"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
गीत(16/14)
लक्ष्य सदा रखना शिखरों पर,
और कहीं मत ध्यान रहे।
मंज़िल जब भी मिल जाती है-
तन-मन में न थकान रहे।।
एक बार जब बढ़ें कदम तो,
कभी नहीं पथ पर रुकते।
वीर-धीर जन बढ़ते-रहते,
कभी न पा संकट झुकते।
जब आते तूफ़ान राह में-
उनके दिल चट्टान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
संकट देते साथ सदा ही,
यदि मन में उत्साह रहे।
शोभा देती वह सरिता ही,
जिसमें सतत प्रवाह रहे।
सिंधु-पार कर जाता नाविक-
यदि ऊँचा अरमान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
चले पथिक यदि लक्ष्य साध कर,
मंज़िल स्वागत करती है।
क़ुदरत की तूफ़ानी ताक़त-
मधु फल आगत जनती है।
जंगल में भी मंगल होता-
यदि मन में श्रमदान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
अर्जुन सदृश लक्ष्य रख पथ पर,
सतत पथिक बढ़ते रहना।
दिन हो चाहे रात अँधेरी,
स्वप्न सदा गढ़ते रहना।
जो अर्जुन सा है संकल्पित-
उसका जग में मान रहे।।
तन-मन में न थकान रहे।।
कंटक बिछीं भले हों राहें,
तो भी विचलित मत होना।
रहें धुंध से भरी दिशाएँ,
फिर भी धीरज मत खोना।
जो ख़तरों का करे सामना-
उसका ही गुणगान रहे।।
मंज़िल जब भी मिल जाती है-
तन-मन में न थकान रहे।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
निशा अतुल्य
डॉक्टर
18.12.2020
नब्ज़ मेरी जरा देखो डॉक्टर
लगता मुझे बुखार चढ़ा
माथा मेरा ठंडा बहुत है
पर जाड़ा चढ़ता लगता ।
एक बुखार कोरोना का है
सांस सांस पर भारी है
घर से निकलते डर लगता है
कैसी ये बीमारी है ।
कुछ तुम को जो समझ में आया
तो हमको बतलाओ जरा
दुविधा में जीवन भारी है
सिर से पांव तक रहूँ ढँका ।
साँस न अब आती है मुझको
मुँह नाक कब तक रखूं ढका
कोरोना से मिलें कब छुट्टी
मन मेरा ये सोच रहा ।
कोरोना के चक्कर में ही
जीना मुश्किल हुआ मेरा ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
सुनीता असीम
वो हुआ क्यूं नहीं हमारा भी।
जबकि हमने किया इशारा भी।
*****
छोड़कर वो चला गया हमको।
कर्ज दिल का नहीं उतारा भी।
*****
कुछ बला की रही अकड़ उनमें।
वापसी में नहीं निहारा भी।
*****
वो हमें क्यूँ नहीं समझते हैं।
उन बिना है नहीं गुजारा भी।
*****
दिल नहीं ले रहे न ही देते।
उनसे कैसे करें ख़सारा भी।
*****
इक अरज कर रही सुनीता है।
कृष्ण दे दो ज़रा सहारा भी।
*****
सुनीता असीम
डॉ0 रामबली मिश्र
*प्रेम मिलन... (सजल)*
प्रेम मिलन का सुंदर अवसर।
मंद बुद्धि खो देती अक्सर।।
प्रेम पताका जो ले चलता।
पाता वही प्रेम का अवसर।।
उत्तम बुद्धि प्रेम के लायक।
बुद्धिहीन को नहीं मयस्सर।।
भाव प्रधान मनुज अति प्रेमी।
भावरहित मानव अप्रियतर।।
रहता प्रेम विवेकपुरम में।
सद्विवेक नर अतिशय प्रियवर।।
प्रेमातुर नर अति बड़ भागी।
पाता दिव्य प्रेम का तरुवर।।
प्रेम दीवाना सदा सुहाना।
