डॉ० रामबली मिश्र

 जाड़े की धूप    (दोहे)


सर्दी की मधुधूप का, लेते जा आनंद।

 पाता यह आनंद रस, अंधा य भी मतिमंद।।


जाड़े की इस धूप को, सुखदा औषधि जान।

कामदेव से भी बड़ा, यह अति ऊर्जावान।।


बंटती यह ऊर्जा सहज, नैसर्गिक निःशुल्क।

दे सकता कोई नहीं, इसका कथमपि शुल्क।।


धूप अगर मिलती नहीं, मर जाता इंसान।

कांप-कांप कर ठंड से, खो देता पहचान।।


जाड़े की यह धूप है, ईश्वर का वरदान।

मानव पाता मुफ्त में, ठंडक में यह दान।।


करे शुक्रिया ईश को, अदा सदा इंसान।

माने इस एहसान को, रखे ईश का मान।।


ईश्वर विरचित दिव्य है, सुंदर सुखद निसर्ग।

छटा निराली प्रकृति में, बसा हुआ है स्वर्ग।।


सकल प्राकृतिक संपदा, है ईश्वर की देन।

करना रक्षा प्रकृति की, यही देन अरु लेन।।


सीख प्रकृति से दान का, शिव पुरुषोत्तम मंत्र।

इस संस्कृति से खुद रचो, बनकर पावन तंत्र।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ. हरि नाथ मिश्र

 *संघर्ष*

पत्थर लुढ़क-लुढ़क के भगवान बनता है,

शैतान खा के ठोकर,इंसान बनता है।

करके मदद यतीमों की निःस्वार्थ भाव 

इंसान अपने मुल्क़ की पहचान बनता है।।

    होती हिना है सुर्ख़,पत्थर-प्रहार से,

    धीरज न खोवे सैनिक,सीमा की हार से।

    अपने वतन की माटी पर,प्राण कर निछावर-

    बलिदान की मिसाल वो, जवान बनता है।।

माता समान माटी, माटी समान माता,

परम पुनीत ऐसा संयोग रच विधाता।

जीवन में हर किसी को,मोकाम यह दिया है-

कर के नमन जिन्हें वो,महान बनता है।।

    लेना अगर सबाब, तुमको ख़ुदा का है,

    उजियार कर दो मार्ग जो,तम की घटा का है।

    भटके पथिक को रौशनी,दिखाते रहो सदा-

    करने वाला ऐसा ही निशान बनता है।।

वादा किसी को करके,मुकरना न चाहिए,

पद उच्च कोई पा के,बदलना न चाहिए।

धन-शक्ति के घमण्ड में,औक़ात जो भूला-


इंसान वो समझ लो,हैवान बनता है।।    महिमा कभी भी सिंधु की,घटते नहीं देखा,

    घमण्ड को समर्थ में,बढ़ते नहीं देखा।

   देखा नहीं सज्जन को कभी,कड़ुवे वचन कहते-

   नायाब इस ख़याल से ही,ईमान बनता है।।

जल पे लक़ीर खींचना, संभव नहीं यारों,

पश्चिम उगे ये भास्कर,संभव नहीं यारों।

आना अगर है रात को तो आ के रहेगी-

निश्चित प्रभात होने का,विधान बनता है।।

    ऐसे ही ज़िंदगी की गाड़ी को हाँकना,

    चलते रहो बराबर,पीछे न झाँकना।

    दीये की लौ समक्ष,तूफ़ान भी झुकता-

    तूफ़ान भी दीये का,क़द्रदान बनता है।।

पत्थर लुढ़क-लुढ़क के भगवान बनता है।।

                   ©डॉ. हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 लोग नहीं क्यों बोलते ?   (दोहे)


लोग नहीं क्यों बोलते, बहुत अहं या दर्प?

मानव हो कर किसलिये ,बन जाते हैं सर्प??


मानव बनना अति कठिन, शैतानी आसान 

मानव बनने के लिए, हों समक्ष भगवान।।


बिन सुंदर आदर्श के, मानव बनता कौन?

