश नये साल से 😄 आओ आओ, जल्दी आओ। नए साल तुम खुशियाॅ॑ लाओ। बैठे हैं सब इंतजार में, और नहीं तुम देर लगाओ। आशा सबकी जब आओगे, खुशियाॅ॑ ढेर साथ लाओगे। विपदा ये जो सता रही है, उसे दूर तुम कर पाओगे। साॅ॑स चैन की लेंगे सारे। रही न विपदा पास हमारे। गूॅ॑जेंगे फिर जग में मानो, नए साल के ही जयकारे। अगवानी को आतुर हम हैं। दिन भी बचे बहुत अब कम हैं। आ जाओ तुम जल्दी भाई। बीसे की हो सके बिदाई। इसने तो है खूब सताया। नहीं किसी को जग में भाया। कैसे भाता तुम ही बोलो, साथ यही था विपदा लाया। ।। राजेंद्र रायपुरी।।

डॉ० रामबली मिश्र

*दिन भर प्रतीक्षा... (ग़ज़ल)* दिन भर प्रतीक्षा किया, पर न आये। बताओ जरा, काहे दिल को जलाये।। आना नहीं था, बता देते पहले। गलती किया क्या जो इतना रुलाये? मेरी आरजू का नहीं कोई मतलब। छला इस कदर आँसुओं को सजाये।। नयन अश्रुपूरित विरह वेदना से। भुला पाना मुश्किल बहुत याद आये।। कहाँ जायें अब ये बता मेरे प्रियवर? तेरी याद में अब कहाँ गुम हो जायें?? धोखा ही जीवन का पर्यायवाची। धोखे पर धोखा बहुत चोट खाये।। संभालना कठिन डगमगाते कदम हैं। टूटे हृदय को हम कैसे मनायें?? नहीं राह दिखती न मंजिल है दिखता। बता दो मुसाफिर किधर को अब जायें?? सताया क्यों इतना तरस आती खुद पर। क्यों कर के वादे कभी ना निभाये ?? झूठी कसम खा क्यों जाते मुकर हो? बताओ ऐ दिलवर, क्यों दिल को बुझाये?? ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹 बादाम बेबी कॉर्न ऑयल , सोयाबीन चिया सीड्स फैसीड ऑयल , अंडा मीट मछली में भी मिले विटामिन एफ विशेषकर घानी ऑयल । करे ब्लड क्लोटिंग में मदद ,और जोड़ों फेफड़ों की सूजन को कम , हृदय रोग के खतरे से बचाए, दूर करे तनाव शिकन और गम । कम करे दिमागी अन्य समस्या, सेल्स का विकास पर देता का ध्यान, आजाद आंखों की रोशनी बढ़ाएं,बच्चों के विकास का करें सम्मान । त्वचा रूखी होने से बचाए, बालों में लाए नई जान, भोजन करें सोच समझकर, अपने स्वास्थ्य का रखें ध्यान । ✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।* *।।स्वस्थ तन जीवन की सर्वोत्तम निधि* *है।।* थकी थकी सी जिन्दगी और ढीला ढीला सा तन। हारा हारा सा बदन और फीका फीका सा मन।। अजब सी अजाब बन गई रोज़ की कहानी। हर सांस लगती हारी हारी जीवन बना बेरंग सा बेदम।। जिन्दा रहने को बस जैसे दवा ले रहे हैं बार बार। लगता जैसे रोज़ कुछ साँसे माँग कर ले रहे हैं उधार।। बोझ सी बना ली है खुद अपनी ही जिन्दगी। जंक फूड खा रहे परंतु नहीं ले रहे हैं पौष्टिक आहार।। प्रकृति से नित प्रतिदिन बस दूर होते जा रहे हैं। खोकर रोगप्रतिरोधक शक्ति बस मजबूर होते जा रहे हैं।। दिखावे की जिंदगी और रोज़ ही अपौष्टिक आहार। अनियमित दिनचर्या से हम भरपूर होते जा रहे हैं।। जरूरत है आज बस स्वच्छ स्वस्थ तन और मन की। शुद्ध वायु पर्यावरण संरक्षण प्रकृति से निकट जन जन की।। उत्तम विचार और खान पान में शुद्धता है आवश्यक आज। स्वास्थ्य ही व्यक्ति की सर्वोच्च निधि बस इस एक प्रण की।। *रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।।* मोब।।।। 9897071046 8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*त्रिपदियाँ* अगहन मास लगे अति न्यारा, सूरज भी लगता है प्यारा। जन-जन का यह रहे दुलारा।। ----------------------------------- आपस में मिल-जुल कर रहना, होता है जीवन का गहना। ऋषियों-मुनियों का है कहना।। ------------------------------------- सदा बड़ों का कहना मानो, जीवन-सार इसी को जानो। बुरा-भला सबको पहचानो।। -------------------------------------- कभी नहीं भावों में बहना, सम विचार सुख-दुख में रखना। मौसम-मार मुदित हो सहना।। --------------------------------------- सद्विचार जब पलता रहता, हितकर कर्म मनुज तब करता। बिगड़ा काम तभी जग बनता।। ©डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446374