प्रेमपूर्ण भाव अति सुंदर।।
जिसका दिल अति वृहद विशाला।
वही सरस मन प्रेम समंदर।।
जिसका मन विशुद्ध हितकारी।
उसको मिलता प्रेम उच्चतर।।
प्रेम मिलन अतिशय सुखदायी।
समझो दिव्य प्रेम जिमि ईश्वर।।
डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
डॉ0 निर्मला शर्मा
प्रेरणा
इस जगत का निर्माण
मानव में डाले प्राण
अनुपम रची रचना
सृष्टि का किया विधान
वह प्रेरणा ही तो थी, जो
बन ईश का आधार
चराचर रूप साकार
नवनिर्मित यह पृथ्वी
बिखराती चहुँ दिसि
जीवन का उल्लास
धरती और आकाश
चाँद-तारों का प्रकाश
जीवन में नवल प्रभात
वह प्रेरणा ही तो थी, जो
बुने सपनों के पल खास
कराये हर रस का अभास
प्रसन्नता से नाचे मनमोर
लेकर नवरस मधुमास
सृजन हो जब सादृश्य
परिवर्तित हो हर दृश्य
चलता अनुक्रम अविरल
पीता जब कोई गरल
मंथन मथनी का साथ
करता है नव शुरुआत
सब बनता जाता सरल
प्रेरणा हो अगर मंजुल
सकारात्मक बनते भाव
सत्यम शिवम का अनुराग
जगाता सात्विक अनुभाव
हो आनन्दमगन संसार
डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
डा.नीलम
*प्यार की सौगात*
देकर प्यार की सौगात
आंख में आंसू दे गए
साजन मेरे मुझसे मेरा
चैन ओ' करार ले गए
हवाओं को दी आजादी
मेरे ख्वाब बंधक कर गए
प्रीत-रीत की दे दुहाई
मासूम दिल हमारा ले गए
नेह की है बदली छाई
मनाकाश पर कजरारी
घन गर्जन सी धड़कनों
की सौगात प्रियतम दे गए
रातों की तन्हाई में सजा
मदहोश ख्वाबों का बाजार
सिरहानों को रात भर जागने
की नशीली सजा साजन दे गए
मिली निगाहें जब से निगाहों से
उतर कर रुह रुह में संवर गई
तन मन की सुध नहीं रही मुझे
रुहानी सफर पर मितवा मुझे ले गए
देकर प्यार की ................
डा.नीलम
दयानन्द त्रिपाठी दया
चाय पर दोहा
सर्दी की छायी घटा, उर से निकली हाय।
आनी-बानी ना पियो, चलो पिलायें चाय।।
अन-पानी आहार है, भूखा स्वाद संग नहीं जाय।
माधव का दीदार करो, घूंट-घूंट पियो चाय।।
जिह्वा कर्म दुराचरी, तीनों गृहस्थ में त्याग।
चाय पिलाओ खुद पियो, जब तक लगे न आग।।
मांस-मांस सब एक हैं, मुर्गी, हिरनी, गाय।
साधु संत फकिरीया, पीते गरम-गरम ही चाय।।
सर्दी चढ़ी है जोर से, गलत कहूं क्या राय।
मैडम तेरे हाथ की, मस्त बनी है चाय।।
अमली हो बहु पाप से, समुझत नहीं है भाय।
दुर्व्यसनों को त्याग के, सुबह - शाम लो चाय।।
सांच कहूं तो मारि हैं, झूठ कहूं तो विश्वास।
जो प्राणी ना चाय पिये, पछिताये संग बास।।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
चाय पियन को जुटत हैं, राजा रंक संग बाप।।
गरम पकौड़ी छान रही, भाग्यवान संग चाय।
सर्दी मौसम संग डार्लिंग, मन को बड़ी सुहाय।।
भई कोरोना बावरी, कहां फंसी मैं हाय।
अदरक तुलसी गिलोइया, डाल पिये सब चाय।।
सांस चैन की ले रहे, वैक्सीन मिले हैं भाय।
दया कहे पुरजोर से, अभी पियत रहो ही चाय।।
जो किस्मत के हैं धनी, जिनके घर में माय।
मां के हाथों से मिले, किस्मत वाली चाय।।