पूछ रहा हरिहरपुरी, सारी दुनिया मौन।।


जिसको सत्संगति मिली, वही बना इंसान।

सदा कुसंगति में छिपी,बहुत भयंकर जान।।


मद में चकनाचूर मन, बन जाता शैतान।

करता रहता सहज मन, मानव का सम्मान।।


अपने को सब कुछ समझ, जो करता व्यवहार।

ऐसा दंभी मनुज ही, करता अत्याचार।।


मानव सार्थक है वही, जो करता संवाद।

जिसे प्यार संवाद से, वह शिव सा आजाद।।


हो कर मानव जो नहीं, करत मनुज से प्रीति।

इस नालायक के लिए, कुछ भी नहीं अनीति।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 नशे में चूर होते जा रहे हैं।

यही दस्तूर होते जा रहे हैं।

*****

कृपा तेरी हुई जिनपर कन्हैया।

वही   पुरनूर   होते  जा रहे हैं।

*****

हमें तो भा रहा है संग तेरा।

ग़मो से दूर होते जा रहे हैं।

*****

ये दुनिया तंज कहती है जो हम पर।

बशर  सब  क्रूर       होते जा रहे हैं।

*****

दिवाना वो हमारा हम हैं उसके।

सितम  बेनूर होते    जा रहे हैं।

*****

डराते थे सुनीता को जो डर भी।

चले   काफूर   होते   जा रहे हैं।

*****

सुनीता असीम

डॉ०रामबली मिश्र

 प्रीति-संगम    (सजल)


सदा प्रीति का संगम होगा।

प्रेम नीति का सरगम होगा।।


धोखे का व्यापार नहीं है।

लगभग दो का जंगम होगा।।


एक दूसरे को पढ़ लेंगे।

दृश्य सुहाना अंगम होगा।।


रट लेंगे हम सहज परस्पर।

एकीकरण शुभांगम होगा।।


नित नव नवल कला से भूषित।

दृश्य निराल विहंगम होगा।।


जग देखेगा सिर्फ एक को।

ऐसा अप्रतिम संगम होगा।।


जग की दृष्टि बदल जायेगी।

श्रव्य मनोहर सरगम होगा।।


यह आदर्श बनेगा पावन।

जल-सरोज का अधिगम होगा।।


डूब-डूब कर थिरक-थिरक कर।

मस्त मनुज मन चमचम होगा।।


पागल द्रष्टा योगी में भी।

दिव्य काम का उद्गम होगा।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 निर्मला शर्मा