कालिका प्रसाद सोमवाल

*माँ के लिए चिठ्ठी* ***************** माँ मैं जब तुम्हें चिट्ठी लिखने बैठा, तुम्हारी मुझे बहुत याद आई। ऐसा लगा जैसे तुम मुझे पुकार रही हो, मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में। कागज पर गिरे हुए आँसुओं की जगह, लिख रहा हूँ मैं छोड़-छोड़ कर। लिखने जब रात को बैठा ही था मैं, माँ यह चिट्ठी जब तेरे नाम से, अल्फाज बहुत सारे आ गये मेरे सामने, जगह भी चाहते थे तेरे नाम में। उलझ सा गया था मैं शब्द जाल में। मैं टूटता बिखरता..... मेरी नजरों के सामने खड़े थे, वो सब कंटीली झाड़ियों के जंगल। तुम जाती थी रोज लकड़ियों के लिये, वही तो था ,पेट की आग का संबल । लहुलुहान हो जाते थे तेरे हाथ , काँटों की चुभन सेआह भी न करती। मैं टूटता बिखरता रहा... तुम्हारी आँखों में आँसू न आते। हमेशा चेहरे पर रहता सन्तोष, बहुत दर्द सहा है जीवन में तुमने, कभी नहीं रहा जीवन में असंतोष। आज खो गया हूँ पुरानी यादों में। मैं टूटता बिखरता.... शुभ वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हो माँ तुम, कोई कुछ भी कहे बहुत सह लेती थी। बचपन में बहुत कहानियाँ सुनाई है , नीति की बातें भी कुछ कह देती थी। तुम मिशाल हो स्वाभिमान की, सच में। मैं टूटता बिखरता.... भोर होते ही खेतों में चली जाती थी, साँझ के अन्धेरे में घर आती थी । बहुत संघर्ष किया है तुमने जीवन भर, फिर भी तनिक नहीं घबराती थी। तुम पर बहुत गर्व माँ, नत हूँ चरणों में। मैं टूटता बिखरता..... खोया आज पुरानी यादों में मैं, तुम्हारा त्याग समर्पण ही पाता हूँ। जीवन में आये सुख- दुख उलझन भी, सदा तुमसे ही प्रेरणा पाता हूँ। तुम्हीं ईश साकार हो माँ जीवन में, मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में। ********************* कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड

विनय साग़र जासयवाल

दोहे -सर्दी और सूरज 1. सर्दी के मारे बढ़ी , सूरज की औकात ।। हर कोई ही कर रहा,बस उस से ही बात ।। 2. सूरज सूरज कर रहा ,देखो सकल समाज । चंदा राजा जा रहे , सोंप उन्हें अब राज।। 3. निकलो सूरज देवता , लेकर तेज अपार । दर्शन दे कर तुम करो ,सर्दी से उद्धार ।। 4. जाड़े में मन जीतता ,सूरज का व्यवहार । नित्य सवेरे जाग कर ,बाँटे स्वर्णिम प्यार ।। 5. इस सर्दी में है यही ,सबकी एक पुकार। सूर्य देव आकर करो , हम सब पर उपकार ।। 6. जाड़े में ऐसी पड़ी , इस मौसम की मार ।। देख कुहासा हो गया ,सूरज भी बीमार ।। 7. सुबह सवेरे आ गई ,बादल की बारात । सूरज की तब गिर गई , क्षण भर में औकात ।। 🖋️विनय साग़र जासयवाल 16/12/2020

मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज

सुप्रभात *मधु के मधुमय मुक्तक *मदद* मदद किए हनुमान जी, सीता जी को खोज। राम राज को देखकर, हिय में बसता ओज। मदद भावना से बने, मानव ईश समान, इसी भाव से मिल सके, भूखे जन को भोज।। मदद ह्रदय से दीन की, सच्चा है इक दान। सहज ह्रदय से वह धरे,इस जीवन का मान। दूजों का दुख देख के, जो जन विचलित होय, ईश्वर की संतान वो, वो ही हैं इंसान।। मदद भाव से जो भरा, उसका ही सम्मान। सहयोगी मस्तिष्क में, सतत साधना ध्यान। पूर्ण वही व्यक्तित्व है, भावपूर्ण जो मूल, महापुरुष वह बन सके, पा समाज से मान।। शहर जला कर देखते, धुँआ उठा किस ओर। स्वयं चाहते बैर बस, करे व्यर्थ में शोर। एक लिए संकल्प जो, मदद भावना दीन, वही मनुज बस श्रेष्ठ हैं, रात्रि साथ *मधु* भोर।। *मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

कालिका प्रसाद सोमवाल

*मां वीणा पाणि सरस्वती* ******************** मां वीणा पाणी सरस्वती सुन लो मेरी करुण पुकार। झोली मेरी ज्ञान से भर दो दूर करो मां जीवन से अंधकार। जन-जन की वाणी निर्मल कर दो हर मुख में अमृत धार बहे। हर प्राणी दूसरे से प्यार करें ऐसा हो मां ये सारा संसार । मां विद्या वाणी की देवी तुम हो मुझ पर भी कुछ उपकार करो। अंहकार ना आए कभी जीवन में दे देना ऐसा वरदान। मां तुम ही विद्या की देवी और सुपथ बतलाती हो। भूल अगर हो जाये तो कर देना मां क्षमा मुझे। हे मां जन कल्याणी जन जन को सुमति दो। ****************** कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

नूतन लाल साहू

सुविचार काम करने वालों की कदर करो कान भरने वालों की कभी नहीं बालपन गया खेल कूद में विषयो में गई जवानी अंत समय जब तेरा आया तेरे कोई काम न आया हंस के तू गुण गा ले यदि जाना भवसागर पार है काम करने वालों की कदर करो कान भरने वालों की कभी नहीं इतना जालिम हो गया है कुदरत का कानून अगर कुछ बुरा हो भी जाये तो खो मत देना होश ऊपर वाला लिख देता हैं जीत का एक नया अध्याय काम करने वालों की कदर करो कान भरने वालों की कभी नहीं घटता है कुछ हादसा सभी इंसानों के साथ हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ कहते संत फकीर सब जीवन एक सराय काम करने वालों की कदर करो कान भरने वालों की कभी नहीं कुदरत नित देती नहीं दुख़ सुख की सौगात सबसे लम्बी यात्रा है घर से शमशान दोष देखना गैर के बंद कर दें आप काम करने वालों की कदर करो कान भरने वालों की कभी नहीं नूतन लाल साहू