-दयानन्द_त्रिपाठी_दया
डॉ0हरि नाथ मिश्र
*शीत-ऋतु*(दोहे)
जाड़े की ऋतु आ गई,जलने लगे अलाव।
ओढ़े अपना ओढ़ना,करते सभी बचाव।।
होती है यह शीत-ऋतु,अनुपम और अनूप।
इसकी महिमा क्या कहें,रुचिर लगे रवि-धूप।।
परम सुहाने सब लगें,खेत फसल-भरपूर।
चना संग गेहूँ-मटर, शोभित महि का नूर।।
शीत-लहर आते लगें,यद्यपि लोग उदास।
फिर भी रहते हैं मुदित,ले वसंत की आस।।
गर्मी-पावस-शीत-ऋतु,हैं जीवन-आधार।
विगत शीत-ऋतु पुनि जगत,आए मस्त बहार।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
डॉ0हरि नाथ मिश्र
*षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17
सुनि रावन-मुख प्रभु-अपमाना।
भवा क्रुद्ध अंगद बलवाना।।
सुनै जे निंदा रामहिं ध्याना।
पापी-मूढ़ होय अग्याना।।
कटकटाइ पटका कपि कुंजर।
भुइँ पे दोउ भुज तुरत धुरंधर।।
डगमगाय तब धरनी लागे।
ढुलमुल होत सभासद भागे।।
बहन लगी मारुत जनु बेगहिं।
रावन-मुकुटहिं इत-उत फेंकहिं।।
पवन बेगि रावन भुइँ गिरऊ।
तासु मुकुट खंडित हो परऊ।।
कछुक उठाइ रावन सिर धरा।
कछुक लुढ़क अंगद-पद पसरा।।
अंगद तिनहिं राम पहँ झटका।
तिनहिं उछारि देइ बहु फटका।।
आवत तिनहिं देखि कपि भागहिं।
उल्का-पात दिनहिं जनु लागहिं।।
बज्र-बान जनु रावन छोड़ा।
भेजा तिनहिं इधर मुख मोड़ा।।
अस अनुमान करन कपि लागे।
तब प्रभु बिहँसि जाइ तिन्ह आगे।।
कह नहिं कोऊ राहू-केतू।
रावन-बानन्ह नहिं संकेतू।।
रावन-मुकुटहिं अंगद फेंका।
कौतुक बस तुम्ह जान अनेका।।
तब हनुमत झट उछरि-लपकि के।
धरे निकट प्रभु तिन्ह गहि-गहि के।।
कौतुक जानि लखहिं कपि-भालू।
रबी-प्रकास मानि हर्षालू।।
दोहा-रावन सबहिं बुलाइ के,कह कपि पकरउ धाइ।
पकरि ताहि तुमहीं सबन्ह,मारउ अबहिं गिराइ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
कालिका प्रसाद सेमवाल
*मां विद्या विनय दायिनी*
********************
वर दे मां सरस्वती वर दे
इतना सा वर मां मुझको देना,
कंठ स्वर मृदुल हो तेरा गुणगान करु,
जन-जन का मैं आशीष पाऊं
सब के लिए मां मैं मंगल गीत गाऊं
मां विद्या विनय दायिनी।
दीन दुखियों की मैं सेवा करुं
प्रेम सबसे करुं छोटा या बड़ा हो,
दृढ़ता से कर्तव्य का मैं पालन करुं
हाथ जोड़ कर मैं नित तेरी वंदना करुं
बस नित यही अर्चना मां तुम से करु
मां विद्या विनय दायिनी।
मां सरस्वती स्वर दायिनी
दे ज्ञान विमल ज्ञानेश्वरी
तू हमेशा सद् मार्ग बता मातेश्वरी,
तेरी कृपा सभी पर रहे परमेश्वरी
भारत मां की स्तुति नित करता रहूं
बस यही भाव हर भारतीय में रहे।।
*******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड
राजेंद्र रायपुरी
😄 गुज़ारिश नये साल से 😄
आओ आओ, जल्दी आओ।
नए साल तुम खुशियाॅ॑ लाओ।
बैठे हैं सब इंतजार में,
और नहीं तुम देर लगाओ।
आशा सबकी जब आओगे,
खुशियाॅ॑ ढेर साथ लाओगे।
विपदा ये जो सता रही है,
उसे दूर तुम कर पाओगे।
साॅ॑स चैन की लेंगे सारे।