 संघर्ष

सोना आग में तपकर 

ही कुंदन बनता है

लोहे को तपाते जितना

आकार में ढलता है

तितली करती संघर्ष

तो नवजीवन मिलता है

निज संघर्ष के कारण

सुदृढ़ उसको तन मिलता है

जीवन के संघर्ष 

मजबूत बनाते हैं

जीवन जीने की कला में

मनुज को दक्ष बनाते हैं

हुआ सफल वही जिसने

तूफानों को झेला है

चलता है जो साथ सभी के

कभी न रहे अकेला है


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

नूतन लाल साहू

 आव्हान


ना किसी के अभाव में जियो

ना किसी के प्रभाव में जियो

जिंदगी आप की है

बस अपने मस्त स्वभाव में जियो

खुद अपने हाथ से

खींचे भाग्य लकीर

क्योंकि ठेके पर कहां मिलती हैं

इंसानों की तकदीर

सिर्फ सदगुरु से प्रेरणा लेकर

लिख दो जीत का एक नया अध्याय

सहज नहीं हैं,समझ पाना

तकदीरो का राज

चिंता न करें,भविष्य की

और न ही बीते हुए पल पर रो

बड़ा खुशनसीब होता है वो इंसान

जो आज पर ही जीता है

ना किसी के अभाव में जियो

ना किसी के प्रभाव में जियो

जिंदगी आपकी है

बस अपने मस्त स्वभाव में जियो

नहीं बनाओ बहुत सारी योजना

समय इशारा करता है

इंसानों का सोचा हुआ सब कुछ

पूरा कहां होता है

जग में अनेकों ने कोशिश किया

धरा रह गया ज्ञान

परम पिता परमेश्वर जी को

अपने मन मंदिर में बसा ले

तेरा बिगड़े काम बन जायेंगे

ना किसी के अभाव में जियो

ना किसी के प्रभाव में जियो

जिंदगी आपकी है

बस अपने मस्त स्वभाव में जियो

नूतन लाल साहू

डॉ0हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-24

करन लगे मर्दन कपि दोऊ।

रिपुहिं पछारि-मारि तहँ उभऊ।।

    लातन्ह-घूसन्ह धूसहिं सबहीं।

    झापड़ मारि क थूरहिं तहँहीं।।

तोरि मुंड कहु-कहु कै दोऊ।

रावन आगे फेंकहिं सोऊ।।

     फुटहिं मुंड दधि-कुंड की नाई।

     लंक-भूमि जिमि दधिहिं नहाई।।

फेंकहिं पैर पकरि मुखियन कहँ।

गिरहिं ते जाइ राम-चरनन्ह पहँ।।

    जानि बिभीषन तें सभ नामा।

    भेजहिं राम तिनहिं निज धामा।।

बड़ भागी ते आमिष-भोगी।

लहहिं राम जे पावहिं जोगी।।

    अधिक उदार राम करुनाकर।

     ममता-समता,नेह-गुनाकर।।

प्रबिसे तब अंगद-हनुमंता।

लंक पुरी अस कह भगवंता।।

     मरदहिं लंक जुगल कपि ऎसे।

     सिंधु मथहिं दोउ मंदर जैसे।।

यावत दिवस लरे तहँ दोऊ।

आए तुरत साँझ जब होऊ।।

     तुरतै आइ छूइ प्रभु-चरना।

     पाए प्रचुर कृपा नहिं बरना।।

भए बिगत श्रम लखि प्रभु रामा।

सुमिरत कष्ट कटै जेहि नामा।।

     साँझ परे निसिचर-बल जागा।

     किए चढ़ाई ते वहिं लागा।

लखि निसिचर आवत कपि बीरा।

कटकटाइ दौरे रनधीरा ।।

    भिरे दोउ दल बड़ गंभीरा।

     मानहिं हार न कोऊ बीरा।।

निसिचर सभें होंहि मायाबी।

आमिष-भोगी जबर सराबी।।

    माया-बल तहँ करि अँधियारा।

    करन लगे बहु बृष्टि अपारा।।

पाथर-रुधिर-राख तहँ बरसहिं।

देखि निबिड़ तम कपि सभ भरमहिं।।

    जाने मरम जबहिं प्रभु रामा।

     भेजे हनु-अंगद तेहि धामा।।

कपि-कुंजर तब गे तहँ धाई।

पावक-सर रघुनाथ चलाई।।

     भे उजियार सहज तब तहवाँ।

     रह अग्यान-भरम-तम जहवाँ।।

तिल कै ताड़ तुरत प्रभु करहीं।

तिलहिं समान ताड़ अपि भवहीं।।

     पा प्रकास भे कपि-दल हरषित।

     निसिचर सभें भए बहु लज्जित।।

सुनि हुँकारि अंगद-हनुमाना।

भागि गए रजनीचर नाना।।

      पकरि-पकरि तब कपिदल निसिचर।

      डारहिं सागर,हरषित जलचर ।।

दोहा-खाहिं तिनहिं मछरी-उरग,खा-खा मगर अघाहिं।

         टँगरी पकरि क निसिचरन्ह,फेंकहिं कपि जल माहिं।।

                    डॉ0हरि नाथ मिश्र

                       9919446372

राजेंद्र रायपुरी