डॉ0हरि नाथ मिश्र

षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-16 मत बतकुच्चन करउ तु रावन। अमल करउ बस मोर सिखावन।। छाँड़ि कलह अब करउ मिताई। यहि मा बस अह तोर भलाई।। मारि सियार सिंह नहिं सोहै। गज चढ़ि उल्लू साह न मोहै।। जौं मैं नहिं मनतेउँ प्रभु-कथनी। पीसि क तोर बनौतेउँ चटनी।। मुँह तोहार कूँचि क बुढ़ऊ। तोर भवन उजारि जहँ रहऊ।। मातु जानकी लइ निज संगा। जुवतिन्ह सकल लेइ करि दंगा।। जातउँ मैं इहँ तें बरजोरी। बिनु कछु सुने गुहार-चिरौरी।। प्रभु मानव तुम्ह दानव जाती। यहिं तें सहहुँ तोर बड़ बाती।। जौं अस करउँ त प्रभु-अपमाना। जानै तू न मान-सम्माना ।। मारि मृतक अपजस बस मिलई। तुम्ह सम बूढ़-मूढ़ कर बधई।। रोगी-कामी-संत-बिरोधी। कृपन-अघी-निंदक अरु क्रोधी।। तिनहिं बधे मम बड़ अपमाना। यहिं तें मैं प्रभु-कहना माना।। कह रावन सुनु रे कपि मूढ़ा। कहेसि मोंहि तू बहुतै बूढ़ा।। छोट मूहँ बड़ करेसि बतकही। जाके बल तू उछरत अबही।। त्रिया-बिरह दिन-राति डराहीं। पितु बनबास पाइ बन आहीं।। बस नर ऊ बल-तेज बिहीना। जासु प्रताप बिरंचिहिं छीना।। सोरठा-तू बानर न सचेत,जानसि नहिं तुम्ह निसिचरहिं। तव प्रभु राम समेत,खिइहैं सभ मिलि हो मगन।। डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹 पॉपकार्न पपीता पत्तेदार हरी सब्जी सरसों सूरजमुखी , शकरकंद शलजम सूखे मेवे बादाम खाओ रहो सुखी। अखरोट आम अंकुरित अन्न अंडे लीवर ऑयल, एवोकेडो ब्रोकली कड कद्दू विटामिन ई के हैं कायल । ई विटामिन बनाए वसीय तत्त्वों से निपटने वाले ऊतक, कोशिका झिल्ली की रचना लाल रक्त कण का करे निर्माण । रेटीना की सुरक्षा महिलाओं में मासिक धर्म में दर्द से त्राण, मजबूत करें रोग प्रतिरक्षा क्षमता मधुमेह कैंसर से बचाए प्राण । एलर्जी की करें रोकथाम कंकाल तंत्र के विकास का करे काम, करें कोलेस्ट्रॉल का नियंत्रण बालों चेहरे में लाए चमक और जान । ✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

डॉ0 रामबली मिश्र

*क्या तुम...? (सजल)* क्या तुम सच में प्यार करोगे? या मारोगे और मरोगे?? सच बतलाओ झूठ न बोलो। क्या मुझको स्वीकार करोगे?? सोच-समझकर बतलाओ प्रिय। क्या मुझपर इतबार करोगे?? यही चाह है प्यारा घर हो। क्या सचमुच में धार धरोगे?? कसम खुदा की तुम सर्वोत्तम। कभी नहीं इंकार करोगे?? दिल में केवल तुम्हीं रमे हो। क्या यह सच स्वीकार करोगे?? तुम हो तो जग में हरियाली। क्या सूना संसार करोगे?? जीवन की तुम अभिलाषा हो। क्या प्रिय सच्चा प्यार करोगे?? रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुर 9838453801