रही न विपदा पास हमारे।
गूॅ॑जेंगे फिर जग में मानो,
नए साल के ही जयकारे।
अगवानी को आतुर हम हैं।
दिन भी बचे बहुत अब कम हैं।
आ जाओ तुम जल्दी भाई।
बीसे की हो सके बिदाई।
इसने तो है खूब सताया।
नहीं किसी को जग में भाया।
कैसे भाता तुम ही बोलो,
साथ यही था विपदा लाया।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
डॉ० रामबली मिश्र
*दिन भर प्रतीक्षा... (ग़ज़ल)*
दिन भर प्रतीक्षा किया, पर न आये।
बताओ जरा, काहे दिल को जलाये।।
आना नहीं था, बता देते पहले।
गलती किया क्या जो इतना रुलाये?
मेरी आरजू का नहीं कोई मतलब।
छला इस कदर आँसुओं को सजाये।।
नयन अश्रुपूरित विरह वेदना से।
भुला पाना मुश्किल बहुत याद आये।।
कहाँ जायें अब ये बता मेरे प्रियवर?
तेरी याद में अब कहाँ गुम हो जायें??
धोखा ही जीवन का पर्यायवाची।
धोखे पर धोखा बहुत चोट खाये।।
संभालना कठिन डगमगाते कदम हैं।
टूटे हृदय को हम कैसे मनायें??
नहीं राह दिखती न मंजिल है दिखता।
बता दो मुसाफिर किधर को अब जायें??
सताया क्यों इतना तरस आती खुद पर।
क्यों कर के वादे कभी ना निभाये ??
झूठी कसम खा क्यों जाते मुकर हो?
बताओ ऐ दिलवर, क्यों दिल को बुझाये??
०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला
🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹
बादाम बेबी कॉर्न ऑयल , सोयाबीन चिया सीड्स फैसीड ऑयल ,
अंडा मीट मछली में भी मिले विटामिन एफ विशेषकर घानी ऑयल ।
करे ब्लड क्लोटिंग में मदद ,और जोड़ों फेफड़ों की सूजन को कम ,
हृदय रोग के खतरे से बचाए, दूर करे तनाव शिकन और गम ।
कम करे दिमागी अन्य समस्या, सेल्स का विकास पर देता का ध्यान,
आजाद आंखों की रोशनी बढ़ाएं,बच्चों के विकास का करें सम्मान ।
त्वचा रूखी होने से बचाए, बालों में लाए नई जान,
भोजन करें सोच समझकर, अपने स्वास्थ्य का रखें ध्यान ।
✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले
एस के कपूर श्री हंस
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।स्वस्थ तन जीवन की सर्वोत्तम निधि* *है।।*
थकी थकी सी जिन्दगी
और ढीला ढीला सा तन।
हारा हारा सा बदन और
फीका फीका सा मन।।
अजब सी अजाब बन
गई रोज़ की कहानी।
हर सांस लगती हारी हारी
जीवन बना बेरंग सा बेदम।।
जिन्दा रहने को बस जैसे
दवा ले रहे हैं बार बार।
लगता जैसे रोज़ कुछ साँसे
माँग कर ले रहे हैं उधार।।
बोझ सी बना ली है खुद
अपनी ही जिन्दगी।
जंक फूड खा रहे परंतु नहीं
ले रहे हैं पौष्टिक आहार।।
प्रकृति से नित प्रतिदिन बस
दूर होते जा रहे हैं।
खोकर रोगप्रतिरोधक शक्ति
बस मजबूर होते जा रहे हैं।।
दिखावे की जिंदगी और
रोज़ ही अपौष्टिक आहार।
अनियमित दिनचर्या से हम
भरपूर होते जा रहे हैं।।
जरूरत है आज बस स्वच्छ
स्वस्थ तन और मन की।
शुद्ध वायु पर्यावरण संरक्षण
प्रकृति से निकट जन जन की।।
उत्तम विचार और खान पान
में शुद्धता है आवश्यक आज।