 😊  विनती नये वर्ष से  😊


लगी उम्मीद जो  तुमसे,

  उसे तुम तोड़ मत देना।

    भरी कुछ है खुशी झोली,

      उसे तुम  छोड़ मत देना।


नये ओ  वर्ष तुमसे  बस,

  यही   विनती  हमारी  है।

    बढ़े  मत  दूर अब  ये हो,

      जकड़ी  जो  बीमारी   है।


सताया   खूब   ही   इसने,

  करोना   नाम  है  जिसका।

    जमाया   पैर   इसने    जो,

      अभी तक है कहाॅ॑ खिसका।


चले  आओ न  दुख लाओ,

  दुखों  की   पीर  भारी   है।

    नये  ओ   वर्ष   तुमसे  बस,

      यही   विनती   हमारी    है।


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


ग़ज़ल में मेरी उसका ही नूर है

सनम मेरा इससे ही मसरूर है


वो गाती तरन्नुम में मेरी ग़ज़ल

इसी से नशा मुझको भरपूर है


सुने बात मेरी वो कैसे भला

अदाओं के नश्शे में जब चूर है


मेरे फोन में उसकी डीपी लगी

 इसी की ख़ुशी में वो मग़रूर है 


किसी और जानिब भी क्या देखना 

नज़र में मेरी इक वही हूर है


ज़माने के तंज़ों की परवाह क्या

हमेशा से इसका ये दस्तूर है


ये ग़म जान ले ले न मेरी कहीं

मेरी हीर मुझसे बहुत दूर है


ख़ुशी से लगाती है वो माँग में

मेरे नाम का अब भी सिंदूर है


दुआएं गुरूवर की *साग़र*  हैं यह

मेरी हर ग़ज़ल आज  मशहूर है


🖋️विनय साग़र जायसवाल

मसरूर-प्रसन्न ,ख़ुश

जानिब-दिशा 

मग़रूर ,अभिमान ,घमंड

22/12/2020

बहर-फऊलुन फऊलुन फऊलुन फ्अल

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २५.१२.२०२०

दिवसः शुक्रवार

विधाः गीत 

विषयः कवि अटल

शीर्षकः अटल पुरोधा नमन करूँ


राजनीति   सदा    साहित्य.   कालजयी ,

अटल    पुरोधा   सादर  शत् नमन करूँ।

स्वर्णिम  भारत    माँ  इतिहास    बिहारी  

विनत अमर गायक  नायक  नमन करूँ। 


कविकुलभूषण राष्ट्र विनायक  अविचल,

नित समरसता    परिपोषक  नमन करूँ।

त्यागी     न्यायी    सत्कर्म        यायावर,   

भारतरत्न  पद्मविभूषित   नमन     करूँ।  


अजातशत्रु   सम   कालांतक   शत्रुंजय,

राष्ट्रवाद  उन्नायक  संघर्षक  नमन करूँ।

वाग्निपुण सारस्वत जन गण अधिनायक, 

भारत अटल  नायक सपूत   नमन करूँ। 


रीति   सम्प्रीति    नीति   मानवमूल्यक,

सौहार्द्र  हृद   बिहारी   मैं  नमन   करूँ।

राजनीतिक  महार्णव  रणनीति कुशल,

संकल्पित स्थितप्रज्ञ अटल नमन करूँ।  


सहज सौम्य सरल प्रकृति बरगद विराट,

निर्णेता    जेता   नेता    नमन      करूँ।

मृदुभाष  सदय  पर अद्भुत रण कौशल,

कारगिल   प्रणेता   विजयी  नमन करूँ। 


परमाणु   विस्फोट   दृढतर   निर्णायक,

रणबाँकुर रिपुसूदन  नित  नमन  करूँ।

धीर वीर  गंभीर प्रकृति साहस  सबल,

कूटनीतिज्ञ   रथयूथपति   नमन करूँ। 


कर निर्बाध सुगम  बाधित  दुर्गम पथ,

अटल  रण  महायोद्धा  मैं नमन करूँ।

अक्लान्त श्रान्त नित  भाग्य  विधाता,

निर्माता  नवभारत   युग  नमन  करूँ। 


बदले लकीर  ख़ुद  काल कपाल भाल,

आतुर स्वर्णिम कवि अतीत नमन करूँ।

अरुणिम प्रभात प्रगति सतरंग चहुँदिक,

गणतंत्र   शिरोमणि  सांसद नमन करूँ।


महापुरुष   पुरुषार्थ    विजेता नायक,

कोमल चारु  कविवरेण्य  नमन करूँ।

भारत माँ जयगान मुदित मन गायक,

ध्वज कीर्ति तिरंगा वाहक नमन करूँ।


चतुर्भुज  भारत  मार्ग  निर्माणक जय,

हिन्दी  गर्वोक्ति हृदय को  नमन  करूँ।

शाश्वत अनन्त धवल  हो कीर्ति नवल,

अमर गीत अटल बिहारी  नमन करूँ।


राष्ट्रवादी कवि✍️

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नई दिल्ली

डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २५-१२-२०२०

दिवसः शुक्रवार

विधाःकविता (गीत)