निशा अतुल्य

विजय दिवस 16 .12 .2020 नन्ही सी मैं, नन्हा मेरा मन आँगन में उड़ता रहता था जीवन में था बस खेलकूद ही सुंदर सरल मेरा जीवन था । खेत निराले हरे भरे थे श्री गंगा नगर में गांव बड़े थे रहते थे हम तामकोट में जहाँ पिता श्री देते शिक्षा थे। सन् आया उनिसौ इकहत्तर पिता जी ने कुछ बोला डर कर हम तो बिल्कुल हैं बॉर्डर पर जाना पड़े न जाने कब छोड़ कर । समझ नहीं मुझको तब आया डर था एक मन में समाया छूट जाए ना सँगी साथी तब हमने एक लक्ष्य बनाया। चलो चले सब मिलकर हम तुम मार भगाएं हम दुश्मन को करी इक्कठी अपनी सेना करने लगे युद्ध अभ्यास हम । रोज अन्धेरा हो जाता था दीया नही घर जल पता था हम दुबके रहते थे घर में नन्हा मन तब घबराता था । घड़ घड़ विमान उड़ता था लगता मुझको बहुत भला था मन ही मन मैं सोचा करती क्यों सब को इससे डर लगता। नन्हा मन कुछ समझ न पाया बैठे रहते क्यों रेडियो पर बाबा कभी खुश होते कभी थे रोतें नहीं समझ तब मुझको आता । मिली सफलता सेना को फिर सोलह दिसंबर का था दिन जब झूम रहे थे सभी मिल कर मैं भी नाच रही थी उन सँग । विजय दिवस उल्हासित मन था किया पाक का टुकड़ा अलग था सेना ने अपना शौर्य दिखाया तिरानवे हजार को बंदी बनाया। नाक रगड़ी फिर पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण नियाजी ने करवाया बंगला देश का जन्म हुआ फिर शक्ति वाहिनी ने शौर्य दिखाया। पाकिस्तान का मुँह पिटा था ये अब मेरी समझ में आया नमन तुम्हें है अमर जवानों तुमने देश का मान बढ़ाया । शत शत नमन करूँ, शिश झुका कर मातृभूमि पर मिटने वालों मैं भी कुछ अच्छा कर जाऊं मातृभूमि का मान बढ़ाऊं । स्वरचित निशा"अतुल्य"

डॉ० रामबली मिश्र

*धर्म-ध्वज (सजल)* धर्म ध्वजा फहराते चलना। सबमें ऐक्य जगाते रहना।। टूट गये हैं जितने रिश्ते। सबको एक बनाते रहना।। भावों में आयी विकृति को। अतिशय दूर भगाते रहना।। संवादों का गहरा संकट। सबमें बात कराते रहना।। मन बनता जा रहा अजनबी। मनघट सहज बनाते रहना।। कपट-वायु भर रही हॄदय में। सबको निर्मल करते चलना।। दंभ-द्वेष की आँधी बहती। मन को शीतल करते रहना।। भ्रम में जीता हर प्राणी है। ज्ञान पंथ दिखलाते रहना।। गहरे सबके जख्म हो रहे। सब पर मरहम करते रहना।। चोर, उचक्के, चाईं, लंपट। सब को संत बनाते चलना।। आलस अरु उन्माद खत्म कर। श्रम-उल्लास सभी में भरना।। धर्म पंथ है सबसे उत्तम। सुंदर कर्म सिखाते रहना।। रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दोहा-लेखन बोले प्यारी कोकिला,जब आए मधुमास। पिया-मिलन विश्वास की,जागे मन में आस।। हैं रवि-शशि-तारे सभी,आभूषण आकाश। अहो भाग्य है अवनि का,पाए सदा प्रकाश।। अगहन मास पवित्र अति,इसमें प्रभु का वास। धूप गुनगुनी सूर्य पा,हर्षित चित्त उदास ।। खंजन नैना बाँवरे,करते प्रबल प्रहार। परम प्रतापी प्रेम के,हैं प्यारे उपहार।। शीतल अगहन यामिनी,माँगे सदा अलाव। हे अलाव तुम धन्य हो,तुम हो सूत्र लगाव।। उदित सूर्य शोभन लगे,शोभन नीलाकाश। उल्लू जा छुपते कहीं,होकर बहुत हताश।। खिला हुआ रवि-चंद्र से,है अपना संसार। वायु-नीर रक्षा करें, देकर शक्ति अपार ।। ©डॉ0हरि नाथ मिश्र 9919446372