स्वास्थ्य ही व्यक्ति की सर्वोच्च
निधि बस इस एक प्रण की।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।।। 9897071046
8218685464
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*त्रिपदियाँ*
अगहन मास लगे अति न्यारा,
सूरज भी लगता है प्यारा।
जन-जन का यह रहे दुलारा।।
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आपस में मिल-जुल कर रहना,
होता है जीवन का गहना।
ऋषियों-मुनियों का है कहना।।
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सदा बड़ों का कहना मानो,
जीवन-सार इसी को जानो।
बुरा-भला सबको पहचानो।।
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कभी नहीं भावों में बहना,
सम विचार सुख-दुख में रखना।
मौसम-मार मुदित हो सहना।।
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सद्विचार जब पलता रहता,
हितकर कर्म मनुज तब करता।
बिगड़ा काम तभी जग बनता।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446374
कालिका प्रसाद सोमवाल
*माँ के लिए चिठ्ठी*
*****************
माँ मैं जब तुम्हें चिट्ठी लिखने बैठा,
तुम्हारी मुझे बहुत याद आई।
ऐसा लगा जैसे तुम मुझे पुकार रही हो,
मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में।
कागज पर गिरे हुए आँसुओं की जगह,
लिख रहा हूँ मैं छोड़-छोड़ कर।
लिखने जब रात को बैठा ही था मैं,
माँ यह चिट्ठी जब तेरे नाम से,
अल्फाज बहुत सारे आ गये मेरे सामने,
जगह भी चाहते थे तेरे नाम में।
उलझ सा गया था मैं शब्द जाल में।
मैं टूटता बिखरता.....
मेरी नजरों के सामने खड़े थे,
वो सब कंटीली झाड़ियों के जंगल।
तुम जाती थी रोज लकड़ियों के लिये,
वही तो था ,पेट की आग का संबल ।
लहुलुहान हो जाते थे तेरे हाथ ,
काँटों की चुभन सेआह भी न करती।
मैं टूटता बिखरता रहा...
तुम्हारी आँखों में आँसू न आते।
हमेशा चेहरे पर रहता सन्तोष,
बहुत दर्द सहा है जीवन में तुमने,
कभी नहीं रहा जीवन में असंतोष।
आज खो गया हूँ पुरानी यादों में।
मैं टूटता बिखरता....
शुभ वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हो माँ तुम,
कोई कुछ भी कहे बहुत सह लेती थी।
बचपन में बहुत कहानियाँ सुनाई है ,
नीति की बातें भी कुछ कह देती थी।
तुम मिशाल हो स्वाभिमान की, सच में।
मैं टूटता बिखरता....
भोर होते ही खेतों में चली जाती थी,
साँझ के अन्धेरे में घर आती थी ।
बहुत संघर्ष किया है तुमने जीवन भर,
फिर भी तनिक नहीं घबराती थी।
तुम पर बहुत गर्व माँ, नत हूँ चरणों में।
मैं टूटता बिखरता.....
खोया आज पुरानी यादों में मैं,
तुम्हारा त्याग समर्पण ही पाता हूँ।
जीवन में आये सुख- दुख उलझन भी,
सदा तुमसे ही प्रेरणा पाता हूँ।
तुम्हीं ईश साकार हो माँ जीवन में,
मैं टूटता बिखरता रहा तेरी याद में।
*********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड
विनय साग़र जासयवाल
दोहे -सर्दी और सूरज
1.