विषयः नववर्ष अटल 

शीर्षकः ❤️प्रीति मधुर नवनीत उदय🌅


पावन      मोक्षदा    एकादशी,

तुलसी  पूजन  पुण्य दिवस है।

अवतरण दिवस प्रभु यीशू का,

अटल खुशी उल्लास दिवस है।


आंग्ल   नूतन वर्ष  सुखमय हो,

जगदीश्वर शिव विष्णु सदय हों,

हो   जगत्पिता   मंगल   वर्षण,

नव शक्ति कृपा घर खुशियाँ हो।


नित सत्य शिवम सुन्दर मन हो,

लक्ष्य  अटल नित मंगलमय हो,

सिद्धान्त  सदा  सत्कर्म  अटल,

स्व विश्वास   निर्भीत  सबल हो।


निर्भेद  नीति  सद्भाव  हृदय  हो,

सहयोग  परस्पर मीत  सदय हो,

कर्तव्य निष्ठ   जन     भारतमय,

प्रीति मधुर  नवनीत   उदय   हो।


शुभ दिन  सुभग नित  हर्षित हो,

संकल्प  अटल  प्रगतिपरक  हो,

हो  अन्नपूर्ण   सब   गेह   वसन, 

जीविका   देय  नित  शिक्षा  हो।


रोग   शोक   आतंक  विरत  हो,

किसान मुदित  जय  जवान  हो,

विज्ञानपरक   चहुँदिक  विकास,

मुस्कान  सरस शुभ प्रकाश  हो। 


नव विहान    नववर्ष  अटल  हो,

पौरुष   बल  सौहार्द्र   साथ  हो,

मानवता   रक्षण  नैतिक    पथ,

पूरी   वसुधा  मन   कुटुम्ब   हो। 


क्षमा दया  शरणागत    मन  हो,

करुणा  ममता  भाव विमल हो,

परमार्थ   निरत  जन  सेवा मन,

बलिदान  वतन  तन  अर्पण हो। 


दीनार्त  क्षुधित  तृषार्त   न   हो,

न स्वतंत्र वतन  सत्ता सुख   हो,

निर्भीत   सबल  बेटी   शिक्षित,

नवशक्ति  पूज्य   नारी  जग हो। 


पिकगान मधुर   समरसता   हो,

मधुप  माधवी शान्ति  प्रदा    हो,

सुखद समुन्नत प्रमुदित जग मन,

विधिरेख श्रीश  शिव  सुन्दर  हो।


शुभकाम    हृदय   वर्धापन   हो,

नववर्ष अरुणिमा  मधुरिम     हो,

निर्माण      राष्ट्र    कल्याण  सर्व,

गूंजित  निकुंज पशु    विहंग  हो।


राष्ट्रवादी कवि✍️ 

डॉ.राम कुमार झा "निकुंज'

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नवदिल्ली

डॉ० रामबली मिश्र

 देखो…(चौपाई)


देखो घूर-घूर कर भाई।

यही प्रेम की शुद्ध दवाई।।


आँख न मूँद देख जगती को।

सींचो नयनों से धरती को।।


लाओ हरितक्रांति प्रिय वंदे।

प्रेमक्रांति अंतस में वंदे।।


घूरो किन्तु प्रेमवत प्यारे।

जैसे लगे प्रेम है द्वारे।।


असहज बनकर नहीं देखना।

सहज भाव से मिलकर रहना।।


सहज भाव में है परिवारा।

देख सहज बनकर संसारा।।


सदा सहजता में अपनापन।

नब्बे वर्षों में भी बचपन।।


उठतीं प्रेम तरंगें झिलमिल।

होती चाह रहें सब हिलमिल।।


रहे दृष्टि अति  सुंदर निर्मल।

साफ-स्वच्छ अति पावन उज्ज्वल।।


घूर-घूर कर खूब देखिये।

राही बनकर खूब पीजिये।।


मन-काया में दाग लगे ना।

काम वासना कभी जगे ना।।


यह शाश्वत सन्तों की वाणी।

देख प्रेम से सारे प्राणी।।


चाहे घूरो या कि निहारो।

सबको ईश्वर समझ पुकारो।।


इसी दृष्टि को विकसित कर लो।

खुद की जग की पीड़ा हर लो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


प्रेम करोगे।   (तिकोनिया छंद)


प्रेम करोगे,

सुखी रहोगे।

विश्व रचोगे।।


सुंदर मन बन,

स्वस्थ करो तन।

श्रम से अर्जन।।


घृणा न करना,

संयम रखना।

शीतल बनना।।


दिल से लगना,

मधुर बोलना।

इज्जत करना।।


रच मानवता,

दिव्य एकता।

सतत सहजता।।


बन आत्मवत,

रहो प्रेमवत।

खिलो सत्यवत।।


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 बात दिल में जब बिठा ली जायगी।

आह मन की तब निकाली जायगी।

******

बद्दुआ दिल से किसी को दो नहीं।

क्या समझते हो कि खाली जायगी।

******

रूठकर मुँह फेरने की रीत भी।

ये नहीं हमसे संभाली जायगी।

******

हम गए जो रूठ तो ये आपकी।

साख भी कब तक बचाई जायगी।

******

किस तरह से कह रहे हो बात ये।

चार लोगों में     उछाली जायगी।

******

 हिज़्र की रातें    कटें गी ही नहीं।

प्रेम की होली ही जलाली जायगी।

******

 वक्त  जाने में      सुनीता है अभी।

कृष्ण छवि मन में बसाली जायगी।

******

सुनीता असीम

25/12/2020

दयानन्द त्रिपाठी दया

 आओ_दिसम्बर_25_को_तुलसी_पूजन_दिवस_मनायें...