डॉ०रामबली मिश्र

*दरिद्र* दरिद्रों को नित आती बातें बहुत हैं। बिना अन्न मरते पर वादे बहुत हैं।। नहीं जेब में एक रुपया दो रुपये। शेखी बघारन को पैसे बहुत हैं।। भोजन बिना बीतता सारा दिन है। करते प्रदर्शन कि भोजन बहुत है।। कपड़े पहनते उतारा हुआ वे। कहते कि बैंकों में पूँजी बहुत है।। रचते हैं ढोंग जैसे उद्योगपति हैं । घर में भरा माल उनके बहुत है।। ऐसे दरिद्रों से ईश्वर बचायें। माँगते हैं भीक्षा पर बनते बहुत हैं।। रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी 9838453801

डॉ० रामबली मिश्र

*दरिद्रों की बस्ती...(ग़ज़ल)* दरिद्रों की बस्ती बहुत दूर रखना। दूरी बनाकर बहुत दूर रहना।। मन में बहुत पाप रहता है इनके। दूरी बनाकर सँभलकर विचरना।। ये खा कर भी पत्तल में करते हैं छेदा। इन्हें कुछ खिलाने की कोशिश न करना।। धोखे की दुनिया के ये पालतू हैं। विश्वास करने का साहस न करना।। एतबार करना नहीं बुद्धिमानी। एतबार करने की इच्छा न रखना।। टहलते इधर से उधर पेट खातिर । कुत्ते से कम इनका अंकन न करना।। ईर्ष्या की ज्वाला इन्हें है सुहाती। जलता हुआ पिण्ड इनको समझना।। नफरत भरी जिंदगी से ये खुश हैं। ऐसे दरिद्रों से बचकर निकलना।। नहीं सुख दिया है विधाता ने इनको। झरते ये झर-झर बने दुःख का झरना।। नहीं जल है निर्मल, अशुद्धा-अपेया।। दरिद्रों की दरिया किनारे न रहना।। बड़े पातकी होते ये सब दरिद्री। इनके बगल से कभी मत गुजरना।। छाया ये देते बहुत कष्टदायी । इनसे तू दूरी बनाये ही रहना । डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

सुनीता असीम

अगर नफरत रही तो प्यार भी है। निगाहे यार में इकरार भी है। **** विरह की आग में जलती है काया। मिलन अपना बड़ा दुश्वार भी है। **** नज़र हमसे सदा क्यूँ फेर लेते। मुहब्बत का किया इज़हार भी है। **** ज़रा सी चूड़ियां हमको दिला दो। बिरज में रंग का त्यौहार भी है। **** निराला है कन्हैया नन्द जू का। कभी सीधा कभी पुरकार भी है। **** वही है आस जीने की हमारी। वही साकार प्राणाधार भी है। **** इशारे से सुनीता को बता दो। जुड़ा उसका तुम्हारा तार भी है। **** सुनीता असीम

पँचपर्व सम्मान समारोह सूची

 पँचपर्व समारोह 2020

पंच पर काव्य समारोह 2020 में प्रतिभाग करने के लिए निम्नलिखित महानुभाव द्वारा प्रस्तुतिकरण किया गया