सर्दी के मारे बढ़ी , सूरज की औकात ।।
हर कोई ही कर रहा,बस उस से ही बात ।।
2.
सूरज सूरज कर रहा ,देखो सकल समाज ।
चंदा राजा जा रहे , सोंप उन्हें अब राज।।
3.
निकलो सूरज देवता , लेकर तेज अपार ।
दर्शन दे कर तुम करो ,सर्दी से उद्धार ।।
4.
जाड़े में मन जीतता ,सूरज का व्यवहार ।
नित्य सवेरे जाग कर ,बाँटे स्वर्णिम प्यार ।।
5.
इस सर्दी में है यही ,सबकी एक पुकार।
सूर्य देव आकर करो , हम सब पर उपकार ।।
6.
जाड़े में ऐसी पड़ी , इस मौसम की मार ।।
देख कुहासा हो गया ,सूरज भी बीमार ।।
7.
सुबह सवेरे आ गई ,बादल की बारात ।
सूरज की तब गिर गई , क्षण भर में औकात ।।
🖋️विनय साग़र जासयवाल
16/12/2020
मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज
सुप्रभात
*मधु के मधुमय मुक्तक
*मदद*
मदद किए हनुमान जी, सीता जी को खोज।
राम राज को देखकर, हिय में बसता ओज।
मदद भावना से बने, मानव ईश समान,
इसी भाव से मिल सके, भूखे जन को भोज।।
मदद ह्रदय से दीन की, सच्चा है इक दान।
सहज ह्रदय से वह धरे,इस जीवन का मान।
दूजों का दुख देख के, जो जन विचलित होय,
ईश्वर की संतान वो, वो ही हैं इंसान।।
मदद भाव से जो भरा, उसका ही सम्मान।
सहयोगी मस्तिष्क में, सतत साधना ध्यान।
पूर्ण वही व्यक्तित्व है, भावपूर्ण जो मूल,
महापुरुष वह बन सके, पा समाज से मान।।
शहर जला कर देखते, धुँआ उठा किस ओर।
स्वयं चाहते बैर बस, करे व्यर्थ में शोर।
एक लिए संकल्प जो, मदद भावना दीन,
वही मनुज बस श्रेष्ठ हैं, रात्रि साथ *मधु* भोर।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
कालिका प्रसाद सोमवाल
*मां वीणा पाणि सरस्वती*
********************
मां वीणा पाणी सरस्वती
सुन लो मेरी करुण पुकार।
झोली मेरी ज्ञान से भर दो
दूर करो मां जीवन से अंधकार।
जन-जन की वाणी निर्मल कर दो
हर मुख में अमृत धार बहे।
हर प्राणी दूसरे से प्यार करें
ऐसा हो मां ये सारा संसार ।
मां विद्या वाणी की देवी तुम हो
मुझ पर भी कुछ उपकार करो।
अंहकार ना आए कभी जीवन में
दे देना ऐसा वरदान।
मां तुम ही विद्या की देवी
और सुपथ बतलाती हो।
भूल अगर हो जाये तो
कर देना मां क्षमा मुझे।
हे मां जन कल्याणी
जन जन को सुमति दो।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
नूतन लाल साहू
सुविचार
काम करने वालों की कदर करो
कान भरने वालों की कभी नहीं
बालपन गया खेल कूद में
विषयो में गई जवानी
अंत समय जब तेरा आया
तेरे कोई काम न आया
हंस के तू गुण गा ले
यदि जाना भवसागर पार है
काम करने वालों की कदर करो
कान भरने वालों की कभी नहीं
इतना जालिम हो गया है
कुदरत का कानून
अगर कुछ बुरा हो भी जाये
तो खो मत देना होश
ऊपर वाला लिख देता हैं
जीत का एक नया अध्याय
काम करने वालों की कदर करो