तुलसी इस धरा का है वरदान,

धनुर्मास के बीच में करे लें इनका ध्यान।

मानव मात्र के लिए है अमृत समान,

भगवत्प्रीतिर्थ कर्म विशेष है इनका सम्मान।।


जो नर दर्शन तुलसी का करें,

हो   सारे   पापों   का   नाश।

जल    सिंचित   मानव   करे,

यमराज   ने    आयें    पास।।


अनुसंधानों   में   सिद्ध   हुई   है,

एंटी आक्सीडेंट  गुणधर्म  भरे हैं।

रोगों जहरीले द्रव्यों के विकारों से,

स्वस्थ  करने की  रसायन धरे है।।


जिस घर में  तुलसी  करती बास,

यमदूतों  का  नहीं  वहां  निवास।

पूजा में बासी फूल जल हैं वर्जित,

तुलसीदल-गंगाजल हैं परिगृहीत।।


मृत्यु    सम्मुख    हो    खड़ी,

तुलसी  का  करायें  जलपान।

पापों    से   झट   मुक्त   करे,

विष्णुलोक  में  मिले  स्थान।।


   दयानन्द_त्रिपाठी_दया

डॉ0हरि नाथ मिश्र

 नीति-वचन

         *नीति-वचन*-17

देहिं जलद जग अमरित पानी।

सुख-सीतलता बुधिजन-बानी।।

   संत-संतई कबहुँ न जाए।

   कीच भूइँ जस कमल खिलाए।।

नीम-स्वाद यद्यपि प्रतिकूला।

पर प्रभाव स्वास्थ्य अनुकूला।।

    गर्दभि गर्भहिं अस्व असंभव।

    खल-कर सुकरम होय न संभव।।

नहिं भरोस कबहूँ बड़बोला।

खल-मुस्कान कपट मन भोला।।

    दूध-दही-मक्खन-घृत-तेला।

    जदपि स्वाद इन्हकर अलबेला।।

पर जब होय भोग अधिकाई।

हो प्रभाव जस कीट मिठाई।।

   आसन-असन-बसन अरु बासन।

   चाहैं सभ अनुकूल प्रसासन।।

बट तरु तरि जदि पौध लगावा।

करहु जतन पर फर नहिं पावा।।

दोहा-रबि-ससि-गरहन होय तब,महि जब आवै बीच।

         बीच-बिचौली जे करै,फँसै जाइ ऊ कीच ।।

                   डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

नूतन लाल साहू

 आत्मविश्लेषण

   सावधान


गलत वह नहीं थे

जिन्होंने धोखा दिया

गलत हम ही थे

जिन्होंने मौका दिया

अचानक रात के 10 बजे

हमारे मोबाईल की

रिंग टोन बजी

हमने उठाया तो

आवाज़ आई

बैंक का मैनेजर बोल रहा हूं

खुशियों का न रहा ठिकाना

बातों ही बातों में मैंने

बैंक खाते का डिटेल बता दिया

जब हो गया लाखों रुपए गायब

तब आया होश ठिकाना

गलत वह नहीं थे

जिन्होंने धोखा दिया

गलत हम ही थे

जिन्होंने मौका दिया

कहते हैं सागर की अपनी

होती हैं मर्यादा

सागर अपनी मर्यादा से

अब तक नहीं हिला है

पर हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं

कहने को सच कड़वा होता है

किंतु सत्य को कहना ही पड़ता हैं

जब चाहा विस्फोट कर रहा है

चंदन सी माटी पर

कोई भी पढ़ लेना

अंकित है सारी घटनाये

कोई भी हमें बता दें

प्रकृति की गोद में

हम,क्या सुरक्षित हैं

गलत वह नहीं थे

जिन्होंने धोखा दिया

गलत हम ही हैं

जिन्होंने मौका दिया


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।हर क्षण,हर पल जीवन को*

*अच्छा आप     बनाते   चलें।।*


जिन्दगी का साथआप बस

हमेशा     निभाते    चलिये।

हर घड़ी जीवन को बढ़िया

आप        बनाते     चलिये।।

अशांति और क्लेश जीवन

में कभी  न कर पाएं प्रवेश।

क्षमा गुण     से     समस्या 

हर आप  सुलझाते  चलिये।।


सीखिये लहरों से     गिरना

भी      और      फिर उठना।

सीखिये सदा अच्छा सच्चा 

बोलना    और फिर  सुनना।।

सरल विनम्र  शांत बने  कि 

यह  ही है    जीवन प्रबंधन।

सीखियेअनुभव से सीखना

और उसको  फिर     गुनना।।


नाकामी की उतार कर जोश

की इक      चादर    ओढ़ लें।

भरे आग सीने के अंदर और

घोर      निराशा     छोड़   दें।।

परिस्तिथि कैसी भी   हो मन

स्तिथि      न    बिगड़े  कभी।

और हाँ, मैं से हम   की  ओर

राह          अपनी    मोड़  लें।।


जान लें कि  अच्छे   व्यवहार

का वैसे कोई       मूल्य  नहीं।

कोई भी अन्य सद्गुण  इसके

जैसे है       तुल्य           नहीं।।

सुंदर वाणी में क्षमता  है सारे

दिलों   को     जीतने       की।

ये है सारांश  कोई अन्य पूंजी

व्यक्तित्व जैसे   अमूल्य  नहीं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।           9897071046