संस्था प्रमुख अखिल विश्व काव्य रंगोली परिवार


पँचपर्व समारोह 2020


कार्यक्रम प्रमुख 

लता विनोद नौवाल जी मुंबई-post



दयानन्द त्रिपाठी जी विशिष्ठ सहयोगी post


आदरणीया रश्मिलता मिश्रा जी सम्पादक बिलास पुर छग post


1-शोभा त्रिपाठी post


2-नाम फरजाना बेगम

तार बाहर चौक, बिलासपुर post


3-शशि लोहाटी post


4-राम नारायण साहू पेटियम post 


5-वर्षा अवस्थी मिट्ठू बिलासपुर post


6-चंदन सिंह चांद  post


7-कवयित्री दीप्ति प्रसाद कलकत्ता post


8-उषा जैन कोलकाता post


9-सीमा निगम,रायपुर post


10- नीलू सक्सेना देवास मप्र post  


11- सुरेंद्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार post


12-राज कुमार सिंह सिसौदिया दिल्ली post


13-ज्योति तिवारी बाय अनिल तिवारी  post


14- कान्ता तिवारी गंगचिरोली महाराष्ट्र  post


15- अरविन्द श्रीवास्तव post


16-अंजनी सुधाकर जी बिलासपुर post


17- सौरभ पाण्डेय सुल्तानपुर post


18- लवी सिंह बहेड़ी बरेली post


19- डॉ उषा पाण्डेय जी  कोलकाता post


20- जया मोहन प्रयागराज post


21- अरुणा शाह प्रेरणा post


22- अर्चना वालिया मुंबई post


23- डॉ शिवानी मिश्रा

प्रयागराज post


 24- इंदू दीवान बाय  आदरणीया लता मैम जी post



25-कवयित्री बिन्दू सिकंद बाय आदरणीया लता मेडम post


26- नागेंद्र नाथ गुप्ता ठाणे मुंबई post


27- सीमा शुक्ल अयोध्या post


28- प्रो शरद नारायण खरे

मंडला ,मप्र post


29- नीरज नीरू लखनऊ। post


30- Dr. Vandy Jais

डॉ वैंडी जैस  post


31- प्रिया प्रिंसेज पंवार दिल्ली post



32- इंजी शिवनाथ सिंह जी लखनऊ post


33-अर्चना द्विवेदी अयोध्या post


34- अन्जनी अग्रवाल कानपुर। post


35 डॉ इन्दु झुनझुनवाला बैंगलौर post


36 चंदा पहलादका कोलकाता post


37 चंद्रभान सिंह चांद post


38- नीतेश उपाध्याय post


39- Dr प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, post


40- सोनी सिंह बाय लता मैम  post


41 डॉ अर्चना प्रकाश जी लखनऊ post


42- लक्ष्मीकांत मुकुल post


43 मधु शंखधर प्रयागराज post


44- सुबोध झा  झारखंड post


45-संगीता श्रीवास्तव छिंदवाड़ा post


46 यशपाल सिंह चौहान दिल्ली post


47-स्वदेश कुमारी प्रिंसिपल मुरादाबाद


48,49,50,रिजर्व काव्यरंगोली

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


सर उठा कर जो सर-ए-राहगुज़र चलते हैं

ऐसे किरदार ज़माने को बहुत खलते हैं


हुस्ने -मतला-

हाथ में हाथ पकड़ कर  यूँ चलो  चलते हैं

ऐसे मौक़े भी कहाँ रोज़ हमें मिलते हैं


हमसे रौनक़ है हमेशा ही सनमख़ाने की 

एक दीदार से वो गुल की तरह खिलते हैं


कैसे इज़हारे-मुहब्बत मैं भला कर पाऊँ

बात करने में सदा होंट मेरे सिलते हैं


रौशनी यूँ भी है महफ़िल में अदब की लोगो 

दीप सारे ही लहू पी के यहाँ जलते हैं


जाम पीते हैं निगाहों से किसी की हम जो

मयकदे रोज़ नये हम पे यहाँ खुलते हैं 


हुस्न की बज़्म में तुम पाँव संभल कर रखना 

कितने दीवाने यहाँ हाथ सदा  मलते हैं


मेरे मौला तू इन्हें यूँ हीं सलामत रखना 

इन अमीरों से ग़रीबों के दिये जलते हैं


आपके एक तबस्सुम की बदौलत *साग़र*

 मेरी आँखों में हसीं ख़्वाब कई पलते हैं


🖋️विनय साग़र जायसवाल

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