कान भरने वालों की कभी नहीं
घटता है कुछ हादसा
सभी इंसानों के साथ
हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ
कहते संत फकीर सब
जीवन एक सराय
काम करने वालों की कदर करो
कान भरने वालों की कभी नहीं
कुदरत नित देती नहीं
दुख़ सुख की सौगात
सबसे लम्बी यात्रा है
घर से शमशान
दोष देखना गैर के
बंद कर दें आप
काम करने वालों की कदर करो
कान भरने वालों की कभी नहीं
नूतन लाल साहू
डॉ0हरि नाथ मिश्र
षष्टम चरण(श्रीरामचरितबखान)-16
मत बतकुच्चन करउ तु रावन।
अमल करउ बस मोर सिखावन।।
छाँड़ि कलह अब करउ मिताई।
यहि मा बस अह तोर भलाई।।
मारि सियार सिंह नहिं सोहै।
गज चढ़ि उल्लू साह न मोहै।।
जौं मैं नहिं मनतेउँ प्रभु-कथनी।
पीसि क तोर बनौतेउँ चटनी।।
मुँह तोहार कूँचि क बुढ़ऊ।
तोर भवन उजारि जहँ रहऊ।।
मातु जानकी लइ निज संगा।
जुवतिन्ह सकल लेइ करि दंगा।।
जातउँ मैं इहँ तें बरजोरी।
बिनु कछु सुने गुहार-चिरौरी।।
प्रभु मानव तुम्ह दानव जाती।
यहिं तें सहहुँ तोर बड़ बाती।।
जौं अस करउँ त प्रभु-अपमाना।
जानै तू न मान-सम्माना ।।
मारि मृतक अपजस बस मिलई।
तुम्ह सम बूढ़-मूढ़ कर बधई।।
रोगी-कामी-संत-बिरोधी।
कृपन-अघी-निंदक अरु क्रोधी।।
तिनहिं बधे मम बड़ अपमाना।
यहिं तें मैं प्रभु-कहना माना।।
कह रावन सुनु रे कपि मूढ़ा।
कहेसि मोंहि तू बहुतै बूढ़ा।।
छोट मूहँ बड़ करेसि बतकही।
जाके बल तू उछरत अबही।।
त्रिया-बिरह दिन-राति डराहीं।
पितु बनबास पाइ बन आहीं।।
बस नर ऊ बल-तेज बिहीना।
जासु प्रताप बिरंचिहिं छीना।।
सोरठा-तू बानर न सचेत,जानसि नहिं तुम्ह निसिचरहिं।
तव प्रभु राम समेत,खिइहैं सभ मिलि हो मगन।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला
🌹🙏🌹सुप्रभात🌹🙏🌹
पॉपकार्न पपीता पत्तेदार हरी सब्जी सरसों सूरजमुखी ,
शकरकंद शलजम सूखे मेवे बादाम खाओ रहो सुखी।
अखरोट आम अंकुरित अन्न अंडे लीवर ऑयल,
एवोकेडो ब्रोकली कड कद्दू विटामिन ई के हैं कायल ।
ई विटामिन बनाए वसीय तत्त्वों से निपटने वाले ऊतक,
कोशिका झिल्ली की रचना लाल रक्त कण का करे निर्माण ।
रेटीना की सुरक्षा महिलाओं में मासिक धर्म में दर्द से त्राण,
मजबूत करें रोग प्रतिरक्षा क्षमता मधुमेह कैंसर से बचाए प्राण ।
एलर्जी की करें रोकथाम कंकाल तंत्र के विकास का करे काम,
करें कोलेस्ट्रॉल का नियंत्रण बालों चेहरे में लाए चमक और जान ।
✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले
डॉ0 रामबली मिश्र
*क्या तुम...? (सजल)*
क्या तुम सच में प्यार करोगे?
या मारोगे और मरोगे??
सच बतलाओ झूठ न बोलो।
क्या मुझको स्वीकार करोगे??
सोच-समझकर बतलाओ प्रिय।
क्या मुझपर इतबार करोगे??
यही चाह है प्यारा घर हो।
क्या सचमुच में धार धरोगे??
कसम खुदा की तुम सर्वोत्तम।
कभी नहीं इंकार करोगे??