                    8218685464

डॉ०रामबली मिश्र

 नियम बनाओ  (तिकोनिया छंद)


नियम बनाओ,

चलते जाओ।

सबक सिखाओ।।


नियम सुखद हो,

सहमति से हो।

सदा शुभद हो।।


एक सूत हो,

सब सपूत हों।

सब अच्युत हों।।


नियम बनेगा,

सदा रहेगा।

जग सुधरेगा।।


नियम चलेगा,

प्रेम खिलेगा।

कलह मिटेगा।।


नियम नियामक,

व्यक्ति सुधारक।

कष्ट निवारक।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ०रामबली मिश्र

 लगी लगन    (सजल)


लगी लगन तो प्रेम हो गया।

पूरा अंतिम ध्येय हो गया।।


अवसर पाया मधुर मिलन का।

हल्का सारा खेल हो गया।।


नहीं रही अब कोई चिन्ता।

चिन्ताओं को जेल हो गया।।


भाग्य प्रबल था यही सत्य है।

दिल से दिल का मेल हो गया।।


सोचा कभी नहीं ऐसा था।

अचरज रेलमपेल हो गया।।


शरणागत के प्रभु जी दानी।

पा कर प्रीति दुकेल हो गया।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 निर्मला शर्मा

 गुब्बारे सतरंगी


 रंग बिरंगे बड़े अतरंगी 

गुब्बारे ले लो सतरंगी 

नीले पीले हरे गुलाबी 

बच्चों की खुशियों की चाबी 

आओ बाबू! एक तो ले लो 

इन गुब्बारों से तुम खेलो 

खेले खेल ये कैसा मुझ संग

तुम्हें खिलाऊँ खेलूँ ना इन संग

 बाबा की मैं प्यारी गुड़िया

 मेहनत करूं चलाऊँ दुनिया

 आँखों में छोटे से सपने 

सुखी रहे बस मेरे अपने

 उनकी खातिर करुँ चिरौरी 

आज ना खाएं रोटी कोरी 

सतरंगी फूलों सा बचपन 

खोया कहाँ बनी क्या अटकन 

एक बेचे एक सामने खेले

 जीवन की सच्चाई बोले


डॉ0 निर्मला शर्मा

 दौसा राजस्थान

डॉ०रामबली मिश्र

 अभिवादन    (तिकोनिया छंद)


अभिवादन कर,

सम्मानित कर।

सदा प्रेम कर।।


श्रद्धा रखना,

इज्जत करना।

उन्नति करना।।


विद्वान बनो,

 बलवान बनो।

गहना पहनो।।


बनो यशस्वी,

दिखो तपस्वी।

रह ओजस्वी।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

दयानन्द त्रिपाठी दया

 पंचायत_चुनाव 

बजा चुनावी बिगुल, लड़ने को तैयार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।

अपना होगा सुन्दर सपना, देख रहे सब अपना-अपना।

घुरहू औ कतवारू से देखो, हाल चाल दिन रात बना।।

अबकी बारी अपनी ही है, हैं सबसे सबल तैयार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।


जिनकी जमीं बनी हुई है, उनके भी हैं क्या कहने।

अबकी देखो कितने छुट भैईये, दौड़ रहे दिन-रात हैं सपने।।

यहां वहां सब फंसा रहे हैं, कितनों को ही लड़ा रहे हैं।

चलो ताव में हम देखेंगे, साहब संग फोटू दिखा रहे हैं।।

अपनी तो सरकारी लगी नहीं, देंगे सरकारी दे रहे विचार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी,लिए हाथ में हार खड़े।।


अपनी तो फांके मस्त हुए हैं, हर घर सपने दिखा रहे।

हाथ जोड़ चाय पिला, बातों में सबको उलझा रहे।।

हाथ जोड़कर लगा है पोस्टर, काम करायेंगे डटकर।

ऐसा वादा उनका है, बातें बना रहे हैं हटकर।।

रूपया  पैसा  खर्चेंगे, कई  नसेड़ी  द्वार  खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।


जयकारा झूठों का होगा, सच्चे कार्य दिखायेंगे।

मां - मां  की  कसमें  होंगीं, बातों का अम्बार लगायेंगे।।

हर पल हर क्षण अब देखो, जासूस गांव-गांव दौड़ायेंगे।

मूरख भी बातें ऐसे करते, खुद को चाणक्य बतायेंगे।।

जिनके भाव कभी ना मिलते, आंख झुकाये आयेंगे।

दया कहे, माता औ बहिनों के चरणों शीश में नवायेंगे।।

कई खड़े हैं अनुभव वाले, कितने तो पहली बार खड़े।

जितेंगे जिलापंचायत औ परधानी, लिए हाथ में हार खड़े।।



       - दयानन्द_त्रिपाठी_दया

दयानन्द त्रिपाठी दया

मृत्यु 

जीवन में अवसान सत्य है

नवजीवन का सम्मान सत्य है।

आये हो निज जीवन लेकर

जाने का सम्मान सत्य है।।


तेरी माया से  हार चला हूं 

सम्बन्धों को त्याग चला हूं।

मृत्यु का भी क्या है कहना

जीवन का अनमोल है गहना।।


आना ही जीवन पर हंसता, 

जाना ही जीवन पर हंसता।

दो  पाटों  के  बीच में देखो,

जीवन ही आखिर है पीसता।। 


जीवन भरी मधुशाला है,

मृत्यु अमृत का प्याला है।

जीवन पर सब न्यौछावर कर,

मृत्यु के चरम सुख वरण कर।।


मृत्यु  निहार  रही  है  द्वारे,

भव से सबको  पार  उतारें।

नहीं मांगता स्नेह को तुमसे,

आओ  पुण्यवेदी   पर  वारें।।


जीवन कभी हताशा है,

मृत्यु बड़ी ही आशा है।

पत्तों पर पानी का गिरना,

बूंद रुके उत्तम है कहना।।


पत्ते    को   बूंदों   ने   पाकर,

ठहर जीवन का अनुभव कर।

आओ अन्दर खामोशी रो पड़ी है,

मृत्यु ही सुखद जीवन की अमिट घड़ी है।।



  दयानन्द_त्रिपाठी_दया

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।सफल जीवन के कुछ सिद्ध मन्त्र।।*


मन से       करो  कोशिश तो जीत

का उपहार मिलता है।

ना भी मिल      पाए  तो   अनुभव

का आधार मिलता है।।

दिल में कसक     नहीं रह   जाती

है प्रयत्न न करने की।

कुछ भी हो परिणाम शांति संतोष

सुख करार मिलता है।।


प्रारब्ध भरोसे छोड़    नहीं सकते

कर्म   बहुत   जरूरी   है।

अंतिम सीमा तक      करो प्रयास

ऐसी भी क्या मजबूरी है।।

संतोष का अर्थ    कदापि  प्रयत्न

ना    करना   नहीं होता।

आलोचना से मत    डरो  मिलती

इससे शक्ति भरपूरी है।।


दुःख को भी मानो   सच्चा साथी

खूब सबक सिखाता है।

जब होता यह विदा   तो सुख ही

देकर        जाता     है।।

जीवन काँटों वाला   फूल     पर

खूबसूरती की कमी नहीं।

प्रेम से बलशाली   कुछ नहीं यह

सब को ही झुकाता है।।


झूठ में आकर्षण होता पर  इसके

पाँव    नहीं   होते    हैं।

सत्य में होती    स्थिरता      इसमें

दाँव    नहीं    होते     हैं।।

शब्द के भाव से ही     मन्त्र    या

गाली   जाती      है बन।

जीवन पूर्ण सफल ना बनता जब

तक धूप छाँव नहीं होते हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।।*

*बरेली।।*

मोब।।            9897071046

                     8218685464



।।रचना शीर्षक।।*

*।।मत हारो मन तो जीत पक्की*

*हो जाती है।।*


दीपक बोलकर नहीं प्रकाश 

से परिचय  देता है।

चेहरा नहीं चरित्र ही  व्यक्ति 

को    लय   देता   है।।

न हारने का वादा   जो  कर    

लेते     जिंदगी     से।      

कर्म में करते  विश्वास    यही

अंतिम विजय देता है।।


कोशिश रखें जारी  जब  तक

जीत   न मिल      जाये।

निरंतरअभ्यास करो कि फूल

आशा का न खिल जाये।।

हर समस्या   आती है  जीवन

में     समाधान     लेकर।

करते रहें प्रयत्न जब तक राह

का पत्थर न हिल जाये।।


दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने हार

हक्की बक्की हो जाती है।

मन से मत हारो तो   सफलता

पक्की हो    ही जाती है।।

आत्मविश्वास से  लिखा जाता

है जीत    का   इतिहास।

जो ठान लेते हैं इरादा तो   हर

बाधा नक्की हो जाती है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।           9897071046

                    8218685464

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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