दिल में केवल तुम्हीं रमे हो।
क्या यह सच स्वीकार करोगे??
तुम हो तो जग में हरियाली।
क्या सूना संसार करोगे??
जीवन की तुम अभिलाषा हो।
क्या प्रिय सच्चा प्यार करोगे??
रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुर
9838453801
निशा अतुल्य
विजय दिवस
16 .12 .2020
नन्ही सी मैं, नन्हा मेरा मन
आँगन में उड़ता रहता था
जीवन में था बस खेलकूद ही
सुंदर सरल मेरा जीवन था ।
खेत निराले हरे भरे थे
श्री गंगा नगर में गांव बड़े थे
रहते थे हम तामकोट में
जहाँ पिता श्री देते शिक्षा थे।
सन् आया उनिसौ इकहत्तर
पिता जी ने कुछ बोला डर कर
हम तो बिल्कुल हैं बॉर्डर पर
जाना पड़े न जाने कब छोड़ कर ।
समझ नहीं मुझको तब आया
डर था एक मन में समाया
छूट जाए ना सँगी साथी
तब हमने एक लक्ष्य बनाया।
चलो चले सब मिलकर हम तुम
मार भगाएं हम दुश्मन को
करी इक्कठी अपनी सेना
करने लगे युद्ध अभ्यास हम ।
रोज अन्धेरा हो जाता था
दीया नही घर जल पता था
हम दुबके रहते थे घर में
नन्हा मन तब घबराता था ।
घड़ घड़ विमान उड़ता था
लगता मुझको बहुत भला था
मन ही मन मैं सोचा करती
क्यों सब को इससे डर लगता।
नन्हा मन कुछ समझ न पाया
बैठे रहते क्यों रेडियो पर बाबा
कभी खुश होते कभी थे रोतें
नहीं समझ तब मुझको आता ।
मिली सफलता सेना को फिर
सोलह दिसंबर का था दिन जब
झूम रहे थे सभी मिल कर
मैं भी नाच रही थी उन सँग ।
विजय दिवस उल्हासित मन था
किया पाक का टुकड़ा अलग था
सेना ने अपना शौर्य दिखाया
तिरानवे हजार को बंदी बनाया।
नाक रगड़ी फिर पाकिस्तान ने
आत्मसमर्पण नियाजी ने करवाया
बंगला देश का जन्म हुआ फिर
शक्ति वाहिनी ने शौर्य दिखाया।
पाकिस्तान का मुँह पिटा था
ये अब मेरी समझ में आया
नमन तुम्हें है अमर जवानों
तुमने देश का मान बढ़ाया ।
शत शत नमन करूँ, शिश झुका कर
मातृभूमि पर मिटने वालों
मैं भी कुछ अच्छा कर जाऊं
मातृभूमि का मान बढ़ाऊं ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ० रामबली मिश्र
*धर्म-ध्वज (सजल)*
धर्म ध्वजा फहराते चलना।
सबमें ऐक्य जगाते रहना।।
टूट गये हैं जितने रिश्ते।
सबको एक बनाते रहना।।
भावों में आयी विकृति को।
अतिशय दूर भगाते रहना।।
संवादों का गहरा संकट।
सबमें बात कराते रहना।।
मन बनता जा रहा अजनबी।
मनघट सहज बनाते रहना।।
कपट-वायु भर रही हॄदय में।
सबको निर्मल करते चलना।।
दंभ-द्वेष की आँधी बहती।
मन को शीतल करते रहना।।
भ्रम में जीता हर प्राणी है।
ज्ञान पंथ दिखलाते रहना।।
गहरे सबके जख्म हो रहे।
सब पर मरहम करते रहना।।
चोर, उचक्के, चाईं, लंपट।
सब को संत बनाते चलना।।
आलस अरु उन्माद खत्म कर।
श्रम-उल्लास सभी में भरना।।
धर्म पंथ है सबसे उत्तम।
सुंदर कर्म सिखाते रहना।।
रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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